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सोमवार, 12 नवंबर 2012

पेठे के गुण - आयुर्वेद ग्रंथों में पेठे को बहुत उपयोगी माना गया है।

पेठे के गुण
* पेठा या कुम्हडा व्रत में भी लिया जा सकता है .
* आयुर्वेद ग्रंथों में पेठे को बहुत उपयोगी माना गया है। यह पुष्टिकारक, वीर्यवर्ध्दक, भारी, रक्तदोष तथा वात-पित्त को नष्ट करने वाला है।
* कच्चा पेठा पित्त को समाप्त करता है लेकिन जो पेठा अधिक कच्चा भी न हो और अधिक पका भी न हो, वह कफ पैदा करता है किन्तु पका हुआ पेठा बहुत ठंडा, ग्राही, स्वाद खारी, अग्नि बढ़ाने वाला, हल्का, मूत्राशय को शुध्द करने वाला तथा शरीर के सारे दोष दूर करता है।
* यह मानसिक रोगों में जैसे मिरगी, पागलपन आदि में तो बहुत लाभ पहुंचाता है। मानसिक कमजोरी-मानसिक विकारों में विशेषकर याद्दाश्त की कमजोरी में पेठा बहुत उपयोगी रहता है। ऐसे रोगी को 10-20 ग्राम गूदा खाना चाहिए अथवा पेठे का रस पीना चाहिए।
* शरीर में जलन-पेठे के गूदे तथा पत्तों की लुगदी बनाकर लेप करें। साथ-साथ बीजों को पीसकर ठंडाई बनाकर प्रयोग करें। इससे बहुत लाभ होगा।
* नकसीर फूटना- पेठे का रस पीएं या गूदा खाएं। सिर पर इसके बीजों का तेल लगाएं। बहुत लाभ होगा।
* दमा रोग – दमे के रोगियों को पेठा अवश्य खिलाएं। इससे फेफड़ों को शांति मिलती है।
खांसी तथा बुखार- पेठा खाने से खांसी तथा बुखार रोग भी ठीक होते हैं।
* पेशाब के रोग- पेठे का गूदा तथा बीज मूत्र विकारों में बहुत उपयोगी है। यदि मूत्र रूक-रूककर आता हो अथवा पथरी बन गई हो तो पेठा तथा उसके बीज दोनों का प्रयोग करें। लाभ होगा।
* वीर्य का कमी- इस रोग में पेठे का सेवन अति उपयोगी है।
* कब्ज तथा बवासीर-पेठे के सेवन से कब्ज दूर होती है। इसी कारण बवासीर के रोगियों के लिए यह बहुत लाभकारी है। इससे बवासीर में रक्त निकलना भी बंद हो जाता है।
भूख न लगना- जिन लोगों की आंतों में सूजन आ गई है, भूख नहीं लगती, वे सुबह दो कप पेठे का रस पीएं। भूख लगने लगेगी और आंतों की सूजन भी ठीक हो जाएगी।
* खाली पेट पेठा खाने से शारीर में लचीलापन और स्फूर्ति बनी रहती है .

उपवास (फ़ास्टिंग) क्यों और कैसे करें?

