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गुरुवार, 17 सितंबर 2015

गणेशजी के पूजन की सरल विधि


अगर आप कर्ज के बोझ से दबे हैं। आमदनी के नए स्रोत खोज रहे हैं। कारोबार में घाटा हो रहा है। नौकरी में लंबे समय से प्रमोशन रुका है या फिर आपके पास कोई रोज़गार नहीं है, तो घबराएं नहीं। ऐसी सारी समस्याओं का समाधान 17 सितंबर को गणेश जी के आने के बाद हो जाएगा, क्योंकि गुरुवार को स्वाति नक्षत्र में पड़ने वाली गणेश चतुर्थी को धन संपत्ति के लिहाज के काफी विशेष माना जा रहा है। स्वाति नक्षत्र में गणपति बप्पा की पूजा से लक्ष्मी तो आएंगी ही, भक्तों की हर मनोकामना भी पूरी होगी। स्वाति नक्षत्र की गणेश चतुर्थी लक्ष्मी कारक योग बनाती है। गुरुवार का दिन ज्ञान और बुद्धि के लिए विशेष है। 17 सितंबर को गुरुवार भी है इसलिए इस बार गणपति बप्पा छात्रों को परीक्षा में भी भारी सफलता दिला सकते हैं। ऐसा हो भी क्यों न, गणपति ऋद्धि-सिद्धि और विद्या बुद्धि के देवता जो हैं।

गणपति स्थापना का शुभ मुहूर्त
धन-संपत्ति और विद्या-बुद्धि पाने के लिए गणेश चतुर्थी को गणपति बप्पा की स्थापना शुभ मुहूर्त में करें। इस बार चतुर्थी तिथि 16 सितम्बर को रात 08:01 PM से लग रही है जो कि 17 सितंबर रात 10:20 PM तक रहेगी।

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ -16 सितम्बर 08:01 PM

चतुर्थी तिथि समाप्त -17 सितम्बर 10:20 PM

इसी बीच गणपति की घर-घर में स्थापना होगी। वैसे गणपति के घर में प्रवेश करने और गणेश पूजा का समय-11:20 AM से 01:45 PM रहेगा। 17 सितंबर को दिन और रात का चौघड़िया मुहूर्त भी गणपति की पूजा और मंत्र जाप के किसी भी अनुष्ठान के लिए श्रेष्ठ माना जा रहा है। दिन और रात का चौघड़िया इस प्रकार है-

17 सितंबर दिन का चौघड़िया
06:30 AM से 08:01 AM शुभ
11:02 AM से 12:33 PM चर
12:33 PM से 2:04 PM लाभ
2:04 PM से 3:35 PM अमृत
05:05 PM से 6:36 PM शुभ
17 सितंबर रात्रि का चौघड़िया
06:36 PM से 08:05 PM अमृत
08:05 PM से 09:35 PM चर
12:33 PM से 2:02 PM लाभ
वैसे तो साल भर में शुक्ल और कृष्ण पक्ष को मिलाकर कुल 24 चतुर्थी पड़ती है लेकिन भाद्रपद मास की चतुर्थी का विशेष महत्व है। इस दिन किए गए स्नान,दान,जप और तप से गणपति की सौ गुना कृपा मिलती है। लेकिन इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं किया जाता। कहते हैं कि जो इस दिन चंद्रमा का दर्शन करता है उस पर झूठा कलंक या ग़लत आरोप लगते हैं। 16 और 17 सितंबर को आप चंद्र दर्शन न करें।

16 सितंबर को चंद्र दर्शन निषेध -20:01 PM से 20:39 PM

17 सितंबर को चंद्र दर्शन निषेध -09:29 AM से 9:19 PM

17 सितंबर को सूर्य की मिथुन संक्रांति

17 सितंबर को ही सूर्य का कन्या राशि में दोपहर 12:20 PM मिनट पर प्रवेश हो रहा है। सूर्य की कन्या संक्रांति के दौरान जप-तप और स्नान दान का बहुत पुण्य मिलता है। सूर्य की कन्या संक्रांति का पुण्य और महापुण्यकाल इस प्रकार है-

सूर्य की कन्या संक्रांति पुण्यकाल-12:20 PM से शाम 6:36 PM तक
संक्रांति का समय-12:20 PM
महापुण्य काल-12:20 PM से 12:53 PM तक

गणेशजी के पूजन की सरल विधि
प्रातः स्नान आदि दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद गणपति को प्रणाम करें। उनकी प्रतिमा या चित्र के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें। उन्हें पुष्प, रोली, अक्षत आदि अर्पित करें। भगवान को सिंदूर चढ़ाएं तथा दूर्वा दल भेंट करें। गणपति को भोग चढ़ाएं। उन्हें मूंग के लड्डू विशेष प्रिय हैं।

इसके पश्चात इन मंत्रों का 11 या 21 बार जाप करें- ऊं चतुराय नमः, ऊं गजाननाय नमः, ऊं विघ्नराजाय नमः, ऊं प्रसन्नात्मने नमः
इसके बाद गणेशजी की आरती करें और उन्हें नमन कर वर मांगें। उक्त विधि उन लोगों के लिए है जो समयाभाव के कारण पूर्ण विधि से गणपति का पूजन नहीं कर सकते। अगर आपके समय पूजन के लिए समय है तो इस विधि से भी गणपति का पूजन कर सकते हैं। इसे सामान्य पूजन विधि कहा जाता है। पूजन के लिए शुद्ध जल, सिंदूर, रोली, कपूर, घृत, दूब, चीनी, फूल, पान, सुपारी, रुई, प्रसाद (मोदक हो तो अतिउत्तम) आदि लें।

गणेशजी की प्रतिमा के समक्ष श्रद्धा धूप-दीप जलाएं और पूजन सामग्री अर्पित करें। अगर प्रतिमा अथवा चित्र न हो तो साबुत सुपारी पर मोली लपेटकर उसका पूजन कर सकते हैं। इसके पश्चात आह्वान मंत्र पढ़कर अक्षत डालें।

उक्त विधि को गणपति की साधारण पूजन विधि कहा जाता है। यह विधि गणेशजी की वृहद पूजन विधि कही जाती है। इसके लिए पूजन सामग्री के तौर पर शुद्ध जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, पंचामृत, वस्त्र, यज्ञोपवीत, सुगंध, लाल चंदन, रोली, सिंदूर, अक्षत, पुष्प, माला, दूब, शमीपत्र, गुलाल, आभूषण, धूपबत्ती, दीपक, प्रसाद, फल, गंगाजल, पान, सुपारी, रूई, कपूर आदि लें। यह सामग्री भगवान की प्रतिमा या चित्र के समक्ष रखें और मंत्र जाप करें-

भगवान का पूजन भक्त का उनके प्रति समर्पण का एक अंग है। पूजन का कभी समापन नहीं होता क्योंकि भक्त की हर सांस भगवान का स्मरण करती है। पूजन पूर्ण होता है आरती से। हर देवी-देवता के भजन-पूजन के बाद आरती की जाती है।

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