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सोमवार, 3 दिसंबर 2018

पालनहार

*'पालनहार'* 🌿
मलूकचंद नाम के एक सेठ थे।
उनका जन्म इलाहाबाद जिले के कड़ा नामक ग्राम में वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी को संवत् 1631 में हुआ था।
पूर्व के पुण्य से वे बाल्यावस्था में तो अच्छे रास्ते चले ,
उनके घर के नजदीक ही एक मंदिर था।
एक रात्रि को पुजारी के कीर्तन की ध्वनि के कारण उन्हें ठीक से नींद नहीं आयी।
सुबह उन्होंने पुजारी जी को खूब डाँटा कि "यह सब क्या है ?"
पुजारी जी बोलेः "एकादशी का जागरण कीर्तन चल रहा था।"
मलूकचंद बोलेः "अरे ! क्या जागरण कीर्तन करते हो ? हमारी नींद हराम कर दी।
अच्छी नींद के बाद व्यक्ति काम करने के लिए तैयार हो पाता है, फिर कमाता है तब खाता है।"
पुजारी जी ने कहाः "मलूकजी ! खिलाता तो वह खिलाने वाला ही है।"
मलूकचंद बोलेः "कौन खिलाता है ? क्या तुम्हारा भगवान खिलाने आयेगा?"
*पुजारी जी ने कहाः "वही तो खिलाता है।"*
मलूकचंद बोलेः "क्या भगवान खिलाता है ! हम कमाते हैं तब खाते हैं।"
पुजारी जी ने कहाः "निमित्त होता है तुम्हारा कमाना और पत्नी का रोटी बनाना, बाकी सबको खिलाने वाला, सबका पालनहार तो वह जगन्नियन्ता ही है।"
मलूकचंद बोलेः "क्या पालनहार-पालनहार लगा रखा है ! बाबा आदम के जमाने की बातें करते हो।
*क्या तुम्हारा पालने वाला एक-एक को आकर खिलाता है ? हम कमाते हैं तभी तो खाते हैं !"*
पुजारी जी ने कहाः "सभी को वही खिलाता है।"
*मलूकचंद बोलेः "हम नहीं खाते उसका दिया।"*
पुजारी जी ने कहाः "नहीं खाओ तो मारकर भी खिलाता है।"
मलूकचंद बोलेः *"पुजारी जी ! अगर तुम्हारा भगवान मुझे चौबीस घंटों में नहीं खिला पाया तो फिर तुम्हें अपना यह भजन-कीर्तन सदा के लिए बंद करना होगा।"*
पुजारी जी ने कहाः "मैं जानता हूँ कि तुम्हारी बहुत पहुँच है लेकिन उसके हाथ बढ़े लम्बे हैं।
*जब तक वह नहीं चाहता, तब तक किसी का बाल भी बाँका नहीं हो सकता। आजमाकर देख लेना।"*
पुजारीजी भगवान में प्रीति वाले कोई सात्त्विक भक्त रहें होंगे।
*मलूकचंद किसी घोर जंगल में चले गये और एक विशालकाय वृक्ष की ऊँची डाल पर चढ़कर बैठ गये कि 'अब देखें इधर कौन खिलाने आता है।*
चौबीस घंटे बीत जायेंगे और पुजारी की हार हो जायेगी, सदा के लिए कीर्तन की झंझट मिट जायेगी।'
*दो-तीन घंटे के बाद एक अजनबी आदमी वहाँ आया।*
उसने उसी वृक्ष के नीचे आराम किया, फिर अपना सामान उठाकर चल दिया लेकिन अपना एक थैला वहीं भूल गया। भूल गया कहो, छोड़ गया कहो।
*भगवान ने किसी मनुष्य को प्रेरणा की थी अथवा मनुष्यरूप में साक्षात् भगवत्सत्ता ही वहाँ आयी थी, यह तो भगवान ही जानें।*
थोड़ी देर बाद पाँच डकैत वहाँ से पसार हुए। उनमें से एक ने अपने सरदार से कहाः "उस्ताद ! यहाँ कोई थैला पड़ा है।"
*क्या है ? जरा देखो।" खोलकर देखा तो उसमें गरमागरम भोजन से भरा टिफिन !*
"उस्ताद भूख लगी है। लगता है यह भोजन अल्लाह ताला ने हमारे लिए ही भेजा है।"
*अरे ! तेरा अल्लाह ताला यहाँ कैसे भोजन भेजेगा ? हमको पकड़ने या फँसाने के लिए किसी शत्रु ने ही जहर-वहर डालकर यह टिफिन यहाँ रखा होगा अथवा पुलिस का कोई षडयंत्र होगा।*
इधर-उधर देखो जरा कौन रखकर गया है।"
