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गुरुवार, 6 जून 2013

घर लौटते समय घर के बूजुर्गों या बच्चों के लिए कुछ न कुछ लेकर जाना चाहिए।

घर लौटते समय घर के बूजुर्गों या बच्चों के लिए कुछ न कुछ लेकर जाना चाहिए।

ध्यान रखें, कभी भी खाली हाथ घर ना लौटे क्योंकि..

अधिकतर लोग ऑफिस से या कार्यस्थल से जब अपने घर लौटते हैं तो अपनी व्यस्तता के कारण बिना कुछ लिए खाली हाथ ही घर लौट आते हैं। लेकिन आपने अक्सर हमारे घर के वृद्ध लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि कभी शाम को खाली हाथ घर नहीं लौटना चाहिए क्योंकि हमारे शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि घर लौटते समय घर के बूजुर्गों या बच्चों के लिए कुछ न कुछ लेकर जाना चाहिए।
घर में कुछ भी नई वस्तु आने पर बच्चें और बूजुर्ग ही सबसे ज्यादा खुश होते हैं। कहीं कहीं इस परम्परा में घर लौटते वक्त बच्चों के लिए मिठाई लाने के बारें में बताया गया है। बुजूर्गों के आशीर्वाद से घर में सुख समृद्धि बढऩे लगती है और जिस घर में बच्चे और वृद्ध खुश रहते है उस घर में लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।

ऐसा माना जाता है कि रोज खाली हाथ घर लौटने पर धीरे धीरे उस घर से लक्ष्मी चली जाती है और उस घर के सदस्यों में नकारात्मक या निराशा के भाव आने लगते हैं।इसके विपरित घर लौटते समय कुछ न कुछ वस्तु लेकर आएं तो उससे घर में बरकत बनी रहती है, उस घर में लक्ष्मी का वास हो जाता है। हर रोज घर में कुछ न कुछ लेकर आना वृद्धि का सूचक माना गया है। ऐसे घर में सुख समृद्धि और धन हमेशा बढ़ता जाता है। और घर में रहने वाले सदस्यों की भी तरक्की होती है।

काली हल्‍दी के टोटके खाली नहीं जाते

काली हल्‍दी के टोटके खाली नहीं जाते
इस धरती पर प्रकृति ने जो कुछ भी उत्पन्न किया है, वह बेवजह नहीं है। बहुत सी वस्तुएं है, जिनके बारे में अज्ञान हैं। आज हम आपको कुछ ऐसी ही दुर्लभ वस्तुओं में से एक काली हल्दी के बारे में बतायेंगे जिसे आप-अपने जीवन में उपयोग करके अनेक प्रकार की समस्याओं से निजात पाकर सुखद एंव समृद्धिदायक जीवन व्यतीत कर सकेंगे। खास बात यह है कि काली हल्‍दी से जुड़े टोटके जल्‍दी खाली नहीं जाते हैं।
हल्दी को मसाले के रूप में भारत में बहुत प्राचीन समय से उपयोग में लाया जा रहा है। पीली हल्दी को बहुत शुद्ध माना जाता है इसलिए इसका उपयोग पूजा में भी किया जाता है।। हल्दी की अनेक प्रजातियां हैं लेकिन पीली हल्दी के अलावा काली हल्दी से पूजा की जाती है तंत्र की दुनियां में काली हल्दी का प्रयोग विभिन्न तरह के टोटको में किया जाता है। काली हल्दी को धन व बुद्धि का कारक माना जाता है। काली हल्दी का सेवन तो नहीं किया जाता लेकिन इसे तंत्र के हिसाब से बहुत पूज्यनीय और उपयोगी माना जाती है। अनेक तरह के बुरे प्रभाव को कम करने का काम करती है। नीचे लिखे इसके कुछ उपायों को अपनाकर आप भी जिन्दगी से कई तरह के दुष्प्रभावों को मिटा सकते हैं।

