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बुधवार, 26 अक्तूबर 2022

सोनपापड़ी* जिसे हरा न सको उसे यशहीन कर दो।उसका उपहास करो। उसकी छवि मलिन कर दो। बस ऐसा ही कुछ हुआ है इस सुंदर मिठाई के संग में भी।

*सोनपापड़ी*
 
जिसे हरा न सको उसे यशहीन कर दो।
उसका उपहास करो। 
उसकी छवि मलिन कर दो। 

बस ऐसा ही कुछ हुआ है इस सुंदर मिठाई के संग में भी।

आपने इधर सोनपापड़ी जोक्स और मीम्स भारी संख्या में देखे होंगे। निर्दोष भाव से उन पर हँस भी दिए होंगे। पर अगली बार उस बाज़ार को समझिए जो मिठाई से लेकर दवाई तक और कपड़ों से लेकर संस्कृति तक में अपने नाखून गड़ाये बैठा है।
        एक ऐसी मिठाई जिसे एक स्थानीय कारीगर न्यूनतम संसाधनों में बना बेच लेता हो। जिसमें सिंथेटिक मावे की मिलावट न हो। जो अपनी शानदार पैकेजिंग और लंबी शेल्फ लाइफ के चलते आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपलब्ध होने पर बिना दूषित हुए किसी और को दी जा सके, खोये की मिठाई की तरह सड़कर कूड़ेदान में न जा गिरे। आश्चर्य, बिल्कुल एक सुंदर, भरोसेमंद मनुष्य की तरह जिस सहजता के लिए इसका सम्मान होना चाहिए, इसे हेय किया जा रहा है। 

       एक काम कीजिये डायबिटिक न हों तो घर में रखे सोनपापड़ी के डिब्बों में से एक को खोलिए। नायाब कारीगरी का नमूना गुदगुदी परतों वाला सोनपापड़ी का एक सुनहरा, सुगंधित टुकड़ा मुँह में रखिये। भीतर जाने से पहले होंठों पर ही न घुल जाये तो बनानेवाले का नाम बदल दीजियेगा। कई लोगों की पसंदीदा मिठाई यूँ ही नहीं है।

     बात बाज़ार से शुरू हुई थी, सोनपापड़ी तो तिरस्कार का विषय हुई। अब लंबी शेल्फ लाइफ और बढ़िया पैकेजिंग का दूसरा किफ़ायती उपहार और क्या हो सकता है? चॉकलेट्स!!! और क्या? समझ रहे होंगे। 

  एक छोटे से उपहास के चलते, इधर के दो चार महीनों में ही कैडबरी का ही टर्न ओवर क्या से क्या हो सकता है मेरी कल्पना से बाहर की बात है।  पिछले दो दशकों से वे बड़े- बड़े फ़िल्म स्टार्स को करोड़ों रुपये सिर्फ़ इस बात के दे रहे हैं कि हमारी जड़ बुद्धि में 'कुछ मीठा हो जाये' यानी चॉकलेट ठूँस सकें। और हम हैं कि अब भी मीठा यानी मिठाई ही सूँघते , ढूँढ़ते फिर रहे हैं। तो क्या करना चाहिए। मिठाई क्या यह तो प्रोटीन बार है, और चीनी तो हर मिठाई में है। और लोकप्रियता का आधार देखिये वो 35 रुपये में एक टुकड़ा देते हैं ये डिब्बाभर थमा देते हैं।  सो, याद रखिये, मीठा यानी, गुलाबजामुन, रसगुल्ला, सोनपापड़ी और सूजी का हलवा। चॉकलेट यानी चॉकलेट।
आप कैडबरी वालो को हम सोनपापड़ी वालों को तरफ से शुभ दीपावली।।
               
साभार...एक सौम्य उपहा

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

आज का संदेश "दीपावली" पर विशेष

*आज का संदेश* 
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*🏮 "दीपावली" पर विशेष 🏮*
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दीपावली का पावन पर्व आज हमारे देश में ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व में भी यह पर्व मनाया जा रहा है। मान्यता के अनुसार आज दीपमालिकाओं को प्रज्वलित करके धरती से अंधकार भगाने का प्रयास मानव समाज के द्वारा किया जाता है। दीपावली मुख्य रूप से प्रकाश का पर्व है। विचार करना चाहिए कि क्या सिर्फ वाह्य अंधकार को दूर करके यह पर्व मनाना सार्थक हो सकता है ? प्रकाश पर्व मनाना तभी सार्थक हो सकता है जब मनुष्य स्वयं को आन्तरिक प्रकाश से प्रकाशित कर ले। प्रकाश का अर्थ मात्र सांसारिक अवयवों को चमकाना ही नहीं बल्कि मनुष्य को अपने भीतर के प्रकाश को भी चमकाने का प्रयास करना चाहिए। हमारे मनीषियों ने आंतरिक प्रकाश को "आत्मप्रकाश" कहा है। मनुष्य के हृदय में काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, छल, कपट, ईर्ष्या आदि अवगुण अंधकार रूप में व्याप्त हो जाते हैं। इन अंधकार के प्रारूपों को हृदय से भगाने के लिए मनुष्य को अपने हृदय में दया, क्षमा, करुणा, परोपकार, एवं सहृदयता का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। जब हृदय में इन सद्गुणों का दीपक प्रज्वलित होता है तो अवगुण रूपी अंधकार को भागना ही पड़ता है। इस प्रकार के दीपक को जलाने की विधा किसी योग्य गुरु की शरण अथवा सतसंग से ही जानी जा सकती है। दीपावली के पावन पर्व पर धरती पर अनेकों दीपक जलाकर उसके प्रकाश से अंधकार को तो दूर करना ही चाहिए साथ प्रत्येक मनुष्य स्वयं को "आत्मप्रकाश" से भी प्रकाशित करना चाहिए तभी सच्चे अर्थों में दीपावली मनाना सार्थक कहा जा सकता है। अन्यथा यह पर्व दिखावा करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक मनुष्य को ऐसी दीपावली मनाने का प्रयास करना चाहिए जिससे धरती तो प्रकाशित हो ही साथ ही "आत्मप्रकाश" भी प्रखर हो।

आज के वर्तमान आधुनिक युग में एक ओर तो इन पर्वों ने भव्यता पाई है वहीं दूसरी ओर मनुष्य "आत्मप्रकाश" से च्युत होता जा रहा है। आज के दिन समाज के बड़े - छोटे सभी लोग धन की देवी महालक्ष्मी का पूजन करके उनकी कृपा प्राप्त करने का उद्योग करते हैं, परंतु महालक्ष्मी के ही प्रतिबिम्ब किसी नारी के प्रति उनके हृदय में करुणा एवं दया रूपी दीपक नहीं प्रज्वलित होता। मनुष्य की अंधकारमय कुत्सित भावनायें नारी जाति के साथ ही सम्पूर्ण मानव समाज को भी लज्जित कर रही हैं। 

