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शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम देवो न जानाति, कुतो मनुष्य:

“पुरुष का चरित्र और नारी का सौभाग्य”

इस देश में “त्रिया चरित्र” बहुत प्रसिद्धि है, यह शब्द महाभारत के एक श्लोक से आया है, जिसकी अर्धाली मेरे देश में बहुत प्रचलित है।

त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम देवो न जानाति, कुतो मनुष्य:

अर्थात स्त्री का चरित्र और पुरुष का भाग्य देवता भी नहीं जानते, मनुष्य कैसे जान सकता है?, पर पूरा श्लोक निम्नवत है।

नृपस्य चित्तं, कृपणस्य वित्तम; मनोरथाः दुर्जनमानवानाम्।
त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम; देवो न जानाति कुतो मनुष्यः।।

'राजा का चित्त, कंजूस का धन, दुर्जनों का मनोरथ, पुरुष का भाग्य और स्त्रियों का चरित्र देवता तक नहीं जान पाते तो मनुष्यों की तो बात ही क्या है?'

पर हमने कभी पुरुष के चरित्र पर अंगुली नहीं उठाई,पुरुष, त्रिया चरित्र से भी १०० कदम आगे है, यदि एक स्त्री एक ही समय किसी से बात करती, किसी के बारे में सोचती और किसी से प्यार करती तो पुरुष अपने शरीर की काम वासना की तृप्ति हेतु १०० भिन्न स्त्रियों के साथ संसर्ग करने के लिए श्वानवत यत्र-तत्र विचरण करता रहता है, तभी तो पाणिनि ने श्वान, युवा और इंद्र को एक ही तराजू में तौल दिया।

एक कहावत है न अपना बच्चा और दूसरे की स्त्री,हर इंसान को अच्छी लगती। यह कहावतें ऐसी ही नहीं बन गयीं- बहुत से केस स्टडी कर के हमारे ब्रह्मरत ऋषियों ने कोई श्लोक लिखा और वह श्लोक ही लोकभाषा में कहावतें बन गयीं,जो आज भी सत्य की कसौटी पर परीक्षित होकर स्वर्णवत् प्रकाशमान हैं।

अतः पुरुष का चरित्रवान होना बहुत आवश्यक है, मैंने बचपन में एक कहानी सुनी थी.. एक स्त्री ने अपने पति से पूछा, मुझे कैसे विश्वास हो कि तुम हमारे प्रति वफादार हो? उस युवक ने कहा, यदि मैंने किसी दूसरी स्त्री पर आज तक गलत निगाह नहीं डाली होगी तो कोई तुम्हारे बारे में भी गलत नहीं सोचेगा। स्त्री ने पति की परीक्षा हेतु एक दिन भीड़ में एक किशोर का हाथ पकड़ा.. किशोर बोला, क्या है माता जी?, दूसरे किसी दिन एक युवक का हाथ पकड़ा... युवक बोला,बहिन जी कोई परेशान कर रहा क्या?, तीसरे अवसर पर एक वृद्ध का सहारा लिया, बृद्ध बोला.. बेटी तू क्यों दुःखी है? तब उसे विश्वास हुआ, हमारा पति उच्च आचरण का है।

अतः सामाजिक परिवेश में सद आचरण करने का उत्तरदायित्व प्रत्येक जीव का है, तभी हमारी नारियां भी सावित्री जैसी सौभाग्यशालिनी होंगी, जिसने अपने आचरण से पिता और पति दोनों कुलों के सारे कष्ट अपनी तपस्या की अग्नि में भष्म कर दिए। कोई विदेहकन्या ही सीता रूप में अपने पति का वनवास काल में अनुसरण कर सकती है, जिसके ऐसे आचरण से उसका पिता भी अपने को गौरान्वित महसूस कर के- ”पुत्रि पवित्र किये कुल दोउ” का उद्घोष करेगा और पुत्रि के तपस्वी वेश को भी अपना गौरव समझेगा।

