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शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

एक ही उद्देश्य है कि सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार फैला कर ये दिखाना कि मोदी ठीक काम नहीं कर रहा

✍️😡✍️😡✍️

 *'बिजनेस टुडे' ने GDP वाले ग्राफ को डिलीट कर दिया है।* 

 *उसके दम पर जो बड़े-बड़े अर्थशास्त्री पैदा हो गए थे,वो अब अनाथ हो चले हैं।*

 *आँखें खुलने पर पता चलता है कि भारत अभी भी दुनिया के सबसे ज्यादा विकास दर वाले देशों में से एक है।*

 *किसी देश के GDP डेटा की इस Quarter से पिछले Quarter की तुलना कर दी गई*
 *और भारत की पिछले साल के इसी Quarter से तुलना कर दी गई,*

 *स्पष्ट है कि गिरावट ज्यादा देखने को मिलेगी।*

*प्रपंचियों ने ग्राफ बनाया,* *मंदबुद्धियों ने ढोल पीटा और सरकार के अन्धविरोधियों ने बिना सोचे-समझे इसे लेकर हंगामा शुरू कर दिया।* 

मैं अर्थशास्त्री तो नहीं लेकिन जो सच में अर्थशास्त्र के ज्ञाता हैं, उनकी ही राय को आपके समक्ष रख रहा हूँ। 

मीडिया ने प्रचारित किया कि ये सबसे बड़ी गिरावट है, अर्थव्यवस्था ICU में है और मोदी सरकार फेल हो गई है। क्या लोगों को इतनी भी समझ नहीं है कि उत्पादन होता है, उसे खरीदने के लिए रुपए खर्च किए जाते हैं और कमाई बढ़ने के साथ ही कोई भी सेक्टर ऊँचाई चढ़ता है। भाई साहब, काम ही कहाँ हो रहा है कि कमाई होगी? स्कूल-कॉलेज बन्द हैं, फैक्ट्रियाँ बन्द हैं और माल के आवागमन की सुविधा बन्द है। कोई बहुत बड़ा गणित तो है नहीं ये समझना।

 *अगर उसी ग्राफ के आधार पर तुलना करें तो सिंगापुर की GDP -42.9% गिरी है,*
 *कनाडा की 38.7%,* *अमेरिका की 33% और जापान की 27.4% गिरी है।*
 पूरा विश्व इससे जूझ रहा है और इसका सरकार के परफॉरमेंस से कोई लेनादेना नहीं है। 

 *इन सबके बावजूद भारत का कृषि सेक्टर आगे बढ़ रहा है, जो अच्छी बात है।*

अब कोई ये पूछ सकता है कि चीन की भारत जितनी क्यों नहीं गिरी? पहली बात, वहाँ लोकतंत्र न होने के कारण सरकार Iron Hand से फैसले लेती है। दूसरा, कोरोना से वहाँ की 05% जनसंख्या ही प्रभावित हुई। अर्थात, पूरे चीन में तो लॉकडाउन हुआ भी नहीं।

 *जबकि भारत में पूरा देश ठप्प है महीनों से। कारण है*
 *कि सरकार ने लोगों की जान को इकॉनमी से ज्यादा प्राथमिकता दी।* *हमारे पास कोई हेल्थकेयर सिस्टम नहीं था। आयुष्मान भारत से लेकर नए अस्पताल बनवाने तक,*
 *सरकार ने कोरोना से लड़ने में सारी ताकत झोंकी।*
 *हमारे सरकारी अस्पतालों में 70 साल में कितने वेंटिल्टर्स थे, सिर्फ 48,000.❓*  
 *मोदी सरकार ने PM Cares से कुछ ही महीनों में 50,000 वेंटिल्टर्स बनवा कर अस्पतालों को दिए। क्या ये नहीं गिना जाएगा❓* 
 *जनवरी 2020 तक कितने PPE किट बनाते थे हम❓ शून्य। जी हाँ, जीरो।* 

 *अब भारत में रोज 4.5 लाख PPE किट्स बनते हैं। हम दुनिया में इसका दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन गए हैं।*

