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मंगलवार, 20 मार्च 2018

माँ सती के 51 शक्तिपीठ

*माँ सती के 51 शक्तिपीठ*

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।

ज्ञातव्य है की इन 51 शक्तिपीठों में भारत-विभाजन के बाद 5 और भी कम हो गए और आज के भारत में 42 शक्ति पीठ रह गए है। 1 शक्तिपीठ पाकिस्तान में चला गया और 4 बांग्लादेश में। शेष 4 पीठो में 1 श्रीलंकामें, 1 तिब्बत में तथा 2 नेपाल में है।

*या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता*

*नम: तस्ये नम: तस्ये नम: तस्ये नमो नम:||*

*शक्तिपीठों के सन्दर्भ में कथा*

राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से विवाह किया। एक बार मुनियों का एक समूह यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में ‘बृहस्पति सर्व / ब्रिहासनी’ नामक यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ मेंब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमन्त्रण नहीं भेजा था। जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए। नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। ‘तंत्र-चूड़ामणि’ के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र याआभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या करशिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया।

*51 शक्ति पीठो का विवरण*

किरीट शक्तिपीठ (किरीट शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है किरीट शक्तिपीठ, जहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं।

कात्यायनी शक्तिपीठ (कात्यायनी शक्ति पीठ )

वृन्दावन, मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं।

करवीर शक्तिपीठ (करवीर शक्ति पीठ)

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।

श्री पर्वत शक्तिपीठ (श्री पर्वत शक्ति पीठ)

इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख है, जबकि कुछ का मानना है कि यह असम के सिलहट में है जहां माता सती का दक्षिण तल्प यानी कनपटी गिरा था। यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं।

विशालाक्षी शक्तिपीठ (विशालाक्षी शक्ति पीठ)

उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।

गोदावरी तट शक्तिपीठ (गोदावरी कोस्ट शक्ति पीठ)

आंध्रप्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं।

शुचीन्द्रम शक्तिपीठ (सुचिन्द्रम शक्ति पीठ)

तमिलनाडु, कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुची शक्तिपीठ, जहां सती के उफध्र्वदन्त (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं।

पंच सागर शक्तिपीठ (पंचसागर शक्ति पीठ)

इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं।

ज्वालामुखी शक्तिपीठ (ज्वालामुखी शक्ति पीठ)

हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं।

भैरव पर्वत शक्तिपीठ (भैरवपर्वत शक्ति पीठ)

इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतदभेद है। कुछ गुजरात के गिरिनार के निकट भैरव पर्वत को तो कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन के निकट क्षीप्रा नदी तट पर वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं, जहां माता का उफध्र्व ओष्ठ गिरा है। यहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण हैं।

अट्टहास शक्तिपीठ ( अट्टहास शक्ति पीठ)

अट्टहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर में स्थित है। जहां माता का अध्रोष्ठ यानी नीचे का होंठ गिरा था। यहां की शक्ति पफुल्लरा तथा भैरव विश्वेश हैं।

जनस्थान शक्तिपीठ (जनस्थान शक्ति पीठ)

महाराष्ट्र नासिक के पंचवटी में स्थित है जनस्थान शक्तिपीठ जहां माता का ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं।

कश्मीर शक्तिपीठ या अमरनाथ शक्तिपीठ (कश्मीर शक्ति पीठ और अमरनाथ शक्ति पीठ)

जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित है यह शक्तिपीठ जहां माता का कण्ठ गिरा था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।

नन्दीपुर शक्तिपीठ (नांदीपुर शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है यह पीठ, जहां देवी की देह का कण्ठहार गिरा था। यहां कि शक्ति निन्दनी और भैरव निन्दकेश्वर हैं।

श्री शैल शक्तिपीठ (श्री शैल शक्ति पीठ )

आंध्रप्रदेश के कुर्नूल के पास है श्री शैल का शक्तिपीठ, जहां माता का ग्रीवा गिरा था। यहां की शक्ति महालक्ष्मी तथा भैरव संवरानन्द अथव ईश्वरानन्द हैं।

नलहटी शक्तिपीठ (नलहाटी शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है नलहरी शक्तिपीठ, जहां माता का उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं।

मिथिला शक्तिपीठ (मिथिला शक्ति पीठ )

इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। स्थान को लेकर मन्तारतर है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ को माना जाता है, वह है नेपाल के जनकपुर, बिहार के समस्तीपुर और सहरसा, जहां माता का वाम स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति उमा या महादेवी तथा भैरव महोदर हैं।

रत्नावली शक्तिपीठ (रत्नावली शक्ति पीठ)

