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शनिवार, 1 दिसंबर 2018

द्वारिकाधीश मंदिर,द्वारका पुरी गुजरात

द्वारिकाधीश मंदिर,द्वारका पुरी गुजरात
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द्वारका गुजरात के देवभूमि द्वारका जिले में स्थित एक नगर तथा तीर्थस्थल है।यह हिन्दुओं के साथ सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक तथा चार धामों में से एक है। यह सात पुरियों में एक पुरी है।यह नगरी भारत के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है।

गुजरात का द्वारका शहर वह स्थान है जहाँ 5000 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद द्वारका नगरी बसाई थी। जिस स्थान पर उनका निजी महल ‘हरि गृह’ था वहाँ आज प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है।

इसलिए कृष्ण भक्तों की दृष्टि में यह एक महान तीर्थ है। वैसे भी द्वारका नगरी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के चार धामों में से एक है। यही नहीं द्वारका नगरी पवित्र सप्तपुरियों में से एक है।

इतिहास में मान्यता है कि इस स्थान पर मूल मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने करवाया था। कालांतर में मंदिर का विस्तार एवं जीर्णोद्धार होता रहा। मंदिर को वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में प्राप्त हुआ था। द्वारिकाधीश मंदिर से लगभग 2 किमी दूर एकांत में रुक्मिणी का मंदिर है। कहते हैं, दुर्वासा के शाप के कारण उन्हें एकांत में रहना पड़ा। कहा जाता है कि उस समय भारत में बाहर से आए आक्रमणकारियों का सर्वत्र भय व्याप्त था, क्योंकि वे आक्रमणकारी न सिर्फ़ मंदिरों कि अतुल धन संपदा को लूट लेते थे बल्कि उन भव्य मंदिरों व मुर्तियों को भी तोड कर नष्ट कर देते थे। तब मेवाड़ यहाँ के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिये प्रसिद्ध था। सर्वप्रथम प्रभु द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया, तत्पश्चात उन्हें कांकरोली के ईस भव्य मंदिर में बड़े उत्साह पूर्वक लाया गया। आज भी द्वारका की महिमा है। यह चार धामों में एक है। इसकी सुन्दरता बखानी नहीं जाती। समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और इसके किनारों को इस तरह धोती है, जैसे इसके पैर पखार रही हों। पहले तो मथुरा ही कृष्ण की राजधानी थी। पर मथुरा उन्होंने छोड़ दी और द्वारका बसाई।

वास्तु👉 यह मंदिर एक परकोटे से घिरा है जिसमें चारों ओर एक द्वार है। इनमें उत्तर दिशा में स्थित मोक्ष द्वार तथा दक्षिण में स्थित स्वर्ग द्वार प्रमुख हैं। सात मंज़िले मंदिर का शिखर 235 मीटर ऊँचा है। इसकी निर्माण शैली बड़ी आकर्षक है। शिखर पर क़रीब 84 फुट लम्बी बहुरंगी धर्मध्वजा फहराती रहती है। द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चाँदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है। यहाँ इन्हें ‘रणछोड़ जी’ भी कहा जाता है। भगवान ने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हैं। बहुमूल्य अलंकरणों तथा सुंदर वेशभूषा से सजी प्रतिमा हर किसी का मन मोह लेती है। द्वारकाधीश मंदिर के दक्षिण में गोमती धारा पर चक्रतीर्थ घाट है। उससे कुछ ही दूरी पर अरब सागर है जहाँ समुद्रनारायण मंदिर स्थित है। इसके समीप ही पंचतीर्थ है। वहाँ पाँच कुओं के जल से स्नान करने की परम्परा है। बहुत से भक्त गोमती में स्नान करके मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। यहाँ से 56 सीढ़ियाँ चढ़ कर स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के पूर्व दिशा में शंकराचार्य द्वार स्थापित शारदा पीठ स्थित है।

कब, क्यों और कैसे डूबी द्वारका?
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श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका महाभारत युद्ध के 36 वर्ष पश्चात समुद्र में डूब जाती है। द्वारिका के समुद्र में डूबने से पूर्व श्री कृष्ण सहित सारे यदुवंशी भी मारे जाते है। यदुवंशियों के मारे जाने और द्वारिका के समुद्र में विलीन होने के पीछे मुख्य रूप से दो घटनाएं जिम्मेदार है।  एक माता गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया श्राप और दूसरा ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण पुत्र सांब को दिया गया श्राप।  आइए इस घटना पर विस्तार से जानते है।

प्राचीन द्वारका पुरी
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गांधारी ने दिया था यदुवंश के नाश का श्राप –
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया की जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा।

ऋषियों ने दिया था सांब को श्राप
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महाभारत युद्ध के बाद जब छत्तीसवां वर्ष आरंभ हुआ तो तरह-तरह के अपशकुन होने लगे। एक दिन महर्षि विश्वामित्र, कण्व, देवर्षि नारद आदि द्वारका गए। वहां यादव कुल के कुछ नवयुवकों ने उनके साथ परिहास (मजाक) करने का सोचा। वे श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री वेष में ऋषियों के पास ले गए और कहा कि ये स्त्री गर्भवती है। इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा?

