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बुधवार, 1 अप्रैल 2020

आज फिर एक ऐसा दौर आया है जब सत्यम_शिवम_सुन्दरम बर्षो बाद दूरदर्शन पर लौटा है।।

*रामानंद सागर को पहली बार रामायण📙🏹सीरियल दूरदर्शन📺पर दिखाने👁📳की अनुमति उस समय(1986/87)के कांग्रेस🖐शासनकाल के दौर में भी आखिर कैसे मिल पाई, कृपया पूरा जरूर पढ़ें*👇👇👇👇👇

*आज एक दौर है जब सोशल मीडिया पर लोगों का रामायण, महाभारत दिखाने का डिमांड हुआ और उधर देश के सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावेड़कर द्वारा रामायण को दूरदर्शन📺(DD national)पर दिखाने की अनुमति मिल गई पर एक दौर(कांग्रेस शासित)ऐसा भी था जब इस सीरियल को दूरदर्शन पर दिखाने के लिए इस धारावाहिक के निर्माता निर्देशक, रामानंद सागर जी को कितने पापड़ बेलने पड़े थे तब कहीं जाकर बमुश्किल जैसे तैसे इस सीरियल को दूरदर्शन दिखाने की अनुमति मिल पाई थी, जरूर जानिए👇कांग्रेसी शासन के उस दौर की पूरी कहानी को।👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇*

*रामानंद सागर द्वारा निर्मित जिस रामायण टीवी सीरियल ने 80 90 के दशक के उस दौर में लोगों  को अपना दीवाना बना दिया था, इस सीरियल की दूरदर्शन टीवी चैनल पर आने की कहानी की शुरुआत १९७६ में शुरू हुई, जब फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए, एक शाम जब वे वहां के एक पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा। वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।*

*भारत मे टीवी १९५९ में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। १९७५ में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि १९८२ में एशियाड खेलों का प्रसारण सम्पूर्ण देश मे होने लगा था। १९८४ में 'बुनियाद' और 'हम लोग' की आशातीत सफलता ने टीवी की लोकप्रियता में और बढ़ोतरी की।*

*इधर रामानंद सागर उत्साह से रामायण की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन टीवी में प्रवेश को उनके साथी आत्महत्या करने जैसा बता रहे थे। सिनेमा में अच्छी पोजिशन छोड़ टीवी में जाना आज भी फ़िल्म मेकर के लिए आत्महत्या जैसा ही है। रामानंद इन सबसे अविचलित अपने काम मे लगे रहे। उनके इस काम पर कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं हुआ।*

*जैसे-तैसे वे अपना पहला सीरियल 'विक्रम और वेताल' लेकर आए। सीरियल बहुत सफल हुआ। हर आयुवर्ग के दर्शकों ने इसे सराहा। यहीं से टीवी में स्पेशल इफेक्ट्स दिखने लगे थे। विक्रम और वेताल को तो दूरदर्शन ने अनुमति दे दी थी लेकिन रामायण का कांसेप्ट न दूरदर्शन को अच्छा लगा, न तत्कालीन कांग्रेस सरकार को। यहां से रामानंद के जीवन का दुःखद अध्याय शुरू हुआ।*

*दूरदर्शन 'रामायण' दिखाने पर सहमत था किंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार इस पर आनाकानी कर रही थी। दूरदर्शन अधिकारियों ने जैसे-तैसे रामानंद सागर को स्लॉट देने की अनुमति सरकार से ले ली। ये सारे संस्मरण रामानंद जी के पुत्र प्रेम सागर ने एक किताब में लिखे थे। तो दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में रामायण को लेकर अंतर्विरोध देखने को मिल रहा था। सूचना एवं प्रसारण मंत्री बीएन गाडगिल को डर था कि ये धारावाहिक न केवल हिन्दुओं में गर्व की भावना को जन्म देगा अपितु तेज़ी से उभर रही भारतीय जनता पार्टी को भी इससे लाभ होगा।*