इसका निश्चित स्थान अज्ञात है, बंगाज पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के चेन्नई में कहीं स्थित है रत्नावली शक्तिपीठ जहां माता का दक्षिण स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।

अम्बाजी शक्तिपीठ (अम्बाजी शक्ति पीठ)

गुजरात गूना गढ़ के गिरनार पर्वत के प्रथत शिखर पर देवी अिम्बका का भव्य विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था। यहां की शक्ति चन्द्रभागा तथा भैरव वक्रतुण्ड है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उध्र्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।

जालंध्र शक्तिपीठ (जालंधर शक्ति पीठ)

पंजाब के जालंध्र में स्थित है माता का जालंध्र शक्तिपीठ जहां माता का वामस्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुरमालिनी तथा भैरव भीषण हैं।

रामागरि शक्तिपीठ (रामगिरि शक्ति पीठ)

इस शक्ति पीठ की स्थिति को लेकर भी विद्वानों में मतान्तर है। कुछ उत्तर प्रदेश के चित्राकूट तो कुछ मध्य प्रदेश के मैहर में मानते हैं, जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था। यहा की शक्ति शिवानी तथा भैरव चण्ड हैं।

वैद्यनाथ शक्तिपीठ (वैधनाथ शक्ति पीठ)

झारखण्ड के गिरिडीह, देवघर स्थित है वैद्यनाथ हार्द शक्तिपीठ, जहां माता का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ है। एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।

वक्त्रोश्वर शक्तिपीठ (वर्करेश्वर शक्ति पीठ)

माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैिन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं।

कण्यकाश्रम कन्याकुमारी शक्तिपीठ (कन्याकुमारी शक्ति पीठ)

तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ीद्ध के संगम पर स्थित है कण्यकाश्रम शक्तिपीठ, जहां माता का पीठ मतान्तर से उध्र्वदन्त गिरा था। यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमषि या स्थाणु हैं।

बहुला शक्तिपीठ (बहुल शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में स्थित है बहुला शक्तिपीठ, जहां माता का वाम बाहु गिरा था। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।

उज्जयिनी शक्तिपीठ (उज्जैनी शक्ति पीठ)

मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है उज्जयिनी शक्तिपीठ। जहां माता का कुहनी गिरा था। यहां की शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं।

मणिवेदिका शक्तिपीठ (मणिवेदिका शक्ति पीठ)

राजस्थान के पुष्कर में स्थित है मणिदेविका शक्तिपीठ, जिसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है यहीं माता की कलाइयां गिरी थीं। यहां की शक्ति गायत्री तथा भैरव शर्वानन्द हैं।

प्रयाग शक्तिपीठ (प्रयाग शक्ति पीठ)

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। यहां माता की हाथ की अंगुलियां गिरी थी। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों गिरा माना जाता है। तीनों शक्तिपीठ की शक्ति ललिता हैं।

विरजाक्षेत्रा, उत्कल शक्तिपीठ (उत्कल शक्ति पीठ)

उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है जहां माता की नाभि गिरा था। यहां की शक्ति विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं।

कांची शक्तिपीठ (कांची शक्ति पीठ)

तमिलनाडु के कांचीवरम् में स्थित है माता का कांची शक्तिपीठ, जहां माता का कंकाल गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रुरु हैं।

कालमाध्व शक्तिपीठ (कालमाध्व शक्ति पीठ)

इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का वाम नितम्ब गिरा था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं।

शोण शक्तिपीठ (षोडश शक्ति पीठ)

मध्य प्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। एक दूसरी मान्यता यह है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है। यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।

कामाख्या शक्तिपीठ (कामाख्या शक्ति पीठ)

कामगिरिअसम गुवाहाटी के कामगिरि पर्वत पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का योनि गिरा था। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं।

जयन्ती शक्तिपीठ (जयंती शक्ति पीठ)

जयन्ती शक्तिपीठ मेघालय के जयन्तिया पहाडी पर स्थित है, जहां माता का वाम जंघा गिरा था। यहां की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।

मगध् शक्तिपीठ (मगध शक्ति पीठ)

बिहार की राजधनी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं।

त्रिस्तोता शक्तिपीठ (त्रिश्रोता शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है त्रिस्तोता शक्तिपीठ, जहां माता का वामपाद गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव ईश्वर हैं।

त्रिपुरी सुन्दरी शक्तित्रिपुरी पीठ

त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है त्रिपुरे सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुर सुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं।

38 . विभाष शक्तिपीठ (विभाषा शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक ग्रााम में स्थित है विभाष शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। यहां की शक्ति कापालिनी, भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं।

देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ (कुरुक्षेत्र शक्ति पीठ)

हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ, जिसे श्रीदेवीकूप(भद्रकाली पीठ के नाम से मान्य है। माता का दहिने चरण (गुल्पफद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं।

युगाद्या शक्तिपीठ, क्षीरग्राम शक्तिपीठ (उघड़ा शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले के क्षीरग्राम में स्थित है युगाद्या शक्तिपीठ, यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था।

विराट का अम्बिका शक्तिपीठ (विराट नगर शक्ति पीठ)

राजस्थान के गुलाबी नगरी जयपुर के वैराटग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहाँ सती के ‘दायें पाँव की उँगलियाँ’ गिरी थीं।। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं।

कालीघाटशक्तिपीठ (कालीघाट शक्ति पीठ)

पश्चिम बंगाल, कोलकाता के कालीघाट में कालीमन्दिर के नाम से प्रसिध यह शक्तिपीठ, जहां माता के दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव नकुलेश हैं।

मानस शक्तिपीठ (माणसा शक्ति पीठ)

तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति की दाक्षायणी तथा भैरव अमर हैं।

लंका शक्तिपीठ (लंका शक्ति पीठ)

श्रीलंका में स्थित है लंका शक्तिपीठ, जहां माता का नूपुर गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।

गण्डकी शक्तिपीठ (गंडकी शक्ति पीठ)

नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम पर स्थित है गण्डकी शक्तिपीठ, जहां सती के दक्षिणगण्ड(कपोल) गिरा था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´ हैं।

गुह्येश्वरी शक्तिपीठ (गुह्येश्वरी शक्ति पीठ)

नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है, जहां माता सती के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहां की शक्ति `महामाया´ और भैरव `कपाल´ हैं।

हिंगलाज शक्तिपीठ (हिंगलाज  शक्ति पीठ)

पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रान्त में स्थित है माता हिंगलाज शक्तिपीठ, जहां माता का ब्रह्मरन्ध्र गिरा था।

सुगंध शक्तिपीठ (सुगंध शक्ति पीठ)

बांग्लादेश के खुलना में सुगंध नदी के तट पर स्थित है उग्रतारा देवी का शक्तिपीठ, जहां माता का नासिका गिरा था। यहां की देवी सुनन्दा है तथा भैरव त्रयम्बक हैं।

करतोयाघाट शक्तिपीठ (करतोयातत शक्ति पीठ)

बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर स्थित है करतोयाघाट शक्तिपीठ, जहां माता का वाम तल्प गिरा था। यहां देवी अपर्णा रूप में तथा शिव वामन भैरव रूप में वास करते हैं।

चट्टल शक्तिपीठ (कैटल शक्ति पीठ)

बंग्लादेश के चटगांव में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां की शक्ति भवानी तथा भेरव चन्द्रशेखर हैं।

यशोर शक्तिपीठ (यशोर शक्ति पीठ)

बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का प्रसि( यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता का बायीं हथेली गिरा था। यहां शक्ति यशोरेश्वरी तथा भैरव चन्द्र हैं।

       

हनुमानजी के 10 रहस्य

हनुमानजी के 10 रहस्य ......

हिन्दुओं के प्रमुख देवता हनुमानजी के बारे में कई रहस्य जो अभी तक छिपे हुए हैं। शास्त्रों अनुसार हनुमानजी इस धरती पर एक कल्प तक सशरीर रहेंगे।

1. हनुमानजी का जन्म स्थान :

कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था।

हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।

2.कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी :

इंद्र से उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला। श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। सीता माता के वरदान अनुसार वे चिरजीवी रहेंगे। इसी वरदान के चलते द्वापर युग में हनुमानजी भीम और अर्जुन की परीक्षा लेते हैं। कलियुग में वे तुलसीदासजी को दर्शन देते हैं।

ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे-
'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।'
श्रीमद् भागवत अनुसार हनुमानजी
कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं।

3.कपि नामक वानर :

हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। रामायणादि ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए। उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन इसका प्रमाण है कि वे वानर थे।
रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। अत: सिद्ध होता है कि वे जाति से वानर थे।

4. हनुमान परिवार :

हनुमानजी की माता का अंजनी पूर्वजन्म में पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थीं। उनके पिता का नाम कपिराज केसरी था। ब्रह्मांडपुराण अनुसार हनुमानजी सबसे बड़े भाई हैं। उनके बाद मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे।

कहते हैं कि जब वर्षों तक केसरी से अंजना को कोई पुत्र नहीं हुआ तो पवनदेव के आशिर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। इसीलिए हनुमानजी को पवनपुत्र भी कहते हैं। कुंति पुत्र भीम भी पवनपुत्र हैं। हनुमानजी रुद्रावतार हैं।