ऋषियों ने जब देखा कि ये युवक हमारा अपमान कर रहे हैं तो क्रोधित होकर उन्होंने श्राप दिया कि- श्रीकृष्ण का यह पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए एक लोहे का मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा तुम जैसे क्रूर और क्रोधी लोग अपने समस्त कुल का संहार करोगे। उस मूसल के प्रभाव से केवल श्रीकृष्ण व बलराम ही बच पाएंगे। श्रीकृष्ण को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि ये बात अवश्य सत्य होगी

मुनियों के श्राप के प्रभाव से दूसरे दिन ही सांब ने मूसल उत्पन्न किया। जब यह बात राजा उग्रसेन को पता चली तो उन्होंने उस मूसल को चुरा कर समुद्र में डलवा दिया। इसके बाद राजा उग्रसेन व श्रीकृष्ण ने नगर में घोषणा करवा दी कि आज से कोई भी वृष्णि व अंधकवंशी अपने घर में मदिरा तैयार नहीं करेगा। जो भी व्यक्ति छिपकर मदिरा तैयार करेगा, उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। घोषणा सुनकर द्वारकावासियों ने मदिरा नहीं बनाने का निश्चय किया।द्वारका में होने लगे थे भयंकर अपशकुन

इसके बाद द्वारका में भयंकर अपशकुन होने लगे। प्रतिदिन आंधी चलने लगी। चूहे इतने बढ़ गए कि मार्गों पर मनुष्यों से ज्यादा दिखाई देने लगे। वे रात में सोए हुए मनुष्यों के बाल और नाखून कुतरकर खा जाया करते थे। सारस उल्लुओं की और बकरे गीदड़ों की आवाज निकालने लगे। गायों के पेट से गधे, कुत्तियों से बिलाव और नेवलियों के गर्भ से चूहे पैदा होने लगे। उस समय यदुवंशियों को पाप करते शर्म नहीं आती थी।

अंधकवंशियों के हाथों मारे गए थे प्रद्युम्न
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जब श्रीकृष्ण ने नगर में होते इन अपशकुनों को देखा तो उन्होंने सोचा कि कौरवों की माता गांधारी का श्राप सत्य होने का समय आ गया है। इन अपशकुनों को देखकर तथा पक्ष के तेरहवें दिन अमावस्या का संयोग जानकर श्रीकृष्ण काल की अवस्था पर विचार करने लगे। उन्होंने देखा कि इस समय वैसा ही योग बन रहा है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था। गांधारी के श्राप को सत्य करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थयात्रा करने की आज्ञा दी। श्रीकृष्ण की आज्ञा से सभी राजवंशी समुद्र के तट पर प्रभास तीर्थ आकर निवास करने लगे।

प्रभास तीर्थ में रहते हुए एक दिन जब अंधक व वृष्णि वंशी आपस में बात कर रहे थे। तभी सात्यकि ने आवेश में आकर कृतवर्मा का उपहास और अनादर कर दिया। कृतवर्मा ने भी कुछ ऐसे शब्द कहे कि सात्यकि को क्रोध आ गया और उसने कृतवर्मा का वध कर दिया। यह देख अंधकवंशियों ने सात्यकि को घेर लिया और हमला कर दिया। सात्यकि को अकेला देख श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न उसे बचाने दौड़े। सात्यकि और प्रद्युम्न अकेले ही अंधकवंशियों से भिड़ गए। परंतु संख्या में अधिक होने के कारण वे अंधकवंशियों को पराजित नहीं कर पाए और अंत में उनके हाथों मारे गए।

यदुवंशियों के नाश के बाद अर्जुन को बुलवाया था श्रीकृष्ण ने
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अपने पुत्र और सात्यकि की मृत्यु से क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने एक मुट्ठी एरका घास उखाड़ ली। हाथ में आते ही वह घास वज्र के समान भयंकर लोहे का मूसल बन गई। उस मूसल से श्रीकृष्ण सभी का वध करने लगे। जो कोई भी वह घास उखाड़ता वह भयंकर मूसल में बदल जाती (ऐसा ऋषियों के श्राप के कारण हुआ था)। उन मूसलों के एक ही प्रहार से प्राण निकल जाते थे। उस समय काल के प्रभाव से अंधक, भोज, शिनि और वृष्णि वंश के वीर मूसलों से एक-दूसरे का वध करने लगे। यदुवंशी भी आपस में लड़ते हुए मरने लगे।