*उन्होंने इधर-उधर देखा लेकिन कोई भी आदमी नहीं दिखा।*
तब डाकुओं के मुखिया ने जोर से आवाज लगायीः "कोई हो तो बताये कि यह थैला यहाँ कौन छोड़ गया है।"
*मलूकचंद ऊपर बैठे-बैठे सोचने लगे कि 'अगर मैं कुछ बोलूँगा तो ये मेरे ही गले पड़ेंगे।'*
वे तो चुप रहे लेकिन जो सबके हृदय की धड़कनें चलाता है, भक्तवत्सल है वह अपने भक्त का वचन पूरा किये बिना शांत नहीं रहता !
*उसने उन डकैतों को प्रेरित किया कि 'ऊपर भी देखो।' उन्होंने ऊपर देखा तो वृक्ष की डाल पर एक आदमी बैठा हुआ दिखा।*
डकैत चिल्लायेः "अरे ! नीचे उतर!"
मलूकचंद बोलेः "मैं नहीं उतरता।"
*क्यों नहीं उतरता, यह भोजन तूने ही रखा होगा।"*
मलूकचंद बोलेः "मैंने नहीं रखा। कोई यात्री अभी यहाँ आया था, वही इसे यहाँ भूलकर चला गया।"
*नीचे उतर ! तूने ही रखा होगा जहर-वहर मिलाकर और अब बचने के लिए बहाने बना रहा है।*
तुझे ही यह भोजन खाना पड़ेगा।"
*अब कौन-सा काम वह सर्वेश्वर किसके द्वारा, किस निमित्त से करवाये अथवा उसके लिए क्या रूप ले यह उसकी मर्जी की बात है। बड़ी गजब की व्यवस्था है उस परमेश्वर की !*
मलूकचंद बोलेः "मैं नीचे नहीं उतरूँगा और खाना तो मैं कतई नहीं खाऊँगा।".
*पक्का तूने खाने में जहर मिलाया है। अरे ! नीचे उतर, अब तो तुझे खाना ही होगा !"*
मलूकचंद बोलेः "मैं नहीं खाऊँगा,नीचे भी नहीं उतरूँगा।"
*अरे, कैसे नहीं उतरेगा !" डकैतों के सरदार ने अपने एक आदमी को हुक्म दियाः "इसको जबरदस्ती नीचे उतारो।"*
*डकैत ने मलूकचंद को पकड़कर नीचे उतारा।*
"ले, खाना खा।"
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मलूकचंद बोलेः "मैं नहीं खाऊँगा।"*
उस्ताद ने धड़ाक से उनके मुँह पर तमाचा जड़ दिया।
*मलूकचंद को पुजारीजी की बात याद आयी कि 'नहीं खाओगे तो मारकर भी खिलायेगा।'*
मलूकचंद बोलेः "मैं नहीं खाऊँगा।"
*अरे,कैसे नहीं खायेगा*! इसकी नाक दबाओ और मुँह खोलो।"
डकैतों ने उससे नाक दबायी, मुँह खुलवाया और जबरदस्ती खिलाने लगे।
*वे नहीं खा रहे थे तो डकैत उन्हें पीटने लगे।*
अब मलूकचंद ने सोचा कि 'ये पाँच हैं और मैं अकेला हूँ। नहीं खाऊँगा तो ये मेरी हड्डी पसली एक कर देंगे।'
*इसलिए चुपचाप खाने लगे और मन- ही-मन कहाः 'मान गये मेरे बाप ! मारकर भी खिलाता है !*
डकैतों के रूप में आकर खिला चाहे भक्तों के रूप में आकर खिला लेकिन खिलाने वाला तो तू ही है। अपने पुजारी की बात तूने सत्य साबित कर दिखायी।'
*मलूकचंद के बचपन की भक्ति की धारा फूट पड़ी।*
उनको मारपीटकर डकैत वहाँ से चले गये तो मलूकचंद भागे और पुजारी जी के पास आकर बोलेः
*पुजारी जी ! मान गये आपकी बात कि नहीं खायें तो वह मारकर भी खिलाता है।"*
पुजारी जी बोलेः *"वैसे तो कोई तीन दिन तक खाना न खाये तो वह जरूर किसी-न-किसी रूप में आकर खिलाता है...*
*लेकिन मैंने प्रार्थना की थी कि 'तीन दिन की नहीं एक दिन की शर्त रखी है, तू कृपा करना।'*
*अगर कोई सच्ची श्रद्धा और विश्वास से हृदयपूर्वक प्रार्थना करता है तो वह अवश्य सुनता है।*
*वह तो सर्वव्यापक, सर्वसमर्थ है। उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है*।
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रविवार, 2 दिसंबर 2018

