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गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

हमारा विश्वास, हमारी आशा कहाँ है,

किसी जंगल मे एक गर्भवती हिरणी थी जिसका प्रसव होने को ही था . उसने एक तेज धार वाली नदी के किनारे घनी झाड़ियों और घांस के पास एक जगह देखी जो उसे प्रसव हेतु सुरक्षित स्थान लगा.
अचानक उसे प्रसव पीड़ा शुरू होने लगी, लगभग उसी समय आसमान मे काले काले बादल छा गए और घनघोर बिजली कड़कने लगी जिससे जंगल मे आग भड़क उठी .
वो घबरा गयी उसने अपनी दायीं और देखा लेकिन ये क्या वहां एक बहेलिया उसकी और तीर का निशाना लगाये हुए था, उसकी बाईं और भी एक शेर उस पर घात लगाये हुए उसकी और बढ़ रहा था अब वो हिरणी क्या करे ?,
वो तो प्रसव पीड़ा से गुजर रही है ,
अब क्या होगा?,
क्या वो सुरक्षित रह सकेगी?,
क्या वो अपने बच्चे को जन्म दे सकेगी ?,
क्या वो नवजात सुरक्षित रहेगा?,
या सब कुछ जंगल की आग मे जल जायेगा?,
अगर इनसे बच भी गयी तो क्या वो बहेलिये के तीर से बच पायेगी ?
या क्या वो उस खूंखार शेर के पंजों की मार से दर्दनाक मौत मारी जाएगी?
जो उसकी और बढ़ रहा है,
उसके एक और जंगल की आग, दूसरी और तेज धार वाली बहती नदी, और सामने उत्पन्न सभी संकट, अब वो क्या करे?
लेकिन फिर उसने अपना ध्यान अपने नव आगंतुक को जन्म देने की और केन्द्रित कर दिया .
फिर जो हुआ वो आश्चर्य जनक था .
कडकडाती बिजली की चमक से शिकारी की आँखों के सामने अँधेरा छा गया, और उसके हाथो से तीर चल गया और सीधे भूखे शेर को जा लगा . बादलो से तेज वर्षा होने लगी और जंगल की आग धीरे धीरे बुझ
गयी.
इसी बीच हिरणी ने एक स्वस्थ शावक को जन्म दिया .
ऐसा हमारी जिन्दगी मे भी होता है, जब हम चारो और से समस्याओं से घिर जाते है, नकारात्मक विचार हमारे दिमाग को जकड लेते है, कोई संभावना दिखाई नहीं देती , हमें कोई एक उपाय करना होता है.,
उस समय कुछ विचार बहुत ही नकारात्मक होते है, जो हमें चिंता ग्रस्त कर कुछ सोचने समझने लायक नहीं छोड़ते .
ऐसे मे हमें उस हिरणी से ये शिक्षा मिलती है की हमें अपनी प्राथमिकता की और देखना चाहिए, जिस प्रकार हिरणी ने सभी नकारात्मक परिस्तिथियाँ उत्पन्न होने पर भी अपनी प्राथमिकता "प्रसव "पर ध्यान केन्द्रित किया, जो उसकी पहली प्राथमिकता थी. बाकी तो मौत या जिन्दगी कुछ भी उसके हाथ मे था ही नहीं, और उसकी कोई भी क्रिया या प्रतिक्रिया उसकी और गर्भस्थ बच्चे की जान ले सकती थी
उसी प्रकार हमें भी अपनी प्राथमिकता की और ही ध्यान देना चाहिए .
हम अपने आप से सवाल करें,
हमारा उद्देश्य क्या है, हमारा फोकस क्या है ?,
हमारा विश्वास, हमारी आशा कहाँ है,
ऐसे ही मझधार मे फंसने पर हमें अपने इश्वर को याद करना चाहिए ,
उस पर विश्वास करना चाहिए जो की हमारे ह्रदय मे ही बसा हुआ है .
जो हमारा सच्चा रखवाला और साथी है..

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

क्या आप जानते हैं......

क्या आप जानते हैं......

