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बुधवार, 4 सितंबर 2019

आज का पंचांग 4 september 2019

.                *।। ॐ  ।।*
     🚩🌞 *सुप्रभातम्* 🌞🚩
📜««« *आज का पंचांग* »»»📜
कलियुगाब्द...........................5121
विक्रम संवत्..........................2076
शक संवत्.............................1941
मास..................................भाद्रपद
पक्ष.....................................शुक्ल
तिथी.....................................षष्ठी
प्रातः 09.44 पर्यंत पश्चात सप्तमी
रवि..............................दक्षिणायण
सूर्योदय.............प्रातः 06.10.11 पर
सूर्यास्त............संध्या 06.41.53 पर
सूर्य राशि...............................सिंह
चन्द्र राशि..............................तुला
नक्षत्र...............................विशाखा
दुसरे दिन प्रातः 04.08 पर्यंत पश्चात अनुराधा
योग.......................................इंद्र
रात्रि 08.31 पर्यंत पश्चात वैधृति
करण.................................कौलव
प्रातः 10.30 पर्यंत पश्चात तैतिल
ऋतु......................................वर्षा
दिन...................................बुधवार

🇬🇧 *आंग्ल मतानुसार* :-
04 सितम्बर सन 2019 ईस्वी ।

👁‍🗨 *राहुकाल* :-
दोपहर 12.26 से 02.00 तक ।

🌞 *उदय लग्न मुहूर्त :-*
*सिंह*
04:57:22 07:08:49
*कन्या*
07:08:49 09:19:07
*तुला*
09:19:07 11:33:22
*वृश्चिक*
11:33:22 13:49:10
*धनु*
13:49:10 15:54:29
*मकर*
15:54:29 17:41:20
*कुम्भ*
17:41:20 19:14:38
*मीन*
19:14:38 20:45:35
*मेष*
20:45:35 22:26:01
*वृषभ*
22:26:01 24:24:18
*मिथुन*
24:24:18 26:37:37
*कर्क*
26:37:37 28:53:25

🚦 *दिशाशूल* :-
उत्तरदिशा - यदि आवश्यक हो तो तिल का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें ।

☸ शुभ अंक.........................8
🔯 शुभ रंग..........................हरा

⚜ *चौघडिया :-*
प्रात: 06.10 से 07.44 तक लाभ
प्रात: 07.44 से 09.18 तक अमृत
प्रात: 10.52 से 12.26 तक शुभ
दोप 03.34 से 05.07 तक चंचल
सायं 05.07 से 06.41 तक लाभ
रात्रि 08.08 से 09.34 तक शुभ ।

📿  *आज का मंत्र* :-
।। ॐ ईशानाय नम: ।।

📯 *सुभाषितम्* :-
वरमेको गुणी पुत्रो न च मूर्खशतान्यपि ।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च तारागणोऽपि च ॥
अर्थात :-
मूर्ख शिष्य को उपदेश देने से, दुष्ट स्त्री का भरण पोषण करने से, और दुष्टके संयोग से पंडित भी नष्ट होता है ।

🍃 *आरोग्यं :*-
*हल्दी मौसमी रोगों में फायदेमंद -*

*दूध के साथ हल्दी का सेवन -*
हल्दी, मंजिष्ठा, गेरू, मुलतानी मिट्टी, गुलाब जल, एलोवेरा एवं कच्चे दूध को मिलाकर लेप तैयार करें। इसे चेहरे पर लगाने से त्वचा में निखार आता है। हल्दी वाला दूध पीने से त्वचा में प्राकृतिक चमक पैदा होती है।  यदि आप नजले, जुकाम, खांसी से परेशान हैं, तो गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी मिलाकर पिएं, इससे लाभ होगा। रोज सुबह खाली पेट गुनगुने दूध में हल्दी मिलाकर सेवन करें, तो शरीर के दर्द, पेट के रोग आदि से छुटकारा पा सकते हैं।

*रक्त की सफाई करे हल्दी -*
हल्दी के सेवन से रक्त साफ होता है।  इसके सेवन से रक्त में मौजूद विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं। अगर चोट लगने पर तेजी से खून बह रहा है, तो आप उस जगह तुरंत हल्दी डाल दें।  इससे खून बहना रुक जाएगा।

⚜ *आज का राशिफल :-*

🐏 *राशि फलादेश मेष :-*
*(चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ)*
पुराना रोग परेशानी का कारण बन सकता है। विवाद को बढ़ावा न दें। राजभय रहेगा। जल्दबाजी से बचें। योजना फलीभूत होगी। कार्यस्‍थल पर परिवर्तन तथा सुधार की संभावना है। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा। नौकरी में सहकर्मी साथ देंगे। जीवन सुखमय गुजरेगा। लाभ होगा।