श्रीकृष्ण के देखते ही देखते सांब, चारुदेष्ण, अनिरुद्ध और गद की मृत्यु हो गई। फिर तो श्रीकृष्ण और भी क्रोधित हो गए और उन्होंने शेष बचे सभी वीरों का संहार कर डाला। अंत में केवल दारुक (श्रीकृष्ण के सारथी) ही शेष बचे थे। श्रीकृष्ण ने दारुक से कहा कि तुम तुरंत हस्तिनापुर जाओ और अर्जुन को पूरी घटना बता कर द्वारका ले आओ। दारुक ने ऐसा ही किया। इसके बाद श्रीकृष्ण बलराम को उसी स्थान पर रहने का कहकर द्वारका लौट आए।

बलरामजी के स्वधाम गमन के बाद ये किया श्रीकृष्ण ने
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द्वारका आकर श्रीकृष्ण ने पूरी घटना अपने पिता वसुदेवजी को बता दी। यदुवंशियों के संहार की बात जान कर उन्हें भी बहुत दुख हुआ। श्रीकृष्ण ने वसुदेवजी से कहा कि आप अर्जुन के आने तक स्त्रियों की रक्षा करें। इस समय बलरामजी वन में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं, मैं उनसे मिलने जा रहा हूं। जब श्रीकृष्ण ने नगर में स्त्रियों का विलाप सुना तो उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि शीघ्र ही अर्जुन द्वारका आने वाले हैं। वे ही तुम्हारी रक्षा करेंगे। ये कहकर श्रीकृष्ण बलराम से मिलने चल पड़े।

वन में जाकर श्रीकृष्ण ने देखा कि बलरामजी समाधि में लीन हैं। देखते ही देखते उनके मुख से सफेद रंग का बहुत बड़ा सांप निकला और समुद्र की ओर चला गया। उस सांप के हजारों मस्तक थे। समुद्र ने स्वयं प्रकट होकर भगवान शेषनाग का स्वागत किया। बलरामजी द्वारा देह त्यागने के बाद श्रीकृष्ण उस सूने वन में विचार करते हुए घूमने लगे। घूमते-घूमते वे एक स्थान पर बैठ गए और गांधारी द्वारा दिए गए श्राप के बारे में विचार करने लगे। देह त्यागने की इच्छा से श्रीकृष्ण ने अपनी इंद्रियों का संयमित किया और महायोग (समाधि) की अवस्था में पृथ्वी पर लेट गए।

ऐसे त्यागी श्रीकृष्ण ने देह
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जिस समय भगवान श्रीकृष्ण समाधि में लीन थे, उसी समय जरा नाम का एक शिकारी हिरणों का शिकार करने के उद्देश्य से वहां आ गया। उसने हिरण समझ कर दूर से ही श्रीकृष्ण पर बाण चला दिया। बाण चलाने के बाद जब वह अपना शिकार पकडऩे के लिए आगे बढ़ा तो योग में स्थित भगवान श्रीकृष्ण को देख कर उसे अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। तब श्रीकृष्ण को उसे आश्वासन दिया और अपने परमधाम चले गए। अंतरिक्ष में पहुंचने पर इंद्र, अश्विनीकुमार, रुद्र, आदित्य, वसु, मुनि आदि सभी ने भगवान का स्वागत किया।

इधर दारुक ने हस्तिनापुर जाकर यदुवंशियों के संहार की पूरी घटना पांडवों को बता दी। यह सुनकर पांडवों को बहुत शोक हुआ। अर्जुन तुरंत ही अपने मामा वसुदेव से मिलने के लिए द्वारका चल दिए। अर्जुन जब द्वारका पहुंचे तो वहां का दृश्य देखकर उन्हें बहुत शोक हुआ। श्रीकृष्ण की रानियां उन्हें देखकर रोने लगी। उन्हें रोता देखकर अर्जुन भी रोने लगे और श्रीकृष्ण को याद करने लगे। इसके बाद अर्जुन वसुदेवजी से मिले। अर्जुन को देखकर वसुदेवजी बिलख-बिलख रोने लगे। वसुदेवजी ने अर्जुन को श्रीकृष्ण का संदेश सुनाते हुए कहा कि द्वारका शीघ्र ही समुद्र में डूबने वाली है अत: तुम सभी नगरवासियों को अपने साथ ले जाओ।

अर्जुन अपने साथ ले गए श्रीकृष्ण के परिजनों को
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वसुदेवजी की बात सुनकर अर्जुन ने दारुक से सभी मंत्रियों को बुलाने के लिए कहा। मंत्रियों के आते ही अर्जुन ने कहा कि मैं सभी नगरवासियों को यहां से इंद्रप्रस्थ ले जाऊंगा, क्योंकि शीघ्र ही इस नगर को समुद्र डूबा देगा। अर्जुन ने मंत्रियों से कहा कि आज से सातवे दिन सभी लोग इंद्रप्रस्थ के लिए प्रस्थान करेंगे इसलिए आप शीघ्र ही इसके लिए तैयारियां शुरू कर दें। सभी मंत्री तुरंत अर्जुन की आज्ञा के पालन में जुट गए। अर्जुन ने वह रात श्रीकृष्ण के महल में ही बिताई।