 जो लोग पहले बोल रहे थे कि लॉकडाउन लगाओ, बाद में बोलने लगे कि हटाओ। लॉकडाउन नहीं होता और रोज हजारों मौतें होतीं, तब यही लोग बोल रहे होते की इकॉनमी ज्यादा जरूरी है या लोगों की जान। भारत मे कोरोना के फिलहाल 8.08 लाख सक्रिय मामले हैं। जिनमें से 44% महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में हैं। तीनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है। उन CMs से सवाल पूछे जाते हैं क्या? लेकिन जिसने काम किया, गाली उसे ही पड़ रही है।

जब GDP रिकॉर्ड हाई थी, तब यही लोग कह रहे थे कि आँकड़ों से गरीब का पेट थोड़े भरता है। जब डेटा सस्ता हुआ तो ये कह रहे थे कि गरीब को डाटा नहीं, आटा चाहिए। अब तो आटा भी मिल रहा है। 5 किलो गेहूँ और चावल के अलावा हर महीने 1 किलो चना भी गरीबों को दिया जा रहा है। छठ तक सब मुफ्त। सरकार ने गरीबों के भोजन पर ₹1.5 लाख करोड़ खर्चे। ये नहीं जोड़ा जाएगा? 
अब गरीबों को खाना मिल रहा तो आँकड़े चाहिए। 20 करोड़ गरीबों के खाते में ₹31,000 करोड़ गए। 9 करोड़ किसानों के खाते में ₹18,000 करोड़ गए। ये भी तो आँकड़े हैं।

असल मे ये सब एक कुचक्र के तहत हो रहा है। पहले ये बोल रहे थे कि कोरोना कोई बड़ी बीमारी है ही नहीं, इसे तो CAA से ध्यान भटकाने के लिए लाया गया है। बाद में इन्होंने मजदूरों को भड़का कर पूरे देश मे Mayhem का माहौल बनाया। फिर छात्रों को भड़काने में लग गए। JEE की एक परीक्षा हो भी गई। कोई परेशानी नहीं आई। कोरोना के कारण सभी छात्र परेशान हैं। जब DU और BHU सहित कई बड़े संस्थान और अन्य प्राइवेट संस्थानों की परीक्षाओं में भीड़ जुट रही है तो सरकार क्यों पीछे हटे? हाँ, सरकार छात्रों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करे, ये माँग जायज है।

 *चीन के मुद्दे पे रोज चिल्लाने वाले अब चुप हैं* *क्योंकि भारत ने कई वो हिस्से भी वापस छीन लिए हैं, जो 1962 में नेहरू ने गँवा दिए थे। अब सब चुप हैं।*

 राफेल पर हंगामा मचाया गया, जो अब शांत हो गया है। हर हंगामे के हश्र यही होना है। जो तुरन्त बहकावे में आ जाते हैं, उन्हें बाद में एहसास होता है कि वो गलत थे। अब नया मुद्दा आया है  सरकारी नौकरी का। आया नहीं है बल्कि लाया गया है। जानबूझ कर इस माहौल में इन मुद्दे को छेड़ा गया है। इसका समर्थन कर रहे बड़े नेता Railways और Safety का स्पेलिंग भी गलत लिख रहे हैं।

भारत का सरकारी Workforce कुछ ज्यादा ही बड़ा है। इसमें अधिकतर अयोग्य लोग बैठे हुए हैं। एक-एक काम के लिए कई लोग हैं। ऐसे में सरकारी नौकरियों को कम कर के लघु व माध्यम उद्योगों को बढ़ावा देना और प्राइवेट सेक्टर को नौकरियों के सृजन के लिए तैयार करना ही सिस्टम बदलने का उद्देश्य है। स्वाभाविक है कि सबको सरकारी नौकरी ही चाहिए। लेकिन, जहाँ एक ही फाइल पढ़ने के लिए 3 कर्मचारी बैठे हैं, वहाँ चौथा भी इसी काम के लिए चल जाए तो इससे सरकारी कामकाज धीमा होगा या तेज़❓
सरकार ने बड़े स्तर पर कइयों को जबरन रिटायर किया। छोटे लेवल पर ये मुश्किल है।

