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गुरुवार, 10 सितंबर 2015

अंजीर के लाभ

अंजीर के लाभ ::
 
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अंजीर एक ऐसा फल है जो जितना मीठा है। उतना ही लाभदायक भी है।अंजीर के सूखे फल बहुत गुणकारी होते हैं। अंजीर खाने से कब्ज दूर हो जाती है। गैस और एसीडिटी से भी राहत मिलती है। साधारण कब्ज में गरम दूध में सूखे अंजीर उबाल कर सेवन से सुबह दस्त साफ होता है। इससे कफ बाहर आ जाता है। सूखे अंजीर को उबाल कर बारीक पीस कर गले की सुजन या गांठ पर बांधी जाए तो लाभ पहुंचता है। ताजे अंजीर खा कर साथ दूध का सेवन करना शक्तिवर्धक होता है। डायबिटीज के रोगी को अंजीर से
लाभ पहुंचता है।
1 कब्ज:- *3 से 4 पके अंजीर दूध में उबालकर रात्रि में सोने से पूर्व खाएं और ऊपर से उसी दूध का सेवन करें। इससे कब्ज और बवासीर में लाभ होता है।
*माजून अंजीर 10 ग्राम को सोने से पहले लेने से कब्ज़ में लाभ होता है।
*अंजीर 5 से 6 पीस को 250 मिलीलीटर पानी में उबाल लें, पानी को छानकर पीने से कब्ज (कोष्ठबद्धता) में राहत मिलती है।
*2अंजीर को रात को पानी में भिगोकर सुबह चबाकर खाकर ऊपर से पानी पीने पेट साफ हो जाता है।
*अंजीर के 4 दाने रात को सोते समय पानी में डालकर रख दें। सुबह उन दानों को थोड़ा सा मसलकर जल पीने से अस्थमा में बहुत लाभ मिलता है तथा इससे कब्ज भी नष्ट हो जाती है।
2 दमा :- *दमा जिसमें कफ (बलगम) निकलता हो उसमें अंजीर खाना लाभकारी है। इससे कफ बाहर आ जाता है तथा रोगी को शीघ्र ही आराम भी मिलता है।
*प्रतिदिन थोड़े-थोड़े अंजीर खाने से पुरानी कब्जियत में मल साफ और नियमित आता है। 2 से 4 सूखे अंजीर सुबह-शाम दूध में गर्म करके खाने से कफ की मात्रा घटती है, शरीर में नई शक्ति आती है और दमा (अस्थमा) रोग मिटता है।"
3 प्यास की अधिकता :- बार-बार प्यास लगने पर अंजीर का सेवन करें।
4 मुंह के छाले :- अंजीर का रस मुंह के छालों पर लगाने से आराम मिलता है।
5 प्रदर रोग :- अंजीर का रस 2 चम्मच शहद के साथ प्रतिदिन सेवन करने से दोनों प्रकार के प्रदर रोग नष्ट हो जाते हैं।
6 दांतों का दर्द :- *अंजीर का दूध रुई में भिगोकर दुखते दांत पर रखकर दबाएं।
*अंजीर के पौधे से दूध निकालकर उस दूध में रुई भिगोकर सड़ने वाले दांतों के नीचे रखने से दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं तथा दांतों का दर्द मिट जाता है।"
7 पेशाब का अधिक आना :- 3-4 अंजीर खाकर, 10 ग्राम काले तिल चबाने से यह कष्ट दूर होता है।
8 त्वचा के विभिन्न रोग :- *कच्चे अंजीर का दूध समस्त त्वचा सम्बंधी रोगों में लगाना लाभदायक होता है।
