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गुरुवार, 22 मई 2014

अगर आप दूसरों पर.. अच्छाई करोगे तो.. आपके साथ भी.. अच्छा ही होगा ..!!

एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था,
एक दिन उसका कोई
सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग
लेगा...
पहला दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उसने पानी का एक
गिलास माँगा....
लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक...... बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया...
" कितने पैसे दूं?"
लड़के ने पूछा.
" पैसे किस बात के?"
लड़की ने जवाव में कहा.
"माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए."
"तो फिर मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ." जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकी थी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था....
सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़
गयी. लोकल डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया...
विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्बे का नाम सुना, उसकी आँखों में
चमक आ गयी...
वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए
जमीन-आसमान एक कर देगा....
उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी.
डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस
लड़की के इलाज का बिल लिया....
उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया. लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरागयी...
उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगी...
फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पैन से लिखे नोट पर गयी...
जहाँ लिखा था, "एक गिलास दूध द्वारा इस बिल
का भुगतान किया जा चुका है." नीचे उस नेक डॉक्टर
होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे.
ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू टपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर
कहा, " हे भगवान..! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद..
आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों के द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है."
अगर आप दूसरों पर.. अच्छाई करोगे तो.. आपके साथ भी.. अच्छा ही होगा ..!!

यहां अक्सर गोले,गेंद की शक्ल की बिजलियां देखी जाती हैं- Dr. Sudhir Vyas

एक और अत्यंत रोचक जानकारी आप मित्रों से शेयर कर रहा हूँ -
रूस के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है वोल्गोग्राद ओबलस्त (इलाका), यहां बहुत से ऐसे स्थान हैं जिन्हें लेकर लोगों में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी यहां के निवासी सुनाते आए हैं ..!
कई ऐतिहासिक पुस्तकों में भी इनका उल्लेख मिलता है, पहेलियों और रहस्यों से भरे ये स्थान पुराविदों, इतिहासकारों और क्षेत्रविदों के अध्ययन का विषय हमेशा से रहे हैं अब स्थानीय प्रशासन ने यहां की अदभुत विशेषताओं की वजह से यहाँ पर्यटन-स्थलियां विकसित करने का फैसला किया है..!
यहां दोन नदी के तट पर चाक पत्थर की पहाडियां हैं, एल्टन नाम की रोगहर गुणों वाली झील है, इस इलाके में सराय-बेक नाम की प्राचीन नगरी है| माना जाता है कि यह “स्वर्णिम ओर्दा” नामक राज्य की राजधानी थी,, यहीं पर है वह बस्ती जिसमें स्तेपान राज़िन और येमेल्यान पुगाचोव जैसे विद्रोहियों का जन्म हुआ था ,, लोग इस बस्ती को “बाज का घरौंदा” कहते हैं,, तीन सौ साल तक यहां जितने भी बालक पैदा होते रहे उन सब ने बड़े होकर आज़ादी और न्याय की लड़ाई का नेतृत्व किया| पुराविदों की खोजें यह दिखाती हैं कि यहाँ कभी सरमाती और सुमेर कबीले रहते थे..!!
यहां अंतरिक्षीय आगंतुकों (एलियन/परग्रही) के बारे में भी अनेक किस्से-कहानियां प्रचलित हैं, बीसवीं सदी के आरंभ में यहां एक उल्का-पिंड गिरा था, आज तक इसके टुकड़ों को विशेषज्ञ खोज रहे हैं,, कहते हैं कि जहां यह उल्का-पिंड गिरा था वहां तब से अंतरिक्षीय ऊर्जा संकेंद्रित होने लगी है और यहां आजकल रात को विचित्र किरणें दिखती हैं..!!
वोल्गोग्राद ओबलस्त इलाके का एक और रहस्यमय स्थान है “मेदवेदित्सक्या ग्रिदा” (भालुई श्रृंखला), इस टीलों की श्रृंखला में कई असाधारण परिघटनाएं होती रहती हैं जिनकी कोई व्याख्या अब तक वैज्ञानिक नहीं कर पाए हैं| यहां का एक सबसे रहस्यमय स्थान है “गोला बिजलियों” यानि गेंदनुमा बिजली की ढलान,, यहां अक्सर गोले,गेंद की शक्ल की बिजलियां देखी जाती हैं, इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि इनका “व्यवहार” ऐसा होता है मानो ये विवेकसम्पन्न यानि बुद्धिमान हों और चुनाव संपन्न हो कि किस पर और कहां पर गिरना है और कहां व किस पर नहीं गिरनाहैं.. पूरी दुनिया में गेंद / गोला नुमा बिजली बस यहीं पाई जाती हैं और यह वैश्विक रूप से पैरानॉर्मल व मौसम विभागों का आधिकारिक दस्तावेजों द्वारा मानना है।

by Dr. Sudhir Vyas

“अपने लिए तो सभी करते हैं दूसरों के लिए कर के देखो “

“साँवरिया”