ऐसी नारियों का सौभाग्य और सद्चरित्र कर्मठ पुरुषों का पौरुष ही हमारे देश का स्वर्णिम भविष्य है

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

नवरात्रि के कंजक पूजन के लिए कन्याएं चाहिए

इस कहानी को पूरे दिल से पढ़िए  और एक बार विचार जरूर कीजिए ....
शहर की मशहूर महिला डॉक्टर ने नवरात्रि के व्रत रखें l
कंजक पूजन के लिए कन्याएं चाहिए थी महिला डॉक्टर खुद ही निकल पड़ी घर से कि वह कुछ जाएंगी तो कन्याओं के माता पिता खुद कन्याओं को उसके साथ जल्दी से भेज देंगे तो वह कन्या जल्दी ले आएंगी  l

.
महिला डॉक्टर पड़ोस में आए नए पड़ोसी के घर गई अपना परिचय दिया, पड़ोसन ने आदर सम्मान के साथ अंदर बुलाया और बैठाया l

और अपनी बेटी से मिलाया यह मेरी बड़ी बेटी है l बहुत ऊंची पढ़ाई कर रही है नासा घूम कर आई है  l
और उसी के स्कॉलरशिप की तैयारी कर रही है l

डॉक्टर साहिबा आपको याद नहीं होगा शायद...
 मेरी सास ने मेरा टेस्ट करवाया था आपसे , और गर्भ गिराने के लिए पैसे भी दिए थे पर मैंने उनकी जिद नहीं मानी  lआपने भी काउंसलिंग के नाम पर मुझे गर्भ गिराने के लिए  राजी करने की भरपूर कोशिश की थी l

 उसके बाद मेरी एक बेटी हुई डॉक्टर साहब आपके बेटे की क्लासमेट है l

आपके बेटे से पूछना जो क्लास में फर्स्ट आता है वह कौन बच्चा है वह मेरी बेटी है डॉक्टर साहिबा l

हमारा तलाक हो चुका है l
आप डॉक्टर होने से पहले एक महिला है और चंद पैसो के लिए आप बेटियों को क्रम में मारने की  सलाह देती है और गर्भ गिरवा देती हैं l

आपके वो काउंसलिंग अगर मेरी जगह मेरी सास के साथ हुई होती तो आज मेरा तलाक ना हुआ होता l

हम इस कंजक पूजन में विश्वास नहीं रखते डॉक्टर साहिबा दोगले चरित्र मुझे पसंद नहीं है अगर आप जैसी डॉक्टर और मेरी सास जैसी औरतें इस समाज में है तो कहां से आएंगी कंजक और कितने दिन आएंगी l

आप बैठिए मैं आपके लिए चाय बना देती हूं l इतना कहकर अंदर चली गई और डॉक्टर से उठा नहीं जा रहा था  l
जैसे तैसे  खड़ी हुई और घर जाकर वह सामान अपने नौकर को दे दिया कि जहां भी कन्या मिले उनको दे देना l

बात तो उनकी बिल्कुल सही थी 9 दिन बेटी मां का रूप बाकी पूरे साल अलग विचारधारा क्यों.....???
 कन्या है तो मां है बहन है पत्नी है l उसी से सारे रिश्ते हैं उसी से सारे नाते हैं l बेटी का आदर सम्मान करें l🙏
 IIजय माता दी ll


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6 वर्ष में खत्म हो जायेगे होलसेल और रिटेल व्यपारी

