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सोमवार, 13 जुलाई 2020

प्राचीन भारत में पेड़ों की एहमियत 


मोहेंजो-दारो से मिली 4500 पुरानी सील

 क्या आपको पता है कि भारत में सबसे पुराना चित्रित पेड़ पीपल है? मोहेंजो -दारो से मिली 4500 साल पुरानी सील में पीपल को रचना का पेड़ बताया गया है। इसमें कोई शक़ नही कि प्राचीन समय से भारतीय महाद्वीप में वृक्षों का आध्यात्मिक महत्व रहा है। कहा जा सकता है कि पेड़ों की पूजा यहां धर्म का सबसे पुराना रुप है।


पुराणों में पर्यावरण

प्राक्कथन अश्वत्थो वटवृक्षचन्दनतरूर्मन्दार- कल्पद्रुमौ ।
जम्बू-निम्ब-कदम्ब-चूत-सरला वृक्षाश्च ये क्षीरिणः।।
सर्वे ते फलमिश्रिताः प्रतिदिनं विभ्राजिता सर्वतो।
रम्यं चैत्ररथं सनन्दनवनं कुर्वन्तु नो मंगलम्।।

यदि यह कहा जाय कि सम्पूर्ण सृष्टि वृक्षों पर आश्रित है तो अतिशयोक्ति न होगी। जहां वृक्षों की उपेक्षा हुई वहां विनाश हुआ, जहां इन्हें महत्व दिया गया वहां सतयुगी सुख की अविरल गंगा प्रवाहित होती रही। कई हजार वर्षों का हमारा विश्व इतिहास इसका साक्षी है। मनुष्य का उद्भव वनों में हुआ है। इनके पूर्वज करोडों वर्षों से वनों पर ही आश्रित जीवन व्यतीत करते रहे हैं- अतः मनुष्य के जेहन में वन की आवश्यकता बहुत गहराई तक व्याप्त है। वह इनसे दूर रहकर स्थाई आन्तरिक तृप्ति नही प्राप्त कर सकता। शायद यही कारण है कि महानगरों में रहने वाले लोगों को वनों के दर्शन, संस्पर्शन व परिक्रमण में असीम सुख की प्राप्ति होती है।
पुराणों के अनुसार वृक्षों की सेवा से सम्पूर्ण सृष्टि की सेवा करने का पुण्य कार्य सम्पन्न होता है। वृक्षों की सेवा में जल से सिंचन का स्थान सर्वोपरि है। पर्याप्त जल पाने से वृक्ष की जीवन की रक्षा होती है, ये तेजी से बढ़ते हैं, इन पर आश्रित प्राणियों को सुख मिलता है व पर्यावरण सुधरता है।
स्कन्द पुराण में, भविष्योत्तर पुराण में तथा अन्य पुराणों में भी तुलसी, पीपल तथा बेल इत्यादि वृक्षों इत्यादि वृक्षों में धार्मिक माहात्म्य के द्वारा जल सिंचन का प्रावधान है जो हमारी धार्मिक-मान्यताओं में आज भी प्रचलित है।
मानवी चेतना पर शोध करने वाले ऋषियों, विद्वानों का मानना है कि तरूसेवा में व्यक्ति जो श्रम और पुरूषार्थ व्यय करता है उससे उसका पाप क्षीण होता है, पुण्य बल बढ़ता है व इसके प्रभाववश सभी प्रकार के दुखःदुर्भाग्य दूर होते हैं व सुख-सौभाग्य का अभ्युदय होता है। यह अर्जन बिना श्रम के नहीं बल्कि तपस्या के बदले होता है। जल सिञ्चन के बहाने पवित्र वृक्षों का सान्निघ्य हमें सद्विचार व उस पर चलने की शक्ति देता है और व्यक्तित्व का परिष्कार करता है।

सेचनादपि वृक्षस्य रोपितस्य परेण तु।
महत्फलमवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा।। – विष्णुत्तर पुराण 3.297
अर्थात् दूसरे द्वारा रोपित वृक्ष का सिंचन करने से भी महान् फलों की प्राप्ति होती है, इसमें विचार करने की आवश्यकता नही है।

वृक्षाणां कर्तनं पापं, वृक्षाणां रोपणं हितम्।
सुवृष्टिः जायते वृक्षैः उक्तं विज्ञानवादिभिः।।
स्वस्त्यस्तु विश्वस्य खलः प्रसीदतां
ध्यायन्तु भूतानि शिवं मिथो धिया।
मनश्व भद्रं भजतादधोक्षजे।
आवेश्यतां नो मतिरप्यहैतुकी।। भागवतपुराण 2.18.9.