आप सभी साँवरिया सेठ के बारे मैं जानते होंगे | साँवरिया सेठ प्रभु श्री कृष्ण का ही एक रूप है जिन्होंने भक्तो के लिए कई सारे रूप धरकर समय समय पर भक्तों की इच्छा पूरी की है | कभी सुदामा को तीन लोक दान करके, कभी नानी बाई का मायरा भरके, कभी कर्मा बाई का खीचडा खाकर, कभी राम बनके कभी श्याम बनके, प्रभु किसी न किसी रूप में भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं | और आप, मैं और सभी मनुष्य तो केवल एक निमित्त मात्र है | भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि “मैं सभी के लिए समान हूँ ” मनुष्य को अपने कर्मो का फल तो स्वयं ही भोगना पड़ता है | आप सभी लोग देखते हैं कि कोई मनुष्य बहुत ही उच्च परिवार जेसे टाटा बिरला आदि में जन्म लेता है और कोई मनुष्य बहुत ही निम्न परिवार जेसे आदिवासी आदि के बीच भी जन्म लेता है कोई मनुष्य जन्म से ही बहुत सुन्दर होता है कि कोई भी उस पर मोहित हो जाये और कोई मनुष्य इतना बदसूरत पैदा होता है कि लोग उसको देखकर दर जाए, किसी के पास तो इतना धन होता है कि वो धन का बिस्तर बनवाकर भी उसपर सो सकता है और कोई दाने दाने का भी मोहताज़ है, कोई शारीरिक रूप से इतना बलिष्ठ होता है कि कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता और इसके विपरीत कोई इतना अपंग पैदा होता है जिसको देखकर हर किसी को दया आ जाये | कई बच्चे जन्म लेते ही मार दिए जाते है या जला दिए जाते है या किसी ना किसी अनीति का शिकार हो जाते है जबकि उन्होंने तो कुछ भी नहीं किया तो फिर नियति का एसा भेदभाव क्यों ?
क्या भगवान् को उन पर दया नहीं आती ?

आप सोच रहे होंगे कि इसका मतलब भगवान ने भेदभाव किया, नहीं !!!
आपने देखा होगा एक ही न्यायाधीश किसी को फांसी कि सजा देता है और किसी को सिर्फ अर्थ दंड देकर छोड़ देता है
तो क्या न्यायाधीश भेदभाव करता है ?
नहीं ना !
हम जानते हैं कि हर व्यक्ति को उसके अपराध के अनुसार दंड मिलता है बिलकुल उसी प्रकार मनुष्य का जन्म, सुन्दरता, कुल आदी उसके कर्मों के अनुसार ही निर्धारित होते है इसलिए मनुष्य को अपने कर्मों का आंकलन स्वयं ही कर लेना चाहिए और कलियुग में तो पग पग पर पाप स्वतः ही हो जाते है किन्तु पुण्य करने के लिए प्रयत्न करने पड़ते हैं इसीलिए
“अपने लिए तो सभी करते हैं दूसरों के लिए कर के देखो “

