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बुधवार, 15 अप्रैल 2020

किसने बसाया भारतवर्ष

 : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। पहले संपूर्ण हिन्दू जाति जम्बू द्वीप पर शासन करती थी। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। जम्बू द्वीप के 9 खंड थे :- इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भरत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय।
इसमें से भरत खंड को ही भारतवर्ष कहते हैं जिसका नाम पहले अजनाभ खंड था। इस भरत खंड के भी नौ खंड थे-  इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गंधर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है। इस संपूर्ण क्षेत्र को महान सम्राट भरत के पिता, पितामह और भरत के वंशों ने बसाया था।

यह भारत वर्ष अफगानिस्तान के हिन्दुकुश पर्वतमाला से अरुणाचल की पर्वत माला और कश्मीर की हिमाल की चोटियों से कन्याकुमारी तक फैला था। दूसरी और यह हिन्दूकुश से अरब सागर तक और अरुणाचल से बर्मा तक फैला था। इसके अंतर्गत वर्तमामान के अफगानिस्तान बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, बर्मा, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया आदि देश आते थे। इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं।

इस भरत खंड में कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर, अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण आदि रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए थे।

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किसने बसाया भारतवर्ष : त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था।


वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि राम के कुल में पूर्व में जो भरत हुए उनके नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा। यहां बता दें कि पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं पड़ा।

इस भूमि का चयन करने का कारण था कि प्राचीनकाल में जम्बू द्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप था, जहां रहने के लिए उचित वातारवण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु सबसे उत्तम थी। यहीं विवस्ता नदी के पास स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे।

राजा प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बनाया दिया था और अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था। इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र अपने पुत्र सुमति को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष अर्थात भरत राजा का क्षे‍त्र।

भरत एक प्रतापी राजा एवं महान भक्त थे। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कंध एवं जैन ग्रंथों में उनके जीवन एवं अन्य जन्मों का वर्णन आता है। महाभारत के अनुसार भरत का साम्राज्य संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में व्याप्त था जिसमें वर्तमान भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिज्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा फारस आदि क्षेत्र शामिल थे।

2. प्रथम राजा भारत के बाद और भी कई भरत हुए। 7वें मनु वैवस्वत कुल में एक भारत हुए जिनके पिता का नाम ध्रुवसंधि था और जिसने पुत्र का नाम असित और असित के पुत्र का नाम सगर था। सगर अयोध्या के बहुत प्रतापी राजा थे। इन्हीं सगर के कुल में भगीरथ हुए, भगीरथ के कुल में ही ययाति हुए (ये चंद्रवशी ययाति से अलग थे)। ययाति के कुल में राजा रामचंद्र हुए और राम के पुत्र लव और कुश ने संपूर्ण धरती पर शासन किया।

3. भरत : महाभारत के काल में एक तीसरे भरत हुए। पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की गणना 'महाभारत' में वर्णित 16 सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ 'अभिज्ञान शाकुंतलम' के एक वृत्तांत अनुसार राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से भारतवर्ष का नामकरण हुआ। मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला। भारद्वाज महान ‍ऋषि थे। चक्रवर्ती राजा भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है।

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वैवस्वत मनु : ब्रह्मा के पुत्र मरीचि के कुल में वैवस्वत मनु हुए। एक बार जलप्रलय हुआ और धरती के अधिकांश प्राणी मर गए। उस काल में वैवस्वत मनु को भगवान विष्णु ने बचाया था। वैवस्वत मनु और उनके कुल के लोगों ने ही फिर से धरती पर सृजन और विकास की गाथा लिखी।

वैवस्वत मनु को आर्यों का प्रथम शासक माना जाता है। उनके 9 पुत्रों से सूर्यवंशी क्षत्रियों का प्रारंभ हुआ। मनु की एक कन्या भी थी- इला। उसका विवाह बुध से हुआ, जो चंद्रमा का पुत्र था। उनसे पुरुरवस्‌ की उत्पत्ति हुई, जो ऐल कहलाया जो चंद्रवंशियों का प्रथम शासक हुआ। उसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी, जहां आज प्रयाग के निकट झांसी बसी हुई है।

वैवस्वत मनु के कुल में कई महान प्रतापी राजा हुए जिनमें इक्ष्वाकु, पृथु, त्रिशंकु, मांधाता, प्रसेनजित, भरत, सगर, भगीरथ, रघु, सुदर्शन, अग्निवर्ण, मरु, नहुष, ययाति, दशरथ और दशरथ के पुत्र भरत, राम और राम के पुत्र लव और कुश। इक्ष्वाकु कुल से ही अयोध्या कुल चला।

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राजा हरीशचंद्र : अयोध्या के राजा हरीशचंद्र बहुत ही सत्यवादी और धर्मपरायण राजा थे। वे अपने सत्य धर्म का पालन करने और वचनों को निभाने के लिए राजपाट छोड़कर पत्नी और बच्चे के साथ जंगल चले गए और वहां भी उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी धर्म का पालन किया।

ऋषि विश्वामित्र द्वारा राजा हरीशचंद्र के धर्म की परीक्षा लेने के लिए उनसे दान में उनका संपूर्ण राज्य मांग लिया गया था। राजा हरीशचंद्र भी अपने वचनों के पालन के लिए विश्वामित्र को संपूर्ण राज्य सौंपकर जंगल में चले गए। दान में राज्य मांगने के बाद भी विश्वामित्र ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनसे दक्षिणा भी मांगने लगे।

इस पर हरीशचंद्र ने अपनी पत्नी, बच्चों सहित स्वयं को बेचने का निश्चय किया और वे काशी चले गए, जहां पत्नी व बच्चों को एक ब्राह्मण को बेचा व स्वयं को चांडाल के यहां बेचकर मुनि की दक्षिणा पूरी की।

हरीशचंद्र श्मशान में कर वसूली का काम करने लगे। इसी बीच पुत्र रोहित की सर्पदंश से मौत हो जाती है। पत्नी श्मशान पहुंचती है, जहां कर चुकाने के लिए उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं रहती।

हरीशचंद्र अपने धर्म पालन करते हुए कर की मांग करते हैं। इस विषम परिस्थिति में भी राजा का धर्म-पथ नहीं डगमगाया। विश्वामित्र अपनी अंतिम चाल चलते हुए हरीशचंद्र की पत्नी को डायन का आरोप लगाकर उसे मरवाने के लिए हरीशचंद्र को काम सौंपते हैं।

इस पर हरीशचंद्र आंखों पर पट्टी बांधकर जैसे ही वार करते हैं, स्वयं सत्यदेव प्रकट होकर उसे बचाते हैं, वहीं विश्वामित्र भी हरीशचंद्र के सत्य पालन धर्म से प्रसन्न होकर सारा साम्राज्य वापस कर देते हैं। हरीशचंद्र के शासन में जनता सभी प्रकार से सुखी और शांतिपूर्ण थी। यथा राजा तथा प्रजा।

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राजा सुदास : सम्राट भरत के समय में राजा हस्ति हुए जिन्होंने अपनी राजधानी हस्तिनापुर बनाई। राजा हस्ति के पुत्र अजमीढ़ को पंचाल का राजा कहा गया है। राजा अजमीढ़ के वंशज राजा संवरण जब हस्तिनापुर के राजा थे तो पंचाल में उनके समकालीन राजा सुदास का शासन था।

राजा सुदास का संवरण से युद्ध हुआ जिसे कुछ विद्वान ऋग्वेद में वर्णित 'दाशराज्य युद्ध' से जानते हैं। राजा सुदास के समय पंचाल राज्य का विस्तार हुआ। राजा सुदास के बाद संवरण के पुत्र कुरु ने शक्ति बढ़ाकर पंचाल राज्य को अपने अधीन कर लिया तभी यह राज्य संयुक्त रूप से 'कुरु-पंचाल' कहलाया, परंतु कुछ समय बाद ही पंचाल पुन: स्वतंत्र हो गया।

राजा कुरु के नाम पर ही सरस्वती नदी के निकट का राज्य कुरुक्षेत्र कहा गया। माना जाता है कि पंचाल राजा सुदास के समय में भीम सात्वत यादव का बेटा अंधक भी राजा था। इस अंधक के बारे में पता चलता है कि शूरसेन राज्य के समकालीन राज्य का स्वामी था। दाशराज्य युद्ध में यह भी सुदास से हार गया था। इस युद्ध के बाद भारत की किस्मत बदल गई। समाज में दो फाड़ हो गई।

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भगवान राम : वन से लौटने के बाद जब भगवान राम ने अयोध्या का शासन संभाला तो उन्होंने कई वर्षों तक भारत पर शासन किया और भारत को एकसूत्र में बांधे रखा। राम ने सभी वनवासी, आदिवासी और वानर जातियों सहित संपूर्ण भारतीय जातियों को एकसूत्र में बांधकर अखंड भारत का निर्माण किया। उनका राज्य दूर दूर तक फैला हुआ था।

राम के काल में रावण, बाली, सुमाली, जनक, मय, अहिरावण और कार्तवीर्य अर्जुन नाम के महान शासक थे, लेकिन सभी का अंत कर दिया गया था। सभी राम के राज्य में शामिल हो गए थे। 

कार्तवीर्य अर्जुन या सहस्रार्जुन यदुवंश का एक प्राचीन राजा था। वह बड़ा वीर और प्रतापी था। उसने लंका के राजा रावण जैसे प्रसिद्ध योद्धा से भी संघर्ष किया था। कार्तवीर्य अर्जुन के राज्य का विस्तार नर्मदा नदी से हिमालय तक था जिसमें यमुना तट का प्रदेश भी सम्मिलित था। कार्तवीर्य अर्जुन के वंशज कालांतर में 'हैहय वंशी' कहलाए जिनकी राजधानी 'माहिष्मती' (महेश्वर) थी। इन हैहयों से ही परशुराम का 21 बार युद्ध हुआ था। राम के काल के सभी राजाओं का अपना-अपना क्षेत्र था लेकिन राम ने संपूर्ण भारत को एकसूत्र में बांधकर एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की और जनता को क्रूर शासकों से मुक्ति दिलाई।

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भरत तृतीय : महाभारत के काल में एक तीसरे भरत हुए। पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की गणना 'महाभारत' में वर्णित 16 सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ 'अभिज्ञान शाकुंतलम' में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के जीवन के बारे में उल्लेख मिलता है।

उपदेवता मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला। भारद्वाज महान ‍ऋषि थे। चक्रवर्ती राजा भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है।

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राजा युधिष्ठिर : पांडव पुत्र युधिष्ठिर को धर्मराज भी कहते थे। इनका जन्म धर्मराज के संयोग से कुंती के गर्भ द्वारा हुआ था। महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने ही भारत पर राज किया था। महाभारत युद्ध के बाद लगभग 2964 ई. पूर्व में युधिष्ठिर का राज्यारोहण हुआ था।

युधिष्ठिर भाला चलाने में निपुण थे। वे कभी मिथ्या नहीं बोलते थे। उनके पिता ने यक्ष बनकर सरोवर पर उनकी परीक्षा भी ली थी। महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर को राज्य, धन, वैभव से वैराग्य हो गया था। वे वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करना चाहते थे किंतु समस्त भाइयों तथा द्रौपदी ने उन्हें तरह-तरह से समझाकर क्षात्रधर्म का पालन करने के लिए प्रेरित किया। उनके शासनकाल में संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप पर शांति और खुशहाली रही।

युधिष्ठिर सहित पांचों पांडव अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के पुत्र महापराक्रमी परीक्षित को राज्य देकर महाप्रयाण हेतु उत्तराखंड की ओर चले गए और वहां जाकर पुण्यलोक को प्राप्त हुए। परीक्षित के बाद उनके पुत्र जन्मेजय ने राज्य संभाला। महाभारत में जन्मेजय के 6 और भाई बताए गए हैं। ये भाई हैं- कक्षसेन, उग्रसेन, चित्रसेन, इन्द्रसेन, सुषेण तथा नख्यसेन।

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कुरुओं का अंतिम राजा निचक्षु  और नंद वंश : 1300 ईसा पूर्व तक भारत में 16 महाजनपदों थे- कुरु, पंचाल, शूरसेन, वत्स, कोशल, मल्ल, काशी, अंग, मगध, वृज्जि, चे‍दि, मत्स्य, अश्मक, अवंति, गांधार और कंबोज। अधिकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था, परंतु गण और संघ नाम से प्रसिद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह का हर व्यक्ति राजा कहलाता था। लेकिन इनमें से सबसे शक्तिशाली शासक मगथ, कुरु, पांचाल, शूरसेन और अवंति के थे। उनमें भी मगथ का शासन सबसे शक्तिशालली था।

महाभारत के बाद धीरे-धीरे धर्म का केंद्र तक्षशिला (पेशावर) से हटकर मगध के पाटलीपुत्र में आ गया। गर्ग संहिता में महाभारत के बाद के इतिहास का उल्लेख मिलता है। महाभारत युद्ध के पश्चात पंचाल पर पाण्डवों के वंशज तथा बाद में नाग राजाओं का अधिकार रहा। पुराणों में महाभारत युद्ध से लेकर नंदवंश के राजाओं तक 27 राजाओं का उल्लेख मिलता है।

इस काल में भरत, कुरु, द्रुहु, त्रित्सु और तुर्वस जैसे राजवंश राजनीति के पटल से गायब हो रहे थे और काशी, कोशल, वज्जि, विदेह, मगध और अंग जैसे राज्यों का उदय हो रहा था। इस काल में आर्यों का मुख्य केंद्र 'मध्यप्रदेश' था जिसका प्रसार सरस्वती से लेकर गंगा दोआब तक था। यही पर कुरु एवं पांचाल जैसे विशाल राज्य भी थे। पुरु और भरत कबीला मिलकर 'कुरु' तथा 'तुर्वश' और 'क्रिवि' कबीला मिलकर 'पंचाल' (पांचाल) कहलाए।

महाभारत के बाद कुरु वंश का अंतिम राजा निचक्षु था। पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठिर से 7वीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी को बनाया। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा उदयन था। निचक्षु और कुरुओं के कुरुक्षेत्र से निकलने का उल्लेख शांख्यान श्रौतसूत्र में भी है। जन्मेजय के बाद क्रमश: शतानीक, अश्वमेधदत्त, धिसीमकृष्ण, निचक्षु, उष्ण, चित्ररथ, शुचिद्रथ, वृष्णिमत सुषेण, नुनीथ, रुच, नृचक्षुस्, सुखीबल, परिप्लव, सुनय, मेधाविन, नृपंजय, ध्रुव, मधु, तिग्म्ज्योती, बृहद्रथ और वसुदान राजा हुए जिनकी राजधानी पहले हस्तिनापुर थी तथा बाद में समय अनुसार बदलती रही। बुद्धकाल में शत्निक और उदयन हुए। उदयन के बाद अहेनर, निरमित्र (खान्दपनी) और क्षेमक हुए।