वेदों और पुराणों में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि पेड़ों में भी प्राण होते हैं और उन्हें ‘वनस्पती’ या वन देवता कहा गया है। प्राचीन काल में भी लोगों के लिए पेड़ों का सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ संबंधी महत्व था। टिंबर और टीक का इस्तेमाल जहां पानी के जहाज़ बनाने में होता था वहीं तुलसी तथा नीम का औषधि के रुप में प्रयोग होता था। बरगद और मैंग्रोव का पर्यावरण की दृष्टि से महत्व था जबकि अन्य पेड़ आहार के रुप में इस्तेमाल होते थे।

हिंदु धर्म में पेड़ों का संबंध कई देवी-देवताओं से है। एक किवदंती के अनुसार एक बार शिव और पार्वती अंतरंग समय बिता रहे थे तभी अग्नि देवता बिना आज्ञा के अचानक अंदर आ गए। लेकिन शिव ने जब इस पर कुछ नहीं कहा तो पार्वती नाराज़ हो गईं और सभी देवताओं को पृथ्वी पर पेड़ का रुप धारण करने का श्राप दे दिया। श्राप से डरकर देवता पार्वती के पास पहुंचे और कहा कि अगर वे सभी पेड़ बन गए तो असुर शक्तिशाली हो जाएंगे। चूंकि श्राप वापस नहीं लिया जा सकता था, पार्वती ने कहा कि उनका भले ही पूरी तरह पेड़ का रुप न हो लेकिन वे कुछ हद तक पेड़ के अंदर रहेंगे। इस कथा से लोगों की इस आस्था को बल मिलता है कि इंसान की तरह पेड़ों में भी आत्मा होती है और इनमें आत्माओं का निवास होता है जिनकी वजह से वर्षा तथा धूप खिलती है। ये आत्माएं महिलाओं को वंश बढ़ाने का आशीर्वाद देती हैं और इन्हीं की वजह से फ़सल की पैदावार होती है तथा पालतू मवेशियों की संख्या बढ़ती है। पुराणों के अनुसार कमल विष्णु की नाभी से निकला था, पीपल सूर्य से पैदा हुआ और पार्वती की हथेली से इमली का पेड़ निकला था।

बोधि वृक्ष
बहरहाल, कुछ पेड़ ऐसे भी हैं जिन्हें पवित्र माना जाता है। इनमें सबसे ज़्यादा पवित्र पीपल को माना जाता है जिसे संस्कृत में 'अश्वत्थ' कहा जाता है। नचिकेता को शिक्षा देते समय यम ने अश्वत्थ को एक ऐसा वृक्ष बताया जिसकी जड़े ऊपर और टहनियां नीचे की तरफ होती हैं। ये वृक्ष अमर ब्राह्मण है जिसके भीतर सारा जग समाहित है और जिसके इतर कुछ भी नही है। इसे बोधी वृक्ष भी कहा जाता है जिसके नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। बौद्ध कविता महावासमा के अनुसार जिस वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था, बरसों बाद अशोक ने उसकी एक शाखा को कटवाकर सोने के गुलदान में लगवाया था। इसके बाद वह शाखा को लेकर पर्वतों पर गए और गंगा से होते हुए बंगाल की खाड़ी गए। बंगाल की खाड़ी में उनकी बेटी इसे लेकर श्रीलंका गईं और राजा को इसे भेंट किया।

अशोक वृक्ष का संबंध काम देवी से है। संस्कृत में अशोक का अर्थ दुख रहित होता है या ऐसा व्यक्ति जो किसी को दुख नही देता। रामाय़ण में रावण द्वारा हरण के बाद सीता को अशोक वृक्ष के नीचे रखा गया था।
बरगद का पेड़ शिव, विष्णु और ब्रह्मा का प्रतीक है। ज़्यादातर लोगों का विश्वास है कि बरगद जीवन और उर्वरता का सूचक है। दिलचस्प बात ये है कि भारत आए कई विदेशी सैलानियों ने इस वृक्ष का ज़िक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि बनिये इस पेड़ के नीचे बैठकर व्यापार करते है। सदियों तक गांव में बरगद के पेड़ के नीचे बैठक हुआ करती थी। 1050 में भारत का राष्ट्रीय वृक्ष घोषित किया था।
इसी तरह तुलसी को भी पवित्र माना जाता है। हिंदु इसे तुलसी/वृंदा देवी का सांसारिक रुप मानते हैं। उसे लक्ष्मी का अवतार कहते है और इस तरह वह भगवान की पत्नी हुईं।