मैं एक बहुत ही साधारण इंसान हूँ | जीवन में कई सारे अनुभव से गुजरते हुए में आज अपने आप को आप लोगों के सामने स्थापित कर पाया हूँ . बचपन से लेकर आज तक आप सभी लोगो ने अपने जीवन में कई लोगो को भूखे सोते देखा होगा, कई लोग ऐसे भी होते हैं जिनके पास पहनने को कपडे नहीं है, किसी को पढना है पर किताबें नहीं है, कई बालक नहीं चाहते हुए भी किस्मत के कारण भीख मांगने को मजबूर हो जाते है | इन सभी परिस्थितियों को हम सभी अपने जीवन में भी कही ना कही देखते ही हैं लेकिन बहुत कम लोग ही उन पर अपना ध्यान केन्द्रित करते है या उन लोगो के बारे में सोच पाते है किन्तु भगवान् की दया से आज मुझे उन सभी की मदद करने की प्रेरणा जागृत हुई और इसलिए आज मेने एक संकल्प लिया है उन अनाथ भाई बहिनों की मदद करने का, जिनका इस दुनिया में भगवान् के अलावा कोई नहीं है और मेने निश्चय किया है कि उन भाइयों की मुझसे जिस भी प्रकार कि मदद होगी मैं करूँगा | मैं इसमें अपना तन -मन -धन मुझसे जितना होगा बिना किसी स्वार्थ के दूंगा . आज दिनांक 31-07-2009 से सावन के महीने में भगवान का नाम लेकर इस अभियान हेतु इस वेबसाइट की शुरुआत कर रहा हूँ | और इस वेबसाइट को बनाने का मेरा और कोई मकसद नहीं है बस मैं सिर्फ उन निस्वार्थ लोगो से संपर्क रखना चाहता हूँ जो इस तरह की सोच रखते है और दुसरो को मदद करना चाहते है मुझे उनसे और कुछ नहीं चाहिए बस मेरे इस संकल्प को पूरा करने के लिए मुझे अपनी शुभकामनाये और आशीर्वाद ज़रूर देना ताकि मैं बिना किसी रुकावट के गरीब लोगो की मदद कर सकूँ .

Sawariya Key chain frontये वेबसाइट आप जेसे लोगों से संपर्क रखने के उद्देश्य से बनाई है
अगर आप मेरे इस काम मैं सहयोग करना चाहते हैं तो अपनी श्रद्धानुसार तन-मन-धन से जिस भी प्रकार आप से हो सके आपके स्वयं के क्षेत्र में ही आप अपने घर मैं जो भी चीज़ आपके काम नहीं आ रही हो जैसे – कपडे , बर्तन , किताबे इत्यादि को फेंके नहीं और उन्हें किसी गरीब के लिए इकठ्ठा कर के रखे और यदि कोई पैसे की मदद करने की इच्छा रखता हो तो वो भी खुद ही रोजाना अपनी जेब खर्च में से बचत करना शुरू कर दे ताकि वो भी किसी गरीब के काम आ सके इस तरह एक दिन बचाते बचाते बिना किसी अतिरिक्त खर्च के आपके पास बहुत सारे कपडे , बर्तन , किताबें और पैसे हो जायेंगे जो की उन लोगो के काम आ जायेंगे जिनके पास कुछ भी नहीं है |

कलियुग में पाप तो स्वतः हो जाते हैं किन्तु पुण्य करने के लिए प्रयत्न करने पड़ते है | ये वेबसाइट आप जेसे लोगों से संपर्क रखने के उद्देश्य से बनाई है
अगर आप मेरे इस काम मैं सहयोग करना चाहते हैं तो अपनी श्रद्धानुसार तन-मन -धन से जिस भी प्रकार आप से हो सके आपके स्वयं के क्षेत्र में ही आप अपने घर मैं जो भी चीज़ आपके काम नहीं आ रही हो जैसे – कपडे , बर्तन , किताबे इत्यादि को फेंके नहीं और उन्हें किसी गरीब के लिए इकठ्ठा कर के रखे और यदि कोई पैसे की मदद करने की इच्छा रखता हो तो वो भी खुद ही रोजाना अपनी जेब खर्च में से बचत करना शुरू कर दे ताकि वो भी किसी गरीब के काम आ सके इस तरह एक दिन बचाते बचाते बिना किसी अतिरिक्त खर्च के आपके पास बहुत सारे कपडे , बर्तन , किताबें और पैसे हो जायेंगे जो की उन लोगो के काम आ जायेंगे जिनके पास कुछ भी नहीं है |

कलियुग में पाप तो स्वतः हो जाते हैं किन्तु पुण्य करने के लिए प्रयत्न करने पड़ते है |