राजस्थान के रण में भाजपा की ओर मुड़ती सत्ता की हवाएं


*राजस्थान के रण में भाजपा की ओर मुड़ती सत्ता की हवाएं*
कांग्रेस के इंटरनल सर्वे ने बजाई खतरे की घंटी
भाजपा की ताबड़तोड़ रैलियों का दिखा व्यापक असर
ब्यूरो जयपुर डेस्क: राजस्थान के रण में कांग्रेस की जीत की राह अब इतनी आसान नहीं रही, जितनी उन्होंने सोची थी। शुरुआती दौर में पूर्ण बहुमत से बनती नजर आ रही कांग्रेस पार्टी के हाथ से जीत फिसलती हुई नजर आ रही है। कुछ समय पहले तक भले ही कांग्रेस पार्टी सरकार बनने का दावा कर रही हो लेकिन पिछले 15 दिनों में भाजपा सरकार की ताबड़तोड़ रैलियों और बागियों को मनाने में मिली सफलता ने मरुधरा में बाजी पूरी तरह से पलट दिया है। यह बात कांग्रेस के इंटरनल सर्वे में भी सामने आई है।
कांग्रेस की ओर से हुए इस सर्वे में सबसे चिंताजनक बात यह है भाजपा न सिर्फ कांग्रेस को कड़ी टक्कर देते हुए अपनी बढ़त बन रही है बल्कि सभी मिथकों को तोड़ते हुए राजस्थान में दोबारा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने की ओर अग्रसर है। इसमें सबसे बड़ा हाथ राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों का है। इसके अलावा कांग्रेस में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच में बढ़ता टकराव सबसे बड़ी चिंता का विषय है। इस टकराव से पार्टी और कांग्रेस समर्थकों में भी रोष बढ़ा है। कांग्रेस पार्टी में कार्यकर्ताओं में भारी निराशा का माहौल है। सूत्रों के हवाले से खबर है की शुरू में जहां कांग्रेस को 130 सीटें और भाजपा को महज 50 सीटें मिल रही थीं, वहीं अब यह आंकड़ा अब एकदम उलट हो गया है। भाजपा के मजबूत संगठन की बदौलत प्रदेश में नए सर्वे के अनुसार 107 से 115 सीटों के बीच दिखाया जा रहा है और कांग्रेस अब 80 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है।
खास बात यह है कि प्रचार के लिए कांग्रेस के पास सचिन पायलट, अशोक गहलोत और राहुल गांधी के अलावा दूसरा कोई चेहरा नहीं है। इसमें भी कई विधानसभा में कांग्रेस के प्रत्याशियों ने पायलट और गहलोत के उनकी विधानसभा में चुनाव प्रचार के लिए आने का विरोध किया है। कांग्रेस के पास ऐसा कोई बड़ा चेहरा नहीं है, जो वोटर्स को लुभा सके। वहीं भाजपा अपने स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और राजनाथ सिंह समेत कई दिग्गज नेताओं की मदद से वोटर्स को लुभा रही है। भाजपा जनता को यह यकीन दिलाने में कामयाब रही है कि उन्होंने काम किया है लेकिन उसका प्रचार करने में पीछे रही है। भाजपा की मजबूती इसी बात से लगाई जा सकती है कि प्रतिदिन भाजपा की ओर से 10 से 15 रैलियां की जा रही हैं, जिसमें अच्छी खासी भीड़ इकट्ठा हो रही है। इन रैलियों का व्यापक स्तर पर वोटरों पर प्रभाव पड़ा है। यही कारण है कि राजस्थान के रण में फिजाओं का रुख भाजपा की ओर उड़ता हुआ नजर आ रहा है।🚩🇮🇳👍