अगली सुबह श्रीकृष्ण के पिता वसुदेवजी ने प्राण त्याग दिए। अर्जुन ने विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार किया। वसुदेवजी की पत्नी देवकी, भद्रा, रोहिणी व मदिरा भी चिता पर बैठकर सती हो गईं। इसके बाद अर्जुन ने प्रभास तीर्थ में मारे गए समस्त यदुवंशियों का भी अंतिम संस्कार किया। सातवे दिन अर्जुन श्रीकृष्ण के परिजनों तथा सभी नगरवासियों को साथ लेकर इंद्रप्रस्थ की ओर चल दिए। उन सभी के जाते ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई। ये दृश्य देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ।

जय हो श्री द्वारिकाधीश की
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किलोग्राम अब किलोग्राम नही रहा

किलोग्राम_अब_किलोग्राम_नही_रहा

वैज्ञानिकों ने किलोग्राम की परिभाषा बदल दी है. नई परिभाषा को 50 से ज़्यादा देशों ने सर्वसम्मति से मंजूरी भी दे दी है. वर्तमान में इसे प्लेटिनम से बनी एक सिल के वज़न से परिभाषित किया जाता है जिसे 'ली ग्रैंड के' कहा जाता है. ऐसी एक सिल पश्चिमी पेरिस में इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेज़र्स (बीआईपीएम) के पास साल 1889 से बंद है.
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फ़्रांस के वर्साइल्स में 'वेट एंड मेज़र्स' पर एक बड़ा सम्मलेन आयोजित किया गया था जिसमें कई वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया था. इसमें किलोग्राम की परिभाषा बदलने के लिए वोट किया गया जिसके बाद इस फ़ैसले पर मुहर लगा दी गई. ज़्यादातर वैज्ञानिकों का पक्ष था कि किलोग्राम को यांत्रिक और विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा के आधार पर परिभाषित किया जाए.
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#किलोग्राम_को_बदला_क्यों_गया?

जो बदलाव हुआ है वो लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित नहीं करेगा. लेकिन, उद्योग और विज्ञान में इसका व्यावहारिक प्रयोग होने की उम्मीद है क्योंकि यहाँ सटीक माप होने की आवश्यकता होती है. अंतरराष्ट्रीय मात्रक प्रणाली में किलो सात बेसिक यूनिट्स में से एक है.

उनमें से चार हैं- किलो, एंपियर (विद्युत प्रवाह), केल्विन (ताप) और मोल (पार्टिकल नंबर). किलोग्राम अंतिम एसआई बेस यूनिट है जो अभी तक एक फ़िज़ीकल ऑब्ज़ेक्ट द्वारा परिभाषित है.

'ली ग्रैंड के' लंदन में निर्मित 90 प्रतिशत प्लेटिनम और दस प्रतिशत इरिडियम से बना 4 सेंटीमीटर का एक सिलेंडर है, जो पश्चिमी पेरिस के सीमांत सेवरे में इंटरनेश्नल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेजर्स (बीआईपीएम) के वॉल्ट में साल 1889 से बंद है. क्योंकि फ़िज़ीकल ऑब्ज़ेक्ट आसानी से परमाणु को खो सकते हैं या हवा से अणुओं को अवशोषित कर सकते हैं, इसी कारण इसकी मात्रा माइक्रोग्राम में दसियों बार बदली गई थी. इसका मतलब है कि किलोग्राम और स्तर मापने के लिए दुनिया भर में प्रोटोटाइप का उपयोग किया जाता है, जो कि एकदम सही अशुद्धि बताता है. सामान्य जीवन में इस तरह के मामूली बदलाव दिखाई भी नहीं देते, लेकिन एकदम सटीक वैज्ञानिक गणनाओं के लिए ये एक बड़ी समस्या रही है.
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#नया_किलोग्राम

भविष्य में किलोग्राम को किब्बल या वाट बैलेंस का उपयोग करके मापा जाएगा. एक ऐसा उपकरण जो यांत्रिक और विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा का उपयोग करके सटीक गणना करता है. ऐसा होने के बाद किलोग्राम की परिभाषा न बदली जा सकेगी और न ही इसे कोई नुकसान पहुँचाया जा सकेगा. ये न केवल फ्रांस में बल्कि दुनिया में कहीं भी वैज्ञानिकों को एक किलो का सटीक माप उपलब्ध करवाएगा.

