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सोमवार, 15 जून 2015

शंख से घर में आये सुख-शांति और रोगों से मुक्ति .....!

शंख से घर में आये सुख-शांति और रोगों से मुक्ति .....!
* हिन्दू धर्म में शंख को पवित्र और शुभ फलदायी माना गया है। इसलिए पूजा-पाठ में शंख बजाने का नियम है। अगर इसके धार्मिक पहलू को दरकिनार भी कर दें तो भी घर में शंख रखने और इसे नियमित तौर पर बजाने के ऐसे कई फायदे हैं जो सीधे तौर पर हमारी सेहत और घर की सुख-शांति से जुड़े हैं।
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग

* ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है। यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है। विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। समुद्री प्राणी का खोल शंख कितना चमत्कारी हो सकता है।
* हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है। शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दू धर्म में शंख का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है। शंख का हमारी पूजा से निकट का सम्बन्ध है।
* कहा जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर जल गंगाजल के सदृश पवित्र हो जाता है। मन्दिर में शंख में जल भरकर भगवान की आरती की जाती है। आरती के बाद शंख का जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं। जो भगवान कृष्ण को शंख में फूल, जल और अक्षत रखकर उन्हें अर्ध्य देता है, उसको अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है।
* शंख में जल भरकर ऊँ नमोनारायण का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता है।
* धार्मिक कृत्यों में शंख का उपयोग किया जाता है। पूजा-आराधना, अनुष्ठान-साधना, आरती, महायज्ञ एवं तांत्रिक क्रियाओं के साथ शंख का वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक महत्त्व भी है।
* हिन्दू मान्यता के अनुसार कोई भी पूजा, हवन, यज्ञ आदि शंख के उपयोग के बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। कुछ गुह्य साधनाओं में इसकी अनिवार्यता होती है। शंख साधक को उसकी इच्छित मनोकामना पूर्ण करने में सहायक होते हैं तथा जीवन को सुखमय बनाते हैं। शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। वैदिक अनुष्ठानों एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी विभिन्न प्रकार के शंखों का प्रयोग किया जाता है।
* शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी प्रकारों की विशेषता एवं पूजन-पद्धति भिन्न-भिन्न है। उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख कैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका एवं भारत में पाये जाते हैं। शंख की आकृति (उदर) के आधार पर इसके प्रकार माने जाते हैं।
* ये तीन प्रकार के होते हैं - दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है, वह दक्षिणावृत्ति शंख कहलाता है। जिस शंख का मुँह बीच में खुलता है, वह मध्यावृत्ति शंख होता है तथा जो शंख बायें हाथ से पकड़ा जाता है, वह वामावृत्ति शंख कहलाता है।
* शंख का उदर दक्षिण दिशा की ओर हो तो दक्षिणावृत्त और जिसका उदर बायीं ओर खुलता हो तो वह वामावृत्त शंख है। मध्यावृत्ति एवं दक्षिणावृति शंख सहज रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं। इनकी दुर्लभता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण ये अधिक मूल्यवान होते हैं। इनके अलावा लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि प्रकार के होते हैं। हिन्दुओं के 33 करोड़ देवता हैं। सबके अपने- अपने शंख हैं। देव-असुर संग्राम में अनेक तरह के शंख निकले, इनमे कई सिर्फ़ पूजन के लिए होते है।
* समुद्र मंथन के समय देव- दानव संघर्ष के दौरान समुद्र से 14 अनमोल रत्नों की प्राप्ति हुई। जिनमें आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ।
* जिनमें सर्वप्रथम पूजित देव गणेश के आकर के गणेश शंख का प्रादुर्भाव हुआ जिसे गणेश शंख कहा जाता है। इसे प्रकृति का चमत्कार कहें या गणेश जी की कृपा की इसकी आकृति और शक्ति हू-ब-हू गणेश जी जैसी है। गणेश शंख प्रकृति का मनुष्य के लिए अनूठा उपहार है। निशित रूप से वे व्यक्ति परम सौभाग्यशाली होते हैं जिनके पास या घर में गणेश शंख का पूजन दर्शन होता है। भगवान गणेश सर्वप्रथम पूजित देवता हैं। इनके अनेक स्वरूपों में यथा- विघ्न नाशक गणेश, दरिद्रतानाशक गणेश, कर्ज़ मुक्तिदाता गणेश, लक्ष्मी विनायक गणेश, बाधा विनाशक गणेश, शत्रुहर्ता गणेश, वास्तु विनायक गणेश, मंगल कार्य गणेश आदि- आदि अनेकों नाम और स्वरुप गणेश जी के जन सामान्य में व्याप्त हैं। गणेश जी की कृपा से सभी प्रकार की विघ्न- बाधा और दरिद्रता दूर होती है।
* जहाँ दक्षिणावर्ती शंख का उपयोग केवल और केवल लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किया जाता है। वही श्री गणेश शंख का पूजन जीवन के सभी क्षेत्रों की उन्नति और विघ्न बाधा की शांति हेतु किया जाता है। इसकी पूजा से सकल मनोरथ सिद्ध होते है। गणेश शंख आसानी से नहीं मिलने के कारण दुर्लभ होता है। सौभाग्य उदय होने पर ही इसकी प्राप्ति होती है।
* आर्थिक, व्यापारिक और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति पाने का श्रेष्ठ उपाय श्री गणेश शंख है। अपमान जनक कर्ज़ बाधा इसकी स्थापना से दूर हो जाती है। इस शंख की आकृति भगवान गणपति के सामान है। शंख में निहित सूंड का रंग अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य युक्त है। प्रकृति के रहस्य की अनोखी झलक गणेश शंख के दर्शन से मिलती है। विधिवत सिद्ध और प्राण प्रतिष्ठित गणेश शंख की स्थापना चमत्कारिक अनुभूति होती ही है। किसी भी बुधवार को प्रातः स्नान आदि से निवृत्ति होकर विधिवत प्राण प्रतिष्ठित श्री गणेश शंख को अपने घर या व्यापार स्थल के पूजा घर में रख कर धूप- दीप पुष्प से संक्षिप्त पूजन करके रखें। ये अपने आप में चैतन्य शंख है। इसकी स्थापना मात्र से ही गणेश कृपा की अनुभूति होने लगाती है। इसके सम्मुख नित्य धूप- दीप जलना ही पर्याप्त है किसी जटिल विधि- विधान से पूजा करने की जरुरत नहीं है।
महालक्ष्मी शंख :-
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इसका आकार श्री यंत्र क़ी भांति होता है। इसे प्राक्रतिक श्री यंत्र भी माना जाता है। जिस घर में इसकी पूजा विधि विधान से होती है वहाँ स्वयं लक्ष्मी जी का वाश होता है। इसकी आवाज़ सुरीली होती है। विद्या क़ी देवी सरस्वती भी शंख धारण करती है। वे स्वयं वीणा शंख कि पूजा करती है। माना जाता है कि इसकी पूजा वा इसके जल को पीने से मंद बुद्धि व्‍यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है।
दक्षिणावर्ती शंख:-
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स्वयं भगवान विष्णु अपने दाहिने हाथ में दक्षिणावर्ती शंख धारण करते है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय यह शंख निकला था। जिसे स्वयं भगवान विष्णु जी ने धारण किया था। यह ऐसा शंख है जिसे बजाया नहीं जाता, इसे सर्वाधिक शुभ माना जाता है।

