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शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

गौमूत्र से 13 साल की राजस्थान की बैटी ने तैयार की बिजली, अब जाएगी जापान

गौमूत्र से 13 साल की राजस्थान की बैटी ने तैयार की बिजली, अब जाएगी जापान

आठवीं में पढ़ने वाली 13 वर्षीय साक्षी दशोरा ने गौमुत्र से बिजली तैयार की है। मावली के गड़वाड़ा व्यास एकेडमी की इस छात्रा ने गाय के गोबर और गौमूत्र साइंटिफिक यूज बताते हुए “इम्पॉर्टेंस ऑफ काउब्रीड इन 21 सेंचुरी’ प्रोजेक्ट बनाया है। मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के इंस्पायर अवार्ड के तहत उसके प्रोजेक्ट को अब इंटरनेशनल लेवल पर पहचान मिलेगी। ये प्रोजेक्ट दो माह बाद जापान में आयोजित सात दिवसीय सेमिनार में प्रदर्शित होगा। वहां साक्षी लेक्चर भी देगी।

साक्षी ने अगस्त 2014 में हुई प्रदर्शनी में इस प्रोजेक्ट के लिए उदयपुर जिले में छटी रैंक, फिर सितम्बर में डूंगरपुर में आयोजित राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में 12वीं रैंक और इसके बाद नेशनल लेवल दूसरी रैंक हासिल की थी। साक्षी सहित प्रदेश के अन्य तीन बच्चों का भी जापान के लिए चयन हुआ है।

ऐसे बनाई बिजली :-
साक्षी ने बताया कि गौमूत्र में सोडियम, पोटेशियम, मेग्नीशियम, सल्फर एवं फास्फोरस की मात्रा रहती है। उन्होंने प्रोजेक्ट में एक लीटर यूरीन में कॉपर और एल्युमिनियम की इलेक्ट्रोड डाली, जिसे वायर के जरिए एलईडी वॉच से जोड़ा। बिजली पैदा होते ही वॉच चलने लगी। गौमूत्र की मात्रा के अनुसार बिजली पैदा होगी। गौमूत्र कैंसर सहित अन्य बीमारियों से भी बचा सकता है। गोबर से लेप करें तो तापमान कंट्रोल रहेगा। इससे अगरबत्ती भी बनाई जा सकती है।

घरेलू उपचार : स्वाइन फ्लू से बचने के लिए स्वाईन फ्लु रोधी काढ़ा

स्वाइन फ्लू से बचने के लिए  घरेलू उपचार
1. तुलसी की पत्तियाँ दोनों तरफ से धुली हुई रोज सुबह उठकर 5 तुलसी की पत्तियाँ धोकर खाएँ | तुलसी का अपना एक चिकित्सीय गुण है। यह गले और फेफड़े को साफ रखती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर इसके संक्रमण से बचाती है।

2. गिलोय गिलोई कई क्षेत्रों में सामान्य रूप से पाई जाती है| गिलोई की एक फुट लंबी शाखा लें इसमें तुलसी की 5-6 पत्तियाँ मिलाकर इसे 15-20 मिनट तक उबाल लें, जब तक कि इसमे इसके तत्व ना घुल जाएँ| इसमें स्वादानुसार काली मिर्च, सेंधा नमक (यदि व्रत है तो) या काला नमक, मिश्री मिला लें| इसे ठंडा होने दें और गुनगुने का सेवन करें| इम्यूनिटी के लिए यह कारगर है| यदि गिलोई का पौधा उपलब्ध नहीं हो तो हमदर्द या अन्य किसी ब्रांड का गिलोई पाउडर इस्तेमाल कर यह काढ़ा बना सकते हैं।100 मि.ली. पानी में तीन ग्राम नीम, गिलोय, चिरैता के साथ आधा ग्राम काली मिर्च और एक ग्राम सोंठ का काढ़ा बना कर पीना भी काफी लाभदायक रहता है। इन चीजों को पानी के साथ तब तक उबालना है जब तक वह 60 मिली ग्राम न रह जाए। इसे एक सप्ताह के लिए रोज सुबह खाली पेट पीने पर स्वाइन फ्लू से लड़ने के लिए शरीर में जरूरी परिरक्षण क्षमता (इम्यूनिटी) पैदा हो जाएगी।  गिलोय की एक फुट लंबी डाल का हिस्सा, तुलसी की पाँच-छः पत्तियों के साथ 15 मिनट तक उबालें। स्वाद के मुताबिक सेंधा नमक या मिश्री मिलाएँ। कुनकुना होने पर इस काढ़े को पिएँ। यह आपकी रोग प्रतिरोधक शक्ति को चमत्कारिक ढंग से बढ़ा देगा। हमदर्द, वैद्यनाथ या किसी अच्छी आयुर्वेदिक दवा कंपनी का गिलोय भी ले सकते हैं।
 