"एक बार लागू होने के बाद सभी एसआई यूनिट फंडामेंटल कंस्टेंट की प्रकृति पर आधारित होंगी, जिसके मायने हमेशा के लिए तय हो जाएंगे और ये और भी अधिक सटीक पैमाइश कर पाएगा."
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#अन्य_बदलाव

नए किलोग्राम के मई 2019 तक आने की उम्मीद है.
यह इलेक्ट्रॉन पंप के माध्यम से किया जाएगा जो एक बार में प्रवाहित विद्युत से औसत करेंट उत्पन्न करता है और विद्युत की गणना करता है.

केल्विन (तापमान यूनिट) को पारिभाषित करने के लिए ध्वनि के लिए इस्तेमाल होने वाले थर्मामीटर का उपयोग किया जायेगा, जो एक निश्चित तापमान पर गैस से भरे क्षेत्र में ध्वनि की गति का माप लेता है.

पदार्थ की मात्रा को मापने के लिए मोल, यूनिट का इस्तेमाल कर फिर से परिभाषित किया जायेगा जो शुद्ध सिलिकॉन-28 में सही परमाणुओं की मात्रा निर्धारित करेगा.
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#सोर्स - बीबीसी न्यूज
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शनिवार 01/12/2018

गुरुवार, 29 नवंबर 2018

नोटबंदी की 101 उपलब्धियां

1*_नोटबंदी की 101 उपलब्धियां_*
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01- नोटबंदी के बाद 16.6 खरब नोट सिस्टम में वापस आ गए। 16 हजार करोड़ रुपये को छोड़कर सभी कैश बैंक में जमा हो जाने से बिना हिसाब वाले पैसों का पता चला।

02- अधिकतर कैश के बैंकिंग सिस्टम आने से इस पैसे को कानूनी दर्जा मिला और नोटबंदी अवैध धन रखने वालों के खिलाफ एक्शन लेने का एक जरिया बना है।

03- कासा यानी चालू खाता, बचत खाता जमाओं में कम से कम 2.50-3.00 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

04- मुद्रा बाजार की ब्याज दरों में गिरावट हुई और म्युचुअल फंडों के साथ बीमा क्षेत्र में धन का प्रवाह बढ़ा।

05- आयकर विभाग ने संदिग्ध लेन-देन को लेकर 517 नोटिस जारी किए थे, जिसके बाद 1833 करोड़ रुपये की 541 संपत्तियां जब्त की गई।

06- नोटबंदी के बाद 17.73 लाख संदिग्‍ध मामलों की पहचान की गई, जिनमें 3.68 लाख करोड़ रुपये की हेरा-फेरी हुई है।

07- आयकर विभाग द्वारा 9 नवंबर 2016 से लेकर मार्च 2017 के बीच चलाए गए करीब 900 सर्च अभियान में 900 करोड़ रुपये की संपत्ति सीज की गई।

08- नोटबंदी के बाद पता लगा कि 1 लाख 48,165 लोगों ने ही लगभग 4 लाख 92,207 करोड़ रुपये जमा किए। यानी भारत की 0.00011% जनसंख्या ने ही देश में उपलब्ध कुल कैश का लगभग 33 प्रतिशत जमा किया।

09- नोटबंदी के बाद 961 करोड़ रुपये की ऐसी प्रॉपर्टी का पता चला है जिसका कभी खुलासा ही नहीं किया गया था।

10- नोटबंदी के बाद तीन लाख से अधिक शेल यानी मुखौटा कंपनियों का पता लगाया जा सका है, जिनपर कार्रवाई की जा रही है।

11- सरकार ने 2.24 लाख कंपनियों को बंद कर दिया। ये कंपनिया सरकार की अनुमति के बिना अपने ऐसेट्स को बेच या ट्रांसफर नहीं कर सकती हैं।

12- नोटबंदी के बाद प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत 21,000 लोगों ने 4,900 करोड़ रुपये मूल्य के कालेधन की घोषणा की।

13- नोटबंदी के दौरान 35 हजार संदिग्ध फर्जी कंपनियों ने 17 हजार करोड़ डिपॉजिट किए, जो सरकार की नजर में आ गए।

14- बैंकों ने 35 हजार कंपनियों और 58 हजार बैंक खातों की जानकारी वित्त मंत्रालय को दी, जिसके बाद इन पर एक्शन लिया गया।

15- नोटबंदी के बाद एक कंपनी के 2,134 बैंक खातों के बारे में पता चला। इन कंपनियों के खातों में 10,200 करोड़ रुपये जमा किए गए थे, जो पकड़े गए।

16- नोटबंदी के बाद तीन से चार खरब डॉलर के ट्रांजैक्शन्स संदिग्ध लग रहे हैं, इसके लिए 1.8 लाख नोटिस भेजे गए हैं और इन पर कार्रवाई होने ही वाली है।

17- नोटबंदी के बाद फर्जी कंपनियों के डायरेक्टर्स का भी पता लगा। इसके तहत पिछले तीन वित्तीय वर्षों से वित्तीय विवरण न भरने वाले 3.09 लाख कंपनी बोर्ड डायरेक्टर्स को अयोग्य घोषित कर दिया गया।

