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मंगलवार, 4 जुलाई 2017

#GST जी एस टी के पालन एवम असुविधा से बचने हेतु निम्न बातों का ध्यान रखें

#GST जी एस टी के पालन एवम असुविधा से बचने हेतु निम्न बातों का ध्यान रखें ।

 
1. जी एस टी नंबर की रबर स्टेम्प बनवाये ।
2. अपने सभी बिलो पर जी एस टी नंबर की सील लगाए ।
3. एक नई बिल बुक ले और उसे 1,01 या 001 से प्रारंभ करें।
4. यदि आपके पास कोई  प्रिंटेड बिल बुक नहीं है  तो उसे नवीनतम जी एस टी मॉडल बिल के हिसाब से बनवाये।
5. अपना जी एस टी नंबर सभी सप्लायर्स को प्रदान करे।
6. अपने सभी कस्टमर्स का जी एस टी नंबर प्राप्त/संकलित करें ।
7. अपने सभी व्यवसायी खर्चो  के लिये इनपुट टेक्स क्रेडिट प्राप्त करें जैसे टेलीफोन बिल, कूरियर बिल, स्टेशनरी बिल आदि। अर्थात अपने सभी खर्चो के लिए बिल प्राप्त करे जिस पर आपका जी एस टी नंबर भी अंकित हो। आपने सभी सेवा प्रदाताओं के मैसेज देखे होंगे जिन्होंने आपका जी एस टी नंबर मांगा है ।यहाँ तक की बैंक में आपका जी एस टी नंबर लेना प्रारम्भ कर रहे है ।
8. बिल में टेक्स को अलग अलग अंकित करें  जैसे राज्य के भीतर   के लिए स्टेट जी एस टी 9 %  केंद्रीय जी एस टी 9% और राज्य के बाहर के लिए  आई जी एस टी 18% ।
9. ऑन लाइन ट्रांसेक्शन का ज्यादातर उपयोग करे। और अपने छोटे छोटे खर्चो के लिए भी डेबिट कार्ड का उपयोग करे। जिससे आप टेक्स अंतर्गत होने वाली असुविधा से बचेगे ।
10. बिना बिल जारी किए या प्राप्त किये बगैर कोई भी राशि न  दे जिनसे उस पर टैक्स लाइबिलिटी की जिम्मेदारी आप पर न आए ।
11. कोई भी खर्च यदि 10 हजार से ज्यादा है तो उसे केश में न दे। यदि आपने किसी भी कंपनी या व्यक्ति से 2 लाख से अधिक राशि नगद में ली है तो आपको उतनी ही राशि पेनेल्टी के रूप में देना होगी ।
12. सेल्स टैक्स विभाग से इनपुट टेक्स क्रेडिट प्राप्त करने के लिए
30 जून को आपको बिल वाइज क्लोजिंग स्टॉक बनाना है, न कि  स्टॉक की कुल यूनिट अनुसार ।
13. आप यदि अनरजिस्टर्ड डीलर से बिल प्राप्त करते है ( सेवा प्रदान करने वाले यूनिट / व्यवसाय) तो उन बिलो पर टैक्स भरने की जिम्मेदारी आपकी है ।
14. हर माह के दूसरे दिन अपनी खरीदी, बिक्री और खर्च के बिल, बैंक स्टेटमेंट की तैयारी कर लेवे ।
15. हमे सभी बिक्री  बिलो को  प्रतिमाह 10 तारीख से पूर्व फाइल करना है। खरीदी के बिलो को 15 तारीख के पूर्व और 20 तारीख तक या उसके पूर्व फाइनल  मंथली ट्रांसेक्शन रिटर्न (ख़रीदी, बिक्री) प्रस्तुत करना है ।
16. जी एस टी पोर्टल पर आप जीनियस बिज़नेस बनने के लिए नियमो को सही रूप से समझकर उसका पालन करे ।
जी एस टी का प्रथम सोमवार शुभ हो
आओ आज से ही हम छोटे छोटे प्रयास करे ।
(1) टेक्नोलॉजी को अपने जीवन मे ढाले ।
इंटरनेट को समझे ।गूगल सर्च इंजन,गूगल मैप आदि अनेक व्यवस्थाएं हम सब के लिए उपयोगी है ।
(2) हर कार्य को सीखने की कोशिश करे। कोई भी कार्य असम्भव नही है, अपने कार्य स्वयं करे ।
(3) हमारा देश उस टेक्नोलोजी की ओर अग्रसर है, जिसमे हर लेनदेन केश लेस होगा। डेबिट कार्ड को अपने साथ रखे पेमेंट देते वक्त उसका उपयोग करे
*जय श्री कृष्ण*