*इससे पहले रामानंद को अत्यंत कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। वे दिल्ली के चक्कर लगाया करते कि दूरदर्शन उनको अनुमति दे दे लेकिन सरकारी घाघपन दूरदर्शन में भी व्याप्त था। घंटों वे मंडी हाउस में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतज़ार करते। कभी वे अशोका होटल में रुक जाते, इस आस में कि कभी तो बुलावा आएगा। एक बार तो रामायण के संवादों को लेकर डीडी अधिकारियों ने उनको अपमानित किया। ये वहीं समय था जब रामानंद सागर जैसे निर्माताओं के पैर दुबई के अंडरवर्ल्ड के कारण उखड़ने लगे थे। दुबई का प्रभाव बढ़ रहा था, जो आगे जाकर दाऊद इंडस्ट्री में परिवर्तित हो गया।* 

*१९८६ में श्री राम की कृपा हुई। अजित कुमार पांजा ने सूचना व प्रसारण का पदभार संभाला और रामायण की दूरदर्शन में एंट्री हो गई। २५ जनवरी १९८७ को ये महाकाव्य डीडी पर शुरू हुआ। ये दूरदर्शन की यात्रा का महत्वपूर्ण बिंदु था। दूरदर्शन के दिन बदल गए। राम की कृपा से धारावाहिक ऐसा हिट हुआ कि रविवार की सुबह सड़कों पर स्वैच्छिक जनता कर्फ्यू लगने लगा।*

*इसके हर एपिसोड पर एक लाख का खर्च आता था, जो उस समय दूरदर्शन के लिए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। राम बने अरुण गोविल और सीता बनी दीपिका चिखलिया की प्रसिद्धि फिल्मी कलाकारों के बराबर हो गई थी। दीपिका चिखलिया को सार्वजनिक जीवन मे कभी किसी ने हाय-हेलो नही किया। उनको सीता मानकर ही सम्मान दिया जाता था।* 

*अब नटराज स्टूडियो साधुओं की आवाजाही का केंद्र बन गया था। रामानंद से मिलने कई साधु वहां आया करते। एक दिन कोई युवा साधु उनके पास आया। उन्होंने ध्यान दिया कि साधु का ओरा बहुत तेजस्वी है। साधु ने कहा वह हिमालय से अपने गुरु का संदेश लेकर आया है। तत्क्षण साधु की भाव-भंगिमाएं बदल गई। वह गरज कर बोला ' तुम किससे इतना डरते हो, अपना घमंड त्याग दो। तुम रामायण बना रहे हो, निर्भिक होकर बनाओ। तुम जैसे लोगों को जागरूकता के लिए चुना गया है। हिमालय के दिव्य लोक में भारत के लिए योजना तैयार हो रही है। अतिशीघ्र भारत विश्व का मुखिया बनेगा।'*

*आश्चर्य है कि रामानंद जी को अपने कार्य के लिए हिमालय के अज्ञात साधु का संदेश मिला। आज इतिहास उस दौर का पुनरावृत्ति कर रहा है। उस समय जनता धार्मिक धारावाहिक देखने के लिए स्वयं कर्फ्यू लगा देती थी, आज कोरोना ने लगवा दिया है। उस समय दस करोड़ लोग इसे देखते थे, पर आज इससे भी अधिक लोग इसे देखें रहें हैं। उन करोड़ों की सामूहिक चेतना हिमालय के उन गुरु तक शायद पुनः पहुंच सकेगी। शायद फिर कोई युवा साधु चला आए और हम कोरोना से लड़ रहे इस युद्ध मे विजयी बन कर उभरे, और कोरोना का पूरी तरह से वध हो सके।*
👏👏👏👏👏👏
*आज फिर एक ऐसा दौर आया है जब सत्यम_शिवम_सुन्दरम बर्षो बाद दूरदर्शन पर लौटा है।।*

*अस्सी के दशक में भारत में पहली बार #रामायण जैसे हिन्दू धार्मिक सीरियलों का दूरदर्शन पर प्रसारण शुरू हुआ... और नब्बे के दशक आते आते #महाभारत ने ब्लैक एंड वाईट टेलीविजन पर अपनी पकड मजबूत कर ली, यह वास्तविकता है की जब रामायण दूरदर्शन 1 पर रविवार को शुरू होता था... तो सड़कें, गलियाँ सूनी हो जाती थी।*