नंद वंश में नंद वंश उग्रसेन (424-404), पण्डुक (404-294), पण्डुगति (394-384), भूतपाल (384-372), राष्ट्रपाल (372-360), देवानंद (360-348), यज्ञभंग (348-342), मौर्यानंद (342-336), महानंद (336-324)। इससे पूर्व ब्रहाद्रथ का वंश मगध पर स्थापित था।

अयोध्या कुल के मनु की 94 पीढ़ी में बृहद्रथ राजा हुए। उनके वंश के राजा क्रमश: सोमाधि, श्रुतश्रव, अयुतायु, निरमित्र, सुकृत्त, बृहत्कर्मन्, सेनाजित, विभु, शुचि, क्षेम, सुव्रत, निवृति, त्रिनेत्र, महासेन, सुमति, अचल, सुनेत्र, सत्यजित, वीरजित और अरिञ्जय हुए। इन्होंने मगध पर क्षेमधर्म (639-603 ईपू) से पूर्व राज किया था।


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सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य : सम्राट चन्द्रगुप्त महान थे। उन्हें 'चन्द्रगुप्त महान' कहा जाता है। सिकंदर के काल में हुए चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्युकस को दो बार बंधक बनाकर छोड़ दिया था। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य थे। चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस की पुत्री हेलन से विवाह किया था। चन्द्रगुप्त की एक भारतीय पत्नी दुर्धरा थी जिससे बिंदुसार का जन्म हुआ।

चन्द्रगुप्त ने अपने पुत्र बिंदुसार को गद्दी सौंप दी थीं। बिंदुसार के समय में चाणक्य उनके प्रधानमंत्री थे। इतिहास में बिंदुसार को 'पिता का पुत्र और पुत्र का पिता' कहा जाता है, क्योंकि वे चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र और अशोक महान के पिता थे।

चाणक्य और पौरस की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य मगध के सिंहासन पर बैठे और चन्द्रगुप्त ने यूनानियों के अधिकार से पंजाब को मुक्त करा लिया। चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन-प्रबंध बड़ा व्यवस्थित था। इसका परिचय यूनानी राजदूत मेगस्थनीज के विवरण और कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' से मिलता है। उसके राज्य में जनता हर तरह से सुखी थी।

चन्द्रगुप्त मुरा नाम की भील महिला के पुत्र थे। यह महिला धनानंद के राज्य में नर्तकी थी जिसे राजाज्ञा से राज्य छोड़कर जाने का आदेश दिया गया था और वह महिला जंगल में रहकर जैसे-तैसे अपने दिन गुजार रही थी। चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र था।

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सम्राट अशोक : अशोक महान प्राचीन भारत में मौर्य राजवंश के राजा थे। अशोक के दादा का नाम चन्द्रगुप्त मौर्य था और पिता का नाम बिंदुसार था। बिंदुसार की मृत्यु 272 ईसा पूर्व हुई थी जिसके बाद अशोक राजगद्दी पर बैठे। माना जाता है कि अशोक का मार्ग दर्शन चाणक्य के बाद 9 रहस्यमी पुरुषों ने किया था। 

अशोक महान के समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक था। बस वह कलिंग के राजा को अपने अधीन नहीं कर पाया था। कलिंग युद्ध के बाद अशोक महान गौतम बुद्ध की शरण में चले गए थे।

महात्मा बुद्ध की स्मृति में उन्होंने एक स्तंभ खड़ा कर दिया, जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल लुम्बिनी में मायादेवी मंदिर के पास अशोक स्तंभ के रूप में देखा जा सकता है।

सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य के बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है। अशोक के काल में बौद्ध धर्म की जड़ें मिस्र, सऊदी अरब, इराक, यूनान से लेकर श्रीलंका और बर्मा, थाईलैंड, चीन आदि क्षेत्र में गहरी जम गई थीं। उनके काल में इस संपूर्ण क्षेत्र में शांति और खुशहाली व्याप्त हो चली थी। कहीं भी किसी भी प्रकार का युद्ध नहीं सिर्फ बुद्ध की गुंज थी।

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पुष्‍यमित्र शुंग : बौद्ध धर्म को प्रचारित और प्रसारित करने में भिक्षुओं से ज्यादा योगदान सम्राट अशोक का था। चंद्रगुप्त मौर्य ने जहां चाणक्य के सान्निध्य में सनातन हिन्दू धर्म को संगठित कर राजधर्म लागू किया था वहीं उसके पोते सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात बौद्ध धर्म अपना लिया।

बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक महान ने राजपाट नहीं छोड़ा बल्कि एक बौद्ध सम्राट के रूप में लगभग 20 वर्ष तक शासन किया। उन्होंने अपने पूरे शासन तंत्र को बौद्ध धर्म के प्रचार व प्रसार में लगा दिया। जब भारत में नौवां बौद्ध शासक वृहद्रथ राज कर रहा था, तब ग्रीक राजा मीनेंडर अपने सहयोगी डेमेट्रियस (दिमित्र) के साथ युद्ध करता हुआ सिंधु नदी के पास तक पहुंच चुका था। सिंधु के पार उसने भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई। इस मीनेंडर या मिनिंदर को बौद्ध साहित्य में मिलिंद कहा जाता है।

कहते हैं कि मिलिंद की गति‍विधि की जानकारी बौद्ध सम्राट वृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र शुंग को लगी। पुष्यमित्र ने सम्राट वृहद्रथ से सीमावर्ती मठों की तलाशी की आज्ञा मांगी, परंतु बौद्ध सम्राट वृहद्रथ ने यह कहकर मना कर दिया कि तुम्हें व्यर्थ का संदेह है। लेकिन पुष्यमित्र शुंग ने राजाज्ञा का पालन किए बिना मठों की तलाशी ली और सभी विद्रोहियों को पकड़ लिया और भारी मात्रा में हथियार जब्त कर लिए, परंतु वृहद्रथ को आज्ञा का उल्लंघन अच्छा नहीं लगा।  हालांकि इस बात से कई लोग इनकार करते हैं।

कहते हैं कि पुष्यमित्र शुंग जब वापस राजधानी पहुंचा तब सम्राट वृहद्रथ सेना परेड लेकर जांच कर रहा था। उसी दौरान पुष्यमित्र शुंग और वृहद्रथ में कहासुनी हो गई। कहासुनी इतनी बढ़ी कि वृहद्रथ ने तलवार निकालकर पुष्यमित्र शुंग की हत्या करना चाही, लेकिन सेना को वृहद्रथ से ज्यादा पुष्यमित्र शुंग पर भरोसा था। पुष्यमित्र शुंग ने वृहद्रथ का वध कर दिया और फिर वह खुद सम्राट बन गया। इस दौरान सीमा पर मिलिंद ने आक्रमण कर दिया।

फिर पुष्यमित्र ने अपनी सेना का गठन किया और भारत के मध्य तक चढ़ आए मिनिंदर पर आक्रमण कर दिया। भारतीय सैनिकों के सामने ग्रीक सैनिकों की एक न चली। अंतत: पुष्‍यमित्र शुंग की सेना ने ग्रीक सेना का पीछा करते हुए उसे सिन्धु पार धकेल दिया।

कुछ बौद्ध ग्रंथों में लिखा है कि पुष्यमित्र ने बौद्धों को सताया था, लेकिन क्या यह पूरा सत्य है? मिलिंद पंजाब पर राज्य करने वाले यवन राजाओं में सबसे उल्लेखनीय राजा था। उसने अपनी सीमा का स्वात घाटी से मथुरा तक विस्तार कर लिया था। अब वह पाटलीपुत्र पर भी आक्रमण करना चाहता था। उससे लड़ाई के चलते ही पुष्यमित्रशुंग को इतिहास में अच्छा नहीं माना गया।

पुष्यमित्र का शासनकाल चुनौतियों से भरा हुआ था। उस समय भारत पर कई विदेशी आक्रांताओं ने आक्रमण किए, जिनका सामना पुष्यमित्र शुंग को करना पड़ा। पुष्यमित्र चारों तरफ से यवनों, शाक्यों आदि सम्राटों से घिरा हुआ था। फिर भी राजा बन जाने पर मगध साम्राज्य को बहुत बल मिला। पुराणों के अनुसार पुष्यमित्र ने 36 वर्ष (185-149 ई.पू.) तक राज्य किया। इसके बाद उसके राज्य का जब पतन हो गया, तो फिर से बौद्धों का उदय हुआ। हालांकि पुष्यमित्र शुंग के बाद 9 और शासक हुए- अग्निमित्र, वसुज्येष्ठ, वसुमित्र, अन्ध्रक, तीन अज्ञात शासक, भागवत, देवभूति।

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सम्राट विक्रमादित्य : विक्रम संवत अनुसार विक्रमादित्य आज से 2286 वर्ष पूर्व हुए थे। विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था। नाबोवाहन के पुत्र राजा गंधर्वसेन भी चक्रवर्ती सम्राट थे। गंधर्वसेन के पुत्र विक्रमादित्य और भर्तृहरी थे। विक्रमादित्य सम्राट बनें तो भर्तुहरी एक महान सिद्ध संत।

विक्रमादित्य भारत की प्राचीन नगरी उज्जयिनी के राजसिंहासन पर बैठे। विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे। इनमें कालिदास भी थे। कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था। उल्लेखनीय है कि अशोक और विक्रादित्य के शासन से प्रेरित होकर ही सम्राट अकबर ने अपने पास भी नवरत्न रखे थे।

उज्जैन के विक्रमादित्य के समय ही विक्रम संवत चलाया गया था। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राज्य भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा ईरान, इराक और अरब में भी था। विक्रमादित्य की अरब विजय का वर्णन अरबी कवि जरहाम किनतोई ने अपनी पुस्तक 'शायर उर ओकुल' में किया है।

विक्रमादित्य के पहले और बाद और ‍भी विक्रमादित्य हुए हैं जिसके चलते भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद 300 ईस्वी में समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय अथवा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य हुए।

विक्रमादित्य द्वितीय 7वीं सदी में हुए, ‍जो विजयादित्य (विक्रमादित्य प्रथम) के पुत्र थे। विक्रमादित्य द्वितीय ने भी अपने समय में चालुक्य साम्राज्य की शक्ति को अक्षुण्ण बनाए रखा।

इसके अलावा एक और विक्रमादित्य हुए। पल्‍लव राजा ने पुलकेसन को परास्‍त कर मार डाला। उसका पुत्र विक्रमादित्‍य, जो कि अपने पिता के समान महान शासक था, गद्दी पर बैठा। उसने दक्षिण के अपने शत्रुओं के विरुद्ध पुन: संघर्ष प्रारंभ किया। उसने चालुक्‍यों के पुराने वैभव को काफी हद तक पुन: प्राप्‍त किया। यहां तक कि उसका परपोता विक्रमादित्‍य द्वितीय भी महान योद्धा था।

विक्रमादित्य द्वितीय के बाद 15वीं सदी में सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य 'हेमू' हुए। माना जाता है कि उज्जैन के विक्रमादित्य के पूर्व भी एक और विक्रमादित्य हुए थे।

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चन्द्रगुप्त द्वितीय : गुप्त काल को भारत का स्वर्ण काल कहा जाता है। गुप्त वंश की स्थापना चन्द्रगुप्त प्रथम ने की थी। आरंभ में इनका शासन केवल मगध पर था, पर बाद में गुप्त वंश के राजाओं ने संपूर्ण उत्तर भारत को अपने अधीन करके दक्षिण में कांजीवरम के राजा से भी अपनी अधीनता स्वीकार कराई।

समुद्रगुप्त का पुत्र 'चन्द्रगुप्त द्वितीय' समस्त गुप्त राजाओं में सर्वाधिक शौर्य एवं वीरोचित गुणों से संपन्न था। शकों पर विजय प्राप्त करके उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की। वह 'शकारि' भी कहलाया। मालवा, काठियावाड़, गुजरात और उज्जयिनी को अपने साम्राज्य में मिलाकर उसने अपने पिता के राज्य का और भी विस्तार किया। चीनी यात्री फाह्यान उसके समय में 6 वर्षों तक भारत में रहा। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का शासनकाल भारत के इतिहास का बड़ा महत्वपूर्ण समय माना जाता है।

चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में गुप्त साम्राज्य अपनी शक्ति की चरम सीमा पर पहुंच गया था। दक्षिणी भारत के जिन राजाओं को समुद्रगुप्त ने अपने अधीन किया था, वे अब भी अविकल रूप से चन्द्रगुप्त की अधीनता स्वीकार करते थे। शक-महाक्षत्रपों और गांधार-कम्बोज के शक-मुरुण्डों के परास्त हो जाने से गुप्त साम्राज्य का विस्तार पश्चिम में अरब सागर तक और हिन्दूकुश के पार वंक्षु नदी तक हो गया था।

गुप्त वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए- श्रीगुप्त, घटोत्कच, चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, रामगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय, कुमारगुप्त प्रथम (महेन्द्रादित्य) और स्कंदगुप्त। चन्द्रगुप्त द्वितीय के काल में भारत ने हर क्षेत्र में उन्नति की। उज्जैन के सम्राट गंधर्वसेन के पुत्र राजा विक्रमादित्य के नाम से चक्रवर्ती सम्राटों को ही विक्रमादित्य की उपाधि से सम्माननीय किया जाता था।

मौर्य वंश के बाद भारत में कुषाण, शक और शुंग वंश के शासकों का भारत के बहुत बड़े भू-भाग पर राज रहा। इन वंशों में भी कई महान और प्रतापी राजा हुए। चन्द्रगुप्त मौर्य से विक्रमादित्य और फिर विक्रमादित्य से लेकर हर्षवर्धन तक कई प्रतापी राजा हुए।