 *इसके बाद चला डिस्लाइक का खेल।* *पीएम मोदी के 'मन की बात' वाले वीडियोज को डिस्लाइक किया जाने लगा।*

 *पोल खुल गई।*
 
 *कुल डिस्लाइक्स में से 98% विदेश से आए थे, तुर्की जैसे कट्टर इस्लामी देशों से।*

 *02% समर्थन पाकर हंगामा करना कोई इनसे सीखे। तुर्की में किसे JEE-NEET की परीक्षा देनी है❓* 

 *इसका एक ही उद्देश्य है कि सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार फैला कर ये दिखाना कि मोदी ठीक काम नहीं कर ✍️😡✍️😡✍️

 *'बिजनेस टुडे' ने GDP वाले ग्राफ को डिलीट कर दिया है।* 

 *उसके दम पर जो बड़े-बड़े अर्थशास्त्री पैदा हो गए थे,वो अब अनाथ हो चले हैं।*

 *आँखें खुलने पर पता चलता है कि भारत अभी भी दुनिया के सबसे ज्यादा विकास दर वाले देशों में से एक है।*

 *किसी देश के GDP डेटा की इस Quarter से पिछले Quarter की तुलना कर दी गई*
 *और भारत की पिछले साल के इसी Quarter से तुलना कर दी गई,*

 *स्पष्ट है कि गिरावट ज्यादा देखने को मिलेगी।*

*प्रपंचियों ने ग्राफ बनाया,* *मंदबुद्धियों ने ढोल पीटा और सरकार के अन्धविरोधियों ने बिना सोचे-समझे इसे लेकर हंगामा शुरू कर दिया।* 

मैं अर्थशास्त्री तो नहीं लेकिन जो सच में अर्थशास्त्र के ज्ञाता हैं, उनकी ही राय को आपके समक्ष रख रहा हूँ। 

मीडिया ने प्रचारित किया कि ये सबसे बड़ी गिरावट है, अर्थव्यवस्था ICU में है और मोदी सरकार फेल हो गई है। क्या लोगों को इतनी भी समझ नहीं है कि उत्पादन होता है, उसे खरीदने के लिए रुपए खर्च किए जाते हैं और कमाई बढ़ने के साथ ही कोई भी सेक्टर ऊँचाई चढ़ता है। भाई साहब, काम ही कहाँ हो रहा है कि कमाई होगी? स्कूल-कॉलेज बन्द हैं, फैक्ट्रियाँ बन्द हैं और माल के आवागमन की सुविधा बन्द है। कोई बहुत बड़ा गणित तो है नहीं ये समझना।

 *अगर उसी ग्राफ के आधार पर तुलना करें तो सिंगापुर की GDP -42.9% गिरी है,*
 *कनाडा की 38.7%,* *अमेरिका की 33% और जापान की 27.4% गिरी है।*
 पूरा विश्व इससे जूझ रहा है और इसका सरकार के परफॉरमेंस से कोई लेनादेना नहीं है। 

 *इन सबके बावजूद भारत का कृषि सेक्टर आगे बढ़ रहा है, जो अच्छी बात है।*

अब कोई ये पूछ सकता है कि चीन की भारत जितनी क्यों नहीं गिरी? पहली बात, वहाँ लोकतंत्र न होने के कारण सरकार Iron Hand से फैसले लेती है। दूसरा, कोरोना से वहाँ की 05% जनसंख्या ही प्रभावित हुई। अर्थात, पूरे चीन में तो लॉकडाउन हुआ भी नहीं।

 *जबकि भारत में पूरा देश ठप्प है महीनों से। कारण है*
 *कि सरकार ने लोगों की जान को इकॉनमी से ज्यादा प्राथमिकता दी।* *हमारे पास कोई हेल्थकेयर सिस्टम नहीं था। आयुष्मान भारत से लेकर नए अस्पताल बनवाने तक,*
 *सरकार ने कोरोना से लड़ने में सारी ताकत झोंकी।*
 *हमारे सरकारी अस्पतालों में 70 साल में कितने वेंटिल्टर्स थे, सिर्फ 48,000.❓*  
 *मोदी सरकार ने PM Cares से कुछ ही महीनों में 50,000 वेंटिल्टर्स बनवा कर अस्पतालों को दिए। क्या ये नहीं गिना जाएगा❓* 
 *जनवरी 2020 तक कितने PPE किट बनाते थे हम❓ शून्य। जी हाँ, जीरो।* 