*उस समय लोगों को अपने आराध्य को टीवी पर देखने की ऐसी दीवानगी थी की रामायण सीरियल में राम बने अरुण गोविल अगर सामने आ जाते तो लोगों में उनके पैर छूने की होड़ लग जाती... इन दोनों धार्मिक सीरियलों ने नब्बे के दशक में लोगो पर पूरी तरह से जादू सा कर दिया...पर सनातनधर्म को धर्म को अफीम समझने वाले इन कम्युनिस्टों से ये ना देखा गया नब्बे के दशक में कम्युनिस्टों ने इस बात की शिकायत राष्ट्रपति से की... कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में एक समुदाय के प्रभुत्व को बढ़ावा देने वाली चीज़े दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय चैनलों पर कैसे आ सकती है ??? इससे हिन्दुत्ववादी माहौल बनता है... जो की धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा है।*

*इसी वजह से सरकार को उन दिनों “अकबर दी ग्रेट ” टीपू सुलतान.... अलिफ़ लैला.... और ईसाईयों के लिए “दयासागर “जैसे धारावाहिकों की शुरुवात भी दूरदर्शन पर करनी पड़ी, सत्तर के अन्तिम दशक में जब मोरार जी देसाई की सरकार थी और लाल कृष्ण अडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री थे... तब हर साल एक केबिनट मिनिस्ट्री की मीटिंग होती थी जिसमे विपक्षी दल भी आते थे.... मीटिंग की शुरुवात में ही एक वरिष्ठ कांग्रेसी जन उठे और अपनी बात रखते हुवे कहा की.... ये रोज़ सुबह साढ़े छ बजे जो रेडियो पर जो भक्ति संगीत बजता है... वो देश की धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है... इसे बंद किया जाए,, बड़ा जटिल प्रश्न था उनका... उसके कुछ सालों बाद बनारस हिन्दू विद्यालय के नाम से हिन्दू शब्द हटाने की मांग भी उठी... स्कूलों में रामयण और हिन्दू प्रतीकों और परम्पराओं को नष्ट करने के लिए.... सरस्वती वंदना कांग्रेस शासन में ही बंद कर दी गई... महाराणा प्रताप की जगह अकबर का इतिहास पढ़ाना... ये कांग्रेस सरकार की ही देन थी.... केन्द्रीय विद्यालय का लोगो दीपक से बदल कर चाँद तारा रखने का सुझाव कांग्रेस का ही था... भारतीय लोकतंत्र में हर वो परम्परा या प्रतीक जो हिंदुओ के प्रभुत्व को बढ़ावा देता है को सेकुलरवादियों के अनुसार धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है... किसी सरकारी समारोह में दीप प्रज्वलन करने का भी ये विरोध कर चुके है... इनके अनुसार दीप प्रज्वलन कर किसी कार्य का उद्घाटन करना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है.... जबकि रिबन काटकर उद्घाटन करने से देश में एकता आती है... कांग्रेस यूपीए सरकार के समय हमारे रास्ट्रीय चैनल दूरदर्शन से “सत्यम शिवम सुन्दरम” को हटा दिया गया था, पर ये भूल गए है कि ये देश पहले भी हिन्दू राष्ट्र था और आज भी है ये स्वयं घोषित हिन्दू देश है... आज भी भारतीय संसद के मुख्यद्वार पर “धर्म चक्र प्रवार्ताय अंकित है.... राज्यसभा के मुख्यद्वार पर “सत्यं वद--धर्मम चर“ अंकित है.... भारतीय न्यायपालिका का घोष वाक्य है “धर्मो रक्षित रक्षितः“.... और सर्वोच्च न्यायलय का अधिकारिक वाक्य है, “यतो धर्मो ततो जयः “यानी जहाँ धर्म है वही जीत है.... आज भी दूरदर्शन का लोगो... सत्यम शिवम् सुन्दरम है।*

*पर ये भूल गए हैं की आज भी सेना में किसी जहाज या हथियार टैंक का उद्घाटन नारियल फोड़ कर ही किया जाता है... ये भूल गए है की भारत की आर्थिक राजधानी में स्थित मुंबई शेयर बाजार में आज भी दिवाली के दिन लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है... ये कम्युनिस्ट भूल गए है की स्वयं के प्रदेश जहाँ कम्युनिस्टों का 34 साल शासन रहा, वो बंगाल.... वहां आज भी घर घर में दुर्गा पूजा होती है... ये भूल गए है की इस धर्म निरपेक्ष देश में भी दिल्ली के रामलीला मैदान में स्वयं भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति राम-लक्ष्मण की आरती उतारते है... और ये सारे हिंदुत्ववादी परंपराए इस धर्मनिरपेक्ष मुल्क में होती है...*