मैं *"पनपा"* यह  देख रहा हूँ कि आज जहाँ समाज में एक तबका भव्यता के साथ यह पर्व मनाते हुए अनेक प्रकार के मिष्ठानों/पकवानों का भोग लगा रहा है वहीं दूसरी ओर एक तबका ऐसा भी है जिसके घर में न तो दिया जलाने की व्यवस्था है और न ही बच्चों के लिए भोजन। चाहिए तो यह कि अपने अगल बगल ऐसे लोगों को चिन्हित करके उनके घर भी प्रकाश एवं मिष्ठान्न की व्यवस्था की जाय। परोपकार की भावना से बेसहारों का सहारा बना जाय। ऐसा करना तभी सम्भव हो सकता है जब मनुष्य में "आत्मप्रकाश" होगा। जब मनुष्य में आंतरिक ज्योति जगमगाती है तभी मनुष्य के भीतर दया, करुणा एवं परोपकार आदिक भावनाओं का उदय होता है। आज के युग में ऐसा नहीं है कि किसी भीतर "आत्मप्रकाश" नहीं है परंतु ऐसे लोग बिरले ही होते हैं आंतरिक दीपावली मनाने एवं "आत्मप्रकाश" जगाने के लिए मनुष्य को सच्चे सद्गुरु की शरण में रहते हुए दीर्घकालिक सतसंग का लाभ लेना पड़ता है। परंतु आज शिष्य भी गुरु के पास स्वार्थवश ही रहता है, जैसे ही उसका स्वार्थ पूरा होता है वह वहाँ से हट जाता है। ऐसे में दीपावली तो नहीं मनाई जा सकती बल्कि दीपावली मनाने का ढोंग ही मनुष्यों के द्वारा किया जा रहा है।

"जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये" किसी कवि द्वारा कही गयीं ये पंक्तियां तभी सार्थक हो सकती हैं जब मनुष्य में "आत्मप्रकाश" होगा।
*पनपा*

सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं - कैलाश चंद्र लढा संस्थापक 👑सांवरिया 👑

🙏मेरे पास कमाए हुए धन से ज्यादा दौलत कमाए हुए रिश्तो की है, मैंने नोट नहीं अच्छे रिश्ते और अच्छे व्यवहार कमाए हैं, नोट खर्च हो जाते हैं पर रिश्ते नहीं वे हरदम मेरे साथ थे, है.......और रहेंगे |
साथ बना रहे........ ❤से
स्नेह बना रहे......... 💕से

रूबरू मिलने का मौका नहीं मिलता इसलिए
शब्दो से नमन कर लेता हूं और  आशीष आप सभी का प्राप्त कर लेता हूं अपनो से !!!
प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में मुझसे श्रेष्ठ है | अतः मैं सभी श्रेष्ठ व्यक्तियों को हृदय की गहराइयों से प्रणाम करता हूं और निवेदन करता हूं कि नकारात्मक सोच को निकाल कर सकारात्मक सोच की ओर अग्रसर  हो .....!!!दीपावली, गोवर्धन पूजा एवं भाई दूज के इस पावन पर्व पर मैं और मेरा परिवार आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता है


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दीपावल्याः सहस्रदीपाः भवतः जीवनं सुखेन,
सन्तोषेण, शान्त्या आरोग्येण च प्रकाशयन्तु।

*भावार्थ: दिवाली के हजारों दीपक आपके जीवन को ख़ुशी, शांति और आनंद से रोशन करें और आपके स्वास्थ्य को लाभ दें।*

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       *आपको दीपावली की*    
       *हार्दिक शुभकामनाएं।*
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🖊️कैलाश चंद्र लढा
संस्थापक 👑सांवरिया 👑
www.sanwariyaa.blogspot.com
📰POLICE PUBLIC PRESS🗞️
JODHPUR
🔮www.sanwariya.org 🔮🙏

शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

धनतेरस (Dhanteras Puja 2022): Date And Time, Shubh Muhurat, Significance, Vastu Tips

धनतेरस (Dhanteras) जिसे धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है, भारत में दिवाली के त्योहार का पहला दिन है। यह अश्विनी के हिंदू कैलेंडर महीने में कृष्ण पक्ष के तेरहवें चंद्र दिवस पर मनाया जाता है। भारतीय आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी मंत्रालय ने धनतेरस को "राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस" के रूप में मनाने के अपने निर्णय की घोषणा की, जिसे पहली बार 28 अक्टूबर 2016 को मनाया गया था। भारतीय लोग रंगोली बनाकर भी धनतेरस मनाते हैं।

Dhanteras Puja 2022

धनतेरस का त्योहार 23 अक्टूबर को है. धनतेरस भगवान धन्वंतरि की पूजा है। भगवान धन्वंतरि, हिंदू परंपराओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान उभरे, एक हाथ में अमृत से भरा एक कलश और दूसरे हाथ में आयुर्वेद के बारे में पवित्र पाठ था। उन्हें देवताओं का वैद्य माना जाता है।

धनतेरस पर, दिवाली की तैयारी में अभी तक साफ नहीं किए गए घरों को अच्छी तरह से साफ और सफेदी कर दिया जाता है, और शाम को स्वास्थ्य और आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। मुख्य प्रवेश द्वार को रंगीन लालटेन, हॉलिडे लाइट से सजाया गया है और धन और समृद्धि की देवी के स्वागत के लिए रंगोली डिजाइन के पारंपरिक रूपांकनों को बनाया गया है।

Dhanteras 2022 Date And Time:

हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर को शाम में 6 बजकर 3 मिनट से शुरू होकर 23 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 4 मिनट तक रहेगी।

धनतेरस 2022 शुभ मुहूर्त (Dhanteras 2022 Shubh Muhurat)

कार्तिक माह कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि आरंभ - 22 अक्टूबर 2022 को शाम 6 बजकर 02 मिनट से
कार्तिक माह कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि समाप्त - 23 अक्टूबर 2022 को शाम 6 बजकर 03 मिनट तक
पूजन का शुभ मुहूर्त - 23 अक्टूबर 2022 को रविवार शाम 5 बजकर 44 मिनट से 6 बजकर 5 मिनट तक
प्रदोष काल: शाम 5 बजकर 44 मिनट से रात 8 बजकर 16 मिनट तक।
वृषभ काल: शाम 6 बजकर 58 मिनट से रात 8 बजकर 54 मिनट तक।

धनतेरस महत्व (Dhanteras Significance)

धनत्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी दूध के सागर से निकलीं। इसलिए, त्रयोदशी के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। हालांकि, पवित्र शास्त्रों के अनुसार, यह पूजा सभी लोक कथा है, जिसका उल्लेख हमारे पवित्र ग्रंथों में कहीं नहीं है। यहां तक कि श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 16 श्लोक 23 और 24 ने भी इसका खंडन किया है।