 *अब भारत में रोज 4.5 लाख PPE किट्स बनते हैं। हम दुनिया में इसका दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन गए हैं।*

 जो लोग पहले बोल रहे थे कि लॉकडाउन लगाओ, बाद में बोलने लगे कि हटाओ। लॉकडाउन नहीं होता और रोज हजारों मौतें होतीं, तब यही लोग बोल रहे होते की इकॉनमी ज्यादा जरूरी है या लोगों की जान। भारत मे कोरोना के फिलहाल 8.08 लाख सक्रिय मामले हैं। जिनमें से 44% महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में हैं। तीनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है। उन CMs से सवाल पूछे जाते हैं क्या? लेकिन जिसने काम किया, गाली उसे ही पड़ रही है।

जब GDP रिकॉर्ड हाई थी, तब यही लोग कह रहे थे कि आँकड़ों से गरीब का पेट थोड़े भरता है। जब डेटा सस्ता हुआ तो ये कह रहे थे कि गरीब को डाटा नहीं, आटा चाहिए। अब तो आटा भी मिल रहा है। 5 किलो गेहूँ और चावल के अलावा हर महीने 1 किलो चना भी गरीबों को दिया जा रहा है। छठ तक सब मुफ्त। सरकार ने गरीबों के भोजन पर ₹1.5 लाख करोड़ खर्चे। ये नहीं जोड़ा जाएगा? 
अब गरीबों को खाना मिल रहा तो आँकड़े चाहिए। 20 करोड़ गरीबों के खाते में ₹31,000 करोड़ गए। 9 करोड़ किसानों के खाते में ₹18,000 करोड़ गए। ये भी तो आँकड़े हैं।

असल मे ये सब एक कुचक्र के तहत हो रहा है। पहले ये बोल रहे थे कि कोरोना कोई बड़ी बीमारी है ही नहीं, इसे तो CAA से ध्यान भटकाने के लिए लाया गया है। बाद में इन्होंने मजदूरों को भड़का कर पूरे देश मे Mayhem का माहौल बनाया। फिर छात्रों को भड़काने में लग गए। JEE की एक परीक्षा हो भी गई। कोई परेशानी नहीं आई। कोरोना के कारण सभी छात्र परेशान हैं। जब DU और BHU सहित कई बड़े संस्थान और अन्य प्राइवेट संस्थानों की परीक्षाओं में भीड़ जुट रही है तो सरकार क्यों पीछे हटे? हाँ, सरकार छात्रों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करे, ये माँग जायज है।

 *चीन के मुद्दे पे रोज चिल्लाने वाले अब चुप हैं* *क्योंकि भारत ने कई वो हिस्से भी वापस छीन लिए हैं, जो 1962 में नेहरू ने गँवा दिए थे। अब सब चुप हैं।*

 राफेल पर हंगामा मचाया गया, जो अब शांत हो गया है। हर हंगामे के हश्र यही होना है। जो तुरन्त बहकावे में आ जाते हैं, उन्हें बाद में एहसास होता है कि वो गलत थे। अब नया मुद्दा आया है  सरकारी नौकरी का। आया नहीं है बल्कि लाया गया है। जानबूझ कर इस माहौल में इन मुद्दे को छेड़ा गया है। इसका समर्थन कर रहे बड़े नेता Railways और Safety का स्पेलिंग भी गलत लिख रहे हैं।