नेत्रज्योति बढ़ाने के लिएःत्रिफला चूर्ण को रात्रि में पानी में भीगोकर, सुबह छानकर उस पानी से आँखें धोने से नेत्रज्योति बढ़ती है।

कान में पीब(मवाद) होने परः शुद्ध सरसों या तिल के तेल में लहसुन की कलियों को पकाकर 1-2 बूँद सुबह-शाम कान में डालने से फायदा होता है।

हिचकीः हिचकी बन्द न हो रही हो तो पुदीने के पत्ते या नींबू चूसें।

पपीते खाने से क्या फायदा है पपीता में पोसक तत्व भरपूर मात्रा में होता है, जिससे आपकी त्वचा में निखार आता है। त्वचा जवां नजर आती है, झुर्रियाँ कम पड़ती हैं, त्वचा में पतलापन व सूखापन नहीं होता। यह त्वचा को जरूरी पोषण देता है।

केसर बड़े काम की चीज है केसर गर्भवती महिलाओं के लिए वरदान है। केसर इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है। इससे गर्भस्थ शिशु का अच्छा विकास होता है, यानी शारीरिक और मानसिक विकास। यह माँ को शक्तिशाली बनाता है। केसर सुरक्षित डिलिवरी के वास्ते बेहद जरूरी है। यह स्त्रियों की शारीरिक सुंदरता को बनाये रखता है। त्वचा में निखार लाता है। गर्भवती महिलाओं को रोज जरा सा केसर डाल कर दूध उबाल कर पीना चाहिए।

नारियल तेल से आपकी सुंदरता बढ़ती है। यह हमारी त्वचा को खूबसूरत बनाता है। यह त्वचा का रूखापन दूर करता है। यदि एड़ियाँ फटी हों, तो रात को लगा कर सो जायें, कुछ दिनों में ठीक हो जायेगा। यह त्वचा के दाग-धब्बे व निशान को साफ करता है। बालों को चमकदार बनाता है, उन्हें पोषण देता है। चेहरे व शरीर पर नारियल तेल की हल्के हाथों से मालिश करें। यह झुर्रियों को उम्र से पहले आने से रोकता है।

छाछ : क्या आप जानते हैं कि छाछ गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में अमृत है। इसे सेंधा नमक, भुना जीरा, काली मिर्च डाल कर लें। यह पाचन क्रिया ठीक रखने और शरीर को फुर्तीला रखने में सहायक है।

दवा से बेहतर व्यायाम है? क्या छोटे, क्या बड़े, क्या मोटे, क्या पतले, क्या किसी खास बीमारी के शिकार हैं यानी रक्तचाप मधुमेह में विशेषज्ञ की सलाह से व्यायाम करें। हर तरह के विकार को दूर कर चुस्त, दुरुस्त व फुर्तीला बनायेगा। व्यायाम का रूटीन बनाये रखें।

आहार को ताकतवर कैसे बनाया जाये? रोजाना आहार में फल-सब्जियों को जगह अवश्य दें।चोकर सहित (मोटा आटा) पुराना तथा बिना पॉलिश का चावल खायें।डिब्बा बंद आहार की जगह घर का सादा ताजा भोजन करें।थोड़ी मात्रा में सूखे मेवे अवश्य लें। नमक जरा कम लें।प्रतिदिन 10 गिलास पानी पियें।सब्जियों को पकाने में सरसों के तेल का इस्तेमाल करें।

“ जानिए विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया ”


क्या आप जानते हैं कि.... विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था......???
लेकिन... ये जानने से पहले..... हम एक झलक नालंदा विश्वविधालय के अतीत और उसके गौरवशाली इतिहास पर डाल लेते हैं....... फिर, बात को समझने में आसानी होगी....!

