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शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

(20/09/2012) ऋषि-पंचमी (माहेश्वरी रक्षाबंधन) है

(20/09/2012) ऋषि-पंचमी (माहेश्वरी रक्षाबंधन) है
आप सभी को 'ऋषि-पंचमी (माहेश्वरी रक्षाबंधन / राखी)' की हार्दिक शुभ कामनाएं !

राजस्थान और देश- विदेश में बसा हुवा माहेश्वरी समाज तथा कायस्थ परिवार श्रावणी पूर्णिमा की बजाय ‘ऋषि पंचमी’ को ‘रक्षाबंधन’ के रूप में मनाते हैं। ‘श्रावणी पूर्णिमा’ से बीस दिन बाद मनाए जाने वाले ‘ऋषि पंचमी’ के उत्सव के दिन प्रात: स्नान के पश्चात घर की सबसे बड़ी महिला अपने आंगन की एक दीवार पर, जो कि गाय के गोबर से लिपी-पुती होती है ‘महेश’ अथवा अपने आराध्यदेव के नाम पांच बार लिख कर परिवारजनों के साथ इस थापे के सामने बैठकर पूजा करती है। भगवान के पांच नाम पर्व की ‘पंचमी’ तिथि के बोधक होते हैं। किन्तु लोक भाषा में इसे ‘सरवण पूजना’ कहा जाता है। संभवत: इस पूजा से बहन श्रवण कुमार जैसे भाई की कामना मन में संजोए रहती है। थापे की पूजा के बाद घर में उपस्थित बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं। बहन चाहे घर में हो अथवा ससुराल में, वह उस दिन केवल एक समय भोजन करती है। प्राय: यह भोजन सूर्यास्त के पश्चात ही किया जाता है। सारी चर्चा से यही निष्कर्ष निकलता है कि ऋषि पंचमी का व्रत रखने वाली स्त्री को देव ऋषियों का आशीर्वाद मिलता है। माता अरुंधती के आशीर्वाद से वह राजरानी शकुंतला की भांति सर्व-विख्यात पुत्र की प्राप्ति करती है और विघ्न विनाशक गणेश जी समूचे परिवार की सभी विपदाएं दूर करने में सहायक बनते हैं। ये सभी मिलकर अनजाने में भूल-चूक करने वाली व्रतधारिणी को भी क्षमा दिलवा देते हैं।

मुस्लिम राष्ट्र इंडोनेशिया में नोट पर विघ्न हर्ता "गणेश जी" का चित्र छापा गया

विश्व के सबसे बड़े मुस्लिम राष्ट्र इंडोनेशिया में एक बार अर्थव्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ा गयी. वहाँ के राष्ट्रिय आर्थिक चिंतको ने बहुत विचार मंथन कर बीस हजार का एक नया नोट जारी किया, जिस पर विघ्न हर्ता "गणेश जी" का चित्र छापा गया. अब वहाँ की अर्थवयवस्था मजबूत हैं.

वहाँ की पार्लियामेंट दजाकार्ता के सामने कृष्ण-अर्जुन संवाद वाली गीता उपदेश की विशाल प्रतिमा लगाई गयी हैं.

वहाँ के नामो पर गौर करिये - राष्ट्रपति "मेघवती सुकर्णो पुत्री" प्रधानमंत्री "महातीर" सांसद "कार्तिकेय", उपराष्ट्रपति रहे "वीर हरी".

वहाँ के एयरलाइनस का नाम "गरुड़" हैं......................................................

बुधवार, 19 सितंबर 2012

मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण-तिथि

आप सभी को श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाये....
गजाननं भूत गणादीसेवितं कपित्थजम्बू फल चारु भक्षणमं l
उमासुतं शेकाविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ll

शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है, जबकि गणेश पुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था । गण + पति = गणपति । संस्कृतकोशानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक । ‘पति’ अर्थात स्वामी , ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकों के स्वामी ।

गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं :-
1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्णक, 5. लंबोदर, 6. विकट, 7. विघ्न-नाश, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचंद्र, 12. गजानन।
उपरोक्त द्वादश नाम नारद पुरान मे पहली बार गणेश के द्वादश नामावलि मे आया है | विद्यारम्भ तथ विवाह के पूजन के प्रथम मे इन नामो से गणपति के अराधना का विधान है |

*पिता - भगवान शिव,
*माता - भगवती पार्वती,
*भाई - श्री कार्तिकेय,
*पत्नी - दो. 1. रिद्धि, 2. सिद्धि, (दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेशजी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं)
*पुत्र - दो. 1. शुभ, 2. लाभ,
*प्रिय भोग (मिष्ठान्न) - मोदक, लड्डू,
*प्रिय पुष्प - लाल रंग के,
*प्रिय वस्तु - दुर्वा (दूब), शमी-पत्र,
*अधिपति - जल तत्व के,
*प्रमुख अस्त्र - पाश, अंकुश.

गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है, और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेशजी का नाम हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। ईसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपसना करने वाला सम्प्रदाय गाणपतय कहलाते है|

गणपति आदिदेव हैं, जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रवण (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है। चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।

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