“अपने लिए तो सभी करते हैं दूसरों के लिए कर के देखो ” – Kailash Chandra Ladha

कलियुग में राष्ट्र सेवा, गौ सेवा, और दीन दुखियों की सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य का काम है “साँवरिया” का मुख्य उद्देश्य सम्पूर्ण भारत में गरीबों, दीन दुखियों, असहाय एवं निराश्रितों के उत्थान के लिए यथाशक्ति प्रयास करना है “साँवरिया” के अनुसार यदि भारत का हर सक्षम व्यक्ति अपने बिना जरुरत की वस्तु/कपडे/किताबे और अपनी धार्मिक कार्यों के लिए की गयी बचत आदि से सिर्फ एक गरीब असहाय व्यक्ति की सहायतार्थ देना शुरू करे तो भारत से गरीबी, निरक्षरता, बेरोजगारी और असमानता को गायब होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा | आज भी देश में ३० करोड़ से ज्यादा भाई बहिन भूखे सोते हैं अतः भारत के उच्च परिवारों की जन्मदिन/विवाह समारोह एवं कार्यक्रमों में बचे हुए भोजन पानी जो फेंक दिया जाता है यदि वही भोजन उसी क्षेत्र मैं भूखे सोने वाले गरीब और असहाय व्यक्तियों तक पहुंचा दिया जाये तो आपकी खुशिया दुगुनी हो जाएगी और आपके इस प्रयास से देश में भुखमरी से मरने वाले लोगो की असीम दुआए आपको मिलेगी तथा देश में भुखमरी के कारण होने वाली लूटपाट/ चोरी/ डकेती जैसी घटनाएँ कम होकर देश में भाईचारे की भावना फिर से पनपने लगेगी और एक दिन एसा भी आएगा जब देश में कोई भी भूखा नहीं सोयेगा |

“साँवरिया” का लक्ष्य ऐसे भारत का सपना साकार करना है जहाँ न गरीबी/ न निरक्षरता/न आरक्षण/ न असमानता/ न भुखमरी और न ही भ्रष्टाचार हो| चारो ओर सभी लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से सक्षम और विकसित हो, जहाँ डॉलर और रुपया की कीमत एक समान हो और मेरा भारत जो पहले भी विश्वगुरु था उसका गौरव फिर से पहले जैसा हो जाये |

“सर्वे भवन्तु सुखिनः ”

तभी अच्छे दिन वास्तविकता में आ पायेंगे।

सुप्रभातम् मित्रों,
"गर तू सच्चा नागरिक है तो...
जगह जगह यहाँ वहाँ तू मत थूक
मेहनत के पैसे को धुएँ मे मत फूँक
गलियों कूंचो मे तू कचरा मत फैला
हो सके तो खुद उठा अपना मैला ।
गर तू सच्चा नागरिक है तो...
बात बात पर तू प्रशासन को मत कोस
खुद काम कर जगा अपने अंदर का जोश
न खिला किसी को ,न खुद खा तू घूस
खूब चूसा है देश को,अब और मत चूस। "

आईये इन लाईनों को ही अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकता और जिम्मेदारियां मानते हुऐ सम्मानित, सबल और सुरक्षित भारतदेश के नागरिक होने का सपना साकार करें, तभी अच्छे दिन वास्तविकता में आ पायेंगे।
मंगलकामनाएँ मित्रों

दुनिया की सब से प्राचीन और गहरी झील

मित्रों कुछ रोचक जानकारी दुनिया की सबसे रहस्यमय झील बैकाल के बारे में आप सब से शेयर कर रहा हूँ -
बैकाल झील या बयकाल झील दुनिया की सब से प्राचीन और गहरी झील है।
यह झील 3 करोड़ वर्ष से लगातार बनी हुई है और इसकी औसत गहराई 744.40 मीटर है।
हालाँकि कैस्पियन सागर विश्व की सबसे ज़्यादा पानी वाली झील है, बैकाल का स्थान दूसरे नंबर पर आता है क्योंकि कैस्पियन का पानी खारा है, इसलिए बैकाल दुनिया की सब से बड़ी मीठे पानी की झील है ,, अगर बर्फ़ में जमे हुए पानी और ज़मीन के अन्दर बंद हुए पानी को अलग छोड़ दिया जाए, तो दुनिया की सतह पर मौजूद 20% मीठा पानी इसी एक झील में समाया हुआ है, बैकाल झील रूस के साइबेरिया क्षेत्र के दक्षिण भाग में, रूस के दो राज्यों (इरकुत्स्क ओबलस्त/प्रांत और बुर्यात गणतंत्र) की सीमा पर स्थित है।
इस झील को यूनेस्को ने विश्व की अनूठी प्राकृतिक विरासतों की सूची में शामिल कर रखा है।
इस झील की लम्बाई 636 किलोमीटर है और इस झील में दुनिया में उपस्थित कुल पीने लायक पानी का पाँचवा हिस्सा और रूस में उपस्थित कुल पीने लायक पानी का 90% हिस्सा सुरक्षित है। इस झील में पाए जान वाले बहुत-से जीव, और बहुत-सी वनस्पतियाँ दुनिया भर में किसी अन्य जलाशय में नहीं पाए जाते।
बैकाल की सबसे अधिक गहराई 1,642 मीटर है (यानि 5,387 फ़ुट) और इसका पानी विश्व की सब झीलों में साफ़ माना जाता है,,इस झील का आकार एक पतले, लम्बे चाँद की तरह है।