काली हल्दी बड़े काम की है। वैसे तो काली हल्दी का मिल पाना थोड़ा मुश्किल है, किन्तु फिर भी यह पन्सारी की दुकानों में मिल जाती है। यह हल्दी काफी उपयोगी और लाभकारक है।

काली हल्दी से भी होता है वशीकरण
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- काली हल्दी के 7 से 9 दाने बनायें। उन्हे धागे में पिरोकर धुप, गूगल और लोबान से शोधन करने के बाद पहन लें। जो भी व्यक्ति इस तरह की माला पहनता है वह ग्रहों के दुष्प्रभावों से व टोने- टोटके व नजर के प्रभाव से सुरक्षित रहता है।

- गुरुपुष्य-योग में काली हल्दी को सिंदूर में रखकर धुप देने के बाद लाल कपड़े में लपेटकर एक दो सिक्को के साथ उसे बक्से में रख दें। इसके प्रभाव से धन की वृद्धि होने लगती है।

- काली हल्दी का चुर्ण दूध में डालकर चेहरे और शरीर पर लेप करने से त्वचा में निखार आ जाता है।

- यदि आप किसी भी नए कार्य के लिए जा रहे है तो काली हल्दी का टीका लगाकर जाएं। यह टीका वशीकरण का कार्य करता है। काली हल्दी को तंत्र के अनुसार वशीकरण के लिए जबरदस्त माना जाता है। यदि आप भी चाहते हैं कि आप किसी को वश में कर पाएं तो काली हल्दी का तिलक एक सरल तंत्रोक्त उपाय है।
1- यदि परिवार में कोई व्यक्ति निरन्तर अस्वस्थ्य रहता है, तो प्रथम गुरूवार को आटे के दो पेड़े बनाकर उसमें गीली चीने की दाल के साथ गुड़ और थोड़ी सी पिसी काली हल्दी को दबाकर रोगी व्यक्ति के उपर से 7 बार उतार कर गाय को खिला दें। यह उपाय लगातार 3 गुरूवार करने से आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा।

2- यदि किसी व्यक्ति या बच्चे को नजर लग गयी है, तो काले कपड़े में हल्दी को बांधकर 7 बार उपर से उतार कर बहते हुये जल में प्रवाहित कर दें।


3- किसी की जन्मपत्रिका में गुरू और शनि पीडि़त है, तो वह जातक यह उपाय करें- शुक्लपक्ष के प्रथम गुरूवार से नियमित रूप से काली हल्दी पीसकर तिलक लगाने से ये दोनों ग्रह शुभ फल देने लगेंगे।

4- यदि किसी के पास धन आता तो बहुत किन्तु टिकता नहीं है, उन्हे यह उपाय अवश्य करना चाहिए। शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को चांदी की डिब्बी में काली हल्दी, नागकेशर व सिन्दूर को साथ में रखकर मां लक्ष्मी के चरणों से स्पर्श करवा कर धन रखने के स्थान पर रख दें। यह उपाय करने से धन रूकने लगेगा।

5- यदि आपके व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौड़ियां बांधकर 108 बार ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगतिशीलता आ जाती है।

6- यदि आपका व्यवसाय मशीनों से सम्बन्धित है, और आये दिन कोई मॅहगी मशीन आपकी खराब हो जाती है, तो आप काली हल्दी को पीसकर केशर व गंगा जल मिलाकर प्रथम बुधवार को उस मशीन पर स्वास्तिक बना दें। यह उपाय करने से मशीन जल्दी खराब नहीं होगी।

7- दीपावली के दिन पीले वस्त्रों में काली हल्दी के साथ एक चांदी का सिक्का रखकर धन रखने के स्थान पर रख देने से वर्ष भर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

