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बुधवार, 16 नवंबर 2011

जापानी चंद सिक्कों के लालच में अपने पंथ का सौदा नहीं करते।

जापान में इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर कड़ा प्रतिबंध है लेकिन इस धर्म-शाला (भारत) मे कब होगा ?????

क्या आपने कभी यह समाचार पढ़ा कि किसी मुस्लिम राष्ट्र का कोई प्रधानमंत्री या बड़ा नेता टोकियो की यात्रा पर गया हो ?
क्या आपने कभी किसी अखबार में यह भी पढ़ा कि ईरान अथवा सऊदी अरब के राजा ने जापान की यात्रा की हो ?
कारण : जापान में अब किसी भी मुसलमान को स्थायी रूप से रहने की इजाज़त नहीं दी जाती है।

· जापान में इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर कड़ा प्रतिबंध है।
· जापान के विश्वविद्यालयों में अरबी या अन्य इस्लामी राष्ट्रों की भाषाऐं नहीं पढ़ायी जातीं।
· जापान में अरबी भाषा में प्रकाशित कुरान आयात नहीं की जा सकती है।
इस्लाम से दूरी· सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जापान में केवल दो लाख मुसलमान हैं।
और ये भी वही हैं जिन्हें जापान सरकार ने नागरिकता प्रदान की है।

· सभी मुस्लिम नागरिक जापानी बोलते हैं और जापानी भाषा में ही अपने सभी मजहबी व्यवहार करते हैं।
· जापान विश्व का ऐसा देश है जहां मुस्लिम देशों के दूतावास न के बराबर हैं।
· जापानी इस्लाम के प्रति कोई रुचि नहीं रखते हैं।
· आज वहां जितने भी मुसलमान हैं वे ज्यादातर विदेशी कम्पनियों के कर्मचारी ही हैं।
· परन्तु आज कोई बाहरी कम्पनी अपने यहां से मुसलमान डाक्टर, इंजीनियर या प्रबंधक आदि को वहां भेजती है तो जापान सरकार उन्हें जापान में प्रवेश की अनुमति नहीं देती है।

अधिकतर जापानी कम्पनियों ने अपने नियमों में यह स्पष्ट लिख दिया है कि कोई भी मुसलमान उनके यहां नौकरी के लिए आवेदन न करे।
·जापान सरकार यह मानती है कि मुसलमान कट्टरवाद के पर्याय हैं इसलिए आज के इस वैश्विक दौर में भी वे अपने पुराने नियम नहीं बदलना चाहते हैं।
·जापान में किराए पर किसी मुस्लिम को घर मिलेगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

यदि किसी जापानी को उसके पड़ोस के मकान में अमुक मुस्लिम के किराये पर रहने की खबर मिले तो सारा मोहल्ला सतर्क हो जाता है।
· जापान में कोई इस्लामी या अरबी मदरसा नहीं खोल सकता है।

मतांतरण पर रोक· जापान में मतान्तरण पर सख्त पाबंदी है।· किसी जापानी ने अपना पंथ किसी कारणवश बदल लिया है तो उसे और साथ ही मतान्तरण कराने वाले को सख्त सजा दी जाती है।

· यदि किसी विदेशी ने यह हरकत की होती है उसे सरकार कुछ ही घंटों में जापान छोड़कर चले जाने का सख्त आदेश देती है।
· यहां तक कि जिन ईसाई मिशनरियों का हर जगह असर है, वे जापान में दिखाई नहीं देतीं।

वेटिकन के पोप को दो बातों का बड़ा अफसोस होता है। एक तो यह कि वे 20वीं शताब्दी समाप्त होने के बावजूद भारत को यूनान की तरह ईसाई देश नहीं बना सके।

