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मंगलवार, 3 मई 2011

आज भगवान का कोई भक्त परेशान है

  कहते है जब रामजी के राज्यअभिषेक का कार्य निबट गया तब सभी अतिथिविदा हो गये पर हनुमानजी ने कहा मेरा जन्म तो राम सेवा को हुआ है मै यही प्रभु चरणों मै रहूँगा और वो रुक गये.राजा बन जाने के बाद उनके सभी भाइयो ने अपने लिये कोई न कोई सेवा लेली.तब हनुमानजी भी कहने लगे मुझे भी कोई सेवा दो.तो माता सीता कहने लगी प्रभु की सेवा भार तो सबने ले लिया अब तो कुछ भी सेवा शेष नहीं बची तब हनुमान जी जिद करने लगे तो सीताजी ने कहा तुम चुटकी बजाने की सेवा लेलो जब राम जी को जंभाई आये तब तुम चुटकी बजाना.तो हनुमान जी ने कहा ठीक है माता जी.और रामजी के पीछे पीछे डोलने लगे रात हुई तब माता कहने लगी बेटा अब तुम भी आराम करो पर वो कहने लगे यदि रात मै उन्हें जंभाई आये तो मै तो यही कमरे मै रहता हू तब माताजी रामजी से कहा आपही अपने पुत्र को समझाओ रामजी क्या कहते वो चुप लगा गये पर सीताजी ने हनुमान से कहा आप ऐसा करो
कमरे के बाहर जाओ और वहाँ चुटकी बजाते रहना 
हनुमानजी कमरे से बाहर आ गये और सोचने लगे प्रभु को पता नही कभी जंभाई आ जाये तो वे सारी
रात कीर्तन करते हुए चुटकी बजाने लगे अब वहाँ रामजी की नींद उड़ गयी उनके भक्त को उनकी पत्नी ने बाहर निकाल दिया वो जाग रहा तो वो सोये कैसे अब तो रामजी जंभाई पे जंभाई लेने लगे ये सब देखकर सीताजी घबरा गयी और वो माताओ से जाकर कहने लगी आज तो आप के पुत्र को किसी की नजर लग गयी है वो तो जंभाई लिये ही जा रहे है तब गुरु वसिष्ठ को बुलाया गया वो समझ गये की आज भगवान का कोई भक्त परेशान है तबही ये हो रहा है तब वो सीताजी से कहने लगे आज दिन मै क्याहुआ हमें बताओ उन्होंने सब बात बता दी और अब तो सभी जने हनुमान के कक्ष मै गये वो वहाँ चुटकी बजा कर प्रभु कीर्तन मै मस्त थे तब गुरूजी ने कहा हनुमान तुम कीर्तन करो चुटकी मत बजाओ हनुमानजी मान गये तब कही जाकर प्रभु को नीद आयी 

मां की सेवा करने वाला ही यशस्वी


मां की सेवा करने वाला ही यशस्वी


संत कहते हैं कि मां के चरणों में स्वर्ग होता है। भगवान राम ने भी माता को स्वर्ग से महान बताया है। ऋग्वेद में ऋषि माताओं से आग्रह करते हैं कि जल के समान वे हमें शुद्ध करें। वे हमें तेजवान और पवित्र बनाएं।

भागवत पुराण के अनुसार, माताओं की सेवा से मिला आशीष सात जन्मों के दोषों को दूर करता है। उसकी भावनात्मक शक्ति संतान के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करती है। ऋग्वेद के एक मंत्र में मां की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि हे उषा के समान प्राणदायिनीमां! हमें महान सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करो। तुम हमें नियम-परायण बनाओ। हमें यश और अद्भुत ऐश्वर्य प्रदान करो। 

इस मंत्र के माध्यम से ऋषि यह सिद्ध करना चाहते हैं कि मां की शक्ति अपार होती है, लेकिन इसका लाभ श्रद्धावान और सेवा भाव से भरपूर संतान को ही मिलता है। यदि वे मां के हृदय को ठेस पहुंचाते हैं, तो निश्चित तौर पर आशीष तरंगें निष्क्रिय हो जाती हैं। ऋग्वेद के एक दूसरे मंत्र में ऋषि स्पष्ट कहते हैं कि माता-पिता का पवित्र धीर, विनम्र और अग्नितुल्यतेजस्वी पुत्र अपनी शक्ति से संसार को पवित्र करता है। 

वह सभी जगह ज्ञान और सदाचार का प्रचार करे। वेदों में माता को अंबा, देवी, सरस्वती, शक्ति, ज्योति, उषा, पृथ्वी आदि से संबोधित किया गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व में पितामह भीष्म कहते हैं कि भूमि के समान कोई दान नहीं, माता के समान कोई गुरु नहीं, सत्य के समान कोई धर्म नहीं, दान के समान कोई पुण्य नहीं।