हिंदू इसे नई खरीदारी करने के लिए एक अत्यंत शुभ दिन मानते हैं, विशेष रूप से सोने या चांदी की वस्तुओं और नए बर्तनों की। ऐसा माना जाता है कि नया "धन" (धन) या कीमती धातु से बनी कोई वस्तु सौभाग्य का संकेत है। आधुनिक समय में, धनतेरस को सोना, चांदी और अन्य धातुओं, विशेष रूप से बरतन खरीदने के लिए सबसे शुभ अवसर के रूप में जाना जाता है।

चूंकि यह दिवाली से पहले की रात है, इसलिए इसे 'छोटी दिवाली' या छोटी दिवाली भी कहा जाता है। जैन धर्म में, इस दिन को धनतेरस के बजाय धनतेरस के रूप में मनाया जाता है जिसका अर्थ है तेरहवें का शुभ दिन। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन महावीर इस दुनिया में सब कुछ छोड़कर मोक्ष से पहले ध्यान करने की स्थिति में थे, जिसने इस दिन को शुभ या धन्य बना दिया।

Dhanteras 2022: धनतेरस की रात इन जगहों पर जलाएं दीपक

  • धनतेरस के दिन घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए.
  • धनतेरस पर शाम के समय पीपल वृक्ष के नीचे एक दीपक जरूर जला दें.
  • धनतेरस की रात में बेल के पेड़ के नीचे दीपक जरूर जलाएं.

Dhanteras 2022 Vastu Tips

  • धनतेरस के दिन मुख्य द्वार में दोनों ओर स्वास्तिक का चिन्ह जरूर लगाएं।
  • घर में किसी भी तरह का मांगलिक या फिर शुभ काम होने पर घर के मुख्य द्वार में बंदनवार जरूर लगाया जाता है।
  • धनतेरस के दिन घर के मुख्य द्वार में मां लक्ष्मी के प्रतीकात्मक चरण जरूर लगाएं।
  • धनतेरस के दिन से ही रोजाना मुख्य द्वार के बाएं ओर घी का दीपक जरूर जलाएं।
  • घर के मुख्य द्वार में साफ सुथरा करके मनी प्लांट या फिर तुलसी का पौधा जरूर रखना चाहिए।

आंखों की रोशनी बढ़ाने के घरेलू उपाय

 

हमारी आंखें बहुत नाजुक होती हैं। इन आँखों से हम अपने आस-पास की दुनिया को देख सकते हैं और आसानी से जीवन जी सकते हैं। यदि आंखों से संबंधित किसी समस्या के कारण दृष्टि कमजोर हो जाती है तो कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

ऐसे में हम डॉक्टर के पास जाते हैं और हमें चश्मे की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा डॉक्टर हर तरह की देखभाल के तरीके भी सुझाते हैं। हालांकि आंखों की इस समस्या को दूर करने के लिए कुछ घरेलू नुस्खे भी हैं जिन्हें लोग सालों से अपना रहे हैं।

तो आइए जानते हैं आंखों की रोशनी बढ़ाने के घरेलू उपायों के बारे में।

१. ठंडे पानी से बढ़ती है आंखों की रोशनी। अपने आंखों को दिन में 3/4 बार ठंडे पानी से धो लें। इससे आपकी आंखों को ठंडक मिलती है। चेहरे पर चमक आएगी और आंखें साफ होती हैं। (ध्यान राखे की पानी जोर जोर से ना मारे)

२. अगर आपकी आंखों की रोशनी कमजोर है तो नियमित रूप से आंखों का व्यायाम करें। आंखों की पुतलियों को दाएं से बाएं और ऊपर से नीचे की ओर घुमाएं।

३. दीपक की ज्योती को निहारने की प्रक्रिया को त्राटक कहते हैं। यह दृष्टि में सुधार करता है और एकाग्रता को भी बढ़ाता है। इसके अलावा अपने अंगूठे को भौंहों के बीच रखें और अपनी आंखों को उस बिंदु पर कुछ देर के लिए केंद्रित करें। इसके अलावा आप दिवार पर एक बिंदु पर भी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। धीरे-धीरे अभ्यास का समय बढ़ाएं ओर अंतर भी बढ़ाएं।

४. गाजर के नियमित सेवन से आंखों की रोशनी बढ़ाने में मदद मिलती है गाजर सलाद के रूप में भी खाया जा सकता है, गाजर और करवंदा का रस भी आंखों की रोशनी में सुधार के लिए उपयोगी है।

५. सरसों के तेल की मालिश। रात को सोने से पहले पैरों के तलवों में सरसों के तेल से मालिश करें और सुबह उठकर हरी घास पर नंगे पांव नियमित रूप से चलें ताकि आंखों की रोशनी में सुधार होता है।

६. आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए आई ड्रॉप। मेडिकल स्टोर्स पर कई आई ड्रॉप्स उपलब्ध हैं। जो आपकी आंखों की रोशनी बढ़ाने में मदद करता है। यह आंखों की जलन को कम करता है।

७. दृष्टि में सुधार के लिए विटामिन। हमारे शरीर में विटामिन सी और विटामिन ई का होना आंखों की रोशनी के लिए बहुत जरूरी है। अगर आपके शरीर में विटामिन ई और विटामिन सी की कमी है तो आपको आंखों में कमजोरी के लक्षण दिखने लगेंगे। इसलिए अपने आहार में विटामिन सी और विटामिन ई से भरपूर फलों और सब्जियों को शामिल करें। विटामिन की कमी से दृष्टि हानि हो सकती है। जैसे बदाम, मुफळी, ब्रोकोली, पालक, आम्, आखरोट.

८. आय फोकस गोली। यह हर्बल एक्स्ट्रा अपने आप में अनोखा और बहुत कंसंट्रेटेड कॉम्बिनेशन है।

आपको 1-2 दिन ट्रीटमेंट में ही अपनी नज़र में बेहतरी महसूस होने लगेगा। आपकी नज़र साफ हो जाएगी, फोकस पैना हो जाएगा, आंखें लाल होना और जलन होना बंद हो जाएगा। इसके बाद कोशिकाएं पुनर्जीवित होने लगती है और बिगड़ चुके मामलों में भी नज़र सामान्य हो जाती है। दवाई की दुकानों पर बिकने वाली केमिकल से भरी हुई दवाओं की तुलना में iFocus का आंख की रक्त धमनियों पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता।(आय फोकस दुकान पर उपलब्ध नहीं हैं, आपको लेणा हो तो आय फोकस के ऑफिसियल वेबसाइट से ऑर्डर करना पडेगा मैं आपको कॉमेंट मैं लिंक देता हू)

९. आंखों की मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के लिए आंखों की मालिश जरूरी है। विटामिन ई युक्त तेल या क्रीम से रोजाना आंखों की मालिश करें। इसके लिए आप एलोवेरा का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

हम दीपावली क्यूँ मनाते हैं?