 
3. कपूर गोली के आकार का कपूर का टुकड़ा महीने में एक या दो बार लिया जा सकता है। बड़े लोग इसे पानी के साथ निगल सकते हैं और छोटे बच्चों को यह आलू या केले के साथ मलकर दे सकते हैं क्यों कि इसे सीधा लेना मुश्किल होता है। याद रखें कपूर को रोजाना नहीं लेना है इसे महीने में एक बार ही लें। थायमॉल, मेंथॉल, कैंफर (कपूर) को बराबर मात्रा में मिला कर तैयार 'यू वायरल' के घोल की बूँदों को अगर रुमाल या टिश्यू पेपर पर डालकर लोग सूंघें तो भीड़ में मास्क पहन कर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

पान के पत्ते पर दवा की तीन बूँदें डालकर 5 दिन तक दिन में दो बार खाने पर स्वाइन फ्लू से बचाव हो सकता है।

4. लहसुन जो लोग लहसुन खाते हैं वे रोज सुबह दो कलियाँ कच्ची चबा सकते हैं। यह गुनगुने पानी से लिया जा सकता है। अन्य चीजों की बजाय लहसुन से इम्यूनिटी ज्यादा बढ़ती है।  इससे रोग प्रतिरोधक शक्ति में इजाफा होगा।
5. गुनगुना दूध जिन लोगों को दूध से एलर्जी नहीं है वे रोज रात को दूध में थोड़ी हल्दी डालकर ले सकते हैं। रात को सोते समय हल्दी का दूध अवश्य पिएँ।
6. ग्वारपाठा ग्वारपाठा आसानी से उपलब्ध पौधा है। इसकी कैक्टस जैसी पतली और लंबी पत्तियों में सुगंध रहित जैल होता है। इस जैल को एक टी स्पून में पानी के साथ लेने से त्वचा के लिए बहुत अच्छा रहेगा, जोड़ों का दर्द दूर होगा और साथ ही इम्यूनिटी बढ़ेगी। ग्वारपाठे का एक चम्मच गूदा रोज पानी के साथ लें। इससे जोड़ों के दर्द कम होने से साथ-साथ रोगों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ेगी।
7. नीम नीम में हवा को साफ करने का गुण होता है जिससे यह वायुजनित बीमारियों के लिए कारगर है, स्वाइन फ्लू के लिए भी। आप खून को साफ करने के लिए रोज 3-5 नीम की पत्तियाँ चबा सकते हैं।
8. रोजाना प्राणायाम करें गले और फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए रोजाना प्राणायाम करें और जॉगिंग करें। आपको स्वस्थ रखने के साथ ही यह हर बीमारी के लिए फायदेमंद है जो कि नाक, गले और फेफड़ों से संबन्धित हैं। अपने फिटनेस लेवल को बढ़ा कर रखें ताकि किसी भी बैक्टेरिया अथवा वायरस के हमले का सामना कर सकें। श्वास प्रणाली की कसरत से यह तंत्र मजबूत होता है।
9. विटामिन सी खट्टे फल और विटामिन सी से भरपूर आंवला जूस आदि का सेवन करें। चूंकि आंवले का जूस हर महीने नहीं मिलता है (खास तौर पर चार महीने) ऐसे में आप पैक्ड आंवला जूस भी ले सकते हैं। रसदार फलों का सेवन करें। आँवले का सेवन जरूर करें। यह विटामिन सी से भरपूर होता है। डिब्बाबंद आँवले का शरबत भी खरीद सकते हैं।

10. हाइजीन अपने हाथों को रोजाना लगातार धोते रहें और साबुन लगाकर गरम पानी से 15-20 सेकण्ड्स के लिए धोये। खास तौर पर खाना खाने से पहले और किसी भी ऐसी चीज को छूने के बाद जिसमे आपको लगता है कि यहाँ पर फ्लू के वायरस हो सकते हैं जैसे कि दरवाजे का हैंडल या बस, ट्रेन आदि में सफर के बाद हाथ जरूर धोएँ। दिन में कई बार अपने हाथ एंटिबायोटिक साबुन से जरूर धोएँ। इसके लिए अल्कोहोलिक क्लींजर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