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हर्षवर्धन : इस्लाम धर्म के संस्‍थापक हजरत मुहम्मद के समकालीन राजा हर्षवर्धन ने लगभग आधी शताब्दी तक अर्थात 590 ईस्वी से लेकर 647 ईस्वी तक अपने राज्य का विस्तार किया। हर्षवर्धन ने ‘रत्नावली’, ‘प्रियदर्शिका’ और ‘नागरानंद’ नामक नाटिकाओं की भी रचना की। हर्षवर्धन का राज्यवर्धन नाम का एक भाई भी था। हर्षवर्धन की बहन का नाम राजश्री था। उनके काल में कन्नौज में मौखरि वंश के राजा अवंति वर्मा शासन करते थे।

हर्ष का जन्म थानेसर (वर्तमान में हरियाणा) में हुआ था। यहां 51 शक्तिपीठों में से 1 पीठ है। हर्ष के मूल और उत्पत्ति के संदर्भ में एक शिलालेख प्राप्त हुआ है, जो कि गुजरात राज्य के गुन्डा जिले में खोजा गया है।

हर्षवर्धन ने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया था। उनके पिता का नाम प्रभाकरवर्धन था। प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के पश्चात राज्यवर्धन राजा हुआ, पर मालव नरेश देवगुप्त और गौड़ नरेश शशांक की दुरभि संधिवश मारा गया। हर्षवर्धन 606 में गद्दी पर बैठा।

हर्ष ने लगभग 41 वर्ष शासन किया। इन वर्षों में हर्ष ने अपने साम्राज्य का विस्तार जालंधर, पंजाब, कश्मीर, नेपाल एवं बल्लभीपुर तक कर लिया। इसने आर्यावर्त को भी अपने अधीन किया। हर्ष को बादामी के चालुक्यवंशी शासक पुलकेशिन द्वितीय से पराजित होना पड़ा। ऐहोल प्रशस्ति (634 ई.) में इसका उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि हर्षवर्धन ने अरब पर भी चढ़ाई कर दी थी, लेकिन रेगिस्तान के एक क्षेत्र में उनको रोक दिया गया।

6ठी और 8वीं ईसवीं के दौरान दक्षिण भारत में चालुक्‍य बड़े शक्तिशाली थे। इस साम्राज्‍य का प्रथम शास‍क पुलकेसन, 540 ईसवीं में शासनारूढ़ हुआ और कई शानदार विजय हासिल कर उसने शक्तिशाली साम्राज्‍य की स्‍थापना की। उसके पुत्रों कीर्तिवर्मन व मंगलेसा ने कोंकण के मौर्यन सहित अपने पड़ोसियों के साथ कई युद्ध करके सफलताएं अर्जित कीं व अपने राज्‍य का और विस्‍तार किया।

कीर्तिवर्मन का पुत्र पुलकेसन द्वितीय चालुक्‍य साम्राज्‍य के महान शासकों में से एक था। उसने लगभग 34 वर्षों तक राज्‍य किया। अपने लंबे शासनकाल में उसने महाराष्‍ट्र में अपनी स्थिति सुदृढ़ की व दक्षिण के बड़े भू-भाग को जीत लिया। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि हर्षवर्धन के विरुद्ध रक्षात्‍मक युद्ध लड़ना थी।

'कादंबरी' के रचयिता कवि बाणभट्ट उनके (हर्षवर्धन) के मित्रों में से एक थे। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में अराजकता की स्थिति बनी हुई थी। ऐसी स्थिति में हर्ष के शासन ने राजनीतिक स्थिरता प्रदान की। कवि बाणभट्ट ने उसकी जीवनी 'हर्षच चरित' में विस्तार से लिखी है।

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राजा भोज (राज भोज) : ग्वालियर से मिले राजा भोज के स्तुति पत्र के अनुसार केदारनाथ मंदिर का राजा भोज ने 1076 से 1099 के बीच पुनर्निर्माण कराया था। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12-13वीं शताब्दी का है। इतिहासकार डॉ. शिव प्रसाद डबराल मानते हैं कि शैव लोग आदिशंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं, तब भी यह मंदिर मौजूद था।

कुछ विद्वान मानते हैं कि महान राजा भोज (भोजदेव) का शासनकाल 1010 से 1053 तक रहा। राजा भोज ने अपने काल में कई मंदिर बनवाए। राजा भोज के नाम पर भोपाल के निकट भोजपुर बसा है। धार की भोजशाला का निर्माण भी उन्होंने कराया था। कहते हैं कि उन्होंने ही मध्यप्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल को बसाया था जिसे पहले 'भोजपाल' कहा जाता था। इनके ही नाम पर भोज नाम से उपाधी देने का भी प्रचलन शुरू हुआ जो इनके ही जैसे महान कार्य करने वाले राजाओं की दी जाती थी।

भोज के निर्माण कार्य : मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक हमारे पास हैं, उनमें से अधिकांश राजा भोज की देन हैं, चाहे विश्वप्रसिद्ध भोजपुर मंदिर हो या विश्वभर के शिवभक्तों के श्रद्धा के केंद्र उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला हो या भोपाल का विशाल तालाब- ये सभी राजा भोज के सृजनशील व्यक्तित्व की देन हैं। उन्होंने जहां भोज नगरी (वर्तमान भोपाल) की स्थापना की वहीं धार, उज्जैन और विदिशा जैसी प्रसिद्ध नगरियों को नया स्वरूप दिया। उन्होंने केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ, मुण्डीर आदि मंदिर भी बनवाए, जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर हैं।

राजा भोज ने शिव मंदिरों के साथ ही सरस्वती मंदिरों का भी निर्माण किया। राजा भोज ने धार, मांडव तथा उज्जैन में 'सरस्वतीकण्ठभरण' नामक भवन बनवाए थे जिसमें धार में 'सरस्वती मंदिर' सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। एक अंग्रेज अधिकारी सीई लुआर्ड ने 1908 के गजट में धार के सरस्वती मंदिर का नाम 'भोजशाला' लिखा था। पहले इस मंदिर में मां वाग्देवी की मूर्ति होती थी। मुगलकाल में मंद‍िर परिसर में मस्जिद बना देने के कारण यह मूर्ति अब ब्रिटेन के म्यूजियम में रखी है।

राजा भोज का परिचय : परमारवंशीय राजाओं ने मालवा के एक नगर धार को अपनी राजधानी बनाकर 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया था। उनके ही वंश में हुए परमार वंश के सबसे महान अधिपति महाराजा भोज ने धार में 1000 ईसवीं से 1055 ईसवीं तक शासन किया।

महाराजा भोज से संबंधित 1010 से 1055 ई. तक के कई ताम्रपत्र, शिलालेख और मूर्तिलेख प्राप्त होते हैं। भोज के साम्राज्य के अंतर्गत मालवा, कोंकण, खानदेश, भिलसा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़ एवं गोदावरी घाटी का कुछ भाग शामिल था। उन्होंने उज्जैन की जगह अपनी नई राजधानी धार को बनाया।

ग्रंथ रचना : राजा भोज खुद एक विद्वान होने के साथ-साथ काव्यशास्त्र और व्याकरण के बड़े जानकार थे और उन्होंने बहुत सारी किताबें लिखी थीं। मान्यता अनुसार भोज ने 64 प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की थीं तथा उन्होंने सभी विषयों पर 84 ग्रंथ लिखे जिसमें धर्म, ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, वास्तुशिल्प, विज्ञान, कला, नाट्यशास्त्र, संगीत, योगशास्त्र, दर्शन, राजनीतिशास्त्र आदि प्रमुख हैं।

उन्होंने 'समरांगण सूत्रधार', 'सरस्वती कंठाभरण', 'सिद्वांत संग्रह', 'राजकार्तड', 'योग्यसूत्रवृत्ति', 'विद्या विनोद', 'युक्ति कल्पतरु', 'चारु चर्चा', 'आदित्य प्रताप सिद्धांत', 'आयुर्वेद सर्वस्व श्रृंगार प्रकाश', 'प्राकृत व्याकरण', 'कूर्मशतक', 'श्रृंगार मंजरी', 'भोजचम्पू', 'कृत्यकल्पतरु', 'तत्वप्रकाश', 'शब्दानुशासन', 'राज्मृडाड' आदि ग्रंथों की रचना की।

'भोज प्रबंधनम्' नाम से उनकी आत्मकथा है। हनुमानजी द्वारा रचित रामकथा के शिलालेख समुद्र से निकलवाकर धारा नगरी में उनकी पुनर्रचना करवाई, जो हनुमान्नाष्टक के रूप में विश्वविख्यात है। तत्पश्चात उन्होंने चम्पू रामायण की रचना की, जो अपने गद्यकाव्य के लिए विख्यात है।

आईन-ए-अकबरी में प्राप्त उल्लेखों के अनुसार भोज की राजसभा में 500 विद्वान थे। इन विद्वानों में नौ (नौरत्न) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। महाराजा भोज ने अपने ग्रंथों में विमान बनाने की विधि का विस्तृत वर्णन किया है। इसी तरह उन्होंने नाव व बड़े जहाज बनाने की विधि का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने रोबोट तकनीक पर भी काम किया था।

मालवा के इस चक्रवर्ती, प्रतापी, काव्य और वास्तुशास्त्र में निपुण और विद्वान राजा, राजा भोज के जीवन और कार्यों पर विश्व की अनेक यूनिवर्सिटीज में शोध कार्य हो रहा है।

इसके अलवा गौतमी पुत्र शतकर्णी, यशवर्धन, नागभट्ट और बप्पा रावल, मिहिर भोज, देवपाल, अमोघवर्ष , इंद्र द्वितीय, चोल राजा, राजेंद्र चोल, पृथ्वीराज चौहान, विक्रमादित्य vi, हरिहर राय और बुक्का राय, राणा सांगा, अकबर, श्रीकृष्णदेववर्मन, महाराणा प्रताप, गुरुगोविंद सिंह, शिवाजी महाराज, पेशवा बाजीराव और बालाजी बाजीराव, महाराजा रणजीत सिंह आदि के शासन में भी जनता खुशहाल और निर्भिक रही।

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राजा हरिहर : विजयनगर साम्राज्य (लगभग 1350 ई. से 1565 ई.) की स्थापना राजा हरिहर ने की थी। 'विजयनगर' का अर्थ होता है 'जीत का शहर'। मध्ययुग के इस शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य की स्थापना के बाद से ही इस पर लगातार आक्रमण हुए लेकिन इस साम्राज्य के राजाओं से इसका कड़ा जवाब दिया। यह साम्राज्य कभी दूसरों के अधीन नहीं रहा। इसकी राजधानी को कई बार मिट्टी में मिला दिया गया लेकिन यह फिर खड़ा कर दिया गया। हम्पी के मंदिरों और महलों के खंडहरों को देखकर जाना जा सकता है कि यह कितना भव्य रहा होगा। इसे यूनेस्को ने विश्‍व धरोहर में शामिल किया है।

विजयनगर साम्राज्य की स्थापना राजा हरिहर प्रथम ने 1336 में की थी। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना में हरिहर प्रथम को दो ब्राह्मण आचार्यों- माधव विद्याराय और उसके ख्यातिप्राप्त भाई वेदों के भाष्यकार 'सायण' से भी मदद मिली थी। हरिहर प्रथम को 'दो समुद्रों का अधिपति' कहा जाता था।

अनेगुंडी के स्थान पर इस साम्राज्य का प्रसिद्ध नगर विजयनगर बनाया गया था, जो राज्य की राजधानी थी। बादामी, उदयगिरि एवं गूटी में बेहद शक्तिशाली दुर्ग बनाए गए थे। हरिहर ने होयसल राज्य को अपने राज्य में मिलाकर कदम्ब एवं मदुरा पर विजय प्राप्त की थी। दक्षिण भारत की कृष्णा नदी की सहायक तुंगभद्रा नदी इस साम्राज्य की प्रमुख नदी थी। हरिहर के बाद बुक्का सम्राट बना। उसने तमिलनाडु का राज्य विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया। कृष्णा नदी को विजयनगर तथा मुस्लिम बहमनी की सीमा मान ली गई। इस साम्राज्य में बौद्ध, जैन और हिन्दू खुद को मुस्लिम आक्रमणों से सुरक्षित मानते थे।

इस साम्राज्य की स्थापना का उद्देश्य दक्षिण भारतीयों के विरुद्ध होने वाले राजनीतिक तथा सांस्कृतिक आंदोलन के परिणामस्वरूप संगम पुत्र हरिहर एवं बुक्का द्वारा तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर स्थित अनेगुंडी दुर्ग के सम्मुख की गई। विजयनगर दुनिया के सबसे भव्य शहरों में से एक था।

इतिहासकारों के अनुसार विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 5 भाइयों वाले परिवार के 2 सदस्यों हरिहर और बुक्का ने की थी। वे वारंगल के ककातीयों के सामंत थे और बाद में आधुनिक कर्नाटक में काम्पिली राज्य में मंत्री बने थे। जब एक मुसलमान विद्रोही को शरण देने पर मुहम्मद तुगलक ने काम्पिली को रौंद डाला, तो इन दोनों भाइयों को भी बंदी बना लिया गया था। इन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया और तुगलक ने इन्हें वहीं विद्रोहियों को दबाने के लिए विमुक्त कर दिया। तब मदुराई के एक मुसलमान गवर्नर ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया था और मैसूर के होइसल और वारगंल के शासक भी स्वतंत्र होने की कोशिश कर रहे थे। कुछ समय बाद ही हरिहर और बुक्का ने अपने नए स्वामी और धर्म को छोड़ दिया। उनके गुरु विद्यारण के प्रयत्न से उनकी शुद्धि हुई और उन्होंने विजयनगर में अपनी राजधानी स्थापित की।

तीन वंश : इसके बाद इस साम्राज्य में 3 वंशों का शासन चला- शाल्व वंश, तुलुव वंश और अरविंदु वंश।