*ये धर्म को अफीम समझने वाले कम्युनिस्टों....!तुम धर्म को नहीं जानते.... . और इस सनातन धर्मी देश में तुम्हारी शातिर बेवकूफी अब ज्यादा दिन तक चलेगी नही ...... अब भारत जाग रहा है ,अपनी संस्कृति को पहचान रहा है।*

मंगलवार, 31 मार्च 2020

मन्दिरों पर नकारात्मक टिप्पणी करने वाले इन प्रश्नों का उत्तर दें

मन्दिरों पर नकारात्मक टिप्पणी करने वाले इन प्रश्नों का उत्तर दें।
1. तुम महीने में मन्दिर कितनी बार जाते।
उत्तर: 1, 2 या 0
Then you have no right to comment on temples

2. तुम महीने में मदिरालय कितनी बार जाते हो
उत्तर: 15 बार या उस से ज्यादा
Then you should ask Bars to donate money not temples

3. तुम Mall कितनी बार जाते हो।
उत्तर: लगभग हर महीने
Then you should ask Malls to donate

4. तुम सिनेमा कितनी बार जाते हो
उत्तर: Every month
Then you should ask them to donate

5. तुम Restaurant कितनी बार जाते हो
उत्तर: I like outing with family on weekends
Then you should ask restaurants to donate

6. यदि कभी मन्दिर चले भी गए तो दान पेटी में कितने रुपये अर्पित करते हो
उत्तर: 10 रुपये
Then you have no right to ask the temples.

7. क्या तुम मन्दिरों में तुम्हारी आस्था है।
उत्तर: नहीं, ये तो ब्राह्मणों के ढकोसले हैं, I follow buddhism 
You are free to practice any religion but you have no right to comment on hindu temples.

8.तेरा, तेरी बीबी का, तेरी बेटी का मोबाइल फोन कौन सी कम्पनी का है
उत्तर: MI, Samsung, Apple

9. तेरा Laptop कौन सी कम्पनी का है
उत्तर: Dell, HP, Lenovo, Apple Mcbook 
Then you should ask these companies to donate 

एक बार का तुलनात्मक खर्चा
मन्दिर: 10 रुपये
Mall: 1000 रुपये
Wine Shop: 400 रुपये
Restaurants: Rs.500
Grocery Shop: Rs.1000
Vegetable Shop: Rs.250
Jewellery Shop: Rs.10K
Footwear Shop: I like branded Rs.3000
Mobile phone: Rs.20K
Laptop: 30 K

आपने गिरेबान में झांकें
क्या आपको मन्दिरों पर टिप्पणी करने का अधिकार है।

नोट: अनुमानित 0.0005% लोग जो मन्दिरों पर थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च करते हैं, उनकी मन्दिरों में गहन आस्था होती है वो मूर्खों की तरह नकारात्मक टिप्पणी नहीं करेंगे।
मन्दिर तुमको कभी दान देने के लिए बाध्य नहीं करते। तूम वहां मुफ्त में भंडारा भी खा सकते हो, और तूम जो कभी कभार 10 रुपये अर्पित कर आये हो वो आगे से कभी मत करना। मन्दिर को तुम्हारे पैसों की कोई आवश्यकता नहीं है।

जानकारी के लिए बता दूँ कि बहुत से मन्दिरों ने COVID-19 राहत कोष में दान दे दिया है

copy 
साभार

उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि भारत कैसे विदेशियों को प्रभावित कर रहा है

मैं विभिन्न सामाजिक मीडिया समूहों और इंटरनेट फोरमों पर नजर रख रहा हूं, जिनके दुनिया भर में लाखों उपयोगकर्ता हैं। जैसा कि अपेक्षित था, इन दिनों हर जगह चर्चा का एकमात्र विषय है - कोरोना।

