जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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शनिवार, 19 मई 2012
जिंदगी तुझसे हर एक मोड पर समझौता करूँ, शौक जीने का है मुझको मगर इतना भी नहीं
प्रिय सांसदों,
(आदरणीय लिखना चाहता हूँ पर चाह कर भी नहीं लिख पाता हूँ...इस बात के लिए खेद प्रकट करता हूँ )
जब आप संसद में चुन कर आते हैं तो आप क्या सोच कर आते हैं ? ज्यादातर का मानना होगा कि इतना पैसा खर्च करके आते हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि सबसे पहले तो उसे ही ब्याज समेत वसूलना चाहेंगे ही !!....चलो मान लेते हैं कि इसमें कोई बुराई नहीं है..
फिर परिवार, रिश्तेदार, दोस्त, बंधू, ठेकेदार, कार्यकर्ताओं,इत्यादि को ऊपर उठाने की चिंता...
फिर स्विस बैंक को घाटे से बचाने की चिंता...
फिर भरष्टाचार, काले धन, आतंकवाद, घोटालों, वसूली , माफिया इत्यादि को बचाने की चिंता....
हर वक्त बस चिंता ही चिंता !!
पर आप लोगों की इन चिंताओं में यह देश, यह मातृभूमि, यह जननी कहाँ है? क्यूँ नहीं अपना मुँह खोलते वहाँ पर, संसद में ? क्यूँ तुम्हारे बदन को लकवा मार जाता है जब सड़कों पर चलते देश हित के मुद्दे उठाए जाते हैं संसद में ? क्यूँ तुम संसद के बाहर तो रौब दिखाते फिरते हो आम आदमी पर, अफसरों पर, पुलिस पर, मीडिया पर और संसद के अंदर तुम्हारी ज़बान से एक शब्द भी नहीं निकलता....तुम्हारा वजूद ही नहीं दिखाई देता है जनहित के मुद्दों पर ?
यह प्रश्न हैं उन सांसदों से जो सिर्फ और सिर्फ अपनी पार्टी के कुछ चुनिन्दा नेताओं की हाँ में हाँ मिलते हैं? क्यूँ अन्धों की तरह पार्टी व्हिप के नाम पर एक रबर स्टाम्प की तरह इस्तेमाल होते हो ?
क्या आप लोगों का दिमाग नहीं है ?
क्या आपके मुँह में ज़बान नहीं है ?
क्या आप सोचने और समझने के काबिल नहीं है ?
क्या आप में ज़मीर नाम की कोई चीज़ नहीं है ?
अगर है, तो फिर क्यों आप लोगों को गाय और भेड़- बकरियों की तरह हांका जाता है किसी भी मुद्दे पर वोट देने के लिए.....
क्यों इस देश को अपने सभी सांसदों के नाम नहीं पता हैं ?क्यूँ सिर्फ आठ-दस नेता ही हर पार्टी में चमकते हैं टी.वी ,अखबार, संसद के अंदर और बाहर? क्यूँ यही आठ-दस तथाकथित " बुद्धिजीवी" नेता ही इस देश को चलाते हैं अपने इशारों पर ? क्यों हर मुद्दे पर हमें इनकी ही राय सुनने को मिलती है ? क्यूँ ये आठ - दस लोग ही अहम कमेटियों और पैनलों में जगह पाते हैं ?
क्या आप सभी बाकि सांसदों को हमने संसद में इसलिए चुन कर भेजा था कि आप लोग ध्रितराष्ट्र और भीष्म पितामह की तरह इस देश का चिर- हरण होते हुए देखते रहें? क्या आप अपनों के बीच में ही मौज़ूद दुर्योधन, दुशाशन, शकुनी के कुकृत्यों को यूँ ही मूक समर्थन देते रहेंगे?
आप कुछ भी राय रखिये.... किसी भी मुद्दे के पक्ष में या विरोध में...पर कम से कम एक राय रखिये तो सही !!
"जिंदगी तुझसे हर एक मोड पर समझौता करूँ,
शौक जीने का है मुझको मगर इतना भी नहीं".......
आप ऐसा नहीं करते हैं तभी तो मैं आपके लिए आदरणीय लिखना चाहता हूँ पर चाह कर भी नहीं लिख पाता हूँ................