उत्तर प्रदेश के शहर वृंदावन का नाम तुलसी से लिया गया है

बेल के पेड़ का संबंध भगवान शिव से है। इसके तिकोन पत्ते भगवान के तीन कार्यों को दर्शाते हैं- रचना, संरक्षण और विनाश। ये पत्ते शिव की तीन आंखों को भी दर्शाते हैं।
वृक्ष-पूजा से वृक्षवाटिकाओं की उत्पत्ति हुई। गांव को लोग वनों की रक्षा करते थे और उनका मानना था कि वन में भगवान निवास करते हैं। इस विश्वास या अंधविश्वास की वजह से चाहे अनचाहे पारिस्थितिक चेतना पैदा हो गई। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है राजस्थान में जोधपुर के गांव खेकारली में विश्नोई का बलिदान। 1730 में जोधपुर के सासक महाराजा अभय सिंह ने अपने नये क़िले के निर्माण के लिए भेड़ को भूनने के उद्देश्य से गांव के खेजड़ी पेड़ों को काटने का आदेश दिया था। पेड़ काटने के लिए महाराजा के मंत्री गिरधारी भंडारी के नेतृत्व में एक दल गांव पहुंचा। लेकिन अमृता देवी नाम की एक स्थानीय महिला ने इसका विरोध किया। उसने कहा, “सिर की क़ीमत पर भी अगर एक पेड़ बच सकता है तो ये बलिदान सार्थक है।
” अमृता देवी और उनकी तीन बेटियां पेड़ को कटने से रोकने के लिए पेड़ों से लिपट गईं। ये ख़बर फ़ैलते ही विश्नोई समाज के लोग भी वहां जमा होकर पेड़ से लिपट गए। इस विरोध में करीब 363 विश्नोई पुरुष, महिलाओं और बच्चों की जानें चली गईं क्योंकि पेड़ों के साथ उन्हें भी काट डाला गया। महाराजा को जब ये ख़बर मिली तो उन्हें बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने उनके अधिकारियों की ग़लती के लिए माफी मांगी। इसके बाद उन्होंने शाही फ़रमान जारी कर हरेभरे पेड़ों को काटने और विश्नोई गांवों के आसपास शिकार पर रोक लगा दी।
ये बलिदान 70 के दशक में हुए चिपको आंदोलन की प्रेरणा बना था। लेकिन पेड़ और प्रकृति बचाने के मामले में हमें अभी और लंबा सफ़र तय करना है। आदिम समय में भारतीय लोग आग, घर, भोजन, कपड़े और हथियारों के लिए पेड़ों का इस्तेमाल करते थे लेकिन उन्हें पेड़ों की एहमियत का भी अंदाज़ा था। इस मामले में वे भगवान की तरह थे। लेकिन क्या आपको लगता है कि आज हम एक ऐसी परंपरा को भूलते जा रहे हैं जो हमारी प्रकृति के लिए घातक है?

संसार में पाए जाने वाले हर एक पेड़-पौधे में कोई ना कोई औषधीय गुण जरूर होता है, ये बात अलग है कि औषधि विज्ञान के अत्याधुनिक हो जाने के बावजूद भी हजारों पेड़-पौधे ऐसे हैं, जिनके औषधीय गुणों की जानकारी किसी को नहीं। सामान्यत: यह मानना है कि छोटी शाक या जड़ी-बूटियों में ही ज्यादा औषधीय गुण पाए जाते हैं,  मध्यम आकार के पेड़ और बड़े-बड़े वृक्षों और उनमें गजब के औषधीय गुणों की भरमार होती है। जाने पेड़ों औषधीय गुणों के बारे में...

बेलबेल: मंदिरों, आँगन, रास्तों के आस-पास प्रचुरता से पाये जाने वाले इस वृक्ष की पत्तियाँ शिवजी की आराधना में उपयोग में लायी जाती है। इस वृक्ष का वानस्पतिक नाम एजिल मारमेलस है। बेल की पत्तियों मे टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम जैसे रसायन पाए जाते है। पत्तियों का रस यदि घाव पर लगाया जाए तो घाव जल्द सूखने लगता है। गुजरात प्राँत के डाँग जिले के आदिवासी बेल और सीताफल पत्रों की समान मात्रा मधुमेह के रोगियों के देते है। गर्मियों मे पसीने और तन की दुर्गंध को दूर भगाने के लिये यदि बेल की पत्तियों का रस नहाने के बाद शरीर पर लगा दिया जाए तो समस्या से छुटकारा मिल सकता है।

 जामुन
 जामुन
जामुन: जंगलों, गाँव के किनारे, खतों के किनारे और उद्यानों में जामुन के पेड़ देखे जा सकते हैं। जामुन का वानस्पतिक नाम सायजायजियम क्युमिनी है। जामुन में लौह और फास्फोरस जैसे तत्व प्रचुरता से पाए जाते है, जामुन में कोलीन तथा फोलिक एसिड भी भरपूर होते है। पातालकोट के आदिवासी मानते है कि जामुन के बीजों के चूर्ण की दो-दो ग्राम मात्रा बच्चों को देने से बच्चे बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते हैं। जामुन के ताजे पत्तों की लगभग 50 ग्राम मात्रा लेकर पानी (300 मिली) के साथ मिक्सर में रस पीस लें और इस पानी को छानकर कुल्ला करें, इससे मुंह के छाले पूरी तरह से खत्म हो जाते है।

नीम
नीम: प्राचीन आर्य ऋषियों से लेकर आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान नीम के औषधीय गुणों को मानता चला आया है। नीम व्यापक स्तर पर संपूर्ण भारत में दिखाई देता है। नीम का वानस्पतिक नाम अजाडिरक्टा इंडिका है। नीम में मार्गोसीन, निम्बिडिन, निम्बोस्टेरोल, निम्बिनिन, स्टियरिक एसिड, ओलिव एसिड, पामिटिक एसिड, एल्केलाइड, ग्लूकोसाइड और वसा अम्ल आदि पाए जाते हैं। नीम की निबौलियों को पीसकर रस तैयार कर लिया जाए और इसे बालों पर लगाया जाए तो जूएं मर जाते हैं। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार नीम के गुलाबी कोमल पत्तों को चबाकर रस चूसने से मधुमेह रोग मे आराम मिलता है।