शंख की उत्पत्ति:-
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शंख की उत्पत्ति संबंधी पुराणों में एक कथा वर्णित है। सुदामा नामक एक कृष्ण भक्त पार्षद राधा के शाप से शंखचूड़ दानवराज होकर दक्ष के वंश में जन्मा। अन्त में [विष्णु] ने इस दानव का वध किया। शंखचूड़ के वध के पश्चात्‌ सागर में बिखरी उसकी अस्थियों से शंख का जन्म हुआ और उसकी आत्मा राधा के शाप से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन में श्रीकृष्ण के पास चली गई।

*भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है। मान्यता है कि इसका प्रादुर्भाव समुद्र-मंथन से हुआ था। समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से छठवां रत्न शंख था। अन्य 13 रत्नों की भांति शंख में भी वही अद्भुत गुण मौजूद थे। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अत यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है।
* इन्हीं कारणों से शंख की पूजा भक्तों को सभी सुख देने वाली है। शंख की उत्पत्ति के संबंध में हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं कि सृष्टी आत्मा से, आत्मा आकाश से, आकाश वायु से, वायु आग से, आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्व से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी जाती है।
* भागवत पुराण के अनुसार, संदीपन ऋषि आश्रम में श्रीकृष्ण ने शिक्षा पूर्ण होने पर उनसे गुरु दक्षिणा लेने का आग्रह किया। तब ऋषि ने उनसे कहा कि समुद्र में डूबे मेरे पुत्र को ले आओ। कृष्ण ने समुद्र तट पर शंखासुर को मार गिराया। उसका खोल शेष रह गया। माना जाता है कि उसी से शंख की उत्पत्ति हुई। पांचजन्य शंख वही था।
* पौराणिक कथाओं के अनुसार, शंखासुर नामक असुर को मारने के लिए श्री विष्णु ने मत्स्यावतार धारण किया था। शंखासुर के मस्तक तथा कनपटी की हड्डी का प्रतीक ही शंख है। उससे निकला स्वर सत की विजय का प्रतिनिधित्व करता है।
* शिव पुराण के अनुसार शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ। शंखचूड दैत्यराम दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ को जब बहुत समय तक कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई तब उसने विष्णु के लिए घोर तप किया और तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए। विष्णु ने वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने एक महापराक्रमी तीनों लोको के लिए अजेय पुत्र का वर मांगा और विष्णु तथास्तु बोलकर अंतध्र्यान हो गए। तब दंभ के यहां शंखचूड का जन्म हुआ और उसने पुष्कर में ब्रह्मा की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने वर मांगने के लिए कहा और शंखचूड ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्मा ने तथास्तु बोला और उसे श्री कृष्ण कवच दिया फिर वे अंतध्र्यान हो गए। जाते-जाते ब्रह्मा ने शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। ब्रह्मा की आज्ञा पाकर तुलसी और शंखचूड का विवाह हो गया। ब्रह्मा और विष्णु के वर के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर लिया। देवताओं ने त्रस्त होकर विष्णु से मदद मांगी परंतु उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था अत: उन्होंने शिव से प्रार्थना की। तब शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निश्चय किया और वे चल दिए। परंतु श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे तब विष्णु से ब्राह्मण रूप बनाकर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया और शंखचूड का रूप धारण कर तुलसी के शील का अपहरण कर लिया। अब शिव ने शंखचूड को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। चूंकि शंखचूड विष्णु भक्त था अत: लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। परंतु शिव ने चूंकि उसका वध किया था अत: शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है। इसी वजह से शिवजी को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है।