त्रिफला, त्रिकाटू, मधुयास्ती और अमृता को समान मात्रा में लेकर उसे एक चम्मच लेने से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इससे बुखार भी कम होता है।
इस दवा को खाना खाने के बाद दो बार लेने से फायदा होगा। 
 

स्वाइन फ्लू से बचने के लिए घरेलू उपचार
1. तुलसी की पत्तियाँ दोनों तरफ से धुली हुई रोज सुबह उठकर 5 तुलसी की पत्तियाँ धोकर खाएँ | तुलसी का अपना एक चिकित्सीय गुण है। यह गले और फेफड़े को साफ रखती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर इसके संक्रमण से बचाती है।

2. गिलोय गिलोई कई क्षेत्रों में सामान्य रूप से पाई जाती है| गिलोई की एक फुट लंबी शाखा लें इसमें तुलसी की 5-6 पत्तियाँ मिलाकर इसे 15-20 मिनट तक उबाल लें, जब तक कि इसमे इसके तत्व ना घुल जाएँ| इसमें स्वादानुसार काली मिर्च, सेंधा नमक (यदि व्रत है तो) या काला नमक, मिश्री मिला लें| इसे ठंडा होने दें और गुनगुने का सेवन करें| इम्यूनिटी के लिए यह कारगर है| यदि गिलोई का पौधा उपलब्ध नहीं हो तो हमदर्द या अन्य किसी ब्रांड का गिलोई पाउडर इस्तेमाल कर यह काढ़ा बना सकते हैं।100 मि.ली. पानी में तीन ग्राम नीम, गिलोय, चिरैता के साथ आधा ग्राम काली मिर्च और एक ग्राम सोंठ का काढ़ा बना कर पीना भी काफी लाभदायक रहता है। इन चीजों को पानी के साथ तब तक उबालना है जब तक वह 60 मिली ग्राम न रह जाए। इसे एक सप्ताह के लिए रोज सुबह खाली पेट पीने पर स्वाइन फ्लू से लड़ने के लिए शरीर में जरूरी परिरक्षण क्षमता (इम्यूनिटी) पैदा हो जाएगी।  गिलोय की एक फुट लंबी डाल का हिस्सा, तुलसी की पाँच-छः पत्तियों के साथ 15 मिनट तक उबालें। स्वाद के मुताबिक सेंधा नमक या मिश्री मिलाएँ। कुनकुना होने पर इस काढ़े को पिएँ। यह आपकी रोग प्रतिरोधक शक्ति को चमत्कारिक ढंग से बढ़ा देगा। हमदर्द, वैद्यनाथ या किसी अच्छी आयुर्वेदिक दवा कंपनी का गिलोय भी ले सकते हैं।
 
 
3. कपूर गोली के आकार का कपूर का टुकड़ा महीने में एक या दो बार लिया जा सकता है। बड़े लोग इसे पानी के साथ निगल सकते हैं और छोटे बच्चों को यह आलू या केले के साथ मलकर दे सकते हैं क्यों कि इसे सीधा लेना मुश्किल होता है। याद रखें कपूर को रोजाना नहीं लेना है इसे महीने में एक बार ही लें। थायमॉल, मेंथॉल, कैंफर (कपूर) को बराबर मात्रा में मिला कर तैयार 'यू वायरल' के घोल की बूँदों को अगर रुमाल या टिश्यू पेपर पर डालकर लोग सूंघें तो भीड़ में मास्क पहन कर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

पान के पत्ते पर दवा की तीन बूँदें डालकर 5 दिन तक दिन में दो बार खाने पर स्वाइन फ्लू से बचाव हो सकता है।