दुनिया का सबसे ताकतवर पोषण पूरक आहार है- सहजन (मुनगा)।

दुनिया का सबसे ताकतवर पोषण पूरक आहार है- सहजन (मुनगा)। इसकी जड़ से लेकर फूल, पत्ती, फल्ली, तना, गोंद हर चीज उपयोगी होती है। 
           आयुर्वेद में सहजन से तीन सौ रोगों का उपचार संभव है। सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना :- विटामिन सी- संतरे से सात गुना अधिक। विटामिन ए- गाजर से चार गुना अधिक। कैलशियम- दूध से चार गुना अधिक। पोटेशियम- केले से तीन गुना अधिक। प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना अधिक। 
            स्वास्थ्य के हिसाब से इसकी फली, हरी और सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी-काम्प्लेक्स प्रचुर मात्रा में पाई जाते हैं। इनका सेवन कर कई बीमारियों को बढ़ने से रोका जा सकता है, इसका बॉटेनिकल नाम ' मोरिगा ओलिफेरा ' है। हिंदी में इसे सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा नाम से भी जानते हैं, जो लोग इसके बारे में जानते हैं, वे इसका सेवन जरूर करते हैं। 
          सहजन का फूल पेट और कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, साइटिका, गठिया आदि में उपयोगी है। इसकी छाल का सेवन साइटिका, गठिया, लीवर में लाभकारी होता है।
सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात और कफ रोग खत्म हो जाते हैं। 
          सहजन की पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, साइटिका, पक्षाघात, वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है। साइटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखाता है। मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं और मोच के स्थान पर लगाने से जल्दी ही लाभ मिलने लगता है।
            सहजन के फली की सब्जी खाने से पुराने गठिया, जोड़ों के दर्द, वायु संचय, वात रोगों में लाभ होता है। इसके ताजे पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है साथ ही इसकी सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है। इसकी जड़ की छाल का काढ़ा सेंधा नमक और हींग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है। 
          सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उल्टी-दस्त भी रोकता है। ब्लड प्रेशर और मोटापा कम करने में भी कारगर सहजन का रस सुबह-शाम पीने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है। इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे-धीरे कम होने लगता है|
इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं और दर्द में आराम मिलता है। 
            सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होता है, इसके अलावा इसकी जड़ के काढ़े को सेंधा नमक और हींग के साथ पीने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है। इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सूजन ठीक होते हैं। 
          सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीसकर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लोरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है, बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है।
            कैंसर तथा शरीर के किसी हिस्से में बनी गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ों में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में भी लाभकारी है |
            सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द तथा दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से वायरस से होने वाले रोग, जैसे चेचक आदि के होने का खतरा टल जाता है। 
           सहजन में अधिक मात्रा में ओलिक एसिड होता है, जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिए अति आवश्यक है। सहजन में विटामिन-सी की मात्रा बहुत होती है। यह शरीर के कई रोगों से लड़ता है। यदि सर्दी की वजह से नाक-कान बंद हो चुके हैं तो, सहजन को पानी में उबालकर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होती है। सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है, जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं। इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है, इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है, गर्भवती महिला को इसकी पत्तियों का रस देने से डिलीवरी में आसानी होती है।
           सहजन के फली की हरी सब्जी को खाने से बुढ़ापा दूर रहता है इससे आंखों की रोशनी भी अच्छी होती है। सहजन को सूप के रूप में भी पी सकते हैं,  इससे शरीर का खून साफ होता है। 
            सहजन का सूप पीना सबसे अधिक फायदेमंद होता है। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। विटामिन सी के अलावा यह बीटा कैरोटीन, प्रोटीन और कई प्रकार के लवणों से भरपूर होता है, यह मैगनीज, मैग्नीशियम, पोटैशियम और फाइबर से भरपूर होते हैं। यह सभी तत्व शरीर के पूर्ण विकास के लिए बहुत जरूरी हैं। 
            कैसे बनाएं सहजन का सूप? 
सहजन की फली को कई छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं। दो कप पानी लेकर इसे धीमी आंच पर उबलने के लिए रख देते हैं, जब पानी उबलने लगे तो इसमें कटे हुए सहजन की फली के टुकड़े डाल देते हैं, इसमें सहजन की पत्तियां भी मिलाई जा सकती हैं, जब पानी आधा बचे तो सहजन की फलियों के बीच का गूदा निकालकर ऊपरी हिस्सा अलग कर लेते हैं, इसमें थोड़ा सा नमक और काली मिर्च मिलाकर पीना चाहिए। 
           १. सहजन के सूप के नियमित सेवन से सेक्सुअल हेल्थ बेहतर होती है. सहजन महिला और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फायदेमंद है। 
           २. सहजन में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाया जाता है जो कई तरह के संक्रमण से सुरक्षित रखने में मददगार है. इसके अलावा इसमें मौजूद विटामिन सी इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने का काम करता है। 
          ३. सहजन का सूप पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाने का काम करता है, इसमें मौजूद फाइबर्स कब्ज की समस्या नहीं होने देते हैं। 
          ४. अस्थमा की शिकायत होने पर भी सहजन का सूप पीना फायदेमंद होता है. सर्दी-खांसी और बलगम से छुटकारा पाने के लिए इसका इस्तेमाल घरेलू औषधि के रूप में किया जाता है। 
          ५. सहजन का सूप खून की सफाई करने में भी मददगार है, खून साफ होने की वजह से चेहरे पर भी निखार आता है। 
          ६. डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए भी सहजन के सेवन की सलाह दी जाती है।

उधार का अमीर

" उधार  का अमीर "  100 नम्बर की एक गाड़ी मेन रोड पर एक दो मंजिले मकान के बाहर आकर रुकी।
कांस्टेबल हरीश को फ़ोन पर यही पता लिखाया गया था।पर यहां तो सभी मकान थे। यहां पर खाना किसने मंगवाया होगा?
यही सोचते हुए हरीश ने उसी नम्बर पर कॉल बैक की।
"अभी दस मिनट पहले इस नम्बर से भोजन के लिए फोन किया गया था।आप जतिन जी बोल रहे हैं क्या? हम मकान न0 112 के सामने खड़े हैं, कहाँ आना है।"
दूसरी तरफ से जबाब आया ,"आप वहीं रुकिए, मैं आ रहा हूं।"
एक मिनट बाद 112 न0 मकान का गेट खुला और करीब पैंसठ वर्षीय सज्जन बाहर आए।
उन्हें देखते ही हरीश गुस्से में बोले,"आप को शर्म नही आई, इस तरह से फोन करके खाना मंगवाते हुए,गरीबों के हक का जब *आप जैसे अमीर* खाएंगे तो गरीब तक खाना कैसे पहुंचेगा।"
मेरा यहां तक आना ही बर्बाद गया।"
साहब !  ये शर्म ही थी जो हमें यहां तक ले आयी।
सर्विस लगते ही शर्म के मारे लोन लेकर घर बनवा लिया।आधे से ज्यादा सेलरी क़िस्त में कटती रही और आधी बच्चों की परवरिश में जाती रही।
अब रिटायरमेंट के बाद कोई पेंशन नही थी तो मकान का एक हिस्सा किराये पर दे दिया।अब लाक डाउन के कारण किराया भी नही मिला।बेटे की सर्विस न लगने के कारण जो फंड मिला था उससे बेटे को व्यवसाय करवा दिया और वो जो भी कमाता गया व्यवसाय बड़ा करने के चक्कर में उसी में लगाता गया और कभी बचत करने के लिए उसने सोचा ही नही।  अब  20 दिन से वो भी ठप्प है।पहले साल भर का गेंहू -चावल भर लेते थे पर बहू को वो सब ओल्ड फैशन लगता था तो शर्म के मारे दोनो टँकी कबाड़ी को दे दीं।अब बाजार से दस किलो पैक्ड आटा और पांच किलो चावल ले आते हैं।राशन कार्ड बनवाया था तो बच्चे वहां से शर्म के मारे राशन उठाने नही जाते थे कि कौन लाइन लगाने जाय इसलिए वो भी निरस्त हो गया।जन धन अकाउंट हमने ही बहू का खोलवा दिया था ,पर उसमें एक भी बार न तो जमा हुआ न ही निकासी हुई और खाता बन्द हो गया।इसलिये सरकार से आये हुए पैसे भी नही निकाल सके।मकान होने के कारण शर्म के मारे किसी सामाजिक संस्था से भी मदद नही मांग सकते थे।कल से जब कोई रास्ता नहीं दिखा और सुबह जब पोते को भूख से रोते हुए देखा तो सारी शर्म एक किनारे रख कर 112 डायल कर दिया।इन दीवारों ने हमको अमीर तो बना दिया साहब ! पर अंदर से खोखला कर दिया।मजदूरी कर नहीं सकते थे और आमदनी इतनी कभी हुई नही की बैंक में इतना जोड़ लेते की कुछ दिन बैठकर जीवन व्यतीत कर लेते।आप ही बताओ ! मैं क्या करता।कहते हुए जतिन जी फफक पड़े।
हरीश को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले।वो चुपचाप गाड़ी तक गया और लंच पैकेट निकालने लगा। तभी उसे याद आया कि उसकी पत्नी ने कल राशन व घर का जो भी सामान मंगवाया था वो कल से घर न जा पाने के कारण  डिग्गी में ही पड़ा हुआ है।उसने डिग्गी खोली, सामान निकाला और लंच पैकेट के साथ साथ सारा सामान जतिन के गेट पर रखा और बिना कुछ बोले गाड़ी में आकर बैठ गया।गाड़ी फिर किसी ऐसे ही भाग्यहीन अमीर का घर ढूंढने जा रही थी। ये आज के मध्यम वर्ग की वास्तविक स्थिति है।

33 वर्षों बाद दूरदर्शन पर सुबह 9:00 बजे रामायण के प्रसारण के साथ ही सोशल मीडिया पर रामायण ट्रेंड करने लगी जबकि कोरोनावायरस सोशल मीडिया में पिछड़ गया|

दुनिया का सर्वाधिक लोकप्रिय टीवी धारावाहिक रामानंद सागर कृत रामायण के बारे में सोशल मीडिया व अन्य स्रोतों से मुझे जो पता चला है उनमें से कुछ महत्वपूर्ण रोचक बातें आपके साथ साझा कर रहा हूं।

1- रामानंद सागर कृत रामायण” को “MYTHOLOGICAL SERIAL”के रुप में जून 2003 को लिमका बुक रिकार्ड में नाम दर्ज कर लिया गया था ।

2-रामायण में जब जूनियर कलाकारों की जरूरत पड़ती थी तो ढोल नगाड़े बजाकर गांव गांव जाकर कलाकार भर्ती किए जाते थे

3- पाँच महाद्वीपों में दिखाई जाने वाली रामायण को विश्व भर में 65 करोड़ से ज्यादा दर्शकों ने देखा था।

4-हर हफ्ते रामायण की ताजा कैसेट्स दूरदर्शन ऑफिस पर भेजे जाते थे कहीं बाहर तो यह कैसेट प्रसारण से आधे घंटे पहले ही दफ्तर पहुंचते थे।

5-जब रामायण में रावण की मृत्यु होती है तो रावण का पात्र अरविंद त्रिवेदी के गांव में शोक मनाया जाता है।

6- रामायण” भारत का पहला एकमात्र ऐसा धारावाहिक था । जो 45 मिनट Broadcast  होता था । बाकी अन्य सिरियल 30 मिनट ही प्ले होते थे वो भी विज्ञापन के साथ ।
7-  भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त “रामायण” का पहला ऐपीसोड भारतीय सरकारी चैनल “दुरदर्शन” पर 24 जनवरी 1987 को प्रसारित किया गया था ।

8-सुचना प्रसारण विभाग के सर्वे मे पाया गया कि रामायण धारावाहिक जब शुरू होता था । तो भारत के 99% टी.वी. पर प्रसारित होता था ।
9-  “रामायण” भारत का एकलोता टी.वी. धारावाहिक था । जिस दौरान पब्लिक ट्रान्सपोर्ट जाम हो जाता था ।

10-भारत के कुछ हिस्सों में “रामायण” ऐपीसोड आने के समय से पहले लोग अपने जुते-चप्पल उतार देते थे । वे उन्हे भगवान का पुरा दर्जा देते थे ।

11-  एक भारतीय ने रामानंद सागर जी को पांच हजार का चैक और एक पत्र भेजा था । उस पत्र में लिखा था कि मै अपनी बेटी को दहेज में रामायण की टेप देना चाहता हु ।
12- रामायण को स्पोन्सर्स करने के लिये सभी भारतीय प्रोड्यूर्सस ने साफ मना कर दिया था । फिर रामानंद सागर ने खुद स्पोन्सर्स किया । औऱ जबर्दस्त हिट हुआ ।

13-  रामायण के सभी ऐपीसोड “उमरगाव” स्टूडियो में शुट हुये थे । जो मुम्बई से लगभग 15 मिल कि दुरी पर था । जो स्पेशल रामायण के लिये ही किराये पर लिया गया था ।

14-  रामानंद सागर जी ने टीम के 150 सभी कार्यकर्ताओं के लिये रामायण की शुटिग के दौरान शाकाहारी भोजन बनवाया था ।

15-  भारत के कुछ हिस्सो के मन्दिरो में रामायण के मुख्य कलाकार अरुण गोविल (राम) व दिपिका चिखालिया (सीता) के फोटो लगे है ।
16-  रामानंद सागर जी कि रामायण करने के बाद अरुण गोविल (राम) ने नशीले पदार्थो शराब, बीडी-सिगरेट, पान-मसाला का सेवन त्याग दिया था ।
17- अरुण गोविल (राम) को स्वर्गीय “राजीव गांधी” ने इलाहाबाद से कॉग्रैस पार्टी से चुनाव लडने के लिये कहा था । लेकिन गोविल (राम) ने ये कहकर मना कर दिया था कि ‘ये मेरी राम भगवान की इमेज को खराब कर देगा ।
18-  अरुण गोविल(राम) व दिपिका चिखालिया(सीता) को जब किसी प्रोग्राम के लिये शिरकरत करने के लिये बुलाया जाता था तो लोग उनके पैर छूकर आर्शिवाद लेते थे ।
19-  वर्तमान में दिपिका चिखालिया (सीता) अपने पति हेमन्त टोपीवाला कि कॉस्मेटिक कम्पनी में मार्केटिंग हेड के रुप में काम करती है । दीपिका चिखलिया जल्द ही सरोजनी नायडू की बायोपिक में नजर आ सकती है यह स्वयं उन्होंने ही बताया
20- अरुण गोविल (राम) और सुनील लहरी (लछ्मण) मिलकर मुम्बई मे राम-लछ्मण प्रोडक्शन हाउस के नाम से अपनी प्रोडक्शन कम्पनी चला रहे है।

21-संगीत की दुनिया की सरताज रविंद्र जैन जी को रामायण ने कर दिया था अमर घर घर में घुसने लगी थी उनकी आवाज

22- 78 एपिसोड पूरे होने के बाद दर्शकों ने लव कुश की मांग की इस पर रामानंद सागर ने पहले ही कह दिया था कि वह काल्पनिक होगा। और इस सीरियल पर वाद विवाद होने के कारण रामानंद सागर पर 10 साल का कोर्ट केस भी चला

23-आज भी 33 वर्षों बाद दूरदर्शन पर सुबह 9:00 बजे रामायण के प्रसारण के साथ ही सोशल मीडिया पर रामायण ट्रेंड करने लगी जबकि कोरोनावायरस सोशल मीडिया में पिछड़ गया|

        🙏🙏 *जय श्री राम* 🙏🙏

जानिए आरोग्य सेतु एप्प क्या हैं...इसे install करना क्यों आवश्यक हैं

जानिए आरोग्य सेतु एप्प क्या हैं इसे install करना क्यों आवश्यक हैं...

