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मंगलवार, 24 मई 2011

धोखे से भी जिसके मुख से भगवान का नाम निकलता है

धोखे से भी जिसके मुख से भगवान का नाम निकलता है वह आदमी भी आदर के योग्य है। जो प्रेम से भगवान का चिन्तन, ध्यान करता है, भगवतत्त्व का विचार करता है उसके आदर का तो कहना ही क्या ? उसके साधन-भजन को अगर सत्संग का संपुट मिल जाय तो वह जरूर हरिद्वार पहुँच सकता है। हरिद्वार यानी हरि का द्वार। वह गंगा किनारे वाला हरि द्वार नहीं, जहाँ से तुम चलते हो वहीं हरि का द्वार हो। संसार में घूम फिरकर जब ठीक से अपने आप में गोता लगाओगे, आत्म-स्वरूप में गति करोगे तब पता चलोगे कि हरिद्वार तुमसे दूर नहीं, हरि तुमसे दूर नहीं और तुम हरि से दूर नहीं।

वो थे न मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था।

आता न था नजर तो नजर का कसूर था।।

अज्ञान की नजर हटती है। ज्ञान की नजर निखरते निखरते जीव ब्रह्ममय हो जाता है। जीवो ब्रह्मैव नापरः। यह अनुभव हो जाता है।

मंगलवार, 3 मई 2011

आज भगवान का कोई भक्त परेशान है

  कहते है जब रामजी के राज्यअभिषेक का कार्य निबट गया तब सभी अतिथिविदा हो गये पर हनुमानजी ने कहा मेरा जन्म तो राम सेवा को हुआ है मै यही प्रभु चरणों मै रहूँगा और वो रुक गये.राजा बन जाने के बाद उनके सभी भाइयो ने अपने लिये कोई न कोई सेवा लेली.तब हनुमानजी भी कहने लगे मुझे भी कोई सेवा दो.तो माता सीता कहने लगी प्रभु की सेवा भार तो सबने ले लिया अब तो कुछ भी सेवा शेष नहीं बची तब हनुमान जी जिद करने लगे तो सीताजी ने कहा तुम चुटकी बजाने की सेवा लेलो जब राम जी को जंभाई आये तब तुम चुटकी बजाना.तो हनुमान जी ने कहा ठीक है माता जी.और रामजी के पीछे पीछे डोलने लगे रात हुई तब माता कहने लगी बेटा अब तुम भी आराम करो पर वो कहने लगे यदि रात मै उन्हें जंभाई आये तो मै तो यही कमरे मै रहता हू तब माताजी रामजी से कहा आपही अपने पुत्र को समझाओ रामजी क्या कहते वो चुप लगा गये पर सीताजी ने हनुमान से कहा आप ऐसा करो
कमरे के बाहर जाओ और वहाँ चुटकी बजाते रहना 
हनुमानजी कमरे से बाहर आ गये और सोचने लगे प्रभु को पता नही कभी जंभाई आ जाये तो वे सारी
रात कीर्तन करते हुए चुटकी बजाने लगे अब वहाँ रामजी की नींद उड़ गयी उनके भक्त को उनकी पत्नी ने बाहर निकाल दिया वो जाग रहा तो वो सोये कैसे अब तो रामजी जंभाई पे जंभाई लेने लगे ये सब देखकर सीताजी घबरा गयी और वो माताओ से जाकर कहने लगी आज तो आप के पुत्र को किसी की नजर लग गयी है वो तो जंभाई लिये ही जा रहे है तब गुरु वसिष्ठ को बुलाया गया वो समझ गये की आज भगवान का कोई भक्त परेशान है तबही ये हो रहा है तब वो सीताजी से कहने लगे आज दिन मै क्याहुआ हमें बताओ उन्होंने सब बात बता दी और अब तो सभी जने हनुमान के कक्ष मै गये वो वहाँ चुटकी बजा कर प्रभु कीर्तन मै मस्त थे तब गुरूजी ने कहा हनुमान तुम कीर्तन करो चुटकी मत बजाओ हनुमानजी मान गये तब कही जाकर प्रभु को नीद आयी 

मां की सेवा करने वाला ही यशस्वी


मां की सेवा करने वाला ही यशस्वी


संत कहते हैं कि मां के चरणों में स्वर्ग होता है। भगवान राम ने भी माता को स्वर्ग से महान बताया है। ऋग्वेद में ऋषि माताओं से आग्रह करते हैं कि जल के समान वे हमें शुद्ध करें। वे हमें तेजवान और पवित्र बनाएं।