‘देवशयनी एकादशी' (मंगलवार, 04 जुलाई 2017 ) पर कैसे करें व्रत का पारण

‘देवशयनी एकादशी'  पर कैसे करें व्रत का पारण---


प्रिय पाठकों/मित्रों, शास्त्रानुसार प्रत्येक मास के दो पक्षों में 2-2 एकादशियां यानि साल भर के 12 महीनों में 24 एकादशियां आती हैं परंतु जो मनुष्य इस पुण्यमयी देवशयनी एकादशी का व्रत करता है अथवा इसी दिन से शुरू होने वाले चातुर्मास के नियम अथवा किसी और पुण्यकर्म करने का संकल्प करके उसका पालन करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की जिस कामना से कोई इस व्रत को करता है वह अवश्य पूरी होती है। इसी कारण इसे मनोकामना पूरी करने वाला व्रत भी कहा जाता है। पुराणों में ऎसा उल्लेख है, कि इस दिन से भगवान श्री विष्णु चार मास की अवधि तक पाताल लोक में निवास करते है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्री विष्णु उस लोक के लिये गमन करते है. आषाढ मास से कार्तिक मास के मध्य के समय को चातुर्मास कहते है. इन चार माहों में भगवान श्री विष्णु क्षीर सागर की अनंत शय्या पर शयन करते है. इसलिये इन माह अवधियों में कोई भी धार्मिक कार्य नहीं किया जाता है.

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी के नाम से जानी जाती है। देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के तुरन्त बाद आती है और अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत जून अथवा जुलाई के महीने में आता है। चतुर्मास जो कि हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार चार महीने का आत्मसंयम काल है, देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ हो जाता है। यह व्रत इस वर्ष (मंगलवार)04 जुलाई 2017 को है। इस दिन से भगवान श्रीविष्णु का एक स्वरूप चार मास के लिये पातल लोक में निवास करता है और दूसरा स्वरूप क्षीरसागर में शयन करता है। अत: इन चार मासों में किसी भी प्रकार का धार्मिक कार्य नहीं किया जाता। न हीं कोई वैवाहिक अनुष्ठान होता है और न किसी प्रकार का शुभ कार्य। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस देवशयनी एकादशी को पद्मनाभा, हरिशयनी, प्रबोधिनी आदि नामों से भी जाना जाता है। कई स्थानों में इस एकादशी (देवशयनी एकादशी) को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इन चार मासों में केवल ब्रज की यात्रा का विधान है। ऐसा माना जाता है कि चातुर्मास में सभी देवता ब्रज में एकत्रित हो निवास करते हैं।

05 जुलाई 2017 को पारण (व्रत तोड़ने का) समय = ०५:२६ से ०८:३०
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय = १७:२१
एकादशी तिथि प्रारम्भ = ३/जुलाई/२०१७ को १२:४५ बजे
एकादशी तिथि समाप्त = ४/जुलाई/२०१७ को १४:५९ बजे

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जानिए देवशयनी एकादशी का महत्व----

पुराणों में कथा है कि शंखचूर नामक असुर से भगवान विष्णु का लंबे समय तक युद्ध चला। आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान ने शंखचूर का वध कर दिया और क्षीर सागर में सोने चले गये। शंखचूर से मुक्ति दिलाने के कारण देवताओं ने भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की। एक अन्य कथा के अनुसार वामन बनकर भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग में तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। राजा बलि को पाताल वापस जाना पड़ा। लेकिन बलि की भक्ति और उदारता से भगवान वामन मुग्ध थे। भगवान ने बलि से जब वरदान मांगने के लिए कहा तो बलि ने भगवान से कहा कि आप सदैव पाताल में निवास करें। भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान पाताल में रहने लगे। इससे लक्ष्मी मां दुःखी हो गयी। भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ लाने के लिए लक्ष्मी मां गरीब स्त्री का वेष बनाकर पाताल लोक पहुंची। लक्ष्मी मां के दीन हीन अवस्था को देखकर बलि ने उन्हें अपनी बहन बना लिया। लक्ष्मी मां ने बलि से कहा कि अगर तुम अपनी बहन को खुश देखना चाहते हो तो मेरे पति भगवान विष्णु को मेरे साथ बैकुंठ विदा कर दो। बलि ने भगवान विष्णु को बैकुंठ विदा कर दिया लेकिन वचन दिया कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तक वह हर साल पाताल में निवास करेंगे। इसलिए इन चार महीनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
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जानिए क्यों वर्जित हैं देवशयन में मांगलिक कार्य ..

जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर बलि से तीन पग भूमि मांगी। दो पग में पृथ्वी और स्वर्ग को नापा और जब तीसरा पग रखने लगे तब बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। तब भगवान ने बलि को पाताल भेज दिया तथा उसकी दानभक्ति को देखते हुए आशीर्वाद मांगने को कहा। बलि ने कहा कि प्रभु आप सभी देवी-देवताओं के साथ मेरे लोक पाताल में निवास करें। इस कारण भगवान विष्णु को सभी देवी-देवताओं के साथ पाताल जाना पड़ा। यह दिन था विष्णुशयनी (देवशयनी) एकादशी का। इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों के दाता भगवान विष्णु का पृथ्वी से लोप होना माना जाता है। यही कारण है कि इन चार महीनों में हिंदू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य करना वर्जित है। इस अवधि में कृ्षि और विवाहादि सभी शुभ कार्यो करने बन्द कर दिये जाते है. इस काल को भगवान श्री विष्णु का निद्राकाल माना जाता है. इन दिनों में तपस्वी एक स्थान पर रहकर ही तप करते है. धार्मिक यात्राओं में भी केवल ब्रज यात्रा की जा सकती है. ब्रज के विषय में यह मान्यता है, कि इन चार मासों में सभी देव एकत्रित होकर तीर्थ ब्रज में निवास करते है. बेवतीपुराण में भी इस एकादशी का वर्णन किया गया है. यह एकादशी उपवासक की सभी कामनाएं पूरी करती है |ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की देवशयनी एकादशी से चार माह के लिए विवाह संस्कार बंद हो जाते हैं। अर्थात इस एकादशी से देव सो जाएंगे। आगामी देवोत्थान एकादशी के दिन विवाह संस्कार पुन: प्रारंभ हो जाएंगे। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की देवशयनी एकादशी के बाद विवाह, नव निर्माण, मुंडन, जनेऊ संस्कार जैसे शुभ मांगलिक कार्य नहीं होंगे।

भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का मंत्र:---

‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम।
विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत सर्वं चराचरम।’

भावार्थ: हे जगन्नाथ! आपके शयन करने पर यह जगत सुप्त हो जाता है और आपके जाग जाने पर सम्पूर्ण चराचर जगत प्रबुद्ध हो जाता है। पीताम्बर, शंख, चक्र और गदा धारी भगवान् विष्णु के शयन करने और जाग्रत होने का प्रभाव प्रदर्शित करने वाला यह मंत्र शुभ फलदायक है जिसे भगवान विष्णु की उपासना के समय उच्चारित किया जाता है।
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जानिए व्रत में क्या करें---
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर अपनी दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर कमल नेत्र भगवान विष्णु जी को पीत वस्त्र ओढ़ाकर धूप, दीप, नेवैद्य, फल और मौसम के फलों से विधिवत पूजन करना चाहिए तथा विशेष रूप से पान और सुपारी अर्पित करनी चाहिएं। शास्त्रानुसार जो भक्त कमल पुष्पों से भगवान विष्णु का पूजन करते हैं उन्हें तीनों लोकों और तीनों सनातन देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश का पूजन एक साथ ही करने का फल प्राप्त होता है।

इस व्रत में ब्राह्मणों को दान आदि देने का अत्यधिक महत्व है। स्वर्ण अथवा पीले रंग की वस्तुओं का दान करने से अत्यधिक पुण्य फल प्राप्त होता है। जब तक भगवान विष्णु शयन करते हैं तब तक के चार महीनों में सभी को धर्म का पूरी तरह से आचरण करना चाहिए। रात्रि में भगवान विष्णु जी की महिमा का गुणगान करते हुए जागरण करना, मंदिर में दीपदान करना अति उत्तम कर्म है।