8- यदि कोई व्यक्ति मिर्गी या पागलपन से पीडि़त हो तो किसी अच्छे मूहूर्त में काली हल्दी को कटोरी में रखकर लोबान की धूप दिखाकर शुद्ध करें। तत्पश्चात एक टुकड़ें में छेद कर धागे की मद्द से उसके गले में पहना दें और नियमित रूप से कटोरी की थोड़ी सी हल्दी का चूर्ण ताजे पानी से सेंवन कराते रहें। अवश्य लाभ मिलेगा।

हवन का महत्व जानिए, 12 चमत्कारी हवन सामग्रियां, जिनसे ये रोग हो जाते हैं दूरc

हवन का महत्व जानिए, 12 चमत्कारी हवन सामग्रियां, जिनसे ये रोग हो जाते हैं दूर

म्साले के छौंक का धुंआ खांसी तथा आंखो से पानी ले आता है। यदि आग मे कुछ लाल मिर्च डाल दी जाये तो उसका धुंआ पड़ोसियों को खांसी और आंख में आंसू ले आयेगा। उसी तरह हवन का सुप्रभाव वातावरण मे पड़ता है।

हमारे पूर्वजो तथा ऋषि मुनियो ने भी बहुत अध्ययन तथा रिसर्च की थी उसी के अनुसार हवन में डाली जाने वाली समाग्रियों के जलने पर जो धुंआ उठता है वह व्यक्तियों की आंख, नाक, फेफड़ो के अलावा वातावरण को भी शुद्ध करता है। हवन को अलग-अलग प्रायोजन के लिए भी किया जाता था जिनमें हवन कुंड में डाली जाने वाली सामाग्रियां भिन्न-भिन्न होती थीं।

मंत्रोचार के साथ किसी विशेष प्रायोजन के लिये किया जाने वाला हवन, यज्ञ कहलाता है। मंत्र से उत्पन्न होने वाले तरंगे वातावरण में जाकर वहां की समस्त जड़ चेतन पर अदृश्य प्रभाव डालती हैं। तांत्रिक मंत्रो एवं तामसी सामाग्रियो के साथ कुछ लोग बुरे उददेश्य से भी हवन करते है। उन्हें भी सिद्ध शक्तियां प्राप्त होती है। आज के परिपेक्ष मे हवन करने से वातावरण एवं मन में शुद्धता के अलावा अदृश्य आंतरिक शक्ति बढ़ाता है जो कि मंत्रो के साथ सही नियम व सामाग्रियों के साथ करने पर सैकड़ो गुणा अधिक प्रभावशाली होता है। यह आप स्वंय ही अनुभव कर सकते है।

हवन एक ऐसी विधा है जिसके नियमित करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है तथा अपने विरोधी का नुकसान व अपनी शक्ति ज्यादा बढ़ा देता है इसलिए तामसी प्रवृत्ति वाले तांत्रिक भी इसका भरपुर उपयोग करते है। गायत्री परिवार वाले भी विधि-विधान से हवन करते है जिससे वाणी में सत्यता तथा विश्व बन्धुत्व की भावना बढ़ती है। नियमित हवन करने वालो पर किसी भी प्रकार के बुरी तरंगो का कुप्रभाव नही पड़ता हैं। जानकार की निगरानी में हवन करने से मनवांछित फल प्राप्त होता हैं।
हर रोज छोटा-सा हवन भी देता है ऐसे बड़े फायदे!
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धार्मिक परंपराओं में देव पूजा, उपासना, जप, ध्यान, स्नान से हर सुख को पाने के उपाय बताए गए हैं। यह धार्मिक कर्म परेशानियों, चिंताओं और कष्टों में अशांत मन को बल और सुख देते हैं। ऐसे सुखों और खुशियों का आनंद दोगुना तब हो जाता है, जब सुख और आनंद व्यक्ति और परिवार तक सीमित न रहे, बल्कि उसमें समाज या प्रकृति भी शामिल हो जाए।