🐂 *राशि फलादेश वृष :-*
*(ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)*
धर्म-कर्म में रुचि रहेगी। सत्संग का लाभ होगा। धार्मिक कृत्यों पर व्यय होगा। कारोबार लाभदायक रहेगा। विवेक से कार्य करें। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। नौकरी में चैन रहेगा। शेयर मार्केट व म्युचुअल फंड इत्यादि में जल्दबाजी न करें।

👫 *राशि फलादेश मिथुन :-*
*(का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह)*
चोट व दुर्घटना से शारीरिक हानि संभव है। पुराना रोग उभर सकता है। क्रोध व उत्तेजना पर नियंत्रण रखें। वाणी पर संयम आवश्यक है। लेन-देन में जल्दबाजी न करें। कारोबार अच्‍छा चलेगा। नौकरी में कार्यभार रहेगा। सहकर्मी साथ नहीं देंगे। जल्दबाजी न करें।

🦀 *राशि फलादेश कर्क :-*
*(ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)*
राजकीय सहयोग प्राप्त होगा। रुके कार्यों में गति आएगी। जीवनसाथी से सहयोग प्राप्त होगा। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। नए काम मिल सकते हैं। थकान व कमजोरी रह सकती है। नौकरी में चैन रहेगा। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। निवेश शुभ रहेगा। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी।

🦁 *राशि फलादेश सिंह :-*
*(मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)*
स्थायी संपत्ति में वृद्धि के योग हैं। बड़े लाभदायक सौदे हो सकते हैं। बेरोजगारी दूर करने के प्रयास सफल रहेंगे। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। भाग्य का साथ मिलेगा। निवेश शुभ रहेगा। नौकरी में उच्चाधिकारी प्रसन्न रहेंगे। शारीरिक कष्ट की आशंका है। जल्दबाजी न करें।

👩🏻‍🦰 *राशि फलादेश कन्या :-*
*(ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)*
विद्यार्थी वर्ग अपने कार्य में सफलता प्राप्त करेगा। एकाग्रता बनी रहेगी। कारोबार में वृद्धि होगी। किसी आनंदोत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त होगा। यात्रा मनोरंजक रहेगी। कारोबार लाभदायक रहेगा। निवेश शुभ रहेगा। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी।

⚖ *राशि फलादेश तुला :-*
*(रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)*
किसी अपने व्यक्ति से कहासुनी हो सकती है। वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें। बुरी खबर मिल सकती है। स्वास्‍थ्य का पाया कमजोर रहेगा। व्यर्थ भागदौड़ रहेगी। नौकरी में कार्यभार रहेगा। दूसरे अधिक अपेक्षा करेंगे। धैर्य रखें।

🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक :-*
*(तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)*
घर-बाहर पूछ-परख रहेगी। मेहनत का फल पूरा-पूरा मिलेगा। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। मित्रों व रिश्तेदारों की मदद करने का अवसर प्राप्त होगा। कार्यसिद्धि से प्रसन्नता रहेगी। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। नौकरी में प्रमोशन मिल सकता है।

🏹 *राशि फलादेश धनु :-*
*(ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे)*
शुभ समाचार प्राप्त होंगे। यात्रा सफल रहेगी। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। घर में अतिथियों का आगमन होगा। व्यय होगा। नए मित्र बनेंगे। व्यापार-व्यवसाय अच्छा चलेगा। नौकरी में सहकर्मी साथ देंगे। धन प्राप्ति सुगम होगी। दूसरों के कार्य में दखल न दें।

🐊 *राशि फलादेश मकर :-*
*(भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी)*
नौकरी में प्रभाव बढ़ेगा। किसी बड़े काम के होने से प्रसन्नता रहेगी। अप्रत्याशित लाभ हो सकता है। सुख के साधन जुटेंगे। नवीन वस्त्राभूषण पर व्यय होगा। कारोबार में वृद्धि होगी। शेयर मार्केट व म्युचुअल फंड से मनोनुकूल सफलता प्राप्त होगी। प्रमाद न करें।

🏺 *राशि फलादेश कुंभ :-*
*(गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)*
स्वास्थ्य पर बड़ा खर्च हो सकता है। कर्ज लेना पड़ सकता है। निर्णय लेने में जल्दबाजी न करें। अकारण विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यात्रा में सावधानी आवश्यक है। कारोबार ठीक चलेगा। बेचैनी रहेगी। ईर्ष्यालु व्यक्तियों से सावधान रहें। धैर्य रखें।

🐡 *राशि फलादेश मीन :-*
*(दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)*
व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। रुका हुआ पैसा मिल सकता है। धन प्राप्ति सुगम होगी। किसी बड़े काम को करने की इच्छा बनेगी। कारोबार अच्छा चलेगा। रोजगार में वृद्धि होगी। भाग्य का साथ मिलेगा। निवेश शुभ रहेगा। पार्टनरों से मतभेद दूर होंगे।

