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बुधवार, 13 अगस्त 2014

‘जन गण मन अधिनायक जय हे’ में 'अधिनायक' कौन है ?

‘जन गण मन अधिनायक जय हे’ में 'अधिनायक' कौन है ?
‘जन गण मन’ भारत का राष्ट्रगान है, जो मूलतः बांग्ला-भाषा में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर (1861-1941) द्वारा 1911 में लिखा गया था।
सन 1911 तक भारत की राजधानी कलकत्ता हुआ करती थी। सन 1905 में जब बंगाल-विभाजन को लेकर अंग्रेजों के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजों ने अपने को बचाने के लिए भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली ले गए और 1912 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। इस समय जब पूरे भारत में लोग विद्रोह से भरे हुए थे, अंग्रेजों ने इंग्लैंड के राजा किंग जार्ज V (1910-1936) को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाएं.
किंग जार्ज V 12 दिसंबर, 1911 में भारत में आया तो अंग्रेजों ने रवींद्रनाथ ठाकुर पर दबाव बनाया कि तुम्हें एक गीत राजा के स्वागत में लिखना होगा. उस समय रवींद्रनाथ का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे. रवींद्रनाथ के दादा द्वारकानाथ ठाकुर (1794-1846) ने बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी की. जब किंग जार्ज V भारत आए थे, तब रवींद्रनाथ के परिवार के एक सदस्य को उनके सिर पर छतरी तानने का जिम्मा दिया गया था।
किंग जार्ज V की स्तुति में रवींद्रनाथ ठाकुर ने जो गीत लिखा, उसके बोल हैं : "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता". इस गीत के सारे-के-सारे शब्दों में जार्ज V का गुणगान है, जिसका अर्थ "भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है हे अधिनायक (सुपर हीरो), तुम्हीं भारत के भाग्य विधाता हो, तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महाराष्ट्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदियां, जैसे— यमुना और गंगा— ये सभी हर्षित हैं खुश हैं प्रसन्न हैं तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते हैं और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते तुम्हारी ही हम गाथा गाते हैं. हे भारत के भाग्यविधाता (सुपर हीरो) तुम्हारी जय हो"
परन्तु यह गीत जार्ज V के स्वागत में 12 दिसंबर, 1911 को दिल्ली-दरबार में नहीं गाया गया। जार्ज जब इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। जार्ज ने जब इस गीत का अंग्रेजी अनुवाद सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। खुश होकर उसने आदेश दिया कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर को इंग्लैंड बुलाया जाये। रवीन्द्रनाथ ठाकुर इंग्लैंड गए। जार्ज V उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था। उसने रवीन्द्रनाथ ठाकुर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रवीन्द्रनाथ ने नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया, क्योंकि गाँधीजी ने रवीन्द्रनाथ को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। रवीन्द्रनाथ ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक ‘गीतांजलि’ नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो ‘गीतांजलि’ नामक रचना पर दिया गया है। जार्ज V मान गया और रवीन्द्रनाथ को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना पर नोबल पुरस्कार दिया गया।
रवींद्रनाथ ठाकुर के बहनोई, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और IPS ऑफिसर थे. रवींद्रनाथ ने अपने बहनोई को एक पत्र लिखा | इसमें उन्होंने लिखा कि ये गीत “जन गण मन अंग्रेजों द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है. इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है. इसको न गाया जाये तो अच्छा है.” लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं बताया जाये. लेकिन कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे |
दिल्ली-दरबार के बाद हुए कांग्रेस के कलकत्ता-अधिवेशन (27 दिसम्बर, 1911) में ‘जन गण मन’ गीत को दोनों भाषाओं में (बांग्ला और हिन्दी) गाया गया। अगले दिन अख़बारों में प्रकाशित हुआ :
* अधिवेशन की कार्रवाई रवींद्रनाथ ठाकुर के लिखे एक गीत से शुरू हुई। ठाकुर का यह गीत राजा पंचम जॉर्ज के स्वागत के लिए खास तौर से लिखा गया था। (द इंग्लिश मैन, कलकत्ता)
* कांग्रेस का अधिवेशन रवींद्रनाथ ठाकुर के लिखे एक गीत से शुरू हुआ। जॉर्ज पंचम के लिए लिखा यह गीत अंग्रेज प्रशासन ने बेहद पसंद किया है। (अमृत बाजार पत्रिका, कलकत्ता)
कांग्रेस तब अंग्रेज वफादारों का संगठन था। 1947 में भारत के स्वाधीन होने के बाद संविधान सभा में इस बात पर लंबी बहस चली कि राष्ट्रगान ‘वंदे मातरम’ हो या ‘जन-गण-मन’। अंत में ज्यादा वोट ‘वंदे मातरम’ के पक्ष में पड़े, लेकिन जवाहरलाल नेहरू ‘जन गण मन’ को ही राष्ट्रगान बनाना चाहते थे। अंततोगत्वा संविधान सभा ने 24 जनवरी, 1950 को जन-गण-मन को ‘भारत के राष्ट्रगान’ के रुप में स्वीकार कर लिया. स्वाधीनता-आंदोलन के समय से ही ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रीय गीत की हैसियत मिली हुई थी, लेकिन उसे मुसलमान मानने को तैयार नहीं थे। सो, 'जन−गण−मन' अपना राष्ट्रगान हो गया।

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