6 वर्ष में खत्म हो जायेगे होलसेल और रिटेल व्यपारी

1 बार मैं अपने अंकल के साथ एक बैंक में गया, क्यूँकि उन्हें कुछ पैसा कही ट्रान्सफ़र करना था।
ये स्टेट बैंक एक छोटे से क़स्बे के छोटे से इलाक़े में था। वहां एक घंटे बिताने के बाद जब हम व हां से निकले तो उन्हें पूछने से मैं अपने आप को रोक नहीं पाया।
अंकल क्यूँ ना हम घर पर ही इंटर्नेट बैंकिंग चालू कर ले?
अंकल ने कहा ऐसा मैं क्यूँ करूँ ?
तो मैंने कहा कि अब छोटे छोटे ट्रान्सफ़र के लिए बैंक आने की और एक घंटा टाइम ख़राब करने की ज़रूरत नहीं, और आप जब चाहे तब घर बैठे अपनी ऑनलाइन शॉपिंग भी कर सकते हैं। हर चीज़ बहुत आसान हो जाएगी। मैं बहुत उत्सुक था उन्हें नेट बैंकिंग की दुनिया के बारे में विस्तार से बताने के लिए। इस पर उन्होंने पूछा अगर मैं ऐसा करता हूँ तो क्या मुझे घर से बाहर निकलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी? मुझे बैंक जाने की भी ज़रूरत नहीं?
मैंने उत्सुकतावश कहा, हाँ आपको कही जाने की जरुरत नही पड़ेगी और आपको किराने का सामान भी घर बैठे ही डिलिवरी हो जाएगा और ऐमज़ॉन, फ़्लिपकॉर्ट व स्नैपडील सबकुछ घर पे ही डिलिवरी करते हैं।
उन्होने इस बात पे जो जवाब मुझे दिया उसने मेरी बोलती बंद कर दी।
उन्होंने कहा आज सुबह जब से मैं इस बैंक में आया, मै अपने चार मित्रों से मिला और मैंने उन कर्मचारियों से बातें भी की जो मुझे जानते हैं। मेरे बच्चें दूसरे शहर में नौकरी करते है और कभी कभार ही मुझसे मिलने आते जाते हैं, पर आज ये वो लोग हैं जिनका साथ मुझे चाहिए। मैं अपने आप को तैयार कर के बैंक में आना पसंद करता हुँ, यहाँ जो अपनापन मुझे मिलता है उसके लिए ही मैं वक़्त निकालता हूँ।
दो साल पहले की बात है मैं बहुत बीमार हो गया था। जिस मोबाइल दुकानदार से मैं रीचार्ज करवाता हूं, वो मुझे देखने आया और मेरे पास बैठ कर मुझसे सहानुभूति जताई और उसने मुझसे कहा कि मैं आपकी किसी भी तरह की मदद के लिए तैयार हूँ।
वो आदमी जो हर महीने मेरे घर आकर मेरे यूटिलिटी बिल्स ले जाकर ख़ुद से भर आता था, जिसके बदले मैं उसे थोड़े बहुत पैसे दे देता था उस आदमी के लिए कमाई का यही एक ज़रिया था और उसे ख़ुद को रिटायरमेंट के बाद व्यस्त रखने का तरीक़ा भी !
कुछ दिन पहले मोर्निंग वॉक करते वक़्त अचानक मेरी पत्नी गिर पड़ी, मेरे किराने वाले दुकानदार की नज़र उस पर गई, उसने तुरंत अपनी कार में डाल कर उसको घर पहुँचाया क्यूँकि वो जानता था कि वो कहा रहती हैं।
अगर सारी चीज़ें ऑन लाइन ही हो गई तो मानवता, अपनापन, रिश्ते - नाते सब ख़त्म ही नही हो जाएँगे !
मैं हर वस्तु अपने घर पर ही क्यूँ मँगाऊँ ?
मैं अपने आपको सिर्फ़ अपने कम्प्यूटर से ही बातें करने में क्यूँ झोंकू ?
मैं उन लोगों को जानना चाहता हूँ जिनके साथ मेरा लेन-देन का व्यवहार है, जो कि मेरी निगाहों में सिर्फ़ दुकानदार नहीं हैं।
इससे हमारे बीच एक रिश्ता, एक बन्धन क़ायम होता है !
क्या ऐमज़ॉन, फ़्लिपकॉर्ट या स्नैपडील ये रिश्ते-नाते , प्यार, अपनापन भी दे पाएँगे ?
फिर उन्होने बड़े पते की एक बात कही जो मुझे बहुत ही विचारणीय लगी, आशा हैं आप भी इस पर चिंतन करेंगे....
उन्होने कहां कि ये घर बैठे सामान मंगवाने की सुविधा देने वाला व्यापार उन देशों मे फलता फूलता हैं जहां आबादी कम हैं और लेबर काफी मंहगी है।
अपने भारत जैसे १२५ करोड़ की आबादी वाले गरीब एंव मध्यम वर्गीय बहुल देश मे इन सुविधाओं को बढ़ावा देना आज तो नया होने के कारण अच्छा लग सकता हैं पर इसके दूरगामी प्रभाव बहुत ज्यादा नुकसानदायक होंगे।
देश मे ८०% जो व्यापार छोटे छोटे दुकानदार गली मोहल्लों मे कर रहे हैं वे सब बंद हो जायेगे और बेरोजगारी अपने चरम सीमा पर पहुंच जायेगी।
अधिकतर व्यापार कुछ गिने चुने लोगों के हाथों मे चला जायेगा और बाकी जनता बेकारी की ओर अग्रसर हो जायेगी।
मैं आजतक उनको क्या जबाब दूं ये नही समझ पाया हूं, अगर आप को कोई सटीक जबाब मिले तो मुझसे जरुर शेयर करे।
प्रिय मित्रों, अगर आप इन बातों से सहमत हैं तो इस मेसिज को अपने दोस्तों-रिश्तेदारों और अपने दूसरे जानने वालो के ग्रूप्स में भी शेयर करे तथा इसके दूरगामी परिणामों के बारे मे आपकी राय भी मुझे बताये। आप का
🙏 🙏
सुप्रभातम्
http://sanwariyaa.blogspot.com/2017/06/blog-post.html