आपका शुभाकांक्षी,
(आदरणीय लिखना चाहता हूँ पर चाह कर भी नहीं लिख पाता हूँ...इस बात के लिए खेद प्रकट करता हूँ )
जब आप संसद में चुन कर आते हैं तो आप क्या सोच कर आते हैं ? ज्यादातर का मानना होगा कि इतना पैसा खर्च करके आते हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि सबसे पहले तो उसे ही ब्याज समेत वसूलना चाहेंगे ही !!....चलो मान लेते हैं कि इसमें कोई बुराई नहीं है..
फिर परिवार, रिश्तेदार, दोस्त, बंधू, ठेकेदार, कार्यकर्ताओं,इत्यादि को ऊपर उठाने की चिंता...
फिर स्विस बैंक को घाटे से बचाने की चिंता...
फिर भरष्टाचार, काले धन, आतंकवाद, घोटालों, वसूली , माफिया इत्यादि को बचाने की चिंता....
हर वक्त बस चिंता ही चिंता !!
पर आप लोगों की इन चिंताओं में यह देश, यह मातृभूमि, यह जननी कहाँ है? क्यूँ नहीं अपना मुँह खोलते वहाँ पर, संसद में ? क्यूँ तुम्हारे बदन को लकवा मार जाता है जब सड़कों पर चलते देश हित के मुद्दे उठाए जाते हैं संसद में ? क्यूँ तुम संसद के बाहर तो रौब दिखाते फिरते हो आम आदमी पर, अफसरों पर, पुलिस पर, मीडिया पर और संसद के अंदर तुम्हारी ज़बान से एक शब्द भी नहीं निकलता....तुम्हारा वजूद ही नहीं दिखाई देता है जनहित के मुद्दों पर ?
यह प्रश्न हैं उन सांसदों से जो सिर्फ और सिर्फ अपनी पार्टी के कुछ चुनिन्दा नेताओं की हाँ में हाँ मिलते हैं? क्यूँ अन्धों की तरह पार्टी व्हिप के नाम पर एक रबर स्टाम्प की तरह इस्तेमाल होते हो ?
क्या आप लोगों का दिमाग नहीं है ?
क्या आपके मुँह में ज़बान नहीं है ?
क्या आप सोचने और समझने के काबिल नहीं है ?
क्या आप में ज़मीर नाम की कोई चीज़ नहीं है ?
अगर है, तो फिर क्यों आप लोगों को गाय और भेड़- बकरियों की तरह हांका जाता है किसी भी मुद्दे पर वोट देने के लिए.....
क्यों इस देश को अपने सभी सांसदों के नाम नहीं पता हैं ?क्यूँ सिर्फ आठ-दस नेता ही हर पार्टी में चमकते हैं टी.वी ,अखबार, संसद के अंदर और बाहर? क्यूँ यही आठ-दस तथाकथित " बुद्धिजीवी" नेता ही इस देश को चलाते हैं अपने इशारों पर ? क्यों हर मुद्दे पर हमें इनकी ही राय सुनने को मिलती है ? क्यूँ ये आठ - दस लोग ही अहम कमेटियों और पैनलों में जगह पाते हैं ?
क्या आप सभी बाकि सांसदों को हमने संसद में इसलिए चुन कर भेजा था कि आप लोग ध्रितराष्ट्र और भीष्म पितामह की तरह इस देश का चिर- हरण होते हुए देखते रहें? क्या आप अपनों के बीच में ही मौज़ूद दुर्योधन, दुशाशन, शकुनी के कुकृत्यों को यूँ ही मूक समर्थन देते रहेंगे?
आप कुछ भी राय रखिये.... किसी भी मुद्दे के पक्ष में या विरोध में...पर कम से कम एक राय रखिये तो सही !!
"जिंदगी तुझसे हर एक मोड पर समझौता करूँ,
शौक जीने का है मुझको मगर इतना भी नहीं".......
आप ऐसा नहीं करते हैं तभी तो मैं आपके लिए आदरणीय लिखना चाहता हूँ पर चाह कर भी नहीं लिख पाता हूँ................
आपका शुभाकांक्षी,
नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है
शनिवार, 14 अप्रैल 2012
वो है माँ का प्यार
एक जवान बेटा अपनी बुढी माँ के पास बेठा था...!
उसकी माँ ने एक पेड के ऊपर बैठे पक्षी की तरफ
इशारा करके पुछा: बेटा..! वो क्या है..? बेटा:
माँ वो कौवा है.. एक बार फिर माँ पुछा: बेटा वो क्या है...??