फंड फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ लेक बैकाल के हवाले से रिया नोवोस्ती ने खबर दी है कि बैकाल झील की तली में रूसी मीर-2 मिनी पनडुब्बी को कुछ चमकने वाली धातु की वस्तुएँ मिली हैं। यह करीब 92 साल पहले रूसी गृहयुद्ध के समय जार का खोया हुआ खजाना हो सकता है।
किस्से कहानियों में जिक्र है कि अरबों डॉलर का 1600 टन (सोलह लाख किलो) सोना यहाँ पड़ा है। व्हाइट एडमिरल एलेक्जेंडर कोलचाक ट्रेन से गुजर रहा था और उस समय यह सोना मीठे पानी की इस झील में गिर गया। गृह युद्ध के समय कोलचाक ने खुद को साइबेरिया का शासक घोषित कर दिया था और क्रुगोबैकालस्काया लाइन से जाते केप पोल्विनी में ट्रेन झील में गिर गई थी।

गुरुवार, 1 मई 2014

राजस्थान का प्रसिद्ध शक्तिपीठ जालौर की “सुंधामाता

राजस्थान का प्रसिद्ध शक्तिपीठ जालौर की “सुंधामाता

अरावली की पहाड़ियों में 1220 मीटर की ऊँचाई के सुंधा पहाड़ पर चामुंडा माता जी का एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है जिसे सुंधामाता के नाम से जाना जाता है। सुंधा पर्वत की रमणीक एवं  सुरम्य घाटी में सागी नदी से लगभग 40-45 फीट ऊंची एक प्राचीन सुरंग से जुड़ी गुफा में  अघटेश्वरी चामुंडा का यह पुनीत धाम युगों- युगों से सुशोभित माना जाता है। यह जिला मुख्यालय जालोर से 105 Km तथा भीनमाल कस्बे से 35 Km दूरी पर दाँतलावास गाँव के निकट स्थित है। यह स्थान  रानीवाड़ा तहसील में मालवाड़ा और जसवंतपुरा के बीच में है। यहाँ गुजरात, राजस्थान  और अन्य राज्यों से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु पर्यटक माता के दर्शन हेतु आते हैं। 
 

यहाँ का वातावरण अत्यंत ही मोहक और आकर्षक है जिसे वर्ष भर चलते रहने वाले फव्वारे और भी सुंदर बनाते हैं।  माता के मंदिर में संगमरमर स्तंभों पर की गई कारीगरी आबू के दिलवाड़ा जैन मंदिरों के  स्तंभों की याद दिलाती है। यहाँ एक बड़े प्रस्तर खंड पर बनी माता चामुंडा की सुंदर
प्रतिमा अत्यंत दर्शनीय है।
यहाँ माता के सिर  की पूजा की जाती है। यह कहा जाता है कि चामुंडा जी का धड़ कोटड़ा में तथा चरण  सुंदरला पाल (जालोर) में पूजित है।
सुंधामाता को अघटेश्वरी कहा जाता है