दूसरा यह कि जापान में ईसाइयों की संख्या में वृध्दि नहीं हो सकी।

·जापानी चंद सिक्कों के लालच में अपने पंथ का सौदा नहीं करते। बड़ी से बड़ी सुविधा का लालच दिया जाए तब भी वे अपने पंथ के साथ धोखा नहीं करते हैं
जापान में 'पर्सनल ला' जैसा कोई शगूफा नहीं है। यदि कोई जापानी महिला किसी मुस्लिम से विवाह कर लेती है तो उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है।
जापानियों को इसकी तनिक भी चिंता नहीं है कि कोई उनके बारे में क्या सोचता है।
टोकियो विश्वविद्यालय के विदेशी अध्ययन विभाग के अध्यक्ष कोमिको यागी के अनुसार, इस्लाम के प्रति जापान में हमेशा यही मान्यता रही है कि वह एक संकीर्ण सोच का मजहब है।
उसमें समन्वय की गुंजाइश नहीं है। स्वतंत्र पत्रकार मोहम्मद जुबेर ने 9/11 की घटना के पश्चात अनेक देशों की यात्रा की थी। वह जापान भी गए, लेकिन वहां जाकर उन्होंने देखा कि जापानियों को इस बात पर पूरा भरोसा है कि कोई आतंकवादी उनके यहां पर भी नहीं मार सकता !
-आर्यावर्त वीर


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मंगलवार, 15 नवंबर 2011

Prakash Kapooria: अब तो जागो कुम्भकर्ण कि नींद से.....!

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Prakash Kapooria: टेक्सप्लानिंग करे इनकमटेक्स सेक्शन 44 AD के साथ !...

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सोमवार, 14 नवंबर 2011

समय रहते जागे माहेश्वरी समाज.........