बेटा: माँ वो कौवा है कौवा..! एक बार फिर माँ ने पुछा:
बेटा वो क्या है...??? बेटा गुस्सा होकर: माँ तु बुढी हो गई
हो...! अब तुम्हारे दिमाग को जंग लग गया है..! तुम पागल
हो गई हो.. मैनेँ कितनी बार बोला की वो कौवा है..!! फिर
भी तुम पुछती जा रही हो..?? माँ की आँखो से आँसु निकल
आये..!!! फिर माँ ने आँसु पोछकर भारी आवाज मेँ बोली:
बेटा..! जब तु छोटा था ना तो, तुने मुझे 30 बार
पुछा कि माँ वो क्या है...? तो मैनेँ तीस बार तेरा सर चुमकर
कहा बेटा वो कौवा है कौवा है..कौवा है...!!!
मित्रो दुनिया मेँ सबसे मीठा कोई है तो वो है माँ का प्यार
और सबसे कडवा माँ के आँसु इस बात का हमेशा ध्यान
रखना....!!!!
उसकी माँ ने एक पेड के ऊपर बैठे पक्षी की तरफ
इशारा करके पुछा: बेटा..! वो क्या है..? बेटा:
माँ वो कौवा है.. एक बार फिर माँ पुछा: बेटा वो क्या है...??
बेटा: माँ वो कौवा है कौवा..! एक बार फिर माँ ने पुछा:
बेटा वो क्या है...??? बेटा गुस्सा होकर: माँ तु बुढी हो गई
हो...! अब तुम्हारे दिमाग को जंग लग गया है..! तुम पागल
हो गई हो.. मैनेँ कितनी बार बोला की वो कौवा है..!! फिर
भी तुम पुछती जा रही हो..?? माँ की आँखो से आँसु निकल
आये..!!! फिर माँ ने आँसु पोछकर भारी आवाज मेँ बोली:
बेटा..! जब तु छोटा था ना तो, तुने मुझे 30 बार
पुछा कि माँ वो क्या है...? तो मैनेँ तीस बार तेरा सर चुमकर
कहा बेटा वो कौवा है कौवा है..कौवा है...!!!
मित्रो दुनिया मेँ सबसे मीठा कोई है तो वो है माँ का प्यार
और सबसे कडवा माँ के आँसु इस बात का हमेशा ध्यान
रखना....!!!!
अगर किसी इन्सान में आगे दी हुयी पांच खूबियाँ हों , तो वह स्कूली शिक्षा हासिल किये बिना कामयाब हो सकता है-
एक आदमी सड़क के किनारे समोसे बेचा करता था| अनपढ़ होने की वजह से वो अख़बार नहीं पढ़ता था| ऊँचा सुनने की वजह से वह न्यूज़ नहीं सुनता था और आँखें कमजोर होने की वजह से उसने कभी टेलीविजन नहीं देखा था| इसके बावजूद वह काफी समोसे बेच लेता था| उसकी बिक्री और नफे में काफी बढ़ोतरी होती गयी| उसने और ज्यादा आलू खरीदना शुरू किया| साथ ही पहले वाले चूल्हे से और बड़ा बढ़िया चूल्हा खरीद लिया| उसका व्यापार लगातार बढ़ रहा था| तभी हाल ही मैं कॉलेज से MBA की डिग्री हासिल कर चूका उसका बेटा पिता का हाथ बटाने के लिए चला आया|
उसके बाद एक अजीबोगरीब घटना घटी| बेटे ने उस आदमी से पूछा"पिता जी क्या आपको मालूम है की हम लोग एक बड़ी मंदी का शिकार बनने वाले हैं|"पिता ने जवाब दिया,"नहीं, लेकिन मुझे उसके बारे में बताओ|"बेटे ने कहा"अंतराष्ट्रीय परिस्तिथितियाँ बड़ी गंभीर हैं| घरेलूं हालत तो और भी बुरे हैं| हमें आने वाले बुरे हालत का सामना करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए|"उस आदमी ने सोचा की उसका बेटा कॉलेज जा चूका है, अख़बार पढता है, और न्यूज़ सुनता है, इसलिए उसकी राय को हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए| दुसरे दिन से उसने आलू की खरीद कम कर दी, और अपना साइनबोर्ड निचे उतार दिया| उसका जोश ख़त्म हो चूका था| जल्दी ही उसकी दुकान पर आने वालों की तादात घटने लगी और उसकी बिक्री तेजी से गिरने लगी| पिता ने अपने बेटे से कहा"तुम सही कह रहे थे| हम लोग मंदी के दौर से गुजर रहे हैं| मुझे ख़ुशी है की तुमने वक्त से पहले ही सचेत कर दिया|"