नीलगिरी
नीलगिरी: यह पेड़ काफी लंबा और पतला होता है। इसकी पत्तियों से प्राप्त होने वाले तेल का उपयोग औषधि और अन्य रूप में किया जाता है। नीलगिरी की पत्तियां लंबी और नुकीली होती हैं जिनकी सतह पर गांठ पाई जाती है और इन्हीं गाठों में तेल संचित रहता है। नीलगिरी का वानस्पतिक नाम यूकेलिप्टस ग्लोब्यूलस होता है। शरीर की मालिश के लिए नीलगिरी का तेल उपयोग में लाया जाए तो गम्भीर सूजन तथा बदन में होने वाले दर्द नष्ट से छुटकारा मिलता है, वैसे आदिवासी मानते है कि नीलगिरी का तेल जितना पुराना होता जाता है इसका असर और भी बढता जाता है। इसका तेल जुकाम, पुरानी खांसी से पीड़ित रोगी को छिड़ककर सुंघाने से लाभ मिलता है।

पलाश
पलाश: मध्यप्रदेश के लगभग सभी इलाकों में पलाश या टेसू प्रचुरता से पाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम ब्युटिया मोनोस्पर्मा है। पलाश की छाल, पुष्प, बीज और गोंद औषधीय महत्त्व के होते हैं। पलाश के गोंद में थायमिन और रिबोफ़्लेविन जैसे रसायन पाए जाते है। पतले दस्त होने के हालात में यदि पलाश का गोंद खिलाया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिलता है। पलाश के बीजों को नींबूरस में पीसकर दाद, खाज और खुजली से ग्रसित अंगो पर लगाया जाए तो फ़ायदा होता है।
पीपल
पीपल
 पीपल: पीपल के औषधीय गुणों का बखान आयुर्वेद में भी देखा जा सकता है। पीपल का वानस्पतिक नाम फ़ाइकस रिलिजियोसा है। मुँह में छाले हो जाने की दशा में यदि पीपल की छाल और पत्तियों के चूर्ण से कुल्ला किया जाए तो आराम मिलता है। पीपल की एक विशेषता यह है कि यह चर्म-विकारों को जैसे-कुष्ठ, फोड़े-फुन्सी दाद-खाज और खुजली को नष्ट करता है। डाँगी आदिवासी पीपल की छाल घिसकर चर्म रोगों पर लगाने की राय देते हैं। कुष्ठ रोग में पीपल के पत्तों को कुचलकर रोगग्रस्त स्थान पर लगाया जाता है तथा पत्तों का रस तैयार कर पिलाया जाता है।

अमलतास
अमलतास
अमलतास: झूमर की तरह लटकते पीले फ़ूल वाले इस पेड़ को सुंदरता के लिये अक्सर बाग-बगीचों में लगाया जाता है हालांकि जंगलों में भी इसे अक्सर उगता हुआ देखा जा सकता है। अमलतास का वानस्पतिक नाम केस्सिया फ़िस्टुला है। अमलतास के पत्तों और फूलों में ग्लाइकोसाइड, तने की छाल टैनिन, जड़ की छाल में टैनिन के अलावा ऐन्थ्राक्विनीन, फ्लोवेफिन तथा फल के गूदे में शर्करा, पेक्टीन, ग्लूटीन जैसे रसायन पाए जाते है। पॆट दर्द में इसके तने की छाल को कच्चा चबाया जाए तो दर्द में काफी राहत मिलती है। पातालकोट के आदिवासी बुखार और कमजोरी से राहत दिलाने के लिए कुटकी के दाने, हर्रा, आँवला और अमलतास के फलों की समान मात्रा लेकर कुचलते है और इसे पानी में उबालते है, इसमें लगभग पांच मिली शहद भी डाल दिया जाता है और ठंडा होने पर रोगी को दिया जाता है।


रीठा: एक मध्यम आकार का पेड़ होता है जो अक्सर जंगलों के आसपास देखा जा सकता है। रीठा का वानस्पतिक नाम सेपिंडस एमार्जीनेटस होता है। रीठा के फलों में सैपोनिन, शर्करा और पेक्टिन नामक रसायन पाए जाते है। आदिवासियों की मानी जाए तो रीठा के फलों का चूर्ण नाक से सूंघने से आधे सिर का दर्द या माईग्रेन खत्म हो जाता है। पातालकोट के आदिवासी कम से कम 4 फल लेकर इसमें 2 लौंग की कलियाँ डालकर कूट लेते है और चिमटी भर चूर्ण लेकर एक चम्मच पानी में मिला लेते है और धीरे धीरे इस पानी की बूँदों को नाक में टपकाते है, इनका मानना है कि यह माईग्रेन के इलाज में कारगर है