शनिवार, 1 दिसंबर 2018

द्वारिकाधीश मंदिर,द्वारका पुरी गुजरात

द्वारिकाधीश मंदिर,द्वारका पुरी गुजरात
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द्वारका गुजरात के देवभूमि द्वारका जिले में स्थित एक नगर तथा तीर्थस्थल है।यह हिन्दुओं के साथ सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक तथा चार धामों में से एक है। यह सात पुरियों में एक पुरी है।यह नगरी भारत के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है।

गुजरात का द्वारका शहर वह स्थान है जहाँ 5000 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद द्वारका नगरी बसाई थी। जिस स्थान पर उनका निजी महल ‘हरि गृह’ था वहाँ आज प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है।

इसलिए कृष्ण भक्तों की दृष्टि में यह एक महान तीर्थ है। वैसे भी द्वारका नगरी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के चार धामों में से एक है। यही नहीं द्वारका नगरी पवित्र सप्तपुरियों में से एक है।

इतिहास में मान्यता है कि इस स्थान पर मूल मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने करवाया था। कालांतर में मंदिर का विस्तार एवं जीर्णोद्धार होता रहा। मंदिर को वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में प्राप्त हुआ था। द्वारिकाधीश मंदिर से लगभग 2 किमी दूर एकांत में रुक्मिणी का मंदिर है। कहते हैं, दुर्वासा के शाप के कारण उन्हें एकांत में रहना पड़ा। कहा जाता है कि उस समय भारत में बाहर से आए आक्रमणकारियों का सर्वत्र भय व्याप्त था, क्योंकि वे आक्रमणकारी न सिर्फ़ मंदिरों कि अतुल धन संपदा को लूट लेते थे बल्कि उन भव्य मंदिरों व मुर्तियों को भी तोड कर नष्ट कर देते थे। तब मेवाड़ यहाँ के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिये प्रसिद्ध था। सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, तत्पश्चात उन्हें कांकरोली के ईस भव्य मंदिर में बड़े उत्साह पूर्वक लाया गया। आज भी द्वारका की महिमा है। यह चार धामों में एक है। इसकी सुन्दरता बखानी नहीं जाती। समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और इसके किनारों को इस तरह धोती है, जैसे इसके पैर पखार रही हों। पहले तो मथुरा ही कृष्ण की राजधानी थी। पर मथुरा उन्होंने छोड़ दी और द्वारका बसाई।

वास्तु👉 यह मंदिर एक परकोटे से घिरा है जिसमें चारों ओर एक द्वार है। इनमें उत्तर दिशा में स्थित मोक्ष द्वार तथा दक्षिण में स्थित स्वर्ग द्वार प्रमुख हैं। सात मंज़िले मंदिर का शिखर 235 मीटर ऊँचा है। इसकी निर्माण शैली बड़ी आकर्षक है। शिखर पर क़रीब 84 फुट लम्बी बहुरंगी धर्मध्वजा फहराती रहती है। द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चाँदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है। यहाँ इन्हें ‘रणछोड़ जी’ भी कहा जाता है। भगवान ने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हैं। बहुमूल्य अलंकरणों तथा सुंदर वेशभूषा से सजी प्रतिमा हर किसी का मन मोह लेती है। द्वारकाधीश मंदिर के दक्षिण में गोमती धारा पर चक्रतीर्थ घाट है। उससे कुछ ही दूरी पर अरब सागर है जहाँ समुद्रनारायण मंदिर स्थित है। इसके समीप ही पंचतीर्थ है। वहाँ पाँच कुओं के जल से स्नान करने की परम्परा है। बहुत से भक्त गोमती में स्नान करके मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। यहाँ से 56 सीढ़ियाँ चढ़ कर स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के पूर्व दिशा में शंकराचार्य द्वार स्थापित शारदा पीठ स्थित है।