क्या ग्रहण करें?
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की देह शुद्धि या सुंदरता के लिए परिमित प्रमाण के पंचगव्य का। वंश वृद्धि के लिए नियमित दूध का। सर्वपापक्षयपूर्वक सकल पुण्य फल प्राप्त होने के लिए एकमुक्त, नक्तव्रत, अयाचित भोजन या सर्वथा उपवास करने का व्रत ग्रहण करें।

किसका त्याग करें ?

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की मधुर स्वर के लिए गुड़ का। दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का। शत्रुनाशादि के लिए कड़वे तेल का। सौभाग्य के लिए मीठे तेल का। स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का। प्रभु शयन के दिनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जहाँ तक हो सके न करें। पलंग पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि का भोजन करना, मूली, पटोल एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए।
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क्या कहते हैं संत महात्मा?

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस वर्ष देवशयनी एकादशी व्रत का पारण (बुधवार) 05 जुलाई 2017 को प्रात:०५:२६ से ०८:३० के बीच के समय में किया जाना चाहिए तथा दान सदा सुपात्र को देना चाहिए क्योंकि कुपात्र को दान देने वाला भी नरकगामी बनता है। दान देते समय मन में किसी प्रकार के अभिमान, अहंकार यानि कर्ता का भाव नहीं रखना चाहिए बल्कि विनम्र भाव से अथवा गुप्त दान का अधिक फल है। इस एकादशी के करने से मनुष्य की सभी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं। यह व्रत मनुष्य के सभी पापों को नष्ट करता है। इस व्रत को करनेवाला व्यक्ति परम गति को प्राप्त होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को तीनों लोकों के देवता तथा तीनों सनातन देवताओं की पूजन के समान फल प्राप्त होता है। यह व्रत परम कल्याणमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है। यह व्रत अधिक गुणों वाला होता है। अग्निहोत्र, भक्ति, धर्मविषयक श्रद्धा, उत्तम बुद्धि, सत्संग, सत्यभाषण, हृदय में दया, सरलता एवं कोमलता, मधुर वाणी, उत्तम चरित्र में अनुराग, वेदपाठ, चोरी का त्याग, अहिंसा, लज्जा, क्षमा, मन एवं इन्द्रियों का संयम, लोभ, क्रोध और मोह का अभाव, वैदिक कर्मों का उत्तम ज्ञान तथा भगवान को अपने चित्त का समर्पण – इन नियमों को मनुष्य अंगीकार करे और व्रत का यत्नपूर्वक पालन करे।देवशयनी एकादशी की सुबह जल्दी उठें। पहले घर की साफ-सफाई करें, उसके बाद स्नान आदि कर शुद्ध हो जाएं। घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की सोने, चांदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति स्थापित करें। इसके उसका षोडशोपचार (16 सामग्रियों से) पूजा करें। भगवान विष्णु को पीतांबर (पीला कपड़ा) अर्पित करें।
व्रत की कथा सुनें। आरती कर प्रसाद वितरण करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा दक्षिणा देकर विदा करें। अंत में सफेद चादर से ढंके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर श्रीविष्णु को शयन कराएं तथा स्वयं धरती पर सोएं। धर्म शास्त्रों के अनुसार, यदि व्रती (व्रत रखने वाला) चातुर्मास नियमों का पूर्ण रूप से पालन करे तो उसे देवशयनी एकादशी व्रत का संपूर्ण फल मिलता है।

सागार: इस दिन दाख का सागार लेना चाहिए |

फल: इस मास की एकादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला है।
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देवशयनी एकादशी व्रत पूजन सामग्री:-

∗ श्री विष्णु जी की मूर्ति
∗ वस्त्र(लाल एवं पीला)
∗ पुष्प
∗ पुष्पमाला
∗ नारियल
∗ सुपारी
∗ अन्य ऋतुफल
∗ धूप
∗ दीप
∗ घी
∗ पंचामृत (दूध(कच्चा दूध),दही,घी,शहद और शक्कर का मिश्रण)
∗ अक्षत
∗ तुलसी दल
∗ चंदन
∗ कलश
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देवशयनी एकादशी कथा :-