अर्जुन
 अर्जुन: अर्जुन का पेड़ आमतौर पर जंगलों में पाया जाता है और यह धारियों-युक्त फलों की वजह से आसानी से पहचान आता है, इसके फल कच्चेपन में हरे और पकने पर भूरे लाल रंग के होते हैं। अर्जुन का वानस्पतिक नाम टर्मिनेलिया अर्जुना है। औषधीय महत्व से इसकी छाल और फल का ज्यादा उपयोग होता है। अर्जुन की छाल में अनेक प्रकार के रासायनिक तत्व पाये जाते हैं जिनमें से प्रमुख कैल्शियम कार्बोनेट, सोडियम व मैग्नीशियम प्रमुख है। आदिवासियों के अनुसार अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन से छह ग्राम गुड़, शहद या दूध के साथ दिन में दो या तीन बार लेने से दिल के मरीजों को काफी फ़ायदा होता है। वैसे अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें इससे उच्च-रक्तचाप भी सामान्य हो जाता है।
अशोक
अशोक
 अशोक: ऐसा कहा जाता है कि जिस पेड़ के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे अशोक कहते हैं। अशोक का पेड़ सदैव हरा-भरा रहता है, जिसपर सुंदर, पीले, नारंगी रंग फ़ूल लगते हैं। अशोक का वानस्पतिक नाम सराका इंडिका है। अशोक की छाल को कूट-पीसकर कपड़े से छानकर रख लें, इसे तीन ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर में आराम मिलता है। पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार यदि महिलाएं अशोक की छाल 10 ग्राम को 250 ग्राम दूध में पकाकर सेवन करें तो माहवारी सम्बंधी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
कचनार
कचनार
कचनार: हल्के गुलाबी लाल और सफ़ेद रंग लिये फ़ूलों वाले इस पेड़ को अक्सर घरों, उद्यानों और सड़कों के किनारे सुंदरता के लिये लगाया जाता है। कचनार का वानस्पतिक नाम बाउहीनिया वेरीगेटा है। मध्यप्रदेश के ग्रामीण अँचलों में दशहरे के दौरान इसकी पत्तियाँ आदान-प्रदान कर एक दूसरे को बधाईयाँ दी जाती है। इसे सोना-चाँदी की पत्तियाँ भी कहा जाता है। पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार जोड़ों के दर्द और सूजन में आराम के लिये इसकी जड़ों को पानी में कुचलते है और फ़िर इसे उबालते है। इस पानी को दर्द और सूजन वाले भागों पर बाहर से लेपित करने से काफी आराम मिलता है। मधुमेह की शिकायत होने पर रोगी को प्रतिदिन सुबह खाली पेट इसकी कच्ची कलियों का सेवन करना चाहिए।
गुन्दा
गुन्दा
गुन्दा: गुन्दा मध्यभारत के वनों में देखा जा सकता है, यह एक विशाल पेड़ होता है जिसके पत्ते चिकने होते है, आदिवासी अक्सर इसके पत्तों को पान की तरह चबाते है और इसकी लकड़ी इमारती उपयोग की होती है। इसे रेठु के नाम से भी जाना जाता है, हलाँकि इसका वानस्पतिक नाम कार्डिया डाईकोटोमा है। इसकी छाल की लगभग 200 ग्राम मात्रा लेकर इतने ही मात्रा पानी के साथ उबाला जाए और जब यह एक चौथाई शेष रहे तो इससे कुल्ला करने से मसूड़ों की सूजन, दांतो का दर्द और मुंह के छालों में आराम मिल जाता है। छाल का काढ़ा और कपूर का मिश्रण तैयार कर सूजन वाले हिस्सों में मालिश की जाए तो फ़ायदा होता है।
फालसा
फालसा
11) फालसा: फ़ालसा एक मध्यम आकार का पेड़ है जिस पर छोटी बेर के आकार के फल लगते है। फ़ालसा मध्यभारत के वनों में प्रचुरता से पाया जाता है। फ़ालसा का वानस्पतिक नाम ग्रेविया एशियाटिका है। खून की कमी होने पर फालसा के पके फल खाना चाहिए इससे खून बढ़ता है। अगर शरीर में त्वचा में जलन हो तो फालसे के फल या शर्बत को सुबह-शाम लेने से अतिशीघ्र आराम मिलता है। यदि चेहरे पर निकल आयी फुंसियों में से मवाद निकलता हो तो उस पर फालसा के पत्तों को पीसकर लगाने से मवाद सूख जाता है और फुंसिया ठीक हो जाती हैं।
बरगद
 बरगद
 बरगद: बरगद को 'अक्षय वट' भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड़ कभी नष्ट नहीं होता है। बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है। बरगद का वानस्पतिक नाम फाइकस बेंघालेंसिस है। पेशाब में जलन होने पर दस ग्राम ग्राम बरगद की हवाई जड़ों का बारीक चूर्ण, सफ़ेद जीरा और इलायची (दो-दो ग्राम) का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ लिया जाए तो अतिशीघ्र लाभ होता है। पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर दाद-खाज खुजली पर लेप लगाया जाए तो फायदा जरूर होता है।