☯ *आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ।*

।। 🐚 *शुभम भवतु* 🐚 ।।

🇮🇳🇮🇳 *भारत माता की जय* 🚩🚩

हरि सुमिरन के लिये समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है।

हरि सुमिरन के लिये समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है।
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एक बार महर्षि नारद किसी नगर से होकर जा रहे थे। एक वैश्य ने उनका आतिथ्य सत्कार किया। उसकी श्रद्धा - भक्ति देख कर उन्होंने उसका एक गिलास दुग्ध पी लिया। वेश्य ने पूछा -
महाराज, कहाँ से आ रहे हो?
नारद जी ने कहा - भगवान् कृष्ण के धाम  से।
वैश्य ने पूछा - महाराज, अब यहाँ पधारोगे?
नारद जी ने कहा - थोड़ा मृत्युलोक में घूम कर फिर भगवान् कृष्ण के धाम लौट जायेंगे।
वैश्य ने प्रार्थना की - महाराज, लौटते समय हमें भी भगवान् कृष्ण के धाम लेते चलें तो बड़ी कृपा होगी।
नारद ने कहा - अच्छा ले, चलेंगे।
कुछ् दिनों के पश्चात् नारद जी घूम - फिर कर लौटे तो पूछा - सेठजी, भगवान् कृष्ण के धाम  चलोगे?
सेठजी ने कहा - महाराज, चलना तो अवश्य है पर अभी ये लड़के बहुत छोटे नासमझ हैं। ये लोग गृहस्थी का काम संभाल नहीं सकेंगे। थोड़े दिन में ये काम - काज सँभालने योग्य हो जायँ तब चलेंगे।
नारद जी चले गये। थोड़े दिन में वे फिर लौटे। पूछा - सेठजी अब चलोगे?
सेठजी ने कहा - हाँ महाराज, अब तो लड़का बड़ा हो गया है, काम - काज भी कुछ देखने - सुनने लगा है, परन्तु यह अभी अपनी पूरी जिम्मेदारी नहीं समझता। अगले वर्ष इसका विवाह कर दें फिर निश्चिन्त हो जायँ तब चलेंगे। चार वर्ष बाद नारद जी। फिर लौटे तो दुकान पर लड़के से पूछा कि सेठ जी कहाँ हैं? लड़के ने कहा - महाराज, क्या बतायें। एक ही तो हमारे घर में पिता जी सब सँभाले हुए थे, उनका शरीर छूट गया, तब से हम तो बड़ी परेशानी में हैं।
नारद जी ने ध्यान लगा कर देखा तो मालूम हुआ कि सेठजी मर कर बैल हुए हैं और इसी घर में जनमे हैं।  नारद जी बैल के पास गये और कहा कि सेठ जी अब तो मनुष्य शरीर भी छूट गया, अब भगवान् कृष्ण के धाम चलोगे ना?
बैल ने कहा - महाराज! आपकी बड़ी कृपा है। मैं भी चलने को तैयार हूँ, पर सोचता हूँ कि घर के और बैल इतने सुस्त हैं कि आगे मैं न चलूँ तो कुछ काम ही न हो। कुछ नये बैल आने वाले हैं तब तक मैं इनका काम संभाल दूं, फिर आप कृपा करना मैं अवश्य चलूँगा।
नारद जी फिर दो - चार वर्ष बाद लौटे। उन्हें तो अपना वचन पूरा करना था और वैश्य का एक गिलास् दूध चुकाना था, इसीलिये बार - बार उसके पास आते थे। इस बार आये तो बैल नहीं दिखा। लड़कों से पूछा कि तुम्हारे यहाँ जो बूढ़ा बैल था वह कहाँ गया? लड़कों ने दुःखी होकर कहा कि महाराज! बड़ा मेहनती बैल था। सब से आगे चलता था। जब से मर गया है तब से वैसा दूसरा बैल नहीं मिला।
नारद जी ने ध्यान करके देखा तों मालूम हुआ कि इस बार सेठ जी कुत्ता होकर अपने ही घर के आगे पहरा दे रहे हैं।
कुत्ते के पास जाकर नारद जी ने कहा - कहो सेठ जी! क्या समाचार है? तीन जन्म तों हो गया।  अब भगवान् कृष्ण के धाम के सम्बन्ध में क्या विचार है?
कुत्ता रुपी सेठ ने कहा - महाराज! आप बड़े दयालु हैं। एक ओर मैं आपकी दयालुता देखता हूँ और दूसरी ओर लड़कों का आलस्य और बदइन्तजामी। महाराज! ये इतने आलसी हो गये हैं हि मैं दरवाजे पर न रहूँ तो दिन में ही लोग इन्हें लूट ले जाँय। इसलिये सोचता हुँ कि जब तक हूँ, तब तक इनकी रक्षा रहे तो अच्छा। थोड़े दिन में जरूर चलूँगा।
नारद जी फिर लौट गये। चार - छःह वर्ष में फिर आये तो कुत्ता दरवाजे पर नहीं दिखा। लड़कों से पूछा तो पता चला कि वह मर गया है। ध्यान लगाकर देखा तो मालूम हुआ कि इस बार सेठजी सर्प होकर उसी घर के तलघर में कोष की रक्षा करते हुए बैठे हैं।
नारद जी वहाँ पहुँचे। कहा - कहिये सेठ जी! यहाँ आप कैसे बैठे हैं? भगवान् कृष्ण के धाम चलने का समय अभी आया कि नहीं?
सर्प ने कहा - महाराज! ये लड़के इतने फिजूलखर्ची हों गये हैं कि मैं न होता तो अब तक खजाना खाली कर देते। सोचता हूँ कि मेरी गाढ़ी कमाई का पैसा है, जितने दिन रक्षित रह जाय उतना ही अच्छा है। इसीलिये यहाँ मेरी आवश्यकता है, नहीं तो मैं तो चलने को तैयार ही हूँ।
नारद जी फिर निराश होकर लौटे। बाहर आकर उन्होंने बड़े लड़के को बुलाकर कहा कि तुम्हारे खजाने में एक भयंकर कालरूप सर्प बैठा हुआ है।  ऐसा न हो कि कभी किसी को हानि पहुँचा दे। इसलिये उसे मारकर भगा दो। ऐसा मारना कि उसके सर में लाठी न लगे। सर में लाठी पड़ने से वह मर जायगा। मरने न पावे और कूट - पीट कर उसको खजाने से बाहर कर दो।
महात्मा का आदेश पाकर लड़कों ने वैसा ही किया। सारे शरीर में लाठियों की मार लगाकर उसको लस्त कर दिया और घर के बाहर फेंक आये।
वहाँ जाकर नारद जी उससे मिले और कहा - कहिये सेठ जी! लड़कों ने तो खूब पुटपुटी लगाई।  अभी आपका मन भरा या नहीं? फिर वापिस जाकर घर की रक्षा करोगे या अब चलोगे भगवान् कृष्ण के धाम ? सर्प ने कहा - हाँ महाराज! अब चलेंगे।
तात्पर्य यह है कि गृह में, पुत्र में, धन में, स्त्री आदि में प्रेम हो जाने पर कई जन्म तक वह प्रेम - बन्धन शिथिल नहीं होता और कई जन्मों तक उसी के कारण अनेक यातनायें सहनी पड़ती हैं। इसीलिये कहा जाता है कि संसार में प्रेम मत फँसाओ। यहाँ प्रेम करोगे तो कई जन्म तक रोना पड़ेगा ।
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हरि सुमिरन के लिये समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है।