भारत का सरकारी Workforce कुछ ज्यादा ही बड़ा है। इसमें अधिकतर अयोग्य लोग बैठे हुए हैं। एक-एक काम के लिए कई लोग हैं। ऐसे में सरकारी नौकरियों को कम कर के लघु व माध्यम उद्योगों को बढ़ावा देना और प्राइवेट सेक्टर को नौकरियों के सृजन के लिए तैयार करना ही सिस्टम बदलने का उद्देश्य है। स्वाभाविक है कि सबको सरकारी नौकरी ही चाहिए। लेकिन, जहाँ एक ही फाइल पढ़ने के लिए 3 कर्मचारी बैठे हैं, वहाँ चौथा भी इसी काम के लिए चल जाए तो इससे सरकारी कामकाज धीमा होगा या तेज़❓
सरकार ने बड़े स्तर पर कइयों को जबरन रिटायर किया। छोटे लेवल पर ये मुश्किल है।

 *इसके बाद चला डिस्लाइक का खेल।* *पीएम मोदी के 'मन की बात' वाले वीडियोज को डिस्लाइक किया जाने लगा।*

 *पोल खुल गई।*
 
 *कुल डिस्लाइक्स में से 98% विदेश से आए थे, तुर्की जैसे कट्टर इस्लामी देशों से।*

 *02% समर्थन पाकर हंगामा करना कोई इनसे सीखे। तुर्की में किसे JEE-NEET की परीक्षा देनी है❓* 

 *इसका एक ही उद्देश्य है कि सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार फैला कर ये दिखाना कि मोदी ठीक काम नहीं कर रहा।*

 *वैसे समझने वाले सब समझते हैं अब।*

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 *वैसे समझने वाले सब समझते हैं अब।*

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सिक्किम में ऑर्गेनिक खेती से चार साल में दोगुना हुआ पर्यटन


सिक्किम में ऑर्गेनिक खेती से चार साल में दोगुना हुआ पर्यटन

चार जिलों और सवा छह लाख आबादी वाला सिक्किम इन दिनों ऑर्गेनिक खेती की वजह से चर्चा में है। वर्ष 2014 तक सालाना छह लाख पर्यटक ही सिक्किम आ रहे थे। लेकिन ऑर्गेनिक स्टेट घोषित होने के बाद इसमें तेजी से इजाफा हुआ। 2014-15 में साढ़े छह लाख पर्यटक आए। 2016 में 8.6 लाख और 2017 में 14 लाख पार हो गए। कृषि, उद्यानिकी और कैश क्रॉप डेवलपमेंट विभाग के सचिव खोरलो भूटिया कहते हैं- ऑर्गेनिक के कारण ही यह चमत्कार हुआ है। चार सालों में पर्यटकों की तादाद दोगुनी हो गई है। इस साल हम 20 लाख की उम्मीद कर रहे हैं। दो साल में नेपाल, भूटान समेत देश के सभी राज्यों से करीब 1100 प्रतिनिधिमंडल आकर देख चुके हैं कि यहां चल क्या रहा है? चार साल से रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर सख्ती से बंदिश है। दो साल पहले बाकायदा ऑर्गेनिक स्टेट घोषित के बाद लगातार कुछ न कुछ नया हो रहा है। राजधानी गंगटोक में बहुमंजिला किसान बाजार बन रहा है, जहां जैविक सब्जियों को लेकर किसान सीधे उपभोक्ताओं के बीच आ रहे हैं।  

इमारत अभी बन रही है, लेकिन बाजार शुरू हो चुका है। कुल 77 हजार हेक्टेयर जमीन में से इलायची, अदरक, हल्दी और बक व्हीट जैसी खास फसलों के लिए 14 हजार हेक्टेयर जमीन रिजर्व की गई है। इंडियन फामर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव (इफको) सिक्किम सरकार के साथ मिलकर जैविक फसलों के लिए 50 करोड़ रुपए लागत की प्रोसेसिंग यूनिट लगा रही है। एक साल के भीतर इनकी योजना इन्हीं चार प्रमुख फसलों को ऑर्गेनिक सिक्किम के ब्रांड से देश के हर मॉल तक ले जाने की है। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रांड सिक्किम दाखिल होगा।

