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शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

12-12-2012 के दिन ग्रहों का प्रभाव :- कौशल पाण्डेय

12-12-2012 के दिन ग्रहों का प्रभाव :- कौशल पाण्डेय
12-12-12- तारीख के मोह से बचें कही ये पसन्द आजीवन के लिए दुखदायी न हो जाये .
माया सभ्यता के कैलेंडर के अनुसार 12 -12- 2012 को दुनिया के खत्म हो जायेगी ,ऐसा कुछ नहीं होगा ये भविष्यवाणी सही नहीं है।
12-12-12 इस शताब्दी की अनूठी तारीख होगी इस दिन का भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व के लोग बढे हर्ष के साथ इन्तजार कर रहे है क्योंकि आज के दिन किसी को डिलिविरी करवानी है तो किसी को शादी के बंधन में बंधना है , कोई इस दिन वहां लेना चाहता है तो माकन जो की शुभ नहीं होगा .
आइये देखते है ज्योतिष के माध्यम से 12.12.2012 को दिन बुधवार ,कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी है जहां चन्द्रमा पूर्ण क्षीण एवं कमजोर माना जाता है। इसके अलावा वृश्चिक राशि में पहले से ही चार ग्रह सूर्य, राहु, बुध तथा शुक्र चल रहे होंगे। ऐसे में चन्द्रमा का उनके साथ प्रवेश होने पर पांच ग्रहों की युक्ति बनेगी। राहु स्वयं नीच के हैं तथा बुध, शुक्र एवं राहु तीनों चन्द्रमा के शत्रु है तथा सूर्य की परिधि में आने से चन्द्रमा स्वयं अस्त समान हो जाएगा।

कई ज्योतिषी इस दिन को 12-12-12 =9 का योग मान रहे है जो की गलत है,
12-12-2012 का योग 11 =2 होगा .
12-12-2012 का मूलांक 3 और भाग्यक 2 होगा ,3 अंक का स्वामी:- बृहस्पति है . इस दिन बृहस्पति वृष राशी में केतु के साथ रहेगा , भाग्यक 2 अंक है , दो अंक का स्वामी ग्रह चंद्रमा है जो आज के दिन वृश्चिक राशी में सूर्य , बुध, शुक्र एवं राहु के साथ रहेगा, वृश्चिक राशी का चन्द्र अशुभ होता है साथ ही चन्द्र के शत्रु ग्रह बुध, शुक्र एवं राहु की युति होने और भी अशुभ हो गया है ,बारह लग्नों की बारह कुंडलियां बनेगी उनमें वृश्चिक राशि एवं चन्द्र सहित इन पांचों ग्रहों की युक्ति कुंडली के जिस भी भाव में आएगा जातक को उन भावों के फल से विमुख कर देगी।

इस दिन पैदा हुए बच्चे संघर्षशील और डरपोक हो सकते हैं,क्योंकि चन्द्रमा मन एवं मस्तिष्क का कारक होता है और चन्द्र का मानव जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव माना गया है। चन्द्रमा पूर्ण अस्त, क्षीण एवं पाप प्रभाव ग्रस्त आजीवन कुण्डली में रहेगा जिसके परिणाम स्वरूप इस तारीख को पैदा होने वाले शिशुओं के कमजोर मन मस्तिष्क, डरपोक किस्म तथा बीमार रहने एवं जीवन में भारी संघर्ष की स्थिति रहेगी इसलिए आज के दिन जबरजस्ती डिलिविरी करने से बचे .क्योंकि वृश्चिक राशि में ही शुक्र, बुध, चंद्रमा, राहु और सूर्य का पंचग्रही योग बना रहे है .