4. लहसुन जो लोग लहसुन खाते हैं वे रोज सुबह दो कलियाँ कच्ची चबा सकते हैं। यह गुनगुने पानी से लिया जा सकता है। अन्य चीजों की बजाय लहसुन से इम्यूनिटी ज्यादा बढ़ती है।  इससे रोग प्रतिरोधक शक्ति में इजाफा होगा।
5. गुनगुना दूध जिन लोगों को दूध से एलर्जी नहीं है वे रोज रात को दूध में थोड़ी हल्दी डालकर ले सकते हैं। रात को सोते समय हल्दी का दूध अवश्य पिएँ।
6. ग्वारपाठा ग्वारपाठा आसानी से उपलब्ध पौधा है। इसकी कैक्टस जैसी पतली और लंबी पत्तियों में सुगंध रहित जैल होता है। इस जैल को एक टी स्पून में पानी के साथ लेने से त्वचा के लिए बहुत अच्छा रहेगा, जोड़ों का दर्द दूर होगा और साथ ही इम्यूनिटी बढ़ेगी। ग्वारपाठे का एक चम्मच गूदा रोज पानी के साथ लें। इससे जोड़ों के दर्द कम होने से साथ-साथ रोगों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ेगी।
7. नीम नीम में हवा को साफ करने का गुण होता है जिससे यह वायुजनित बीमारियों के लिए कारगर है, स्वाइन फ्लू के लिए भी। आप खून को साफ करने के लिए रोज 3-5 नीम की पत्तियाँ चबा सकते हैं।
8. रोजाना प्राणायाम करें गले और फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए रोजाना प्राणायाम करें और जॉगिंग करें। आपको स्वस्थ रखने के साथ ही यह हर बीमारी के लिए फायदेमंद है जो कि नाक, गले और फेफड़ों से संबन्धित हैं। अपने फिटनेस लेवल को बढ़ा कर रखें ताकि किसी भी बैक्टेरिया अथवा वायरस के हमले का सामना कर सकें। श्वास प्रणाली की कसरत से यह तंत्र मजबूत होता है।
9. विटामिन सी खट्टे फल और विटामिन सी से भरपूर आंवला जूस आदि का सेवन करें। चूंकि आंवले का जूस हर महीने नहीं मिलता है (खास तौर पर चार महीने) ऐसे में आप पैक्ड आंवला जूस भी ले सकते हैं। रसदार फलों का सेवन करें। आँवले का सेवन जरूर करें। यह विटामिन सी से भरपूर होता है। डिब्बाबंद आँवले का शरबत भी खरीद सकते हैं।

10. हाइजीन अपने हाथों को रोजाना लगातार धोते रहें और साबुन लगाकर गरम पानी से 15-20 सेकण्ड्स के लिए धोये। खास तौर पर खाना खाने से पहले और किसी भी ऐसी चीज को छूने के बाद जिसमे आपको लगता है कि यहाँ पर फ्लू के वायरस हो सकते हैं जैसे कि दरवाजे का हैंडल या बस, ट्रेन आदि में सफर के बाद हाथ जरूर धोएँ। दिन में कई बार अपने हाथ एंटिबायोटिक साबुन से जरूर धोएँ। इसके लिए अल्कोहोलिक क्लींजर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

त्रिफला, त्रिकाटू, मधुयास्ती और अमृता को समान मात्रा में लेकर उसे एक चम्मच लेने से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इससे बुखार भी कम होता है।
इस दवा को खाना खाने के बाद दो बार लेने से फायदा होगा।

स्वाईन फ्लु रोधी काढ़ा
 

 आवश्यक घटक :-
7 ईलाईची + 7 लोग + 7 तुलसी के पत्ते +
1 छोटा तुकड़ा अदरक + 1 टुकड़ा दालचीनी +
1/4 टेबल स्पुन हल्दी + 1/4 टेबल स्पुन काला नमक +
4 कप पानी !

निर्माण विधी :-
==========
उपरोक्त सभी घटको को दिये गये मापानुसार 4 कप पानी मे इतना उबाले कि पानी एक कप रह जाय तत्पश्चात तैयार काढ़े को छानकर एक शीशी में भर ले और प्रातः कालीन क्रिया से निवृत होकर भूखे पेट दो-दो चम्मच तीन दिन तक सेवन करे व अपने परिजनो को भी कराये।
विशेष अनुरोध :-
===========
मित्रो यह संदेश ज्यादा से ज्यादा व्यक्तियों तक पहुँचाकर सच्ची मानव सेवा कर मानव धर्म निभाये।


Jai Shree Krishna

Thanks,

Regards,


कैलाश चन्द्र  लढा(भीलवाड़ा)
www.sanwariya.org
sanwariyaa.blogspot.com 
Page: https://www.facebook.com/mastermindkailash