हम दीपावली क्यूँ मनाते हैं?
इसका अधिकतर उत्तर मिलता है राम जी के वनवास से लौटने की ख़ुशी में।

*सच है पर अधूरा*    

*अगर ऐसा ही है तो फिर हम सब दीपावली पर भगवन राम की पूजा क्यों नहीं करते? लक्ष्मी जी और गणेश भगवन की क्यों करते हैं?* 

*सोच में पड़ गए न आप भी।*
इसका उत्तर आप तक पहुँचाने का प्रयत्न कर रहा हूँ, अगर कोई त्रुटि रह जाये तो क्षमा कीजियेगा।

*1. देवी लक्ष्मी जी का प्राकट्य:*

 *देवी लक्ष्मी जी कार्तिक मॉस की अमावस्या के दिन समुन्दर मंथन में से अवतार लेकर प्रकट हुई थीं।*


*2. भगवन विष्णु द्वारा लक्ष्मी जी को बचाना:*

*भगवन विष्णु ने आज ही के दिन अपने पांचवे अवतार वामन अवतार में देवी लक्ष्मी को राजा बालि से मुक्त करवाया था।*

*3. नरकासुर वध कृष्ण द्वारा:* 

*इस दिन भगवन कृष्ण ने राक्षसों के राजा नरकासुर का वध कर उसके चंगुल से 16000 औरतों को मुक्त करवाया था। इसी ख़ुशी में दीपावली का त्यौहार दो दिन तक मनाया गया। इसे विजय पर्व के नाम से भी जाना जाता है।*

*4.  पांडवो की वापसी:*

*महाभारत में लिखे अनुसार कार्तिक अमावस्या को पांडव अपना 12 साल का वनवास काट कर वापिस आये थे जो की उन्हें चौसर में कौरवों द्वारा हराये जाने के परिणाम स्वरूप मिला था। इस प्रकार उनके लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई।*

*5. राम जी की विजय पर :*

*रामायण के अनुसार ये चंद्रमा के कार्तिक मास की अमावस्या के नए दिन की शुरुआत थी जब भगवन राम माता सीता और लक्ष्मण जी अयोध्या वापिस लौटे थे रावण और उसकी लंका का दहन करके। अयोध्या के नागरिकों ने पूरे राज्य को इस प्रकार दीपमाला से प्रकाशित किया था जैसा आजतक कभी भी नहीं हुआ था।* 

*6. विक्रमादित्य का राजतिलक:*

*आज ही के दिन भारत के महान राजा विक्रमदित्य का राज्याभिषेक हुआ था। इसी कारण दीपावली अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना भी है।*

*7. आर्य समाज के लिए प्रमुख दिन:*

 *आज ही के दिन कार्तिक अमावस्या को एक महान व्यक्ति स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने हिंदुत्व का अस्तित्व बनाये रखने के लिए आर्य समाज की स्थापना की थी।*

*8. जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण दिन:*

 *महावीर तीर्थंकंर जी ने कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही मोक्ष प्राप्त किया था।*

*9. सिक्खों के लिए महत्त्व:* 

*तीसरे सिक्ख गुरु अमरदास जी ने लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था जिसमें सभी श्रद्धालु गुरु से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे और 1577 में अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास किया गया था।*
*1619 में सिक्ख गुरु हरगोबिन्द  जी को ग्वालियर के किले में 52 राजाओ के साथ मुक्त किया गया था जिन्हें मुगल बादशाह जहांगीर ने नजरबन्द किया हुआ था। इसे सिक्ख समाज बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी जानते हैं।*

*10. द पोप का दीपावली पर भाषण:*

 *1999 में पॉप जॉन पॉल 2 ने भारत में एक खास भाषण दिया था जिसमे चर्च को दीपावली के दीयों से सजाया गया था। पॉप  के माथे पर तिलक लगाया गया था और उन्होंने  दीपावली के संदर्भ में रोंगटे खड़े कर देने वाली बातें बताई।*

*🌸भगवान् गणेश सभी देवो में प्रथम पूजनीय हैं इसी कारण उनकी देवी लक्ष्मी जी के साथ दीपावली पर पूजा होती है और बाकी सभी कारणों के लिए हम दीपमाला लगाकर दीपावली का त्यौहार मनाते हैं।🌸*

*अब आपसे एक विनम्र निवेदन की इस जानकारी को अपने परिवार अपने बच्चों से जरूर साँझा करे। ताकि उन्हें दीपावली के महत्त्व की पूरी जानकारी प्राप्त हो सके।*
           
                          जय श्री कृष्ण #🎆 शुभ दीपावली

धनतेरस पर शुभ मुहूर्त में कुछ ना कुछ खरीदारी अवश्य ही करनी चाहिए ।

धनतेरस की खरीदारी,

धनतेरस हिन्दुओं का एक बहुत ही प्रमुख पर्व है जो दीपावली से दो दिन पूर्व आता है। धनतेरस पर खरीदारी dhanteras par kharidari, का अत्यधिक महत्त्व है, मान्यता है कि इस दिन खरीदारी करने से पूरे वर्ष आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है ।

कहते है कि यदि इस दिन कुछ वस्तुओं को खरीदने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती है, दिन दूनी रात चौगनी लाभ की प्राप्ति होती है इसलिए इस दिन प्रत्येक मनुष्य को शुभ मुहूर्त में कुछ ना कुछ खरीदारी अवश्य ही करनी चाहिए ।

धनतेरस Dhanteras के दिन चाँदी और पीतल खरीदने से भाग्य प्रबल होता है, घर में धन समृद्धि बढ़ती है, खरीदी हुई वस्तुओं में 13 गुना वृद्धि होती है।

धातु से बने बर्तन, सामान और गहने खरीदने के लिए धनतेरस Dhanteras का वर्ष का सबसे दिन श्रेष्ठ दिन माना गया है।

मान्यता है कि भगवान धन्वंतरी bhagwan dhanvantri अमृत कलश लेकर समुद्र मंथन से इसी दिन प्रकट हुए थे। इस दिन पीतल और चाँदी खरीदना चाहिए क्योंकि पीतल भगवान धन्वंतरी bhagwan dhanvantri की धातु है। पीतल खरीदने से घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य की दृष्टि से शुभता आती है।

इस दिन घर में धातु का सामान लाने से घर कारोबार में सदैव स्थिर लक्ष्मी का वास रहता हैं।

धनतेरस Dhanteras के दिन दीपावली dipavali में पूजन के लिए लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति जरूर लानी चाहिए।

मान्यता है कि इस दिन दीपावली की पूजा के लिए गणेश लक्ष्मी खरीदने से घर धन धान्य से भरा रहता है। 

धनतेरस के दिन देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव kuber dev की पूजा का बहुत महत्व है । इस दिन घर में कुबेर देव kuber dev की तस्वीर को लाकर उसे उत्तर दिशा में लगाएं। और यदि कुबेर देव kuber dev की तस्वीर पहले से ही है तो उसे अच्छी तरह से साफ करके उसके ऊपर नयी साफ माला पहनाएं।

धनतेरस के दिन घर में कुबेर देव की तस्वीर लगाने उनकी पूजा करने से घर कारोबार में धन समृद्धि भरी रहती है।