18- नोटबंदी के बाद पता लगा कि 3000 डायरेक्टर्स 20 से ज्यादा कंपनियों के बोर्ड डायरेक्टर थे, जो कानूनी सीमा से ज्यादा है।

19- नोटबंदी के बाद कैश डीलिंग से लोग बच रहे हैं और लेन-देन में पारदर्शिता आई है।

20- नोटबंदी के बाद तीन लाख करोड़ से अधिक रकम बैंकों में जमा कराई गई।

21- नोटबंदी के बाद 23.22 लाख बैंक खातों में लगभग 3.68 लाख करोड़ रुपये के संदिग्ध कैश जमा हुए, जिसका पता सरकार को लग गया।

22- 17.73 लाख संदिग्ध पैन कार्ड धारकों का पता चला।

23- बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने 4.7 लाख से अधिक संदिग्ध लेन-देन की जानकारी इकट्ठा की।

24- जांच, जब्ती और छापों में 29,213 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता चला।

25- नोटबंदी के बाद 813 करोड़ रुपये से अधिक की बेनामी संपत्ति जब्त कर ली गई है।

26– नोटबंदी के बाद 400 से अधिक बेनामी लेन-देन की पहचान हुई और 29 हजार 200 करोड़ से अधिक अघोषित आय का पता चला।

27- नोटबंदी के बाद से सोने की स्मगलिंग में बड़ी गिरावट आई, क्योंकि मार्केट में कम पूंजी थी और निगरानी सख्त हुई।

28- नोटबंदी के बाद भारत एक लेस कैश सोसाइटी की दिशा में डिजिटल ट्रांजेक्शन्स 300 प्रतिशत तक बढ़े।

29- कैशलेस लेन-देन लोगों के जीवन को आसान बनाने के साथ-साथ हर लेन-देन से काले धन को हटाते हुए क्लीन इकोनॉमी बनाने में भी मददगार साबित हुआ है।

30- चलन में रहने वाली नकदी में भारी गिरावट हुई और कैश 17.77 लाख करोड़ रुपये से कम होकर 4 अगस्त 2017 को 14.75 लाख करोड़ पर आ गया। यानी अब महज 83 प्रतिशत ही प्रभावी नकदी है।

31- लेस कैश व्यवस्था से वस्तु एवं सेवाएं तो सस्ती हुई ही, साथ ही साथ आवास, शिक्षा, चिकित्सा उपचार आदि की लागत भी कम हुई है।

32– नोटबंदी के बाद डिजिटल लेन-देन काफी तेजी से बढ़ा है। अगस्त 2016 में 87 करोड़ डिजिटल लेन-देन हुए थे, जबकि 2017 में यह संख्या 138 करोड़ हो गई यानी 58 प्रतिशत की वृद्धि।

33- वर्ष 2017-18 में डिजिटल लेनदेन में 80 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। यह रकम कुल मिलाकर 1800 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।

34- अक्टूबर 2016 में 15.11 लाख की तुलना में अगस्त 2017 में कार्ड उपयोग वाली पीओएस मशीनों की संख्या बढ़कर 28.82 लाख हो गई।

35- नोटबंदी से पहले भारत में पहले कुल 15.11 लाख पीओएस मशीनें थीं, लेकिन पिछले 1 वर्ष में 13 लाख से अधिक पीओएस मशीनें जोड़ी गई हैं।

36- पीओएस मशीनों पर डेबिट कार्ड ट्रांजेक्शन्स की संख्या अगस्त 2016 के 13.05 करोड़ से बढ़कर अगस्त 2017 में 26.55 करोड़ हो गई।

37– पीओएस मशीनों पर डेबिट कार्ड के द्वारा अगस्त 2016 में 18,370 करोड़ रुपये के ट्रांजैक्शन्स हुए थे, जबकि अगस्त 2017 में यह 35,413 करोड़ रुपये हो गए।

38- अगस्त 2016 में 26,849 करोड़ रुपये के आईएमपीएस ट्रांजैक्शन्स हुए थे, जो अगस्त 2017 में बढ़कर 65,149 करोड़ रुपये हो गए।

39- मोबाइल वॉलेट के द्वारा ट्रांजेक्शन्स अगस्त 2016 में 7.07 करोड़ से 3 गुना बढ़कर अगस्त 2017 में 22.54 करोड़ हो गए।

40- मोबाइल वॉलेट के द्वारा अगस्त 2016 में 3,074 करोड़ रुपये के ट्रांजेक्शन्स हुए थे, जबकि अगस्त 2017 में 7,262 करोड़ रुपये के ट्रांजेक्शन्स हुए।

41- मोबाइल वॉलेट से लेन-देन की संख्या में हर साल 94 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जो 2022 तक 126 प्रतिशत सलाना दर से बढ़ते हुए 32,000 अरब रुपये पर पहुंच जाएगा।