पराशर संहिता अनुसार सूर्यदेव की शिक्षा देने की शर्त अनुसार हनुमानजी को सुवर्चला नामक स्त्री से विवाह करना पड़ा था।

5. इन बाधाओं से बचाते हैं हनुमानजी :

रोग और शोक, भूत-पिशाच, शनि, राहु-केतु और अन्य ग्रह बाधा, कोर्ट-कचहरी-जेल बंधन, मारण-सम्मोहन-उच्चाटन, घटना-दुर्घटना से बचना, मंगल दोष, पितृदोष, कर्ज, संताप, बेरोजगारी, तनाव या चिंता, शत्रु बाधा, मायावी जाल आदि से हनुमानजी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

6. हनुमानजी के पराक्रम :

हनुमान सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वत्र हैं। बचपन में उन्होंने सूर्य को निकल लिया था। एक ही छलांक में वे समुद्र लांघ गए थे। उन्होंने समुद्र में राक्षसी माया का वध किया। लंका में घुसते ही उन्होंने लंकिनी और अन्य राक्षसों के वध कर दिया।

अशोक वाटिका को उजाड़कर अक्षय कुमार का वध कर दिया। जब उनकी पूछ में आग लगाई गई तो उन्हों लंका जला दी। उन्होंने सीता को अंगुठी दी, विभिषण को राम से मिलाया। हिमालय से एक पहाड़ उठाकर ले आए और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की।

इस बीच उन्होंने कालनेमि राक्षस का वध कर दिया। पाताल लोक में जाकर राम-लक्ष्मण को छुड़ाया और अहिरावण का वध किया। उन्होंने सत्यभामा, गरूढ़, सुदर्शन, भीम और अर्जुन का घमंड चूर चूर कर दिया था।
हनुमानजी के ऐसे सैंकड़ों पराक्रम हैं।

7.हनुमाजी पर लिखे गए ग्रंथ :

तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक, हनुमान साठिका, संकटमोचन हनुमानाष्टक, आदि अनेक स्तोत्र लिखे। तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है।

इंद्रा‍दि देवताओं के बाद हनुमानजी पर विभीषण ने हनुमान वडवानल स्तोत्र की रचना की। समर्थ रामदास द्वारा मारुती स्तोत्र रचा गया। आनं‍द रामायण में हनुमान स्तुति एवं उनके द्वादश नाम मिलते हैं। इसके अलावा कालांतर में उन पर हजारों वंदना, प्रार्थना, स्त्रोत, स्तुति, मंत्र, भजन लिखे गए हैं। गुरु गोरखनाथ ने उन पर साबर मं‍त्रों की रचना की है।

8. माता जगदम्बा के सेवक हनुमानजी :

रामभक्त हनुमानजी माता जगदम्बा के सेवक भी हैं। हनुमानजी माता के आगे-आगे चलते हैं और भैरवजी पीछे-पीछे। माता के देशभर में जितने भी मंदिर है वहां उनके आसपास हनुमानजी और भैरव के मंदिर जरूर होते हैं। हनुमानजी की खड़ी मुद्रा में और भैरवजी की मुंड मुद्रा में प्रतिमा होती है। कुछ लोग उनकी यह कहानी माता वैष्णोदेवी से जोड़कर देखते हैं।

9. सर्वशक्तिमान हनुमानजी :

हनुमानजी के पास कई वरदानी शक्तियां थीं लेकिन फिर भी वे बगैर वरदानी शक्तियों के भी शक्तिशाली थे। ब्रह्मदेव ने हनुमानजी को तीन वरदान दिए थे, जिनमें उन पर ब्रह्मास्त्र बेअसर होना भी शामिल था, जो अशोकवाटिका में काम आया।

सभी देवताओं के पास अपनी अपनी शक्तियां हैं। जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, महेश के पास पार्वती और ब्रह्मा के पास सरस्वती। हनुमानजी के पास खुद की शक्ति है। इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी। महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती।

10. इन्होंने देखा हनुमानजी को :

13वीं शताब्दी में माध्वाचार्य, 16वीं शताब्दी में तुलसीदास, 17वीं शताब्दी में रामदास, राघवेन्द्र स्वामी और 20वीं शताब्दी में स्वामी रामदास हनुमान को देखने का दावा करते हैं। हनुमानजी त्रेता में श्रीराम, द्वापर में श्रीकृष्ण और अर्जुन और कलिकाल में रामभक्तों की सहायता करते हैं। जय श्री राम।          🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻

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