धनतेरस Dhanteras के दिन शंख को खरीदना अत्यंत शुभ समझा जाता है । धनतेरस Dhanteras के शंख को घर में लाकर उसे पूजा घर में रखकर उसकी भी पूजा करें और दीपावली पूजन के समय शंख को अवश्य ही बजाएं।

शास्त्रो के अनुसार जिस घर में नित्य पूजा में शंख को बजाया जाता है उस घर से माँ लक्ष्मी कभी भी नहीं जाती है और उस घर से सभी संकट दूर रहते है।

माँ लक्ष्मी को कौड़ियाँ अत्यंत प्रिय है और जहाँ पर कौड़ियाँ होती हैआर्थिक संकट पास भी नहीं आते है।वहाँ पर माँ लक्ष्मी को रहना ही होता है। धनतेरस Dhanteras के दिन कौडियों को खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है।धनतेरस Dhanteras के दिन कौड़ियाँ लाकर उन्हें घर के मंदिर में रखे और सांयकाल माँ लक्ष्मी, कुबेर जी के साथ इनकी भी पूजा करे ।

दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के बाद इन कौड़ियों को लाल कपड़े में बांधकर अपने धन स्थान / तिजोरी में रख दें। इस उपाय को करने से घर में धन की कभी भी कमी नहीं रहती है।

धनिया भी माँ लक्ष्मी को बहुत प्रिय है । जिस घर में साबुत धनिया होता है वहाँ पर माँ लक्ष्मी अवश्य ही निवास करती है। धनतेरस Dhanteras के दिन घर पर साबुत धनिया / धनिया के बीज घर जरूर लाना चाहिए और इसे पूजा के बाद अपने घर के आंगन / गमले में छिड़क कर उसकी देखभाल करनी चाहिए। कहते है धनिया आपके घर में जितना अच्छा फलेगा / उगेगा उतनी ही आर्थिक स्थिति अच्छी होती है ।

धनतेरस के दिन घर में नई झाडू अवश्य ही लाएं । झाडू देवी लक्ष्मी जी का प्रतीक है जो घर से दरिद्रता, अलक्ष्मी को दूर भगाता है। धनतेरस Dhanteras के दिन घर में नई झाडू लाने से घर से दरिद्रता, नकारात्मक उर्जा दूर चली जाती हैं, और स्वच्छ घर में माँ लक्ष्मी का वास होता हैं।

झाड़ू मात्र 40 – 50 रूपये की ही मिलती है लेकिन धनतेरस को इसके खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन घर में झाड़ू लाने से धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती ।

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

इस बार धनतेरस 22 को है या 23 अक्टूबर को? जानें इस बारे में

इस बार धनतेरस 22 को है या 23 अक्टूबर को? जानें इस बारे में
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इस साल धनतेरस के त्योहार को लेकर बहुत कन्फ्यूजन है.  धनतेरस का त्योहार हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. 
पंच दिवसीय दीपावली महापर्व 22 अक्टूबर शनिवार से आरंभ होगा. इस साल धनतेरस का त्योहार दो दिवसीय होगा. देवताओं के प्रधान चिकित्सक भगवान धनवंतरी की जयंती के रूप में यह पर्व मनाया जाता है. धनतेरस के दिन सोने, चांदी के आभूषण और धातु के बर्तन खरीदने की परंपरा है. शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि इससे घर में सुख समृद्धि बनी रहती है, संपन्नता आती है और माता महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

इस बार धन त्रयोदशी कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी शनिवार को शाम 4 बजकर 13 मिनट पर लग रही है और 23 अक्टूबर रविवार को शाम 4 बजकर 45 मिनट तक रहेगी. इस अवसर पर अधिकांश लोग शुभ मुहूर्त में अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुरूप वस्तुएं खरीदते हैं. इसमें भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति, सोने-चांदी के आभूषण, धातु के बर्तन, श्रीयंत्र और कुछ विशेष चीजें जैसे कि वाहन, जमीन, फ्लैट आदि शामिल हैं।

धनतेरस की पूजा 22 अक्टूबर को ही करें

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धनतेरस की पूजा 22 अक्टूबर यानी शनिवार को की जानी चाहिए. धनतेरस पर लक्ष्मी मां और कुबेर की पूजा त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल में की जाती है. इस साल त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त 22 अक्टूबर को ही बन रहा है. इस वजह से धनतेरस या धन त्रयोदशी की पूजा 22 अक्टूबर को करनी चाहिए. 22 अक्टूबर को धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07 बजकर 01 मिनट से रात 08 बजकर 17 मिनट तक रहेगा. आपके पास धनतरेस की पूजा के लिए एक घंटे 15 मिनट का समय रहेगा. शुभ मुहूर्त में धनतेरस की पूजा करने मात्र से धन लक्ष्मी पूरे वर्ष हमारे यहां निवास कर सुख समृद्धि प्रदान करती हैं तथा पूजा अर्चना करने मात्र से आने वाले कष्टों का निवारण स्वतः हो जाता है।

धनतेरस पर खरीदारी कब करें?
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धनतेरस पर खरीदारी आप 22 अक्टूबर और 23 अक्टूबर दोनों ही दिन कर सकते हैं. लेकिन त्रयोदशी तिथि का ध्यान रखते हुए शनिवार को शाम 4 बजकर 13 मिनट के बाद और 23 अक्टूबर रविवार को शाम 4 बजकर 45 मिनट से पहले ही खरीदारी करें. हालांकि, अगर आप वाहन या लोहे का सामान खरीद रहे हैं तो रविवार को ही खरीदारी करें क्योंकि शनिवार के दिन लोहे की चीजें खरीदना शुभ नहीं माना जाता है।

धनतेरस की पूजन विधि 
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धनतेरस के दिन प्रातः काल सूर्योदय के पूर्व स्नान करने के पश्चात शुद्ध हो जाएं तथा धनतेरस का पूजन प्रदोष काल में माना जाता है. ऐसा भी कहा गया है कि प्रदोष काल में धनतेरस के दिन भेंट की हुई सामग्री से अकाल मृत्यु नहीं होती इसलिए हमें चाहिए कि भगवान का विधि विधान से पूजन करें।

धनतेरस की पूजन विधि इस प्रकार है. प्रदोष काल में एक चौकी के ऊपर लाल वस्त्र बिछा दें तथा उस पाटे पर भगवान गणेश, कुबेर, धन्वंतरि और लक्ष्मी जी को विराजमान करें तथा साथ ही साथ एक करमांग दीपक घी का भर कर प्रज्वलित करे. एक कलश स्थापित करें. उस पर नारियल रखा हो तथा पांच प्रकार के पत्तों से शोभायमान हो और कंकू अबीर गुलाल सिंदूर हल्दी और चावल तथा पचरंगी धागा, जनेऊ थाली में स्थापित कर भगवान का विधि विधान से पूजन करना चाहिए।

