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शनिवार, 16 अप्रैल 2011

so never loose above three CONFIDENCE ,TRUST & HOPE

1.एक बार एक गावं ने सोचा क्यों ना हम बारिश के लिए
भगवान से प्रार्थना करे ! स्थान तय हुआ !! सारा गावं
वहा पंहुचा पर एक बच्चा छतरी ले के पंहुचा ! इसको
कहते हैं confidance ?
2.एक साल के बच्चे को हवा मैं उछाला और वो हंस रहा था
क्योंकी उसको विश्वास हैं की कोइ उसे पकड़ भी लेगा
इसको कहते हैं trust.
3.हम रोज रात को बिस्तर पे सोने जाते हैं !! हमे पता भी
नहीं की कल् हमारी आँख खुलेगी भी या नहीं पर
फिर भी हम अगले दिन की रूप रेखा बना के सोते हैं
इसको कहते हैं hope
so never loose above three CONFIDENCE ,TRUST & HOPE

एक काल्पनिक फ़ोन वार्ता पढ़िये

एक काल्पनिक फ़ोन वार्ता पढ़िये –

(नरेन्द्र मोदी भारत के लोहा व्यापारी हैं, जबकि परवेज़ मुशर्रफ पाकिस्तान के लोहे के व्यापारी हैं)
फ़ोन की घण्टी बजती है –
नरेन्द्र मोदी – क्यों बे मुशर्रफ, सरिया है क्या?
मुशर्रफ– हाँ है…
मोदी – मुँह में डाल ले… (फ़ोन कट…)

इसे कहते हैं Provocation करना…

अगले दिन फ़िर फ़ोन बजता है –
नरेन्द्र मोदी – क्यों बे मुशर्रफ, सरिया है क्या?
मुशर्रफ(स्मार्ट बनने की कोशिश) – सरिया नहीं है…
मोदी – क्यों, मुँह में डाल लिया क्या? (फ़िर फ़ोन कट…)

इसे कहते हैं, “Irritation” में डालना…

अगले दिन फ़िर फ़ोन बजता है –
नरेन्द्र भाई – क्यों बे मुशर्रफ, सरिया है क्या?
मुशर्रफ(ओवर स्मार्ट बनने की कोशिश) – अबे साले, सरिया है भी और नहीं भी…
नरेन्द्र भाई – अच्छा, यानी कि बार-बार उसे मुँह में डालकर निकाल रहा है? (फ़ोन कट…)

इसे कहते हैं Aggravation में डालना…

अगले दिन मुशर्रफ , मोदी जी से बदला लेने की सोचता है… खुद ही फ़ोन करता है…
मुशर्रफ – क्यों बे मोदी, सरिया है क्या?
नरेन्द्र मोदी – अबे मुँह में दो-दो सरिये डालेगा क्या? (फ़ोन कट…)

इसे कहते हैं Frustration पैदा कर देना…

परमात्मा का अंश तो परमात्मा ही

परमात्मा का अंश तो परमात्मा ही हुवा न छोटासा....

सोने की इतनी बड़ी डली लेलो उसमे से थोडा टुकडा काट लो तो वो सोना ही है.....

शुद्ध सोना है हम सब, परंतु इस सोने को माया का,कर्मो का कचरा लग गया है, लेकिन कचरे में भी सोना है तो उसका मोल थोडी कम हो गया कोई, साफ करो उसकी कीमत वही है

कोई दोष, कोई खोट नहीं है हममे, कोई पापी भी नहीं है, पाप भी अपवित्र नहीं कर सकता हमें, अगर परमात्मा का अंश अपवित्र हो गया तो, परमात्मा भी अपवित्र हो सकता है

भगवन के पास न पाप जायेगा न पुण्य जायेगा, अगर सिर्फ पुण्य ही वहा जा सकता है, तो गलत है, फिर वो भगवान नहीं है, वहा सौदा नहीं है, वहा सिर्फ शुद्ध जायेगा...........

पाप भी बोझ है और पुण्य भी, दोनों का फल भुगतना है अच्छा या बुरा.....