समय रहते जागे माहेश्वरी समाज.........
पूरे भारतवर्ष व नेपाल में हमारे परिवारों की संख्या 174558 है l नियमानुसार एक परिवार की सदस्य संख्या 4 मानते है, तो हम 698232 हुए l यदि गणना की शुद्ध संख्या सामने नहीं आई तो ऐसा भी मान लें तो भी ज्यादा से ज्यादा 7-8 लाख होंगे हम l भारतवर्ष की 120 करोड़ की आबादी वाले देश मै हम अब 12 से 7-8 लाख पर आ गए है l देश की आबादी बढ़ रही है, हम घट रहे हैl ऐसे मै हमें भी सावधान होना होगा, अभी समय है, विचार करें व अपने समाज के अस्तित्व को बचाने के लिए गंभीर चिंतन करें, अन्यथा आने वाले 100 वर्षो मै हमारा अस्तित्व खतरे मै पड़ जायेगा l हम शिछित भी है, संपन्न भी है, लक्ष्मी की कृपा है हम पर, क्योकि हमारे आचरण मै सुचिता है, खान-पान मै शुद्धता है, सात्विकता है, अध्यात्म में व धर्म मै हमारी आस्था है, सामाजिक व पारिवारिक सुसंस्कार व ईश्वर भक्ति के प्रति समर्पित व श्रद्धालु है l हमारे बुजुर्गो ने मोटा खाया, मोटा पहना, मेहनत की, धन कमाया व परोपकार में लगाया l आज हम किसी भी धर्म स्थान पर चले जाये, माहेश्वरियो के द्वारा बनायीं हुई धर्मशाला, मन्दिर, भोजनालय आदि मिलेंगे, जो हमारे बुजुर्गों के परोपकारी स्वभाव व हमारी आध्यात्मिक शक्ति सुसंस्कारिता के परिचायक है l अमेरिका के एक सर्वे के अनुसार माहेश्वरी विश्व के दुसरे नंबर की श्रेष्ठ जाती है l व्यापारी व औद्योगिक गुणों मै भी हमारी कोई बराबरी वाला नहीं l ईमानदारी, मेहनत, लगन व कर्तब्यनिष्ठा कूट-कूट कर भरी है हममे l आपराधिक छेत्र से दूर है हम l इसलिए राष्ट्र मै अपनी विशेष पहचान बनी हुई हैl पर कभी सोचा हमने कि :-
01. हमारे 30% बच्चे देश के बाहर जा रहे है ?
02. हमारी बच्चियां उच्च शिच्छा प्राप्त करने के दरम्यान अंतर्जातीय विवाह कर रही है ?
03. इंडिया टुडे के एक सर्वे के अनुसार भारतवर्ष मै सभी जातियों मै सबसे अधिक शिछित माहेश्वरी जाती है, जो 98.5% शिछित है l इसी तरह विशेषज्ञों से हमारी जाती की गुणवत्ता का सर्वे करवाया जाये व युवा वर्ग मै उनके महत्व को समझाया जाये l समाज की घटती संख्या का प्रचार-प्रसार किया जाये l
04. जीन्स की परंपरा, संस्कार-संस्कृति की श्रेष्ठता का क्या महत्व है l इसका प्रूफ सहित विष्लेषण करवाया जाये, उसका प्रचार-प्रसार किया जाये l बचपन से बच्चों मै जातीय प्रेम की भावना भरी जाये l युवाओ को प्रोत्साहित किया जाये l
05. जातीय श्रेष्ठता को नव पीढ़ी के सामने रखे l लेखों, चर्चा, परिचर्चा के द्वारा युवा पीढ़ी को समाज की और आकर्षित किया जाये l
06. सम्पन्नता को जरुरत से ज्यादा महत्व न दे l
07. धन के अनावश्यक प्रदर्शन पर रोक लगाये l
08. चुनाव व मंच को अनर्गल अधिक महत्व न दे l
09. सामाजिक संगठन चिंतनशील संगठन बने l
10. युवा पीढ़ी को समाज के मंच पर स्थान दे व सभाओ मै उनकी उपस्थिति को महत्वपूर्ण निरुपित कर बालकों को अपने धर्म के प्रति आकर्षित करें l हमें धर्मान्धता मै तो नहीं जाना, लेकिन जाती व देश पर गर्व करना तो सीखना तो जरुरी है l
हम अद्यमी समाज है, व्यापारी समाज, उद्योग और व्यापार हमारे रग-रग मै भरा है l हमारे युवा नौकरी की ऑर आकर्षित हो कर अपने स्वाभाविक गुण और स्वास्थ्य, दोनों को ही नष्ट कर रहे है l नौकरी हमें स्वाभिमानपूर्ण गुणों से हटा कर पराश्रित कर रही है l पुराने ज़माने मै नौकरी निक्रिस्ट काम माना जाता था l "उत्तम खेती मध्यम बान, अधम चाकरी भीख निदान "
लेकिन विदेशी कम्पनियां बड़े-बड़े पैकेज की ओर आकर्षित कर हमरे युवको को विदेश भेज रही है l हमारे युवको से रात-दिन काम करवाती है, उनका पारिवारिक, सामाजिक जीवन खत्म सा होता जा रहा है l उनमे स्नेह, अपनापन, संवेदनाएं, प्यार, सुख-दुःख बाँटने के लिए समय नहीं ? अब युवा पीढ़ी को समझना होगा l आज की पीढ़ी तर्क प्रधान है, हमारे कहने भर से नहीं मानेगी l उन्हें प्रमाण देकर समझाना होगा l सर्वे के द्वारा साछ्य व प्रमाण एकत्रित कर युवाओ के समछ तथ्य रखने होंगे l एक विचारधारा में बंधकर समाज व सामाजिक विचारधारा को बचाने की ओर आगे बढ़ना होगा नहीं तो --
जिसके लिए आज मेहनत कर रहे है, कल अनाम बन जायेंगे l इन सबका क्या भविष्य होगा ?
आज हमें संकल्प लेना होगा l "आवो मिलकर साथ चले"
समाज की चिंता रखें, चिंतन करें l युवा पीढ़ी का आहवान करें l मानव जीवन का लछ्य सिर्फ धनार्जन व व्यक्तिगत सुख ही नहीं है, बल्कि राष्ट्र हित व समाज हित सर्वोपरि है l हम सर्वश्रेष्ठ है, अतः आईये हम सर्वश्रेष्ठ प्रति की ओर अग्रसर होवें l
मै श्याम सुन्दर चांडक सभी प्रान्तों की 'महासभा', 'जिलासभा' व संगठनो से अनुरोध करता हूँ की उपरोक्त बातो पर गौर करके उचित आयोजन किये जाये ताकि आने वाला समय 'नवयुवको' का मार्ग 'पथ-प्रदर्शित' करता रहे l जय महेश.....जय माहेश्वरी l


by Shyam Sunder Chandak
 

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