रविवार, 14 अक्तूबर 2018

राजधानी दिल्ली में 7 नवंबर, 1966 को क्या हुआ था?

खतरनाक पोस्ट.. वोट के लिए हिंदू बनने वालों के लिए...

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार श्री मनमोहन शर्माजी के वॉल से...

राजधानी दिल्ली में 7 नवंबर, 1966 को क्या हुआ था? इस बाबत जितना लोग बताते हैं, उससे अधिक छुपा लेते हैं। मनमोहन शर्मा एक रिपोर्टर के तौर पर गो-भक्तों की उस रैली को कवर कर रहे थे। यहां पढ़ें कि उस दिन उन्होंने क्या देखा था-
मुझे खबर मिली कि दिल्ली में सात-आठ जगहों पर गोलियां चली हैं। गोल डाकखाना पर गोली चलने की खबर मिली। के. कामराज के घर पर गोली चली। विंडसर प्लेस पर गोलियां चलीं। ऐसी कई जगहें थीं। करीब दो घंटे तक दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर गोलियां चलती रहीं। अनौपचारिक तौर पर यह बताया गया था कि करीब 11 हजार राउंड गोलियां चलाई गई हैं। यह भी पता चला कि गोलियां चलने से 2700 से 2800 लोगों की जान गई थी।

वह दृश्य भूला नहीं हूं। सुबह आठ बजे होंगे। लोग संसद के सामने इकट्ठा होने लगे थे। घंटे भर बाद ही एक विशाल जनसमूह वहां एकत्र हो चुका था। कहीं से भक्ति-संगीत की आवाजें आ रही थी, तो कोई गीता के श्लोक गा रहा था। यूं समझ लीजिए कि पूरा वातावरण भक्ति-मय था।