यह प्राचीन भारत में उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्व विख्यात केन्द्र था ।महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे ।
यह... वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं।
अनेक पुराभिलेखों और सातवीं सदी में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था तथा प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था |
इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० ई. को प्राप्त है और इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियोंका पूरा सहयोग मिला । यहाँ तक कि गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा... और, इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला तथा स्थानीय शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला ।
आपको यह जानकार ख़ुशी होगी कि यह विश्व का प्रथम पूर्णतःआवासीय विश्वविद्यालय था और विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10 ,000 एवं अध्यापकों की संख्या 2 ,000 थी । इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे और, नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे ।
इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं सदी तक अंतरर्राष्ट्रीयख्याति रही थी ।
उसी समय बख्तियार खिलजी नामक एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क मुस्लिम लूटेरा था |
उसी मूर्ख मुस्लिम ने इसने 1199 इस्वी में इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया। हुआ कुछ यूँ था कि..... उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था और एक बार वह बहुत बीमार पड़ा जिसमे उसके मुस्लिम हकीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली मगर वह ठीक नहीं हो सका और मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया | तभी उसे किसी ने उसको सलाह दी नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाय | हालाँकि उसे यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई हिन्दू और भारतीय वैद्य उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाया जाए फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए उनको बुलाना पड़ा लेकिन उस बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी कि मैं एक मुस्लिम हूँ इसीलिए, मैं तुम काफिरों की दी हुई कोई दवा नहीं खाऊंगा लेकिन, किसी भी तरह मुझे ठीक करों वर्ना मरने के लिए तैयार रहो |
यह सुनकर.... बेचारे वैद्यराज को रातभर नींद नहीं आई | उन्होंने बहुत सा उपाय सोचा और सोचने के बाद वे वैद्यराज अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए और उस बख्तियार खिलजी से कहा कि इस कुरान की पृष्ठ संख्या ... इतने से इतने तक पढ़ लीजिये ठीक हो जायेंगे |
बख्तियार खिलजी ने वैसे ही कुरान को पढ़ा और ठीक हो गया तथा उसकी जान बच गयी |
इससे उस पागल को कोई ख़ुशी नहीं बल्कि बहुत झुंझलाहट हुई और उसे बहुत गुस्सा आया कि उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है ??? और उस एहसानफरामोश .... बख्तियार खिलजी ने बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले उनको पुरस्कार देना तो दूर उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया और. पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया ताकि फिर कभी कोई ज्ञान ही ना प्राप्त कर सके |
कहा जाता है कि...... वहां इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग लगने के बाद भी .... तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके जलती रहीं..!
सिर्फ इतना ही नहीं...... उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाले |
अब आप भी जान लें कि..... वो एहसानफरामोश मुस्लिम बख्तियार खिलजी कुरान पढ़ के ठीक कैसे हो गया था |
हुआ दरअसल ये था कि जहाँ हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते ना ही कभी, थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते हैं जबकि मुस्लिम ठीक उलटा करते हैं और वे कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के ही पलटते हैं बस वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था | इस तरह वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज के दवा को चाट गया और ठीक हो गया परन्तु उसने इस एहसान का बदला अपने संस्कारों को प्रदर्शित करते हुए नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया |
हद तो ये है कि आज भी हमारी बेशर्म और निर्ल्लज सरकारें उस पागल और एहसान फरामोश बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं |
शर्मिन्दिगी नाम की चीज ही नहीं बची है.... इन तुष्टिकरण में आकंठ डूबी हमारी तथाकथित सेकुलर सरकारों में |
http://www.bhaskar.com/article/BIH-PAT-world-famous-nalanda-university-4365777-PHO.html
http://hi.wikipedia.org/wiki/विश्वप्रसिद्ध_नालंदा_विश्वविद्यालय_को_क्यों_नष्टकिया

शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

अपने लिए तो सभी करते हैं दूसरों के लिए कर के देखो

"साँवरिया"
वेसे तो आप सभी साँवरिया सेठ के बारे मैं जानते होंगे | साँवरिया सेठ प्रभु श्री कृष्ण का ही एक रूप है जिन्होंने भक्तो के लिए कई सारे रूप धरकर समय समय पर भक्तों की इच्छा पूरी की है | कभी सुदामा को तीन लोक दान करके, कभी नानी बाई का मायरा भरके, कभी कर्मा बाई का खीचडा खाकर, कभी राम बनके कभी श्याम बनके, प्रभु किसी न किसी रूप में भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं | और आप, मैं और सभी मनुष्य तो केवल एक निमित्त मात्र है | भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि "मैं सभी के लिए समान हूँ " मनुष्य को अपने कर्मो का फल तो स्वयं ही भोगना पड़ता है | आप सभी लोग देखते हैं कि कोई मनुष्य बहुत ही उच्च परिवार जेसे टाटा बिरला आदि में जन्म लेता है और कोई मनुष्य बहुत ही निम्न परिवार जेसे आदिवासी आदि के बीच भी जन्म लेता है कोई मनुष्य जन्म से ही बहुत सुन्दर होता है कि कोई भी उस पर मोहित हो जाये और कोई मनुष्य इतना बदसूरत पैदा होता है कि लोग उसको देखकर दर जाए, किसी के पास तो इतना धन होता है कि वो धन का बिस्तर बनवाकर भी उसपर सो सकता है और कोई दाने दाने का भी मोहताज़ है, कोई शारीरिक रूप से इतना बलिष्ठ होता है कि कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता और इसके विपरीत कोई इतना अपंग पैदा होता है जिसको देखकर हर किसी को दया आ जाये | कई बच्चे जन्म लेते ही मार दिए जाते है या जला दिए जाते है या किसी ना किसी अनीति का शिकार हो जाते है जबकि उन्होंने तो कुछ भी नहीं किया
तो फिर नियति का एसा भेदभाव क्यों ? क्या भगवान् को उन पर दया नहीं आती ?
आप सोच रहे होंगे कि इसका मतलब भगवान ने भेदभाव किया, नहीं !!!
आपने देखा होगा एक ही न्यायाधीश किसी को फांसी कि सजा देता है और किसी को सिर्फ अर्थ दंड देकर छोड़ देता है तो क्या न्यायाधीश भेदभाव करता है ? नहीं ना ! हम जानते हैं कि हर व्यक्ति को उसके अपराध के अनुसार दंड मिलता है
बिलकुल उसी प्रकार मनुष्य का जन्म, सुन्दरता, कुल आदी उसके कर्मों के अनुसार ही निर्धारित होते है इसलिए मनुष्य को अपने कर्मों का आंकलन स्वयं ही कर लेना चाहिए और कलियुग में तो पग पग पर पाप स्वतः ही हो जाते है किन्तु पुण्य करने के लिए प्रयत्न करने पड़ते हैं
इसीलिए 
"अपने  लिए  तो  सभी  करते  हैं  दूसरों  के  लिए  कर  के  देखो "
मैं एक  बहुत  ही  साधारण  इंसान  हूँ | जीवन में  कई  सारे  अनुभव  से  गुजरते  हुए  में  आज  अपने  आप  को  आप  लोगों  के  सामने  स्थापित  कर  पाया  हूँ . बचपन  से  लेकर  आज  तक  आप सभी लोगो ने अपने जीवन में कई  लोगो  को  भूखे  सोते  देखा होगा, कई  लोग  ऐसे भी होते हैं  जिनके  पास  पहनने  को  कपडे  नहीं  है, किसी  को  पढना  है  पर  किताबें  नहीं  है, कई  बालक  नहीं  चाहते  हुए  भी  किस्मत  के  कारण भीख  मांगने  को  मजबूर  हो जाते है | इन  सभी  परिस्थितियों  को  हम सभी अपने जीवन में भी कही ना कही देखते  ही हैं लेकिन बहुत कम लोग ही उन पर अपना ध्यान केन्द्रित करते है या उन लोगो के बारे में सोच पाते है किन्तु भगवान् की  दया  से  आज  मुझे  उन  सभी  की  मदद  करने  की  प्रेरणा जागृत  हुई  और  इसलिए  आज  मेने  एक  संकल्प  लिया  है  उन अनाथ भाई बहिनों की  मदद  करने  का, जिनका  इस  दुनिया  में  भगवान् के अलावा कोई  नहीं  है और मेने निश्चय किया है कि उन  भाइयों  की  मुझसे  जिस  भी  प्रकार  कि  मदद  होगी  मैं  