युधिष्ठिर ने पूछा : भगवन् ! आषाढ़ के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसका नाम और विधि क्या है? यह बतलाने की कृपा करें ।
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘शयनी’ है। मैं उसका वर्णन करता हूँ । वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है । आषाढ़ शुक्लपक्ष में ‘शयनी एकादशी’ के दिन जिन्होंने कमल पुष्प से कमललोचन भगवान विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन कर लिया ।

‘हरिशयनी एकादशी’ के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती, अत: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को भलीभाँति धर्म का आचरण करना चाहिए । जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है, इस कारण यत्नपूर्वक इस एकादशी का व्रत करना चाहिए । एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए । ऐसा करनेवाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं ।

राजन् ! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह जाति का चाण्डाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय रहनेवाला है । जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं । चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिए मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए ।

सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिए । जो चौमसे में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है । राजन् ! एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, अत: सदा इसका व्रत करना चाहिए । कभी भूलना नहीं चाहिए । ‘शयनी’ और ‘बोधिनी’ के बीच में जो कृष्णपक्ष की एकादशीयाँ होती हैं, गृहस्थ के लिए वे ही व्रत रखने योग्य हैं
– अन्य मासों की कृष्णपक्षीय एकादशी गृहस्थ के रखने योग्य नहीं होती । शुक्लपक्ष की सभी एकादशी करनी चाहिए ।
-- ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री

शास्त्रानुसार चतुर्मास एवं चौमासे के दिन

शास्त्रानुसार चतुर्मास एवं चौमासे के दिनों में देव कार्य अधिक होते हैं जबकि हिन्दुओं के विवाह आदि उत्सव नहीं किए जाते। इन दिनों में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा दिवस तो मनाए जाते हैं परंतु नवमूर्ति प्राण प्रतिष्ठा व नवनिर्माण आदि के कार्य नहीं किए जाते जबकि धार्मिक अनुष्ठान, श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ, हवन यज्ञ आदि कार्य अधिक होते हैं, गायत्री मंत्र के पुरश्चरण व सभी व्रत सावन मास में सम्पन्न किए जाते हैं। सावन के महीने में मंदिरों में कीर्तन, भजन, जागरण आदि कार्यक्रम अधिक होते हैं। प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर अपनी दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर कमल नेत्र भगवान विष्णु जी को पीत वस्त्र ओढ़ाकर धूप, दीप, नेवैद्य, फल और मौसम के फलों से विधिवत पूजन करना चाहिए तथा विशेष रूप से पान और सुपारी अर्पित करनी चाहिएं।
चार्तुमास के विभिन्न कर्मों का पुण्य फल
जो मनुष्य इन चार महीनों में मंदिर में झाडू लगाते हैं तथा मंदिर को धोकर साफ करते हैं, कच्चे स्थान को गोबर से लीपते हैं, उन्हें सात जन्म तक ब्राह्मण योनि मिलती है।

जो भगवान को दूध, दही, घी, शहद, और मिश्री से स्नान कराते हैं, वह संसार में वैभवशाली होकर स्वर्ग में जाकर इन्द्र जैसा सुख भोगते हैं।
धूप, दीप, नैवेद्य और पुष्प आदि से पूजन करने वाला प्राणी अक्षय सुख भोगता है।
तुलसीदल अथवा तुलसी मंजरियों से भगवान का पूजन करने, स्वर्ण की तुलसी ब्राह्मण को दान करने पर परमगति मिलती है।
गूगल की धूप और दीप अर्पण करने वाला मनुष्य जन्म जन्मांतरों तक धनाढ्य रहता है।
पीपल का पेड़ लगाने, पीपल पर प्रति दिन जल चढ़ाने, पीपल की परिक्रमा करने, उत्तम ध्वनि वाला घंटा मंदिर में चढ़ाने, ब्राह्मणों का उचित सम्मान करने, किसी भी प्रकार का दान देने, कपिला गो का दान, शहद से भरा चांदी का बर्तन और तांबे के पात्र में गुड़ भरकर दान करने, नमक, सत्तू, हल्दी, लाल वस्त्र, तिल, जूते, और छाता आदि का यथाशक्ति दान करने वाले जीव को कभी भी किसी वस्तु की कमीं जीवन में नहीं आती तथा वह सदा ही साधन संपन्न रहता है।