जैविक जुनून की तीन प्रतिनिधि कहानियां-

1. थ्रीडी एनिमेशन का काम छोड़कर बेंगलुरू से आए

37 साल के शिशिर खड़का रानीपुल के रहने वाले हैं। बंंेगलुरू में तीन साल तक थ्रीडी एनिमेशन की पढ़ाई की। दो साल वहीं नौकरी की। जैविक का माहौल बना तो तीन साल पहले लौटकर आ गए। किसानों से खरीदकर इलायची, हल्दी, अदरक, बक व्हीट और कुट्‌टू के पावडर, चिप्स और नूडल्स का सुंदर सिक्किम नाम से अपना ही ब्रांड बना लिया।

 तीन साल में ही टर्न ओवर 80 लाख रुपए। 

रानीपुल में फैक्ट्री बन रही है। अब सिलीगुड़ी और कोलकाता ले जाने की तैयारी है। शिशिर कहते हैं- पैसा अपनी जगह है। बड़ी बात है कि सिक्किम के सीएम समेत इस फील्ड के कई बड़े लोग मुझे पहचानते हैं। बेंगलुरू की नौकरी में क्या यह मुमकिन था?

2. ढाई एकड़ से छह लाख रुपए सालाना कमाई…

खामदोंग गांव के 44 वर्षीय डीपी सुबेदी के पास ढाई एकड़ जमीन हैं। उनके पिता इसी जमीन पर सिर्फ भरण-पोषण लायक ही उपज ले पाते थे। सिर्फ लाख-डेढ़ लाख के अदरक और संतरे ही बाहर बिकते थे। वर्ष 2006 में सुबेदी ने काम संभाला। उन्हाेंने हर एक इंच जमीन का इस्तेमाल किया। आज वे चेरी पेपर, पपीता, अदरक, हल्दी, मिर्ची और सब्जियां उगा रहे हैं।

शहद के लिए मधुमक्खी पालन और दूध के लिए तीन गायें भीं। सालाना छह लाख की उपज बेच रहे हैं। अकेली मिर्ची ही दो लाख की। तीन गायों के गोबर और गोमूत्र से खाद खुद बनाते हैं। वे कहते हैं-ढाई एकड़ को जैविक बनाने के लिए तीन गायें काफी हैं। हम खाद नहीं खरीदते।

3. तीन साल तक उत्पादन घटा, अब बढ़ने लगा

रूमटेक गांव में 29 एकड़ के िकसान करमा डिचेन बताते हैं कि शुरू के तीन साल थोड़े कठिन थे। किसान गुस्से में थे। सरकार से नाराज भी। पहले एक हेक्टेयर में उत्पादन 20-22 क्विंटल था। लेकिन बाद में मजबूरी में जैविक हुए तो घटकर 15-16 क्विंटल पर आ गया। उन्हीं तीन सालों में जैविक खाद बनाने के ट्रेनिंग प्रोग्राम लगातार चले। शुरुआती नुकसान की भरपाई एमएसपी के जरिए सरकार ने की। खाद के लिए किसानों ने डेयरी साथ में जोड़ीं। जिनके पास गायें नहीं हैं, उन्हें सरकार जैविक खाद दे रही है। अब हम अपना उत्पादन 24-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ले आए हैं। उपज की कीमतें बेहतर मिल रही हैं। कोई खेती से दुःखी नही रहा
अब सब के चहेरे खिले खिले है... चारो तरफ तंदुरस्त फसले और कम खर्च मे विपुल आय.. 😀