कब, क्यों और कैसे डूबी द्वारका?
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श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका महाभारत युद्ध के 36 वर्ष पश्चात समुद्र में डूब जाती है। द्वारिका के समुद्र में डूबने से पूर्व श्री कृष्ण सहित सारे यदुवंशी भी मारे जाते है। यदुवंशियों के मारे जाने और द्वारिका के समुद्र में विलीन होने के पीछे मुख्य रूप से दो घटनाएं जिम्मेदार है।  एक माता गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया श्राप और दूसरा ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण पुत्र सांब को दिया गया श्राप।  आइए इस घटना पर विस्तार से जानते है।

प्राचीन द्वारका पुरी
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गांधारी ने दिया था यदुवंश के नाश का श्राप –
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया की जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा।

ऋषियों ने दिया था सांब को श्राप
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महाभारत युद्ध के बाद जब छत्तीसवां वर्ष आरंभ हुआ तो तरह-तरह के अपशकुन होने लगे। एक दिन महर्षि विश्वामित्र, कण्व, देवर्षि नारद आदि द्वारका गए। वहां यादव कुल के कुछ नवयुवकों ने उनके साथ परिहास (मजाक) करने का सोचा। वे श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री वेष में ऋषियों के पास ले गए और कहा कि ये स्त्री गर्भवती है। इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा?

ऋषियों ने जब देखा कि ये युवक हमारा अपमान कर रहे हैं तो क्रोधित होकर उन्होंने श्राप दिया कि- श्रीकृष्ण का यह पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए एक लोहे का मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा तुम जैसे क्रूर और क्रोधी लोग अपने समस्त कुल का संहार करोगे। उस मूसल के प्रभाव से केवल श्रीकृष्ण व बलराम ही बच पाएंगे। श्रीकृष्ण को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि ये बात अवश्य सत्य होगी

मुनियों के श्राप के प्रभाव से दूसरे दिन ही सांब ने मूसल उत्पन्न किया। जब यह बात राजा उग्रसेन को पता चली तो उन्होंने उस मूसल को चुरा कर समुद्र में डलवा दिया। इसके बाद राजा उग्रसेन व श्रीकृष्ण ने नगर में घोषणा करवा दी कि आज से कोई भी वृष्णि व अंधकवंशी अपने घर में मदिरा तैयार नहीं करेगा। जो भी व्यक्ति छिपकर मदिरा तैयार करेगा, उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। घोषणा सुनकर द्वारकावासियों ने मदिरा नहीं बनाने का निश्चय किया।द्वारका में होने लगे थे भयंकर अपशकुन

इसके बाद द्वारका में भयंकर अपशकुन होने लगे। प्रतिदिन आंधी चलने लगी। चूहे इतने बढ़ गए कि मार्गों पर मनुष्यों से ज्यादा दिखाई देने लगे। वे रात में सोए हुए मनुष्यों के बाल और नाखून कुतरकर खा जाया करते थे। सारस उल्लुओं की और बकरे गीदड़ों की आवाज निकालने लगे। गायों के पेट से गधे, कुत्तियों से बिलाव और नेवलियों के गर्भ से चूहे पैदा होने लगे। उस समय यदुवंशियों को पाप करते शर्म नहीं आती थी।

