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रविवार, 11 दिसंबर 2011

हमारे देश भारत के संविधान में सभी को समानता का अधिकार है। तो फिर भारत में आरक्षण क्यों ?

आरक्षण क्यों ?
हमारे देश भारत के संविधान में सभी को समानता का अधिकार है। तो फिर भारत में आरक्षण क्यों ?
जाति के आधार पर समाज को विघटित करना कहाँ की समझदारी है। मेरे विचार से किसी जाति विशेष को आरक्षण मिलने का मतलब ये है की वो हीन है कमज़ोर है इसीलिए उसे आरक्षण दे दिया जाए,इसीलिए उन्हें दलित भी कहा जाता है।
किसी भी जाति,वर्ग या सम्प्रदाय को आरक्षण देने का मतलब है की उन्हें समाज में समानता के साथ जीने का कोई हक़ नहीं है और वो सवर्ण जातियों के समान नहीं हैं,दीन हैं।
लेकिन जब सवर्ण जातियां उन से जातीय विभेद दिखाती हैं उन्हें नीच समझती हैं तो फिर हमारे दलित समाज के लोग पुलिस के पास जाते हैं, कोर्ट में जाते हैं की साहब हमारे साथ ये विभेद क्यों ?
एक सवाल हमारे दलित भाइयों से की जब आप जातीय विभेद के खिलाफ हैं तो फिर आप आरक्षण के खिलाफ क्यों नहीं हैं क्यों आप अपने आप को हीन कहलवाना चाहते हैं,क्या आप नहीं चाहेंगे की लोग आप को हीन न कहें, क्या आप को समानता का हक नहीं है और अगर है तो फिर आरक्षण क्यों ?
जब यही आरक्षण प्रतिभाशाली छात्रों के कैरियर या आजीविका के मध्य आड़े आने लगे, जब प्रतिभाशाली लोग आरक्षण की वजह से किसी कालेज में दाखिले या किसी नौकरी से वंचित रह जाए,उन का चयन उस में न हो तो वो आत्महत्या जैसे प्रयास भी करतें हैं तो फिर एक सवाल उठता है की आरक्षण क्यों ?
एक आरक्षण और है वो है महिलाओं को आरक्षण क्यों भैया महिलाये कहाँ से कमज़ोर दिखती है,कहाँ से वो अशक्त हैं,कहाँ से वो दीन-हीन हैं। हमारी सरकारें ये भूल जाती है की ----
“आज की शक्ति नारी है,
दुर्गा शक्ति नारी है,
सावित्री शक्ति नारी है,
संसार की शक्ति नारी है।
हमारी भारतीय संस्कृति में भी कहा जाता है की व्यक्ति अपन कर्मों से,संस्कारों से महान बनता है,जाति से नहीं।
“जन्मना जायते शूद्रं, संस्कारादि द्विज उच्यते।“
आरक्षण हमारे भारतीय समाज पर एक ऐसा बदनुमा दाग जिसे धोने का प्रयास हर हाल में हर भारतीय को करना चाहिए। और एक ऐसी व्यवस्था हमारे समाज में होनी चाहिए की सब को समानता दी जाय, सभी को समान माना जाय। कालेज में प्रवेश या नौकरी सभी में व्यक्ति की प्रतिभा को ही प्राथमिकता दी जाय।
और सब से ज्यादा अहम राजनीतिज्ञों को भी हम भारतीयों को बांटने से बाज़ आना चाहिए,अपनी रोटियां सेकनी बंद करनी चाहिए। ऐसा कैसे हो सकता है की एक भाई अछूत हो और दूसरा छूत।
बंद कीजिये हम सभी को बांटने का खेल।
और अंत में बस एक बात और की --------
“ एक प्रतिभाशाली व्यक्ति चाहे वो किसी भी जाति या सम्प्रदाय का क्यों ना हो,कभी भी आरक्षण का पक्षधर नहीं हो सकता।“
आरक्षण को मानने का मतलब है की आप संविधान के समानता के अधिकार को नहीं मानते और अगर आप संविधान को मानते है तब आप आरक्षण के खिलाफ अपनी आवाज़ क्यों नहीं उठाते।


Vishal Saxena (विशाल सक्सेना)




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किसी बड़े के पैर क्यों छूना चाहिए ? - Shyam Sunder Chandak

जब भी कोई आपके पैर छुवे...................

हिंदू परंपराओं में से एक परंपरा है सभी उम्र में बड़े लोगों के पैर छुए जाते हैं। इसे बड़े लोगों का सम्मान करना समझा जाता है। जिन लोगों के पैर छुए जाते हैं उनके लिए शास्त्रों में कई नियम भी बनाए हैं। यदि कोई आपके पैर छुता है तो आपको क्या करना चाहिए, जानिए....