सर्वप्रथम हाथ में सुपारी चावल कंकू अबीर गुलाल सिंदूर हल्दी और एक पुष्प हाथ में रखे भगवान का संकल्प ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: कहकर करें. उसके पश्चात भगवान कुबेर, लक्ष्मी, गणेश और धनवंतरी जी को 4 बार स्नान कराएं. उनको पंचामृत से स्नान कराकर भगवान धन्वंतरी और भगवान गणपति पर जनेऊ जोड़ा चढ़ाएं और अपनी सामर्थ्य अनुसार गुड़ या मिष्ठान का भोग लगाकर बाद में 13 मिट्टी के दीपक जलाकर उनकी कंकू अबीर गुलाल चावल से दीपक की पूजा करें, तथा अंत में महालक्ष्मी जी की आरती करें. उसके पश्चात शाम के समय एक भोग की थाली मिट्टी के दीपक के साथ घर की मुख्य देहली पर रखें और दीपक का मुंह दक्षिण में रखें. ऐसा कहा जाता है कि देहली पर इस दिन भोग की थाली और दक्षिण मुख दीपक रखने से पूरे वर्ष अकाल मृत्यु का भय नहीं होता है।

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

एक ऐसा योद्धा, जिन्होंने 50 वर्ष के शासनकाल में 40 से अधिक युद्ध लड़कर अरबो को भारत से पलायन के लिए मजबूर कर दिया था.

एक ऐसा योद्धा, जिन्होंने 50 वर्ष के शासनकाल में 40 से अधिक युद्ध लड़कर अरबो को भारत से पलायन के लिए मजबूर कर दिया था...

सनातन धर्म रक्षक: सम्राट मिहिरभोज 
सम्राट मिहिरभोज का जन्म विक्रम संवत 873 (816 ईस्वी) को हुआ था। आपको कई नाम से जाना जाता है जैसे भोजराज, भोजदेव , मिहिर , आदिवराह एवं प्रभास।

आपका राज्याभिषेक विक्रम संवत 893 यानी 18 अक्टूबर दिन बुधवार 836 ईस्वी में 20 वर्ष की आयु में हुआ था। और इसी दिन 18 अक्टूबर को ही हर वर्ष भारत में आपकी जयंती मनाई जाती है।

ऐसा राजा जिसका साम्राज्य संसार में सबसे शक्तिशाली था। इनके साम्राज्य में चोर डाकुओ का कोई भय नहीं था। सुदृढ़ व्यवस्था व आर्थिक सम्पन्नता इतनी थी कि विदेशियो ने भारत को सोने की चिड़िया कहा।

यह जानकर अफ़सोस होता है की ऐसे अतुलित शक्ति , शौर्य एवं समानता के धनी मिहिरभोज को भारतीय इतिहास की किताबो में स्थान नहीं मिला।
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के शासनकाल में सर्वाधिक अरबी मुस्लिम लेखक भारत भ्रमण के लिए आये और लौटकर उन्होंने भारतीय संस्कृति सभ्यता आध्यात्मिक-दार्शनिक ज्ञान विज्ञानं , आयुर्वेद , सहिष्णु , सार्वभौमिक समरस जीवन दर्शन को अरब जगत सहित यूनान और यूरोप तक प्रचारित किया।

क्या आप जानते हे की सम्राट मिहिरभोज ऐसा शासक था जिसने आधे से अधिक विश्व को अपनी तलवार के जोर पर अधिकृत कर लेने वाले ऐसे अरब तुर्क आक्रमणकारियों को भारत की धरती पर पाँव नहीं रखने दिया , उनके सम्मुख सुदृढ़ दीवार बनकर खड़े हो गए। उसकी शक्ति और प्रतिरोध से इतने भयाक्रांत हो गए की उन्हें छिपाने के लिए जगह ढूंढना कठिन हो गया था। ऐसा किसी भारतीय लेखक ने नहीं बल्कि मुस्लिम इतिहासकारो बिलादुरी सलमान एवं अलमसूदी ने लिखा है। ऐसे महान सम्राट मिहिरभोज ने 836 ई से 885 ई तक लगभग 50 वर्षो के सुदीर्घ काल तक शासन किया।

सम्राट मिहिरभोज भारत के महान सम्राटों मे से जाने जाते हैंI  इन्होने  लगभग  पचास सालो तक  इस देश को  सुशासन  दिया    देश की विदेशियो से  रक्षा की  लेकिन अफसोस की बात है कि इतने बड़े महान सम्राट का नाम भी बहुत सारे भारतीय लोगों को मालूम नही हैं  सम्राट मिहिर भोज का जन्म सम्राट रामभद्र की महारानी अप्पा देवी के द्वारा सूर्यदेव की उपासना के प्रतिफल के रूप में हुआ माना जाता है। सम्राटमिहिर भोज के बारे में इतिहास की पुस्तकों के अलावा बहुत कम
जानकारी उपलब्ध है। मिहिर भोज ने 836  ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 49 साल तक राज किया। मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और  कश्मीर से कर्नाटक तक था। सिंहासन पर बैठते ही भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। भोज ने साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में उन्हें सम्राट मिहिर भोज की उपाधि मिली थी। अनेक काव्यों एवं इतिहास में उन्हें सम्राट भोज, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज आदि विशेषणों से वर्णित किया गया है। 

मिहिर भोज परम देश भक्त थे- जिन्होंने प्रण किया था कि उसके जीते जी कोई विदेशी शत्रु भारत भूमि को अपावन न कर पायेगा। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले पश्चिम के राज्यों पर आक्रमण कर उन राजाओं को ठीक किया जो कायरतावश यवनों को अपने राज्य में शरण लेने देते थे। इस प्रकार राजपूताना से कन्नौज तक एक शक्तिशाली राज्य के निर्माण का श्रेय मिहिर भोज को जाता है। 

 सुलेमान तवारीखे अरब में लिखा है, कि भोज अरब लोगों का सभी अन्य राजाओं की अपेक्षा अधिक घोर शत्रु है। सुलेमान आगे यह भी लिखता है कि हिन्दोस्ता की सुगठित और विशालतम सेना भोज की थी-इसमें आठ लाख  से  ज्यादा पैदल  सेना   हजारों हाथी, हजारों घोड़े और हजारों रथ थे। भोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। जरा हर्षवर्धन के राज्यकाल से तुलना करिए। हर्षवर्धन के राज्य में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे,पर मिहिर भोज के राज्य में खुली जगहों में भी चोरी की आशंका नहीं रहती थी।