*अंजीर का दूध लगाने से दिनाय (खुजली युक्त फुंसी) और दाद मिट जाते हैं। बादाम और छुहारे के साथ अंजीर को खाने से दाद, दिनाय (खुजली युक्त फुंसी) और चमड़ी के सारे रोग ठीक हो जाते है।"
9 दुर्बलता (कमजोरी) :- *पके अंजीर को बराबर की मात्रा में सौंफ के साथ चबा-चबाकर सेवन करें। इसका सेवन 40 दिनों तक नियमित करने से शारीरिक दुर्बलता दूर हो जाती है।
*अंजीर को दूध में उबालकर-उबाला हुआ अंजीर खाकर वही दूध पीने से शक्ति में वृद्धि होती है तथा खून भी बढ़ता है।"
10 रक्तवृद्धि और शुद्धि हेतु :- 10 मुनक्के और 5 अंजीर 200 मिलीलीटर दूध में उबालकर खा लें। फिर ऊपर से उसी दूध का सेवन करें। इससे रक्तविकार दूर हो जाता है।
11 पेचिश और दस्त :- अंजीर का काढ़ा 3 बार पिलाएं।
12 ताकत को बढ़ाने वाला :- सूखे अंजीर के टुकड़े और छिली हुई बादाम गर्म पानी में उबालें। इसे सुखाकर इसमें दानेदार शक्कर, पिसी इलायची, केसर, चिरौंजी, पिस्ता और बादाम बराबर मात्रा में मिलाकर 8दिन तक गाय के घी में पड़ा रहने दें। बाद में रोजाना सुबह 20 ग्राम तक सेवन करें। छोटे बालकों की शक्तिक्षीण के लिए यह औषधि बड़ी हितकारी है।
13 जीभ की सूजन :- सूखे अंजीर का काढ़ा बनाकर उसका लेप करने से गले और जीभ की सूजन पर लाभ होता है।
14 पुल्टिश :- ताजे अंजीर कूटकर, फोड़े आदि पर बांधने से शीघ्र आराम होता है।
15 दस्त साफ लाने के लिए :- दो सूखे अंजीर सोने से पहले खाकर ऊपर से पानी पीना चाहिए। इससे सुबह साफ दस्त होता है।
16 क्षय यानी टी.बी के रोग :- इस रोग में अंजीर खाना चाहिए। अंजीर से शरीर में खून बढ़ता है। अंजीर की जड़ और डालियों की छाल का उपयोग औषधि के रूप में होता है। खाने के लिए 2 से 4 अंजीर का प्रयोग कर सकते हैं।
17 फोड़े-फुंसी :- अंजीर की पुल्टिस बनाकर फोड़ों पर बांधने से यह फोड़ों को पकाती है।
18 गिल्टी :- अंजीर को चटनी की तरह पीसकर गर्म करके पुल्टिस बनाएं। 2-2 घंटे के अन्तराल से इस प्रकार नई पुल्टिश बनाकर बांधने से `बद´ की वेदना भी शांत होती है एवं गिल्टी जल्दी पक जाती है।
19 सफेद कुष्ठ (सफेद दाग) :- *अंजीर के पेड़ की छाल को पानी के साथ पीस लें, फिर उसमें 4 गुना घी डालकर गर्म करें। इसे हरताल की भस्म के साथ सेवन करने से श्वेत कुष्ठ मिटता है।
*अंजीर के कच्चे फलों से दूध निकालकर सफेद दागों पर लगातार 4 महीने तक लगाने से यह दाग मिट जाते हैं।
*अंजीर के पत्तों का रस श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) पर सुबह और शाम को लगाने से लाभ होता है।
*अंजीर को घिसकर नींबू के रस में मिलाकर सफेद दाग पर लगाने से लाभ होता है।"