बहेड़ा
बहेड़ा: बहेड़ा मध्य भारत के जंगलों में प्रचूरता से उगने वाला एक पेड़ है जो बहुत ऊँचा, फैला हुआ और लंबे आकार का होता हैं। इसके पेड़ 18 से 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं। बहेड़ा का वानस्पतिक नाम टर्मिनेलिया बेलिरिका है। पुरानी खाँसी में 100 ग्राम बहेड़़ा के फलों के छिलके लें, उन्हें धीमी आँच में तवे पर भून लीजिए और इसके बाद पीस कर चूर्ण बना लीजिए। इस चूर्ण का एक चम्मच शहद के साथ दिन में तीन से चार सेवन बहुत लाभकारी है। बहेड़ा के बीजों को चूसने से पेट की समस्याओं में आराम मिलता है और यह दांतो की मजबूती के लिए भी अच्छा उपाय माना जाता है।

शहतूत


शहतूत: मध्य भारत में ये प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। वनों, सड़कों के किनारे और बाग-बगीचों में इसे देखा जा सकता है। इसका वानस्पतिक नाम मोरस अल्बा है। शहतूत की छाल और नीम की छाल को बराबर मात्रा में कूट कर इसके लेप को लगाने से मुहांसे ठीक हो जाते हैं। शहतूत में विटामिन-, कैल्शियम, फास्फोरस और पोटेशियम अधिक मात्रा में मिलता हैं। इसके सेवन से बच्चों को पर्याप्त पोषण तो मिलता ही है, साथ ही यह पेट के कीड़ों को भी समाप्त करता है। शहतूत खाने से खून से संबंधित दोष समाप्त होते हैं
 
महुआ



महुआ: महुआ एक विशाल पेड़ होता है जो अक्सर खेत, खलिहानों, सड़कों के किनारों पर और बगीचों में छाया के लिए लगाया जाता है और इसे जंगलों में भी प्रचुरता से देखा जा सकता है। महुआ का वानस्पतिक नाम मधुका इंडिका है। आदिवासियों के अनुसार महुआ की छाल का काढ़ा तैयार कर प्रतिदिन 50 मिली लिया जाए तो चेहरे से झाइयां और दाग-धब्बे दूर हो जाते है। इसी काढ़ें को अगर त्वचा पर लगाया जाए तो फोड़े, फुन्सियाँ आदि से छुटकारा मिल जाता है। वैसे डाँग- गुजरात के आदिवासी इसी फार्मूले का उपयोग गाठिया रोग से परेशान रोगियों के लिए करते हैं।

रेगिस्तान का अमृत पीलू
पीलू: पश्चिमी राजस्थान के इस रेगिस्तानी इलाक़े पोकरण पर कुदरत की भी मेहरबानियां हैं। यहां पाए जाने वाले एक पेड़ को स्थानीय भाषा में जाल के नाम से जाना जाता है। इसी जाल के पेड़ पर छोटे छोटे रसीले पीलू के फल लगते हैं। यह फल मई जून तथा हिन्दी के ज्येष्ठ आधे आषाढ़ माह में लगते हैं। इसकी विशेषता यह है कि रेगिस्तान में जितनी अधिक गर्मी और तेज़ लू चलेगी पीलू उतने ही रसीले मीठे होंगे। लू के प्रभाव को कम करने के लिए यह एक रामबाण औषधि मानी जाती है।
इसे खाने से शरीर में केवल पानी की कमी पूरी हो जाती है बल्कि लू भी नहीं लगती है। अत्यधिक मीठे और रस भरे इस फल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे अकेला खाते ही जीभ छिल जाती है, ऐसे में एक साथ आठ-दस दाने मुंह में डालने पड़ते हैं। रेगिस्तान के इस फल को देसी अंगूर भी कहा जाता है। इसीलिए यहां के आम और ख़ास सभी इसे बड़े चाव से इसे खाते हैं। घर आये मेहमानों के सामने इसे परोसा जाता है और एक दूसरे को उपहार स्वरुप भी दिए जाते हैं।

 

तुलसी

तुलसी: तुलसी को आयुर्वेद मे बहुत महत्वपपूर्ण माना गया है |तुलसी की पूजा भी की जाती है और इसकी सुगंध से आस पास का वातावरण भी पवित्र महसूस होता है|तुलसी के पत्तों मे ऐसे बहुत से एंटी ऑक्सीडेंट (Anti Oxident) गुण होते है जो त्वचा और शरीर के कई प्रकार के रोग के इलाज मे लाभदायक है|इसके साथ इसमे विटामिन सी (Vitamin-C), विटामिन (Vitamin-A), विटामिन के (Vitamin-K), आयरन, कैल्सियम और भी कई तरीके के पोषक तत्व मोजूद होते है जो शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होते है| तुलसी के गुण अदभुत हैं, इसलिए इसे औषधीय पौधा माना जाता हैं। तुलसी के उपयोग से कई सारे रोगों का शमन हो जाता है। यह पित्तनाशक, कुष्ठ निवारक, पसली में दर्द, कफ, ख़ून में विकार के उपचार में रामबाण की तरह काम करती हैं। दिल के लिए यह अत्यंत उपयोगी औषधि है। रोजाना तुलसी के पत्ते चबाने से शरीर मे रोगो से लड़ने की क्षमता बढ़ती
तुलसी के गुण