 मिहिर भोज ने बिहार समेत सारा क्षेत्र कन्नौज में मिला लिया। भोज को पूर्व में उलझा देख पश्चिम भारत में पुनः उपद्रव और षड्यंत्र शुरू हो गये। इस अव्यवस्था का लाभ अरब डकैतों ने उठाया और वे सिंध पार पंजाब तक लूट पाट करने लगे। भोज ने अब इस ओर प्रयाण किया। उसने सबसे पहले पंजाब के उत्तरी भाग पर राज कर रहे थक्कियक को पराजित किया, उसका राज्य और 2000 घोड़े छीन लिए। इसके बाद गूजरावाला के विश्वासघाती सुल्तान अलखान को बंदी बनाया- उसके संरक्षण में पल रहे 3000 तुर्की और बर्बर डाकुओं को बंदी बनाकर खूंखार और हत्या के लिए अपराधी पाये गए पिशाचों को मृत्यु दण्ड दे दिया।
जिस प्रकार भगवान विष्णु ने वाराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष आदि दुष्ट राक्षसों से पृथ्वी का उद्धार किया था, उसी प्रकार विष्णु के वंशज मिहिर भोज ने देशी आतताइयों, यवन तथा तुर्क राक्षसों को मार भगाया और भारत भूमि का संरक्षण किया-  इसीलिए युग ने आदि वाराह महाराजाधिराज की उपाधि से विभूषित किया था। वस्तुतः मिहिर भोज सिर्फ प्रतिहार वंश का ही नहीं वरन  हर्षवर्धन के बाद और भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना के पूर्व पूरे राजपूत काल का सर्वाधिक प्रतिभाशाली सम्राट और चमकदार सितारा था। सुलेमान ने लिखा है-इस राजा के पास बहुत बडी सेना है और किसी दूसरे राजा के पास वैसी घुड़सवार सेना नहीं है। भारतवर्ष के राजाओं में उससे बढ़कर अरबों का कोई शत्रु नहीं है। उसके आदिवाराह विरूद्ध से ही प्रतीत होता है कि वाराहवतार की मातृभूमि को अरबों से मुक्त कराना अपना कर्तव्य समझता था  

 अपनी महान राजनीतिक तथा सैनिक योजनाओं से उसने सदैव इस साम्राज्य की रक्षा की। भोज का शासनकाल पूरे मध्य युग में अद्धितीय माना जाता है। इस अवधि में देश का चतुर्मुखी विकास हुआ। साहित्य सृजन, शांति व्यवस्था स्थापत्य, शिल्प, व्यापार और शासन प्रबंध की दृष्टि से यह श्रेष्ठतम माना गया है। भयानक युद्धों के बीच किसान मस्ती से अपना खेत जोतता था, और वणिक अपनी विपणन मात्रा पर निश्चिंत चला जाता था। मिहिर भोज को गणतंत्र शासन पद्धति का जनक भी माना जाता है, उसने अपने साम्राज्य को आठ गणराज्यों में विभक्त कर दिया था। प्रत्येक राज्य का अधिपति राजा कहलाता था, जिसे आज के मुख्यमंत्री की तरह आंतरिक शासन व्यवस्था में पूरा अधिकार था। परिषद का प्रधान सम्राट होता था और शेष राजा मंत्री के रूप में कार्य करते थे। वह जितना वीर था, उतना ही दयाल भी था, घोर अपराध करने वालों को भी उसने कभी मृत्यदण्ड नहीं दिया, किन्तु दस्युओं, डकैतों, तुर्कों अरबों, का देश का शत्रु मानने की उसकी धारणा स्पष्ट थी और इन्हे क्षमा करने की भूल कभी नहीं की और न ही इन्हें देश में घुसने ही दिया। उसने मध्य भारत को जहां चंबल के डाकुओं से मुक्त कराया, वही उत्तर, पश्चिमी भारत को विदेशियों से मुक्त कराया। सच्चाई यही है कि जब तक परिहार साम्राज्य मजबूत  रहा, देश की स्वतंत्रता पर आंँच नहीं आई।

जहाँ  अकबर   जैसे      क्रूर    राजाओ को महान   बताया जाता हैं   जिसे  लिखना तक नहीं आता था    वहीँ  महान राजा मिहिर भोज न केवल एक योद्धा   प्रशासक  थे       बल्कि  एक पराक्रमी शासक होने के साथ ही विद्वान एवं विद्या तथा कला का उदार संरक्षक था। अपनी विद्वता के कारण ही उसने 'कविराज' की उपाधि धारण की थी। उसने कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रंथ, जैसे- 'समरांगण सूत्रधार', 'सरस्वती कंठाभरण', 'सिद्वान्त संग्रह', 'राजकार्तड', 'योग्यसूत्रवृत्ति', 'विद्या विनोद', 'युक्ति कल्पतरु', 'चारु चर्चा', 'आदित्य प्रताप सिद्धान्त', 'आयुर्वेद सर्वस्व शृंगार प्रकाश', 'प्राकृत व्याकरण', 'कूर्मशतक', 'शृंगार मंजरी', 'भोजचम्पू', 'कृत्यकल्पतरु', 'तत्वप्रकाश', 'शब्दानुशासन', 'राज्मृडाड' आदि की रचना की। 'आइना-ए-अकबरी' के वर्णन के आधार पर माना जाता है कि, उसके राजदरबार में लगभग 500 विद्धान थे।

भोज प्रथम के दरबारी कवियों में 'भास्करभट्ट', 'दामोदर मिश्र', 'धनपाल' आदि प्रमुख थे। उसके बार में अनुश्रति थी कि वह हर एक कवि को प्रत्येक श्लोक पर एक लाख मुद्रायें प्रदान करता था। उसकी मृत्यु पर पण्डितों को हार्दिक दुखः हुआ था, तभी एक प्रसिद्ध लोकोक्ति के अनुसार- उसकी मृत्यु से विद्या एवं विद्वान, दोनों निराश्रित हो गये।  
मिहिर  भोज   ने अपनी राजधानी धार को विद्या एवं कला के महत्त्वपूर्ण केन्द्र के रूप में स्थापित किया था। यहां पर भोज ने अनेक महल एवं मन्दिरों का निर्माण करवाया, जिनमें 'सरस्वती मंदिर' सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उसके अन्य निर्माण कार्य 'केदारेश्वर', 'रामेश्वर', 'सोमनाथ सुडार' आदि मंदिर हैं। इसके अतिरिक्त भोज प्रथम ने भोजपुर नगर एवं भोजसेन नामक तालाब का भी निर्माण करवाया था।

कितनी अजीब  बात    हैं   जहाँ गौरी  बाबर  ग़ज़नवी औरंगज़ेब , अकबर , ख़िलजी,  जैसों  को इतिहास की पुस्तको में  चार  चार पन्ने   दिए जाते हैं  पर  महान  देशभक्त महाराज को चार  लाइन भी   नहीं  

महान राजा मिहिर भोज अमर रहें

बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

डीएनए ( DNA ) में खुलासा : आर्य भारत के मूल निवासी हैं, बाहर से नहीं आए थे

*डीएनए ( DNA ) में खुलासा : आर्य भारत के मूल निवासी हैं, बाहर से नहीं आए थे*

*18 October 2022*
http://azaadbharat.org

*🚩आर्य मूलतः भारत के ही निवासी हैं, लेकिन राष्ट्रविरोधी ताकतों के इशारे पर वामपंथियों ने इतिहास ही बदल दिया । वामपंथी विदेश लूट के लिए भारत में आये । स्वयं को मूल निवासी और मूल निवासी को विदेशी बताने लगे, फिर ईसाई मिशनरियां जो विदेश से आईं वे भोले-भाले आदिवासियों को गुमराह करने लगीं कि, आप भारत के मूलनिवासी है और आर्य बाहर से आये हैं ऐसा बोलकर भारतवासियों को आपस में भिड़ाने लग गई ।*