भागवत पुराण के अनुसार, माताओं की सेवा से मिला आशीष सात जन्मों के दोषों को दूर करता है। उसकी भावनात्मक शक्ति संतान के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करती है। ऋग्वेद के एक मंत्र में मां की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि हे उषा के समान प्राणदायिनीमां! हमें महान सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करो। तुम हमें नियम-परायण बनाओ। हमें यश और अद्भुत ऐश्वर्य प्रदान करो। 

इस मंत्र के माध्यम से ऋषि यह सिद्ध करना चाहते हैं कि मां की शक्ति अपार होती है, लेकिन इसका लाभ श्रद्धावान और सेवा भाव से भरपूर संतान को ही मिलता है। यदि वे मां के हृदय को ठेस पहुंचाते हैं, तो निश्चित तौर पर आशीष तरंगें निष्क्रिय हो जाती हैं। ऋग्वेद के एक दूसरे मंत्र में ऋषि स्पष्ट कहते हैं कि माता-पिता का पवित्र धीर, विनम्र और अग्नितुल्यतेजस्वी पुत्र अपनी शक्ति से संसार को पवित्र करता है। 

वह सभी जगह ज्ञान और सदाचार का प्रचार करे। वेदों में माता को अंबा, देवी, सरस्वती, शक्ति, ज्योति, उषा, पृथ्वी आदि से संबोधित किया गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व में पितामह भीष्म कहते हैं कि भूमि के समान कोई दान नहीं, माता के समान कोई गुरु नहीं, सत्य के समान कोई धर्म नहीं, दान के समान कोई पुण्य नहीं।

चाणक्यनीति में कौटिल्य कहते हैं कि माता के समान कोई देवता नहीं है। माता-परम देव होती है। माता की सेवा के साथ-साथ पिता, गुरुओं और वृद्धजनोंकी सेवा करने वाला, दीन हीन की सहायता करने वाला, संसार में यश प्राप्त करता है।

उसकी आलोचना करने का साहस उसके शत्रु भी नहीं कर सकते हैं। यजुर्वेद में एक प्रेरणादायक मंत्र है, जिसमें कहा गया है कि जिज्ञासु पुत्र तू माता की आज्ञा का पालन कर। अपनी दुराचरण से माता को कष्ट मत दे। अपनी माता को अपने समीप रख। मन को शुद्ध कर और आचरण की ज्योति को प्रकाशित कर। वास्तव में, माता स्वयं में एक पवित्रतमशक्ति है। उसकी सेवा करें। साथ ही, जो मातातुल्यहैं और वृद्ध, असहाय और वंचित हैं, वे भी हमारी सेवा के अधिकारी हैं।

तिरूपति बालाजी एक ऐसा मंदिर है

आंध्र प्रदेश के चित्तुर जिले में धन
और वैभव के भगवान श्री तिरूपति बालाजी मंदिर स्थित है। ऐसा माना जाता है
यहां साक्षात् भगवान व्यंकटेश विराजमान हैं। यहां बालाजी की करीब 7 फीट
ऊंची श्यामवर्ण की प्रतिमा स्थापित है।

तिरूपति बालाजी एक ऐसा मंदिर है
जहां भगवान को सबसे अधिक धन, सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात अर्पित किए जाते
हैं। यहां दान करने की कोई सीमा नहीं है। भक्त यहां नि:स्वार्थ भाव से अपनी
श्रद्धा के अनुसार धन अर्पित करते हैं। यह धन चढ़ाने के संबंध में एक कथा
बहुप्रचलित है।