जिसका अभिप्राय है- “वह घट (धड़) रहित देवी,  जिसका केवल सिर ही पूजा जाता है।” पौराणिक मान्यता के अनुसार अपने ससुर  राजा दक्ष से यहाँ यज्ञ के विध्वंस के बाद शिव ने यज्ञ वेदी में जले हुए अपनी पत्नी सती के शव को कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य किया तब  भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के टुकड़े टुकड़े कर छिन्न भिन्न कर दिया। उनके  शरीर के अंग भिन्न-भिन्न स्थानों पर जहां जहां गिरे, वहाँ शक्ति पीठ स्थापित हो गए। यह माना जाता है कि सुंधा पर्वत पर  सती का सिर गिरा जिससे वे ‘अघटेश्वरी’ के नाम से विख्यात है।
देवी के इस मंदिर परिसर में माता के सामने एक प्राचीन शिवलिंग भी प्रतिष्ठित है, जो ‘भुर्भुवः स्ववेश्वर महादेव’ (भूरेश्वर महादेव) के  नाम से सेव्य है। इस प्रकार सुंधा पर्वत के अंचल में यहाँ शिव और शक्ति दोनों एक साथ प्रतिष्ठित है।
यहाँ प्राप्त सुंधा शिलालेख हरिशेन शिलालेख  या महरौली शिलालेख की तरह ऐतिहासिक महत्व का है। इस शिलालेख के अनुसार जालोर  के चौहान नरेश चाचिगदेव ने इस देवी के मंदिर में विक्रम संवत 1319 में मंडप बनवाया था जिससे स्पष्ट होता है कि इस सुगंधगिरी अथवा सौगन्धिक पर्वत पर चाचिगदेव से पहले ही यहाँ चामुंडा जी विराजमान  थी तथा चामुंडा ‘अघटेश्वरी’ नाम से लोक प्रसिद्ध थी। सुंधा माता के विषय में एक जनश्रुति यह भी है कि बकासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए चामुंडा अपनी सात शक्तियों (सप्त मातृकाओं) समेत यहाँ पर  अवतरित हुई
जिनकी मूर्तियाँ चामुंडा (सुंधा माता) के पार्श्व मे प्रतिष्ठित है। माता के इस स्थान का विशेष पौराणिक महत्व है,  यहाँ आना अत्यंत पुण्य  फलदायी माना जाता है। 

कई समुदायों/ जातियों द्वारा इस परिसर में भोजन प्रसाद बनाने के लिए हॉल का निर्माण कराया गया है। नवरात्रि के  दौरान यहाँ भारी तादाद में श्रद्धालु माता की अर्चना के लिए आते हैं। पर्वत  चोटी पर स्थित मंदिर पर जाने में आसानी के  लिए वर्तमान में 800 मीटर लंबे मार्ग वाला रोप-वे भी यहाँ संचालित है जिससे लगभग छः मिनट में पर्वत पर पहुँचा जा सकता है।

शिखा रखने की वैज्ञानिकता क्या है?


हम देखते है कि बहुत से लोग सिर पर शिखा(चोटी) रखते है. पर सिर पर शिखा रखने का क्या तात्पर्य है,हम ये समझ नहीं पाते. सिर पर शिखा आर्यों की पहचान मानी जाती है। लेकिन यह केवल कोई पहचान मात्र नहीं है।
(1)सर्वप्रमुख वैज्ञानिक कारण यह है कि शिखा वाला भाग, जिसके नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, कपाल तन्त्र के अन्य खुली जगहोँ(मुण्डन के समय यह स्थिति उत्पन्न होती है)की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है। जिसके खुली होने के कारण वातावरण से उष्मा व अन्यब्रह्माण्डिय विद्युत-चुम्बकी य तरंगोँ का मस्तिष्क से आदान प्रदान बड़ी ही सरलता से हो जाता है। और इस प्रकार शिखा न होने की स्थिति मेँ स्थानीय वातावरण के साथ साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है। लेकिन वैज्ञानिकतः मस्तिष्क को सुचारु, सर्वाधिक क्रियाशिल और यथोचित उपयोग के लिए इसके ताप को नियंन्त्रित रहना अनिवार्य होता है।
जो शिखा न होने की स्थिति मेँ एकदम असम्भव है।
क्योँकि शिखा(लगभग गोखुर के बराबर) इसताप को आसानी से सन्तुलित कर जाती है और उष्मा की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमण्डल से उष्मा के स्वतः आदान प्रदान को रोक देती है।
आज से कई हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज इन सब वैज्ञानिक कारणोँ से भलिभाँति परिचित है।
ऐसे ही कई उदाहरण हैँ जिनके आगे पाश्चात्य वैज्ञानिक भी घुटने टेक चुके हैँ।
2. - जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन कोनियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखाएक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।
3. - आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यहनहीं है। वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं,मूलाधार चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्सेमें होता है और आखिरी है सहस्राह चक्रजो सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रणकरने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का दबावहोने से रक्त प्रवाह भी तेजरहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।

