यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

***भारत को कब तक इंडिया कहेंगे ?***



जो भारत को इंडिया कहते है वे मात्र लॉर्ड मैकाले के दिये वचनो का पालन कर रहे है इंडिया बोलने से पहले विचारे : क्या अर्थ है इंडिया का ? .. कुछ नहीं ... हर भारतीय के नाम का अर्थ है .... हमारे यहाँ बिना भावार्थ के नाम रखने की असांस्कृतिक परंपरा नहीं है

अंग्रेज़ो को भारत नाम बोलने मे परेशानी होती थी -अंग्रेज़ इंडियन उस व्यक्ति को कहते है जो उनके हिसाब से जाहिल माना जाता है, -अंग्रेज़ इंडियन उस व्यक्ति को कहते जो पाषाण कालीन जीवन जीता है Remember the old British notorious signboard 'Dogs and Indians not allowed'. लेकिन हमारे भारत नाम का अर्थ है भारत : भा = प्रकाश + रत = लीन ( हमेशा प्रकाश, ज्ञान मे लीन ) इतना महान अर्थ से परिपूर्ण देश का नाम है !

(लॉर्ड मैकाले जिसका पूरा नाम 'थॉमस बैबिंगटन मैकाले' था ! मैकाले 1834 ई. में गवर्नर-जनरल की एक्जीक्यूटिव कौंसिल का पहला क़ानून सदस्य नियुक्त होकर भारत आया।)

*******कैसे पड़ा भारत का नाम ? *********

इस देश का नाम प्रथम तीर्थंकर दार्शनिक राजा भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष पड़ा। महाभारत (आदि पर्व-2-96) का कहना है कि इस देश का नाम भारतवर्ष उस भरत के नाम पर पड़ा जो दुष्यन्त और शकुन्तला का पुत्र कुरूवंशी राजा था। पर इसके अतिरिक्त जिस भी पुराण में भारतवर्ष का विवरण है वहां इसे ऋषभ पुत्र भरत के नाम पर ही पड़ा बताया गया है।

जहाँ "भारत" अपने स्वाभिमान का प्रतीक है वहीँ "India" आज भी अंग्रेजों की गुलामी की निशानी | इसलिए मेरा मानना है कि हमें अपने देश को अपनी संस्कृति से जोड़कर देखना चाहिए क्यूंकि यह महान है |

यह दुखद है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यहाँ अनेक प्रांतों और शहरों के नाम तो बदले, किंतु देश का नाम यथावत विकृत बना हुआ है। समय आ गया है कि जिन लोगों ने ‘त्रिवेन्द्रम’ को तिरुअनंतपुरम्, ‘मद्रास’ को तमिलनाडु, ‘बोंबे’ को मुंबई, ‘कैलकटा’ को कोलकाता या ‘बैंगलोर’ को बंगलूरू, ‘उड़ीसा’ को ओडिसा तथा ‘वेस्ट बंगाल’ को पश्चिमबंग आदि पुनर्नामांकित करना जरूरी समझा – उन सब को मिल-जुल कर अब ‘इंडिया’ शब्द को विस्थापित कर भारतवर्ष कर देना चाहिए। क्योंकि यह वह शब्द है जो हमें पददलित करने और दास बनाने वाली संस्था ने हम पर थोपा था।
 


नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

Can ELECTRICITY pass through Flash light of the Digital camera to your body??? Yes it is 100% true..!


‎" MUST READ" " MUST READ" " MUST READ"

Can ELECTRICITY pass through Flash light of the Digital camera to your body??? Yes it is 100% true..!

This is a true incidence reported of a boy aged 19, who was studying in 1st year of engineering, who died in Keshvani Hospital, Mumbai. He was admitted in the Hospital as a burned patient. Reason ??????