* प्राचीन काल से ही प्रत्येक घर में पूजा-वेदी पर शंख की स्थापना की जाती है। निर्दोष एवं पवित्र शंख को दीपावली, होली, महाशिवरात्रि, नवरात्र, रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य नक्षत्र आदि शुभ मुहूर्त में विशिष्ट कर्मकांड के साथ स्थापित किया जाता है। रुद्र, गणेश, भगवती, विष्णु भगवान आदि के अभिषेक के समान शंख का भी गंगाजल, दूध, घी, शहद, गुड़, पंचद्रव्य आदि से अभिषेक किया जाता है। इसका धूप, दीप, नैवेद्य से नित्य पूजन करना चाहिए और लाल वस्त्र के आसन में स्थापित करना चाहिए।
* शंखराज सबसे पहले वास्तु-दोष दूर करते हैं। मान्यता है कि शंख में कपिला (लाल) गाय का दूध भरकर भवन में छिड़काव करने से वास्तुदोष दूर होते हैं। परिवार के सदस्यों द्वारा आचमन करने से असाध्य रोग एवं दुःख-दुर्भाग्य दूर होते हैं। विष्णु शंख को दुकान, ऑफिस, फैक्टरी आदि में स्थापित करने पर वहाँ के वास्तु-दोष दूर होते हैं तथा व्यवसाय आदि में लाभ होता है। शंख की स्थापना से घर में लक्ष्मी का वास होता है।
* स्वयं माता लक्ष्मी कहती हैं कि शंख उनका सहोदर भ्राता है। शंख, जहाँ पर होगा, वहाँ वे भी होंगी। देव प्रतिमा के चरणों में शंख रखा जाता है। पूजास्थली पर दक्षिणावृत्ति शंख की स्थापना करने एवं पूजा-आराधना करने से माता लक्ष्मी का चिरस्थायी वास होता है। इस शंख की स्थापना के लिए नर-मादा शंख का जोड़ा होना चाहिए। गणेश शंख में जल भरकर प्रतिदिन गर्भवती नारी को सेवन कराने से संतान गूंगेपन, बहरेपन एवं पीलिया आदि रोगों से मुक्त होती है। अन्नपूर्णा शंख की व्यापारी व सामान्य वर्ग द्वारा अन्नभंडार में स्थापना करने से अन्न, धन, लक्ष्मी, वैभव की उपलब्धि होती है। मणिपुष्पक एवं पांचजन्य शंख की स्थापना से भी वास्तु-दोषों का निराकरण होता है। शंख का तांत्रिक-साधना में भी उपयोग किया जाता है। इसके लिए लघु शंखमाला का प्रयोग करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है।
आइये जानें शंख बजाने और इसके इस्तेमाल के फायदे:-
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* शंख का महत्त्व धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, वैज्ञानिक रूप से भी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख-ध्वनि के प्रभाव में सूर्य की किरणें बाधक होती हैं। अतः प्रातः व सायंकाल में जब सूर्य की किरणें निस्तेज होती हैं, तभी शंख-ध्वनि करने का विधान है। इससे आसपास का वातावरण तता पर्यावरण शुद्ध रहता है। आयुर्वेद के अनुसार शंखोदक भस्म से पेट की बीमारियाँ, पीलिया, कास प्लीहा यकृत, पथरी आदि रोग ठीक होते हैं।
* तंत्र शास्त्र के अनुसार सीधे हाथ की तरफ खुलने वाले शंख को यदि पूर्ण विधि-विधान के साथ करके इस शंख को लाल कपड़े में लपेटकर अपने घर में अलग- अलग स्थान पर रखने से विभिन्न परेशानियों का हल हो सकता है। दक्षिणावर्ती शंख को तिज़ोरी मे रखा जाए तो घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इसलिए घर में शंख रखा जाना शुभ माना जाता है।
* लक्ष्मी के हाथ में जो शंख होता है वो दक्षिणावर्ती अर्थात सीधे हाथ की तरफ खुलने वाले होते हैं। वामावर्ती शंख को जहां विष्णु का स्वरुप माना जाता है और दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरुप माना जाता है। दक्षिणावृत्त शंख घर में होने पर लक्ष्मी का घर में वास रहता है।