संसद के ठीक समाने एक विशाल मंच बना था। मंच पर करीब ढाई सौ लोग बैठे थे। चारो पीठों के शंकराचार्य मंच पर थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख लोग वहां थे। स्वयं करपात्री महाराज थे। आर्य समाजी और नामधारी समाज के प्रमुख लोग भी वहां मौजूद थे। आखिर कौन नहीं था! यहां सभी के नाम को क्या गिनाना है, कुल मिलाकर कहूं तो उस दिन मंच पर विराट हिन्दू समाज प्रकट हुआ था।

मंच से भाषण का सिलसिला चल रहा था। दूसरी तरफ धार्मिक-गीत गाते-बजाते जत्थे आते जा रहे थे। बच्चे, बुढ़े, महिलाएं सभी उन जत्थों में शामिल थे। कई महिलाओं की गोद में तो दूध पीते बच्चे थे। चूंकि मामला आस्था से जुड़ा था तो लोग भाव-भक्ति में डूबे चले आ रहे थे।

करीब पांच लाख लोग दिल्ली के बाहर से आए हुए थे। वे दिल्ली में जगह-जगह बिखरे हुए थे। सात नवंबर की सुबह अचानक संसद के सामने वह जन-सैलाब प्रकट हुआ। इन आंदोलनकारियों के हाथों में झंडे भी थे। लेकिन, वह झंडा किसी पार्टी या संगठन का नहीं था, बल्कि उन झंडों में गो-माता के चित्र प्रमुखता से दिखाई दे रहे थे। कुल मिलाकर दोपहर ग्यारह बजे तक सब कुछ अपनी गति और लय में चल रहा था। गुरुजी का भाषण समाप्त हो चुका था। कई अन्य लोग भी अपनी बात रख चुके थे।

अचानक अफवाह फैली कि कुछ लोगों ने के. कामराज के घर पर हमला कर दिया है। फिर ट्रांसपोर्ट भवन के सामने कुछ वाहनों में आग लगाने की खबर आई। यह भी देखा गया कि साधु समाज के कुछ लोगों ने संसद भवन के भीतर प्रवेश करने की कोशिश की। उस वक्त इन पंक्तियों का लेखक स्वयं संसद के प्रेस कक्ष में मौजूद था।
मैं खबरें प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था। तभी मेहताजी (संसद भवन के प्रमुख कर्मचारी) भागे-भागे वहां आए। उन्होंने मुझसे कहा- “शर्मा जी साधुओं पर गोलियां चल रही हैं। आप यहां बैठे हैं!” उन्हें जवाब देते हुए मैंने कहा – “नहीं, गोली नहीं चल रही होगी। आंसू गैस छोड़े जा रहे होंगे।”हमारे बीच इतनी बात हुई थी कि दो अन्य व्यक्ति वहां आए और कहने लगे- “बाहर गोलियां चल रही हैं।”

उनकी बातें सुनकर मैं चौंका। तेजी से बाहर निकला। वहां मैंने देखा कि आंसू गैस का धुंआ चारों तरफ फैला हुआ है। वह इतना घना था कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। गोलियां चल रही थीं। चारो तरफ कोहराम मचा था। कुल मिलाकर वह दृश्य भयावह था।

तत्काल मैं लौटकर वापस आया। तभी संसद के गेट पर हमारी भेंट गुलजारी लाल नंदाजी से हो गई। तब वे गृहमंत्री थे। चूंकि, उस करुण दृश्य को देखकर मैं भावुक हो उठा था, तो नंदाजी को देखकर मैं खुद को रोक न सका। मैं फट पड़ा। मैंने उनसे पूछा- “नंदाजी, इस दृश्य को देखकर क्या आपको शर्म नहीं आ रही है? आप निहत्थे गौ-भक्तों पर गोलियां चलवा रहे हैं।”

मुझे याद नहीं है कि तब गुस्से में मैंने उनसे क्या-क्या कहा था। हां, जवाब में नंदाजी ने कहा था- “सुनो, मैंने गोली चलाने के कोई आदेश नहीं दिए हैं। किसके आदेश से गोली चली है? यह मेरी जानकारी में नहीं है। इस घटना ने मुझे बहुत दुखी किया है।”