4.- ऐसा भी है कि मृत्यु के समय आत्मा शरीर के द्वारों से बाहर निकलती है (मानव शरीर में नौ द्वार बताये गए है दो आँखे, दो कान, दो नासिका छिद्र, दो नीचे के द्वार, एक मुह )और दसवा द्वार यही शिखा या सहस्राह चक्र जो सिर में होता है , कहते है यदि प्राण इस चक्र से निकलते है तो साधक की मुक्ति निश्चत है.और सिर पर शिखा होने के कारणप्राण बड़ी आसानी से निकल जाते है. और मृत्यु हो जाने के बाद भी शरीर में कुछ अवयव ऐसेहोते है जो आसानी से नहींनिकलते, इसलिए जब व्यक्ति को मरने पर जलाया जाता है तो सिर अपनेआप फटता है और वह अवयव बाहर निकलता है यदि सिर पर शिखा होती है तो उस अवयव को निकलने की जगह मिल जाती है.
सिर पर चोंटी रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्वपूर्ण माना गया है कि , इस कार्य को आर्यों की पहचान तक मानालिया गया। योग और अध्यात्म को सुप्रीम सांइस मानकर जब आधुनिक प्रयोगशालाओं में रिसर्च किया गया तो, चोंटी के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रौचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए।
शिखा रखने से मनुष्य लौकिक तथा पारलौकिक समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त करता है. शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है। शिखारखने से सभी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं। शिखा रखने से मनुष्य की नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है। शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायुहोता है।
आज से कई हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज इन सब वैज्ञानिक कारणोँ से भलिभाँति परिचित थे।
ऐसे ही कई उदाहरण हैँ जिनके आगे पाश्चात्य वैज्ञानिक भी घुटने टेक चुके हैँ।
तो यह है हमारी भारतीय वैदिक संस्कृति और इसकी वैज्ञानिकता…. .

शादी नहीं हो रही तो अक्षय तृतीया पर करें यह उपाय

शादी नहीं हो रही तो अक्षय तृतीया पर करें यह उपाय
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अधिकांश माता-पिता और युवाओं की एक महत्वपूर्ण समस्या है सही समय पर विवाह। आधुनिकता की दौड़ में युवा अपने कैरियर को लेकर इतने व्यस्त रहते हैं कि उनकी शादी की सही आयु कब निकल जाती है उन्हें पता भी नहीं चलता। ऐसे में कई लोगों के लिए विवाह होना और मुश्किल हो जाता है।
में यहां एक अचूक प्रयोग बता रही हूँ , जिससे अविवाहित युवाओं की विवाह संबंधी समस्या का त्वरित निराकरण हो जाएगा।
यह प्रयोग लड़के और लड़कियों दोनों द्वारा किया जा सकता है।
प्रयोग की विधि
- इस प्रयोग को अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त में किया जाना चाहिए।
- यह प्रयोग रात के समय किया जाना चाहिए।
- इसके लिए आप एक बाजोट पर पीला कपड़ा बिछाएं और पूर्व दिशा की ओर मुख करके उस बैठ जाएं।
- मां पार्वती का चित्र अपने सामने रखें।
- अपने सामने बाजोट पर एक मुट्ठी गेहूं की ढेरी रखें।
- गेहूं पर एक विवाह बाधा निवारण विग्रह स्थापित करें और चंदन या केसर से तिलक करें।
उक्त पूरी प्रक्रिया ठीक से होने के बाद हल्दी माला से निम्न मंत्र का जप करें:
लड़कों के लिए मंत्र-
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोदभवाम्।।
लड़कियों के लिए मंत्र-
ऊँ गं घ्रौ गं शीघ्र विवाह सिद्धये गौर्यै फट्।
उक्त मंत्र को चार दिनों तक नित्य 3-3 माला का जप करें। अंतिम दिन इस सामग्री को देवी पार्वती के चरणों में किसी भी मंदिर में छोड़ आएं। शीघ्र ही आपका विवाह हो जाएगा।
यह प्रयोग पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करें। यह सिद्ध प्रयोग है अत: मन में कोई संदेह ना लाएं। अन्यथा उपाय का प्रभाव समाप्त हो जाएगा।

अक्षय तृतीया

विज्ञानसम्मत दृश्यगणित के अनुसार, शुक्रवार, 2 मई को वैशाख-शुक्ल-तृतीया (अक्षय तृतीया) सूर्योदय से मध्याथ्काल में 12.04 बजे तक विद्यमान रहने से स्नान-दान का पर्वकाल इसी समय में रहेगा। वस्तुत: दान देने से तन-मन-धन, तीनों शुद्ध हो जाते हैं।वैशाख मास को भगवान विष्णु के नाम पर 'माधव मास' कहा जाता है। इस मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को सनातन ग्रंथों में अक्षय-फलदायी बताया गया है। इसी कारण इस तिथि का नाम 'अक्षय तृतीया' पड़ गया। भविष्य पुराण में कहा गया है- 'यत् किंचिद् दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु। तत् सर्वमक्षयं यस्मात् तेनेयमक्षया स्मृता।।' अर्थात इस तिथि में थोड़ा या बहुत, जितना और जो कुछ भी दान दिया जाता है, उसका फल अक्षय हो जाता है। अक्षय तृतीया पर मूल्यवान वस्तुएं खरीदने का प्रचलन बन गया है, लेकिन सनातन धर्म के ग्रंथों में इसे संग्रह का नहीं, बल्कि जरूरतमंदों को दान करने का पर्व बताया गया है।