चाणक्यनीति में कौटिल्य कहते हैं कि माता के समान कोई देवता नहीं है। माता-परम देव होती है। माता की सेवा के साथ-साथ पिता, गुरुओं और वृद्धजनोंकी सेवा करने वाला, दीन हीन की सहायता करने वाला, संसार में यश प्राप्त करता है।

उसकी आलोचना करने का साहस उसके शत्रु भी नहीं कर सकते हैं। यजुर्वेद में एक प्रेरणादायक मंत्र है, जिसमें कहा गया है कि जिज्ञासु पुत्र तू माता की आज्ञा का पालन कर। अपनी दुराचरण से माता को कष्ट मत दे। अपनी माता को अपने समीप रख। मन को शुद्ध कर और आचरण की ज्योति को प्रकाशित कर। वास्तव में, माता स्वयं में एक पवित्रतमशक्ति है। उसकी सेवा करें। साथ ही, जो मातातुल्यहैं और वृद्ध, असहाय और वंचित हैं, वे भी हमारी सेवा के अधिकारी हैं।

तिरूपति बालाजी एक ऐसा मंदिर है

आंध्र प्रदेश के चित्तुर जिले में धन
और वैभव के भगवान श्री तिरूपति बालाजी मंदिर स्थित है। ऐसा माना जाता है
यहां साक्षात् भगवान व्यंकटेश विराजमान हैं। यहां बालाजी की करीब 7 फीट
ऊंची श्यामवर्ण की प्रतिमा स्थापित है।

तिरूपति बालाजी एक ऐसा मंदिर है
जहां भगवान को सबसे अधिक धन, सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात अर्पित किए जाते
हैं। यहां दान करने की कोई सीमा नहीं है। भक्त यहां नि:स्वार्थ भाव से अपनी
श्रद्धा के अनुसार धन अर्पित करते हैं। यह धन चढ़ाने के संबंध में एक कथा
बहुप्रचलित है।

कथा के अनुसार एक बार सभी ऋषियों में यह बहस शुरू हुई कि
ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे बड़ा देवता कौन हैं? त्रिदेव की परिक्षा
के लिए ऋषि भृगु को नियुक्त किया गया। इस कार्य के लिए भृगु ऋषि भी तैयार
हो गए। ऋषि सबसे पहले ब्रह्मा के समक्ष पहुंचे और उन्होंने परमपिता को
प्रणाम तक नहीं करा, इस पर ब्रह्माजी भृगु ऋषि पर क्रोधित हो गए।
अब ऋषि शिवजी की परिक्षा लेने पहुंचे। कैलाश पहुंचकर भृगु बिना महादेव की आज्ञा
के उनके सामने उपस्थित हो गए और शिव-पार्वती का अनादर कर दिया। इससे शिवजी
अतिक्रोधित हो गए और भृगु ऋषि का अपमान कर दिया। अंत में ऋषि भुगु भगवान
विष्णु के सामने क्रोधित अवस्था में पहुंचे और श्रीहरि की छाती पर लात मार
दी। इस भगवान विष्णु ने विनम्रता से पूर्वक पूछा कि मेरी छाती व्रज की तरह
कठोर है अत: आपके पैर को चोट तो नहीं लगी? यह सुनकर भृगु ऋषि समझ गए कि
श्रीहरि ही सबसे बड़े देवता यही है। यह सब माता लक्ष्मी देख रही थीं और वे अपने पति का अपमान सहन नहीं कर सकी और विष्णु को छोड़कर दूर चले गईं और तपस्या में बैठ गई। लंबे समय के बाद देवी लक्ष्मी ने शरीर त्याग दिया और पुन: एक दरिद्र ब्राह्मण के यहां जन्म लिया। जब विष्णु को यह ज्ञात हुआ तो वे माता लक्ष्मी से विवाह करने पहुंचे परंतु देवी लक्ष्मी के गरीब पिता ने विवाह के लिए विष्णु से काफी धन मांगा। लक्ष्मी के जाने के बाद विष्णु के
पास इतना धन नहीं था। तब देवी लक्ष्मी से विवाह के लिए उन्होंने देवताओं के
कोषाध्यक्ष कुबेरदेव से धन उधार लिया। इस उधार लिए धन की वजह से विष्णु-लक्ष्मी का पुन: विवाह हो सका। कुबेर देव धन चुकाने के संबंध में यहशर्त रख दी कि जब तक मेरा कर्ज नहीं उतर जाता आप माता लक्ष्मी के साथ केरल में रहेंगे। बस तभी से तिरूपति अर्थात् भगवान विष्णु वहां विराजित हैं। कुबेर से लिए गए उधार धन को उतारने के लिए भगवान के भक्तों द्वारा तिरूपति में
धन चढ़ाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह कुबेर देव को प्राप्त होता है और भगवान विष्णु का कर्ज कम होता है।



गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

जागो ऐ भारत की बहनों

चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया

धन के लोभी कीड़ों ने -२ मानवता से मुख मोड़ लिया

चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया


एक पिता अपनी पुत्री का जब भी ब्याह रचाता है

अपनी हस्ती से बढ़ चढ़कर दौलत खूब लुटाता है

सुखी रहेगी मेरी लाडली सपने खूब सजाता है

अपने चमन की कली तोड़कर तेरे हवाले छोड़ दिया

चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया


सपने सजाये लाखों दिल में दुल्हन घर में आती है

भूल के अपने मात पिता को पति पे जान लुटाती है

असली चेहरा हुआ उजागर मन में वो घबराती है

अपने जीवन की नैया को भाग्य भरोसे छोड़ दिया

चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया


पिया भेष में जब भी कसाई अपनी मांग सुनाता है

जुल्म अनेको लगा ढहाने रोटी को तरसाता है

मांग में लाली भरने वाला उसका खून बहाता है

अपने हाथो उसे उठाकर जलती चिता में छोड़ दिया

चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया


जागो ऐ भारत की बहनों जुल्म तुमको सहना है

कसम है तुमको उस राखी की निर्भय होकर रहना है

झाँसी वाली रानी बनकर इनसे लोहा लेना है

कलम उठा कर 'अक्षय' ने इनका भांडा फोड़ दिया

जिस व्यक्ति में काम करने की क्षमता और ईमानदारी होगी, उसके रास्ते में कभी कोई बाधा आ ही नहीं सकती।'

न्यूयॉर्क की एक संकरी गली में हर्बर्ट नाम का एक गरीब बच्चा रहता था।
गरीबी के कारण तेरह वर्ष की उम्र में उसने बर्फ की गाड़ी चलाने का काम
किया। थोड़ा बड़ा होने पर उसे एक प्राइवेट रेलवे कंपनी में रोड़ी लादने
का अस्थायी काम मिला। उसकी मेहनत और लगन को देख उसे पक्की नौकरी पर रख लिया गया और उसे स्लीपरों की देखभाल का काम दिया गया। जहां वह काम करता था, वह एक छोटा स्टेशन था। उसकी सभी लोगों से जान पहचान हो गई।
उसने लोगों से कहा, 'मैं छुट्टी पर भी रहूं अथवा मेरी ड्यूटी न भी हो तब
भी आप लोग मुझे अपनी सहायता के लिए बुला सकते हैं।' इस तरह वह अपने काम के अलावा दूसरे कार्यों में भी मन लगाने लगा। एक बार एक अधिकारी ने कहा, 'हर्बर्ट, तुम इतनी मेहनत क्यों करते हो। तुम्हें फालतू के काम का कोई पैसा नहीं मिलेगा।' हर्बर्ट ने कहा, 'मैं कोई काम पैसे के लिए नहीं, संतोष के लिए करता हूं। इससे मुझे ज्ञान मिलता है।' एक बार उसकी नजर एक विज्ञापन पर पड़ी।
न्यू यॉर्क की विशाल परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए एक परिवहन व्यवस्थापक की जगह खाली थी। उसने भी अप्लाई कर दिया। उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। इंटरव्यू लेने वाले अफसर उस समय अवाक रह गए, जब उन्हें आभास हुआ कि हर्बर्ट की जानकारी तो उनसे भी ज्यादा है। एक अधिकारी ने इस संबंध में पूछा तो हर्बर्ट ने कहा, 'सर, मैंने अपनी जिज्ञासा के कारण इतनी सारी जानकारी प्राप्त की है। मैं हमेशा इस बात के लिए उत्सुक रहा कि कितनी जल्दी ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्राप्त कर लूं। मैंने किसी काम को कभी छोटा नहीं समझा। जिस व्यक्ति में काम करने की क्षमता और ईमानदारी होगी, उसके रास्ते में कभी कोई बाधा आ ही नहीं सकती।'
कुछ समय बाद हर्बर्ट को न्यूयॉर्क के बेहद भीड़भाड़ वाले रास्ते पर सबसे अच्छी यातायात व्यवस्था कायम करने के लिए पुरस्कृत किया गया।

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