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बुधवार, 21 नवंबर 2012

छोटी-मोटी चोट व दर्द और सूजन है तो ऐसे में निर्गुण्डी का पौधा

दैनिक जीवन छोटी-मोटी चोट तो किसी को भी लग सकती है। लेकिन कई बार चोट की मार बहुत अधिक होती है ऐसे में बहुत पेनकिलर खाने पर भी आराम नहीं होता। अगर आपके साथ भी यह समस्या है चोट लगी है व दर्द और सूजन है तो ऐसे में निर्गुण्डी की जितनी भी तारीफ की जाए वह कम है। इसका पौधा सारे भारत मे, विशेषकर गर्म प्रदेशों में पाया जाता है। आयुर्वेद में कहा गया है-

सिन्दुक: स्मृति दस्तिक कषाय: कटुकोलघु।

केश्योनेत्र हितोहन्ति शूल शोथाम मारुतान्।

कृमि कुष्टारुचि श्लेष्व्रणन्नीला हितद्विधा।।

सिंदुरवारदलं जन्तुवात श्लेष्म हरं लघु।
इस तरह के पौधे की गंध तेज है। इसका सबसे ज्यादा उपयोग सूजन दूर करने में किया जाता है। हर प्रकार की सूजन दूर करने के लिए प्रयोग विधि इस प्रकार है।

प्रयोग- इसके पत्तों को पानी में उबालें। जब भाप उठने लगे तब बरतन पर जाली रख दें। दो छोटे कपड़े पानी में भिगोकर निचोड़ ले। तह करके एक के बाद एक जाली पर रख कर गर्म करें। सूजन या दर्द के स्थान पर रख कर सेंक करें। चोंट मोंच का दर्द, जोड़ों का दर्द, कमर दर्द और गैस के कारण होने वाला दर्द दूर करने के लिए यह उपाय बहुत गुणकारी है। कफ,बुखार व फेफड़ों में सूजन को दूर करने के लिए इसके पत्तों का रस निकालकर 2 बड़े चम्मच मात्रा में, 2 ग्राम पिसी पिप्पली मिलाकर दिन में दो बार सुबह शाम पीएं व पत्तों को गर्म कर पीठ पर या छाती पर बांधने से आराम होता है।

काढ़ा::

काढ़ा::

दशमूल काढ़ा : विषम ज्वर, मोतीझरा, निमोनिया का बुखार, प्रसूति ज्वर, सन्निपात ज्वर, अधिक प्यास लगना, बेहोशी, हृदय पीड़ा, छाती का दर्द, सिर व गर्दन का दर्द, कमर का दर्द दूर करने में लाभकारी है व अन्य सूतिका रोग नाशक है।

महामंजिष्ठादि काढ़ा : समस्त चर्म रोग, कोढ़, खाज, खुजली, चकत्ते, फोड़े-फुंसी, सुजाक, रक्त विकार आदि रोगों पर विशेष लाभकारी है।

महासुदर्शन काढ़ा : विषम ज्वर, धातु ज्वर, जीर्ण ज्वर, मलेरिया बुखार आदि समस्त ज्वरों पर विशेष लाभकारी है, भूख बढ़ाता है तथा पाचन शक्ति बढ़ाता है। श्वास, खांसी, पांडू रोगों आदि में हितकारी। रक्त शोधक एवं यकृत उत्तेजक ।

महा रास्नादि काढ़ा : समस्त वात रोगों में लाभकारी। आमवात, संधिवात, सर्वांगवात, पक्षघात, ग्रध्रसी, शोथ, गुल्म, अफरा, कटिग्रह, कुब्जता, जंघा और जानु की पीड़ा, वन्ध्यत्व, योनी रोग आदि नष्ट होते हैं।

रक्त शोधक : सब प्रकार की खून की खराबियां, फोड़े-फुंसी, खाज-खुजली, चकत्ते, व्रण, उपदंश (गर्मी), आदि रोगों पर लाभकारी है तथा खून साफ करता है।

सामान्य मात्रा : 10 से 25 मिली तक बराबर पानी मिलाकर भोजन करने के बाद दोनों समय पिए जाते हैं।

विविध

अर्क अजवायन : पेट व आंतों के दर्द में लाभकारी। बदहजमी, अफरा, अजीर्ण, मंदाग्नि में लाभप्रद। दीपक तथा पाचक व जिगर की बीमारियों को दूर करता है।

अर्क दशमलव : प्रसूत ज्वर एवं सब प्रकार के वात रोगों में लाभदायक है।

अर्क सुदर्शन : अनेक तरह के बुखारों में लाभदायक है। पुराने बुखार, विषम ज्वर, त्रिदोष ज्वर, इकतारा, तिजारी बुखारों को नष्ट करता है।

अर्क सौंफ : भूख बढ़ाता है। आंव-पेचिस आदि में लाभदायक है। मेदा व जिगर की बीमारियों में फायदेमंद है। प्यास व अफरा कम करता है। पित्त, ज्वर, बदहजमी, शूल, नेत्ररोग आदि में लाभकारी है।

खमीरा गावजवां : दिल-दिमाग को ताकत देता है। घबराहट व चित्त की परेशानी दूर करता है। प्यास कम करता है, नेत्रों को लाभदायक है। खांसी, श्वास (दमा), प्रमेह आदि में लाभकारी। मात्रा 10 से 25 ग्राम सुबह-शाम चाटना चाहिए।

खमीरा सन्दल : अंदरूनी गर्मी को कम करता है, प्यास को कम करता है, दिल को ताकत देता है व खास तौर पर दिल की धड़कन को कम करता है। पैत्तिक दाह, मुंह सूखना, घबराहट, जलन, गर्मी से जी मिचलाना तथा मूत्र दाह में लाभकारी। शीतल व शांतिदायक। गर्भवती स्त्रियों के लाभदायक। मात्रा 10 से 25 ग्राम सुबह, दोपहर व शाम अर्क गावजवां के साथ या केवल चाटना चाहिए।

गुलकन्द प्रवाल युक्त : अत्यंत शीतल है। कब्ज दूर करता है व पाचन शक्ति बढ़ाता है। दिल, फेफड़े, मैदा व दिमाग को ताकत देता है। जिगर की सूजन व हरारत कम करता है। गर्भवती स्त्रियों के लिए विशेष लाभदायक है। गर्मी के मौसम में बालक, वृद्ध, स्त्री, पुरुष सबको इसका सेवन करना चाहिए। मात्रा 10 से 25 ग्राम सुबह शीतल जल या दूध के साथ लेना चाहिए।

माजून मुलैयन : हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिए श्रेष्ठ दस्तावर दवा। मात्रा रात को सोते समय 10 ग्राम माजून दूध के साथ।

सिरका गन्ना : पाचक, रुचिकारक, बलदायक, स्वर शुद्ध करने वाला, श्वास, ज्वर तथा वात नाशक। मात्रा 10 से 25 मि.ली. सुबह व शाम भोजन के बाद।

सिरका जामुन : यकृत (लीवर) व मेदे को लाभकारी। खाना हजम करता है, भूख बढ़ाता है, पेशाब लाता है व तिल्ली के वर्म को दूर करने की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 10 से 25 मि.ली. सुबह व शाम भोजन के बाद।

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