42- नोटबंदी के बाद यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) और सरकार की तरफ से लाए गए BHIM मोबाइल ऐप का इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ा है। UPI-BHIM से नवंबर 2016 में 0.1 लाख, अक्टूबर 2017 तक 23.36 लाख रुपये रोजाना लेन-देन होता है।

43- ई-टोल पेमेंट में बड़ा उछाल। जनवरी 2016 में यह आंकड़ा 88 करोड़ से बढ़कर अगस्त 2017 में यह आंकड़ा 275 करोड़ रुपये हो गया।

44- नोटबंदी के बाद क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल में भी 40 प्रतिशत से अधिक की बढ़त हुई है।

45- ऑनलाइन इनकम टैक्स रिटर्न भरने में 2016-17 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न की ई-फाइलिंग में करीब 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

46- ई-कॉमर्स के लिए Rupay का इस्तेमाल बढ़ा है। इसके साथ ही ई-कॉमर्स पर किए जाने वाला खर्च भी दोगुना से अधिक बढ़ा है।

47- नोटबंदी के चलते आतंकवादियों और नक्सलवादियों की कमर टूट गई।

48- पत्थरबाजों को पैसे देने के लिए अलगाववादियों के पास धन की कमी हो गई।

49- पत्थरबाजी की घटनाएं पिछले वर्ष की तुलना में घटकर मात्र एक-चौथाई रह गईं।

50- पत्थरबाजी की घटनाएं (नवंबर 2015 – अक्टूबर 2016) 2683 से घटकर (नवंबर 2016- जुलाई 2017) महज 639 ही रह गईं।

51- पत्थरबाजी में पहले 500 से 600 लोग होते थे, अब 20-25 की संख्या भी नहीं होती है।

52- नोटबंदी के बाद नक्सली घटनाओं में 20% से ज्यादा की कमी आई।

53- अक्टूबर 2015 से नवंबर 2016 में 1071 नक्सली घटनाएं हुईं। वहीं 2016 के अक्टूबर से अब तक मात्र 831 रह गई।

54- नोटबंदी के बाद पता लगा कि पांच सौ के हर 10 लाख नोट में औसत 7 और 1000 के हर 10 लाख नोटों में औसत 19 नोट नकली थे।

55- 2016-17 में कुल 762 हजार जाली नोट पकड़े गए।

56- जाली नोट पकड़े जाने में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 20% की वृद्धि हुई।

57- नोटबंदी के बाद टैक्स बेस बढ़ने से टैक्सेशन न्यायसंगत हो रहा है।

58- सरकार गरीबी उन्मूलन और घरों, सड़क, रेलवे, आदि जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए और अधिक संसाधनों का इस्तेमाल कर पा रही है।

59- टैक्सपेयर्स की संख्या में 26.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। 2015-16 में 66.53 लाख थी, जो 2016-17 में बढ़कर 84.21 लाख हो गई।

60- ई-रिटर्न की संख्या में बड़ी वृद्धि हुई है। 2016-17 में 2.35 करोड़ से बढ़कर 2017-18 में 3.01 करोड़ हो गई।

61- नोटबंदी के बाद 4 लाख 73 हजार से अधिक संदिग्ध लेन-देन का पता चला।

62- नोटबंदी के बाद 56 लाख से अधिक नए करदाता जुड़े।

63- पर्सनल इनकम टैक्स के एडवांस्‍ड टैक्स कलेक्शन में पिछले साल के मुकाबले 41.79 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

64- निजी आयकर का अग्रिम संग्रह पिछले वर्ष की तुलना में 41.79 % बढ़ा।

65- नोटबंदी के बाद पूर्वोत्तर के राज्यों में आयकर संग्रह में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2016-17 में नागालैंड में आयकर संग्रह में करीब 300 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

66- 04 अगस्त तक लोगों के पास 14,75,400 करोड़ रुपये की करेंसी सर्कुलेशन में थे। जो वार्षिक आधार पर 1,89,200 करोड़ रुपये की कमी दिखाती है।

67- 6 लाख करोड़ रुपये के हाई वैल्यू नोट्स प्रभावी रूप से कम हुए, जो इस समय सर्कुलेशन में आए नोटों का 50 प्रतिशत है।

68- नोटबंदी के कारण ‘कैश बब्बल’ यानी नकदी के ढेर से भारत बच गया।

69– नोटबंदी के निर्णय ने भारत को अमेरिका की 2008 जैसी महामंदी से बचाया।

70- चलनिधि यानी Liquidity की कमी से उत्पन्न हुई समस्या से मुक्ति मिली।

71- जीडीपी औसत नकदी में पिछले वर्ष नवंबर से पहले 11.3 प्रतिशत की तुलना में 9.7 प्रतिशत हो गया है।