<<<<विशेष प्रभाव >>>>>
चंद्रमा दिनमान वृश्चिक राशि में है। उस दिन मार्गशीष कृष्ण की चर्तुदशी तिथि भी है। जिस कारण इस दिन अचानक मौसम में परिवर्तन होगा और ठंड बढ़ेगी साथ ही बूंदा बांदी व तेज हवाएं, समुद्र में तूफान आदि का भी योग इस दिन बन रहा है.
इसके अलावा तुला राशि में शनी स्वक्षेत्री है तथा सूर्योदय के समय शनि व्यय भाव में अवस्थित है इसलिए खाद्य पदार्थ, सोना, चांदी, वस्त्र आदि के भाव बढ़ेंगे.
भारत में राजनीतिक विवाद के साथ ही आम जनता पर महंगाई का बोझ बढ़ेगा।
गुजरात में बड़ी उथल-पुथल हो सकती है।
पांच ग्रहों का योग एक साथ एक राशि में शुभ नहीं है। हालांकि इस पर गुरु की दृष्टि बनी रहेगी जिससे कोई बड़ी हानि होने की संभावनाएं नहीं है।
इस दिन अनुराधा नक्षत्र है जिसका स्वामी स्वय शनि देव है जो तुला राशी में चल रहे है ,कार्य-सिद्धि योग सूर्योदय से रात्रि 8.47 तक रहेगा
मूलांक 3 साथ ही बुधवार होने से विद्या ,यात्रा आदि में सफलता मिलेगी
12-12-2012 influence of the planets on the day of: 12-12-12 09968550003-skill Pandey-avoid date of infatuation for these preferences is not cumbersome lifetime said.
According to the Maya civilization's calendar 12-12-2012 will be the end of the world, will be nothing like it is not accurate. 12-12-12 date of this century in the day's unique not only India but also the people of the whole world with its harsh and wait because today is the day to apply for a delivery in the marriage bond is bandhana There is a need to take this day maken the good.
Come see 12.12.2012 through the day Wednesday is astrology, full moon party is where Krishna faded and weak chatudarshi. also in Scorpio Sun, Rahu, already four planets Mercury and Venus are on the moon with them. when the five planets of the vile Rahu and mercury to your own will.The enemy of all is the Moon, Venus and Rahu and the circumference of the Sun will be the moon itself will. this day many astrologers 12-12-12 = total value of 9 are wrong, 12-12-2012 total 11 = 2.
12-12-2012 bhagyak 2, 3 and the radix owns 3 points:-Jupiter. Ketu in this day will remain with Jupiter vrish assured, bhagyak owns two points 2 points, is the day the Planet Moon in Scorpio assured Sun, mercury, Venus and Rahu will, with Scorpio is assured of the enemy of the Lunar Lunar ominous planet Mercury, Venus and Rahu is yuti and also of the sinister twelve, twelve lagnon of Scorpio and them including kundalini will planetary device these celebrated Lunar horoscope which will in a sense of the Jataka Tales from the fruits of those alienated sentiment.

Child born this day sangharshashil and sneaky, because Moon is mind and brain factors and human life were most Lunar impact faded and the full moon came, sin is suffer lifelong Sun sign will result which in effect the date the cause of weak mind brain infants, the sick living & sneaky variety and life situation of conflicts will remain so to avoid jabrajasti delivery day. because the Scorpio Venus, mercury, moon, Rahu and Sun panchagrahi of making yoga. <विशेष प्रभाव="">Scorpio Moon > > > > dinman. chartudshi date of majorities that day Krishna. the reason this day will be a sudden change in the weather freezing drizzle and strong winds, as well as sea storm is the sum of the day etc.
Also Libra is shani in svakshetri and Sunrise is located in foods sat expenses sense, gold, silver, clothing etc. of stream.
Political controversy in India as well as the burden of price rise on the general public. in big upheaval. the sum of the five planets is not a good amount of the master while a large possibilities of loss remain. the day is Anuradha nakshatra Lord Saturn in Libra dev residual hearing is due are on the By night, the Sunrise Yoga-accomplishment will be Wednesday 3 as well as 8.47 from radix lore, travel etc. will succeed</विशेष>

एक पत्र माता पिता का अपनी संतान के लिए

मेरे बच्चे जब तुम हमें एक दिन बूढा और कमज़ोर देखोगे,
तब संयम रखना और हमें समझने की कोशिश करना।