स्वाइन फ्लू क्या है? कारण, रोकथाम और बचाव

स्वाइन फ्लूः कारण, रोकथाम और बचाव
स्वाइन फ्लू दरअसल एक संक्रामक उत्परिवर्ती वायरस है, जिसका संक्रमण मनुष्यों में आरंभ हो गया है और इसने 21 वीं सदी की महामारी का रूप ले लिया है। स्वाइन फ्लू या H1N1 इन्फ्लूएंजा दुनिया भर में तेजी से फैलने के बाद अब भारत के दरवाजे पर अपनी भयावह दस्तक दे रहा है। कहतें अपने दुश्मन के बारे में जानकारी हासिल करना उसे जीतने की ओर पहला कदम है। लिहाजा भारत में स्वाइन फ्लू के बारे में जानकारी हासिल करके कम से कम हम उसकी की रोकथाम तो कर ही सकते हैं। यहां हम आपको इस फ्लू से जुड़ी कुछ अहम जानकारी देने जा रहे हैं।
स्वाइन फ्लू क्या है?
H1N1 इन्फ्ल्यूएंजा या स्वाइन फ्लू दरअसल चार वायरस के संयोजन के कारण होता है। आम तौर पर इस वायरस के वाहक सूअर होते हैं। यही वजह है कि मीडिया ने इसे स्वाइन फ्लू यानी कि 'सुअर फ्लू' का नाम दे डाला। अब तक यह जानवरों के लिए घातक नहीं था और न ही कभी इसने इंसानों को प्रभावित किया था।
लेकिन जब से इस विषाणु का उत्परिवर्तन हुआ है, इस फ्लू ने महामारी के रूप धारण कर लिया है, क्योंकि यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में तेजी से फैल रहा है।
जोखिम का विषय यह है कि एक नया वायरस स्ट्रीम बन जाने के कारण कोई भी इससे अप्रभावित नहीं है। लिहाजा प्रत्येक व्यक्ति इस संक्रमण के प्रति संवेदनशील है l

कैसे फैलते हैं इसके वाइरसः यह वाइरस पीड़ित व्यक्ति के छींकने, खांसने, ‌हाथ मिलाने और गले मिलने से फैलते हैं। वहीं स्वाइन फ्लू का वाइरस स्टील प्लास्टिक में 24 से 48 घंटों तक, कपड़ों में 8 से 12 घंटों तक, टिश्यू पेपर में 15 मिनट तक और हाथों में 30 मिनट तक सक्रिय रहता है।
लक्षण :-
शुरुआती लक्षण: लगातार नाक बहना, मांसपे‌शियों दर्द या अकड़न महसूस होना, सिर में तेज दर्द, लगातार खांसी आना, उनींदा रहना, थकान महसूस होना, बुखार होना और दवा खाने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना आदि।

आम लक्षण: जुकाम, खांसी, नाक बंद होना, सिर में दर्द, थकावट महसूस होना, गले में खराश, शरीर में दर्द, ठंड लगना, ‌जी मिचलाना, उल्टी होना और दस्त भी हो सकती है। कुछ लोगों में श्‍वांस लेने में तकलीफ भी हो सकती है।

स्वाइन फ्लू के ज्यादातर मरीजों में थकावट के लक्षण पाए जाते हैं। स्वाइन फ्लू के प्राथमिक लक्षण दिखने में एक से चार दिन लग सकते हैं।

हालांकि इसके लक्षण एक सामान्य फ्लू के समान हैं, मगर लापरवाही बरतने पर वे गंभीर हो सकते हैं। आम तौर पर इन लक्षणों के प्रति सचेत रहने की जरूरत है।
* बुखार
* खाँसी
* सिरदर्द
* कमजोरी और थकान
* मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द
* गले में ख़राश
* नाक बहना l

बचाव और बीमारी की रोकथाम के उपाय :-
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है साफ-सफाई रखना। छींकते या खांसते वक्त रुमाल या टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करना और प्रयोग किए गए टिश्यू पेपर को खुले में न फेंका जाए।

अपने हाथों को थोड़ी-थोड़ी देर में साबुन-पानी से धुलते रहें। शुरुआती लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। बीमार होने पर लोगों से हाथ न मिलाएं, गले न लगें। अगर फ्लू के लक्षण दिखते हैं तो दूसरों से एक मीटर की दूरी बनाकर रखें।