अंधकवंशियों के हाथों मारे गए थे प्रद्युम्न
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जब श्रीकृष्ण ने नगर में होते इन अपशकुनों को देखा तो उन्होंने सोचा कि कौरवों की माता गांधारी का श्राप सत्य होने का समय आ गया है। इन अपशकुनों को देखकर तथा पक्ष के तेरहवें दिन अमावस्या का संयोग जानकर श्रीकृष्ण काल की अवस्था पर विचार करने लगे। उन्होंने देखा कि इस समय वैसा ही योग बन रहा है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था। गांधारी के श्राप को सत्य करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थयात्रा करने की आज्ञा दी। श्रीकृष्ण की आज्ञा से सभी राजवंशी समुद्र के तट पर प्रभास तीर्थ आकर निवास करने लगे।

प्रभास तीर्थ में रहते हुए एक दिन जब अंधक व वृष्णि वंशी आपस में बात कर रहे थे। तभी सात्यकि ने आवेश में आकर कृतवर्मा का उपहास और अनादर कर दिया। कृतवर्मा ने भी कुछ ऐसे शब्द कहे कि सात्यकि को क्रोध आ गया और उसने कृतवर्मा का वध कर दिया। यह देख अंधकवंशियों ने सात्यकि को घेर लिया और हमला कर दिया। सात्यकि को अकेला देख श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न उसे बचाने दौड़े। सात्यकि और प्रद्युम्न अकेले ही अंधकवंशियों से भिड़ गए। परंतु संख्या में अधिक होने के कारण वे अंधकवंशियों को पराजित नहीं कर पाए और अंत में उनके हाथों मारे गए।

यदुवंशियों के नाश के बाद अर्जुन को बुलवाया था श्रीकृष्ण ने
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अपने पुत्र और सात्यकि की मृत्यु से क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने एक मुट्ठी एरका घास उखाड़ ली। हाथ में आते ही वह घास वज्र के समान भयंकर लोहे का मूसल बन गई। उस मूसल से श्रीकृष्ण सभी का वध करने लगे। जो कोई भी वह घास उखाड़ता वह भयंकर मूसल में बदल जाती (ऐसा ऋषियों के श्राप के कारण हुआ था)। उन मूसलों के एक ही प्रहार से प्राण निकल जाते थे। उस समय काल के प्रभाव से अंधक, भोज, शिनि और वृष्णि वंश के वीर मूसलों से एक-दूसरे का वध करने लगे। यदुवंशी भी आपस में लड़ते हुए मरने लगे।

श्रीकृष्ण के देखते ही देखते सांब, चारुदेष्ण, अनिरुद्ध और गद की मृत्यु हो गई। फिर तो श्रीकृष्ण और भी क्रोधित हो गए और उन्होंने शेष बचे सभी वीरों का संहार कर डाला। अंत में केवल दारुक (श्रीकृष्ण के सारथी) ही शेष बचे थे। श्रीकृष्ण ने दारुक से कहा कि तुम तुरंत हस्तिनापुर जाओ और अर्जुन को पूरी घटना बता कर द्वारका ले आओ। दारुक ने ऐसा ही किया। इसके बाद श्रीकृष्ण बलराम को उसी स्थान पर रहने का कहकर द्वारका लौट आए।

बलरामजी के स्वधाम गमन के बाद ये किया श्रीकृष्ण ने
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द्वारका आकर श्रीकृष्ण ने पूरी घटना अपने पिता वसुदेवजी को बता दी। यदुवंशियों के संहार की बात जान कर उन्हें भी बहुत दुख हुआ। श्रीकृष्ण ने वसुदेवजी से कहा कि आप अर्जुन के आने तक स्त्रियों की रक्षा करें। इस समय बलरामजी वन में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं, मैं उनसे मिलने जा रहा हूं। जब श्रीकृष्ण ने नगर में स्त्रियों का विलाप सुना तो उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि शीघ्र ही अर्जुन द्वारका आने वाले हैं। वे ही तुम्हारी रक्षा करेंगे। ये कहकर श्रीकृष्ण बलराम से मिलने चल पड़े।