शास्त्रों में ऐसा ही एक धार्मिक कर्म बताया गया है - हवन। जिसका शुभ प्रभाव न केवल व्यक्ति बल्कि प्रकृति को भी लाभ ही पहुंचाता है। ग्रंथों में अनेक तरह के यज्ञ और हवन बताए गए हैं। विज्ञान भी हवन और यज्ञ के दौरान बोले जाने वाले मंत्र, प्रज्जवलित होने वाली अग्रि और धुंए से होने वाले प्राकृतिक लाभ की पुष्टि करता है।

वैज्ञानिक दृष्टि से हवन से निकलने वाले अग्रि के ताप और उसमें आहुति के लिए उपयोग की जाने वाली हवन की प्राकृतिक सामग्री यानी समिधा वातावरण में फैले रोगाणु और विषाणुओं को नष्ट करती है, बल्कि प्रदूषण को भी मिटाने में सहायक होती है। साथ ही उनकी सुगंध व ऊष्मा मन व तन की अशांत व थकान को भी दूर करने वाली होती है।

इस तरह हवन स्वस्थ और निरोगी जीवन का श्रेष्ठ धार्मिक और वैज्ञानिक उपाय है। खासतौर पर कुछ विशेष काल में किए गए हवन तो धार्मिक लाभ के साथ प्राकृतिक व भौतिक सुख भी देने वाले माने गए हैं।
जानिए, 12 चमत्कारी हवन सामग्रियां, जिनसे ये रोग हो जाते हैं दूर
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सफल जीवन के लिए बेहतर सेहत भी धन-संपदा मानी गई है। इसलिए उत्सव, पर्व, तिथियों पर व्रत-उपवास व धार्मिक परंपराओं में निरोगी जीवन व धन की कामना से अलग-अलग देवी-देवताओं की प्रसन्नता के लिए यज्ञ-हवन का विधान प्राचीन काल से प्रचलित हैं।

दरअसल, व्यावहारिक व वैज्ञानिक नजरिए से भी हवन त्योहार-पर्व विशेष ही नहीं, बल्कि हर रोज करना घर-परिवार और आस-पास का वातावरण शुद्ध बनाने वाला होता है। इसी उद्देश्य से शास्त्रों में हवन से धन, ऐश्वर्य के साथ ही अच्छे स्वास्थ्य और रोगों से छुटकारा पाने के लिए कुछ विशेष प्राकृतिक सामग्रियों से हवन का महत्व बताया गया है। पूजन-कर्म के साथ इन विशेष हवन सामग्रियों से हवन स्वयं या किसी योग्य ब्राह्मण से कराएं और निरोगी जीवन का लुत्फ उठाएं।

जानिए, अलग-अलग रोग और पीड़ाओं से मुक्ति के लिए कौन-सी हवन सामग्रियां बहुत प्रभावी होती हैं-

1. दूध में डूबे आम के पत्ते - बुखार

2. शहद और घी - मधुमेह

3. ढाक के पत्ते - आंखों की बीमारी

4. खड़ी मसूर, घी, शहद, शक्कर - मुख रोग

5. कन्दमूल या कोई भी फल - गर्भाशय या गर्भ शिशु दोष

6. भाँग,धतुरा - मनोरोग

7. गूलर, आँवला - शरीर में दर्द

8. घी लगी दूब या दूर्वा - कोई भयंकर रोग या असाध्य बीमारी

9. बेल या कोई फल - उदर यानी पेट की बीमारियां

10. बेलगिरि, आँवला, सरसों, तिल - किसी भी तरह का रोग शांति

11. घी - लंबी आयु के लिए

12. घी लगी आक की लकडी और पत्ते - शरीर की रक्षा और स्वास्थ्य के लिए।

इन 6 वजहों से लक्ष्मी छोड़ देती है साथ! रहें सावधान

रोकें लक्ष्मीजी को अपने घर में...
इन 6 वजहों से लक्ष्मी छोड़ देती है साथ! रहें सावधान