जबकि अधिकांश चर्चाएँ ज्यादातर सावधानियों और अद्यतनों के बारे में होती हैं, भारत इस मुद्दे को जिस प्रकार से संभाल रहा है आज एक महत्वपूर्ण संख्या में उपयोगकर्ताओं ने अब उस परिपक्वता के बारे में चर्चा करना शुरू कर दिया है। हाल ही में जब तक भारत, एक तीसरे विश्व राष्ट्र के रूप में माना जाता था, अब विश्व स्तर पर सम्मान और मान्यता प्राप्त कर रहा है।

निम्नलिखित कुछ उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि भारत कैसे विदेशियों को प्रभावित कर रहा है -

1) सबसे पहले, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कई ऐसे शुरुआती चरणों में भी भारतीय सरकार के त्वरित उपायों और सक्रिय पहल से प्रभावित हैं। इस प्रशंसा का कारण यह है कि अन्य सभी देशों में, मामलों में तेजी से वृद्धि के बावजूद, उनकी सरकारें इस मुद्दे की अनदेखी कर रही थीं, और कुछ इसे लापरवाही से भी ले रही थीं, जबकि भारत उन बहुत कम राष्ट्रों में से एक है जहाँ सरकार अपने स्तर से ही निपटने के लिए कार्रवाई में कूद पड़ी है। इसने कई विदेशियों, विशेषकर अमेरिकियों को प्रभावित किया है।

2) भारत में सख्त तालाबंदी और पुलिस बंदोबस्त जैसे मजबूत उपायों की यूरोप के लोगों द्वारा सराहना की जा रही है। यहां कारण यह है कि यूरोप आमतौर पर एक अत्यधिक लोकतांत्रिक महाद्वीप है जहां लोगों को लचीलापन देने पर अधिक जोर दिया जाता है। इसलिए, उन्हें यह थोड़ा अजीब लगता है जब वे कर्फ्यू के दौरान सड़कों से उल्लंघनकर्ताओं का बलपूर्वक पीछा करते हुए भारतीय पुलिस के दृश्य को देखते हैं। वास्तव में, इटालियंस उन दृश्यों से बहुत प्रभावित हुए हैं जहां भारतीय पुलिसकर्मियों ने उल्लंघनकर्ताओं पर लाठीचार्ज किया है, क्योंकि इटालियंस इस मुद्दे की गंभीरता को जानते हैं, और इसलिए उन्हें लगता है कि भारतीय पुलिस द्वारा इस तरह की क्रूरता पूरी तरह से उचित है, और बड़े लोगों के हित में है

3) कई, विशेष रूप से अमेरिकी, भारतीयों की शांति से प्रभावित हैं, जो एक राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के बावजूद आवश्यक वस्तुओं की पागल होर्डिंग का सहारा नहीं ले रहे हैं। उदाहरण के लिए, अब भी, अधिकांश अमेरिकी स्टोर लगभग खाली हैं, और अमेरिकी इन मुद्दों पर दुकानों में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। हालाँकि, भारत में, सब कुछ बिना किसी जमाखोरी या कमी के आसानी से चल रहा है।

4) लगभग हर कोई सामाजिक गड़बड़ी का पालन करने के लिए भारतीयों द्वारा इस्तेमाल किए गए अभिनव तरीकों से प्रभावित है। उदाहरण के लिए, कतारों में लोगों के बीच उचित दूरी सुनिश्चित करने के लिए रंगोली पाउडर का उपयोग करके तैयार किए गए सर्किल और बक्से ने वास्तव में यूरोपीय और अमेरिकी लोगों को प्रभावित किया है।

5) दुनिया स्पष्ट रूप से देख रही है कि कैसे भारतीय इन समस्याओं को हल करने के लिए अपने कौशल का उपयोग कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर, पीएम मोदी के आइसीयू वार्डों में ट्रेन के डिब्बों को मोड़ने और रेलवे द्वारा उन्हें भारत के सभी हिस्सों में भेजने के विचार ने कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है, क्योंकि यह इतना सरल और व्यावहारिक है।

6) Mylab से कम लागत वाली किट, महिंद्रा कंपनी के इंजीनियरों द्वारा विकसित कम लागत वाले वेंटिलेटर। ये सभी भारतीय इंजीनियरों को इन नवीन और किफायती समाधानों के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में मदद करने के अवसर की ओर भी बढ़ा रहे हैं। हर कोई इनकी बहुत सराहना करता है, और अब अपने स्वयं के इंजीनियरों को इसका पालन करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।

