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शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

रात में सोने से पहले न खाएं ये 10 खाद्य सामग्री

ये 10 खाद्य सामग्री रात में सोने से पहले न खाएं

आइसक्रीम
सोने से पहले आइसक्रीम न खाएं। आइसक्रीम में फैट और शुगर की मात्रा ज्‍यादा होती है जो शरीर में जाकर एकदम से हिट करती है और ऊर्जा का संचार होने लगता है, इस वजह से नींद का गायब होना स्‍वाभाविक है

टॉफी/ कैंडी
टॉफी में भी शुगर होती है इसी वजह से यह बॉडी को एनर्जी देती है। यह एनर्जी बहुत ज्‍यादा नहीं होती लेकिन नींद में खलल डालने के लिए काफी है।

लहसुन
लहसुन एक गर्म तासीर वाला हर्ब होता है जिसे खाने के शरीर में गर्मी यानि रक्‍त का संचार अच्‍छे से होता है, वहीं इसे खाकर तुरन्‍त लेट जाने पर पेट में गैस्ट्रिक प्रॉब्‍लम भी हो सकती है। ऐसे में इसे रात के भोजन में न खाना ही बेहतर ऑप्‍शन है।

रेड मीट
रेड मीट, आपके शरीर में दिनभर के पोषक तत्‍वों की कमी को पूरा कर सकता है लेकिन यह काफी प्रोटीन और फैट वाला खाद्य पदार्थ होता है जिसे पचाने में शरीर को काफी मशक्‍कत करनी पड़ती है। वहीं रेड मीट की एनर्जी भी बॉडी को हीट करती है, ऐसे में नींद की प्रक्रिया में खलल आना स्‍वाभाविक है।

शराब
रात में शराब पीने की आदत बहुत लोगों की होती है, उन्‍हे ऐसा लगता है इससे उन्‍हे अच्‍छी नींद आती है, लेकिन यह गलत है। शराब पीने से उनकी नींद आने की नैचुरल प्रक्रिया पर नकारात्‍मक असर पड़ता है। शराब पीकर सोने पर आपको वह सुबह उठकर सामान्‍य दिनों जैसी स्‍फूर्ति और ताजगी नहीं मिलती है। वहीं कई बार शराब के नशे में होश नहीं रहता है जिसे लोग बढि़या नींद समझ बैठते हैं।

डार्क चॉकलेट
डार्क चॉकलेट में कैफीन की मात्रा बहुत ज्‍यादा होती है, जो आपके शरीर को एकदम से बूस्‍ट अप कर देती हैं। वहीं कई बार डार्क चॉकलेट में थियोब्रोमाइन भी मिला होता है जो दिल को तेजी से धड़काने का काम और शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करता है, ऐसे में सोना थोड़ा मुश्किल होता है।

भारी भोजन
भारी भोजन न लें सोने से पहले, अगर आप वेज फूड भी खाते हैं तो हल्‍का और आसानी से पचने वाला खाना खाएं। जैसे- गेंहू के आटा के फुल्‍के, खिचड़ी। ज्‍यादा भारी भोजन करने से आपको ही पेट सम्‍बन्धित समस्‍याएं हो सकती हैं।

पिज्‍जा
पिज्‍जा, फास्‍ट फूड है जिसे खा तो आप बढ़े मजे से लेते है लेकिन आपके पेट को उसे पचाने में बहुत मशक्‍कत करनी पड़ती है। इसमें पड़ने वाला टुमैटो सॉस, एसिड से भरा हुआ होता है जो पेट में गैस की समस्‍या भी पैदा कर सकता है।

पास्‍ता
पास्‍ता भी फास्‍ट फूड है, जो मैदा का बना होता है। मैदा अनाज का पिसा का बहुत महीन रूप होती है जो पचने में ज्‍यादा समय लेती है। साथ ही इसे बनाने में यूज होने वाले सॉस और अन्‍य सामग्री भी बॉडी को रिलेक्‍स नहीं होने देती।

आजवाइन
आजवाइन से बना भोजन आपको सुनकर आश्‍चर्य होगा, लेकिन आजवाइन को रात के खाने में खाने से परहेज करें। आजवाइन एक प्रकार का प्राकृतिक मसाला है जिससे पेशाब बहुत ज्‍यादा आती है। यह काफी गर्म होती है जिसे कारण लोगों को ज्‍यादा पानी पीना पड़ता है। बार - बार पानी पीना और फिर पेशाब जाने से आपकी नींद में खलल आ सकता है।

शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

"द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया" कुम्भलगढ़, उदयपुर, राजस्थान:जो देती है चीन की दीवार को टक्कर

 "द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया" जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य ●

कुम्भलगढ़, उदयपुर, राजस्थान:
चीन के दीवार का नाम विश्व में सभी जानते हैं | आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में भी एक ऐसी दीवार है जो सीधे तौर पर चीन के दीवार को टक्कर देती है | जिसे भेदने की कोशिश अकबर ने भी की लेकिन भेद न सका। जिसके दीवार की मोटाई इतनी है कि उस पर 10 घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं।

कैसे बनी ये 36 किलोमीटर लंबी दीवार ?