कथा के अनुसार एक बार सभी ऋषियों में यह बहस शुरू हुई कि
ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे बड़ा देवता कौन हैं? त्रिदेव की परिक्षा
के लिए ऋषि भृगु को नियुक्त किया गया। इस कार्य के लिए भृगु ऋषि भी तैयार
हो गए। ऋषि सबसे पहले ब्रह्मा के समक्ष पहुंचे और उन्होंने परमपिता को
प्रणाम तक नहीं करा, इस पर ब्रह्माजी भृगु ऋषि पर क्रोधित हो गए।
अब ऋषि शिवजी की परिक्षा लेने पहुंचे। कैलाश पहुंचकर भृगु बिना महादेव की आज्ञा
के उनके सामने उपस्थित हो गए और शिव-पार्वती का अनादर कर दिया। इससे शिवजी
अतिक्रोधित हो गए और भृगु ऋषि का अपमान कर दिया। अंत में ऋषि भुगु भगवान
विष्णु के सामने क्रोधित अवस्था में पहुंचे और श्रीहरि की छाती पर लात मार
दी। इस भगवान विष्णु ने विनम्रता से पूर्वक पूछा कि मेरी छाती व्रज की तरह
कठोर है अत: आपके पैर को चोट तो नहीं लगी? यह सुनकर भृगु ऋषि समझ गए कि
श्रीहरि ही सबसे बड़े देवता यही है। यह सब माता लक्ष्मी देख रही थीं और वे अपने पति का अपमान सहन नहीं कर सकी और विष्णु को छोड़कर दूर चले गईं और तपस्या में बैठ गई। लंबे समय के बाद देवी लक्ष्मी ने शरीर त्याग दिया और पुन: एक दरिद्र ब्राह्मण के यहां जन्म लिया। जब विष्णु को यह ज्ञात हुआ तो वे माता लक्ष्मी से विवाह करने पहुंचे परंतु देवी लक्ष्मी के गरीब पिता ने विवाह के लिए विष्णु से काफी धन मांगा। लक्ष्मी के जाने के बाद विष्णु के
पास इतना धन नहीं था। तब देवी लक्ष्मी से विवाह के लिए उन्होंने देवताओं के
कोषाध्यक्ष कुबेरदेव से धन उधार लिया। इस उधार लिए धन की वजह से विष्णु-लक्ष्मी का पुन: विवाह हो सका। कुबेर देव धन चुकाने के संबंध में यहशर्त रख दी कि जब तक मेरा कर्ज नहीं उतर जाता आप माता लक्ष्मी के साथ केरल में रहेंगे। बस तभी से तिरूपति अर्थात् भगवान विष्णु वहां विराजित हैं। कुबेर से लिए गए उधार धन को उतारने के लिए भगवान के भक्तों द्वारा तिरूपति में
धन चढ़ाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह कुबेर देव को प्राप्त होता है और भगवान विष्णु का कर्ज कम होता है।



गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

जागो ऐ भारत की बहनों

चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया

धन के लोभी कीड़ों ने -२ मानवता से मुख मोड़ लिया

चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया


एक पिता अपनी पुत्री का जब भी ब्याह रचाता है

अपनी हस्ती से बढ़ चढ़कर दौलत खूब लुटाता है

सुखी रहेगी मेरी लाडली सपने खूब सजाता है

अपने चमन की कली तोड़कर तेरे हवाले छोड़ दिया

चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया


सपने सजाये लाखों दिल में दुल्हन घर में आती है

भूल के अपने मात पिता को पति पे जान लुटाती है

असली चेहरा हुआ उजागर मन में वो घबराती है

अपने जीवन की नैया को भाग्य भरोसे छोड़ दिया

चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया


पिया भेष में जब भी कसाई अपनी मांग सुनाता है

जुल्म अनेको लगा ढहाने रोटी को तरसाता है

मांग में लाली भरने वाला उसका खून बहाता है

अपने हाथो उसे उठाकर जलती चिता में छोड़ दिया

चाँदी की दीवार ना तोड़ी जिगर का टुकड़ा तोड़ दिया


जागो ऐ भारत की बहनों जुल्म तुमको सहना है

कसम है तुमको उस राखी की निर्भय होकर रहना है

झाँसी वाली रानी बनकर इनसे लोहा लेना है

कलम उठा कर 'अक्षय' ने इनका भांडा फोड़ दिया

जिस व्यक्ति में काम करने की क्षमता और ईमानदारी होगी, उसके रास्ते में कभी कोई बाधा आ ही नहीं सकती।'