This boy had gone to Amravati (a place located in State of Maharashtra ) on a study tour, on their return they were waiting at the railway station to catch the train. Many of them started taking pictures of their friends using "Mobile Phones" and / or "Digital Camera". One of them complained that, he was unable to capture the full group of friends in one frame in the Digicam.
This boy moved away to a distance to get the whole group.

He failed to notice that at an angle above his head, 40,000 volts electrical line was passing through.
As soon as he clicked the digital camera? 40,000 volt current passed through the camera flash light to his camera and then from his camera to his fingers & to his body. All this happened within a fraction of a second. His body was half burned.
They arranged for an ambulance & his burned body was brought to Keshavani Hospital, Mumbai.

For one & half days or so he was conscious & talking. Doctors did not have much hopes as there was a lot of complex issues in his body. He passed away later.
Now how many of us are aware about these technical threats & dangers? Even if we are, how many of us are adhering??

Now should we call ourselves as educated and knowledgeable people?
▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼▼
* Please avoid mobile phones on petrol outlets.
* Please avoid talking on mobile phones while driving.
* Change that "Chalta Hai Yaar Attitude".
* Please avoid talking on mobile phones while kept in charging mode without disconnecting from wall socket.
* Please do not keep mobile phones on your bed while charging and / on wooden furniture.
* Avoid using mobile phones / Digital cameras near high voltage electrical lines like in railway stations and avoid using flash.

SHARE THIS INFO TO WHOM YOU CARE.( Click Share )
Share Some Good Information using Facebook :-)


नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

सत्य बहुत कड़वा होता है

लोकल ट्रेन से उतरते ही हमने सिगरेट जलाने
के लिए एक साहब से माचिस
माँगी तभी किसी भिखारी ने हमारी तरफ
हाथ बढ़ाया हमने कहा- “भीख माँगते शर्म
नहीं आती?” वो बोला- “माचिस माँगते
आपको आयी थी क्या” बाबूजी! माँगना देश
का करेक्टर है जो जितनी सफाई से माँगे
उतना ही बड़ा एक्टर है ये
भिखारियों का देश है लीजिए!
भिखारियों की लिस्ट पेश है धंधा माँगने
वाला भिखारी चंदा माँगने वाला दाद माँगने
वाला औलाद माँगने वाला दहेज माँगने
वाला नोट माँगने वाला और तो और वोट माँगने
वाला हमने काम माँगा तो लोग कहते हैं चोर है
भीख माँगी तो कहते हैं कामचोर है उनसे कुछ
नहीं कहते जो एक वोट के लिए दर-दर नाक
रगड़ते हैं घिस जाने पर रबर की ख़रीद लाते हैं
और उपदेशों की पोथियाँ खोलकर महंत बन
जाते हैं। लोग तो एक बिल्ला से परेशान हैं
यहाँ सैकड़ों बिल्ले खरगोश की खाल में देश
के हर कोने में विराजमान हैं। हम
भिखारी ही सही मगर राजनीति समझते हैं
रही अख़बार पढ़ने की बात तो अच्छे-अच्छ े
लोग माँग कर पढ़ते हैं समाचार तो समाचार
लोग-बाग पड़ोसी से अचार तक माँग लाते हैं
रहा विचार! तो वह बेचारा महँगाई के मरघट में
मुर्दे की तरह दफ़न हो गया है। समाजवाद
का झंडा हमारे लिए क़फ़न हो गया है सत्य
बहुत कड़वा होता है


नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

हम नहीं जानते कि ईश्वर ने हमारे लिए क्या सोचा है

तीन पेड़ो की कथा

यह एक बहुत पुरानी बात है| किसी नगर के समीप एक जंगल तीन वृक्ष थे| वे तीनों अपने सुख-दुःख और सपनों के बारे में एक दूसरे से बातें किया करते थे| एक दिन पहले वृक्ष ने कहा – “मैं खजाना रखने वाला बड़ा सा बक्सा बनना चाहता हूँ| मेरे भीतर हीरे-जवाहरात और दुनिया की सबसे कीमती निधियां भरी जाएँ. मुझे बड़े हुनर और परिश्रम से सजाया जाय, नक्काशीदार बेल-बूटे बनाए जाएँ, सारी दुनिया मेरी खूबसूरती को निहारे, ऐसा मेरा सपना है|”