20 गले के भीतर की सूजन :- सूखे अंजीर को पानी में उबालकर लेप करने से गले के भीतर की सूजन मिटती है।
21 श्वासरोग :- अंजीर और गोरख इमली (जंगल जलेबी) 5-5 ग्राम एकत्रकर प्रतिदिन सुबह को सेवन करने से हृदयावरोध (दिल की धड़कन का अवरोध) तथा श्वासरोग का कष्ट दूर होता है।
22 शरीर की गर्मी :- पका हुआ अंजीर लेकर, छीलकर उसके आमने-सामने दो चीरे लगाएं। इन चीरों में शक्कर भरकर रात को ओस में रख दें। इस प्रकार के अंजीर को 15 दिनों तक रोज सुबह खाने से शरीर की गर्मी निकल जाती है और रक्तवृद्धि होती है।
23 जुकाम :- पानी में 5 अंजीर को डालकर उबाल लें और इसे छानकर इस पानी को गर्म-गर्म सुबह और शाम को पीने से जुकाम में लाभ होता है।
24 फेफड़ों के रोग :- फेफड़ों के रोगों में पांच अंजीर एक गिलास पानी में उबालकर छानकर सुबह-शाम पीना चाहिए।
25 मसूढ़ों से खून का आना :- अंजीर को पानी में उबालकर इस पानी से रोजाना दो बार कुल्ला करें। इससे मसूढ़ों से आने वाला खून बंद हो जाता है तथा मुंह से दुर्गन्ध आना बंद हो जाती है।
26 तिल्ली (प्लीहा) के रोग में :- अंजीर 20 ग्राम को सिरके में डुबोकर सुबह और शाम रोजाना खाने से तिल्ली ठीक हो जाती है।
27 खांसी :- *अंजीर का सेवन करने से सूखी खांसी दूर हो जाती है। अंजीर पुरानी खांसी वाले रोगी को लाभ पहुंचाता है क्योंकि यह बलगम को पतला करके बाहर निकालता रहता है।
*2अंजीर के फलों को पुदीने के साथ खाने से सीने पर जमा हुआ कफ धीरे-धीरे निकल जाएगा।
*पके अंजीर का काढ़ा पीने से खांसी दूर हो जाती है।"
28 गुदा चिरना :- सूखा अंजीर 350 ग्राम, पीपल का फल 170 ग्राम, निशोथ 87.5 ग्राम, सौंफ 87.5 ग्राम, कुटकी 87.5 ग्राम और पुनर्नवा 87.5 ग्राम। इन सब को मिलाकर कूट लें और कूटे हुए मिश्रण के कुल वजन का 3 गुने पानी के साथ उबालें। एक चौथाई पानी बच जाने पर इसमें 720 ग्राम चीनी डालकर शर्बत बना लें। यह शर्बत 1 से 2 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम पीयें।
29 बवासीर (अर्श) :- *सूखे अंजीर के 3-4 दाने को शाम के समय जल में डालकर रख दें। सुबह उन अंजीरों को मसलकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट खाने से अर्श (बवासीर) रोग दूर होता है।
*अंजीर को गुलकन्द के साथ रोज सुबह खाली पेट खाने से शौच के समय पैखाना (मल) आसानी से होता है।"
30 कमर दर्द :- अंजीर की छाल, सोंठ, धनियां सब बराबर लें और कूटकर रात को पानी में भिगो दें। सुबह इसके बचे रस को छानकर पिला दें। इससे कमर दर्द में लाभ होता है।
31 आंवयुक्त पेचिश :- पेचिश तथा आवंयुक्त दस्तों में अंजीर का काढ़ा बनाकर पीने से रोगी को लाभ होता है।