आपमें से बहुतों ने इनस्टॉल किया पर आपको लगा कि बकवास हैं...
इसे आपने uninstall भी कर दिया होगा मैंने भी दो तीन बार install किया.. फिर हटा दिया पर मोदी जी ने फिर से बोला तो सोचना पड़ा | ये जरूर कोई बहुत बड़ी चीज हैं आप भी फिर से आरोग्य सेतु एप को install कीजिए  मोदी जी ने चार बार आपसे निवेदन किया है...

1. आरोग्य सेतु क्या है?
आरोग्य सेतु भारत सरकार द्वारा विकसित की गई डिजिटल सेवा, मुख्य रूप से मोबाइल एप्लीकेशन है और जिसका उद्देश्य COVID-19 संबंधी स्वास्थ्य सेवाओं को भारत के लोगों से जोड़ना है. इसे लोगों को COVID-19 के संभावित जोखिम और स्वस्थ रहने के लिए अपनाई जाने वाली अच्छी आदतों के साथ-साथ उन्हें COVID-19 महामारी के बारे में प्रासंगिक और उचित मेडिकल परामर्श देकर भारत सरकार के कदमों को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है.

2. मुझे आरोग्य सेतु का इस्तेमाल क्यों करना चाहिए?
भारत में कोरोना वायरस महामारी को फैलने से रोकने के लिए आरोग्य सेतु सभी भारतीयों को एकजुट करने का एक प्रयास है. आरोग्य सेतु अपनी सामान्य गतिविधियों के दौरान आपके संपर्क में आने वाले सभी लोगों का विवरण रिकॉर्ड करने के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का इस्तेमाल करता है, ताकि बाद में कभी उनमें से कोई व्यक्ति COVID-19 पॉजिटिव पाया जाता है, तो आपको सूचित किया जा सके और आपके लिए प्रोऐक्टिव मेडिकल सहायता की व्यवस्था की जा सके. संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए, यह ज़रूरी है कि ऐसे लोगों को मेडिकल सहायता और सलाह दी जाए, जो संभवतः जोखिम में हैं, खासतौर पर एसिम्प्‍टोमैटिक लोग को यानी कि वे लोग जो संक्रमण के संपर्क में आए हैं, लेकिन अभी तक उनमें लक्षण नहीं दिखाई दिए हैं. कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के ज़रिए आरोग्य सेतु संभावित जोखिम के संक्रमण की जल्दी पहचान और रोकथाम को संभव बनाता है,और इस तरह से यह आपकी, आपके परिवार और आपके समुदाय की ढाल के रूप में काम करता है. इसके अलावा, जब आप आरोग्य सेतु ऐप पर अपने लक्षण और आपकी लोकेशन की जानकारी के साथ सेल्फ असेसमेंट टेस्ट करते हैं, तो भारत सरकार को ऐसे हॉटस्पॉट को पहचानने में मदद मिलती है, जहां बीमारी अपने शुरुआती दौर में फैल रही होगी और उसके ज़्यादा फैलाव को रोका जा सकता हो

3. मैं आरोग्य सेतु का इस्तेमाल कैसे शुरू करूं?
अपने स्मार्टफोन पर आरोग्य सेतु इस्तेमाल करने के लिए, आपको प्लेस्टोर (एंड्रॉयड डिवाइस के लिए) या ऐप स्टोर (iOS डिवाइस के लिए) से आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करना होगा. इसके अलावा आप इस लिंक से भी ऐप डाउनलोड कर सकते हैं: https://web.swaraksha.gov.in/in/ जियो फोन (KaiOS) में डाउनलोड करने के लिए इस ऐप का वर्ज़न जल्द ही उपलब्ध होगा. ऐप इंस्टॉल करने के बाद, यह खुद को रजिस्टर करने के लिए ऑनबो​र्डिंग की प्रक्रिया के बारे में गाइड करेगा. यूज़र से ब्लूटूथ चालू करने और अपनी लोकेशन शेयरिंग को “हमेशा” पर रखने का अनुरोध किया जाता है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आरोग्य सेतु आपकी और आपके समुदाय के हित के लिए काम कर सके. स्क्रीन के अनुसार डेमो के लिए आप यह वीडियो देख सकते हैं.

4. आरोग्य सेतु के प्रमुख फीचर क्या हैं?
आरोग्य सेतु के प्रमुख फीचर हैं:
- ब्लूटूथ का इस्तेमाल करके ऑटोमैटिक कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग
- ICMR दिशानिर्देशों पर आधारित सेल्फ-असेसमेंट टेस्ट
- COVID-19 संबंधी अपडेट, सलाह और सर्वश्रेष्ठ आदतें
- ई-पास का इंटीग्रेशन
- टेलीमेडिसिन और वीडियो कंसल्टेशन की सुविधा (जल्द उपलब्ध होगी)

5. आरोग्य सेतु पर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग कैसे काम करता है?
आपके फोन पर आरोग्य सेतु ऐप उन डिवाइस का पता लगाता है, जिन पर आरोग्य सेतु ऐप इंस्टॉल है, जो आपके फोन की ब्लूटूथ सीमा मे आते हैं. जब ऐसा होता है, दोनों फोन इस संपर्क, जिसमें समय, दूरी, लोकेशन और अवधि शामिल है, का डिजिटल हस्ताक्षर सुरक्षित रूप से एक्सचेंज करते हैं. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में, अगर आप पिछले 14 दिनों में जिन लोगों के संपर्क में आए हैं और उनमें से कोई व्यक्ति COVID-19 पॉजिटिव ​होता है, तो ऐप आपके संपर्क की अवधि और निकटता के आधार पर आपका जोखिम कैलकुलेट करता है और उपयुक्त सुझाव देता है, जो आपकी होम स्क्रीन पर दिखाई देते हैं. आवश्यतानुसार उपयुक्त मेडिकल सहायता देने के लिए, भारत सरकार आपके संक्रमण के अपडेटेड जोखिम का विश्लेषण करती है.

6. आरोग्य सेतु ऐप पर सेल्फ-असेसमेंट टेस्ट कैसे काम करता है?
ICMR दिशानिर्देंशों पर आधारित सेल्फ-असेसमेंट टेस्ट, आपके द्वारा रिपोर्ट किए गए लक्षणों और हाल ही की यात्रा, आयु व लिंग जैसी अन्य संबंधित जानकारी के आधार पर COVID-19 संक्रमण की संभावना का मूल्यांकन करता है. मूल्यांकन ऐप पर किया जाता है और परिणाम हरा, पीला या नारंगी रंग के रूप में तुरंत आपको बता दिए जाते हैं, जो संक्रमण की बढ़ती हुई संभावनाओं को दर्शाते हैं. आपके द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर, अगर आपके संक्रमित होने की संभावना होती है, तो ऐप आपके सेल्फ-असेसमेंट के परिणाम अपलोड और शेयर करने के लिए आपकी सहमति मांगता है, ताकि भारत सरकार उचित मेडिकल और प्रशासनिक उपाय कर सके.

7. आरोग्य सेतु मेरे संक्रमण का जोखिम कैसे कैलकुलेट करता है?
हर बार जब भी आप आरोग्य सेतु यूज़र के संपर्क में आते हैं, तो आपका ऐप इस संपर्क, जिसमें समय, दूरी, लोकेशन और अवधि शामिल है, का डिजिटल हस्ताक्षर रिकॉर्ड करता है. आप जिन लोगों के संपर्क में आए हैं, अगर बाद में कभी भी उनमें से कोई भी व्यक्ति COVID-19 पॉजिटिव होता है, तो आरोग्य सेतु ऐप उस व्यक्ति के साथ आपके संपर्क की अवधि और निकटता के आधार पर COVID-19 के संक्रमण का जोखिम कैलकुलेट करता है और नोटिफिकेशन के ज़रिए और होम स्क्रीम पर अपडेट करके, आवश्यकतानुसार, संक्रमण का जोखिम आपको बताता है. आगामी कॉन्टैक्ट के आधार पर यह संभावना और सटीक होती जाती है. आवश्यतानुसार उपयुक्त मेडिकल सहायता देने के लिए, भारत सरकार आपके संक्रमण के अपडेटेड जोखिम का विश्लेषण करती है.

8. आरोग्य सेतु ऐप पर होम स्क्रीन के अलग-अलग रंग क्या दर्शाते हैं?
संक्रमण के बढ़ते जोखिम को दर्शाने के लिए होम स्क्रीन को चार कैटेगरी में बांटा गया है: हरा, पीला, नारंगी और लाल.
- हरा: आपकी स्क्रीन पर हरा रंग बताता है कि संक्रमण का आपका जोखिम कम है: आप ऐसे किसी भी व्यक्ति से नहीं मिल हैं जो COVID-19 पॉजिटिव है या सेल्फ-असेसमेंट के दौरान आप में COVID-19 से संबंधित कोई लक्षण और स्थिति नहीं दिखाई दी है या दोनों.
- पीला: आपकी स्क्रीन पर पीला रंग संक्रमण के मध्यम जोखिम को दर्शाता है:
  • आप ऐसे किसी भी व्यक्ति से नहीं मिले हैं, जो COVID-19 पॉजिटिव है या
  • हो सकता है कि आप ऐसे व्यक्ति से मिले हैं, जो COVID-19 पॉजिटिव है, लेकिन आपका संवाद सीमित था और सामाजिक दूरी थी या
  • सेल्फ-असेसमेंट के दौरान, आप में COVID-19 से संबंधित एक स्थिति दिखाई दी है.
-नारंगी: आपकी स्क्रीन पर नारंगी रंग संक्रमण के उच्च जोखिम को दर्शाता है:
  • आप हाल ही में ऐसे व्यक्ति से मिले हैं, जो COVID-19 पॉजिटिव है या
  • सेल्फ-असेसमेंट के दौरान, आप में COVID-19 से संबंधित लक्षण और/या ​ स्थिति दिखाई दी है.
-लाल: आपकी स्क्रीन पर लाल रंग बताता है कि आप COVID-19 पॉजिटिव हैं. होम स्क्रीन पर ऊपर वर्णित चारों कैटेगरी के लिए जानकारी और सलाह इकट्ठी की गई है.

9. कोई व्यक्ति COVID-19 पॉजिटिव है, यह आरोग्य सेतु को कैसे पता चलता है?
आरोग्य सेतु अभी यूज़र को खुद को COVID-19 पॉजिटिव चिह्नित करने की अनुमति नहीं देता है. जब कोई व्यक्ति COVID-19 पॉजिटिव पाया जाता है, तो टेस्टिंग लैब यह जानकारी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) - COVID-19 टेस्टिंग के लिए नोडल सरकारी एजेंसी के साथ साझा करती है. ICMR सुरक्षित एप्लीकेशन प्रोग्राम इंटरफेस (API) के ज़रिए आरोग्य सेतु सर्वर पर COVID-19 पॉजिटिव लोगों की सूची साझा करती है. अगर COVID-19 पॉजिटिव पाए गए व्यक्ति ने आरोग्य सेतु ऐप इंस्टॉल किया हुआ है, तो सर्वर फिर ऐप का स्टेटस अपडेट करता है और उस व्यक्ति की कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग करता है.

10. अगर मेरा पड़ोसी COVID-19 पॉजिटिव होता है, तो मेरा ऐप उसके ऐप से ब्लूटूथ से कनेक्ट है, इस बात का मतलब यह है कि मुझे भी COVID-19 पॉजिटिव चिह्नित किया गया है, भले ही मैं घर के अंदर ही रहा/रही हूं और कभी भी फिजिकली उसके संपर्क में नहीं आया/आई हूं?
जो व्यक्ति बाद में COVID-19 पॉजिटिव होता है, उससे आपके संपर्क के आधार पर, आरोग्य सेतु, संक्रमण के संभावित जोखिम को कैलकुलेट करता है. आरोग्य सेतु केवल तभी किसी व्यक्ति को COVID-19 पॉजिटिव चिह्नित करता है, जब यह जानकारी ICMR से प्राप्त हुई हो. अगर आपका ऐप ब्लूटूथ के ज़रिए आपके पड़ोसी से कनेक्ट है, और आपका पड़ोसी COVID-19 पॉजिटिव है, तो आरोग्य सेतु इस ब्लूटूथ संपर्क का विश्लेषण करेगा. आपके पड़ोसी का पॉजिटिव पाया जाना आपको जोखिम में डाल सकता है, अगर आप अपने पड़ोसी के सीधे संपर्क में आए हैं यानी पर्याप्त समय के लिए सामाजिक दूरी (आमतौर पर 6 फीट या उससे कम) न रखी गई हो. अगर आप दोनों फिजिकल रूप से संपर्क में नहीं आए हैं और घर के अंदर ही रहे हैं, तो ऐसी संभावना कम है कि आपके संक्रमण का जोखिम उच्च होगा. अभी फिर आपको उच्च जोखिम के रूप में चिह्नित किया जाता है, तो स्वास्थ्य प्राधिकरण आपकी ​स्थिति का मूल्यांकन करेंगे और कोई भी कार्रवाई बताने से पहले इस बात को ध्यान में रखेंगे कि आप घर के अंदर ही रहे हैं और अपने पड़ोसी के फिजिकल रूप से संपर्क में नहीं आए हैं. किसी भी सवाल या स्पष्टीकरण के लिए आप अपने ऐप की होम स्क्रीन पर दिए गए हेल्पलाइन नंबर पर कॉल कर सकते हैं.

11. आरोग्य सेतु होम स्क्रीन पर अलग-अलग आंकड़े क्या दर्शाते हैं?
आरोग्य सेतु होम स्क्रीन पर आपकी लोकेशन के चार आंकड़ें दिखाती है (ध्यान दें: यह आपके फोन की लाइव लोकेशन है):
  • आपकी लोकेशन के 1 किमी के अंदर सेल्फ-असेसमेंट टेस्ट करने वाले यूज़र की संख्या
  • आपकी लोकेशन के 1 किमी के अंदर, COVID-19 यूज़र की संख्या जिनमें तीन में से एक या उससे अधिक लक्षण दिखे हैं
  • आपकी लोकेशन के 1 किमी के अंदर COVID-19 पॉजिटिव होने वाले यूज़र की संख्या
  • आपकी लोकेशन के 1 किमी के अंदर COVID-19 पॉजिटिव पाए जाने वाले व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने वाले यूज़र की संख्या

12. आरोग्य सेतु किन देशों में उपलब्ध है?
आरोग्य सेतु भारत में और सिर्फ भारत में उपयोग करने के लिए ही उपलब्ध है.