7) भारत में सार्वजनिक भागीदारी एक ऐसी चीज है जिसने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है। शायद इसलिए कि पश्चिम में भारत के बारे में आम धारणा यह है कि भारतीय निरक्षर, आलसी आदि होते हैं, इसलिए जब वे भारतीयों को जनता के कर्फ्यू जैसे विभिन्न माध्यमों से भागीदारी के लिए बुलाते हैं, जैसे कि स्वास्थ्य कर्मी, स्वास्थ्य कर्मियों के लिए जयकार करना, इत्यादि उत्साह से। यह धारणा कि भारतीय वास्तव में अपने राष्ट्र की देखभाल करते हैं, इस मुद्दे से लड़ने के लिए गंभीर हैं, आदि।

8) अंतिम, किंतु यह अंत नहीं। अंत में, एक मजबूत और भरोसेमंद नेतृत्व के कारण भारत एक नए पाॅवर हाउस के रूप में उभर रहा है। भारतीय पीएम इस मुद्दे से गंभीरता से निपट रहे हैं और स्पष्टता और ध्यान केंद्रित करना शुरू कर चुके हैं। इस वैश्विक संकट के दौरान, जब चीन एक धोखेबाज की तरह काम कर रहा है, यूरोप अपने घुटनों पर आ चुका है, और अमेरिका एक बिना सिर वाले चिकन की तरह चल रहा है, हाल ही में हुए सभी शिखर सम्मेलनों में भारतीय पीएम के शब्द हृदयस्पर्शी और प्रेरणादायक आत्मविश्वास वाले रहे हैं। कुछ मायनों में, पीएम मोदी अब एक वैश्विक नेता की भूमिका निभा रहे हैं, निर्वात को भर रहे हैं, प्रभार ले रहे हैं और दुनिया का मार्गदर्शन कर रहे हैं, ठीक उसी तरह जैसे कि अब्राहम लिंकन जैसे नेताओं ने लंबे समय पहले नेतृत्व शून्य को भरा था और दुनिया को प्रेरित किया था। यह ऐसी चीज है जिसे दुनिया के बाकी लोग भी नोटिस करने लगे हैं, और उसी को स्वीकार कर रहे हैं।

रविवार, 29 मार्च 2020

घर पर रहते हुए 21 दिन lockdown में कुछ अच्छे प्रयोग किए जा सकते हैं #corona by master kunj ladha

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2878962315523764&id=606947786058573  

6 year little child of 2nd class

link open karke pura video dekhw
iska manobal badhaye like and comment kare
#corona


Hi. My name is kunj maheshwari. from  stepping stones secondary school Jodhpur Class 2nd 



 Look at my video of good habits that should be practiced amid the #COVID-19 pandemic. Do yoga, exercise, learn piano, sing, play indoor games during these quarantine days like i am doing in the video.

dont go outside 

make social distances 

wash your hands 

apply mask on your face 

spread this message to everybody


like share and comment 

thanks 

regards 


मेरे प्यारे भारतवासियों नमस्कार

 मेरा नाम कुंज माहेश्वरी है 

मैं  stepping stones secondary school, Jodhpur की कक्षा 2nd मैं पढ़ता हूं


जैसा कि आप सभी जानते हैं पूरे भारत में कोरोनावायरस बहुत तेजी से फैल रहा है इसको रोकने के लिए 21 दिन के lockdown में सभी को घर से बाहर नहीं निकलना है एवं घर पर रहते हुए 21 दिन में कुछ अच्छे प्रयोग किए जा सकते हैं जैसे मैं घर पर रहकर सुबह जल्दी उठकर योगा सीख रहा हूं सूर्य नमस्कार करता हूं छत पर रहकर साइकिल सीख रहा हूं पियानो सीख रहा हूं कंप्यूटर सीख रहा हूं इंडोर गेम्स सीख रहा हूं 

आप भी इस प्रकार की एक्टिविटी करते हुए कोरोनावायरस को फैलने से बचाने के लिए घर पर रहे 