तमसो मा ज्योर्तिगमय' यानी ईश्वर अंधकार से प्रकाश की ओर ले चले। इस धर्म सूत्र में अज्ञानता से परे होकर ज्ञान की ओर बढ़ने के साथ-साथ दरिद्रता से दूरी व संपन्नता से नजदीकियों की कामना भी जुड़ी है। सांसारिक जीवन में समृद्धि व सफलता के लिए धन की चाहत अहम होती है, जिसे पूरा करने के लिए धर्म और कर्म दोनों ही तरीकों से वैभव की देवी माता लक्ष्मी को पूजने का महत्व बताया गया है।

धर्मग्रंथ महाभारत की विदुर नीति में भी धन संपन्नता या लक्ष्मी का साया सिर पर बनाए रखने की ऐसी ही चाहत पूरी करने के लिए व्यावहारिक जीवन में कर्म व स्वभाव से जुड़ी कुछ गलत आदतों से पूरी तरह से किनारा कर लेने की ओर साफ इशारा किया गया है। इन बुरी आदतों के कारण लक्ष्मी की प्रसन्नता मुश्किल बताई गई है।

जानिए, वैभवशाली, प्रतिष्ठित व सफल जीवन के लिए बेताब इंसान को किन बुरी आदतों को छोड़ देना चाहिए -

महाभारत में लिखा है कि -

षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।

निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।।

इस श्लोक मे कर्म, स्वभाव व व्यवहार से जुड़ी इन छ: आदतों से यथासंभव मुक्त रहने की सीख है -

नींद - अधिक सोना समय को खोना माना जाता है, साथ ही यह दरिद्रता का कारण बनता है। इसलिए नींद भी संयमित, नियमित और वक्त के मुताबिक हो यानी वक्त और कर्म को अहमियत देने वाला धन पाने का पात्र बनता है।

तन्द्रा - तन्द्रा यानी ऊंघना निष्क्रियता की पहचान है। यह कर्म और कामयाबी में सबसे बड़ी बाधा है। कर्महीनता से लक्ष्मी तक पहुंच संभव नहीं।

डर - भय व्यक्ति के आत्मविश्वास को कम करता है, जिसके बिना सफलता संभव नहीं। निर्भय व पावन चरित्र लक्ष्मी की प्रसन्नता का एक कारण है।

क्रोध - क्रोध व्यक्ति के स्वभाव, गुणों और चरित्र पर बुरा असर डालता है। यह दोष सभी पापों का मूल है, जिससे लक्ष्मी दूर रहती है।

आलस्य - आलस्य मकसद को पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा है। संकल्पों को पूरा करने के लिए जरूरी है आलस्य को दूर ही रखें। यह अलक्ष्मी का रूप है।

दीर्घसूत्रता - जल्दी हो जाने वाले काम में अधिक देर करना, टालमटोल या विलंब करना।
जिस घर में अनाज का सम्मान होता है, अतिथि सत्कार होता है और यथासंभव दान, गरीबों की मदद होती रहती है उस घर में लक्ष्मी निवास करती है।

जो स्त्रियाँ पति के प्रतिकूल बोलती हैं, दूसरों के घरों में घूमने-फिरने में रुचि रखती हैं और घर के बर्तन इधर-उधर फैला या बिखेर कर रखती हैं, लक्ष्मी उनके घर नहीं आती।

जो व्यक्ति सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सोता है, भोजन करता है, दिन में सोता है, दाँत साफ नहीं करता है, अधिक भोजन करता है, वह यदि साक्षात विष्णु भी हो तो लक्ष्मी उसे छोड़कर चली जाती है।

जो शरीर में तेल लगाकर मल-मूत्र त्यागता है या नमस्कार करता है, या पुष्प तोड़ता है, या जिसके पैर में मैल जमी होती है, उसके घर लक्ष्मी नहीं आती है।

अपने अंगों पर बाजा बजाने से भी धनी व्यक्ति का साथ लक्ष्मी धीरे-धीरे छोड़ देती है।

