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शनिवार, 17 जनवरी 2015

क्या आप भी बोन चाइना के बर्तन प्रयोग करते है ??

शाकाहारी लोग सावधान !!
अधिक जानकारी के लिए यहाँ click करे ! https://www.youtube.com/watch?v=733RlrQ42YU
क्या आप भी बोन चाइना के बर्तन प्रयोग करते है ??
ऐसे बर्तन आज कल हर घर में देखे जा सकते है, इस तरह की खास क्राकरी जो सफेद, पतली और अच्छी कलाकारी से बनाई जाती है, बोन चाइना कहलाती है। इस पर लिखे शब्द बोन का वास्तव में सम्बंध बोन (हड्डी) से ही है। इसका मतलब यह है कि आप किसी गाय या बैल की हड्डियों की सहायता से खा-पी रही है। बोन चाइना एक खास तरीके का पॉर्सिलेन है जिसे ब्रिटेन में विकसित किया गया और इस उत्पाद का बनाने में बैल की हड्डी का प्रयोग मुख्य तौर पर किया जाता है। इसके प्रयोग से सफेदी और पारदर्शिता मिलती है।

बोन चाइना इसलिए महंगा होती है क्योंकि इसके उत्पादन के लिए सैकड़ों टन हड्डियों की जरुरत होती है, जिन्हें कसाईखानों से जुटाया जाता है। इसके बाद इन्हें उबाला जाता है, साफ किया जाता है और खुले में जलाकर इसकी राख प्राप्त की जाती है। बिना इस राख के चाइना कभी भी बोन चाइना नहीं कहलाता है। जानवरों की हड्डी से चिपका हुआ मांस और चिपचिपापन अलग कर दिया जाता है। इस चरण में प्राप्त चिपचिपे गोंद को अन्य इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है। शेष बची हुई हड्डी को १००० सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे इसमें उपस्थित सारा कार्बनिक पदार्थ जल जाता है। इसके बाद इसमें पानी और अन्य आवश्यक पदार्थ मिलाकर कप, प्लेट और अन्य क्राकरी बना ली जाती है और गर्म किया जाता है। इन तरह बोन चाइना अस्तित्व में आता है। ५० प्रतिशत हड्डियों की राख २६ प्रतिशत चीनी मिट्टी और बाकी चाइना स्टोन। खास बात यह है कि बोन चाइना जितना ज्यादा महंगा होगा, उसमें हड्डियों की राख की मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या शाकाहारी लोगों को बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिए? या फिर सिर्फ शाकाहारी ही क्यों, क्या किसी को भी बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिये। लोग इस मामले में कुछ तर्क देते है। जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए नहीं मारा जाता, हड्डियां तो उनको मारने के बाद प्राप्त हुआ एक उप-उत्पाद है। लेकिन भारत के मामले में यह कुछ अलग है। भारत में भैंस और गाय को उनके मांस के लिए नहीं मारा जाता क्योंकि उनकी मांस खाने वालों की संख्या काफी कम है। उन्हें दरअसल उनकी चमड़ी और हड्डियों के मारा जाता है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी चमड़ी मंडी है और यहां ज्यादातर गाय के चमड़े का ही प्रयोग किया जाता है। हम जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए भी मारते है। देखा जाए तो वर्क बनाने का पूरा उद्योग ही गाय को सिर्फ उसकी आंत के लिए मौत के घाट उतार देता है। आप जनवरों को नहीं मारते, लेकिन आप या आपका परिवार बोन चाइना खरीदने के साथ ही उन हत्याओं का साझीदार हो जाता है, क्योंकि बिना मांग के उत्पादन अपने आप ही खत्म हो जायेगा।
चाइना सैट की परम्परा बहुत पुरानी है और जानवर लम्बे समय से मौत के घाट उतारे जा रहे हैं। यह सच है, लेकिन आप इस बुरे काम को रोक सकते हैं। इसके लिए सिर्फ आपको यह काम करना है कि आप बोन चाइना की मांग करना बंद कर दें।
आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !!
गाय काटने के बाद क्या क्या बनाया जाता है यहाँ
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https://www.youtube.com/watch?v=733RlrQ42YU
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वन्देमातरम !