13. क्या आरोग्य सेतु कई भाषाओं में उपलब्ध है?
अभी आरोग्य सेतु बारह भाषाओं में उपलब्ध है: अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती, पंजाबी, तेलुगु, ओडिया, मराठी, बांग्ला, कन्नड़, तमिल और मलयालम और असमिया. जल्द ही यह ऐप भारत की सभी 22 अनुसूचित भाषाओं में उपलब्ध होगी.

 15. मैं आरोग्य सेतु संबंधी अपना फीडबैक और सुझाव कैसे शेयर करूं?
आप प्ले स्टोर/ऐप स्टोर पर अपना कमेंट कर सकते हैं. आप हमें support.aarogyasetu@gov.in पर ईमेल भी कर सकते हैं. आरोग्य सेतु की टीम आपके सभी सवालों को जल्द से जल्द रिव्यू करने और जवाब देने के लिए प्रतिबद्ध है.

गोपनीयता

1. आरोग्य सेतु यूज़र से कौन-कौन सी व्यक्तिगत जानकारी कलेक्ट करता है?
ऐप के लिए रजिस्टर करने के लिए, आपको अपना मोबाइल नंबर देना होता है. इसके साथ, आपसे आपका नाम, लिंग, आयु, व्यवसाय पिछले 30 दिनों में भ्रमण किए देश और ज़रुरत पड़ने पर स्वैच्छिक सेवा करने की रुचि पूछी जाती है. यह जानकारी आरोग्य सेतु सर्वर पर एन्क्रिप्ट करके स्टोर की जाती है. जब आप वैकल्पिक सेल्फ-असेसमेंट टेस्ट लेते हैं, ऐप आपके जवाब और आपकी लोकेशन कलेक्ट कर लेती है. यह जानकारी आरोग्य सेतु सर्वर पर एन्क्रिप्ट और स्टोर की जाती है.

जब आपका स्मार्टफोन, जिस पर ऐप ऐक्टिव है, मोबाइल, ब्लूटूथ और GPS सर्विस के साथ चालू होता है, किसी भी दूसरे मोबाइल या हाथ मे पकडे़ जा सकने डिवाइस के संपर्क में आता है, तब ऐप उन डिवाइस से गुप्त रूप से दूसरे यूज़र की डिवाइस ID और संपर्क का विवरण (समय, अवधि, दूरी और लोकेशन) कलेक्ट कर लेती है. यह जानकारी एन्क्रिप्ट और आपके डिवाइस पर स्टोर कर ली जाती है.

2. आरोग्य सेतु आपकी व्यक्तिगत जानकारी को कैसे गुप्त रखता है?
जब आप रजिस्ट्रेशन के समय अपना मोबाइल नंबर प्रदान करते हैं, आरोग्य सेतु सर्वर आपको एक गुप्त, रैंडम यूनिक डिवाइस आइडेंटिफिकेशन नंबर (DiD) देता है और उसे आपके मोबाइल नंबर से जोड़ देता है. यह मोबाइल नंबर और DiD की जोड़ी सुरक्षित तरीके से एक बेहद एन्क्रिप्टेड सर्वर मे स्टोर की जाती है. अन्य व्यक्तिगत जानकारी जो आप रजिस्ट्रेशन के समय प्रदान करते हैं को भी आपके डिवाइस के DiD से जोड़ दिया जाता है, और सुरक्षित तरीके से एन्क्रिप्ट करके सर्वर पर स्टोर कर दिया जाता है.

- आरोग्य सेतु ऐप इंस्टॉल करने वाले दो डिवाइस के बीच, और डिवाइस व आरोग्य सेतु सर्वर के भविष्य के सभी संवाद DiD का इस्तेमाल करके किए जाते हैं. भविष्य के संवाद या ट्रांजै़क्शन के लिए किसी व्यक्तिगत जानकारी का इस्तेमाल नहीं होता है.
- रजिस्ट्रेशन के समय प्रदान की गई व्यक्तिगत जानकारी को DiD के साथ पेअर किया/जोड़ा जाता है और आपके डिवाइस को दिया जाता है और सुरक्षित तरीके से एन्क्रिप्ट करके सर्वर पर स्टोर किया जाता है.
- ब्लूटूथ कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए दो डिवाइस के बीच जानकारी का आदान-प्रदान सिर्फ DiD का इस्तेमाल करके किया जाता है और एन्क्रिप्ट करके डिवाइस पर स्टोर किया जाता है.
- सेल्फ-असेसमेंट टेस्ट के नतीजे और लोकेशन को आपके डिवाइस को दिए गए DiD के साथ पेअर किया/जोड़ा जाता है, और इसे सुरक्षित तरीके से एन्क्रिप्ट करके सर्वर पर स्टोर किया जाता है.
- आरोग्य सेतु से होने वाला सभी संवाद, नोटिफिकेशन और संक्रमण से खतरे का अपडेट सिर्फ DiD का इस्तेमाल करके किया जाता है.

आपके DiD की आपकी व्यक्तिगत जानकारी के साथ रि-आइडेंटिफिकेशन तभी की जाती है जब आपका COVID-19 टेस्ट पॉजिटिव पाया जाता है या आपको संक्रमण का बहुत ज़्यादा खतरा होता है, जिससे आप तक ज़रुरी मेडिकल सहायता पहुंचाई जा सके.

3. आरोग्य सेतु के गोपनीयता के क्या फीचर हैं?
कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग संभावित रूप से गोपनीयता का हनन करने वाली टेक्नोलॉजी सॉल्यूशन है अगर सही कदम न उठाए जाएं. “अपने डिज़ाइन में गोपनीयता को प्राथमिकता देना” आरोग्य सेतु का ध्येय व मुख्य सिद्धांत रहा है. यह जानते हुए कि यह तकनीक COVID-19 महामारी को फैलने से रोकने में सहायक हो सकती है, इसका इस्तेमाल मौजूदा हालत में सही है. इसके बावजूद, ऐसी तकनीक से उत्पन्न होने वाले गोपनीयता संबंधी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, आरोग्य सेतु के गोपनीयता फीचर को बेहतर करने का हर प्रयास किया गया है.

आरोग्य सेतु यूज़र की गोपनीयता की चार तरीकों से सुरक्षा करती है:
 a.  रजिस्ट्रेशन के समय प्रदान की गई निजी जानकारी को तुरंत गुप्त कर दिया जाता है और आगे सभी ट्रांजै़क्शन आरोग्य सेतु सर्वर द्वारा आपको दिए गए डिवाइस आइडेंटिफिकेशन नंबर (DiD) के ज़रिए होता है.
 b. डिफ़ॉल्ट रूप से, सभी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और लोकेशन जानकारी जिसे कलेक्ट करके आपके मोबाइल डिवाइस पर स्टोर किया जाता है. यह जानकारी आरोग्य सेतु सर्वर पर सिर्फ तभी अपलोड की जाती है जब आप COVID-19 पॉजिटिव पाए गए हों.
 c. मोबाइल डिवाइस पर स्टोर की गई सभी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और लोकेशन जानकारी, जो आरोग्य सेतु सर्वर पर अपलोड नहीं होती है, वह 30 दिन पूरे होने के बाद आपके फोन से हमेशा के लिए डिलीट कर दी जाती है. आपकी सभी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और लोकेशन जानकारी, जिसे आरोग्य सेतु सर्वर पर अपलोड किया जा सकता है, अगर आपका COVID-19 टेस्ट पॉजिटिव नहीं आया है, तो अपलोड करने की तिथि के 45 दिन में हमेशा के लिए डिलीट कर दिया जाता है. अगर आप संक्रमित हैं, तो आपसे जुड़ी सभी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और लोकेशन जानकारी आपके COVID-19 से मुक्त होने की घोषणा के बाद 60 दिन में डिलीट कर दी जाती है.
 d. इसके बाद, गोपनीयता नीति साफ तौर पर उन उद्देश्यों की सीमा निर्धारित करती है जिसके लिए इस डेटा का इस्तेमाल हो सकता है, जो है COVID-19 के खिलाफ जंग में भारत सरकार की मदद करना और गहन जानकारी जनरेट करना और कुछ नहीं.

यह फीचर गुप्त रखने, डेटा न्यूनीकरण, उद्देश्य व सीमा का उपयोग और डेटा धारण के सिद्धांतों को मानक गोपनीयता सिद्धांतों के अनुसार लागू करते हैं और आरोग्य सेतु यूज़र की निजी गोपनीयता पर एक उचित बंधन लगाते हैं.

4. आरोग्य सेतु आपकी जानकारी कैसे सुरक्षित रखता है?
आपके मोबाइल डिवाइस पर स्टोर की गई सभी जानकारी एडवांस्ड एन्क्रिप्शन स्टैंडर्ड (AES) से सुरक्षित है. डिवाइस पर स्टोर किया गया सभी डेटा ऑपरेटिंग सिस्टम: एंड्राइड के लिए कीस्टोर और iOS के लिए कीचेन, के की चेन का इस्तेमाल करके AES एन्क्रिप्टेड है.

डिवाइस से सर्वर पर और वापस डिवाइस पर सारा डेटा ट्रांसमिशन गुप्त, RSA सुरक्षित और सुरक्षित तरीके से ट्रांसमिट होता है. ऐप से हर एक अनुरोध को प्रमाणित किया जाता है.

बैक-एंड डेटा स्टोरेज को AWS टूल और सर्वश्रेष्ठ ग्लोबल तरीके के इस्तेमाल से एन्क्रिप्ट किया जाता है. आरोग्य सेतु टीम ने प्रतिष्ठित अकादमिक संस्थानों, टेक ऑडिट फर्म और विभिन्न एथिकल हैकर ग्रुप के साथ सिस्टम के सुरक्षा खतरों की पूरी तरह से टेस्टिंग की है. नियमित रूप से प्रैक्टिस के लिए, हर नई रिलीज़ से पहले टीम सुरक्षा ऑडिट करती है.

5. अगर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए GPS जानकारी की ज़रूरत नहीं होती (सिंगापुर ट्रेसटुगेदर ऐप GPS जानकारी नहीं कलेक्ट करती) आरोग्य सेतु GPS जानकारी क्यों कलेक्ट करता है?
ट्रेसटुगेदर और उसके जैसे अन्य ऐप के विपरी आरोग्य सेतु एक कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप से कहीं ज़्यादा है. भारत जैसे जनसंख्या घनत्व वाले देश में, भारत सरकार मानती है कि यह ज़रूरी है कि न सिर्फ उन यूज़र की पहचान की जाए जो एक-दूसरे के संपर्क में आए हैं, बल्कि उन रास्तों की भी पहचान की जाए जहां से संक्रमित व्यक्ति गुज़रे हैं, ताकि इस बीमारी से संक्रमण के खतरे वाले इलाकों को सेनिटाइज़ किया जा सके और उन इलाकों में उन लोगों की पहचान की जा सके जिन पर संक्रमण का खतरा है, भले ही वे लोग आरोग्य सेतु ऐप में कॉन्टैक्ट के रूप में न पहचाने गए हों.

इसके अलावा, जब आप आरोग्य सेतु ऐप पर अपने लक्षण और आपकी लोकेशन की जानकारी के साथ सेल्फ असेसमेंट टेस्ट करते हैं, तो भारत सरकार को ऐसे हॉटस्पॉट को पहचानने में मदद मिलती है, जहां बीमारी अपने शुरुआती दौर में फैल रही होगी और उसके ज़्यादा फैलाव को रोका जा सकता हो.

इसी कारण से आरोग्य सेतु ऐप GPS जानकारी कलेक्ट करता है.

6. यह जानकारी मेरे फोन पर कितने समय तक स्टोर रहती है?
सभी यूनीक कॉन्टैक्ट की संपर्क और लोकेशन की जानकारी आपके मोबाइल फोन पर स्टोर होती है और अगर यह कलेक्ट होने के 30 दिन के अंदर क्लाउड पर अपलोड नहीं होती है, तो हमेशा के लिए डिलीट हो जाती है.

7. अगर मेरे फोन पर स्टोर की गई संपर्क और लोकेशन की जानकारी आरोग्य सेतु सर्वर पर अपलोड की जाती है, तो वह सर्वर पर कितने समय तक स्टोर रहती है?
अगर आपकी संपर्क और लोकेशन की जानकारी आरोग्य सेतु सर्वर पर अपलोड की गई है और उसके अपलोड होने की तिथि से 45 दिन के अंदर अगर आप COVID-19 पॉजिटिव नहीं पाए गए हैं, तो डेटा को आरोग्य सेतु सर्वर से हमेशा के लिए डिलीट कर दिया जाता है.

अगर आपकी संपर्क और लोकेशन की जानकारी आरोग्य सेतु सर्वर पर अपलोड की गई है और आप COVID-19 पॉजिटिव पाए गए हैं, तब आपके COVID-19 से ठीक हो जाने के बाद 60 दिन में डेटा को आरोग्य सेतु सर्वर से हमेशा के लिए डिलीट कर दिया जाता है.

8. अगर मेरा COVID-19 टेस्ट पॉजिटिव आता है, तो क्या आरोग्य सेतु मेरी यह जानकारी ऐप के अन्य यूज़र को देता है?
आरोग्य सेतु कभी भी आपकी निजी पहचान या मेडिकल स्थिति की जानकारी ऐप के अन्य यूज़र के साथ या सार्वजनिक रूप से साझा नहीं करेगा. उपयुक्त मेडिकल और प्रशासनिक सहायता प्रदान करने के लिए भारत सरकार उन व्यक्तियों से संपर्क कर सकती है, जिनके संपर्क में आप आए हों, लेकिन उन्हें आपकी स्थिति के बारे में नहीं बताया जाएगा. आपकी जानकारी हमारे साथ सुरक्षित है.