सौभाग्यशाली स्त्रियों को घुँघरू वाली पायल सदैव धारण करना चाहिए जिससे लक्ष्मी छम-छम बरसती है।

आँवले के वृक्ष के फल में गाय, के गोबर में, शंख में, कमल में, श्वेत वस्त्र में लक्ष्मी सदैव निवास करती है।

जिसके घर में भगवान शिव की पूजा होती है और देवता, साधु, ब्राह्मण, गुरु का सम्मान होता है। ऐसे घर में लक्ष्मी सदैव निवास करती है।

जो स्त्री नियमित रूप से गोग्रास निकालती है और गाय का पूजन करती है उस पर लक्ष्मी की दया बनी रहती है।

जिस घर में अनाज का सम्मान होता है, अतिथि सत्कार होता है और यथासंभव दान, गरीबों की मदद होती रहती है उस घर में लक्ष्मी निवास करती है।

जिस घर में कमल गट्टे की माला, एकांक्षी नारियल, पारद शिवलिंग, कुबेर यंत्र स्थापित रहता है उस घर में लक्ष्मी पीढ़ियों तक निवास करती है।

जिस घर में शुद्धता, पवित्रता रहती है और बिना सूँघे पुष्प देवताओं को चढ़ाए जाते हैं। उस घर में लक्ष्मी नित्य विचरण करती है।

जिस घर में स्त्रियों का सम्मान होता है स्त्री पति का सम्मान और पति के अनुकूल व्यवहार करती है एवं पतिव्रता और धीरे चलने वाली स्त्री के घर में लक्ष्मी का निवास रहता है।

ओरा प्रार्थना से दूर होते हैं रोग

सुरक्षा प्रभा मंडल ध्या न: (काया कल्प् करने के लिए)
ओरा प्रार्थना से दूर होते हैं रोग

क्या् आप जानते है कि सप्ताहांत में आप इतना थक जाते है कि खड़े भी नहीं हो पाते। एक विधि प्रस्तु त है—कायाकल्पा करने के लिए नहीं, अपितु आपकी क्लांसति को यथासंभव कम करने के लिए। हमारी थकावट के कई कारण हो सकते है—चारों और का शोर, हलचल, गंध दूसरों की भावनाएं, उनके विचार—सभी आपको प्रभावित कर सकते है। हम निरंतर एक दूसरे को भला बुरा कहते रहते है। एक दूसरे को डाँटते-फटकारते रहते है। निरंतर अपने नकारात्मेक भाव व विचार क्रोध-आक्रोश भय चिंता, विवशता आदि-आदि दूसरों को संप्रेषित करते रहते है। यदि हम स्व यं को इनके आक्रमणों से बचाना नहीं जानते तो यह बात समझ में आती है कि हम क्योंह थक जाते है।
कब:
प्रात: पहला और रात्रि में अंतिम काम।
प्रथम चरण:
बिस्तजर पर बैठ जाइए, कल्प।ना कीजिए कि आपके शरीर के चारों और केवल छह इंच की दूरी पर आपके शरीर के आकार का एक प्रभा मंडल है। आप इस सुरक्षा कवच को निर्मित कर सकते है। ताकि बह्म प्रभावों से ‘’स्वमयं को बचा सकें।‘’
दूसरा चरण:
इसी अनुभूति को बनाए रखते हुए आप सो जाएं ऐसा अनुभव करते हुए कि आप इस प्रभा मंडल में एक कंबल की भांति लपेटे सो रहे है जो आपको किसी भी प्रकार के बाहरी तनाव, हलचल विचारों या भावों से सुरक्षित रखेंगे।
तीसरा चरण:
प्रात: जैसे ही आप नींद से जागें इससे पहले कि आप आंखे खोले आपने शरीर के इर्द गिर्द इस सुरक्षा मंडल को 4-5 मिनट अनुभव करे, देखें।
चौथा चरण:
प्रात: स्ना4न करते समय प्रात: भोजन लेते समय अपने सुरक्षा-आभा मंडल चक्र को स्मसरण रखें। दिन में किसी भी समय जब भी आपको ख्याेल आए—कार में या ट्रेन में किसी भी समय जब आप खाली बैठे—इसमे विश्राम करें।
इस विधि को तीन सप्ताेह से लेकिन तीन महीनों तक करें और इस विधि का प्रयोग करने से लगभग तीन सप्तातह और तीन महीनों में आपको एक सशक्तक सुरक्षा की अनुभूति होने लगेगी
ओरा (प्रभामंडल) मरते हुए व्यक्ति के साथ में तथा उसके बाद में भी उस स्थान पर पाया जाता है। मृत्यु के बाद 3 दिन तक धरातल से (जहाँ व्यक्ति की मृत्यु हुई) 3 फुट ऊपर तक उसकी एक परत उपस्थित रहती है। पिछले दिनों हुए शोध के अंतर्गत पाया गया कि अस्पताल में मृत हुए मरीज के बिस्तर पर अन्य मरीज 3 दिनों तक इलाज का उपयुक्त लाभ नहीं उठा पाता है।