* वर्तमान समय में वास्तु-दोष के निवारण के लिए जिन चीज़ों का प्रयोग किया जाता है, उनमें से यदि शंख आदि का उपयोग किया जाए तो कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं। यह न केवल वास्तु-दोषों को दूर करता है, बल्कि आरोग्य वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह में विलंब जैसे अनेक दोषों का निराकरण एवं निवारण भी करता है।
* मान्यता है कि छोटे-छोटे बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बाँधने तथा शंख में जल भरकर अभिमंत्रित करके पिलाने से वाणी-दोष नहीं रहता है। बच्चा स्वस्थ रहता है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मूक एवं श्वास रोगी हमेशा शंख बजायें तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं।
*शंख के जल से शालीग्राम को स्नान कराएं और फिर उस जल को यदि गर्भवती स्त्री को पिलाया जाए तो पैदा होने वाला शिशु पूरी तरह स्वस्थ होता है। साथ ही बच्चा कभी मूक या हकला नहीं होता। यदि कोई बोलने में असमर्थ है या उसे हकलेपन का दोष है तो शंख बजाने से ये दोष दूर होते हैं। शंख बजाने से कई तरह के फेफड़ों के रोग दूर होते हैं जैसे दमा, कास प्लीहा यकृत और इन्फ्लून्जा आदि रोगों में शंख ध्वनि फायदा पहुंचाती है। रूक-रूक कर बोलने व हकलाने वाले यदि नित्य शंख-जल का पान करें, तो उन्हें आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा। दरअसल मूकता व हकलापन दूर करने के लिए शंख-जल एक महौषधि है।
* शंखों में भी विशेष शंख जिसे दक्षिणावर्ती शंख कहते हैं इस शंख में दूध भरकर शालीग्राम का अभिषेक करें। फिर इस दूध को निरूसंतान महिला को पिलाएं। इससे उसे शीघ्र ही संतान का सुख मिलता है।
* 1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया कि इसकी ध्वनि कीटाणुओं को नष्ट करने कि उत्तम औषधि है।
* माना जाता है कि पूजा-पाठ में शंख बजाने से शरीर और आसपास का वातावरण शुद्घ होता है और सतोगुण की वृद्घि होती है, जो मनुष्य के विकास में सहायक होता है।
* जहां तक शंख की आवाज जाती है, इसे सुनकर लोगों के मन में सकारात्मक विचार पैदा होते हैं और वे पूजा-अर्चना के लिए प्रेरित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि शंख की पूजा से हमारी कामनाएं पूरी होती हैं।
* चूंकि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में शंख को धारण करते हैं, लिहाजा शंख को बेहद शुभ माना जाता है। साथ ही ऐसी मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है और दिनोंदिन उन्नति होती है।
* शंख बजाने से फेफड़े का व्यायाम होता है और स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। खासतौर पर श्वास के रोगी के लिए यह बेहद असरदार माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार शंख बजाने से दमा, यकृत और इन्फ़्लुएन्ज़ा जैसी बीमारियां भी दूर होती हैं।
* पूजा के समय शंख में जल भरकर देवस्थान में रखने और उस जल से पूजन सामग्री धोने और घर के आस-पास छिड़कने से वातावरण शुद्ध रहता है। क्योकि शंख के जल में कीटाणुओं को नष्ट करने की अद्भूत शक्ति होती है। साथ ही शंख में रखा पानी पीना स्वास्थ्य और हमारी हड्डियों, दांतों के लिए बहुत लाभदायक है। शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम जैसे उपयोगी पदार्थ मौजूद होते हैं। इससे इसमें मौजूद जल सुवासित और रोगाणु रहित हो जाता है। इसीलिए शास्त्रों में इसे महाऔषधि माना जाता है।
* शंख में जल रखने और इसे छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है। शंख में कैल्श‍ियम और फॉस्फोरस के गुण मौजूद होते हैं। लिहाजा शंख में रखे पानी के सेवन से हड्डियां मजबूत होती हैं।
* प्रयोग के लिए कुछ दिन के लिए शंख को घर में लाये और उपरोक्त नियम-अनुसार लाभ प्राप्त करे .