हरि सुमिरन के लिये समय मिलता नहीं, निकालना पड़ता है।
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एक बार महर्षि नारद किसी नगर से होकर जा रहे थे। एक वैश्य ने उनका आतिथ्य सत्कार किया। उसकी श्रद्धा - भक्ति देख कर उन्होंने उसका एक गिलास दुग्ध पी लिया। वेश्य ने पूछा -

महाराज, कहाँ से आ रहे हो?

नारद जी ने कहा - भगवान् कृष्ण के धाम  से।

वैश्य ने पूछा - महाराज, अब यहाँ पधारोगे?

नारद जी ने कहा - थोड़ा मृत्युलोक में घूम कर फिर भगवान् कृष्ण के धाम लौट जायेंगे।

वैश्य ने प्रार्थना की - महाराज, लौटते समय हमें भी भगवान् कृष्ण के धाम लेते चलें तो बड़ी कृपा होगी।

नारद ने कहा - अच्छा ले, चलेंगे।

कुछ् दिनों के पश्चात् नारद जी घूम - फिर कर लौटे तो पूछा - सेठजी, भगवान् कृष्ण के धाम  चलोगे?

सेठजी ने कहा - महाराज, चलना तो अवश्य है पर अभी ये लड़के बहुत छोटे नासमझ हैं। ये लोग गृहस्थी का काम संभाल नहीं सकेंगे। थोड़े दिन में ये काम - काज सँभालने योग्य हो जायँ तब चलेंगे।

नारद जी चले गये। थोड़े दिन में वे फिर लौटे। पूछा - सेठजी अब चलोगे?