32 अग्निमान्द्य (अपच) होने पर :- अंजीर को सिरके में भिगोकर खाने से भूख न लगना और अफारा दूर हो जाता है।
33 प्रसव के समय की पीड़ा :- प्रसव के समय में 15-20 दिन तक रोज दो अंजीर दूध के साथ खाने से लाभ होता है।
34 बच्चों का यकृत (जिगर) बढ़ना :- 4-5 अंजीर, गन्ने के रस के सिरके में गलने के लिए डाल दें। 4-5 दिन बाद उनको निकालकर 1 अंजीर सुबह-शाम बच्चे को देने से यकृत रोग की बीमारी से आराम मिलता है।
35 फोड़ा (सिर का फोड़ा) :- फोड़ों और उसकी गांठों पर सूखे अंजीर या हरे अंजीर को पीसकर पानी में औटाकर गुनगुना करके लगाने से फोड़ों की सूजन और फोड़े ठीक हो जाते हैं।
36 दाद :- अंजीर का दूध लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
37 सिर का दर्द :- सिरके या पानी में अंजीर के पेड़ की छाल की भस्म मिलाकर सिर पर लेप करने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
38 सर्दी (जाड़ा) अधिक लगना :- लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में अंजीर को खिलाने से सर्दी या शीत के कारण होने वाले हृदय और दिमाग के रोगों में बहुत ज्यादा फायदा मिलता है।
39 खून और वीर्यवद्धक :- *सूखे अंजीर के टुकड़ों एवं बादाम के गर्भ को गर्म पानी में भिगोकर रख दें फिर ऊपर से छिलके निकालकर सुखा दें। उसमें मिश्री, इलायची के दानों की बुकनी, केसर, चिरौंजी, पिस्ते और बलदाने कूटकर डालें और गाय के घी में 8 दिन तक भिगोकर रखें। यह मिश्रण प्रतिदिन लगभग 20 ग्राम की मात्रा में खाने से कमजोर शक्ति वालों के खून और वीर्य में वृद्धि होती है।
*एक सूखा अंजीर और 5-10 बादाम को दूध में डालकर उबालें। इसमें थोड़ी चीनी डालकर प्रतिदिन सुबह पीने से खून साफ होता है, गर्मी शांत होती है, पेट साफ होता है, कब्ज मिटती है और शरीर बलवान बनता है।
*अंजीर को अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर शक्तिशाली होता है, और मनुष्य के संभोग करने की क्षमता भी बढ़ती है।
अंजीर अपने खट्टे-मीठे स्वाद के लिए प्रसिद्ध अंजीर एक स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्धक और बहु उपयोगी फल है।अंजीर कई प्रकार का होता है जिसमें से कुछ इस प्रकार के हैं।वैज्ञानिकों के अनुसार अंजीर कि इसके सूखे फल में कार्बोहाइड्रेट (शर्करा) 63 प्रतिशत, प्रोटीन 5.5 प्रतिशत, सेल्यूलोज 7.3 प्रतिशत, चिकनाई एक प्रतिशत, खनिज लवण 3 प्रतिशत, अम्ल 1.2 प्रतिशत, राख 2.3 प्रतिशत और जल 20.8 प्रतिशत होता है। इसके अलावा प्रति 100 ग्राम अंजीर में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लोहा, विटामिन,थोड़ी मात्रा में चूना, पोटैशियम, सोडियम, गंधक, फास्फोरिक एसिड और गोंद भी पाया जाता है।