एवं समय-समय पर साबुन से हाथ धोए 

मास्क लगाएं सोशल डिस्टेंस रखें 

घर से बाहर ना निकले 

दूसरों को भी इस बारे में बताएं इस वीडियो को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें लाइक और कमेंट करें


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गुरुवार, 26 मार्च 2020

देश जल्द ही अपने नए मास्टर.. चीन के गुलाम हो जाएंगे

क्या ख़ूब खेला ... चीन

SCENE I 
पर्दा खुलता है: चीन बीमार हो जाता है, एक "संकट" में प्रवेश करता है और अपने व्यापार को पंगु बना देता है। पर्दा बंद हो जाता है। 

SCENE II  
पर्दा खुलता है: चीनी मुद्रा का अवमूल्यन होता है। वे कुछ नहीं करते। पर्दा बंद हो जाता है। 

SCENE III 
" पर्दा खुलता है :: यूरोप और अमरीका की कंपनियों के व्यापार में कमी के कारण जो चीन में स्थित हैं, उनके शेयरों में उनके मूल्य का 40% हिस्सा है।  

SCENE IV। 
पर्दा खोलता है :: दुनिया बीमार है, चीन यूरोप और अमेरिका में कंपनियों के 30% शेयर बहुत कम कीमत पर खरीदता है। पर्दा बंद हो जाता है। 

SCENE V. 
पर्दा खोलता है: चीन इस बीमारी को नियंत्रित करता है और और अब जिन यूरोप और अमेरिका में स्थित कंपनियों का मालिक चीन है उनके लिये वह तय करता है कि ये कंपनियां चीन में रहेंगी और यकायक चीन 20,000 बिलियन $ कमा लेता है । पर्दा बंद हो जाता है। 
कैसा रहा अब तक का खेल?


SCENE VI:  

शह और मात!   

फिर से देखना लेकिन सच है 
कल और आज के बीच दो वीडियो वाइरल हुए हैं, जिनसे मुझे कुछ संदेह हुआ, लेकिन इसके लिए कोई ठोस आधार नहीं था। यह सिर्फ मेरी अटकल थी, किन्तु अब मुझे विश्वास है कि कोरोनोवायरस का जानबूझकर स्वयं चीन द्वारा प्रचारित किया गया था। वो तो पहले से ही  तैयार थे। 
कोरोना का रोल शुरू होने के तीन हफ्ते बाद, 14 दिन में 12,000 बिस्तर वाले अस्पताल का निर्माण कर लिया। 

बहुत बढ़िया। 

कल उन्होंने घोषणा की कि उन्होंने महामारी को रोक दिया है। वे जश्न मनाते हुए वीडियो में दिखाई देते हैं, वे घोषणा करते हैं कि उनके पास एक टीका भी है। किसी भी वाइरस की सभी आनुवंशिक जानकारी के बिना वे इसे इतनी जल्दी कैसे बना सकते हैं? 
वैसे अगर आप ही “सूत्र” के जनक हैं तो यह बिल्कुल मुश्किल नहीं है।  

और आज मैंने एक वीडियो देखा जो बताता है कि कैसे डेन जिओ पिंग ने पश्चिम को एक लोलीपोप दिया। कोरोनावायरस के कारण, चीन में पश्चिमी कंपनियों की कार्रवाई नाटकीय रूप से गिर गई। चीन ने उनको तब ख़रीदा जब वे काफी नीचे चले गई। 
अब चीन, अमेरिका और यूरोप द्वारा बनाई गई चीन में इन एक्सचेंजों और उनकी पूंजी द्वारा चीन के हाथों में पारित की गई सभी प्रौद्योगिकी के साथ बनाया गया है, उनका मालिक अब चीन है  जो अब सभी तकनीकी क्षमता के साथ बढ़ रहा है और कीमतों को निर्धारित करने में सक्षम होगा तथा पश्चिम को अपनी जरूरत की हर चीज के लिये चीन की और देखना पड़ेगा ।  

हेलो क्या हाल है?  