करूँगा | मैं  इसमें  अपना  तन -मन -धन  मुझसे  जितना  होगा  बिना  किसी  स्वार्थ  के  दूंगा . आज  दिनांक 31-07-2009 से  सावन  के  महीने में भगवान का  नाम  लेकर  इस अभियान हेतु इस वेबसाइट की शुरुआत  कर  रहा  हूँ | और इस वेबसाइट को बनाने  का  मेरा और कोई  मकसद  नहीं  है  बस  मैं  सिर्फ  उन  निस्वार्थ  लोगो  से  संपर्क  रखना  चाहता  हूँ  जो  इस  तरह  की  सोच  रखते  है  और दुसरो को मदद करना चाहते है मुझे  उनसे  और  कुछ  नहीं  चाहिए  बस  मेरे  इस  संकल्प  को  पूरा  करने  के  लिए  मुझे  अपनी  शुभकामनाये  और  आशीर्वाद  ज़रूर  देना  ताकि  मैं  बिना   किसी  रुकावट  के  गरीब  लोगो  की  मदद  कर  सकूँ .
 ये  वेबसाइट  आप  जेसे  लोगों  से  संपर्क  रखने  के  उद्देश्य  से  बनाई  है
अगर  आप  मेरे  इस  काम  मैं  सहयोग  करना  चाहते  हैं  तो  अपनी श्रद्धानुसार तन-मन-धन से जिस भी प्रकार आप से हो सके आपके स्वयं के क्षेत्र में ही  आप  अपने  घर  मैं  जो  भी  चीज़  आपके  काम  नहीं  आ  रही  हो  जैसे   - कपडे , बर्तन , किताबे इत्यादि  को  फेंके  नहीं  और  उन्हें  किसी  गरीब  के  लिए  इकठ्ठा  कर  के  रखे  और  यदि  कोई  पैसे  की  मदद  करने  की  इच्छा  रखता  हो  तो  वो  भी  खुद  ही  रोजाना  अपनी  जेब खर्च  में  से  बचत  करना  शुरू  कर  दे  ताकि  वो भी किसी  गरीब के काम आ  सके  इस  तरह  एक  दिन  बचाते  बचाते  बिना किसी अतिरिक्त खर्च के आपके पास बहुत  सारे कपडे , बर्तन , किताबें और  पैसे  हो  जायेंगे  जो  की  उन  लोगो  के  काम  आ  जायेंगे  जिनके  पास  कुछ  भी  नहीं है |
कलियुग में पाप तो स्वतः हो जाते हैं किन्तु पुण्य करने के लिए प्रयत्न करने पड़ते है |
"अपने  लिए  तो  सभी  करते  हैं  दूसरों  के  लिए  कर  के  देखो कलियुग में राष्ट्र सेवा, गौ सेवा, और दीन दुखियों की सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य का काम है "साँवरिया" का मुख्य उद्देश्य सम्पूर्ण भारत में गरीबों, दीन दुखियों, असहाय एवं निराश्रितों के उत्थान के लिए यथाशक्ति प्रयास करना है "साँवरिया" के अनुसार यदि भारत का हर सक्षम व्यक्ति अपने बिना जरुरत की वस्तु/कपडे/किताबे और अपनी धार्मिक कार्यों के लिए की गयी बचत आदि से सिर्फ एक गरीब असहाय व्यक्ति की सहायतार्थ देना शुरू करे तो भारत से गरीबी, निरक्षरता, बेरोजगारी और असमानता को गायब होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा | आज भी देश में ३० करोड़ से ज्यादा भाई बहिन भूखे सोते हैं अतः भारत के उच्च परिवारों की जन्मदिन/विवाह समारोह एवं कार्यक्रमों में बचे हुए भोजन पानी जो फेंक दिया जाता है यदि वही भोजन उसी क्षेत्र मैं भूखे सोने वाले गरीब और असहाय व्यक्तियों तक पहुंचा दिया जाये तो आपकी खुशिया दुगुनी हो जाएगी और आपके इस प्रयास से देश में भुखमरी से मरने वाले लोगो की असीम दुआए आपको मिलेगी तथा देश में भुखमरी के कारण होने वाली लूटपाट/ चोरी/ डकेती जैसी घटनाएँ कम होकर देश में भाईचारे की भावना फिर से पनपने लगेगी और एक दिन एसा भी आएगा जब देश में कोई भी भूखा नहीं सोयेगा |
 "साँवरिया" का लक्ष्य ऐसे भारत का सपना साकार करना है जहाँ न गरीबी/ न निरक्षरता/न आरक्षण/ न असमानता/ न भुखमरी और न ही भ्रष्टाचार हो| चारो ओर सभी लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से सक्षम और विकसित हो, जहाँ डॉलर और रुपया की कीमत एक समान हो और मेरा भारत जो पहले भी विश्वगुरु था उसका गौरव फिर से पहले जैसा हो जाये |                       
     "सर्वे  भवन्तु  सुखिनः " 