किले के दीवार की निर्माण से जुड़ी कहानी बहुत ही दिलचस्प है | 1443 में राणा कुंभा ने किले का निर्माण शुरू किया लेकिन, जैसे जैसे दीवारों का निर्माण आगे बढ़ा वैसे-वैसे दीवारें रास्ता देते चली गई। दरअसल, इस दीवार का काम इसलिए करवाया जा रहा था ताकि विरोधियों से सुरक्षा हो सके | लेकिन दीवारें थी की बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी | फिर कारिगरों ने राजा को बताया कि यहां पर किसी देवी का वास है।

इस किले के लिए चढ़ाई गई संत की बलि

देवी कुछ और ही चाहती हैं राजा इस बात पर चिंतित हो गए और एक संत को बुलाया और सारी गाथा सुनाकर इसका हल पूछा | संत ने बताया कि देवी इस काम को तभी आगे बढ़ने देंगी जब स्वेच्छा से कोई मानव बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करे | राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा | तभी संत ने कहा कि वह खुद बलिदान के लिए तैयार है और इसके लिए राजा से आज्ञा मांगी |

संत ने कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां वो रुके वहीं उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का मंदिर बनाया जाए | ठीक ऐसा ही हुआ और वह 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया | जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा मुख्य द्वार है |

यह किला चारों तरफ से अरावली की पहाड़ियों की मजबूत ढाल द्वारा सुरक्षित है |

इसका निर्माण पंद्रहवी सदी में राणा कुम्भा ने करवाया था। पर्यटक किले के ऊपर से आस पास के रमणीय दृश्यों का आनंद ले सकते हैं | शत्रुओं से रक्षा के लिए इस किले के चारों ओर दीवार का निर्माण किया गया था | ऐसा कहा जाता है कि चीन की महान दीवार के बाद यह एक सबसे लम्बी दीवार है | यह किला 1100 मीटर की ऊंचाई पर समुद्र स्तर से परे क्रेस्ट शिखर पर बनाया गया है। इस किले के निर्माण को पूरा करने में 15 साल का समय लागा |

दस घोड़े एक साथ दौड़ते है इसके दीवार पर

महाराणा कुंभा के रियासत में कुल 84 किले आते थे जिसमें से 32 किलों का नक्शा उसके द्वारा बनवाया गया था | कुंभलगढ़ भी उनमें से एक है | इस किले की दीवार की चौड़ाई इतनी ज्यादा है कि 10 घोड़ों को एक ही समय में उसपर दौड़ सकते हैं | एक मान्यता यह भी है कि महाराणा कुंभा अपने इस किले में रात में काम करने वाले मजदूरों के लिए 50 किलो घी और 100 किलो रूई का प्रयोग करता था |

यहां है "बादलों का महल"

बादल महल को ‘बादलों के महल’ के नाम से भी जाना जाता है | यह कुम्भलगढ़ किले के शीर्ष पर स्थित है | इस महल में दो मंजिलें हैं एवं यह संपूर्ण भवन दो आतंरिक रूप से जुड़े हुए खंडों, मर्दाना महल और जनाना महल में विभाजित हैं |

इस महल के कमरों के दीवारों पर सुंदर दृश्यों को अंगित किया गया है जो उन्नीसवीं शताब्दी के काल को प्रदर्शित करते हैं |

उस समय भी होता था एसी का प्रयोग

आज भी एसी का प्रयोग कर ऑफिसों में पाइपों के द्वारा ठंढ़क पहूंचाई जाती है | उस समय भी महल के इस परिसर में रचनात्मक वातानुकूलन प्रणाली लगा हुआ था जो आज भी है | यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है जिसे देखना एक दिलचस्प बात है | इसमें पाइपों की एक श्रृंखला है जो इन सुंदर कमरों को ठंडी हवा प्रदान करती है और साथ ही कमरों को नीचे से भी ठंडा करती हैं | पर्यटक जनाना महल में पत्थरों की जालियों से बाहर का नजारा देख सकते हैं | ये जालियां रानियों द्वारा दरबार की कार्यवाही को देखने के लिए प्रयोग में लाई जाती थी |

सुरक्षा ऐसी कि परिंदा भी न मार सके पैर:

सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए इस दुर्ग में ऊंचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारतें बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया वही ढलान वाले भागों का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वावलंबी बनाया गया | इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है |

इसे बनाते समय रखा गया वास्तु शास्त्र का ध्यान:

वास्तु शास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारते, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है |

सिर्फ एक बार छाया किले पर हार का साया

कुंभलगढ़ को अपने इतिहास में सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा जब मुगल सेना ने किले की तीन महिलाओं को जान से मारने की धमकी देकर अंदर प्रवेश करने का रास्ता पूछा | महिलाओं ने डर से एक गुप्त द्वार बताया लेकिन, इसके बाद भी मुगल अंदर जाने में सफल नहीं हो पाए। एक बार फिर अकबर के बेटे सलीम ने भी इस किले पर फतह करने की सोची लेकिन उसे भी खाली हाथ वापस लौटना पड़ा |

जिसे कोई और न मार सका उसके बेटे ने ही ले ली जान

महाराणा प्रताप की जन्म स्थली कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है | महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा | यहीं पर पृथ्वीराज और महाराणा सांगा का बचपन बीता था |

धोखा देने पर चुनवा दिया दीवार में

कुछ समय बाद जब राजा को उस महिलाओं के बारे में पता चला तो उन्होंने तीनों को किले के द्वार पर दीवार में जिंदा चुनवा दिया | ऐसा कर राजा ने लोगों को यह संदेश दिया कि राज्य के सुरक्षा के साथ जो भी खिलवाड़ करेगा उसका यही अंजाम होगा |

यहाँ पहुँचाना है बेहद आसान

कुम्भलगढ़ किला उदयपुर शहर से 64 किलोमीटर की दूरी पर है | उदयपुर शहर से कुम्भलगढ़ किले तक आसानी से पहुंचा जा सकता है | पर्यटक आसानी से रेलमार्ग, वायुमार्ग या सडक द्वारा इस स्थान तक पहुंच सकते हैं |

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