इस मंत्र का जाप करके कभी भी हनुमान जी के साक्षात् दर्शन प्राप्त कर सकते हैं

भगवान हनुमान को चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है | कहा जाता है कि वे आज भी जीवित हैं और हिमालय के जंगलों में रहते हैं | वे भक्तों की सहायता करने मानव समाज में आते हैं लेकिन किसी को आँखों से दिखाई नहीं देते | लेकिन एक ऐसा मंत्र है जिसके जाप से हनुमान जी भक्त के सामने साक्षात प्रकट हो जाते हैं |  
मंत्र है :
कालतंतु कारेचरन्ति एनर मरिष्णु , निर्मुक्तेर कालेत्वम अमरिष्णु
यह मंत्र तभी काम करता है जब नीचे लिखी दो शर्ते पूरी हों -
(1) भक्त को अपनी आत्मा के हनुमान जी के साथ संबंध का बोध होना चाहिए |
(2) जिस जगह पर यह मंत्र जाप किया जाए उस जगह के 980 मीटर के दायरे में कोई भी ऐसा मनुष्य उपस्थित न हो जो पहली शर्त को पूरी न करता हो | अर्थात या तो 980 मीटर के दायरे में कोई नहीं होना चाहिए अथवा जो भी उपस्थित हो उसे अपनी आत्मा के हनुमान जी के साथ सम्बन्ध का बोध होना चाहिए |
यह मंत्र स्वयं हनुमान जी ने पिदुरु पर्वत के जंगलों में रहने वाले कुछ आदिवासियों को दिया था | पिदुरु (पूरा नाम "पिदुरुथालागाला ) श्री लंका का सबसे ऊँचा पर्वत है | जब प्रभु राम जी ने  अपना मानव जीवन पूरा करके समाधि ले ली थी तब हनुमान जी पुनः अयोध्या छोड़कर जंगलों में रहने लगे थे | उस समय वे लंका के जंगलों में भी भ्रमण हेतु गए थे जहाँ उस समय विभीषण का राज्य था | लंका के जंगलों में उन्होंने प्रभु राम के स्मरण में बहुत दिन गुजारे | उस समय पिदुरु पर्वत में रहने वाले कुछ आदिवासियों ने उनकी खूब सेवा की |
जब वे वहां से लौटने लगे तब उन्होंने यह मंत्र उन जंगल वासियों को देते हुए कहा - "मैं आपकी सेवा और समर्पण से अति प्रसन्न हूँ | जब भी आप लोगों को मेरे दर्शन करने की अभिलाषा हो, इस मंत्र का जाप करना | मै प्रकाश की गति से आपके सामने आकर प्रकट हो जाऊँगा |"
जंगल वासियों के मुखिया ने कहा -"हे प्रभु , हम इस मंत्र को गुप्त रखेंगे लेकिन फिर भी अगर किसी को यह मंत्र पता चल गया और वह इस मंत्र का दुरुपयोग करने लगा तो क्या होगा?"
हनुमान जी ने उतर दिया - "आप उसकी चिंता न करें | अगर कोई ऐसा व्यक्ति इस मंत्र का जाप करेगा जिसको अपनी आत्मा के मेरे साथ सम्बन्ध का बोध न हो तो यह मंत्र काम नहीं करेगा |"
जंगलवासियों के मुखिया ने पूछा -"भगवन , आपने हमें तो आत्मा का ज्ञान दे दिया है जिससे हम तो अपनी आत्मा के आपके साथ सम्बन्ध से परिचित हैं | लेकिन हमारे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों का क्या ? उनके पास तो आत्मा का ज्ञान नहीं होगा | उन्हें अपनी आत्मा के आपके साथ सम्बन्ध का बोध भी नहीं होगा | इसलिए यह मंत्र उनके लिए तो काम नहीं करेगा |"
हनुमान जी ने बताया -"मै यह वचन देता हूँ कि मै आपके कुटुंब के साथ समय बिताने हर 41 साल बाद आता रहूँगा और आकर आपकी आने वाली पीढ़ियों को भी आत्म ज्ञान देता रहूगा जिससे कि समय के अंत तक आपके कुनबे के लोग यह मंत्र जाप करके कभी भी मेरे साक्षात दर्शन कर सकेंगे |"
इस कुटुंब के जंगलवासी अब भी श्रीलंका के पिदुरु पर्वत के जंगलों में रहते हैं | वे आदिवासी आज तक आधुनिक समाज से कटे हुए हैं | इनके हनुमान जी के साथ विचित्र सम्बन्ध के बारे में पिछले साल ही पता चला जब कुछ अन्वेषकों ने इनकी विचित्र गतिविधियों पर गौर किया |