न्यूयॉर्क की एक संकरी गली में हर्बर्ट नाम का एक गरीब बच्चा रहता था।
गरीबी के कारण तेरह वर्ष की उम्र में उसने बर्फ की गाड़ी चलाने का काम
किया। थोड़ा बड़ा होने पर उसे एक प्राइवेट रेलवे कंपनी में रोड़ी लादने
का अस्थायी काम मिला। उसकी मेहनत और लगन को देख उसे पक्की नौकरी पर रख लिया गया और उसे स्लीपरों की देखभाल का काम दिया गया। जहां वह काम करता था, वह एक छोटा स्टेशन था। उसकी सभी लोगों से जान पहचान हो गई।
उसने लोगों से कहा, 'मैं छुट्टी पर भी रहूं अथवा मेरी ड्यूटी न भी हो तब
भी आप लोग मुझे अपनी सहायता के लिए बुला सकते हैं।' इस तरह वह अपने काम के अलावा दूसरे कार्यों में भी मन लगाने लगा। एक बार एक अधिकारी ने कहा, 'हर्बर्ट, तुम इतनी मेहनत क्यों करते हो। तुम्हें फालतू के काम का कोई पैसा नहीं मिलेगा।' हर्बर्ट ने कहा, 'मैं कोई काम पैसे के लिए नहीं, संतोष के लिए करता हूं। इससे मुझे ज्ञान मिलता है।' एक बार उसकी नजर एक विज्ञापन पर पड़ी।
न्यू यॉर्क की विशाल परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए एक परिवहन व्यवस्थापक की जगह खाली थी। उसने भी अप्लाई कर दिया। उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। इंटरव्यू लेने वाले अफसर उस समय अवाक रह गए, जब उन्हें आभास हुआ कि हर्बर्ट की जानकारी तो उनसे भी ज्यादा है। एक अधिकारी ने इस संबंध में पूछा तो हर्बर्ट ने कहा, 'सर, मैंने अपनी जिज्ञासा के कारण इतनी सारी जानकारी प्राप्त की है। मैं हमेशा इस बात के लिए उत्सुक रहा कि कितनी जल्दी ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्राप्त कर लूं। मैंने किसी काम को कभी छोटा नहीं समझा। जिस व्यक्ति में काम करने की क्षमता और ईमानदारी होगी, उसके रास्ते में कभी कोई बाधा आ ही नहीं सकती।'
कुछ समय बाद हर्बर्ट को न्यूयॉर्क के बेहद भीड़भाड़ वाले रास्ते पर सबसे अच्छी यातायात व्यवस्था कायम करने के लिए पुरस्कृत किया गया।

वो बीते हुए दिन ....

वो बीते हुए दिन ....

कुछ बाते भूली हुई ,
कुछ पल बीते हुए ,

हर गलती का एक नया बहाना ,
और फिर सबकी नज़र में आना ,

एक्जाम की पूरी रात जागना ,
फिर भी सवाल देखके सर खुजाना ,

मौका मिले तो क्लास बंक मरना ,
फिर दोस्तों के साथ कैंटीन जाना

उसकी एक झलक देखने रोज कॉलेज जाना ,
उसको देखते देखते attendance भूल जाना ,

हर पल है नया सपना ,
आज जो टूटे फिर भी है अपना ,

ये कॉलेज के दिन ,
इन लम्हों में जिंदगी जी भर के जीना ,

याद करके इन पलों को ,
फिर जिंदगी भर मुस्कुराना

Mahobbat ही मेरी मंजिल है


Mahobbat मकसद है मेरी ज़िन्दगी का
Mahobbat मुक़द्दर है हर किसी का
Mahobbat पाकीजाई का नाम है
Mahobbat हर ख़ुशी का पैगाम है
Mahobbat है तो रहमत है
Mahobbat है तो चाहत है
Mahobbat प्यार इश्क -ओ -लगन है
Mahobbat मैं हर शख्स मगन है
Mahobbat मैं ज़िन्दगी खो जाती है
Mahobbat हार है महोब्बत जीत है
Mahobbat ही दिल का सच्चा मीत है
Mahobbat फूलो को हुई काँटों से
Mahobbat पलकों को हुई आँखों से
Mahobbat चाँद को हुई चांदनी से
Mahobbat रूह को हुई रागनी से
Mahobbat सुबह की पहली किरण है
Mahobbat दो दिलों का मिलन है
Mahobbat ही मेरी मंजिल है
Mahobbat ही मेरा दिल है ...!!!
Mahobbat ही मज़बूरी है ..
Mahobbat ही कमजोरी है ...!!!

मगर प्यार का रंग ना बदला

प्यार का रंग ना बदला
बदल गया है सब कुछ भैया
मगर प्यार का रंग ना बदला

बदली बदली हवा लग रही
बदले बदले लोग बाग़ हैं
बदले बदले समीकरण हैं
बदल गयी है नैतिकता भी
बदले लक्ष्य बदल गए साधन
देखे सभी बदलते हमने
मगर प्यार का रंग ना बदला

फैशन बदले कपड़े बदले
उपर से थोडा नीचे है
नीचे से थोडा ऊंचे है
नीचे ऊपर ऊपर नीचे
इनको देख हुआ जाता है
मेरा मन भी तथा थैया
मगर प्यार का रंग ना बदला