खैर, नंदाजी से बातचीत के बाद मैंने रूमाल भिगोकर चेहरे पर लपेटा और संसद परिसर से बाहर निकला। वहां से पटेल चौक आया। रास्ते में हर तरफ शव पड़े हुए थे। इतने खून बह रहे थे कि मेरा जूता खून से पूरी तरह लथपथ हो गया था। चारो तरफ से लोगों के कराहने की आवाज आ रही थी।

इसी दौरान मुझे खबर मिली कि दिल्ली में सात-आठ जगहों पर गोलियां चली हैं। गोल डाकखाना पर गोली चलने की खबर मिली। के. कामराज के घर पर गोली चली। विंडसर प्लेस पर गोलियां चलीं। ऐसी कई जगहें थीं। करीब दो घंटे तक दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर गोलियां चलती रहीं।

मुझे अनौपचारिक तौर पर यह बताया गया था कि करीब 11 हजार राउंड गोलियां चलाई गई हैं। सूत्रों से यह भी पता चला कि गोलियां चलने से 2700 से 3088 लोगों की जान गई थी।

पूरी खोज-खबर लेने के बाद मैं अपने दफ्तार पहुंचा। उन दिनों हमारा दफ्तर ‘हिन्दुस्थान समाचार’ कनॉट प्लेस में था। मन व्यथित था, लेकिन खबर तो बनाना ही था, सो मैं खबर बनाने लगे। तभी मुझे सूचना मिली कि दिल्ली के चार अस्पतालों में उन शवों को रखा गया है, जिनमें एक विलिंगटन अस्पताल था। इसे हम आजकल राम मनोहर लोहिया अस्पताल के नाम से जानते हैं।

ज्यों ही मुझे खबर मिली, मैं वहां पहुंच गया। अस्पताल के बाहर सुरक्षाकर्मियों का कड़ा पहरा था। लेकिन एक कर्मचारी कुछ पैसे लेकर मुझे उन जगहों पर ले गया, जहां शव रखे थे। मैंने शवों को गिनना शुरू किया तो कुल 374 शव थे, जिनमें आठ महिलाएं के और 40-45 बच्चों के शव थे। वे सभी दूध पीते बच्चे थे।

मेरा अनुमान लगाया कि गोली चलने के बाद भगदड़ मची तो वे बच्चे कुचले गए होंगे। उन बच्चों के शरीर पर इसके ही जख्म थे। फिर मैं इरविन हॉस्पीटल (एलएनजेपी) आया। वहां सुरक्षा व्यवस्था इतनी सख्त थी कि शवों को गिनने का अवसर नहीं मिला। तब तक दिल्ली में सेना को तैनात कर दिया गया था। उन्हें सख्त निर्देश थे कि किसी को भीतर न आने दिया जाए। सेना ने उन सभी स्थानों को कब्जे में कर रखा था, जहां-जहां गोलियां चली थीं।

वापस दफ्तर लौट आया। तब तक भारत सरकार का एक निर्देश-पत्र भी दफ्तर पहुंच चुका था। सरकार की तरफ से सभी एजेंसियों व अखबारों को एक निर्देश जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था उन्हें वही छापना है, जो सरकार की प्रेस-विज्ञप्ति में लिखा है। उस विज्ञप्ति में लिखा था- “गोली चलने से 16 लोग मरे।” उस दिन मैंने भी अपनी रिपोर्ट फाइल की, लेकिन हमें निर्देश था कि सरकार की विज्ञप्ति को ही खबर बनाया जाए। सरकार ने जो प्रेस विज्ञप्ति भेजी थी, उसे ही एजेंसियों ने चलाया। अखबारों में भी वही खबर छपी।