 
 ___अगर हम से खाना खाते वक्त कपड़े गंदे हो जाएं,
अगर हम खुद कपड़े न पहन सकें तो जरा याद करना,
जब बचपन में तुम हमारे हाथ से खाते और कपड़े पहनते थे।

___अगर हम तुमसे बात करते वक्त एक ही बात बार बार दोहराएं तो गुस्सा खाकर हमें मत टोकना,
धैर्य से हमें सुनना, याद करना, कैसे बचपन में कोई कहानी या लोरी तब तक तुम्हे सुनाते थे जब तक तुम सो नहीं जाते थे।

___अगर कभी किसी कारण वश हम न नहाना चाहें तो हमें गंदगी या आलस का हवाला देते हुए मत झिड़कना,
क्योंकि यह उम्र का तकाजा होगा।
याद करना बचपन में तु्म नहाने से बचने के लिए कितने बहाने बनाते थे और हमें तुम्हारे पीछे भागते रहना पड़ता था।

___अगर आज हमें कंप्यूटर या आधुनिक उपकरण चलाने नहीं आते .. तो हम पर झल्लाना नहीं नाहीं शर्मिंदा होना,
समझना कि इन नयी चीजों से हम वाकिफ नहीं हैं और याद करना कि तुम्हे कैसे एक-एक अक्षर हाथ पकड-पकड कर सिखाया था।

___अगर हम कोई बात करते करते कुछ भूल जाएं तो हमें याद करने के लिए मौका देना, हम याद न कर पाएं तो खीझना मत।
हमारे लिए बात से ज़्यादा अहम है बस तुम्हारे साथ होना और ये अहसास कि तुम हमें सुन रहे हो समझ रहे हो।

