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मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

बाल कृष्ण अपनी बाल लीलाओ से सब का मन मोह लेते है

एक बार बालक श्रीकृष्ण अपनें सखाओं संग खेल रहे थे. श्रीदामा, बलराम तथा मनसुखा आदि उनके साथ रसमयी क्रीड़ा का आनन्द ले रहे थे. इस खेल में एक बालक दूसरे के हाथ में ताली मारकर भागता और दूसरा उसे पकड़ने का प्रयास करता था. बलदाऊ को लगा कही कान्हा को चोट न लग जाये. इसीलिए उन्होनें कान्हा को समझाया- मोहन तुम मत भागो. अभी तुम छोटे हो, तुम्हारे पैरों में चोट लग जायेगी.

मोहन मासूमियत से बोले- दाऊ ! मेरा शरीर बहुत बलशाली है. मुझे दौड़ना भी आता है. इसीलिये मुझे अपने साथियों संग खेलने दो. मेरी जोड़ी श्रीदामा हैं. वह मेरे हाथ में ताली मारकर भागेगा और मैं उसे पकडूँगा.

श्रीदामा ने कहा - 'नहीं', तुम मेरे हाथ में ताली मारकर भागो. मैं तुम्हें पकड़ता हूँ. इस प्रकार कान्हा श्रीदामा के हाथ में ताली मारकर भागे और श्रीदामा उन्हें पकड़ने के लिये उनके पीछे-पीछे दौड़ा. थोड़ी दूर जाकर ही उसने श्याम को पकड़ लिया.

नटखट कान्हा बोले - मैं तो जानबूझ खड़ा हो गया हूँ. तुम मुझे क्यों छूते हो. ऐसा कहकर कान्हा अपनी बात को सही साबित करने के लिये, लगे श्रीदामा से झगड़ने. श्रीदामा भी क्रोधित होकर झगड़ने लगे कृष्ण से.

श्री दामा जी बोले- पहले तो तुम जोश में आकर दौड़ने खड़े हो गये और जब हार गये तो झगड़ा करने लगे. यह सब दृश्य बलदाऊ देख रहे थे.

वह दोनों के झगड़े के बीच ही बोलने लगे- श्रीदामा ! इसके तो न माता हैं ना पिता ही. नन्दबाबा और यशोदा मैया ने इसे कही से मोल लिया है. यह हार जीत तनिक भी नही समझता. स्वयं हारकर सखाओं से झगड़ पड़ता है. ऐसा कहकर, उन्होंने कन्हैया को ड़ांटकर घर भेज दिया.

कान्हा रोते हुये घर पहुँचे. उन्हें रोता देख मैया यशोदा कान्हा को गोद मे ले, रोने का कारण पूछने लगी.
मईया - लाला ! क्या बात है रो क्यों रहे हो ?
कान्हा ने रोते हुये कहा- मैया ! दाऊ ने आज मुझे बहुत ही चिढ़ाया. वे कहते हैं तू मोल लिया हुआ है, यशोदा मैया ने भला तुझे कब जन्म दिया. मैया मैं क्या करुँ, इसे क्रोध के मारे खेलने नही जाता. दाऊ ने मुझसे कहा कि बता तेरी माता कौन है? तेरे पिता कौन हैं? नन्द बाबा तो गौरे हैं और यशोदा मईया भी गोरी हैं. फ़िर तू सांवला कैसे हो गया? ग्वाल बाल भी मेरी चुटकी लेते हैं और मुस्कुराते हैं. तुमने भी केवल मुझे ही मारना सीखा है, दाऊ दादा को तो कभी डाँटती भी नहीं.
मैया ने कन्हैया के आँसू पोछते हुये कहा- मेरे प्यारे कान्हा. बलराम तो चुगलखोर है, वह जन्म से ही धूर्त है. तू तो मेरा दुलारा लाल है. काला कहकर दाऊ तुम्हें इसलिये चिढ़ाता है क्योंकि तुम्हारा शरीर तो इन्द्र-नीलमणि से भी सुन्दर है, भला दाऊ तुम्हारी बराबरी क्या करेगा. मेरे लाल, मेरे कान्हा. मैं गायों की शपथ लेकर कहती हूँ कि मैं ही तुम्हारी माता हूँ और तुम ही मेरे पुत्र हो. इस तरह से बाल कृष्ण अपनी बाल लीलाओ से सब का मन मोह लेते है

दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता

बहुत पुरानी और परखी हुई कहावत है कि हर दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है। सेठ जी को यकीन नहीं आया, सो साधू से बहस कर बैठे। देखो, नतीजा क्या हुआ।


एक सेठ जी आंगन में बैठे कुछ दाने चबा रहे थे। तभी एक साधू उधर से निकला। उसने सेठजी से कहा - ‘कुछ भिक्षा मिल जाए।’ सेठी जी बोले- ‘जाओ-जाओ।’
साधू बोला - ‘भूखा हूं। खाने के लिए कुछ दाने ही दे दो।’
सेठ जी बोले, ‘दाने मुफ्त में नहीं मिलते। बच जाएंगे, तो दे
दूंगा।’
साधू बोला, ‘एक व्यक्ति सभी दाने कैसे खा सकता है? दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है।’

यह सुनकर सेठजी को क्रोध आ गया। वे बोले, ‘अपने आपको बहुत ही ज्ञानी समझते हो। इधर मेरे हाथ में पकड़े इस दाने को देखो और बताओ कि इस पर किसका नाम लिखा है?’ साधू ने मुस्कराते हुए कहा, ‘इस पर कौए का नाम लिखा है। यह दाना उसी का आहार है।’ सेठ जी बोले, ‘देखो मैं इसे खा जाऊंगा। कहां है तुम्हारा कौआ?’

ऐसा कहते हुए सेठ जी ने वह दाना मुंह में डाला, पर वह मुंह में न जाकर उनकी नाक में घुस गया। सेठजी की सांस रुक गई। लोग इकट्ठा हो गए। उन्हें वैद्य जी के पास ले गए। वैद्य जी ने फौरन चिमटी से सेठ जी की नाक में फंसा दाना निकाल दिया और पास ही फेंक दिया। तभी एक कौआ आया और वह दाना चोंच में दबाकर उड़ गया। साधू भी उस समय वहीं पर था। वह बोला - ‘देखो, उस दाने पर कौए का ही नाम लिखा था।’
सेठ जी की अकल ठिकाने आ गई। उन्होंने साधू से माफी मांगी और अपने घर ले जाकर आदरपूर्वक भोजन कराया।

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