बीमार होने पर घर पर ही रहें। स्कूल, ऑफिस, मंदिर या किसी सार्वजनिक स्‍थानों पर न जाएं। बिना धुले हाथों से आंख, नाक या मुह छूने से बचें।


खांसी अथवा छींक के समय अपने चेहरे को टिश्यू पेपर से ढककर रखें।
टिश्यू पेपर को सही तरीके से फेंके अथवा नष्ट कर दें।
अपने हाथों को किसी हैंड सैनीटाइजर द्वारा नियमित साफ करें।
अपने आसपास हमेशा सफाई रखें।
चेहरे पर मास्क को बचाव का एक तरीका माना जा रहा है, मगर वास्तव में यह कितना प्रभावी है इस बारे में किसी रिसर्च के जरिए कोई पक्के नतीजे सामने नहीं आए हैं।

आपको क्या करना चाहिए?
यदि आपको फ्लू के लक्षण महसूस हो रहे हैं, भले ही आपने हाल में कोई यात्रा की हो या नहीं, तुरंत डाक्टर के पास जाएं। यदि टेस्ट रिपोर्ट पॉजीटिव आती है तो घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि फ्लू का एंटीवारयल ड्रग टैमीफ्लू के जरिए इलाज किया जा सकता है।
इस बारे में आपको अपनी सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय के दावों पर यकीन करना चाहिए। भारत ने पहले ही एहतियात के तौर पर टैमीफ्लू जो कि Oseltamivir के नाम से भी जाना जाता है, स्टाक रख लिया है।
अगर मीडिया से जारी उन रिपोर्ट्स ने आपको चिंता में डाल दिया है जिनमें बताया जा रहा है कि भारत में वायरल ड्रग्स अंतरराष्ट्रीय सिफारिश के स्तर से नीचे हैं आपको यह जानना चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिफारिश का मतलब देश की दस प्रतिशत आबादी के लिए पर्याप्त दवाओं के स्टाक से है।
हालांकि अभी विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से इस बारे में कोई पुष्टि नहीं हुई है मगर यह माना जा रहा है कि व्यावहारिक तौर पर भारत एक विशाल देश है और यहां पर फ्लू से प्रभावित लोगों की संख्या उसके मुकाबल काफी कम रहेगी। अगर लोग समझदारी और सहयोग से काम लेंगे तो इसे और कम किया जा सकता है।

आयुर्वेद की दवाई :
मित्रो स्वाइन फ्लू बहुत फ़ैल रहा है असल में ये और कुछ नहीं बल्कि ये विदेशी कंपनियो द्वारा अपनी महँगी दवाई टेमिफ्लू को बेचने के लिए फैलाया गया है।
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए पतंजलि चिकित्सालय की गिलोय वटी ले या गुडकेयर आयुर्वेद की नीलगिरि दवाई ले।
ये दवाई आपको दिल्ली में स्वदेशी स्टोर गणेश नगर एक्सटेंशन 1ए शकरपुर से मिल जायेगी। दवाई का साइड फ़ेक्ट बिलकुल नहीं है और ये पूर्णत स्वदेशी है।
अत: विदेशी कंपनियो की लूट से बचे और स्वदेशी दवाइयो के द्वारा स्वाइन फ्लू को मार भगाए।
शेयर करे ताकि जो भाई बहन इस बीमारी से पीड़ित है वे जल्दी उपचार ग्रहण कर सके।



होम्योपथिक दवाएं - होम्योपथी में रोग के नाम से कोई दवा नहीं होती है, रोगी के  लक्षण के अनुसार ये दवायें दे सकते हैं।

1) आर्सेनिक - एल्बम 30 /200 - यह दवा रोग के शुरुआत में उपयोगी है। मांस खाने के कारण होने वाले रोग, सांस लेने में तकलीफ, नाक से पतला पानी जैसा बहे, आंखों में जलन हो, तेज ज्वर के साथ बेचैनी, कमजोरी लगे, बुखार कभी ठीक हो जाता है। कभी फिर से हो जाता है। बहुत तेज प्यास लगती है। (यह दवा रात को नहीं खाएं)

2) एकोनाएट (Aconite)30अचानक से और तीव्र गति से होने वाला बुखार, जिसमें बहुत ज्यादा शारीरिक व मानसिक बेचैनी होती है। बहुत ज्यादा छीकें आना, आँखें लाल सूजी हुई, गले में दर्द व जलन। (इस दवा को रात को नहीं खाएं)