Jai Shree Krishna

Thanks,

Regards,

कैलाश चन्द्र  लढा(भीलवाड़ा)www.sanwariya.org
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शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

जन्माष्टमी और उपाय (जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.....)

जन्माष्टमी और उपाय (जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.....)

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी मे वृषभ राशि, रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार क्यों लिया, धर्म ग्रंथों के अनुसार इसका कारण इस प्रकार है-

द्वापर युग में जह पृथ्वी पर मानव रूपी राक्षसों के अत्याचार बढऩे लगे। तब पृथ्वी दु:खी होकर भगवान विष्णु के पास गईं। तब भगवान विष्णु ने कहा मैं शीघ्र ही पृथ्वी पर जन्म लेकर दुष्टों का सर्वनाश करूंगा। द्वापर युग के अन्त में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक कारागार में डाल स्वयं राजा बन गया थी।

कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ तय हुआ। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि- देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा । यह सुनकर कंस डर गया और उसने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया। और एक-एक कर देवकी की होने वाली संतानों का वध करने लगा।

आठवें गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ लेकिन माया के प्रभाव से किसी को इस बात का पता नहीं चला कि देवकी की आठवी संतान गोकुल में नंदबाबा के यहां पल रही है। यहां भी श्रीकृष्ण ने अपनी लीला से कई राक्षसों का वध किया और अंत में कंस का वध कर राजा उग्रसेन को सिंहासन पर बैठाया। श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में पाण्डवों का साथ दिया और अधर्म का नाश कर धर्म रूपी युधिष्ठिर को सिंहासन पर बैठाया।

इस बार ये त्योहार दिनांक 05-09-2015 को है। अगर इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय किए जाएं तो हर मनोकामना पूरी हो सकती है।

उपाय

1- धनवान :- भगवान श्रीकृष्ण को सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाएं। इसमें तुलसी के पत्ते अवश्य डालें।

2- मालामाल होना :- इस दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक करें।

3- सुख - शांति :- श्रीकृष्ण मंदिर में जाकर तुलसी की माला से नीचे लिखे मंत्र की 11 माला जप करें। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण को पीला वस्त्र व तुलसी के पत्ते अर्पित करें. मंत्र - {"क्लीं कृष्णाय वासुदेवाय हरि: परमात्मने प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:"}

4- मां लक्ष्मी की कृपा :- श्रीकृष्ण को पीतांबरधारी भी कहते हैं, जिसका अर्थ है पीले रंग के कपड़े पहनने वाला। इस दिन पीले रंग के कपड़े, पीले फल व पीला अनाज दान करने से प्राप्त होती है।

5- तिजोरी में पैसा :- जन्माष्टमी की करीब 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करें तो जीवन में कभी धन की कमी नहीं आती।

6- जेब खाली नहीं होगी :- इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते समय कुछ रुपए इनके पास रख दें। पूजन के बाद ये रूपए अपने पर्स में रख लें।

7- घर के वातावरण के लिए :- जन्माष्टमी को शाम के समय तुलसी को गाय के घी का दीपक लगाएं और "ऊँ वासुदेवाय नम:" मंत्र बोलते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें।

8- आमदनी या नौकरी :- सात कन्याओं को खीर या सफेद मीठी वस्तु खिलानी चाहिए। फिर पांच शुक्रवार सात कन्याओं को खीर बांटें।

9- कार्य बनाने के लिए :- जन्माष्टमी से शुरू कर, सत्ताइस दिन नारियल, बादाम लगातार मंदिर में चढ़ाये।

10- कर्ज :- श्मशान के कुएं का जल लाकर किसी पीपल वृक्ष पर अर्पित करे। यह उपाय जन्माष्टमी से शुरू करे, फिर नियमित रूप से छह शनिवार यह उपाय करे।

11- अचानक धन लाभ :- शाम के समय पीपल के पास तेल का पंचमुखी दीपक जलाना चाहिए।

12- शत्रु :- शाम को पीपल के पत्ते पर अनार की कलम से गोरोचन द्वारा शत्रु का नाम लिखकर जमीन में दबा दें। शत्रु शांत होंगे, मित्रवत व्यवहार करेंगे व कभी भी हानि नहीं पहुंचाएंगे।

13- धन की कमी के लिए :- जन्माष्टमी की रात 12 बजे बाद यह प्रयोग करें। एकांत स्थान पर लाल वस्त्र पहन कर बैठें। सामने दस लक्ष्मीकारक कौडिय़ां रखकर एक बड़ा तेल का दीपक जला लें और प्रत्येक कौड़ी को सिंदूर से रंग लें तथा हकीक की माला से इस मंत्र की पांच माला जप करें। इन कौडिय़ों पर धन स्थान अर्थात जहां आप पैसे रखते हों वहां रखें।
मंत्र :- {"ऊँ ह्रीं श्रीं श्रियै फट्"}

14- सुंदर संतान :- जन्माष्टमी के दिन सुबह या शाम के समय कुश के आसन पर बैठकर इस मंत्र का जप करें। सामने बालगोपाल की मूर्ति या चित्र अवश्य रखें और मन में बालगोपाल का स्मरण करें। कम से कम 5 माला जप अवश्य करें। मंत्र - {"देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणंगता।।"}

जन्माष्टमी के अवसर पर ईश्वर की कृपा आप पर होगी.. आपकी मनोकामना जरूर पूरी होगी….. जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.....