सेठजी ने कहा - हाँ महाराज, अब तो लड़का बड़ा हो गया है, काम - काज भी कुछ देखने - सुनने लगा है, परन्तु यह अभी अपनी पूरी जिम्मेदारी नहीं समझता। अगले वर्ष इसका विवाह कर दें फिर निश्चिन्त हो जायँ तब चलेंगे। चार वर्ष बाद नारद जी। फिर लौटे तो दुकान पर लड़के से पूछा कि सेठ जी कहाँ हैं? लड़के ने कहा - महाराज, क्या बतायें। एक ही तो हमारे घर में पिता जी सब सँभाले हुए थे, उनका शरीर छूट गया, तब से हम तो बड़ी परेशानी में हैं।

नारद जी ने ध्यान लगा कर देखा तो मालूम हुआ कि सेठजी मर कर बैल हुए हैं और इसी घर में जनमे हैं।  नारद जी बैल के पास गये और कहा कि सेठ जी अब तो मनुष्य शरीर भी छूट गया, अब भगवान् कृष्ण के धाम चलोगे ना?

बैल ने कहा - महाराज! आपकी बड़ी कृपा है। मैं भी चलने को तैयार हूँ, पर सोचता हूँ कि घर के और बैल इतने सुस्त हैं कि आगे मैं न चलूँ तो कुछ काम ही न हो। कुछ नये बैल आने वाले हैं तब तक मैं इनका काम संभाल दूं, फिर आप कृपा करना मैं अवश्य चलूँगा।

नारद जी फिर दो - चार वर्ष बाद लौटे। उन्हें तो अपना वचन पूरा करना था और वैश्य का एक गिलास् दूध चुकाना था, इसीलिये बार - बार उसके पास आते थे। इस बार आये तो बैल नहीं दिखा। लड़कों से पूछा कि तुम्हारे यहाँ जो बूढ़ा बैल था वह कहाँ गया? लड़कों ने दुःखी होकर कहा कि महाराज! बड़ा मेहनती बैल था। सब से आगे चलता था। जब से मर गया है तब से वैसा दूसरा बैल नहीं मिला।

नारद जी ने ध्यान करके देखा तों मालूम हुआ कि इस बार सेठ जी कुत्ता होकर अपने ही घर के आगे पहरा दे रहे हैं।

कुत्ते के पास जाकर नारद जी ने कहा - कहो सेठ जी! क्या समाचार है? तीन जन्म तों हो गया।  अब भगवान् कृष्ण के धाम के सम्बन्ध में क्या विचार है?

कुत्ता रुपी सेठ ने कहा - महाराज! आप बड़े दयालु हैं। एक ओर मैं आपकी दयालुता देखता हूँ और दूसरी ओर लड़कों का आलस्य और बदइन्तजामी। महाराज! ये इतने आलसी हो गये हैं हि मैं दरवाजे पर न रहूँ तो दिन में ही लोग इन्हें लूट ले जाँय। इसलिये सोचता हुँ कि जब तक हूँ, तब तक इनकी रक्षा रहे तो अच्छा। थोड़े दिन में जरूर चलूँगा।

नारद जी फिर लौट गये। चार - छःह वर्ष में फिर आये तो कुत्ता दरवाजे पर नहीं दिखा। लड़कों से पूछा तो पता चला कि वह मर गया है। ध्यान लगाकर देखा तो मालूम हुआ कि इस बार सेठजी सर्प होकर उसी घर के तलघर में कोष की रक्षा करते हुए बैठे हैं।

नारद जी वहाँ पहुँचे। कहा - कहिये सेठ जी! यहाँ आप कैसे बैठे हैं? भगवान् कृष्ण के धाम चलने का समय अभी आया कि नहीं?

सर्प ने कहा - महाराज! ये लड़के इतने फिजूलखर्ची हों गये हैं कि मैं न होता तो अब तक खजाना खाली कर देते। सोचता हूँ कि मेरी गाढ़ी कमाई का पैसा है, जितने दिन रक्षित रह जाय उतना ही अच्छा है। इसीलिये यहाँ मेरी आवश्यकता है, नहीं तो मैं तो चलने को तैयार ही हूँ।

नारद जी फिर निराश होकर लौटे। बाहर आकर उन्होंने बड़े लड़के को बुलाकर कहा कि तुम्हारे खजाने में एक भयंकर कालरूप सर्प बैठा हुआ है।  ऐसा न हो कि कभी किसी को हानि पहुँचा दे। इसलिये उसे मारकर भगा दो। ऐसा मारना कि उसके सर में लाठी न लगे। सर में लाठी पड़ने से वह मर जायगा। मरने न पावे और कूट - पीट कर उसको खजाने से बाहर कर दो।

महात्मा का आदेश पाकर लड़कों ने वैसा ही किया। सारे शरीर में लाठियों की मार लगाकर उसको लस्त कर दिया और घर के बाहर फेंक आये।

वहाँ जाकर नारद जी उससे मिले और कहा - कहिये सेठ जी! लड़कों ने तो खूब पुटपुटी लगाई।  अभी आपका मन भरा या नहीं? फिर वापिस जाकर घर की रक्षा करोगे या अब चलोगे भगवान् कृष्ण के धाम ? सर्प ने कहा - हाँ महाराज! अब चलेंगे।