3) नक्स -वोमिका (nux-vomica)200 - डॉक्टर हेनीमन (father of homoeopathy) के अनुसार इन्फ़्लुएन्ज़ा में यह प्रमुख दवा है। शक्तिकृत नक्स-वोमिका की एक खुराक देने से कुछ ही घंटो में रोग समाप्त हो जाता है। डॉक्टर यूनान के अनुसार इन्फ़्लुएन्ज़ा में अगर कोई प्रतिरोधक दवा है तो वह नक्स-वोमिका ही है। रोगी को बहुत ठण्ड लगती है। कितनी भी गर्मी पहुंचाई जाए ठण्ड नहीं जाती है, शरीर में दर्द, सर्दी जुकाम, दिन में नाक से पानी बहता है और रात को नाक बंद हो जाती है, खांसी के साथ छाती में दबाव, सांस लेने में तकलीफ, खांसी के कारण सिरदर्द, आँखों से पानी गिरना।

4) जेल्सिमियम( Gelsemium)30सारे शरीर में दर्द रहता है। रोगी नींद जैसी हालत में पड़ा रहता है, सिरदर्द, खांसी, जुकाम, आँखों में दर्द, सिर के पिछले भाग में दर्द, सिरदर्द के साथ गर्दन व कंधे में दर्द, छींकें, गले में निगलने में दर्द, बुखार में बहुत ज्यादा कांपता है, प्यास बिलकुल नहीं लगती है, चक्कर आते हैं।

5) ब्रायोनिया (Broynia )30प्यास बहुत ज्यादा लगती है, सारे शरीर के मसल्स में दर्द जो कि हिलने-डुलने से बढ़ता है और आराम करने से ठीक होता है। सिरदर्द के साथ पसलियों में दर्द, सूखी खांसी, उल्टी के साथ छाती में दर्द, चिड़चिड़ा होता है, गले में दर्द होता है, बलगम रक्त के रंग का होता है।

6) बेपटीसिया (Baptisia) 30 - धीमा बुखार, मसल्स में बहुत ज्यादा दर्द, सांस, पेशाब, पसीना आदि सभी स्त्राव से बहुत ज्यादा दुर्गन्ध आती है। महामारी के रूप में फैलने वाला इन्फ़्लुएन्ज़ा। लगता है कि शरीर टूट गया है, बड़बड़ाता है, बात करते-करते सो जाता है, मुहं में कड़वा स्वाद, गले में खराश, दम घुट जाने जैसा लगे, कमजोरी बहुत ज्यादा लगे।

7) सेबेडिला (sabadilla) 30 सर्दी जुकाम, चक्कर बहुत ज्यादा छींकें, नींद नहीं आती है, आँखें लाल व जलन करती हैं, नाक से पतला बहता पानी, सर्दी के कारण सुनने में तकलीफ, गले में बहुत ज्यादा दर्द, गरम चीजें खाने-पीने से आराम, सूखी खाँसी।

8) एलियम -सीपा (Allium -cepa)30नाक से तीखा स्त्राव, माथे में दर्द, आँखें बहुत ज्यादा लाल व पानी गिरता है, पलकों में जलन, कान में दर्द, छींकें, नाक से बहुत ज्यादा पानी आता है, गले में दर्द, जोड़ों में दर्द होता है।

9) युपटोरियम-पर्फोलियम (Euptorium -perfoliamtum) इन्फ़्लुएन्ज़ा के साथ सारे मसल्स व हड्डियों में दर्द, छींकें, गले व छाती में दर्द, बलगमयुक्त खाँसी, सुबह 7 से 9 बजे ठण्ड लगती है।

प्रतिरोधकदवा
1) थूजा (THUJA)200 - सप्ताह में एक बार
2) जेल्सिमियम( GELSEMIUM)30 - प्रतिदिन
3) नक्स -वोमिका ( NUX-VOMICA)200 - प्रतिदिन
4) इन्फ़्लुएन्ज़िउम (INFLUENZIUM) 200 - (single dose)
5) आर्सेनिक एल्बम (ARS-ALB)200 - प्रतिदिन

नोट - होम्योपथी में रोग के कारण को दूर कर के रोगी को ठीक किया जाता है। प्रत्येक रोगी की दवा उसकी शारीरिक और मानसिक अवस्था के अनुसार अलग-अलग होती है। अतः बिना चिकित्सकीय परामर्श यहां दी हुई किसी भी दवा का उपयोग न करें।

Jai Shree Krishna

Thanks,

Regards,

कैलाश चन्द्र  लढा(भीलवाड़ा)www.sanwariya.org
sanwariyaa.blogspot.com 
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गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

हमारे महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है .

