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शनिवार, 1 दिसंबर 2012

दुनिया का सबसे धनी गरीब देश...

दुनिया का सबसे धनी गरीब देश...


१- यदि हम गरीब होते तो विदेशी यहाँ हर प्रकार की वस्तु बेचने के लिए आते?
२- दुनिया भर के विदेशी आक्रमण क्या हमारी गुदड़ी चुराने के लिए हुए थे ?
३-चंगेज खान ने ४ करोड़ लोंगो की हत्या करके क्या अपने घोड़ो पर ईट और पत्थर लाद कर ले गया था?
४-सोमनाथ मंदिर को बार बार सोने से कौन भर देता था यदि हमारे पुरखे गरीब थे ?
५-श्रम करने वाला कभी गरीब हो ही नहीं सकता है, हमारे किसान औसत १४ घंटे काम करते है, यह गरीब क्यों है ?
६-आज हमारे देश से विदेशी कंपनिया आधिकारिक रूप से २३२००० करोड़ का शुद्ध मुनाफा लेकर वापस अपने देश जा रही है, बाकि सभी तरह का फर्जी हिसाब, उनका आयातित कच्चा माल का भुगतान , चोरी आदि जोड़ा जाय तो एह रकम २५,००,००० करोड़ सालाना बैठता है. क्या कोई गरीब देश इतना टर्न ओवर पैदा करवा सकता है ?
७-हमारे देश से दवाओ का सालाना कारोबार १०,००,००० करोड़ का है, क्या यह गरीब देश का निशानी है ?
८- हमारे देश में सालाना ६,००,००० करोड़ का जहर का व्यापर विदेशी कंपनिया कर रही है, क्या या गरीबी निशानी है ?
९- हमारे देश में १०,००० लाख करोड़ खनिज पाया जाता है और इसका दोहन भी विदेशी कंपनिया बहुत ही सस्ते भाव पर कर रही है, तो हम गरीब है ?
१०- यदि हमारे बैंक में ५,००,०००/- रूपया है तो हमारे जेब में औसत ५०००/- रूपया से ज्यादा नहीं रहता है यानि पूरे पैसे का १ % तो फिर हमारी सरकार ने २५ळाख़ः करोड़ का नोट क्यों छपवा रखा है और छपवाती ही जा रही है, इसका प्रयोग कौन कर रहा है और कैसे कर रहा है ?
११- जब हम रॉकेट और सैटेलाईट बना कर चाँद पर पहुच सकते है तो नोट छपने का काम उन विदेशी कंपनियों को क्यों दिया गया है जो हमारे पीठ में छुरा घोपकर उसी डिजाइन में थोडा सा न दिखने वाला परिपर्तन करके खरबों रुपये का नकली नोट छापकर विदेशी खुफिया तंत्रों को बेचकर हमें कंगाल बना रही है ?
१२-यदि हम गरीब होते तो क्या अंग्रेज यहाँ खाक छानने आये थे. राबर्ट क्लाइव ९०० पानी वाले जहाज भरकर सोना चांदी हीरे सिर्फ कलकत्ता से कैसे ले गया था ?
१३- यदि हम गरीब होते तो हमारे देश दे आजादी के बाद ४०० लाख करोड़ रुपया विदेशी बांको में कैसे जमा हो गया है ?
१४- हमें शुरू से ही भीख मागने की आदत पद जाये , इसके लिए हमारे स्वाभिमानी बच्चो को स्कूल में ही कटोरा पकड़ाकर खरबों की लूट जारी है, मिड दे मील दे रहे है ?
१५- हम काहिल हो जाए , इसके लिए नरेगा योजना में खरबों की लूट का पैसा कौन दे रहा है, हम गरीब इसे दे रहे है.
१६- राजस्व के नाम पर हर गली में शराब की दुकान खोली जा रही, औसत में यदि १०० रुपये की विक्री होती है तो सरकार सिर्फ २ रुपये मिलते है, क्या गरीब को शराब परोसी जाती है, भारत में ३५००० शराब की अधिकृत दुकाने है, यह लूट का पैसा क्या गरीब दे सकता है ?