बाद में उन अन्वेषकों को पता चला कि उनकी वे विचित्र गतिविधिया दर असल हर 41 साल बाद होने वाली घटना का हिस्सा हैं जिसके तहत हनुमान जी अपने वचन के अनुसार उन्हें हर 41 साल बाद आत्म ज्ञान देते आते हैं | हनुमान जी उनके पास पिछले साल यानी 2014 में भी रहने आये थे | इसके बाद वे 41 साल बाद यानि 2055 में आयेंगे | लेकिन वे इस मंत्र का जाप करके कभी भी उनके साक्षात् दर्शन प्राप्त कर सकते हैं |
जब हनुमान जी उनके पास 41 साल बाद रहने आते हैं तो उनके द्वारा उस प्रवास के दौरान किए गए हर कार्य और उनके द्वारा बोले गए हर शब्द का एक एक मिनट का विवरण इन आदिवासियों के मुखिया बाबा मातंग अपनी हनु पुस्तिका में नोट करते हैं | 2014 के प्रवास के दौरान हनुमान जी द्वारा जंगल वासियों के साथ की गई सभी लीलाओं का विवरण भी इसी पुस्तिका में नोट किया गया है |
यह पुस्तिका अब सेतु एशिया नामक आध्यात्मिक संगठन के पास है | सेतु के संत पिदुरु पर्वत की तलहटी में स्थित अपने आश्रम में इस पुस्तिका तो समझकर इसका आधुनिक भाषाओँ  में अनुवाद करने में जुटे हुए हैं ताकि हनुमान जी के चिरंजीवी होने के रहस्य पर्दा उठ सके | लेकिन इन आदिवासियों की भाषा पेचीदा और हनुमान जी की लीलाए उससे भी पेचीदा होने के कारण इस पुस्तिका को समझने में काफी समय लग रहा है | पिछले 6 महीने में केवल 3 अध्यायों का ही आधुनिक भाषाओँ में अनुवाद हो पाया है |  इस पुस्तिका में से जब भी कोई नया अध्याय अनुवादित होता है तो सेतु संगठन का कोलम्बो ऑफिस उसे अपनी वेबसाइट www.setu.asia पर प्रकाशित करता है | विश्व भर के हनुमान भक्त बेसब्री से नए अध्याय पोस्ट होने का इन्तजार करते हैं क्योंकि हर अध्याय उन्हें इस मंत्र की पहली शर्त पूरी करने के करीब ले जाता है जिसे पूरी करने के बाद कोई भी भक्त इस मंत्र के जाप से हनुमान जी को प्रकट करके उनके वास्तविक रूप के दर्शन प्राप्त कर सकता है |
सेतु एशिया की वेबसाइट www.setu.asia पर अब तक पोस्ट हुए अध्यायों का संक्षेप में विवरण इस प्रकार है :
अध्याय 1 : चिरंजीवी हनुमान का आगमन : इस अध्याय में इस घटना का विवरण है कि पिछले साल एक रात हनुमान जी कैसे पिदुरु पर्वत के शिखर पर इन जंगल वासियों को दिखाई दिए | हनुमान जी ने उसके बाद एक बच्चे के पिछले जन्म की कहानी सुनाई जो दो माताओं के गर्भ से पैदा हुआ था |
अध्याय 2 : हनुमान जी के साथ शहद की खोज : इस अध्याय में इस बात का विवरण है कि अगले दिन हनुमान जी जंगल वासियों के साथ शहद खोजने निकले और वहां पर क्या घटनाएँ घटित हुई |
अध्याय 3 : काल के जाल में चिरंजीवी हनुमान : यह सबसे रोचक अध्याय है | ऊपर दिए गए मंत्र का अर्थ इसी अध्याय में समाहित है | उदाहरण के तौर पर जब हम मनुष्य समय के बारे में सोचते हैं तो हमारे मन में घडी का विचार आता है लेकिन जब भगवान् समय के बारे में सोचते हैं तो उन्हें समय के धागों (तंतुओं ) का विचार आता है | इस मंत्र में "काल तंतु कारे" का अर्थ है समय के धागों का जाल  |
भारत के हनुमान भक्तों के प्रयासों से अब ये अध्याय हिंदी में भी पढ़े जा सकते हैं | सेतु एशिया की वेबसाइट www.setu.asia पर ऊपर "भाषा बदलें" का बटन अब उपलब्ध हो गया है जिससे हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओँ में अध्याय पढ़े जा सकते हैं |

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