समस्या निवारण

1. ऐप इंस्टॉल करते समय, मुझे मैसेज मिला कि मेरी डिवाइस रूटेड है और मैं आगे नहीं बढ़ सकता/सकती. अब मैं क्या करूं?
आरोग्य सेतु रूटेड/ज़बरदस्ती खोले गए फोन पर इंस्टॉल नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे सुरक्षा का खतरा होता है और ऐप की सुरक्षा व गोपनीयता फीचर पर असर पड़ सकता है. अगर आपकी डिवाइस रूटेड नहीं है, और तब भी आपको यह मैसेज मिल रहा है, तो कृपया ऐप को डिलीट करें, फोन रीस्टार्ट करें और फिर प्ले स्टोर/ऐप स्टोर से ऐप का लेटेस्ट वर्ज़न डाउनलोड करें और दोबारा इंस्टॉल करें. अगर तब भी समस्या बनी रहती है, तो कृपया हमें अपने मोबाइल के मॉडल और इस पर चल रहे ऑपरेटिंग सिस्टम के वर्ज़न के साथ support.aarogyasetu@gov.in पर ईमेल भेजें.

2. ऐप स्टोर/प्ले स्टोर से आरोग्य सेतु डाउनलोड करने पर, मुझे मैसेज मिलता है: “यह ऐप आपके देश में उपलब्ध नहीं है”. मैं अभी भारत में हूं. मैं इसका समाधान कैसे करूं?
आरोग्य सेतु सिर्फ भारत में इस्तेमाल करने के लिए उपलब्ध है. अगर भारत में होते हुए भी ऐप डाउनलोड नहीं कर पा रहे हैं तो कृपया अपनी देश की सेटिंग चेक करें और बदलें.

iOS डिवाइस के लिए, देश की सेटिंग को बदलने के लिए सेटिंग 🡪 आई-ट्यून्स और ऐप स्टोर 🡪 नीले रंग में दिख रही एप्पल ID पर क्लिक करें 🡪 अपनी एप्पल ID देखें 🡪 देश और स्थान 🡪 देश या स्थान बदलें पर जाएं.

एंड्रॉयड डिवाइस के लिए, Google प्ले स्टोर खोलें, मेन्यू 🡪 अकाउंट 🡪 देश और प्रोफाइल पर टैप करें.

तकनीकी

1. मुझ से ब्लूटूथ को हमेशा चालू रखने के लिए क्यों कहा जाता है?
उन डिवाइस से, जिन पर ऐप इंस्टॉल है, आपके संपर्क के मामलों को पहचानने के लिए आरोग्य सेतु ब्लूटूथ तकनीक पर निर्भर करता है. वर्तमान समय में, ब्लूटूथ अन्य डिवाइस के साथ आपकी निकटता का सबसे सटीक माप प्रदान करता है. अगर आप इसे चालू रखते हैं, तो यह आपके संपर्क में आने वाले सभी डिवाइस की जानकारी कलेक्ट कर लेगा.

2. मेरा ब्लूटूथ हमेशा चालू रहेगा, तो क्या इससे मोबाइल फोन की बैटरी खत्म नहीं हो जाएगी?
आरोग्य सेतु ऐप ब्लूटूथ लो एनर्जी का इस्तेमाल करता है, जिसमें न के बराबर बैटरी लगती खर्च होती है. इसके अलावा, हम डिवाइस की क्षमता सुधारने के लि​ए निरंतर काम कर रहे हैं और आगामी अपडेट में इन फीचर को लागू करेंगे.

3. मुझ से लोकेशन शेयरिंग को “हमेशा ऑन” पर सेट करने के लिए क्यों कहा जाता है? क्या मेरी लोकेशन को लगातार मॉनिटर किया जा रहा है?
इन कारणों से आपको अपनी लोकेशन शेयरिंग को “हमेशा ऑन” पर सेट करना होगा:


 a. उस लोकेशन को पिनपॉइंट करने के लिए, जहां हो सकता है कि आप COVID-19 पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में आए हैं;
 b. किन-किन महामारी के हॉटस्पॉट विकसित हो रहे हैं, इस जानकारी के आधार पर भारत की अलग-अलग निर्दिष्ट लोकेशन पर भारत सरकार द्वारा उचित और ज़रूरी मेडिकल और प्रशासनिक सहायता पहुंचाने के लिए.

सभी लोकेशन संबंधी जानकारी, चाहे वह आपकी डिवाइस में स्टोर की गई हो या फिर आरोग्य सेतु सर्वर पर अपलोड की गई है, आपकी डिवाइस ID से जुड़ी होती है और आपकी निजी जानकारी नहीं है.

4. आरोग्य सेतु कौन-सा ऑपरेटिंग सिस्टम सपोर्ट करता है?
आरोग्य सेतु iOS और एंड्रॉयड यूज़र दोनों के लिए उपलब्ध है. फिलहाल, आरोग्य सेतु एंड्रॉयड 5.0 और उससे बाद के, और iOS 10.3 और उससे बाद के वर्ज़न को सपोर्ट करता है. KaiOS के लिए इस ऐप का वर्ज़न जल्द ही उपलब्ध होगा.

5. आरोग्य सेतु स्टेटिक हार्ड कोडेड API का इस्तेमाल करता है, तो क्या इसमें बड़े पैमाने पर OTP जनरेशन का दुरुपयोग करना आम बात नहीं होगी?
हालांकि, आरोग्य सेतु स्टेटिक हार्ड कोडेड API की इस्तेमाल करता है, इसमें बड़े पैमाने पर OTP जनरेट करने का दुरुपयोग करना संभव नहीं होगा क्योंकि यह सर्विस हर 3 मिनट में जोड़े जा रहे 3 मैसेज के प्रोग्रेसिव बैक ऑफ के साथ डिज़ाइन की गई है. इसके साथ ही, IP आधारित किसी भी हमले से बचाव के लिए वेब एप्लीकेशन फायरवॉल (WAF) के नियम भी लागू किए गए हैं.

6. मॉडिफाइड कोड का इस्तेमाल करके नज़दीकी डिवाइस और बैक-एंड डेटाबेस में जंक मैसेज दोबारा इकट्ठा होने से रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
आरोग्य सेतु ऐसे डिजाइन किया गया है कि इसका बैक-एंड डेटाबेस और डैशबोर्ड ऐसे मैसेज को रिजेक्ट कर देगा, जिससे अगर जंक मैसेज डिवाइस में आ भी जाएं, तो डैशबोर्ड पर सिर्फ सही डेटा ही दिखाई दे. अगर कभी भी बिना किसी सुरक्षा खतरे वाला कोई खराब मैसेज बैक-एंड में आता है, तो यह सिर्फ उस यूज़र का डेटा करप्ट करेगा और उनकी मदद प्राप्त की क्षमता प्रभावित करेगा. बाकी सब और उनका डेटा सुरक्षित रहता है.

7. डिवाइस ID एक ही होती है और कभी नहीं बदलती है, तो क्या इससे सुरक्षा का खतरा पैदा नहीं होगा?
वर्तमान में, COVID-19 टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए लोगों की संख्या को देखते हुए भारत सरकार समझती है कि स्टेटिक डिवाइस ID अभी चिंता का विषय नहीं है. इसके बावजूद भी, यह समझा जा रहा है कि स्टेटिक डिवाइस ID का होना, बड़े पैमाने पर, चिंता का विषय होगा. भारत सरकार इसके समाधान के लिए काम कर रही है और रनटाइम में सीमित लाइफटाइम जनरेट करते हुए यूज़र के लिए डायनामिक डिवाइस ID मैकेनिज्म लाने की तैयारी कर रही है.

अब जानिए...

यह एप्प आपसे कुछ पूछता है जैसे कि क्या आपको खांसी हैं...
बुखार हैं...
सांस लेने में परेशानी हैं...

निश्चित है आप लिखेंगे...
नहीं हैं...

उसके बाद आप ग्रीन जोन में दिखते होंगे...
आपको लगता होगा...
इस एप्प में कुछ हैं ही नहीं...
पूरा बकवास हैं...

यह एप्प ब्लू टूथ और लोकेशन को ऑन रखने को कहता हैं...
आप always on रखिये...

जब भी आप किसी भीड़ भाड़ वाली जगह पर जाते हैं...
यह एप्प ब्लू टूथ से आस पास के मोबाइल से संदेश लेता देता रहता हैं...

जब आप किसी के पास खड़े हैं तो आप भी ग्रीन जोन के हैं...
पास खड़ा व्यक्ति भी ग्रीन जोन वाला नार्मल व्यक्ति ही हैं...
पर अगर वह व्यक्ति आज से 10 दिनों बाद किसी कारण से कोरोना पॉजिटिव हो जाएगा...
तो यह एप्प आपको तुरंत alert कर देगा...
और आपका ग्रीन कलर बदल कर ऑरेंज या पीला हो जाएगा।

यह कहेगा...
आप दूध लेने आज से 10 दिन पहले डेयरी पर गए थे...
वह व्यक्ति जो नीले शर्ट वाला था...
वह अब कोरोना पॉजिटिव हैं...
यानी 10 दिन पहले उसे छिपा हुआ संक्रमण था जो अब साफ-साफ दिखने लगा हैं...

अब आप तुरंत अपनी जांच कराइए...
साथ ही यह एप्प उन सभी व्यक्तियों को सूचना दे देगा...
आप सभी लोग उस आदमी के चलते danger zone में आ गए हैं...
तुरंत जांच कराइये।

सबकी लोकेशन ऑन रहने से उन सभी की मूवमेंट भी पता चलेगी...
और कोरोना से लड़ना आसान होगा...

आप इस पोस्ट को व्हाट्सएप्प पर भेजिए...
लोगों को समझाइए...
जिस दिन करोड़ों लोग इसे install कर लेंगे...
यह आपके किसी भी ऑरेंज जोन के व्यक्ति के पास जाते ही रिंग करने लगेगा...
यह आपको हॉट स्पॉट की सूचना अलार्म से दे देगा...
ताकि आप रास्ता बदल लें...

मित्रों..
मोदी जी ने 4 बार निवेदन किया तो यह बेकार का एप्प नहीं हो सकता...
इसे तुरंत install कीजिए.

I recommend Aarogya Setu app to fight against COVID19. Please download and share it using this link Android : 
https://play.google.com/store/apps/details?id=nic.goi.aarogyasetu
iOS : 
https://apps.apple.com/in/app/aarogyasetu/id1505825357

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

33 वर्षों बाद दूरदर्शन पर सुबह 9:00 बजे रामायण के प्रसारण के साथ ही सोशल मीडिया पर रामायण ट्रेंड करने लगी जबकि कोरोनावायरस सोशल मीडिया में पिछड़ गया|

दुनिया का सर्वाधिक लोकप्रिय टीवी धारावाहिक रामानंद सागर कृत रामायण के बारे में सोशल मीडिया व अन्य स्रोतों से मुझे जो पता चला है उनमें से कुछ महत्वपूर्ण रोचक बातें आपके साथ साझा कर रहा हूं।

1- रामानंद सागर कृत रामायण” को “MYTHOLOGICAL SERIAL”के रुप में जून 2003 को लिमका बुक रिकार्ड में नाम दर्ज कर लिया गया था ।

2-रामायण में जब जूनियर कलाकारों की जरूरत पड़ती थी तो ढोल नगाड़े बजाकर गांव गांव जाकर कलाकार भर्ती किए जाते थे

3- पाँच महाद्वीपों में दिखाई जाने वाली रामायण को विश्व भर में 65 करोड़ से ज्यादा दर्शकों ने देखा था।

4-हर हफ्ते रामायण की ताजा कैसेट्स दूरदर्शन ऑफिस पर भेजे जाते थे कहीं बाहर तो यह कैसेट प्रसारण से आधे घंटे पहले ही दफ्तर पहुंचते थे।

5-जब रामायण में रावण की मृत्यु होती है तो रावण का पात्र अरविंद त्रिवेदी के गांव में शोक मनाया जाता है।

6- रामायण” भारत का पहला एकमात्र ऐसा धारावाहिक था । जो 45 मिनट Broadcast  होता था । बाकी अन्य सिरियल 30 मिनट ही प्ले होते थे वो भी विज्ञापन के साथ ।
7-  भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त “रामायण” का पहला ऐपीसोड भारतीय सरकारी चैनल “दुरदर्शन” पर 24 जनवरी 1987 को प्रसारित किया गया था ।

8-सुचना प्रसारण विभाग के सर्वे मे पाया गया कि रामायण धारावाहिक जब शुरू होता था । तो भारत के 99% टी.वी. पर प्रसारित होता था ।
9-  “रामायण” भारत का एकलोता टी.वी. धारावाहिक था । जिस दौरान पब्लिक ट्रान्सपोर्ट जाम हो जाता था ।

10-भारत के कुछ हिस्सों में “रामायण” ऐपीसोड आने के समय से पहले लोग अपने जुते-चप्पल उतार देते थे । वे उन्हे भगवान का पुरा दर्जा देते थे ।

11-  एक भारतीय ने रामानंद सागर जी को पांच हजार का चैक और एक पत्र भेजा था । उस पत्र में लिखा था कि मै अपनी बेटी को दहेज में रामायण की टेप देना चाहता हु ।
12- रामायण को स्पोन्सर्स करने के लिये सभी भारतीय प्रोड्यूर्सस ने साफ मना कर दिया था । फिर रामानंद सागर ने खुद स्पोन्सर्स किया । औऱ जबर्दस्त हिट हुआ ।

13-  रामायण के सभी ऐपीसोड “उमरगाव” स्टूडियो में शुट हुये थे । जो मुम्बई से लगभग 15 मिल कि दुरी पर था । जो स्पेशल रामायण के लिये ही किराये पर लिया गया था ।

14-  रामानंद सागर जी ने टीम के 150 सभी कार्यकर्ताओं के लिये रामायण की शुटिग के दौरान शाकाहारी भोजन बनवाया था ।

15-  भारत के कुछ हिस्सो के मन्दिरो में रामायण के मुख्य कलाकार अरुण गोविल (राम) व दिपिका चिखालिया (सीता) के फोटो लगे है ।
16-  रामानंद सागर जी कि रामायण करने के बाद अरुण गोविल (राम) ने नशीले पदार्थो शराब, बीडी-सिगरेट, पान-मसाला का सेवन त्याग दिया था ।
17- अरुण गोविल (राम) को स्वर्गीय “राजीव गांधी” ने इलाहाबाद से कॉग्रैस पार्टी से चुनाव लडने के लिये कहा था । लेकिन गोविल (राम) ने ये कहकर मना कर दिया था कि ‘ये मेरी राम भगवान की इमेज को खराब कर देगा ।
18-  अरुण गोविल(राम) व दिपिका चिखालिया(सीता) को जब किसी प्रोग्राम के लिये शिरकरत करने के लिये बुलाया जाता था तो लोग उनके पैर छूकर आर्शिवाद लेते थे ।
19-  वर्तमान में दिपिका चिखालिया (सीता) अपने पति हेमन्त टोपीवाला कि कॉस्मेटिक कम्पनी में मार्केटिंग हेड के रुप में काम करती है । दीपिका चिखलिया जल्द ही सरोजनी नायडू की बायोपिक में नजर आ सकती है यह स्वयं उन्होंने ही बताया
20- अरुण गोविल (राम) और सुनील लहरी (लछ्मण) मिलकर मुम्बई मे राम-लछ्मण प्रोडक्शन हाउस के नाम से अपनी प्रोडक्शन कम्पनी चला रहे है।