मंजर बदले आँखे बदली
यात्री बदले मंजिल बदली
आँखों के सब सपने बदले
बदला मौसम आँगन बदले
ओठों के सब गाने बदले
मांझी बदले बदली नैया
मगर प्यार का रंग ना बदला

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

धैर्य रखो भगवान सब ठीक कर देगा

एक गांव मे एक मंदिर मे एक पुजारी था

और बो बड़े नियम से भगवान की पूजा करता था और उसको या गांव वालो को कोई भी परेशानी होती थी तो बो कहता था धैर्य रखो भगवान सब ठीक कर देगा और सचमुच परेशानिया ठीक हो जाती थी .......एक बार गांव मे बहुत जोर की बाढ़ आ गयी और सब डूबने लगा तो लोग पुजारी के पास गए तो उसने कहा की धैर्य रखो सब ठीक हो जायेगा मैं भगवान की इतनी पूजा करता हूँ सब ठीक हो जायेगा ,लेकिन पानी बढ़ने लगा और गांव वाले भागने लगे और पुजारी से बोले की अब तो पानी मंदिर मे भी आने लगा हें आप भी निकल चलो यहाँ से लेकिन पुजारी ने फिर बही कहा की मैं इतनी पूजा करता हूँ तो मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा तुम लोग जाओ मैं नहीं जाऊँगा.....फिर कुछ दिनों मे पानी और बढ़ा और मंदिर मे घुस गया तो पुजारी मंदिर पर चढ गया ...फिर उधर से एक नाव आई 

और उसमे कुछ बुजुर्ग लोगो ने पुजारी से कहा की सब लोग भाग गए हें और यह आखिरी नाव हें आप भी आ जाओ इसमें क्योकि पानी और बढ़ेगा ऐसा सरकार का कहना हें नहीं तो आप डूब जाओगे तो पुजारी ने फिर कहा की मेरा कुछ नहीं होगा क्योकि मैने इतनी पूजा करी हें जिंदगी भर तो भगवान मेरी मदद करेगे और फिर बो नाव भी चली गयी ......

कुछ दिनों मे और पानी और बढ़ा तो पुजारी मंदिर मे सबसे ऊपर लटक गया और पानी जब उसकी नाक तक आ गया तो बो त्रिशूल पर लटक गया और 
 
भगवान की प्रार्थना करने लगा की भगवान बचाओ मैने आपकी बहुत पूजा की हें तो कुछ देर मे एक सेना का हेलिकॉप्टर आ गया 

और उसमे से सैनिको ने लटक कर हाथ बढ़ाया और कहा की हाथ पकड़ लो किन्तु फिर बो पुजारी उनसे बोला की मैने जिंदगी भर भगवान की पूजा करी हें मेरा कुछ नहीं होगा और उसने किसी तरह हाथ नहीं पकड़ा और परेशान होकर सैनिक चले गए ...फिर थोड़ी देर मे पानी और बढ़ा और उसकी नाक मे घुस गया और पुजारी मर गया .......मरने के बाद पुजारी स्वर्ग मे गया और जैसे ही उसे भगवान जी दिखे तो बो चिल्लाने लगा की जिंदगी भर मैने इतनी इमानदारी से आप लोगो की पूजा करी फिर भी आप लोगो ने मेरी मदद नहीं की ...तो भगवान जी बोले की अरे पुजारी जी जब पहली बार जो लोग आप से चलने को कह रहे थे तो बो कौन था अरे बो मैं ही तो था ...फिर नाव मे जो बुजुर्ग आप से चलने को कह रहे थे बो कौन था बो मैं ही तो था और फिर बाद मे हेलिकॉप्टर मे जो सैनिक आप को हाथ दे कर कह रहा था बो कौन था बो मैं ही तो था किन्तु आप मुंझे उस रूप मे पहचान ही नहीं पाए तो मैं क्या करू ..... 

अरे मैं जब किसी मनुष्य की मदद करूँगा तो मनुष्य के रूप मे ही तो करूँगा चाहे बो रूप डॉक्टर का हो या गुरु का हो या किसी अच्छे इंसान का या माँ , बाप भाई या बहन का या दोस्त का लेकिन उस रूप मे आप लोग मुंझे पहचान ही नहीं पाते हो तो मैं क्या करू ..... मेरी बाणी को पहचानने के लिए ध्यान बहुत जरूरी हें और योग भी तभी इंसान मेरी बाणी को इंसान मे भी पहचान जायेगा क्योकि सच्चे आदमियो मे मेरी ही बाणी होती हें ....

जय श्री कृष्ण

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