उपवास (फ़ास्टिंग) क्यों और कैसे करें?
विधि पूर्वक उपवास के माध्यम से शरीर की स्वयं का ईलाज करने की आंतरिक शक्ति को अधिकतम कार्यक्छम बनाया जा सकता है।संपूर्ण विश्राम अवस्था में शरीर में पानी अथवा फ़लों के रस के अलावा कुछ नहीं लेना उपवास कहलाता है।
गंभीर रोगों से ग्रसित व्यक्ति को जीवन शैली में वांछित बदलाव करना जरूरी होता है। उपवास करने के बाद जीवन शैली में बदलाव करना आसान हो जाता है। उपवास की सबसे उ
त्तम और सुरक्छित विधि फ़लों के रस पर आधारित उपवास है। केवल पानी पर आधारित उपवास भी प्रचलित है और बहुत वर्षों पुराना उपवास का विधान है। लेकिन उपवास संबंधी विशिष्ट चिकित्सकों का मत है कि फ़लों के रस पर आधारित उपवास बनिस्बत सुरक्छित और अधिक कारगर रहता है।
उपवास के दौरान शरीर में एकत्रित विजातीय पदार्थ( टाक्सिक मेटर) भस्म होने लगते हैं और शरीर से बाहर निकलने लगते हैं। इस निष्कासन की प्रक्रिया को सहारा देने के लिये हम पानी के बजाय फ़लों का क्छारीय( अल्केलाईन) रस इस्तेमाल करते हैं। इससे यूरिक एसीड व अन्य विजातीय पदार्थ आसानी से निष्काशित होंगे। हां , ज्यूस में जो शर्करा होती है उससे हृदय को भी शक्ति मिलती रहेगी। हरी सजियों के रस में और फ़लों के रस में जो विटामिन, मिनरल्सऔर सूक्छ्म पौषक तत्व होते हैं वे हमारे शरीर की प्रणालियों को चुस्त-दुरुस्त बनाने में जुट जाते हैं। सभी ज्यूस ताजे फ़लों और सब्जियों से निकालकर तुरंत पीना चाहिए।फ़्रीज में रखे ज्यूस लाभदायक नहीं होते हैं।
उपवास शुरू करने के पहिले एनीमा लगाकर आंतों की भली प्रकार सफ़ाई कर लेना चाहिये।अवशिष्ट पदार्थ आंतों में जमे रहेंगे तो पेट में गेस बनने से तकलीफ़ होगी। बाद में उपवास की अवधि में एक दिन छोडकर एनीमा व्यवहार में लाना चाहिये।जब प्यास लगे तो मामूली गरम जल पर्याप्त मात्रा में पीना चाहिये। आप चाहें तो ज्यूस में पानी मिलाकर डायलुट करके पी सकते हैं। दिन भर में कुल तरल ६ से ८ गिलास (ज्यूस और पानी) पीना उत्तम है
उपवास के दौरान शरीर में उपस्थित विजातीय पदार्थों को बाहर निकालने में काफ़ी ऊर्जा खर्च होती है। इसलिये रोगी को संपूर्ण विश्राम की सलाह दी जाती है। मानसिक तनाव तो बिल्कुल भी नहीं रहना चाहिये। केवल चहल कदमी करने की अनुमति रहती है।
कितने दिन का उपवास करें?
उपवास कम से कम ५ दिन और अधिकतम ४० दिन का किया जा सकता है। उपवास के अवधि में आपको थकावट ,मितली,उल्टी होना,दस्त लगना, पेट में दर्द होना,पेट फ़ूलना,जोडों में दर्द,सिर दर्द,चमडी में खुल्जली होना, घबराहट आदि सामान्य लक्छणों का अनुभव होगा। यह इसलिये होता है कि विजातीय पदार्थ बाहर निकलने की प्रक्रिया में ज्यादा मात्रा में रक्त प्रवाह में आ जाते हैं। रक्त में इनकी मात्रा ज्यादा होने से ऊपरोक्त लक्छण प्रकट होते हैं।
उपवास विधि का प्रयोग करके शराब ,धूम्रपान,कोकेन गांजा आदि मादक द्रव्य सेवन करने की आदत से मुक्ति पाई जा सकती है। साधारण अवस्था में इन पदार्थों का सेवन बंद करने पर जो विथड्राल सिम्पटम पैदा होते हैं वे उपवास करने पर नहीं होते हैं। बहुत से लोगों को आश्चर्य होता है कि उपवास विधि से शराब और धूम्रपान बडी आसानी से छोडा जा सकता है। मोटापा दूर करने के लिये उपवास विधि का सहारा लेना सर्वोत्तम उपाय है। एक ताजा अध्ययन में बताया गया है कि उपवास के जरिये केन्सर रोग में भी लाभ उठाया जा सकता है।