जो व्रत की समाप्ति यानि उद्यापन करने पर अन्न, वस्त्र और शैय्या का दान करते हैं वह अक्षय सुख को प्राप्त करते हैं तथा सदा धनवान रहते हैं।

वर्षा ऋतु में गोपीचंदन का दान करने वालों को सभी प्रकार के भोग एवं मोक्ष मिलते हैं।

जो नियम से भगवान श्री गणेश जी और सूर्य भगवान का पूजन करते हैं वह उत्तम गति को प्राप्त करते हैं तथा जो शक्कर का दान करते हैं उन्हें यशस्वी संतान की प्राप्ति होती है।

माता लक्ष्मी और पार्वती को प्रसन्न करने के लिए चांदी के पात्र में हल्दी भर कर दान करनी चााहिए तथा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बैल का दान करना श्रेयस्कर है।

चातुर्मास में फलों का दान करने से नंदन वन का सुख मिलता है।

जो लोग नियम से एक समय भोजन करते हैं, भूखों को भोजन खिलाते हैं, स्वयं भी नियमवद्घ होकर चावल अथवा जौं का भोजन करते हैं, भूमि पर शयन करते हैं उन्हें अक्षय कीर्ती प्राप्त होती है।
इन दिनों में आंवले से युक्त जल से स्नान करना तथा मौन रहकर भोजन करना श्रेयस्कर है।

शनिवार, 1 जुलाई 2017

कोई हैंडपंप लगाया हुआ है जहाँ से जितना चाहो #खून ले सकते हो |

आजकल एक ट्रेंड चल पड़ा है की जैसे ही किसी को #खून की ज़रूरत होती है सीधा खूनदान करने वाली सोसाइटीज, डोनर ग्रुप्स आदि को फ़ोन कर देते हैं।
उन लोगों को बोलना चाहूँगा की #खूनदान करने वाली सोसाइटीज ने कोई लंगर नही लगाया हुआ और ना ही खून निकालने कोई हैंडपंप लगाया हुआ है जहाँ से जितना चाहो #खून ले सकते हो |
अरे भाई पहले पहले अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, परिचितों, आस-पड़ोस वालों का #ब्लड डोनेट करवाओ जो आपके हर सुख-दुःख में शामिल होते हैं।
अपनों की असली पहचान तो ऐसे समय में ही होती है और फिर भी अगर ज़्यादा की यूनिट खून की आवशयकता हो या अगर आपका कोई अपना तैयार ना हो अपना खून देने को तो हम रक्तदानी तो हैं ही आपकी सेवा में जो किसी भी अनजान ज़रूरतमंद के लिए भी अपना खूनदान कर देते हैं।

ब्लड डोनेशन ग्रुप्स, खूनदान सोसाइटीज सिर्फ #ज़रुरतमंदों की सहायता करने के लिए होतीं हैं इसलिए उनको सहयोग दें ना की उनका इस्तेमाल करें । ज़रूरतमंदों की अगर परिभाषा बताने की आवशकता पड़े तो वे तो ग्रामीण क्षेत्रों से आए हों, जिनके साथ में ब्लड डोनेट करने के लिए कोई ना हो, रक्तदान करने में जितने सक्षम मित्-परिवारजन हों वे आलरेडी ब्लड डोनेट कर चुके हों, कोई स्पेसिफ़ ब्लड ग्रुप या अफ्फ़रेसिस प्रोसीजर के लिए डोनर की आवशयकता हो आदि आदि.. लोकल शहर के रहवासी तो उसी डॉक्टर या ब्लड बैंक वालों को धकियाना हो या गुद्दी में दो रैपट देने हों तो बीस मुस्टंडे खड़े कर लेते हैं, उनसे भी करवाओ ना ब्लड डोनेट, उनकी उबलती मर्दानगी किस दिन काम आएगी !

खूनदान करके तो देखो; अच्छा लगता है !

#नोट :~ मूल खरी-खरी जलंधर के रक्तवीर अमनजोत सिंह की कलम से, अपने क्षेत्र और यहाँ की परिस्थियों के हिसाब से आंशिक फ़ेर-बदल किया है

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