___अगर हम कभी कुछ न खाना चाहें तो जबरदस्ती मत करना, हम जानते हैं कि हमें कब खाना है और कब नहीं खाना।

___अगर चलते हुए हमारी टांगे थक जाएं और लाठी के बिना हम चल न सकें तो अपना हाथ आगे बढ़ाना,
ठीक वैसे ही जब तुम पहली बार चलना सीखते वक्त लड़खड़ाए थे और हमने तुम्हे थामा था।___
___
एक दिन तुम महसूस करोगे कि हमने अपनी गलतियों के बावजूद तुम्हारे लिए सदा सर्वेश्रेष्ठ ही सोचा,
उसे मुमकिन बनाने की हर संभव कोशिश की।
___
हमारे पास आने पर क्रोध, शर्म या दुख की भावना मन में कभी मत लाना, हमे समझने और वैसे ही मदद करने की कोशिश करना जैसे कि तुम्हारे बचपन में हम किया करते थे।
___
हमे अपनी बाकी की ज़िंदगी प्यार और गरिमा से जीने के लिए तुम्हारे साथ की जरूरत है।
हमारा साथ दो, हम भी तुम्हे मुस्कुराहट और असीम प्यार से जवाब देंगे,
जो हमारे दिल में तुम्हारे लिए हमेशा से रहा है।
बच्चे, हम तुमसे प्यार करते हैं।
~~~~~~~~~ पापा-मम्मी ~~~~~~~~~

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

क्यों हम इस शिक्षा को ढो रहे हैं जो हमें हमारे भारत वासी होने पर ही हीन भावना से ग्रसित कर रही है? आखिर कब तक चलेगा यह सब?

राजा भी कौन कौन से गजनी, तुगलक, ऐबक, लोदी, तैमूर, बाबर, अकबर, सिकंदर जो कि भारतीय थे ही नहीं। राजा विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान गा...यब हैं, इस साजिश के पीछे कौन है...

लेख से पहले आपको एक सच्ची कहानी सुनाना चाहती हूँ। हमारे देश में एक महान वैज्ञानिक हुए हैं प्रो. श्री जगदीश चन्द्र बोस। भारत को और हम भारत वासियों को उन पर बहुत गर्व है। इन्होने सबसे पहले अपने शोध से यह निष्कर्ष निकाला कि मानव की तरह पेड़ पौधों में भी भावनाएं होती हैं। वे भी हमारी तरह हँसते खिलखिलाते और रोते हैं। उन्हें भी सुख दुःख का अनुभव होता है। और श्री बोस के इस अनुसंधान की तरह इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है।

श्री बोस ने शोध के लिये कुछ गमले खरीदे और उनमे कुछ पौधे लगाए। अब इन्होने गमलों को दो भागों में बांटकर आधे घर के एक कोने में तथा शेष को किसी अन्य कोने में रख दिया। दोनों को नियमित रूप से पानी दिया, खाद डाली। किन्तु एक भाग को श्री बोस रोज़ गालियाँ देते कि तुम बेकार हो, निकम्मे हो, बदसूरत हो, किसी काम के नहीं हो, तुम धरती पर बोझ हो, तुम्हे तो मर जाना चाहिए आदि आदि। और दूसरे भाग को रोज़ प्यार से पुचकारते, उनकी तारीफ़ करते, उनके सम्मान में गाना गाते। मित्रों देखने से यह घटना साधारण सी लगती है। किन्तु इसका प्रभाव यह हुआ कि जिन पौधों को श्री बोस ने गालियाँ दी वे मुरझा गए और जिनकी तारीफ़ की वे खिले खिले रहे, पुष्प भी अच्छे दिए।

तो मित्रों इस साधारण सी घटना से बोस ने यह सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार से गालियाँ खाने के बाद पेड़ पौधे नष्ट हो गए। अर्थात उनमे भी भावनाएं हैं। मित्रों जब निर्जीव से दिखने वाले सजीव पेड़ पौधों पर अपमान का इतना दुष्प्रभाव पड़ता है तो मनुष्य सजीव सदेह का क्या होता होगा? वही होता है जो आज हमारे भारत देश का हो रहा है। 500 -700 वर्षों से हमें यही सिखाया पढाया जा रहा है कि तुम बेकार हो, खराब हो, तुम जंगली हो, तुम तो हमेशा लड़ते रहते हो, तुम्हारे अन्दर सभ्यता नहीं है, तुम्हारी कोई संस्कृती नहीं है, तुम्हारा कोई दर्शन नहीं है, तुम्हारे पास कोई गौरवशाली इतिहास नहीं है, तुम्हारे पास कोई ज्ञान विज्ञान नहीं है आदि आदि।