अंतिम ओरा की परत अगले जन्म में पुनरावृत्त होती है। प्राचीन ग्रंथों में एक उल्लेख मिला 'जल लेस्से मरई तल लेस्से उवज्झई' अर्थात्‌ जिस लेस्या (ओरा) में मरेंगे, उसी लेस्या के साथ जन्म लेंगे। कुछ बीमारियों की वजह से प्रभामंडल में आए बदरंग धब्बों को बदलने के लिए विशिष्ट प्रार्थनाओं का भी प्रयोग किया जाता है। इन प्रार्थनाओं को दिन में 5 दफे 10-10 बार पढ़ें तो लाभ अवश्य प्राप्त होगा। कुछ आम व्याधियों के लिए :

प्रार्थनाएँ :
मुँहासे: मैं जीवन का दिव्य स्वरूप हूँ। मैं इस समय जिस स्थिति में हूँ, अपने को स्वीकार करता हूँ, प्यार करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं अतीत से मुक्त होकर आगे को विचरण करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ।

कमर एवं पीठ में दर्द : जब हममें असुरक्षा एवं अर्थ संकट की भावना होगी तो कमर के निचले हिस्से में दर्द होगा। ऐसे में निम्न पंक्तियाँ दोहरानी चाहिए : मैं जीवन की प्रक्रिया में विश्वास करता हूँ। मुझे हमेशा संभाल चाहिए। मैं सुरक्षित हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ।
अपराध भावना: अपराध भावना में जब हमारे मन में हमारे किसी कर्म के प्रति अपराध भावना होती है तो कमर के बीच में दर्द होता है, ऐसी स्थिति में हमें निम्न पंक्तियाँ दोहरानी चाहिए : मैं अतीत को छोड़ रहा हूँ। मैं मुक्त हूँ, अपने पूरे हृदय से, आगे बढ़ने हेतु। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ।

भावनात्मक असुरक्षा: भावनात्मक असुरक्षा के समय ऐसे में पीठ के ऊपरी भाग में दर्द रहता है।मैं स्वयं को चाहता हूँ और स्वीकृत करता हूँ। मैं सबको प्रेम, सबको सहयोग करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ।

मोटापा: असुरक्षा की भावना भी मोटापा बढ़ाती है। मुझे अपनी सुरक्षा की अनुभूति है और मैं अपने को चाहता और स्वीकृत करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ। मैं सबको क्षमा करता हूँ।

कहते हैं, दूसरे की कुर्सी पर बैठने, एक रजाई में सोने, दूसरों के कपड़े पहनने का भी असर होता है। चीन में दूसरे की कुर्सी पर बैठने के पूर्व रूमाल से कुर्सी को झाड़कर बैठते हैं। इसी प्रकार किसी भी हॉस्पिटल में रोगी के जाने के बाद कुर्सी को झाड़ लेना चाहिए।

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