शुक्रवार, 5 जून 2015

पान के पत्ते से केसे कम करे मोटापा ...!

पान के पत्ते से केसे कम करे मोटापा ...!

* पहले तो विवाह के अवसर पर भोज के अंत में खाने के लिए पान दिया जाता था। क्या आपको पता है कि इसके पीछे क्या कारण था......?

* पान खाने का चलन बहुत पुराना है। पहले तो विवाह के अवसर पर भोज के अंत में खाने के लिए पान दिया जाता था। क्या आपको पता है कि इसके पीछे क्या कारण था? पान हजम शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है, साथ ही वज़न को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। जब पान को काली मिर्च के साथ खाया जाता है तब वज़न घटाने के प्रक्रिया और भी असरदार रूप में काम करने लगती है।
* अक्‍सर खाना खाने के बाद पान खाना पसंद करते हों लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि इसके कई स्‍वास्‍थ लाभ भी होते हैं.....?
* यदि आपको यह पता चल जाए कि पान को खाने से आप मोटापे पर कंट्रोल कर सकते हैं, तो आप क्‍या कहेंगे.....?
* अधिकतर लोग तंबाकू-सुपारी या फिर गिलौरी डाल कर खाना पसंद करते हैं।अगर पान के पत्‍ते को काली मिर्च के दानों के साथ खाएं, तो यह 8 हफ्तों में मोटापा कम कर देगा।
* पान के पत्ते बहुत शक्तिशाली गुणों से भरे होते हैं, यह और उचित हाजमें के लिये जाने जाते हैं। एक स्‍टडी में पाया गया कि पान के पत्‍ते शरीर का मेटाबॉलिज्‍म बढाते हैं तथा पेट में एसिडिटी होने से रोकते हैं। खाने खाने के बाद आप पान के पत्‍ते को जैसे ही मुंह में डालते हैं, यह तुरंत अपना असर दिखाना शुरु कर देता है। इसे खाने से मुंह में थूक बनने लगता है और यह पेट को खाना पचाने के लिये दिमाग को सिगनल भेज देता है। यह शरीर से विशैले पदार्थों को भी निकालने में सहायक है। पान खाने से कब्‍ज की समस्‍या भी नहीं होती।
* आयुर्वेद के अनुसार पाल की पत्‍तियां शरीर से मेधा धातुं यानी की बॉडी फैट को निकालती हैं, जिससे वजन कम होता है। प्रात:काल नाश्ते के उपरांत काली मिर्च के साथ पान के सेवन से भूख ठीक से लगती है। ऐसा यूजीनॉल अवयव के कारण होता है। सोने से थोड़ा पहले पान को नमक और अजवायन के साथ मुंह में रखने से नींद अच्छी आती है। अगर दूसरी ओर यदि काली मिर्च की बात की जाए तो उसमें पेप्पेरिन और पायथोन्‍यूट्रियंट्स होते हैं जो कि फैट का ब्रेक डाउन करते हैं। साथ ही इमसें मौजूद पेप्‍पेरिन तत्‍व पाचन क्रिया मे बहुत अहम रोल अदा करता है। काली मिर्च शरीर से मूत्र और पसीने को निकालती है जिससे शरीर से अत्‍यधिक पानी और गंदगी निकल जाती है।
* पान को चबाने से चयापचय (metabolism) का दर बढ़ जाता है, मुँह में लार बनने लगता है जो खाने को जल्दी हजम करवाने में मदद करता है। साथ ही शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में सहायता करता है। इसमें फाइबर उच्च मात्रा में होने के कारण भूख कम लगती है और कब्ज़ की बीमारी से भी राहत मिलती है। पान के पत्ते को जब काली मिर्च के साथ खाया जाता है तब इसमें जो फाइटोन्यूट्रीएन्ट (phytonutrients) और पीपरीन ( piperine) होता है वह शरीर में फैट को जमने नहीं देता है। और शरीर से विषाक्त पदार्थों को और अतिरिक्त जल को बाहर निकालने में मदद करता है।
 