उम्र में बड़े लोगों के पैर छुने की परंपरा काफी प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इससे आदर-सम्मान और प्रेम के भाव उत्पन्न होते हैं। साथ ही रिश्तों में प्रेम और विश्वास भी बढ़ता है। पैर छुने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण दोनों ही मौजूद हैं। जब भी कोई आपके पैर छुए तो सामान्यत: आशीर्वाद और शुभकामनाएं तो देना ही चाहिए, साथ भगवान का नाम भी लेना चाहिए।

जब भी कोई आपके पैर छुता है तो इससे आपको दोष भी लगता है। इस दोष से मुक्ति के लिए भगवान का नाम लेना चाहिए। भगवान का नाम लेने से पैर छुने वाले व्यक्ति को भी सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं और आपके पुण्यों में बढ़ोतरी होती है। आशीर्वाद देने से पैर छुने वाले व्यक्ति की समस्याएं समाप्त होती है, उम्र बढ़ती है।

किसी बड़े के पैर क्यों छूना चाहिए ?

पैर छुना या प्रणाम करना, केवल एक परंपरा या बंधन नहीं है। यह एक विज्ञान है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ा है। पैर छुने से केवल बड़ों का आशीर्वाद ही नहीं मिलता बल्कि अनजाने ही कई बातें हमारे अंदर उतर जाती है। पैर छुने का सबसे बड़ा फायदा शारीरिक कसरत होती है, तीन तरह से पैर छुए जाते हैं। पहले झुककर पैर छुना, दूसरा घुटने के बल बैठकर तथा तीसरा साष्टांग प्रणाम। झुककर पैर छुने से कमर और रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है। दूसरी विधि में हमारे सारे जोड़ों को मोड़ा जाता है, जिससे उनमें होने वाले स्ट्रेस से राहत मिलती है, तीसरी विधि में सारे जोड़ थोड़ी देर के लिए तन जाते हैं, इससे भी स्ट्रेस दूर होता है। इसके अलावा झुकने से सिर में रक्त प्रवाह बढ़ता है, जो स्वास्थ्य और आंखों के लिए लाभप्रद होता है। प्रणाम करने का तीसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे हमारा अहंकार कम होता है। किसी के पैर छुना यानी उसके प्रति समर्पण भाव जगाना, जब मन में समर्पण का भाव आता है तो अहंकार स्वत: ही खत्म होता है। इसलिए बड़ों को प्रणाम करने की परंपरा को नियम और संस्कार का रूप दे दिया गया।


by Shyam Sunder Chandak


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मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

Where does a women's money go



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महालक्ष्मी रहेंगी आपके घर में, बस समय-समय पर पैसा खर्च करें - by Aditya Mandowara


प्राचीन काल से ही धन के मोह और लोभ के कई किस्से-कहानियां प्रचलित हैं। आज भी धन के प्रति लोगों का मोह काफी अधिक है। सभी पैसों को छिपाकर रखते हैं, खर्च नहीं करते। धन का सही उपयोग नहीं करने पर वह नष्ट हो जाता है। शास्त्रों में भी धन की महिमा बताई गई है। धन यानि महालक्ष्मी किन लोगों के पास रहती है? इस संबंध में राजा भृर्तहरी ने बताया है कि-

दानं भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य।

यो न ददाति न भुंक्ते तस्त तृतीया गतिर्भवति।।

इस संस्कृत श्लोक का अर्थ है कि धन की केवल तीन ही अवस्थाएं हैं- पहली है दान देना, दूसरी है धन का उपभोग करना और अंतिम अवस्था है धन का नष्ट होना।

राजा भृर्तहरी ने लिखा है कि यदि कोई व्यक्ति धन का दान नहीं करता है और धन का उपभोग नहीं करता है तो उससे महालक्ष्मी रुठ जाती हैं यानि उसका सारा धन नष्ट हो जाता है। जो लोग धन को जान से अधिक सहेजकर कर रखते हैं, उसका सदुपयोग नहीं करते हैं, दान-पुण्य नहीं करते, किसी गरीब की धन से मदद नहीं करते, परिवार वालों की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करते हैं, ऐसे लोगों का धन व्यर्थ ही है। इनका धन बहुत ही जल्द नष्ट होने वाला है। महालक्ष्मी की कृपा ऐसे लोगों पर नहीं होती जो धन को एकत्र करने में लगे रहते हैं और उसका सही उपयोग नहीं करते हैं। धन को बचाने का सबसे अच्छा रास्ता है दान-पुण्य किया जाए, गरीबों की मदद की जाए और पैसों का सही उपयोग किया।

कौन है राजा भृर्तहरी

भृर्तहरी मध्यप्रदेश के उज्जैन के प्राचीन राजा माने जाते हैं। ये सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। उस काल में उज्जैन को उज्जयिनी के नाम से जाना जाता था। भृर्तहरी उज्जैन के राजा तो थे साथ ही वे महान संस्कृत कवि और नीतिकार भी थे। उन्होंने नीतिशतक, श्रंगारशतक, वैराग्यशतक की रचना की। प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। राजा भृर्तहरी के नीतिशतक में जीवन प्रबंधन की अचूक उपाय बताए गए हैं। जिन्हें अपनाने पर कोई भी व्यक्ति श्रेष्ठ जीवन जी सकता है।
 
 
 
by Aditya Mandowara
 


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