भारतीय काल-गणना के अनुसार, वैशाख-शुक्ल-तृतीया से ही त्रेतायुग का शुभारंभ हुआ था। त्रेतायुग की प्रारंभिक तिथि होने के कारण इसे 'युगादि तिथि' भी कहते हैं। पृथ्वीचंद्रोदय नामक ग्रंथ में सौर पुराण का यह कथन दिया गया है- 'युगादौ तु नर: स्नात्वा विधिवल्लवणोदधौ। गोसहस्र प्रदानस्य फलं प्राप्नोति मानव:।।' अर्थात युगादि तिथि के दिन किसी तीर्थ, पवित्र नदी अथवा सरोवर में स्नान कर दान करने से एक सहश्च गायों के दान (गोदान) का पुण्यफल मिलता है। ऋषि-मुनियों का निर्देश है कि अक्षय तृतीया के दिन हर व्यक्ति को अपनी साम‌र्थ्य के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। भविष्योत्तर पुराण में जौ-चने का सत्तू, दही-चावल, गन्ने का रस, दूध से बनी मिठाई, शक्कर, जल से भरे घड़े, अन्न तथा ग्रीष्म ऋतु में उपयोगी वस्तुओं के दान की बात कही गई है। सामान्यत: सत्तू, पानी से भरी सुराही अथवा घड़े के साथ ताड़ के पंखे का दान किए जाने का प्रचलन है। यह समाज सेवा है, जो सबसे बड़ा धार्मिक कार्य है। इस दिन समाजसेवी संस्थाएं प्यासे पथिकों के लिए पौशाला (प्याऊ) लगवाती हैं। कुछ लोग शीतल जल का शर्बत पिलाते हैं। सही मायनों में तन-मन-धन से गरीबों की सेवा ही नारायण की अर्चना है। बृहत्पाराशर संहिता में कहा गया है- 'दानमेकं कलौ युगे' अर्थात कलियुग में दान अकेले ही सारा पुण्य दे देता है। भगवान कृष्ण का गीता में उपदेश है-'यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्' अर्थात यज्ञ, दान और तप मनीषियों को पावन करने वाले हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, -'शुध्यंति दानै: संतुष्ट्या द्रव्याणि' अर्थात धन दान और संतोष से शुद्ध होता है। इससे अभिप्राय यह है कि धन होने पर दान जरूर करें, इससे मन को संतोष मिलता है और चित्त शुद्ध हो जाता है।
अक्षय तृतीया संग्रह करने की बजाय दान देने की प्रेरणा देती है, परंतु आजकल इस तिथि का व्यावसायीकरण हो गया है। इस संदर्भ में यह कहा जाने लगा है कि अक्षय तृतीया को सोना या सोने के आभूषण खरीदने से समृद्धि बढ़ती है। यह तिथि अपने नाम के अनुरूप अक्षय फल देने में समर्थ है, पर संग्रह करना इस पावन तिथि का मूल उद्देश्य नहीं है। इस तिथि की प्रशस्ति दान से जुड़ी है, संग्रह करने से नहीं। निर्णयसिंधु में भविष्योत्तर पुराण के संदर्भ से स्वर्ण-दान की बात कही गई है, स्वर्ण के क्रय की नहीं। इसलिए इस तिथि को दान का महापर्व कहा जाए, तो अतिशयोक्ति न होगी। दान देने से मन में परोपकार की भावना का उदय होता है तथा आसक्ति और लोभ का दमन होता है।
अक्षय तृतीया का मुहूर्तविज्ञानसम्मत दृश्यगणित के अनुसार, शुक्रवार, 2 मई को वैशाख-शुक्ल-तृतीया (अक्षय तृतीया) सूर्योदय से मध्याथ्काल में 12.04 बजे तक विद्यमान रहने से स्नान-दान का पर्वकाल इसी समय में रहेगा। वस्तुत: दान देने से तन-मन-धन, तीनों शुद्ध हो जाते हैं।

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