वन में जाकर श्रीकृष्ण ने देखा कि बलरामजी समाधि में लीन हैं। देखते ही देखते उनके मुख से सफेद रंग का बहुत बड़ा सांप निकला और समुद्र की ओर चला गया। उस सांप के हजारों मस्तक थे। समुद्र ने स्वयं प्रकट होकर भगवान शेषनाग का स्वागत किया। बलरामजी द्वारा देह त्यागने के बाद श्रीकृष्ण उस सूने वन में विचार करते हुए घूमने लगे। घूमते-घूमते वे एक स्थान पर बैठ गए और गांधारी द्वारा दिए गए श्राप के बारे में विचार करने लगे। देह त्यागने की इच्छा से श्रीकृष्ण ने अपनी इंद्रियों का संयमित किया और महायोग (समाधि) की अवस्था में पृथ्वी पर लेट गए।

ऐसे त्यागी श्रीकृष्ण ने देह
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जिस समय भगवान श्रीकृष्ण समाधि में लीन थे, उसी समय जरा नाम का एक शिकारी हिरणों का शिकार करने के उद्देश्य से वहां आ गया। उसने हिरण समझ कर दूर से ही श्रीकृष्ण पर बाण चला दिया। बाण चलाने के बाद जब वह अपना शिकार पकडऩे के लिए आगे बढ़ा तो योग में स्थित भगवान श्रीकृष्ण को देख कर उसे अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। तब श्रीकृष्ण को उसे आश्वासन दिया और अपने परमधाम चले गए। अंतरिक्ष में पहुंचने पर इंद्र, अश्विनीकुमार, रुद्र, आदित्य, वसु, मुनि आदि सभी ने भगवान का स्वागत किया।

इधर दारुक ने हस्तिनापुर जाकर यदुवंशियों के संहार की पूरी घटना पांडवों को बता दी। यह सुनकर पांडवों को बहुत शोक हुआ। अर्जुन तुरंत ही अपने मामा वसुदेव से मिलने के लिए द्वारका चल दिए। अर्जुन जब द्वारका पहुंचे तो वहां का दृश्य देखकर उन्हें बहुत शोक हुआ। श्रीकृष्ण की रानियां उन्हें देखकर रोने लगी। उन्हें रोता देखकर अर्जुन भी रोने लगे और श्रीकृष्ण को याद करने लगे। इसके बाद अर्जुन वसुदेवजी से मिले। अर्जुन को देखकर वसुदेवजी बिलख-बिलख रोने लगे। वसुदेवजी ने अर्जुन को श्रीकृष्ण का संदेश सुनाते हुए कहा कि द्वारका शीघ्र ही समुद्र में डूबने वाली है अत: तुम सभी नगरवासियों को अपने साथ ले जाओ।

अर्जुन अपने साथ ले गए श्रीकृष्ण के परिजनों को
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वसुदेवजी की बात सुनकर अर्जुन ने दारुक से सभी मंत्रियों को बुलाने के लिए कहा। मंत्रियों के आते ही अर्जुन ने कहा कि मैं सभी नगरवासियों को यहां से इंद्रप्रस्थ ले जाऊंगा, क्योंकि शीघ्र ही इस नगर को समुद्र डूबा देगा। अर्जुन ने मंत्रियों से कहा कि आज से सातवे दिन सभी लोग इंद्रप्रस्थ के लिए प्रस्थान करेंगे इसलिए आप शीघ्र ही इसके लिए तैयारियां शुरू कर दें। सभी मंत्री तुरंत अर्जुन की आज्ञा के पालन में जुट गए। अर्जुन ने वह रात श्रीकृष्ण के महल में ही बिताई।

अगली सुबह श्रीकृष्ण के पिता वसुदेवजी ने प्राण त्याग दिए। अर्जुन ने विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार किया। वसुदेवजी की पत्नी देवकी, भद्रा, रोहिणी व मदिरा भी चिता पर बैठकर सती हो गईं। इसके बाद अर्जुन ने प्रभास तीर्थ में मारे गए समस्त यदुवंशियों का भी अंतिम संस्कार किया। सातवे दिन अर्जुन श्रीकृष्ण के परिजनों तथा सभी नगरवासियों को साथ लेकर इंद्रप्रस्थ की ओर चल दिए। उन सभी के जाते ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई। ये दृश्य देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ।

जय हो श्री द्वारिकाधीश की
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