क्या आप जानते हैं कि....... ....... हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????
साथ ही क्या आप जानते हैं कि....... हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ....."जम्बूदीप" था....?????
परन्तु..... क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि..... हमारे महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है ... और, इसका मतलब क्या होता है .....??????
दरअसल..... हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि ...... भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा.........????
क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है कि ........महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र ......... भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा...... परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...!
लेकिन........ वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात...... पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है......।
आश्चर्यजनक रूप से......... इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया..........जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर........ अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था....।
परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि...... जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि........ प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात .......महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था....।
लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये.... इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ....।
अथवा .....दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि...... जान बूझकर .... इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी......।
परन्तु ... हमारा ""जम्बूदीप नाम "" खुद में ही सारी कहानी कह जाता है ..... जिसका अर्थ होता है ..... समग्र द्वीप .
इसीलिए.... हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा... विभिन्न अवतारों में.... सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है.... क्योंकि.... उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था...
साथ ही हमारा वायु पुराण ........ इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है.....।

वायु पुराण के अनुसार........ त्रेता युग के प्रारंभ में ....... स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने........ इस भरत खंड को बसाया था.....।
चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था......... इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था....... जिसका लड़का नाभि था.....!
नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम........ ऋषभ था..... और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे ...... तथा .. इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम...... "भारतवर्ष" पड़ा....।
उस समय के राजा प्रियव्रत ने ....... अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को......... संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था....।
राजा का अर्थ उस समय........ धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था.......।

इस तरह ......राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक .....अग्नीन्ध्र को बनाया था।
इसके बाद ....... राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया..... और, वही " भारतवर्ष" कहलाया.........।

ध्यान रखें कि..... भारतवर्ष का अर्थ है....... राजा भरत का क्षेत्र...... और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम ......सुमति था....।
इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है....—
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए..... रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि.....
हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं ....... तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी.... संकल्प करवाते हैं...।
हालाँकि..... हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं... और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र ...... मानकर छोड़ देते हैं......।
परन्तु.... यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो.....उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है......।
संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि........ -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं..... क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है.....।
इस जम्बू द्वीप में....... भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात..... ‘भारतवर्ष’ स्थित है......जो कि आर्याव्रत कहलाता है....।
इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा....... हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं......।
परन्तु ....अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि ...... जब सच्चाई ऐसी है तो..... फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से.... इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है....?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि ...... शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ......इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा ....... शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है.... अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा... ।
परन्तु..... जब हमारे पास ... वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है .........और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि..... धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें....?????
सिर्फ इतना ही नहीं...... हमारे संकल्प मंत्र में.... पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि........ अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है......।
फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि.... एक तरफ तो हम बात ........एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं ......... परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!
आप खुद ही सोचें कि....यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है........?????
इसीलिए ...... जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ..... पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों ..........तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है.........।
हमारे देश के बारे में .........वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है.....—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि ......... हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है.....।
इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि......हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है....।
ऐसा इसीलिए होता है कि..... आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं ..... और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है........... परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें..... तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।
और.....यह सोच सिरे से ही गलत है....।
इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि.... राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है.....।
परन्तु.... आश्चर्य जनक रूप से .......हमने यह नही सोचा कि..... एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में ......आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है.....?
विशेषत: तब....... जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे.... और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था....।
फिर उसने ऐसी परिस्थिति में .......सिर्फ इतना काम किया कि ........जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं ....उन सबको संहिताबद्घ कर दिया...।
इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा.......और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि.... राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है...।
और.... ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं....... इसीलिए.... अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए....।
क्योंकि..... इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है...... जैसा कि इसके विषय में माना जाता है........ बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है.....।
इसीलिए हिन्दुओं जागो..... और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो.....!
हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं.... और, हमें गर्व होना चाहिए कि .... हम हिन्दू हैं...!

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