दीपावली पूजन विधि

दीपावली पूजन विधि

कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है।

कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। आज के दिन व्य
ापारी अपने बही खाते बदलते है तथा लाभ हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं। दीपावली पर जुआ खेलने की भी प्रथा हैं। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर में भाग्य की परीक्षा करना है। लोग जुआ खेलकर यह पता लगाते हैं कि उनका पूरा साल कैसा रहेगा।

पूजन विधानः दीपावली पर माँ लक्ष्मी व गणेश के साथ सरस्वती मैया की भी पूजा की जाती है। भारत मे दीपावली परम्प रम्पराओं का त्यौंहार है। पूरी परम्परा व श्रद्धा के साथ दीपावली का पूजन किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन में माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र की पूजा की जाती है। इसी तरह लक्ष्मी जी का पाना भी बाजार में मिलता है जिसकी परम्परागत पूजा की जानी अनिवार्य है। गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजन अधूरा होता है इसलिए लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन भी किया जाता है। सरस्वती की पूजा का कारण यह है कि धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है इसलिए ज्ञान की पूजा के लिए माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।

इस दिन धन व लक्ष्मी की पूजा के रूप में लोग लक्ष्मी पूजा में नोटों की गड्डी व चाँदी के सिक्के भी रखते हैं। इस दिन रंगोली सजाकर माँ लक्ष्मी को खुश किया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर, इन्द्र देव तथा समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान की भी पूजा की जाती है। तथा रंगोली सफेद व लाल मिट्टी से बनाकर व रंग बिरंगे रंगों से सजाकर बनाई जाती है।

विधिः दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व हैं। इसके लिए दो थालों में दीपक रखें। छः चौमुखे दीपक दोनो थालों में रखें। छब्बीस छोटे दीपक भी दोनो थालों में सजायें। इन सब दीपको को प्रज्जवलित करके जल, रोली, खील बताशे, चावल, गुड, अबीर, गुलाल, धूप, आदि से पूजन करें और टीका लगावें। व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें। इसके बाद घर आकर पूजन करें। पहले पुरूष फिर स्त्रियाँ पूजन करें। स्त्रियाँ चावलों का बायना निकालकर कर उस रूपये रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श करके उन्हें दे दें तथा आशीवार्द प्राप्त करें। पूजा करने के बाद दीपकों को घर में जगह-जगह पर रखें। एक चौमुखा, छः छोटे दीपक गणेश लक्ष्मीजी के पास रख दें। चौमुखा दीपक का काजल सब बडे बुढे बच्चे अपनी आँखो में डालें।

सप्त ऋषि... भारत के सात महान संत...

सप्त ऋषि... भारत के सात महान संत...

आकाश में सात तारों का एक मंडल नजर आता है... उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है... उक्त मंडल के तारों के नाम भारत के महान सात संतों के आधार पर ही रखे गए हैं... वेदों में उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है... प्रत्येक मनवंतर में सात सात ऋषि हुए हैं...

वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि-कुल के नामों का पता चलता है..
. वे नाम क्रमश: इस प्रकार है... 1. वशिष्ठ 2. विश्वामित्र 3. कण्व 4. भारद्वाज 5. अत्रि 6. वामदेव और 7. शौनक

पुराणों में सप्त ऋषि के नाम पर भिन्न-भिन्न नामावली मिलती है... विष्णु पुराण अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार है...

" वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत ।
विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।"

अर्थात् अभी चल रहे सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं...
1. वशिष्ठ
2.कश्यप
3. अत्रि
4. जमदग्नि
5. गौतम
6. विश्वामित्र और
7. भारद्वाज...

इसके अलावा पुराणों की अन्य नामावली इस प्रकार है:- ये क्रमशः केतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ट तथा मारीचि है:::

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