सोचिये.....
हमारा देश गरीब एकदम नहीं है, इसे विदेशी शिकंजे में फंसाकर टीवी और अखबार के जरिये गरीब प्रचारित किया जाता है, जिससे हमारा रुपया १ डालर में ५० मिले क्योकि हमारे नेताओ का पैसा विदेशी बैंको मे डालर में जमा है. भारत के लोग हफ्ते में ९० घन्टा काम करते है, अमेरिका के लोग हफ्ते में ३० घंटा काम करते है, हमारे १ रुपये में ३ डालर मिलाना चाहिए, यह बहुत बड़ी साजिस है की हम आयात के नाम पर जो भी हथियार, उपकरण आदि खरीदते है, उसका ५० गुम दाम अदा करते है औए बाद में वह पैसा विदेशी खातो में जमा हो जाता है कमीशन के बतौर. चीजो को गहराई से जाने और अपने इस महान देश को बचाने की मुहीम शामिल हों, हमारा देश यदि भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाए तो हम विकसित ही नहीं, दुनिया के सबसे धनी देश हो जाये.

इन गाँवों में आज भी संस्कृत बोलते हैं लोग ?

क्या आप जानते कि भारत वर्ष के इन गाँवों में आज भी संस्कृत बोलते हैं लोग ?

संस्कृत संस्कार देने वाली भाषा है... अत: उसके नित्य उच्चारण से व्यक्ति के जीवन जीने...की शैली अधिक भारतीय हो जाती है, उच्च आदर्शों के निकट पहुँचने में सहायक बनती है...

आज देश में ऐसे अनेक गाँवों में लोगों की आपसी बोलचाल की भाषा संस्कृत बन चुकी है। इन गाँवों में दैनिक जीवन का सम्पूर्ण वार्तालाप सिर्फ संस्कृत में ही किया जा रहा है। ऐसे ग्रामों में सबसे महत्वपूर्ण नाम है कर्नाटक के मुत्तुर व होसहल्ली और मध्य प्रदेश के झिरी गाँव का, जहाँ सही अर्थों में संस्कृत जन-जन की भाषा बन चुकी है। इन ग्रामों में लगभग 95 प्रतिशत लोग संस्कृत में ही वार्तालाप करते हैं। मुतरु, होसहल्ली व झिरी के अलावा मध्य प्रदेश के मोहद और बधुवार तथा राजस्थान के गनोडा भी ऐसे ग्राम हैं जहाँ दैनिक जीवन का अधिकांश वार्तालाप संस्कृत में ही किया जाता है। सिर्फ एक-दूसरे का हालचाल जानने के लिए ही नहीं बल्कि खेतों में हल चलाने, दूरभाष पर बात करने, दुकान से सामान खरीदने और यहाँ तक कि नाई की दुकान पर बाल कटवाते समय भी संस्कृत में ही वार्तालाप देखने को मिलता है। लोगोंके घरों में रसोईघर में रखे मसालों व अन्य सामान के डिब्बों पर नाम संस्कृत में ही लिखे मिलते हैं। इन ग्रामों में अब यह कोई नहीं पूछता कि संस्कृत सीखने से उन्हें क्या फायदा होगा? इससे नौकरी मिलेगी या नहीं? संस्कृत अपनी भाषा है और इसे हमें सीखना है, बस यही भाव लोगों के मन में है...

*** कर्नाटक का मुत्तुरु ग्राम...

मुत्तुरु ग्राम कर्नाटक के शिमोगा शहर से लगभग 10 किमी.दूर है। तुंग नदी के किनारे बसे इस ग्राम में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है। लेकिन आधुनिक समय की आवश्यकताओं के अनुरूप इसे संवारा है संस्कृत भारती ने। लगभग 2000 की जनसंख्या और 250 परिवारों वाले इस ग्राम में प्रवेश करते ही सबसे पहला सवाल जो आपसे पूछा जाएगा वह होगा…”भवत: नाम किम्?” (आपका नाम क्या है?) “काफी वा चायं किम् इच्छति भवान्?” (काफी या चाय, क्या पीने की इच्छा है?) “हैलो” के स्थान पर “हरि ओम्” और “कैसे हो” के स्थान पर “कथा अस्ति?” का ही उच्चारण यहाँ सुनने को मिलता है।

यहाँ बच्चे, बूढ़े, युवा और महिलाएं- सभी बहुत ही सहज रूप से संस्कृत में बात करते हैं। ग्राम के मुस्लिम परिवारों में भी संस्कृत उतनी ही सहजता से बोली जाती है जितनी हिन्दू घरों में। मुस्लिम बालक कहीं भी संस्कृत में श्लोक गुनगुनाते मिल जाएंगे। यहाँ तक कि क्रिकेट खेलते हुए और आपस में झगड़ते हुए भी बच्चे संस्कृत में ही बात करते हैं। ग्राम के सभी घरों की दीवारों पर लिखे हुए बोध वाक्य संस्कृत में ही हैं। ऐसा ही एक बोधवाक्य है-”मार्गे स्वच्छता विराजते। ग्रामे सुजना: विराजते।” अर्थात् सड़क पर स्वच्छता होने से यह पता चलता है कि गाँव में अच्छे लोग रहते हैं। कुछ घरों के बाहर स्पष्ट शब्दों में लिखा हुआ है कि “इस घर में आप संस्कृत में वार्तालाप कर सकते हैं।” यह संकेत वास्तव में बाहर से आने वाले लोगों के लिए है, गाँव वालों के लिए नहीं।