इसमें से कोई भी संयोग से नहीं हो सकता था। चीन क्या परवाह करता है कि उसके कुछ बूढ़े मर गए? या कम उम्र के लोगों को भुगतान करने के लिए पेंशन देनी पड़ेगी,  उसकी लूट बहुत बड़ी है, बहुत बड़ी ...। और अब जबकि पूरा पश्चिम आर्थिक रूप से पराजित है, संकट में और बीमारी से स्तब्ध। और उसे नही पता  आगे क्या करना है 

एक उत्कृष्ट पैशाचिक घटना जो कम्युनिस्ट ही कर सकते है,  | नई व पुरानी कंपनियो को जोड़कर, अब चीन 1.18 ट्रिलियन होल्डिंग वाले जापान को पीछे छोड कर अमेरिकी खजाने के सबसे बड़े मालिक हैं। 

एक संभावित सादृश्य...   


कैसे सम्भव हैं कि रूस और उत्तर कोरिया में COVID 19 की घटनायें बहुत ही कम है लगभग शून्य घटनायें ...
क्या इसलिए कि वे चीन के कट्टर सहयोगी हैं दूसरी ओर संयुक्त राज्य अमेरिका / दक्षिण कोरिया / यूनाइटेड किंगडम / फ्रांस / इटली / स्पेन और एशिया गंभीर रूप से प्रभावित हैं, कैसे? 
अच्छा वुहान अचानक घातक वायरस से कैसे मुक्त हो गया चीन का कहना है कि उनके द्वारा उठाए गए कठोर शुरुआती उपाय बहुत कठोर थे और वुहान को अन्य क्षेत्रों में फैलाने के लिए बंद कर दिया गया था बीजिंग क्यों नही संक्रमित हुआ ? केवल वुहान ही क्यों? यह विचार करना दिलचस्प है .. ? 

खैर .. वुहान अब व्यापार के लिए खुला है। 


COVID 19 को व्यापार युद्ध में यूएसए द्वारा चीन की बांह मोड़ने की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए अमेरिका और उपर्युक्त सभी देश आर्थिक रूप से अब तबाह हैं जल्द ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था चीन की योजना के अनुसार ढह जाएगी। चीन जानता है कि वह अमेरिका को सैन्य रूप से नहीं हरा सकता क्योंकि अमरीका वर्तमान में दुनिया में सबसे शक्तिशाली देश है। तो वायरस का उपयोग करें ... अर्थव्यवस्था को पंगु बनाने के लिए और राष्ट्र और इसकी रक्षा क्षमताओं को पंगु बना दें।

मुझे यकीन है कि नैन्सी पेलोसी को इसमें एक हिस्सा मिला .... ट्रम्प को पछाड़ने के लिए ...। हाल ही में राष्ट्रपति ट्रम्प हमेशा से यह बताते रहे हैं कि कैसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था सभी मोर्चों पर सुधार कर रही थी और नौकरियां संयुक्त राज्य अमेरिका में वापस आ रही थीं। AMERICA GREAT AGAIN बनाने की उनकी दृष्टि को नष्ट करने का एकमात्र तरीका एक ECONOMIC HAVOC है। नैन्सी पेलोसी महाभियोग के माध्यम से ट्रम्प को नीचे लाने में असमर्थ थी ..... इसलिए चीन के साथ मिलकर एक वायरस जारी करके ट्रम्प को नष्ट कर दिया। 

वुहान की महामारी एक प्रदर्शन थी। वायरस की महामारी के चरम पर .... चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ... उन प्रभावी क्षेत्रों का दौरा करने के लिए बस एक साधारण RM 1 फेसमास्क पहन कर चले गये। राष्ट्रपति के रूप में उन्हें सिर से पैर तक ढंका जाना चाहिए था ... लेकिन ऐसा नहीं था। वायरस से किसी भी तरह के नुकसान का विरोध करने के लिए उसे पहले ही इंजेक्शन लगाया गया था। इसका मतलब है कि वायरस के निकलने से पहले ही उसका इलाज चल रहा था चीन का नजरिया गंभीर ECONOMIC COLLAPSE के कगार पर बैठे देशों से अब स्टॉक खरीदने से विश्व अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने का है ..... बाद में चीन घोषणा करेगा कि उनके मेडिकल शोधकर्ताओं ने वायरस को नष्ट करने का इलाज ढूंढ लिया है अब चीन सभी पश्चिमी गठबंधनों के शेयरों को छोड़ देगा और ये देश जल्द ही अपने नए मास्टर ..... चीन के गुलाम हो जाएंगे
साभार......

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