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शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

"काँच की बरनी और दो कप चाय "



जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है ,सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं
 उस समय ये बोध कथा  "काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है । 

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि
वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं .
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये धीरे धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी समा गये  फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है ? 
छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ  कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? 
हाँ.अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया  
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....
टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार,बच्चे,मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं , छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी ,कार, बडा़ मकान आदि हैं ,और रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें ,मनमुटाव ,झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , **या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये
तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ ,
घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ...
टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो ,वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है...बाकी सब तो रेत है .छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ?  प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया .इसका उत्तर यह है कि ,जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।
(अपने खास मित्रों और निकट के व्यक्तियों को यह विचार तत्काल बाँट दो ..मैंने अभी - अभी यही किया है

दोस्ती करें, फूलों से


दोस्ती करेंफूलों से ताकि हमारी जीवन-बगिया महकती रहे।

दोस्ती करेंपँछियों से ताकि जिन्दगी चहकती रहे।

दोस्ती करेंरंगों से ताकि हमारी दुनिया रंगीन हो जाए।

दोस्ती करेंकलम से ताकि सुन्दर वाक्यों का सृजन होता रहे।

दोस्ती करेंपुस्तकों से ताकि शब्द-संसार में वृद्धि होती रहे।

दोस्ती करें,ईश्वर से ताकि संकट की घड़ी में वह हमारे काम आए।

दोस्ती करेंअपने आप से ताकि जीवन में कोई विश्वासघात ना कर सके।

दोस्ती करेंअपने माता-पिता से क्योंकि दुनिया में उनसे बढ़कर कोई शुभचिंतक नहीं।

दोस्ती करेंअपने गुरु से ताकि उनका मार्गदर्शन आपको भटकने ना दें।

10 दोस्ती करेंअपने हुनर से ताकि आप आत्मनिर्भर बन सकें। .


आपकी तो सौ प्रतिशत जिंदगी डूब जायगी।"

एक रोचक कथा हैः
कोई सैलानी समुद्र में सैर करने गया। नाव पर सैलानी ने नाविक से पूछाः "तू इंग्लिश जानता है?"
नाविकः "भैया ! इंग्लिश क्या होता है?"
सैलानीः "इंग्लिश नहीं जानता? तेरी 25 प्रतिशत जिंदगी बरबाद हो गयी। अच्छा... यह तो बता कि अभी मुख्यमंत्री कौन है?"
नाविकः "नहीं, मैं नहीं जानता।"
सैलानीः "राजनीति की बात नहीं जानता? तेरी 25 प्रतिशत जिंदगी और भी बेकार हो गयी। अच्छा...... लाइट हाउस में कौन-सी फिल्म आयी है, यह बता दे।"
नाविकः "लाइट हाउस-वाइट हाउस वगैरह हम नहीं जानते। फिल्में देखकर चरित्र और जिंदगी बरबाद करने वालों में से हम नहीं हैं।"
सैलानीः "अरे ! इतना भी नहीं जानते? तेरी 25 प्रतिशत जिंदगी और बेकार हो गयी।"
इतने में आया आँधी तूफान। नाव डगमगाने लगी। तब नाविक ने पूछाः
"साहब ! आप तैरना जानते हो?"
सैलानीः "मैं और तो सब जानता हूँ, केवल तैरना नहीं जानता।"
नाविकः "मेरे पास तो 25 प्रतिशत जिंदगी बाकी है। मैं तैरना जानता हूँ अतः किनारे लग जाऊँगा लेकिन आपकी तो सौ प्रतिशत जिंदगी डूब जायगी।"
ऐसे ही जिसने बाकी सब तो जाना किन्तु संसार-सागर को तरना नहीं जाना उसका तो पूरा जीवन ही डूब गया।
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मन चाहे दुकान पर जाये या मकान पर, पुत्र पर जाये या पत्नी पर, मंदिर में जाये या होटल पर... मन चाहे कहीं भी जाये किन्तु आप यही सोचो कि 'मन गया तो मेरे प्रभु की सत्ता से न ! मेरी आत्मा की सत्ता से न !' – ऐसा करके भी उसे आत्मा में ले आओ। मन के भी साक्षी हो जाओ। इस प्रकार बार-बार मन को उठाकर आत्मा में ले आओ तो परमात्मा में प्रीति बढ़ने लगेगी।
अगर आप सड़क पर चल रहे हो तो आपकी नज़र बस, कार, साइकिल आदि पर पड़ती ही है। अब, बस दिखे तो सोचो कि 'बस को चलाने वाले ड्राइवर को सत्ता कहाँ से मिल रही हैं? परमात्मा से। अगर मेरे परमात्मा की चेतना न होती तो ड्राइवर ड्राइविंग नहीं कर सकता। अतः मेरे परमात्मा की चेतना से ही बस भागी जा रही है...' इस प्रकार दिखेगी तो बस लेकिन आपका मन यदि ईश्वर में आसक्त है तो आपको उस समय भी ईश्वर की स्मृति हो सकती है।
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जिस परम पद को प्राप्त होकर मनुष्य लौटकर संसार में नहीं आते उस स्वयं प्रकाश परम पद को न सूर्य प्रकाशित कर सकता है, न चन्द्रमा और न अग्नि ही, वही मेरा परम धाम है॥-गीता अध्याय