लेकिन परमात्मा की भक्ति एक एसा यज्ञ है सब स्वाहा,पाप क्या पुण्य भी नहीं बचेंगा


"पुरन प्रगटे भाग्य कर्म का कलसा फूटा"

एक दिन एसा आता है भगवन की भक्ति-ध्यान करते-करते इतना तेज आ जाता है जो घडा है कर्म का जिसमे पाप-पुण्य जो कुछ भी भरा पड़ा है वो फुट जाता है और ये अंश परमात्मा में समां जाता है और परमात्मा

जीवन मरण का साथी

भगवान बडे अंतर्यामी हैं और सदा संकट के घेरे में भक्तों का साथ देते हैं। यह प्रभु की महानता ही है कि हम मांगते-मांगते नहीं थकते और देते-देते नहीं थकता।
भगवान समय-समय पर जो बिन मांगे देते रहते हैं। उसका तो हमें भान भी नहीं रहता मगर जो हमें नहंी मिला हो अज्ञानता वश हम उसी का शिकवा भगवान से करते रहते हैं।
उन्होंने कहा कि भगवान की कृपा से ही हमें मानव जीवन प्राप्त हुआ है और उसी ने हमारे लालन-पालन का बंदोबस्त भी किया है। मानव सदा ही जो भगवान ने उसे बिन मांगे दे दिया है। उसका भगवान को शुक्रिया अदा नहीं करता मगर जो उसे नहंी मिला। उसी को पाने के लिए भगवान के दर पर आता है। मानव कभी संतुष्ट नहीं होता। वह सदा ही मांगता रहता है। कभी यह चाहिए, कभी वह चाहिए, कभी ऐसा चाहिए, कभी वैसा चाहिए, अब चाहिए और तब चाहिए बस चाह ही चाह, यही मानव जीवन का सार है। मगर जो उसे जीवन पर्यन्त देता आता है जो सदा संकट की घडी में मानव का सहारा बनता है। उसका आभार मानव कभी नहीं जताता। उसकी पूजा ध्यान के लिए मानव कभी समय निकालने का प्रयास नहीं करता। फिर भी दयावान भगवान सदा उसकी सहायता व रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। हम सो भी जाते हैं मगर भगवान सदा जागते रहते हैं। हम बेखबर हो भी जाते हैं पर वे खबरदार बने रहते हैं। हम संकटों में फंस जाते हैं परन्तु भगवान अपने अदृश्य हाथों से हमें उबार लेते हैं।
उन्होंने कहा कि यदि हम अपने चारों तरफ देखते हैं तो सर्व समर्थ, सर्व शक्तिमान, व्यापक, सर्वज्ञ, सर्व नियंता, अनादि, अनंत, सर्व दुखहारीऔर जो सबका होते हुए भी हमारा बिल्कुल अपना सा लगे। साथ ही अभय दान देने वाला हो और जीवन मरण का साथी हो। ऐसे तो केवल जगत में प्रभु ही हैं। उन्हीं में वे सारी तो क्या और भी अपरिमित व अनगिनत विशेषताएं हैं। सभी सांसारिक व्यक्तियों के देह प्रेम पर मुग्ध रहते हैं। मगर एक भगवान ही हैं जिनका निश्चय प्रेम हमारे लिए छलकता रहता है और बिना किसी भेदभाव के सभी को समान रूप से मिलता है।

माँ की ममता का कोई क्या क़र्ज़ चुकाएगा

माँ से बड़ा दुनिया में
कोई हो न पायेगा माँ की ममता का कोई क्या क़र्ज़ चुकाएगा


अनमोल रतन
हमको माँ दुनिया से प्यारी है
देवी के जैसे हमको माँ ये हमारी है

माँ के आँचल में हर कोई जन्नत पायेगा
माँ की ममता का कोई क्या क़र्ज़ चुकाएगा
हर कोई बेटा बेटी माँ के साथ रहे ...
माँ की बातों का
कभी शिकवा न करे

जुल्म करेगा माँ पे जो वो दोजग जायेगा
माँ की ममता का कोई क्या क़र्ज़ चुकाएगा
जाने कितने दुःख सहकर माँ हमको पालती
माँ की ही ममता हर दुःख को है टालती
माँ छोड के सागर कुछ न कर पायेगा
माँ की ममता का कोई क्या क़र्ज़ चुकाएगा

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