  • बारिश के मौसम मे रोजाना तुलसी के 5 पत्तों का सेवन करने से बुखार और ज़ुकाम जैसी समस्या पास नहीं आती|
  • तुलसी, अदरक, मुलैठी इन सब चिजो को घोटकर शहद के साथ लेने से सर्दी और बुखार से राहत मिलती है|
  • मासिक धर्म के चलते अगर कमर मे दर्द हो रहा है तो एक चम्मच तुलसी का रस पीलें|इसके अलावा भी तुलसी के पत्ते चबाने से मासिक धर्म नियंत्रित रहता है|
  • तुलसी की पत्तियों को हल्की आग पर सेक कर नमक लगाकर खाने से खांसी और गला बैठने जैसी समस्या ठीक हो जाती है|
  • आंखो की जलन के लिए तुलसी का अर्क बहुत कारगर होता है| रात मे रोजाना तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखो मे डालना चाहिए|
  • ठंडों मे तुलसी के दस पत्ते ,पाँच काली मिर्च और चार बादाम गिरि इन सब चीज़ों को पीस कर आधा ग्लास पानी मे एक चम्मच शहद के साथ लेने से सभी प्रकार के हृदय के रोग ठीक हो जाते है|तुलसी की 4-5 पत्तियां और नीम के दो पत्तों के रस को 4-5 चम्मच पानी मे घोट कर पाँच से सात दिन खाली पेट सेवन करें इससे उच्च रक्तचाप ठीक हो जाता है|
  • तुलसी के पत्तों का सोंठ के साथ सेवन करने से लगातार आने वाला बुखार ठीक हो जाता है|
  • तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है|तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया जूस जैसे तुलसी का अर्क शहद के साथ नियमित रूप से 6 महीने तक सेवन करने से किडनी की पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकाल जाती है|
  

आंवला को आमतौर पर भारतीय गूज़बैरी और नेल्ली के नाम से जाना जाता है। इसे इसके औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके फल विभिन्न दवाइयां तैयार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। आंवला से बनी दवाइयों से अनीमिया, डायरिया, दांतों में दर्द, बुखार और जख्मों का इलाज किया जाता है। विभिन्न प्रकार के शैंपू, बालों में लगाने वाला तेल, डाई, दांतो का पाउडर, और मुंह पर लगाने वाली क्रीमें आंवला से तैयार की जाती है। यह एक मुलायम और बराबर शाखाओं वाला वृक्ष है, जिसकी औसत उंचाई 8-18 मीटर होती है। इसके फूल हरे-पीले रंग के होते हैं और यह दो किस्म के होते हैं, नर फूल और मादा फूल। इसके फल हल्के पीले रंग के होते हैं,जिनका व्यास 1.3-1.6 सैं.मी होता है। भारत में उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश आंवला के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
आँवला
दाह, खाँसी, श्वास रोग, कब्ज, पाण्डु, रक्तपित्त, अरुचि, त्रिदोष, दमा, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है। वीर्य को पुष्ट करके पौरुष बढ़ाता है, चर्बी घटाकर मोटापा दूर करता है। सिर के केशों को काले, लम्बे घने रखता है। दाँत-मसूड़ों की खराबी दूर होना, कब्ज, रक्त विकार, चर्म रोग, पाचन शक्ति में खराबी, नेत्र ज्योति बढ़ना, बाल मजबूत होना, सिर दर्द दूर होना, चक्कर, नकसीर, रक्ताल्पता, बल-वीर्य में कमी, बेवक्त बुढ़ापे के लक्षण प्रकट होना, यकृत की कमजोरी खराबी, स्वप्नदोष, धातु विकार, हृदय विकार, फेफड़ों की खराबी, श्वास रोग, क्षय, दौर्बल्य, पेट कृमि, उदर विकार, मूत्र विकार आदि अनेक व्याधियों के घटाटोप को दूर करने के लिए आँवला बहुत उपयोगी है

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

जिसने करोड़ो रुपया इस नेटवर्क व्यापार से कमाया।।

डायरेक्ट सेलिंग कांसेप्ट का पाठ बेशक आज भारत और हावर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाया जा रहा हो या फिर चाहे दुनिया के लगभग 90% प्रोफेशन से जुड़े करोड़ो लोग नेटवर्क मार्केटिंग में किस्मत आजमाते हों लेकिन कुछ पुरानी पद्धति के लोग आज भी नेटवर्क मार्केटिंग को देख कर पता नहीं क्यों नज़र टेढ़ी कर लेते हैं।। 

इन्हें पता धता कुछ नहीं और अपनी मनगढ़त राय नेटवर्क व्यापार के बारे में पेश कर देते हैं।। 

जब ये लोग किसी नेटवर्किंग व्यवसाय से जुड़े व्यक्ति को एक लाख , 2 लाख , 10 लाख , 50 लाख या उससे भी बड़ा चैक उठाते हुये देखते हैं तो बस इनके दिल पर कितने साँप लौटते हैं इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।।

कुछ पढ़े लिखों को तो लगता हैं कि हमने ज्यादा पढ़ाई लिखाई की है और डिग्रीयां हासिल की हैं।। इसलिये ज्यादा पैसा कमाने का हक हमको हैं।।

वैसे तो पढ़ाई लिखाई का, ज्यादा पैसा कमाने से कोई खास लेना देना नहीं है।।

किन्तु फिर भी एक लीडर की बात याद आती हैं जिसने करोड़ो रुपया इस नेटवर्क व्यापार से कमाया।। 