केसे करे इसे प्रयोग जाने :-
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* एक पान का पत्‍ता लें और उसमें 5 साबुत काली मिर्च रखें। फिर इसे मोड़ कर चबाएं। इसे खाली पेट रोजाना 8 हफ्तों तक खाएं। यह खाने में तीखा लगेगा। इसे धीरे धीरे चबा कर खाएं जिससे इसके सभी पेाषण आपके थूक के साथ आराम से पेट के अंदर जाएं। इससे उसकी पूरी पौष्टिकता लार के साथ पेट में चली जाएगी़। रोज सुबह खाली पेट इसको आठ हफ़्ते तक खायें और अपने वज़न में आए अंतर को देखें।
* पान की पत्‍ती हमेशा ताजी होनी चाहिये। यह हरे रंग की और नाजुक होनी चाहिये। अगर यह सूखी हुई और पीले रंग की पड़ गई है तो ऐस ना खाएं क्‍योंकि इसमें समाए सभी औषधीय मूल्य खो चुके होते हैं। इसके अलावा सड़ी हुई पत्‍ती जिसका रंग काला पड़ चुका है उसे भी ना खाएं नहीं तो पेट खराब होने का डर रहता है।
* मुलेठी के चूर्ण को पान के पत्ते में रखकर खाने से बैठा हुआ गला ठीक हो जाता है। या सोते समय एक ग्राम मुलेठी के चूर्ण को मुख में रखकर कुछ देर चबाते रहे। फिर वैसे ही मुँह में रखकर जाएँ। प्रातः काल तक गला साफ हो जायेगा। गले के दर्द और सूजन में भी आराम आ जाता है।

नाभि का टलना /हटना ::

नाभि का टलना /हटना :
 