तात्पर्य यह है कि गृह में, पुत्र में, धन में, स्त्री आदि में प्रेम हो जाने पर कई जन्म तक वह प्रेम - बन्धन शिथिल नहीं होता और कई जन्मों तक उसी के कारण अनेक यातनायें सहनी पड़ती हैं। इसीलिये कहा जाता है कि संसार में प्रेम मत फँसाओ। यहाँ प्रेम करोगे तो कई जन्म तक रोना पड़ेगा ।
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भाद्रपद कुशोत्पाटिनी अमावस्या विशेष

भाद्रपद कुशोत्पाटिनी अमावस्या विशेष
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हिन्दू धर्म में अमावस्या की तिथि पितरों की आत्म शांति, दान-पुण्य और काल-सर्प दोष निवारण के लिए विशेष रूप से महत्व रखती है। चूंकि भाद्रपद माह भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का महीना होता है इसलिए भाद्रपद अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिये कुशा एकत्रित की जाती है। कहा जाता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली कुशा यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह पुण्य फलदायी होती है। अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतियों में कुशा का प्रमुख स्थान है। इसका वैज्ञानिक नाम Eragrostis cynosuroides है। इसको कांस अथवा ढाब भी कहते हैं। जिस प्रकार अमृतपान के कारण केतु को अमरत्व का वर मिला है, उसी प्रकार कुशा भी अमृत तत्त्व से युक्त है।

अत्यन्त पवित्र होने के कारण इसका एक नाम पवित्री भी है। इसके सिरे नुकीले होते हैं। इसको उखाड़ते समय सावधानी रखनी पड़ती है कि यह जड़ सहित उखड़े और हाथ भी न कटे। कुशल शब्द इसीलिए बना।

इस वर्ष कुशोत्पाटिनी अमावस्या 30 अगस्त दिन शुक्रवार को पड़ रही है। कुशोत्पाटिनी अमावस्या मुख्यत: पूर्वान्ह में मानी जाती है।

भाद्रपद्र कुशोत्पाटिनी अमावस्या व्रत में किये जाने वाले धार्मिक कर्म
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स्नान, दान और तर्पण के लिए अमावस्या की तिथि का अधिक महत्व होता है।भाद्रपद कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन किये जाने वाले धार्मिक कार्य इस प्रकार हैं।

👉  इस दिन प्रातःकाल उठकर किसी नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद बहते जल में तिल प्रवाहित करें।

👉  नदी के तट पर पितरों की आत्म शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें।

👉  इस दिन कालसर्प दोष निवारण के लिए पूजा-अर्चना भी की जा सकती है।

👉  अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों को स्मरण करें। पीपल की सात परिक्रमा लगाएं।

👉  अमावस्या शनिदेव का दिन भी माना जाता है। इसलिए इस दिन उनकी पूजा करना जरूरी है।

भाद्रपद अमावस्या का महत्व
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पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:।
कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया॥

हर माह में आने वाली अमावस्या की तिथि का अपना विशेष महत्व होता है। हिन्दू धर्म में कुश के बिना किसी भी पूजा को सफल नहीं माना जाता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के लिये कुशा एकत्रित की जाती है, इसलिए इसे कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है। वहीं पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। यदि भाद्रपद अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इस कुशा का उपयोग 12 सालों तक किया जा सकता है।

किसी भी पूजन के अवसर पर पुरोहित यजमान को अनामिका उंगली में कुश की बनी पवित्री पहनाते हैं। शास्त्रों में 10 प्रकार के कुश का वर्णन है।

कुशा:काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।

मान्यता है कि घास के इन दस प्रकारों में जो भी घास सुलभ एकत्रित की जा सकती हो इस दिन कर लेनी चाहिये। लेकिन ध्यान रखना चाहिये कि घास को केवल हाथ से ही एकत्रित करना चाहिये और उसकी पत्तियां पूरी की पूरी होनी चाहिये आगे का भाग टूटा हुआ न हो। इस कर्म के लिये सूर्योदय का समय उचित रहता है।

इनमें जो भी आपको मिल सके, उसे पूजा के समय या धार्मिक अनुष्ठान के समय ग्रहण करें।

ऐसे कुश का प्रयोग वर्जित
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जिस कुश का मूल सुतीक्ष्ण हो, अग्रभाग कटा न हो और हरा हो, वह देव और पितृ दोनों कार्यों में वर्जित होता है।

कुश उखाड़ने की प्रक्रिया
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अमावस्या के दिन दर्भस्थल में जाकर व्यक्ति को पूर्व या उत्तर मुख करके बैठना चाहिए। फिर कुश उखाड़ने के पूर्व निम्न मंत्र पढ़कर प्रार्थना करनी चाहिए।