जब उस लीडर से पूछा गया कि आपने इतना पैसा कमाया है यह किस्मत से कमा लिया या फिर इसके लिये कुछ पढ़ाई लिखाई भी की है।।

हँसी मजाक में यह प्रश्न पूछ लिया गया।।

और फिर उस लीडर ने भी मुस्कुराते हुये जवाब दे दिया कि पुरानी पद्धति का पढ़ा लिखा व्यक्ति नौकरी पाने के लिये एक या दो बार इंटरव्यू देता हैं और हम लोगों को तो रोजाना दिन में पता नहीं कितनी बार इंटरव्यू देने होते हैं।। 
क्योंकि जब हम प्लान शो करते हैं तो एक से लेकर एक हज़ार प्रश्न हमसे पूछ लिये जाते हैं।। 
इसलिए इनका जवाब देने की तैयारी भी करनी पड़ती है।। 
और रही बात किताब पढ़ने की तो जितनी किताबें मैंने पढ़ी हैं उतने में तो मैं कई बार इंजीनियर, कई बार डॉक्टर या कई बार पी0एच0डी0 कर चुका होता।।

उस लीडर ने बताया कि 40 लाख से ज्यादा वह खर्च कर चुका है किताबों के ऊपर और इस व्यापार को सिखाने वाली ट्रेनिंग में जा जाकर।।
कुंतलो वजन है उन किताबों का जो उसके घर पर रखी हुई हैं।।

उस लीडर ने बात को जारी रखते हुये कहा कि दुनिया का चाहे जो भी प्रोफेशन हो हर जगह दो तरह के लोग मिलेंगे एक रिस्क उठाने वाला और दूसरा रिस्क ना उठाने वाला और मजे की बात है कि कामयाबी को रिस्क उठाने वाले लोग ज्यादा पसंद आते हैं।

वाकई में दुनिया का कोई भी प्रोफेशन हो आपको दो तरह के लोग मिलेंगे। लेकिन एक बहुत साधारण जीवन गुजरेगा और दूसरा वो जीवन गुजरेगा जिसको दुनिया किस्मत कहती हैं लेकिन जिसकी उत्पत्ति Risk की बुनियाद पर होती है।।

मैं अपने प्रोफेशन को सलाम करता हूँ क्योंकि दुनिया के बहुत कम ऐसे प्रोफेशन हैं जहाँ आम आदमी भी बड़े बड़े ख्वाबों को पूरा करने का हौसला रखते हुये कामयाबी की हर दहलीज को पार कर सकता है और इसमें कोई दो राय नही की जब नेटवर्क व्यवसाय में एक आदमी कामयाब होता है तो उसके साथ साथ हज़ारों जिंदगियां भी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ जाती हैं।। 

मुझे गर्व है कि मैं इस महान नेटवर्क व्यवसाय का एक हिस्सा हूँ।।
😊🙏

जितने भी पढ़ें लिखे
लोग है 
एक ही बात कहना चाहूंगा
आप मानो या ना मानो
आनेवाला वक़्त
सिर्फ और सिर्फ
नेटवर्क मार्केटिंग का ही है

आज यदि खुशी से नहीं आए तोह
कल
मजबूरी लाएगी आपको

फैसला आपका

यदि इस सुंदर व्यवसाय के बारे में ज़्यादा जानने के इच्छुक हो तो संपर्क करे।

9352174466

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

Adobe Fill & Sign app का वर्णन

Adobe Fill & Sign का वर्णन


The free Adobe Fill & Sign app streamlines the paperwork process and enhances productivity with contracts, business documents, and more.

The app lets you fill, sign, and send any form fast and reliably. You can even snap a picture of a paper form and fill it in on your phone or tablet, then e-sign and send. It’s that easy: no physical document, no printing or faxing needed.

HOW IT WORKS:

• FILL. The Adobe Fill & Sign app allows you to scan paper forms with your camera or open a file straight from your email. Simply tap to enter text or checkmarks in form fields. The app’s custom autofill entries let you fill forms even faster.

• SIGN. With the document signer, easily create your signature with your finger or a stylus, then apply it or your initials directly to the form.

• SEND. Save your forms, contracts, and business documents easily, and send to others immediately via email.


With the sleekest pdf editor and signature app out there it’s that easy.


WHAT CAN ADOBE FILL & SIGN DO FOR YOU?

• GET IT DONE NOW. Adobe Fill & Sign is an intuitive, easy-to-use platform suited to every situation. As long as you have an internet connection, the app allows you to sign documents, anytime, anywhere.

• GO GREEN. Our document signing and editing app allows you to go truly paperless. With Adobe Fill & Sign, send forms by email and avoid wasting paper.

• STAY ORGANIZED. No more messy paperwork with Fill & Sign. The app allows you to store your forms after signing and sending them. With your documents all in one place, simply access the app to consult your forms at a later date.

• GET IT DONE NOW. Adobe Fill & Sign is an intuitive, easy-to-use platform suited to every situation. As long as you have an internet connection, the app allows you to handle any forms, anytime, anywhere.

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