आमतौर पर पुरुषों की नाभि बाईं ओर तथा स्त्रियों की नाभि दाईं ओर टला करती है। यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चल रहा है याने छाती की तरफ तो यकृत प्लीहा आमाशय अग्नाशय की क्रिया हीनता होने लगती है ! इससे फेफड़ों-ह्रदय पर गलत प्रभाव होता है। मधुमेह, अस्थमा,ब्रोंकाइटिस -थायराइड मोटापा -वायु विकार घबराहट जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं। यही नाभि मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे अधो अंगों की तरफ चली जाए तो मलाशय-मूत्राशय -गर्भाशय आदि अंगों की क्रिया विकृत हो अतिसार-प्रमेह प्रदर -दुबलापन जैसे कई कष्ट साध्य रोग हो जाते है !फैलोपियन ट्यूब नहीं खुलती और इस कारण स्त्रियाँ गर्भधारण नहीं कर सकतीं। स्त्रियों के उपचार में नाभि को मध्यमा स्तर पर लाया जाये ! इससे कई वंध्या स्त्रियाँ भी गर्भधारण योग्य हो जाती है । बाईं ओर खिसकने से सर्दी-जुकाम, खाँसी,कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होते हैं। - दाहिनी तरफ हटने पर अग्नाशय -यकृत -प्लीहा क्रिया हीनता -पैत्तिक विकार श्लेष्म कला प्रदाह -क्षोभ -जलन छाले एसिडिटी [अम्लपित्त ]अपच अफारा हो सकती है। प्रयोग ....... 1*.दोनों हथेलियों को आपस में मिलाएं। हथेली के बीच की रेखा मिलने के बाद जो उंगली छोटी हो यानी कि बाएं हाथ की उंगली छोटी है तो बायीं हाथ को कोहनी से ऊपर दाएं हाथ से पकड़ लें। इसके बाद बाएं हाथ की मुट्ठि को कसकर बंद कर हाथ को झटके से कंधे की ओर लाएं। ऐसा ८-१० बार करें। इससे नाभि सेट हो जाएगी।ऐसा ही दाई और की नाभि टलने में करें ! २*.नाभि सेट करके पाँव के अंगूठों में चांदी की कड़ी भी पहिनाई जाती है !कमर पेट हमेशा कस कर बांधे जाने चाहिए ! ३*.दो चम्मच पिसी सौंफ, ग़ुड में मिलाकर एक सप्ताह तक रोज खाने से नाभि का अपनी जगह से खिसकना रुक जाता है ४.*सीधा (चित्त) सुलाकर उसकी नाभि के चारों ओर सूखे आँवले का आटा बनाकर उसमें अदरक का रस मिलाकर बाँध दें एवं उसे दो घण्टे चित्त ही सुलाकर रखें। दिन में दो बार यह प्रयोग करने से नाभि अपने स्थान पर आ जाती है हैं। ५*.नाभि खिसक जाने पर व्यक्ति को हल्का सुपाच्य पथ्य देना चाहिए । दिन में एक-दो बार अदरक का 2 से 5 मिलिलीटर रस बराबर शहद मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। ११ काली मिर्च २०० ml पानी में २ TSF शक्कर डाल धीमी आंच उबाले ,१०० ml शेष रहने पर १ TSF घी डालकर पीना लाभ करता है ! ६.* कमर के बल लेट जाएं और पादांगुष्ठनासास्पर्शासन कर लें। इसके लिए लेटकर बाएं पैर को घुटने से मोड़कर हाथों से पैर को पकड़ लें व पैर को खींचकर मुंह तक लाएं। सिर उठा लें व पैर का अंगूठा नाक से लगाने का प्रयास करें। जैसे छोटा बच्चा अपना पैर का अंगूठा मुंह में डालता है। कुछ देर इस आसन में रुकें फिर दूसरे पैर से भी यही करें। फिर दोनों पैरों से एक साथ यही अभ्यास कर लें। ३-३ बार करने के बाद नाभि सेट हो जाएगी। 7 * कमर के बल लेटकर पेट की मालिश भी की जा सकती है। इसके लिए सरसों का तेल लेकर पेट पर लगाएं और नाभि स्पंदन जो ऊपर या साइड में सरक गया है, उस पर अंगूठे से दबाव डालते हुए नाभि केंद में लाने का प्रयास करें। 8* दो चम्मच पिसी सौंफ, ग़ुड में मिलाकर एक सप्ताह तक रोज खाने से नाभि का अपनी जगह से खिसकना रुक जाता है। ९.* नाभि खिसक जाने पर व्यक्ति को मूँगदाल की खिचड़ी के सिवाय कुछ न दें। दिन में एक-दो बार अदरक का 2 से 5 मिलिलीटर रस पिलाने से लाभ होता है। 10 * दो चम्मच पिसी सौंफ, ग़ुड में मिलाकर एक सप्ताह तक रोज खाने से नाभि का अपनी जगह से खिसकना रुक जाता है।

पेट के निचले भाग की चर्बी घटाना

जिसे खाने से आप अपने पेट के निचले भाग की चर्बी को कम कर सकते हैं.....!
पेट की चर्बी घटाना आसान है पर वहीं पर पेट के निचले भाग की चर्बी घटाना थोड़ा मुश्‍किल है। हमारी लाइफस्‍टाइल कुछ ऐसी हो चुकी है कि हम ना चाह कर भी अपने शरीर का वजन बढ़ाते चले जा रहे हैं। कुछ लड़कियों का पूरा शरीर देखने में पतला लगता है पर पेट काफी ज्‍यादा निकला होता है। लेकिन जब आप किलो भर वजन कम करने लगेगीं तो ‘बैली फैट’ अपने आप ही खतम होने लगेगा।
* बैलेंस डाइट और रेगुलर एक्‍सरसाइज करने से आप अपना वज़न कंट्रोल कर सकते हैं।
* आपको कुछ ऐसे फूड बताउंगा जिसे खाने से आप अपने पेट के निचले भाग की चर्बी को कमकर सकते हैं। मैं आपको कोई डाइट करने के लिये नहीं बोल रहा हूँ, बल्कि यह ऐसे खाघ पदार्थ हैं, जो जल्‍दी से वजन कम करते हैं, जैसे नींबू पानी, जड़ी बूटियां, ग्रीन टी आदि।