कुशाग्रे वसते रुद्र: कुश मध्ये तु केशव:।
कुशमूले वसेद् ब्रह्मा कुशान् मे देहि मेदिनी।।

'विरञ्चिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।

मंत्र पढ़ने के बाद "ऊँ हूँ फट्" मंत्र का उच्चारण करते कुशा दाहिने हाथ से उखाड़ें। इस वर्ष आपके घर जो भी पूजा या धार्मिक कार्यों का आयोजन हो, उसमें इस कुश का प्रयोग करें। यह पूरे वर्षभर के लिए उपयोगी और फलदायी होता है।

कुशा:काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।

यह पौधा पृथ्वी लोक का पौधा न होकर अंतरिक्ष से उत्पन्न माना गया है। मान्यता है कि जब सीता जी पृथ्वी में समाई थीं तो राम जी ने जल्दी से दौड़ कर उन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु उनके हाथ में केवल सीता जी के केश ही आ पाए। ये केश राशि ही कुशा के रूप में परिणत हो गई। सीतोनस्यूं पौड़ी गढ़वाल में जहाँ पर माना जाता है कि माता सीता धरती में समाई थी, उसके आसपास की घास अभी भी नहीं काटी जाती है।

भारत में हिन्दू लोग इसे पूजा /श्राद्ध में काम में लाते हैं। श्राद्ध तर्पण विना कुशा के सम्भव नहीं हैं ।

कुशा से बनी अंगूठी पहनकर पूजा /तर्पण के  समय पहनी जाती है जिस भाग्यवान् की सोने की अंगूठी पहनी हो उसको जरूरत नहीं है। कुशा प्रत्येक दिन नई उखाडनी पडती है लेकिन अमावस्या की तोडी कुशा पूरे महीने काम दे सकती है और भादों की अमावस्या के दिन की तोडी कुशा पूरे साल काम आती है। इसलिए लोग इसे तोड के रख लते हैं।

केतु शांति विधानों में कुशा की मुद्रिका और कुशा की आहूतियां विशेष रूप से दी जाती हैं। रात्रि में जल में भिगो कर रखी कुशा के जल का प्रयोग कलश स्थापना में सभी पूजा में देवताओं के अभिषेक, प्राण प्रतिष्ठा, प्रायश्चित कर्म, दशविध स्नान आदि में किया जाता है।

केतु को अध्यात्म और मोक्ष का कारक माना गया है। देव पूजा में प्रयुक्त कुशा का पुन: उपयोग किया जा सकता है, परन्तु पितृ एवं प्रेत कर्म में प्रयुक्त कुशा अपवित्र हो जाती है। देव पूजन, यज्ञ, हवन, यज्ञोपवीत, ग्रहशांति पूजन कार्यो में रुद्र कलश एवं वरुण कलश में जल भर कर सर्वप्रथम कुशा डालते हैं। कलश में कुशा डालने का वैज्ञानिक पक्ष यह है कि कलश में भरा हुआ जल लंबे समय तक जीवाणु से मुक्त रहता है। पूजा समय में यजमान अनामिका अंगुली में कुशा की नागमुद्रिका बना कर पहनते हैं। 

कुशा आसन का महत्त्व
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धार्मिक अनुष्ठानों में कुश (दर्भ) नामक घास से निर्मित आसान बिछाया जाता है। पूजा पाठ आदि कर्मकांड करने से व्यक्ति के भीतर जमा आध्यात्मिक शक्ति पुंज का संचय कहीं लीक होकर अर्थ न हो जाए, अर्थात पृथ्वी में न समा जाए, उसके लिए कुश का आसन विद्युत कुचालक का कार्य करता है। इस आसन के कारण पार्थिव विद्युत प्रवाह पैरों के माध्यम से शक्ति को नष्ट नहीं होने देता है।

इस पर बैठकर साधना करने से आरोग्य, लक्ष्मी प्राप्ति, यश और तेज की भी वृद्घि होती है और साधक की एकाग्रता भंग नहीं होती। कुशा की पवित्री उन लोगों को जरूर धारण करनी चाहिए, जिनकी राशि पर ग्रहण पड़ रहा है। कुशा मूल की माला से जाप करने से अंगुलियों के एक्यूप्रेशर बिंदु दबते रहते हैं, जिससे शरीर में रक्त संचार ठीक रहता है।

यह भी कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से सभी मंत्र सिद्ध होते हैं। नास्य केशान् प्रवपन्ति, नोरसि ताडमानते। -देवी भागवत 19/32 अर्थात कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झडते और छाती में आघात यानी दिल का दौरा नहीं होता। उल्लेखनीय है कि वेद ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है।