काम का महत्व (सुन्दर कथा)

न्यूयॉर्क की एक संकरी गली में हर्बर्ट नाम का एक गरीब बच्चा रहता था।
गरीबी के कारण तेरह वर्ष की उम्र में उसने बर्फ की गाड़ी चलाने का काम
किया। थोड़ा बड़ा होने पर उसे एक प्राइवेट रेलवे कंपनी में रोड़ी लादने
का अस्थायी काम मिला। उसकी मेहनत और लगन को देख उसे पक्की नौकरी पर रख लिया गया और उसे स्लीपरों की देखभाल का काम दिया गया। जहां वह काम करता था, वह एक छोटा स्टेशन था। उसकी सभी लोगों से जान पहचान हो गई।
उसने लोगों से कहा, 'मैं छुट्टी पर भी रहूं अथवा मेरी ड्यूटी न भी हो तब
भी आप लोग मुझे अपनी सहायता के लिए बुला सकते हैं।' इस तरह वह अपने काम के अलावा दूसरे कार्यों में भी मन लगाने लगा। एक बार एक अधिकारी ने कहा, 'हर्बर्ट, तुम इतनी मेहनत क्यों करते हो। तुम्हें फालतू के काम का कोई पैसा नहीं मिलेगा।' हर्बर्ट ने कहा, 'मैं कोई काम पैसे के लिए नहीं, संतोष के लिए करता हूं। इससे मुझे ज्ञान मिलता है।' एक बार उसकी नजर एक विज्ञापन पर पड़ी।
न्यू यॉर्क की विशाल परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए एक परिवहन व्यवस्थापक की जगह खाली थी। उसने भी अप्लाई कर दिया। उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। इंटरव्यू लेने वाले अफसर उस समय अवाक रह गए, जब उन्हें आभास हुआ कि हर्बर्ट की जानकारी तो उनसे भी ज्यादा है। एक अधिकारी ने इस संबंध में पूछा तो हर्बर्ट ने कहा, 'सर, मैंने अपनी जिज्ञासा के कारण इतनी सारी जानकारी प्राप्त की है। मैं हमेशा इस बात के लिए उत्सुक रहा कि कितनी जल्दी ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्राप्त कर लूं। मैंने किसी काम को कभी छोटा नहीं समझा। जिस व्यक्ति में काम करने की क्षमता और ईमानदारी होगी, उसके रास्ते में कभी कोई बाधा आ ही नहीं सकती।'
कुछ समय बाद हर्बर्ट को न्यूयॉर्क के बेहद भीड़भाड़ वाले रास्ते पर सबसे अच्छी यातायात व्यवस्था कायम करने के लिए पुरस्कृत किया गया।

संसार में दो प्रकार के लोग होते है


कुशल लोग

इस संसार में दो प्रकार के लोग होते है,एक कुशल और दूसरे अकुशल।कुशल कहते है जो बहुत चतुर होते है।।कुशल उसको कहते है जो हाथ नही काट कर सब कुश को उखाड दे। खतरे के काम करे पर उसका कोइ असर न हो उसको कुशल कहते है।जो कुशल लोग है,वो एकमात्र तुमसे ही प्रेम करते है ।।और जो अकुशल लोग होते है,वो पति.पत्नी,सुत आदि से प्रेम करते है । और कुशल लोग सब कुछ छोड़ सिर्फ तुमसे प्रेम करते हैं। सब छोड़ देने का मतलब आसक्ति छोड़ने से है।।स्वात्मनतुम जो आत्मा के स्वामी हो उनसें प्रेम करते है।पति या पत्नी आत्मा के स्वामी नही हो सकते,पति/पत्नी क़ा शरीर अलग और आत्मा अलग है।लेकिन कुशल लोग जानते है कि सबकी आत्मा के स्वामी तो श्रीकृष्ण है,इसलिए कृष्ण से क्यो न प्यार किया जाए।।।कुशल लोग आत्मन और नित्य प्रिय है,ऐसा प्रेम जो कभी न टूटने वाला है।आजकल कोइ जीव किसी का नित्य प्रिय नही हो सकता।सबके गुण स्वभाव अलग अलग है।।सबकी रुची अलग अलग है और सबकी प्रियता अलग अलग है।संसारिक प्रियता क्षणिक होती है। नित्य प्रिय तो भगवान ही है,जोआदि,अन्त,मध्य मे सदा एक रस प्यारे है।
राधे राधे

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