इस कहानी से हमे क्या सिख मिलती है? इससे ये नतीजे निकलते हैं-
१- हम अपनी सोच के मुताबिक, खुद को आत्मसंतुष्ट करने वाली भविष्य वाणियाँ कर देते हैं|
२- कई बार हम बुद्धिमत्ता को अच्छा फैसला मानने की गलती भी कर बैठते हैं|
३- एक इन्सान ज्यादा बुद्धिमान होने के बावजूद गलत फैसले ले सकता है|
४- अपने सलाहकार सावधानी से चुनिए, लेकिन अमल अपने ही फैसले पर करिए|
५- कई लोग ज्यादा ज्ञानी हैं| उन्हें चलता फिरता विश्वकोष (encyclopedia) माना जा सकता है, पर दुःख की बात है की इसके बावजूद वे नाकामयाबी की जीती जागती मिसाल हैं|
६- अगर किसी इन्सान में आगे दी हुयी पांच खूबियाँ हों , तो वह स्कूली शिक्षा हासिल किये बिना कामयाब हो सकता है-
चरित्र ( character )
प्रतिबद्धता ( commitment )
दृढ विश्वास ( conviction )
तहजीब ( courtesy )
सहस ( courage )
विंस्टन चर्चिल ने सही ही कहा था"यूनिवर्सिटी की पहली जिम्मेदारी ज्ञान देना और चरित्र निर्माण होता है, न कि व्यापारिक और तकनिकी शिक्षा देना|"
पता नहीं भारतीय शिक्षा मंत्रालय और सरकार कब इस बात को समझेगी|
जय श्री राम|
उसके बाद एक अजीबोगरीब घटना घटी| बेटे ने उस आदमी से पूछा"पिता जी क्या आपको मालूम है की हम लोग एक बड़ी मंदी का शिकार बनने वाले हैं|"पिता ने जवाब दिया,"नहीं, लेकिन मुझे उसके बारे में बताओ|"बेटे ने कहा"अंतराष्ट्रीय परिस्तिथितियाँ बड़ी गंभीर हैं| घरेलूं हालत तो और भी बुरे हैं| हमें आने वाले बुरे हालत का सामना करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए|"उस आदमी ने सोचा की उसका बेटा कॉलेज जा चूका है, अख़बार पढता है, और न्यूज़ सुनता है, इसलिए उसकी राय को हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए| दुसरे दिन से उसने आलू की खरीद कम कर दी, और अपना साइनबोर्ड निचे उतार दिया| उसका जोश ख़त्म हो चूका था| जल्दी ही उसकी दुकान पर आने वालों की तादात घटने लगी और उसकी बिक्री तेजी से गिरने लगी| पिता ने अपने बेटे से कहा"तुम सही कह रहे थे| हम लोग मंदी के दौर से गुजर रहे हैं| मुझे ख़ुशी है की तुमने वक्त से पहले ही सचेत कर दिया|"
इस कहानी से हमे क्या सिख मिलती है? इससे ये नतीजे निकलते हैं-
१- हम अपनी सोच के मुताबिक, खुद को आत्मसंतुष्ट करने वाली भविष्य वाणियाँ कर देते हैं|
२- कई बार हम बुद्धिमत्ता को अच्छा फैसला मानने की गलती भी कर बैठते हैं|
३- एक इन्सान ज्यादा बुद्धिमान होने के बावजूद गलत फैसले ले सकता है|
४- अपने सलाहकार सावधानी से चुनिए, लेकिन अमल अपने ही फैसले पर करिए|
५- कई लोग ज्यादा ज्ञानी हैं| उन्हें चलता फिरता विश्वकोष (encyclopedia) माना जा सकता है, पर दुःख की बात है की इसके बावजूद वे नाकामयाबी की जीती जागती मिसाल हैं|
६- अगर किसी इन्सान में आगे दी हुयी पांच खूबियाँ हों , तो वह स्कूली शिक्षा हासिल किये बिना कामयाब हो सकता है-
चरित्र ( character )
प्रतिबद्धता ( commitment )
दृढ विश्वास ( conviction )
तहजीब ( courtesy )
सहस ( courage )
विंस्टन चर्चिल ने सही ही कहा था"यूनिवर्सिटी की पहली जिम्मेदारी ज्ञान देना और चरित्र निर्माण होता है, न कि व्यापारिक और तकनिकी शिक्षा देना|"
पता नहीं भारतीय शिक्षा मंत्रालय और सरकार कब इस बात को समझेगी|
जय श्री राम|
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