*🚩आर्यों को लेकर कई दावे किए गए, लेकिन फिर भी सवाल ज्यों का त्यों रहा कि आर्य बाहर से आए थे या यहीं (भारत) के ही निवासी थे ? इस सवाल के जवाब में वामपंथियों ने कई दावे किए जिनका मकसद भारतीयों को शायद हीन साबित करना रहा हो, लेकिन अब इस सवाल का जवाब स्पष्ट नजर आने लगा है !*

*🚩राखीगढ़ी में हुई हड़प्पाकालीन सभ्यता की खुदाई-*

*🚩दरअसल, हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में हुई हड़प्पाकालीन सभ्यता की खोदाई में कई ऐतिहासिक राज का खुलासा किया गया है ! बता दें कि राखीगढ़ी में मिले 5000 साल पुराने कंकालों के डीएनए (DNA) टेस्ट के बाद जारी की गई रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि आर्य कहीं बाहर से नहीं आए , यहीं अर्थात भारत के ही के मूल निवासी थे ! डीएनए (DNA) स्टडी से यह भी खुलासा हुआ है कि, भारत के लोगों के जीन (पूर्वज) में पिछले हजारों सालों में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखने को मिला है।*


*🚩इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के एक अंश में यह दावा किया गया है कि, इस अध्ययन में सामने आया है कि, आर्य भारत के ही मूल निवासी थे ! इसे लेकर वैज्ञानिकों ने राखीगढी से प्राप्त नरकंकालों के अवशेषों का डीएनए (DNA) टेस्ट किया था। डीएनए (DNA) टेस्ट से स्पष्ट पता चला है कि, यह रिपोर्ट प्राचीन आर्यन्स की डीएनए (DNA) रिपोर्ट से मेल नहीं खाती है ! ऐसे में जाहिर आर्यों के बाहर से आने की थ्योरी ही गलत साबित होती है ! वैसे पहले भी कई इतिहासकारों का कहना था कि, वामपंथियों की आर्यन थ्योरी मनगढंत कल्पना पर आधारित है, जिसकी परतें इस नए शोध से उधेडती नजर आ रही हैं !*

*🚩रिसर्च में यह भी सामने आया है कि 9000 साल पहले भारत के लोगों ने ही कृषि की शुरुआत की थी। इसके बाद ये ईरान व इराक होते हुए पूरी दुनिया में पहुँची। भारत के विकास में यहीं के लोगों का योगदान है !*

*🚩यहाँ यह ध्यान देनेवाली बात है कि इतिहास के लिए तथ्य महत्वपूर्ण होते हैं, इन तथ्यों में भी वैज्ञानिक सबूतों का ज्यादा महत्व होता है ! राखीगढ़ी में मिले 5000 साल पुराने कंकालों के अध्ययन के बाद जारी की गई रिपोर्ट में ऐसी कई बातें सामने आई है जिनके अभी तक कयास ही लगाए जा रहे थे !*

*🚩राखीगढ़ी से प्राप्त कंकाल-*

*🚩बता दें कि, हिसार के राखीगढ़ी में हड़प्पा खोदाई का काम कर रहे पुणे के डेक्कन कॉलेज के पुरातत्वविदों के अनुसार, खोदाई के वक्त युवक के (कंकाल) का मुँह युवती के  (कंकाल) की तरफ था और यह पहली बार है कि, जब हडप्पा सभ्यता की खुदाई के दौरान किसी युगल की कब्र मिली है !*

*🚩यहाँ हैरानी की बात यह भी है कि, अब तक हड़प्पा सभ्यता से संबंधित कई कब्रिस्तानों की जाँच की गई थी लेकिन आज तक किसी भी युगल के इस तरह दफनाने का मामला सामने नहीं आया था !*

*🚩राखीगढी में खोदाई करनेवाले पुरातत्वविदों के अनुसार, युगल कंकाल का मुँह, हाथ और पैर सभी एक समान है ! इससे साफ है कि, दोनों को जवानी में एक साथ दफनाया गया था। बता दें के ये निष्कर्ष हाल ही में अंतरराष्ट्रीय पत्रिका, एसीबी जर्नल ऑफ अनैटमी और सेल बायॉलजी में प्रकाशित किए गए थे।*


*🚩इस नए शोध और प्रमाणों के साये में इतिहास को देखने और समझने की एक नई दृष्टि मिलती है ! और वामपंथियों की हीनता भरे इतिहास को एक चपत भी लगती है !*

*🚩बता दे कि राखीगढ़ी साइट की रिसर्च टीम के सदस्य और पुणो स्थित डेक्कन कॉलेज डीम्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर प्रो. वसंत शदे और जेनेटिक साइंटिस्ट डॉ. नीरज राय ने बताया कि राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े केंद्रों में से एक है। करीब 300 एकड़ में वर्ष-2015 में पुरातत्वविदों ने यहां खोदाई शुरू की थी।*


*🚩अध्ययन में पता चला कि अफगानिस्तान से अंडमान तक सभी का एक ही जीन है। करीब 12 हजार साल से संपूर्ण दक्षिण एशिया वासियों का एक ही जीन रहा है, यानी सबके एक ही पूर्वज रहे हैं। इससे आर्य के बाहर से आने की थ्योरी गलत साबित हो जाती है।*


*🚩शदे ने कहा, वह भारत सरकार से अनुरोध करेंगे कि इतिहास की पुस्तकों में इन नए  ओर सही तथ्यों को शामिल किया जाए।*

*🚩डॉ. नीरज राय ने बताया कि अगर आर्य बाहर से आए होते और नरसंहार किया होता तो वे अपनी संस्कृति लाते और हमारी संस्कृति को नष्ट कर देते। मानव कंकाल पर कहीं चोट या घाव के ऐसे निशान नहीं मिले हैं, जिनसे नरसंहार की बात साबित हो।*

*🚩प्रो. शदे ने बताया कि राखीगढ़ी में अलग-अलग आकार व आकृति के हवन कुंड व कोयले के अवशेष मिले हैं। इससे साबित होता है कि करीब 5 हजार साल पहले भी भारत में हवन होता था। सरस्वती नदी के किनारे भी हड़प्पा सभ्यता के निशान मिले हैं ।*
 https://www.youtube.com/watch?v=IMfVN97XQlM

*🚩आर्य न तो विदेशी थे और न ही उन्होंने कभी भारत पर आक्रमण किया। आर्य भारत के मूल निवासी थे। बस वामपंथियों ने गलत इतिहास लिखा इसके कारण देशवासी गुमराह हुए।*


*🚩हे हिन्दुओ! एक रहो,क्योंकि  राष्ट्रविरोधी ताकतें शाम-दाम-दंड की नीति अपनाकर आपसी में गृहयुद्ध करवाना चाहती है और देश की सत्ता हथियाना चाहती है इससे सावधान रहना।*


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