72- तीन से चार खरब डॉलर के ट्रांजैक्शन्स संदिग्ध लग रहे हैं, इसके लिए 1.8 लाख नोटिस भेजे गए हैं।

73- नोटबंदी के बाद अधिक से अधिक क्षेत्रों को संगठित किया जाना संभव हुआ।

74- संगठित किए जाने की वजह से गरीबों के लिए नौकरी के ज्यादा अवसर पैदा हुए। फॉर्मल जॉब्स की संख्या बढ़ी।

75- नौकरियों के संगठित होने से देश ने स्वच्छ अर्थव्यवस्था की तरफ कदम बढ़ाया।

76- नोटबंदी के बाद मजदूरों के सारे अधिकार मिलने लगे हैं, सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी सुविधाएं भी मिलनी शुरू हो गई है।

77- एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों का अब EPFO एवं ESIC में नामांकन हो चुका है।

78- सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं दिलाने के लिए 1.3 करोड़ कर्मचारियों को ESIC में पंजीकरण किया गया है।

79- श्रमिकों को अधिकार और सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य सुविधाएं भी मिलनी शुरू हो गई हैं।

80- नोटबंदी से बिचौलियों का अंत हुआ और श्रमिकों को सीधा भुगतान होने लगा।

81- भुगतान सुनिश्चित करने के लिए वेतन भुगतान कानून (पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट) में ऐतिहासिक संशोधन किया गया।

82- वेतन सीधे बैंक खाते में डालने के लिए श्रमिकों के 50 लाख नए बैंक खाते खोले गए।

83- टैक्स कंप्लायंस में भारी वृद्धि हुई जिससे देश की जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करने की क्षमता में बढ़ोतरी हुई।

84- सरकार का राजस्व बढ़ा और जन कल्याण एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर पर अधिक से अधिक खर्च किया जा रहा है।

85- सागरमाला और भारतमाला जैसी परियोजनाओं को नोटबंदी के बाद अधिक धन मुहैया कराया जा सका है।

86- नोटबंदी के बाद सीमावर्ती क्षेत्रों में सामरिक क्षमताओं के विकास में तेजी आ पायी है।

87- नोटबंदी के वक्त सेंसेक्स करीब 25 हजार के आस-पास था। अब मुंबई स्टॉक एक्सचेंज का शेयर सूचकांक करीब 33 हजार के इर्द-गिर्द है।

88- नोटबंदी के वक्त निफ्टी करीब आठ हजार अंकों के करीब थी, जो अब 10,500 के इर्द गिर्द है।

89- नोटबंदी के बाद निवेशकों का भरोसा बढ़ा है और बिकवाली घटी है। यानी भारतीय अर्थव्यवस्था में एक स्थायित्व का भाव है।

90- नोटबंदी से EMI दरों में कमी से लेकर किफायती आवास तक, वित्तीय साधनों में बचत बढ़ने से लेकर शहरी निकायों के राजस्व में वृद्धि हुई।

91– ऋण दरों में लगभग 100 बेसिस पॉइंट्स की गिरावट आई है।

92- ऋण चुकाने पर लगने वाला ब्याज घटा है और EMI कम हुई है।

93- नोटबंदी के बाद रियल एस्टेट की कीमतें घटी। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ब्याज पर छूट मिली और रेट-कटस् के परिणामस्वरूप EMI भी घटी।

94– नोटबंदी के बाद देश भर के शहरी स्थानीय निकायों का राजस्व लगभग 3 गुना बढ़ा है।

95- उत्तर प्रदेश में शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के राजस्व में 4 गुना वृद्धि हुई है।

96- मध्य प्रदेश और गुजरात के शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के राजस्व में लगभग 5 गुना वृद्धि हुई है।

97- लोगों की कुल वित्तीय बचत यानी ग्रॉस फाइनेंसियल सेविंग्स जो 5 वर्षों से GNDI के लगभग 10% पर अटकी हुई थी, नोटबंदी के बाद 11.8% तक पहुंच गई है।

98- 2016-17 में GNDI के डिपॉजिट्स, शेयर एंड डिबेंचर्स, बीमा फंड एवं पेंशन और प्रोविडेंट फंड की कुल वित्तीय बचत 9% से बढ़कर 13.3% हो गई।

99– विकसित अर्थव्यवस्थाओं के हिसाब से ये पॉजिटिव ट्रेंड है, जिनमें फाइनेंसियल एसेट्स में निवेश का हिस्सा ज्यादा है।

100- नोटबंदी के बाद लोगों के निवेश रेगुलेटेड मार्केट में आ रहे हैं, जहां स्थिरता भी है और अच्छे रिटर्न की गारंटी भी है।

101– ऐसे एसेट्स जिनका प्रबंधन म्यूचुअल फंड द्वारा किया जाता है, वे सितंबर 2017 के अंत तक 20.4 ट्रिलियन पर पहुँच गया.
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