दूसरे वृक्ष ने कहा – “मैं तो एक विराट जलयान बनना चाहता हूँ| ताकि बड़े-बड़े राजा और रानी मुझपर सवार हों और दूर देश की यात्राएं करें, मैं अथाह समंदर की जलराशि में हिलोरें लूं, मेरे भीतर सभी सुरक्षित महसूस करें और सबका यकीन मेरी शक्ति में हो… मैं यही चाहता हूँ|” अंत में तीसरे वृक्ष ने कहा – “मैं तो इस जंगल का सबसे बड़ा और ऊंचा वृक्ष ही बनना चाहता हूँ| लोग दूर से ही मुझे देखकर पहचान लें, वे मुझे देखकर ईश्वर का स्मरण करें, और मेरी शाखाएँ स्वर्ग तक पहुंचें… मैं संसार का सर्वश्रेष्ठ वृक्ष ही बनना चाहता हूँ|”

ऐसे ही सपने देखते-देखते कुछ साल गुज़र गए. एक दिन उस जंगल में कुछ लकड़हारे आए| उनमें से जब एक ने पहले वृक्ष को देखा तो अपने साथियों से कहा – “ये जबरदस्त वृक्ष देखो! इसे बढ़ई को बेचने पर बहुत पैसे मिलेंगे.” और उसने पहले वृक्ष को काट दिया| वृक्ष तो खुश था, उसे यकीन था कि बढ़ई उससे खजाने का बक्सा बनाएगा|

दूसरे वृक्ष के बारे में लकड़हारे ने कहा – “यह वृक्ष भी लंबा और मजबूत है| मैं इसे जहाज बनाने वालों को बेचूंगा”| दूसरा वृक्ष भी खुश था, उसका चाहा भी पूरा होने वाला था|

लकड़हारे जब तीसरे वृक्ष के पास आए तो वह भयभीत हो गया|वह जानता था कि अगर उसे काट दिया गया तो उसका सपना पूरा नहीं हो पाएगा| एक लकड़हारा बोला – “इस वृक्ष से मुझे कोई खास चीज नहीं बनानी है इसलिए इसे मैं ले लेता हूं”| और उसने तीसरे वृक्ष को काट दिया|

पहले वृक्ष को एक बढ़ई ने खरीद लिया और उससे पशुओं को चारा खिलानेवाला कठौता बनाया|कठौते को एक पशुगृह में रखकर उसमें भूसा भर दिया गया| बेचारे वृक्ष ने तो इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी|दूसरे वृक्ष को काटकर उससे मछली पकड़नेवाली छोटी नौका बना दी गई| भव्य जलयान बनकर राजा-महाराजाओं को लाने-लेजाने का उसका सपना भी चूर-चूर हो गया| तीसरे वृक्ष को लकड़ी के बड़े-बड़े टुकड़ों में काट लिया गया और टुकड़ों को अंधेरी कोठरी में रखकर लोग भूल गए|

एक दिन उस पशुशाला में एक आदमी अपनी पत्नी के साथ आया और स्त्री ने वहां एक बच्चे को जन्म दिया|वे बच्चे को चारा खिलानेवाले कठौते में सुलाने लगे। कठौता अब पालने के काम आने लगा| पहले वृक्ष ने स्वयं को धन्य माना कि अब वह संसार की सबसे मूल्यवान निधि अर्थात एक शिशु को आसरा दे रहा था|

