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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

रावण का चमत्कार


श्री राम के नाम से पत्थरो के तैरने की news
जब लंका पहुँची ,

तब वहाँ की public में काफी gossip हुआ
कि भैया जिसके नाम
से ही पत्थर तैरने लगें , वो आदमी क्या गज़ब
होगा।इस तरह
की बेकार की अफ़वाहों से परेशान रावण ने
तैश में आकर
announce करवा दिया कि कल रावण के नाम
लिखे हुए पत्थर
भी पानी में तिराये जायेंगे। और अगले दिन
लंका में public
holiday declare कर दिया गया।निश्चित
दिन और समय पर
सारी population रावण का चमत्कार देखने
पहुँच गयी।Set
time पर रावण अपने भाई - बँधुओं ,
पत्नियों तथा staff के
साथ वहाँ पहुँचे और एक भारी से पत्थर पर
उनका नाम
लिखा गया। Labor लोगों ने पत्थर
उठाया और उसे समुद्र में
डाल दिया -- पत्थर सीधा पानी के भीतर !
सारी public इस
सब को साँस रोके देख रहे थी जबकी रावण
लगातार मन ही मन
में मँत्रोच्चारण कर रहे थे। अचानक, पत्थर
वापस surface पर
आया और तैरने लगा। Public पागल हो गयी ,
और 'लँकेश
की जय' के कानफोड़ू नारों ने आसमान
को गुँजायमान कर दिया।
एक public celebration के बाद रावण अपने
लाव लश्कर के
साथ वापस अपने महल चले गये और public
को भरोसा हो गया कि ये राम - वाम
तो बस ऐसे ही हैं , पत्थर
तो हमारे महाराज रावण के नाम से भी तिरते
हैं।पर उसी रात
को मँदोदरी ने notice किया कि रावण bed
में लेटे हुए बस
ceiling को घूरे जा रहे थे।“ क्या हुआ स्वामी ?
फिर से
acidity के कारण नींद नहीं आ रही क्या ?”
eno दराज मे
पडी है ले कर आऊँ ? - मँदोदरी ने पूछा।“ मँदु !
रहने दो ,*
आज तो इज़्ज़त बस लुटते लुटते बच गयी।
आइन्दा से ऐसे
experiment नहीं करूंगा। " ceiling
को लगातार घूर रहे रावण
ने जवाब दिया।मँदोदरी चौंक कर उठी और
बोली , “
ऐसा क्या हो गया स्वामी ?”रावण ने अपने
सर के नीचे से हाथ
निकाला और छाती पर रखा , “ वो आज
सुबह याद है पत्थर
तैरा था ?”मँदोदरी ने एक curious smile के
साथ हाँ मे सर
हिलाया।“ पत्थर जब पानी में नीचे
गया था , उसके साथ साथ
मेरी साँस भी नीचे चली गयी थी। " रावण ने
कहा।इसपर
confused मँदोदरी ने कहा , “ पर पत्थर वापस
ऊपर
भी तो आ गया था ना । वैसे ऐसा कौन
सा मँत्र पढ़ रहे थे आप
जिससे पानी में नीचे गया पत्थरवापस आकर
तैरने लगा ?”इस
पर रावण ने एक लम्बी साँस ली और बोले , “
मँत्र-वँत्र कुछ
नहीं पढ़ रहा था बल्कि बार बार बोल
रहा था कि 'हे पत्थर !
तुझे राम की कसम , PLEASE डूबियो मत भाई
!! जय श्री राम !!

महाशिवरात्रि व्रत कथा:-

आज महाशिवरात्रि है , आज के दिन रखे जाने वाले व्रत का अपना अलग ही महत्व् है ..

महाशिवरात्रि व्रत कथा:-

महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है । शिवरात्रि न केवल व्रत है, बल्कि त्यहार और उत्सव भी है. इस दिन भगवान भोलेनाथ का कालेश्वर रूप प्रकट हुआ था. महाकालेश्वर शिव की वह शक्ति हैं जो सृष्टि के अंत के समय प्रदोष काल में अपनी तीसरी नेत्र की ज्वाला से सृष्टि का अंत करता हैं। महादेव चिता की भष्म लगाते हैं, गले में रूद्राक्ष धारण करते हैं और नंदी बैल की सवारी करते हैं. भूत, प्रेत, पिशाच शिव के अनुचर हैं. ऐसा अमंगल रूप धारण करने पर भी महादेव अत्यंत भोले और कृपालु हैं जिन्हें भक्ति सहित एक बार पुकारा जाय तो वह भक्त की हर संकट को दूर कर देते हैं. महाशिवरात्रि की कथा में शिव के इसी दयालु और कृपालु स्वभाव का परिचय मिलता है.

एक शिकारी था. शिकारी शिकार करके अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता था.एक दिन की बात है शिकारी पूरे दिन भूखा प्यासा शिकार की तलाश में भटकता रहा परंतु कोई शिकार हाथ न लगा. शाम होने को आई तो वह एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर बैठ गया. वह जिस पेड़ पर बैठा था उस वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था. रात्रि में व्याधा अपना धनुष वाण लिए शिकार की तलाश में बैठा था और उसे शिकार भी मिला परंतु निरीह जीव की बातें सुनकर वह उन्हें जाने देता. चिंतित अवस्था में वह बेल की पत्तियां तोड़ तोड़ कर नीचे फेंकता जाता. जब सुबह होने को आई तभी शिव जी माता पार्वती के साथ उस शिवलिंग से प्रकट होकर शिकारी से बोले आज शिवरात्रि का व्रत था और तुमने पूरी रात जागकर विल्वपत्र अर्पण करते हुए व्रत का पालन किया है इसलिए आज तक तुमने जो भी शिकार किए हैं और निर्दोष जीवों की हत्या की है मैं उन पापों से तुम्हें मुक्त करता हूं और शिवलोक में तुम्हें स्थान देता हूं. इस तरह भगवान भोले नाथ की कृपा से उस व्याधा का परिवार सहित उद्धार हो गया.

महाशिवरात्रि महात्मय एवं व्रत विधान :-

शिवरात्रि की बड़ी ही अनुपम महिमा है. जो शिवभक्त इस व्रत का पालन करते हैं उन्हें चाहिए कि फाल्गुन कष्ण पक्ष की चतुदर्शी यानी शिवरात्रि के दिन प्रात: उठकर स्नान करें फिर माथे पर भष्म अथवा श्रीखंड चंदन का तिलक लगाएं. हाथ में अक्षत, फूल, मु्द्रा और जल लेकर शिवरात्रि व्रत का संकल्प करें. गले में रूद्राक्ष धारण करके शिवलिंग के समीप ध्यान की मुद्रा में बैठकर भगवान शिव का ध्यान करें। शांतचित्त होकर भोलेनाथ का गंगा जल से जलाभिषेक करें. महादेव को दुग्ध स्नान बहुत ही पसंद है अत: दूध से अभिषेक करें. महादेव को फूल, अक्षत, दुर्वा, धतूरा, बेलपत्र अर्पण करें। शिव जी को उक्त पदार्थ अर्पित करने के बाद हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें.

शिवरात्रि के दिन रूद्राष्टक और शिवपुराण का पाठ सुनें और सुनाएं. रात्रि में जागरण करके नीलकंठ कैलशपति का भजन और गुणगान करना चाहिए. अगले दिन भोले शंकर की पूजा करने के बाद पारण कर अन्न जल ग्रहण करना चाहिए. इस प्रकार महाशिवरात्रि का व्रत करने से शिव सानिघ्य प्राप्त होता है.

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