* पेट के नीचे की चर्बी को घटाने के लिये हर रोज 7 से 8 गिलास पानी जरुर पियें। इससे शरीर की गंदगी बाहर निकलेगी और आपका मैटाबॉलिज्‍म बढेगा।
जड़ी बूटियां.....
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* आपको सोडियम लेना कम करना होगा नहीं तो शरीर में पानी की मात्रा बढेगी और आप मोटे लगेगें। भोजन में नमक की मात्रा को केंट्रोल करें और इसे कंट्रोल करने के लिये कुछ तरह की जड़ी बूटियों का सेवन करें। त्रिफला खाएं और वजन घटाएं। आंवला या आंवले के जूस का सेवन भी कर सकतें हैं……
* शहद का सेवन करे ...मोटापा बढने की एक और वजह है, वह है चीनी की मात्रा। चीनी की जगह पर आप शहद का सेवन कर सकते हैं।
* दालचीनी पावडर से .... आप अपनी सुबह की कॉफी या चाय में दालचीनी पाउडर डाल कर ब्‍लड शुगर को कंट्रोल कर सकती हैं। यह एक चीनी को रिपलेस करने का एक अच्‍छा तरीका भी है।
* मेवे खाये ... फैट को कम करने के लिये आपको फैट खाना पडे़गा। जी हां, कई लोग इस बात पर यकीन नहीं करते हैं,
लेकिन मेवों में अच्‍छा फैट पाया जाता है। तो ऐसे में आप बादाम, मूगंफली और अखरोट आदि का सेवन करें। इनमें हेल्‍दी फैट होता है जो शरीर के लिये जरुरी होता है।

* एवोकाडो का सेवन भी फायदे मंद है .. इसमे ऐसा वसा होता है जो शरीर के लिये आवश्‍यक होता है। इसका जूस पीने से आपका पेट पूरे दिन भरा रहेगा और आप ओवर ईटिंग नहीं करेगें।
* संतरा ले ... आप को जब भी भूख लगे , तो उस समय अपने पर्स या बैग में संतरे रखें। इससे पेट भी भरा रहेगा और आप मोटे भी नहीं होगें।
* दही खाये .... अगर आपको पतला होना है तो अनहेल्‍दी डेजर्ट खाने से बचें और इसकी जगह पर दही खाएं। इसमें बहुत सारा पोषण होता है और कैलोरी बिल्‍कुल भी नहीं होती।
* ग्रीन टी दिन में एक कप ग्रीन टी पीने से लाभ मिलता है। इससे शरीर का मैटाबॉलिज्‍म बढता है और फैट बर्न होता है।
* सालमन.... इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है जो कि शरीर के लिये जरुरी वसा है और शरीर को अच्‍छे से कार्य करने के लिये मदद करता है। यह फैट आपका पेट पूरे दिन भरा रखता है और ज्‍यादा खाने से बचाता है।
* ब्रॉकली खाये ... इसमें विटामिन सी होता है और साथ ही यह शरीर में एक तत्‍व बनाता है जो कि शरीर फैट से एनर्जी को बदलने में प्रयोग करता है।
* नींबू का प्रयोग करे .... रोज सुबह नींबू पानी पीने से आपकी चर्बी कम हो सकती है। अगर पानी गर्म हो तो और भी अच्‍छा है। इसमें शहद मिला कर पीजिये।
* कच्‍चा लहसुन चबाने से पेट की निचले भाग की चर्बी कम होगी। अगर इसमें थोड़ा सा नींबू का रस छिड़क दिया जाए तो और भी अच्‍छा। इससे पेट भी कम होगा और ब्‍लड सर्कुलेशन भी अच्‍छा रहेगा।
* अपने भोजन में अदरक शामिल करें क्‍योंकि इसे खाने से पेट के निचले भाग की चर्बी कम होती है। इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट होता है जो कि इंसुलिन को बढने से रोकता है और ब्‍लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है।

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