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव

जन्माष्टमी

श्रावण कृष्ण अष्टमीपर जन्माष्टमीका उत्सव मनाया जाता है । `(आ) कर्षणम् करोति इति ।', अर्थात्, आकर्षित करनेवाला । `कर्षति आकर्षति इति कृष्ण: ।' यानी, जो खींचता है, आकर्षित कर लेता है, वह श्रीकृष्ण । लौकिक अर्थसे श्रीकृष्ण यानी काला । कृष्णविवर (Blackhole) में प्रकाश है, इसका शोध आधुनिक विज्ञानने अब किया है ! कृष्णविवर ग्रह, तारे इत्यादि सबको अपनेमें खींचकर नष्ट कर देता है । उसी प्रकार श्रीकृष्ण सबको अपनी ओर आकर्षित कर सबके मन, बुद्धि व अहंका नाश करते हैं ।

उत्सव मनाने की पद्धति

इस तिथिपर दिनभर उपवास कर रात्रि बारह बजे पालनेमें बालक श्रीकृष्णका जन्म मनाया जाता है व उसके उपरांत प्रसाद लेकर उपवास छोडते हैं अथवा अगले दिन प्रात: दहीकालाका प्रसाद लेकर उपवास छोडते हैं ।

दहीकाला

विविध खाद्यपदार्थ, दही, दूध, मक्खन, इन सबको मिलाना अर्थात् `काला' । श्रीकृष्णने काजमंडलमें गायोंको चराते समय अपने व अपने साथियों के कलेवे को एकत्रित कर उन खाद्यपदार्थों को मिलाया व सबके साथ मिलकर ग्रहण किया । इस कथा के अनुसार गोकुलाष्टमी के दूसरे दिन `काला' बनाने व दही मटकी फोडने की प्रथा निर्माण हो गई ।

श्रीकृष्णका नामजप

जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्णतत्त्व अन्य दिनों की अपेक्षा १००० गुणा कार्यरत होता है । इसलिए इस तिथिपर `ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।' का जप तथा श्रीकृष्णकी भावपूर्ण उपासनासे श्रीकृष्णतत्त्वका अधिकाधिक लाभ मिलता है ।
जन्माष्टमीपर किए गए उपवाससे, स्त्रियोंपर माहवारी, अशौच व स्पर्शास्पर्शका प्रभाव कम होता है ।

जन्माष्टमी पर होने वाले अनाचार रोकें !

आजकल `दहीकाला' प्रथाके निमित्त बलपूर्वक चंदा वसूली, अश्लील नृत्य, महिलाओंसे छेडछाड, महिला गोविंदा (पुरुषकी भांति महिलाएं भी अपनी टोली बनाकर मटकी फोडती हैं । इससे लाभ तो कुछ नहीं होता, केवल व्यभिचार बढता है ।) आदि अनाचार खुलेआम होते हैं । इन अनाचारोंके कारण उत्सव की पवित्रता भंग होती है । देवता के तत्त्व का लाभ नहीं होता; वरन् उनकी अवकृपाके पात्र बनते हैं । इन अनाचारोंको रोकनेसे ही उत्सवकी पवित्रता बनी रहेगी और उत्सवका खरा लाभ मिलेगा । समष्टि स्तरपर ऐसा करना भगवान श्रीकृष्णकी उपासना ही है ।
गोपीचंदन: `गोप्य: नाम विष्णुपत्न्य: तासां चन्दनं आल्हादकम् ।' अर्थात्, गोपीचंदन वह है, जो गोपियोंको यानी श्रीकृष्णकी स्त्रियोंको आनंद देता है । इसे `विष्णुचंदन' भी कहते हैं । यह द्वारकाके भागमें पाई जानेवाली एक विशेष प्रकारकी सफेद मिट्टी है । ग्रंथोंमें कहा गया है कि, गंगामें स्नान करनेसे जैसे पाप धुल जात हैं, उसी प्रकार गोपिचंदनका लेप लगानेसे सर्व पाप नष्ट होते हैं । विष्णु गायत्रीका उच्चारण करते हुए मस्तक पर गोपिचंदन लगाने की प्रथा है ।


अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के निवारणार्थ भगवान श्रीकृष्ण की उपासना

नामजप: अनिष्ट शक्तियोंका निवारण करनेवाले उच्च देवताओंमेंसे एक हैं श्रीकृष्ण । श्रीकृष्णके नामजपसे अनिष्ट शक्तियोंके कष्टसे मुक्ति  पा सकते हैं ।
श्रीगोपालकवचका पाठ: अनिष्ट शक्तिके कष्टसे पीडित लोगोंके लिए नामजपके साथ ही `श्रीगोपालकवच' का नित्य पाठ उपयुक्त है ।

६. राधा-श्रीकृष्णके नाते संबंधी आरोप की व्यर्थता

राधाकी प्रीति (भक्ति) को प्रेम समझकर, राधा-श्रीकृष्णके संबंध को वेशयी स्वरूप देने की व्यर्थता, श्रीकृष्ण की उस समय की आयु जानने पर स्पष्ट होती है । जब श्रीकृष्ण ने गोकुल छोडा, तब उनकी आयु मात्र सात वर्ष थी यानी, श्रीकृष्ण की तीन से सात वर्ष की आयु तक ही राधा-श्रीकृष्ण का संबंध था ।

७. श्रीकृष्ण को तुलसी क्यों अर्पित करते हैं ?

`पूजाके दौरान देवताओं को जो वस्तु अर्पित की जाती है, वह वस्तु उन देवताओं को प्रिय है, ऐसा बालबोध भाषा में बताया जाता है, उदा. गणपति को लाल फूल, शिवको बेल व विष्णु को तुलसी इत्यादि । उसके पश्चात् उस वस्तु के प्रिय होने के संदर्भमें कथा सुनाई जाती है। प्रत्यक्ष में शिव, विष्णु, गणपति जैसे उच्च देवताओं की कोई पसंद-नापसंद नहीं होती । देवता को विशेष वस्तु अर्पित करने का तात्पर्य आगे दिए अनुसार है ।
पूजा का एक उद्देश्य यह है कि, पूजी जाने वाली मूर्ति में चैतन्य निर्माण हो व उसका उपयोग हमारी आध्यात्मिक उन्नति के लिए हो । यह चैतन्य निर्माण करने हेतु देवताको जो विशेष वस्तु अर्पित की जाती है, उस वस्तुमें देवताओंके महालोकतक फैले हुए पवित्र (उस देवताके सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण) आकर्षित करने की क्षमता अन्य वस्तुओं की अपेक्षा अधिक होती है । लाल फूलोंमें गणपतिके, बेलमें शिवके, तुलसीमें विष्णुके (श्रीकृष्णके) पवित्रक आकर्षित करनेकी क्षमता सर्वाधिक रहती है; इसी करण श्रीविष्णुको (श्रीकृष्णको) तुलसी अर्पित करते हैं । घरके सामने भी तुलसी वृंदावन होता है । श्रीकृष्णके साथ तुलसीका विवाह रचानेकी प्रथा भी है । (यहां `विवाह' का अर्थ है, उपासनाके तौरपर श्रीविष्णुको (श्रीकृष्णको) तुलसी अर्पित करना ।)

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