समय बीतता गया और सालों बाद कुछ नवयुवक दूसरे वृक्ष से बनाई गई नौका में बैठकर मछली पकड़ने के लिए गए, उसी समय बड़े जोरों का तूफान उठा और नौका तथा उसमें बैठे युवकों को लगा कि अब कोई भी जीवित नहीं बचेगा। एक युवक नौका में निश्चिंत सा सो रहा था। उसके साथियों ने उसे जगाया और तूफान के बारे में बताया। वह युवक उठा और उसने नौका में खड़े होकर उफनते समुद्र और झंझावाती हवाओं से कहा – “शांत हो जाओ”, और तूफान थम गया| यह देखकर दूसरे वृक्ष को लगा कि उसने दुनिया के परम ऐश्वर्यशाली सम्राट को सागर पार कराया है |

तीसरे वृक्ष के पास भी एक दिन कुछ लोग आये और उन्होंने उसके दो टुकड़ों को जोड़कर एक घायल आदमी के ऊपर लाद दिया। ठोकर खाते, गिरते-पड़ते उस आदमी का सड़क पर तमाशा देखती भीड़ अपमान करती रही। वे जब रुके तब सैनिकों ने लकड़ी के सलीब पर उस आदमी के हाथों-पैरों में कीलें ठोंककर उसे पहाड़ी की चोटी पर खड़ा कर दिया|दो दिनों के बाद रविवार को तीसरे वृक्ष को इसका बोध हुआ कि उस पहाड़ी पर वह स्वर्ग और ईश्वर के सबसे समीप पहुंच गया था क्योंकि ईसा मसीह को उसपर सूली पर चढ़ाया गया था।

निष्कर्ष :-- सब कुछ अच्छा करने के बाद भी जब हमारे काम बिगड़ते जा रहे हों तब हमें यह समझना चाहिए कि शायद ईश्वर ने हमारे लिए कुछ बेहतर सोचा है| यदि आप उसपर यकीन बरक़रार रखेंगे तो वह आपको नियामतों से नवाजेगा|प्रत्येक वृक्ष को वह मिल गया जिसकी उसने ख्वाहिश की थी, लेकिन उस रूप में नहीं मिला जैसा वे चाहते थे। हम नहीं जानते कि ईश्वर ने हमारे लिए क्या सोचा है या ईश्वर का मार्ग हमारा मार्ग है या नहीं… लेकिन उसका मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है|


नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

बुधवार, 30 नवंबर 2011

दहेज की होली by Aditya Mandowara

.लाखों घर बरबाद हो गये इस दहेज की होली में,
अर्थी चढ़ी हज़ारों कन्या बैठ ना पाई डोली में।।
कितनो ने अपनी कन्या के पीले हाथ करने थे,
कहाँ कहाँ मस्तक टेके आती है शर्म बताने में
जिस पर बीती वही जनता शब्द नही ये कहने के,
कितनो ने बेच दिए मकान अब तक अपने रहने के
गहने,कपड़े,दुकान सभी लूट गये माँग की इस बोली में।।
क्या यही हमारा मनुष्य धर्म है यही हमारी अहिंसा प्यारी है,
लड़की वालों की गर्दन पर रखी क्यों कटारी है।
सुन लो अब ये लड़के वालों कन्या की शादी में ,
नही बढ़ेंगे हाथ तुम्हारे आगे इस बर्बादी में,mnb
आग लगे इस दानवता की बुरी प्रथा की होली में।।
लड़का कोई चीज़ नही जिसका दम लगते हो,
किसी विवश का धन हथियाकर अपनी शान बढ़ते हो,
वधू रूप में लक्ष्मी मिलती फिर धन का लालच कैसा,
संबंधों का प्रेम भाव कुलषित करता ऐसा पैसा,
कहना मेरा बुरा ना मानो,रहे ना ऐसा पैसा झोली में।।
लाखों घर बरबाद हो गये इस दहेज की होली में,
अर्थी चढ़ी हज़ारों कन्या बैठ ना पाई डोली में।।
 
by Aditya Mandowara
 
 


नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

function disabled

Old Post from Sanwariya