उस वक्त एक अन्य महत्वपूर्ण जानकारी मुझे मिली। वह यह कि आईबी ने रिपोर्ट दी थी कि यदि जरूरत पड़ने पर दिल्ली पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिए गए तो संभव है कि वह गोली न चलाए। दिल्ली पुलिस साधु-संतों पर गोली चलाने से इनकार कर सकती है।

आईबी की इस सूचना के बाद ही जम्मू-कश्मीर मलेशिया पुलिस को खास तौर पर दिल्ली में तैनात किया गया था। इसमें ज्यादातर अन्य संप्रदाय के लोग थे। जब गोली चलाने के आदेश दिए गए तो इस दल के सुरक्षाकर्मियों ने समझ-बूझकर गो-भक्तों को जान से माने के लिए गोलियां चलाईं। उन्हें डराने या भगाने के लिए गोलियां नहीं चलाई गईं।

इस बात को मैं इसलिए दावे के साथ कहा रहा हूं, क्योंकि अधिकतर लोगों के शरीर पर जख्म के निशान कमर से ऊपर थे। जबकि, अक्सर कमर से नीचे गोली चलाने के आदेश होते हैं।

चार दिनों तक दिल्ली में कर्फ्यू लगा रहा। बाहर से आए आंदोलनकारियों को सेना के जवान बसों, ट्रकों में बिठाकर दिल्ली से बाहर जहां-तहां छोड़ने में जुटे रहे। पूरी क्षमता के साथ सेना ने अपना दो दिन इसी काम में लगाया। चूंकि यह डर बना हुआ था कि जिन गो-भक्तों ने अपनी आंखों के सामने लोगों को मरते देखा है, कहीं वे भड़क न जाएं। उनके गुस्से से बचने का यही रास्ता सरकार ने निकाला।

मैं जितनी जानकारियां इकट्ठा कर पाया, उसके आधार पर कह सकता हूं कि उस आंदोलन से सरकार हिल गई थी, इसलिए सरकार में शामिल कुछ षड्यंत्रकारी लोगों ने आंदोलन को बदनाम करने और उसे बल पूर्वक दबाने के लिए एक साजिश रची थी।

अगर कोई जांच आयोग गठित होता तो निश्चित तौर पर यह सच सामने आता। मेरे पास इस बात की पक्की जानकारी थी कि कांग्रेसी सांसद शशि भूषण वाजपेयी ने अपने गुंडों को लगाकर हिंसा भड़काई थी। हिंसक वारदातों को अंजाम देने के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से गुंडे बुलाए गए थे।

घटना के तीन दिन बाद गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने कहा, “मैं साधुओं का खून अपने सिर पर नहीं ले सकता।” उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

(मनमोहन शर्मा)

ये जो ME TOO कम्पैन चल रहा है इसे हल्के में मत लीजिये #metoo #me_too

ये जो ME TOO कम्पैन चल रहा है इसे हल्के में मत लीजिये - उस व्यक्ति के आला दिमाग की दाद दीजिये जिसके हरामी मष्तिष्क से ये निकला है कि कुछ बूढी होती कोठे की मौसियों का भी वापस बाजार भाव बढ़ा दिया है - ऊपर से खतरनाक पक्ष क्या है -समझे आप? जो कलम राष्ट्रवादिता के समर्थन में लिखेगी उसका चरित्र हनन किया जाएगा -ये सीधे थ्रेट हैं - ब्लैकमेल है।

अब इस कैम्पेन से थोड़ा डरिये भी और इसका तोड़ भी सोचिये , क्योंकि बहुतो की कलम खामोश हो जाएगी। बहुतो की पत्नियाँ समझदार नहीं निकलेंगी और परिवार तबाह कर बैठेंगी - पुरुष मूर्खो की तरह खड़ा रह जाएगा। और जो ये चूकी हुई नगर वधुऐं मी-टू कैम्पेन चला रही है

जिनकी बाज़ारी कीमत ५ रुपया भी नहीं है - इनको कोर्ट में घसीटने की तैयारी कीजिये - लड़िये पलट वार कीजिये इन वेश्याओं पर - इनको नारी होने लाभ मत लेने दीजिये -- याद रखिये ''ताड़का - शूर्पणखा-- पूतना '' भी नारियाँ ही थी, जिन्हे मारने मे ईश्वर ने भी देर न लगाई.