मित्रों अंग्रेजों के एक एक अधिकारी भारत आते गए और भारत व भारत वासियों को कोसते गए। अंग्र जों से पहले ये गालियाँ हमें फ्रांसीसी देते थे, और फ्रांसीसियों से पहले ये गालियाँ हमें पुर्तगालियों ने दीं। इसी क्रम में लॉर्ड मैकॉले का भी भारत में आगमन हुआ। किन्तु मैकॉले की नीति कुछ अलग थी। उसका विचार था कि एक एक अंग्रेज़ अधिकारी भारत वासियों को कब तक कोसता रहेगा? कुछ ऐसी परमानेंट व्यवस्था करनी होगी कि हमेशा भारत वासी खुद को नीचा ही देखें और हीन भावना से ग्रसित रहें।

इसलिए उसने जो व्यवस्था दी उसका नाम रखा Education System. सारा सिस्टम उसने ऐसा रचा कि भारत वासियों को केवल वह सब कुछ पढ़ाया जाए जिससे वे हमेशा गुलाम ही रहें। और उन्हें अपने धर्म संस्कृती से घृणा हो जाए। इस शिक्षा में हमें यहाँ तक पढ़ाया कि भारत वासी सदियों से गौमांस का भक्षण कर रहे हैं। अब आप ही सोचे यदि भारत वासी सदियों से गाय का मांस खाते थे तो आज के हिन्दू ऐसा क्यों नहीं करते? और इनके द्वारा दी गयी सबसे गंदी गाली यह है कि हम भारत वासी आर्य बाहर से आये थे। आर्यों ने भारत के मूल द्रविड़ों पर आक्रमण करके उन्हें दक्षिण तक खदेड़ दिया और सम्पूर्ण भारत पर अपना कब्ज़ा ज़मा लिया। और हमारे देश के वामपंथी चिन्तक आज भी इसे सच साबित करने के प्रयास में लगे हैं।

इतिहास में हमें यही पढ़ाया गया कि कैसे एक राजा ने दूसरे राजा पर आक्रमण किया। इतिहास में केवल राजा ही राजा हैं प्रजा नदारद है, हमारे ऋषि मुनि नदारद हैं। और राजाओं की भी बुराइयां ही हैं अच्छाइयां गायब हैं। आप जरा सोचे कि अगर इतिहास में केवल युद्ध ही हुए तो भारत तो हज़ार साल पहले ही ख़त्म हो गया होता। और राजा भी कौन कौन से गजनी, तुगलक, ऐबक, लोदी, तैमूर, बाबर, अकबर, सिकंदर जो कि भारतीय थे ही नहीं। राजा विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान गायब हैं। इनका ज़िक्र तो इनके आक्रान्ता के सम्बन्ध में आता है। जैसे सिकंदर की कहानी में चन्द्रगुप्त का नाम है। चन्द्रगुप्त का कोई इतिहास नहीं पढ़ाया गया। और यह सब आज तक हमारे पाठ्यक्रमों में है।

इसी प्रकार अर्थशास्त्र का विषय है। आज भी अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले बड़े बड़े विद्वान् विदेशी अर्थशास्त्रियों को ही पढ़ते हैं। भारत का सबसे बड़ा अर्थशास्त्री चाणक्य तो कही है ही नहीं। उनका एक भी सूत्र किसी स्कूल में भी बच्चों को नहीं पढ़ाया जाता। जबकि उनसे बड़ा अर्थशास्त्री तो पूरी दुनिया में कोई नहीं हुआ। दर्शन शास्त्र में भी हमें भुला दिया गया। आज भी बड़े बड़े दर्शन शास्त्री अरस्तु, सुकरात, देकार्ते को ही पढ़ रहे हैं जिनका दर्शन भारत के अनुसार जीरो है।

अरस्तु और सुकरात का तो ये कहना था कि स्त्री के शरीर में आत्मा नहीं होती वह किसी वस्तु के समान ही है, जिसे जब चाहा बदला जा सकता है। आपको पता होगा १९५० तक अमरीका और यूरोप के देशों में स्त्री को वोट देने का अधिकार नहीं था। आज से २०-२२ साल पहले तक अमरीका और यूरोप में स्त्री को बैंक अकाउंट खोलने का अधिकार नहीं था। साथ ही साथ अदालत में तीन स्त्रियों की गवाही एक पुरुष के बराबर मानी जाती थी। इसी कारण वहां सैकड़ों वर्षों तक नारी मुक्ति आन्दोलन चला तब कहीं जाकर आज वहां स्त्रियों को कुछ अधिकार मिले हैं। जबकि भारत में नारी को सम्मान का दर्जा दिया गया। हमारे भारत में किसी विवाहित स्त्री को श्रीमति कहते हैं। कितना सुन्दर शब्द हैं श्रीमती जिसमे दो देवियों का निवास है। श्री होती है लक्ष्मी और मति यानी बुद्धि अर्थात सरस्वती। हम औरत में लक्ष्मी और सरस्वती का निवास मानते हैं। किन्तु फिर भी हमारे प्राचीन आचार्य दर्शन शास्त्र से गायब हैं। हमारा दर्शन तो यह कहता है कि पुरुष को सभी शक्तियां अपनी माँ के गर्भ से मिलती हैं और हम शिक्षा ले रहे हैं उस आदमी की जो यह मानता है कि नारी में आत्मा ही नहीं है।