आपको पता होगा कि कुश के ऊपर अमृत कलश रखा गया था। इसलिए इस पर अमृत का संयोग भी है। रक्षा करने वाले नागों ने जब कुश चाटने शुरू किये तब जीभ कुशों के कारण फटी थी उसकी कथा इस प्रकार से है।
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सभी साँप और गरुड़ दोनों सौतेले भाई थे, लेकिन साँपों की माँ कद्रू ने गरुड़ की माँ विनता को छल से अपनी दासी बना लिया। सभी साँपों ने गरुड़ के सामने यह शर्त रखी कि अगर वह स्वर्ग से उनके लिए अमृत लेकर आयेगा तो उसकी माँ को दासता से मुक्त कर दिया जायेगा। यह सुनकर गरुड़ ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और सभी को परास्त कर दिया। युद्ध में स्वर्ग के देवता इन्द्र को भी उसने मारकर मूर्छित कर दिया। उसका यह पराक्रम देखकर भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उसे अपना वाहन बना लिया। गरुड़ ने भगवान् विष्णु से यह वरदान भी माँग लिया कि वह हमेशा अमर रहेगा और उसे कोई नहीं मार सकेगा।

अमृत लेकर गरुड़ वापस धरती पर आ रहा था कि तभी इंद्र ने उस पर अपने वज्र से प्रहार कर दिया। गरुड़ को अमरता का वरदान मिला था, इसलिए उस पर वज्र के प्रहार का कोई असर नहीं हुआ, लेकिन गरुड़ ने इंद्र से कहा कि आपका वज्र दधीचि के हड्डियों से बना हुआ है, इसलिए मैं उनके सम्मान में अपना एक पंख गिरा देता हूँ। यह देखकर इंद्र ने कहा कि तुम जो अमृत साँपों के लिए ले जा रहे हो, उससे वह पूरी सृष्टि का विनाश कर देंगे, इसलिए अमृत को स्वर्ग में ही रहने दो।

इंद्र की बात सुनकर गरुड़ ने कहा इस अमृत को देकर वह अपनी माँ को दासता से मुक्त कराना चाहता है। वह इन्द्र से कहता है- मैं इस अमृत को जहाँ रख दूंगा, आप वहाँ से उठा लीजियेगा। गरुड़ की यह बात सुनकर इंद्र बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि तुम मुझसे कोई वर मांगो। गरुड़ ने कहा कि जिन साँपों ने मेरी माँ को अपनी दासी बनाया है, वे सभी मेरा प्रिय भोजन बने। गरुड़ अमृत लेकर साँपों के पास पहुँचा और साँपों से बोला कि मैं अमृत ले आया हूं। अब तुम मेरी माँ को अपनी दासता से मुक्त कर दो। साँपों ने ऐसा ही किया और उसकी माँ को मुक्त कर दिया। गरुड़ अमृत को एक कुश के आसन पर रख कर बोलता है कि तुम सभी पवित्र होकर इसको पी सकते हो।

सभी साँपों ने मिलकर विचार किया और स्नान करने चले गये। दूसरी तरफ इंद्र वहुं घात लगाकर बैठे हुए थे। जैसे ही सभी सांप चले जाते हैं, इन्द्र अमृत कलश लेकर स्वर्ग भाग जाते हैं। जब साँप वापस आये तो उन्होंने देखा कि अमृत कलश कुश के आसन पर नहीं है, उन्होंने सोचा कि जिस तरह से हमने छल करके गरुड़ की माँ को अपनी दासी बनाया हुआ था, उसी तरह से हमारे साथ भी छल हुआ है। लेकिन उन्हें थोड़ी देर बाद ध्यान आता है कि अमृत इसी कुश के आसन पर रखा हुआ था, तो हो सकता है, इस पर अमृत की कुछ बूंदे गिरी हों। सभी सांप कुश को अपनी जीभ से चाटने लगते हैं और उनकी जीभ कुशों के कारण बीच से दो भागों में कट जाती है।
अमृत कलश के स्पर्श के बाद से कुश और पवित्र भी माने जाते हैं।

कुशा की पवित्री का महत्त्व
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कुश की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में पहनने का विधान है, ताकि हाथ द्वारा संचित आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए, क्योंकि अनामिका के मूल में सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है। सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश प्राप्त होता है। दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकना भी है। कर्मकांड के दौरान यदि भूलवश हाथ भूमि पर लग जाए, तो बीच में कुश का ही स्पर्श होगा। इसलिए कुश को हाथ में भी धारण किया जाता है। इसके पीछे मान्यता यह भी है कि हाथ की ऊर्जा की रक्षा न की जाए, तो इसका दुष्परिणाम हमारे मस्तिष्क और हृदय पर पडता है।

पिथौरा अमावस्या
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भाद्रपद अमावस्या को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस संदर्भ में पौराणिक मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिये उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।

अमावस्या तिथि आरंभ – 19:56:55 बजे (29 अगस्त 2019)
अमावस्या तिथि समाप्त – 16:08:29 बजे (30 अगस्त 2019)
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