इस गाँव में बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में होती है। बच्चों को छोटे-छोटे गीत संस्कृत में सिखाये जाते हैं। चंदा मामा जैसी छोटी-छोटी कहानियाँ भी संस्कृत में ही सुनाई जाती हैं। बात सिर्फ छोटे बच्चों की ही नहीं है, गाँव के उच्च शिक्षा प्राप्त युवक प्रदेश के बड़े शिक्षा संस्थानों व विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ा रहे हैं और कुछ साफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं। इस ग्राम के 150 से अधिक युवक व युवतियाँ “आईटी इंजीनियर” हैं और बाहर काम करते हैं। विदेशों से भी अनेक व्यक्ति यहाँ संस्कृत सीखने आते हैं।

*** उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का बावली ग्राम...

संस्कृत सीखने के लिए व्यक्ति का पढ़ा-लिखा होना आवश्यक नहीं है। बिल्कुल अनपढ़ व्यक्ति भी संस्कृत सीख सकता है। ऐसे हजारों लोग हैं जिन्हें पहले बिल्कुल भी अक्षर ज्ञान नहीं था लेकिन अब वे संस्कृत की अच्छी समझ रखते हैं। अब तो ऐसे लोग अन्य लोगों को भी संस्कृत सिखा-पढ़ा रहे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है - उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का बावली ग्राम । यहाँ के 50 वर्षीय जयप्रकाश कभी स्कूल नहीं गये, लेकिन संस्कृत भारती के संभाषण वर्गों से संस्कृत सीखकर वे न केवल अब फर्राटेदार संस्कृत बोलते हैं बल्कि अपने ग्राम के 25 से अधिक युवकों व प्रौढ़ों को संस्कृत सिखा रहे हैं।

*** मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले का मोहद ग्राम...

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मोहद ग्राम की आबादी लगभग 3500 है। यहाँ भी एक हजार से अधिक लोग संस्कृत में वार्तालाप करते हैं। इस ग्राम में संस्कृत भारती के कई शिविर आयोजित हो चुके हैं जिनमें स्कूलों के बच्चे ही नहीं गाँव की अनपढ़ व कम पढ़ी-लिखी महिलाएं भी संस्कृत में वार्तालाप करती हैं। मोहद ग्राम पंचायत की ओर से ही विशेष प्रयास करके संस्कृत सीखने और सिखाने का काम होता है। यहाँ संस्कृत समाज के किसी वर्ग विशेष या जाति विशेष की भाषा नहीं है बल्कि कथित वंचित घरों में भी उतने ही सम्मान और गौरव की अनुभूति के साथ बोली जाती है जितनी कथित उच्च परिवारों में।

*** मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले का झिरी ग्राम...

झिरी (जिला राजगढ़, मध्य प्रदेश) कोई सामान्य ग्राम नहीं है। यह उत्तर भारत का ऐसा दिव्य ग्राम है जहाँ समस्त ग्रामवासी संस्कृत में वार्तालाप करते हैं। यहाँ तो खेतों में हल चलाने वाला किसान भी अपने बैलों को संस्कृत में ही आदेश देता है और बैल उसके आदेश का पालन भी करते हैं।

*** राजस्थान के बाँसवाड़ा जिले का गनोडा ग्राम...

गनोडा ग्राम अनुसूचित जनजाति का गाँव माना जाता है और राजस्थान के बाँसवाड़ा जिले में स्थित है। इस ग्राम में संस्कृत धीरे-धीरे सबकी जीवनशैली का अंग बनती जा रही है। विद्यालयों में जाने वाले लगभग सभी छात्र कुछ-कुछ संस्कृत वाक्यों को बोलते ही हैं। ग्राम की मूल भाषा वागदी है जिसका स्थान अब संस्कृत ले रही है।

इन छोटे छोटे गाँवों के अनपढ़ और कम पढ़े-लिखे लोगों ने सिद्ध कर दिया है कि संस्कृत मात्र पंडितों की ही भाषा नहीं है, बल्कि यह तो लोगों के ह्रदय में बसी हुई है और हमारी गौरवशाली संस्कृति की प्रतीक है...
:--वंदे मातृ संस्कृति...

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