--

Jai shree krishna

Thanks,

Regards,

कैलाश चन्द्र  लढा(भीलवाड़ा)www.sanwariya.org
sanwariyaa.blogspot.com 
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कुछ चुनिंदा कहावतों का संकलन

कुछ चुनिंदा कहावतों का संकलन

by sudhirvyas
भगवान ने मनुष्य को हाथ-पांव दिए हैं जिससे वह अपना काम स्वयं कर ले। जो व्यक्ति दूसरे पर निर्भर रहता है उसका कहीं आदर नहीं होता. सच कहा है- ' आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए ' :-
1. कल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होयेगी, बहुरि करेगा कब॥
2. नाकों चने चाबाना दाँत खटटे कर देना
3. अब पछताए क्या होत जब चिडिया चुग गयी खेत
4.  ओछे की प्रीत, बालू की भीत।
5. जैसे उदई, तैसेई भान, न उनके चुटिया, न उनके कान।
(इसका अर्थ इस रूप में लगाया जाता है जब किसी भी काम को करने के लिए एक जैसे स्वभाव के लोग मिल जायें और काम उनके कारण बिगड़ जाये।)
6. थोथा चना बाजे घना।
(कम योग्यता वाले लोग ज्यादा शोर मचाते हैं)
7. तीतर पारवी बादरी, विधवा काजर देय।
वे बरसे वे घर करें, ईमें नयी सन्देह
8. धूनी दीजे भांग की, बबासीर नहीं होय।
जल में घोलो फिटकरी, शौच समय नित धोय।
9. निन्नें पानी जो पियें, हर्र भूंजके खांय।
दूदन ब्यारी जो करें, तिन घर वैद्य न जॉय।
10. अधजल गगरी छलकत जाय।
भरी गगरिया चुप्पे जाय।
11. बन्दर जोगी अगिन जल, सूजी सुआ सुनार।
जे दस होंय ना आपनें, कूटी कटक कलार।
12. तीतर पारवी बादरी, विधवा काजर देय।
वे बरसे वे घर करें, ईमें नयी सन्देह
13. धूनी दीजे भांग की, बबासीर नहीं होय। जल में घोलो फिटकरी, शौच समय नित धोय।
14. निन्नें पानी जो पियें, हर्र भूंजके खांय। दूदन ब्यारी जो करें, तिन घर वैद्य न जॉय।
15. आस पराई जो तके जीवित ही मर जाए
16. बन्दर जोगी अगिन जल, सूजी सुआ सुनार, जे दस होंय ना आपनें, कूटी कटक कलार।
17. वेल पत्र शाखा नहीं, पंक्षी बसे ना डार। वे फल हमखों भेजियो, सियाराम रखवार।
18. काबुल गये मुगल बन आये, बोलन लागे वानी। आव-आव कर मर गये, खटिया तर रओ पानी।
19. मन मोती मूंगा मतो, ढ़ोगा मठ गढ़ ताल। दल-मल बाजौ बन्धुआ, घर फुटे वेहाल
20.  पय-पान-रस-पानहीं, पान दान सम्मान। जे दस मीटे चाहिए, साव-राज-दीवान।
21. कोदन की रोटी, और कल्लू लुगाई। पानी के मइरे में, राम की का थराई
22. आस-पास रबी बीच में खरीफ
     नून-मिर्च डाल के, खा गया हरीफ।
23. सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै।
24. खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।
25. पानी को धन पानी में, नाक कटे बेईमानी में।
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मैं..मेरा वैचारिक ‘वाद’ और समय….