हालीवुड और विदेशों का चलन #meetoo का भसड़ अब भारत भी आ गया ..लेकिन निशाने पर कौन है ये सोचिये....

एमजे अकबर 13 सालो तक नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के सबसे बड़े आलोचक थे ।। मोदी के खिलाफ खूब जहर उगलते थे । तब उन पर किसी भी महिला ने कोई आरोप नही लगाया .. लेकिन जैसे ही वो मोटा भाई के आबे जमजम से पवित्र हो गए और केंद्रीय मंत्री बन गए तो अब चुनावी वर्ष में 5 महिला पत्रकार उनके ऊपर आरोप लगा रही हैं कि उन्होंने कई बार उन्हें गलत तरीके से छुआ था

मतलब जब इन महिलाओं को छुआ था तब उन्हें नहीं पता चला कि उन्हें सही तरीके से छुआ जा रहा है कि गलत तरीके से लेकिन 20 साल 25 साल बाद अचानक इन महिलाओं को याद आने लगा फलाने ने उन्हें गलत तरीके से छुआ था

अब नाना पाटेकर और विवेक अग्निहोत्री जैसे लोगों को देख लीजिए यह लोग ट्विटर पर और दूसरे माध्यमों में वामपंथियों को जमकर लतियाते हैं उनके खिलाफ अचानक दो तीन महिलाएं सामने आती हैं और कहती है 25 साल पहले मेरे साथ ही उन्होंने गलत व्यवहार किया था

यह एक नया ट्रेंड जो बेहद खतरनाक है अब 20 साल पहले या 25 साल पहले ना तो कोई सुबूत बचा होगा ना ही कोई ऐसा गवाह बचा बचा होगा फिर अब आरोप लगाकर वह भी ट्विटर पर या फेसबुक पर वह महिला क्या हासिल करना चाहती है

एक और ट्रेंड मैंने देखा है कि ज्यादातर वही महिलाएं आरोप लगा रही है या तो जिनका घर टूट चुका है या जो वक्त की मार से बेहद मोटी और कुरूप हो चुकी है और ऐसे पुरुषों पर आरोप लगा रही हैं जो अब शांत सुखी दांपत्य जीवन बिता रहे हैं

#MeeTo #MeTo #MeeToo #MeToo
पुरुषों के लिए #YouTo #WeTo जैसी केम्पेन चलानी चाहिए , माचिस की तीली बगैर माचिस के मसाला लगे सिरे पर रगड़ें नही जलती ?
इन्हें तीन चार शादी किये आमिर ,शाहरुख , जावेद भी नही दिखेंगे ,या 300 के साथ सोने की घोषणा करने वाले  संजय दत्त या महेश भट्ट या कोई और
#मीटू #यूटू #वीटू #WeTo #YouTo
संजय दत्त ने ख़ुलासा किया था कि वह तीन सौ लड़कियों के साथ सो चुका है। आश्चर्य है कि इस बात पर कोई महिलावादी आगे नहीं आया/आयी और न संजय दत्त को धिक्कार भेजा।
इससे सिद्ध होता है कि यह अभियान शुद्ध राजनैतिक साजिश है, और कुछ नहीं।
चुंबक वाले इमरान हाशमी भी बेदाग। 😳 ऐश्वर्या राय को पीटने वाले सलमान पर भी आरोप नहीं और ना शाहरूख खान के लड़के पर, जिसका mms दुनिया में घूमा।
Cambridge Analitica..... New plan against bjp supporters..... I think so

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