चिकत्सा के क्षेत्र में महर्षि चरक, शुषुक, धन्वन्तरी, शारंगधर, पातंजलि सब गायब हैं और पता नहीं कौन कौन से विदेशी डॉक्टर के नाम हमें रटाये जाते हैं। आयुर्वेद जो न केवल चिकित्सा शास्त्र है अपितु जीवन शास्त्र है वह आज पता नहीं चिकित्सा क्षेत्र में कौनसे पायदान पर आता है?

बच्चों को स्कूल में गणित में घटाना सिखाते समय जो प्रश्न दिया जाता है वह कुछ इस प्रकार होता है- पापा ने तुम्हे दस रुपये दिए, जिसमे से पांच रुपये की तुमने चॉकलेट खा ली तो बताओ तुम्हारे पास कितने रुपये बचे? यानी बच्चों को घटाना सिखाते समय चॉकलेट कम्पनी का उपभोगता बनाया जा रहा है। हमारी अपनी शिक्षा पद्धति में यदि घटाना सिखाया जाता तो प्रश्न कुछ इस प्रकार का होता-

पिताजी ने तुम्हे दस रुपये दिए जिसमे से पांच रुपये तुमने किसी गरीब लाचार को दान कर दिए तो बताओ तुम्हारे पास कितने रुपये बचे? जब बच्चा बार बार इस प्रकार के सवालों के हल ढूंढेगा तो उसके दिमाग में कभी न कभी यह प्रश्न जरूर आएगा कि दान क्या होता है, दान क्यों करना चाहिए, दान किसे करना चाहिए आदि आदि? इस प्रकार बच्चे को दान का महत्त्व पता चलेगा। किन्तु चॉकलेट खरीदते समय बच्चा यही सोचेगा कि चॉकलेट कौनसी खरीदूं कैडबरी या नेस्ले?

अर्थ साफ़ है यह शिक्षा पद्धति हमें नागरिक नहीं बना रही बल्कि किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी का उपभोगता बना रही है। और उच्च शिक्षा के द्वारा हमें किसी विदेशी यूनिवर्सिटी का उपभोगता बनाया जा रहा है या किसी वेदेशी कम्पनी का नौकर। मैंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में कभी यह नहीं सीखा कि कैसे मै अपने तकनीकी ज्ञान से भारत के कुछ काम आ सकूँ, बल्कि यह सीखा कि कैसे मै किसी Multi National Company में नौकरी पा सकूँ, या किसी विदेशी यूनिवर्सिटी में दाखिला ले सकूँ।

तो मित्रों सदियों से हमें वही सब पढ़ाया गया कि हम कितने अज्ञानी हैं, हमें तो कुछ आता जाता ही नहीं था, ये तो भला हो अंग्रेजों का कि इन्होने हमें ज्ञान दिया, हमें आगे बढ़ना सिखाया आदि आदि। यही विचार ले कर लॉर्ड मैकॉले भारत आया जिसे तो यह विश्वास था कि स्त्री में आत्मा नहीं होती और वह हमें शिक्षा देने चल पड़ा। हम भारत वासी जो यह मानते हैं कि नारी में देवी का वास है उसे मैकॉले की इस विनाशकारी शिक्षा की क्या आवश्यकता है?

हमारे प्राचीन ऋषियों ने तो यह कहा था कि दुनिया में सबसे पवित्र नारी है और पुरुष में पवित्रता इसलिए आती है क्यों कि उसने नारी के गर्भ से जन्म लिया है। जो शिक्षा मुझे मेरी माँ से जोडती है उस शिक्षा को छोड़कर मुझे एक ऐसी शिक्षा अपनानी पड़ी जिसे मेरी माँ समझती भी नहीं। हम तो हमारे देश को भी भारत माता कहते हैं। किन्तु हमें उस व्यक्ति की शिक्षा को अपनाना पड़ा जो यह मानता है कि मेरी माँ में आत्मा ही नहीं है। और एक ऐसी शिक्षा पद्धति जो हमें नारी को पब, डिस्को और बीयर बार में ले जाना सिखा रही है, क्यों?

आज़ादी से पहले यदि यह सब चलता तो हम मानते भी कि ये अंग्रेजों की नीति है, किन्तु आज क्यों हम इस शिक्षा को ढो रहे हैं जो हमें हमारे भारत वासी होने पर ही हीन भावना से ग्रसित कर रही है? आखिर कब तक चलेगा यह सब?

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