मैं..मेरा वैचारिक ‘वाद’ और समय….

by sudhirvyas
मेरा हीरो मैं खुद हूँ , मेरा अपना वैचारिक 'वाद' है ...जिंदा हूँ ना, अंधा नहीं.. सोच बाकी है, थोप के पीछे नहीं...
" हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट "
छोटे मोटों को मैं कभी घास नहीं डालता,'बड़े बड़े'  मुझे घास नहीं डालते...कारण...डर..!!
' ऊँचे पानी न टिके, नीचे ही ठहराय
नीचा हो सो भरिए पिए, ऊँचा प्यासा जाय '
पर डर तो हमेशा हर जगह हर समय कायम था, कायम है,,कायम रहेगा,क्योंकि ...
" तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय
कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय '
मित्रों ,, मैं तो रमता जोगी हूँ, मेरी अपनी स्वीकार्यता है, भीड़ भले पीछे नहीं पर बोल, विचार ही अपने में संपूर्ण सक्षम हैं, फैलते रहते हैं यही कम है..? यह तो प्रभु आशीर्वाद है, मेरे लिये तो यही सच्चा क्रांतिकारी कदम है...
" जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम नहिं वहाँ काम ।
दोनों कबहूँ नहिं मिले, रवि रजनी इक धाम "
किंतु मेरा समय अभी नहीं, यहाँ नहीं, अभी झुंड और मानसिकताऐं उहापोह में ही बटीं पड़ी हैं,सब ओर शांति है,, अभी सबको आनंद करने दो...
" जब ही नाम ह्रदय धरयो, भयो पाप का नाश
मानो चिनगी अग्नि की, परि पुरानी घास "
कही, सुनाई मेरी जब समझ आ जायेगी ,तब ना शांति होगी, ना निर्लिप्तता और ना ही ठूंसे विचारों की विचारधाराएं ..तब राष्ट्र ही सर्वप्रथम होगा और आक्रमण ही बचाव का सशक्त साधन ....
" सुख सागर का शील है, कोई न पावे थाह
शब्द बिना साधु नही, द्रव्य बिना नहीं शाह "
समय है, अभी समय है, बहुत समय है .. बृहस्पतिवार को ही अवकाश घोषित होनें में बहुत समय है,क्योंकि अभी राष्ट्रधर्म सिर्फ भाईचारा और वसुधैव कुटुंबकम से बडे शाश्वत झूठ से घिरा है ..पर राष्ट्रवाद और राष्ट्रधर्म तो प्रकृति की भांति कड़ा है, कठोर है, लचीला नहीं..सो प्राकृतिक न्याय में समय है, धीरज धरो...मैं भी धीरज का ही ग्राही हूँ .. समय लिख रहा है सबका हिसाब....!!
" फल कारण सेवा करे, करे न मन से काम
कहे कबीर सेवक नहीं, चहै चौगुना दाम "
जब मेरी बात 'आत्मप्रशंसा' और आलोचना के बिल्लौरी चश्में उतर जाने के बाद पढो तो समझ आ जायेगा कि हम कहां खड़े है ही.. वन्दे मातरम्
जहँ गाहक ता हूँ नहीं, जहाँ मैं गाहक नाँय मूरख यह भरमत फिरे, पकड़ शब्द की छाँय....!!
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे..!!
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