21-संगीत की दुनिया की सरताज रविंद्र जैन जी को रामायण ने कर दिया था अमर घर घर में घुसने लगी थी उनकी आवाज

22- 78 एपिसोड पूरे होने के बाद दर्शकों ने लव कुश की मांग की इस पर रामानंद सागर ने पहले ही कह दिया था कि वह काल्पनिक होगा। और इस सीरियल पर वाद विवाद होने के कारण रामानंद सागर पर 10 साल का कोर्ट केस भी चला

23-आज भी 33 वर्षों बाद दूरदर्शन पर सुबह 9:00 बजे रामायण के प्रसारण के साथ ही सोशल मीडिया पर रामायण ट्रेंड करने लगी जबकि कोरोनावायरस सोशल मीडिया में पिछड़ गया|

        🙏🙏 *जय श्री राम* 🙏🙏

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

आज फिर एक ऐसा दौर आया है जब सत्यम_शिवम_सुन्दरम बर्षो बाद दूरदर्शन पर लौटा है।।

*रामानंद सागर को पहली बार रामायण📙🏹सीरियल दूरदर्शन📺पर दिखाने👁📳की अनुमति उस समय(1986/87)के कांग्रेस🖐शासनकाल के दौर में भी आखिर कैसे मिल पाई, कृपया पूरा जरूर पढ़ें*👇👇👇👇👇

*आज एक दौर है जब सोशल मीडिया पर लोगों का रामायण, महाभारत दिखाने का डिमांड हुआ और उधर देश के सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावेड़कर द्वारा रामायण को दूरदर्शन📺(DD national)पर दिखाने की अनुमति मिल गई पर एक दौर(कांग्रेस शासित)ऐसा भी था जब इस सीरियल को दूरदर्शन पर दिखाने के लिए इस धारावाहिक के निर्माता निर्देशक, रामानंद सागर जी को कितने पापड़ बेलने पड़े थे तब कहीं जाकर बमुश्किल जैसे तैसे इस सीरियल को दूरदर्शन दिखाने की अनुमति मिल पाई थी, जरूर जानिए👇कांग्रेसी शासन के उस दौर की पूरी कहानी को।👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇*

*रामानंद सागर द्वारा निर्मित जिस रामायण टीवी सीरियल ने 80 90 के दशक के उस दौर में लोगों  को अपना दीवाना बना दिया था, इस सीरियल की दूरदर्शन टीवी चैनल पर आने की कहानी की शुरुआत १९७६ में शुरू हुई, जब फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए, एक शाम जब वे वहां के एक पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा। वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।*

*भारत मे टीवी १९५९ में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। १९७५ में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि १९८२ में एशियाड खेलों का प्रसारण सम्पूर्ण देश मे होने लगा था। १९८४ में 'बुनियाद' और 'हम लोग' की आशातीत सफलता ने टीवी की लोकप्रियता में और बढ़ोतरी की।*

*इधर रामानंद सागर उत्साह से रामायण की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन टीवी में प्रवेश को उनके साथी आत्महत्या करने जैसा बता रहे थे। सिनेमा में अच्छी पोजिशन छोड़ टीवी में जाना आज भी फ़िल्म मेकर के लिए आत्महत्या जैसा ही है। रामानंद इन सबसे अविचलित अपने काम मे लगे रहे। उनके इस काम पर कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं हुआ।*

*जैसे-तैसे वे अपना पहला सीरियल 'विक्रम और वेताल' लेकर आए। सीरियल बहुत सफल हुआ। हर आयुवर्ग के दर्शकों ने इसे सराहा। यहीं से टीवी में स्पेशल इफेक्ट्स दिखने लगे थे। विक्रम और वेताल को तो दूरदर्शन ने अनुमति दे दी थी लेकिन रामायण का कांसेप्ट न दूरदर्शन को अच्छा लगा, न तत्कालीन कांग्रेस सरकार को। यहां से रामानंद के जीवन का दुःखद अध्याय शुरू हुआ।*

*दूरदर्शन 'रामायण' दिखाने पर सहमत था किंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार इस पर आनाकानी कर रही थी। दूरदर्शन अधिकारियों ने जैसे-तैसे रामानंद सागर को स्लॉट देने की अनुमति सरकार से ले ली। ये सारे संस्मरण रामानंद जी के पुत्र प्रेम सागर ने एक किताब में लिखे थे। तो दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में रामायण को लेकर अंतर्विरोध देखने को मिल रहा था। सूचना एवं प्रसारण मंत्री बीएन गाडगिल को डर था कि ये धारावाहिक न केवल हिन्दुओं में गर्व की भावना को जन्म देगा अपितु तेज़ी से उभर रही भारतीय जनता पार्टी को भी इससे लाभ होगा।*

*इससे पहले रामानंद को अत्यंत कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। वे दिल्ली के चक्कर लगाया करते कि दूरदर्शन उनको अनुमति दे दे लेकिन सरकारी घाघपन दूरदर्शन में भी व्याप्त था। घंटों वे मंडी हाउस में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतज़ार करते। कभी वे अशोका होटल में रुक जाते, इस आस में कि कभी तो बुलावा आएगा। एक बार तो रामायण के संवादों को लेकर डीडी अधिकारियों ने उनको अपमानित किया। ये वहीं समय था जब रामानंद सागर जैसे निर्माताओं के पैर दुबई के अंडरवर्ल्ड के कारण उखड़ने लगे थे। दुबई का प्रभाव बढ़ रहा था, जो आगे जाकर दाऊद इंडस्ट्री में परिवर्तित हो गया।* 

*१९८६ में श्री राम की कृपा हुई। अजित कुमार पांजा ने सूचना व प्रसारण का पदभार संभाला और रामायण की दूरदर्शन में एंट्री हो गई। २५ जनवरी १९८७ को ये महाकाव्य डीडी पर शुरू हुआ। ये दूरदर्शन की यात्रा का महत्वपूर्ण बिंदु था। दूरदर्शन के दिन बदल गए। राम की कृपा से धारावाहिक ऐसा हिट हुआ कि रविवार की सुबह सड़कों पर स्वैच्छिक जनता कर्फ्यू लगने लगा।*

*इसके हर एपिसोड पर एक लाख का खर्च आता था, जो उस समय दूरदर्शन के लिए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। राम बने अरुण गोविल और सीता बनी दीपिका चिखलिया की प्रसिद्धि फिल्मी कलाकारों के बराबर हो गई थी। दीपिका चिखलिया को सार्वजनिक जीवन मे कभी किसी ने हाय-हेलो नही किया। उनको सीता मानकर ही सम्मान दिया जाता था।* 

*अब नटराज स्टूडियो साधुओं की आवाजाही का केंद्र बन गया था। रामानंद से मिलने कई साधु वहां आया करते। एक दिन कोई युवा साधु उनके पास आया। उन्होंने ध्यान दिया कि साधु का ओरा बहुत तेजस्वी है। साधु ने कहा वह हिमालय से अपने गुरु का संदेश लेकर आया है। तत्क्षण साधु की भाव-भंगिमाएं बदल गई। वह गरज कर बोला ' तुम किससे इतना डरते हो, अपना घमंड त्याग दो। तुम रामायण बना रहे हो, निर्भिक होकर बनाओ। तुम जैसे लोगों को जागरूकता के लिए चुना गया है। हिमालय के दिव्य लोक में भारत के लिए योजना तैयार हो रही है। अतिशीघ्र भारत विश्व का मुखिया बनेगा।'*

*आश्चर्य है कि रामानंद जी को अपने कार्य के लिए हिमालय के अज्ञात साधु का संदेश मिला। आज इतिहास उस दौर का पुनरावृत्ति कर रहा है। उस समय जनता धार्मिक धारावाहिक देखने के लिए स्वयं कर्फ्यू लगा देती थी, आज कोरोना ने लगवा दिया है। उस समय दस करोड़ लोग इसे देखते थे, पर आज इससे भी अधिक लोग इसे देखें रहें हैं। उन करोड़ों की सामूहिक चेतना हिमालय के उन गुरु तक शायद पुनः पहुंच सकेगी। शायद फिर कोई युवा साधु चला आए और हम कोरोना से लड़ रहे इस युद्ध मे विजयी बन कर उभरे, और कोरोना का पूरी तरह से वध हो सके।*
👏👏👏👏👏👏
*आज फिर एक ऐसा दौर आया है जब सत्यम_शिवम_सुन्दरम बर्षो बाद दूरदर्शन पर लौटा है।।*

*अस्सी के दशक में भारत में पहली बार #रामायण जैसे हिन्दू धार्मिक सीरियलों का दूरदर्शन पर प्रसारण शुरू हुआ... और नब्बे के दशक आते आते #महाभारत ने ब्लैक एंड वाईट टेलीविजन पर अपनी पकड मजबूत कर ली, यह वास्तविकता है की जब रामायण दूरदर्शन 1 पर रविवार को शुरू होता था... तो सड़कें, गलियाँ सूनी हो जाती थी।*

*उस समय लोगों को अपने आराध्य को टीवी पर देखने की ऐसी दीवानगी थी की रामायण सीरियल में राम बने अरुण गोविल अगर सामने आ जाते तो लोगों में उनके पैर छूने की होड़ लग जाती... इन दोनों धार्मिक सीरियलों ने नब्बे के दशक में लोगो पर पूरी तरह से जादू सा कर दिया...पर सनातनधर्म को धर्म को अफीम समझने वाले इन कम्युनिस्टों से ये ना देखा गया नब्बे के दशक में कम्युनिस्टों ने इस बात की शिकायत राष्ट्रपति से की... कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में एक समुदाय के प्रभुत्व को बढ़ावा देने वाली चीज़े दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय चैनलों पर कैसे आ सकती है ??? इससे हिन्दुत्ववादी माहौल बनता है... जो की धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा है।*

*इसी वजह से सरकार को उन दिनों “अकबर दी ग्रेट ” टीपू सुलतान.... अलिफ़ लैला.... और ईसाईयों के लिए “दयासागर “जैसे धारावाहिकों की शुरुवात भी दूरदर्शन पर करनी पड़ी, सत्तर के अन्तिम दशक में जब मोरार जी देसाई की सरकार थी और लाल कृष्ण अडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री थे... तब हर साल एक केबिनट मिनिस्ट्री की मीटिंग होती थी जिसमे विपक्षी दल भी आते थे.... मीटिंग की शुरुवात में ही एक वरिष्ठ कांग्रेसी जन उठे और अपनी बात रखते हुवे कहा की.... ये रोज़ सुबह साढ़े छ बजे जो रेडियो पर जो भक्ति संगीत बजता है... वो देश की धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है... इसे बंद किया जाए,, बड़ा जटिल प्रश्न था उनका... उसके कुछ सालों बाद बनारस हिन्दू विद्यालय के नाम से हिन्दू शब्द हटाने की मांग भी उठी... स्कूलों में रामयण और हिन्दू प्रतीकों और परम्पराओं को नष्ट करने के लिए.... सरस्वती वंदना कांग्रेस शासन में ही बंद कर दी गई... महाराणा प्रताप की जगह अकबर का इतिहास पढ़ाना... ये कांग्रेस सरकार की ही देन थी.... केन्द्रीय विद्यालय का लोगो दीपक से बदल कर चाँद तारा रखने का सुझाव कांग्रेस का ही था... भारतीय लोकतंत्र में हर वो परम्परा या प्रतीक जो हिंदुओ के प्रभुत्व को बढ़ावा देता है को सेकुलरवादियों के अनुसार धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है... किसी सरकारी समारोह में दीप प्रज्वलन करने का भी ये विरोध कर चुके है... इनके अनुसार दीप प्रज्वलन कर किसी कार्य का उद्घाटन करना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है.... जबकि रिबन काटकर उद्घाटन करने से देश में एकता आती है... कांग्रेस यूपीए सरकार के समय हमारे रास्ट्रीय चैनल दूरदर्शन से “सत्यम शिवम सुन्दरम” को हटा दिया गया था, पर ये भूल गए है कि ये देश पहले भी हिन्दू राष्ट्र था और आज भी है ये स्वयं घोषित हिन्दू देश है... आज भी भारतीय संसद के मुख्यद्वार पर “धर्म चक्र प्रवार्ताय अंकित है.... राज्यसभा के मुख्यद्वार पर “सत्यं वद--धर्मम चर“ अंकित है.... भारतीय न्यायपालिका का घोष वाक्य है “धर्मो रक्षित रक्षितः“.... और सर्वोच्च न्यायलय का अधिकारिक वाक्य है, “यतो धर्मो ततो जयः “यानी जहाँ धर्म है वही जीत है.... आज भी दूरदर्शन का लोगो... सत्यम शिवम् सुन्दरम है।*

*पर ये भूल गए हैं की आज भी सेना में किसी जहाज या हथियार टैंक का उद्घाटन नारियल फोड़ कर ही किया जाता है... ये भूल गए है की भारत की आर्थिक राजधानी में स्थित मुंबई शेयर बाजार में आज भी दिवाली के दिन लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है... ये कम्युनिस्ट भूल गए है की स्वयं के प्रदेश जहाँ कम्युनिस्टों का 34 साल शासन रहा, वो बंगाल.... वहां आज भी घर घर में दुर्गा पूजा होती है... ये भूल गए है की इस धर्म निरपेक्ष देश में भी दिल्ली के रामलीला मैदान में स्वयं भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति राम-लक्ष्मण की आरती उतारते है... और ये सारे हिंदुत्ववादी परंपराए इस धर्मनिरपेक्ष मुल्क में होती है...*

*ये धर्म को अफीम समझने वाले कम्युनिस्टों....!तुम धर्म को नहीं जानते.... . और इस सनातन धर्मी देश में तुम्हारी शातिर बेवकूफी अब ज्यादा दिन तक चलेगी नही ...... अब भारत जाग रहा है ,अपनी संस्कृति को पहचान रहा है।*

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