गुरुवार, 3 सितंबर 2020

हल्दी की गुणवत्ता बढ़ाने का देशी फॉर्मूला

हल्दी की गुणवत्ता बढ़ाने का देशी फॉर्मूला।
मेरी दादीजी इसका प्रयोग करती है।
बाजार से दो तीन किलो साबुत हल्दी खरीदिये।
फिर इसे 6 घण्टे छाछ में भिगो दीजिए।
अब दो दिन धूप में सूखने दीजिए।
सूखने के बाद इसके टुकड़ों को मिट्टी के तवे पर हल्का भूनिये।
पूरी एक साथ नहीं भूननी है।
थोड़ी थोड़ी, यानि 4-5 गाँठें भूनिये, यहाँ अब दो व्यक्ति चाहिए।
एक भुनने वाला और दूसरा खरल या ओखली में कूटने वाला।
जैसे जैसी हल्दी भुनती जाए वैसे वैसे कूटते जाएं।
गरम गाँठें बिना आवाज के जल्दी जल्दी क्रिस्टल में बदल जाती है।
एक बार सारी हल्दी दरदरी हो जाने पर वह भीतर से लाल रंग की दिखेगी।
अब इसे ठंडा होने दीजिए।
फिर इसे कूटकर छान लें या पीस लें। 
कूटना-छानना- फिर कूटना, इस क्रम से हल्दी तैयार कर लीजिए।
यह हल्दी महक, सुगंध, गुणवत्ता और स्वाद में अद्भुत होगी।
सोते समय एक गिलास दूध में चुटकी भर डालकर  मिलाइए।
परिणाम स्वयं देखें।
www.sanwariyaa.blogspot.com

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राजस्थान के आईएएस में चयनित खींवसर के लाल " दीपक करवा" #Deepakkarwa #IAS2020

राजस्थान के आईएएस में चयनित  खींवसर के लाल " दीपक करवा" #Deepakkarwa #IAS2020

राजस्थान की छोटे से कस्बे की सैनी समाज को ऐसी कई विभूतियां दी है जिन्होंने इस कस्बे को देशभर में विशिष्ट पहचान दी है वर्तमान में समाज में युवा वर्ग को प्रशासनिक सेवा की ओर प्रेरित करना समय की प्रमुख आवश्यकता बन गया है ऐसे में खींवसर में मुंबई माहेश्वरी समाज से प्रथम आईएएस बनने का सम्मान भी इस मिट्टी के लाल दीपक करवा दिलवाने वाले हैं

 

खींवसर जिला नागौर राजस्थान के मूल निवासी व वर्तमान में मुंबई निवासी समाज सदस्य बाबूलाल करवा के सुपुत्र दीपक करवा ने वर्ष 2019 की संघ लोक सेवा आयोग प्रशासनिक सेवा परीक्षा में आईएएस के लिए चयनित होने में सफलता प्राप्त की है दीपक आगामी सितंबर 2020 से प्रारंभ होने वाली आईएएस की प्रशिक्षण बैच में शामिल होंगे कोरोना वायरस के कारण इस परीक्षा के परिणाम के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा लेकिन आखिरकार रक्षाबंधन का पर्व 4 अगस्त 2020 उनके और समाज की एक नई खुशखबरी लेकर आ ही गया

 Congratulation to Mr. Deepak Karwa
 from Kheenvsar, Rajasthan for selection in IAS 2020


इस परीक्षा में उन्हें 48 वी रैंक राष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त हुई यह उनका जुनून ही है कि वर्ष 2017 में बीएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर चयनित होकर भी उन्होंने ज्वाइन नहीं किया बस लक्ष्य था आईएएस बनने का और आखिरकार बनकर ही दम लिया

महासभा बनी करवा परिवार की प्रेरणा :
दीपक का जन्म 21 मई 1993 को खींवसर जिला नागौर राजस्थान की मूल निवासी व मुंबई की एक प्रतिष्ठित कंपनी में सेवारत समाज सदस्य बाबूलाल व वीणा देवी करवा के यहां हुआ दीपक बचपन से ही पढ़ाई में तीक्ष्ण बुद्धि के है उन्होंने JEE कठिन परीक्षा उत्तीर्ण कर IIT चेन्नई से B.Tech. किया लेकिन महासभा द्वारा भीलवाड़ा में आयोजित सम्मेलन ने प्रशासनिक सेवा के लिए प्रेरित कर दिया, बस यही प्रेरणा दीपक की पिता श्री बाबूलाल करवा कर मन में घर कर गई और इसने पारिवारिक प्रेरणा का रूप ले लिया |
श्री करवा अपने पुत्र की सफलता का श्रेय वरिष्ठ समाजसेवी पद्मश्री बंशीलाल राठी के आशीर्वाद , नवल राठी और प्रशांत बांगड के प्रोत्साहन को भी देते हैं

बड़ी बहन सोनू महेश्वरी बनी दीपक की प्रेरणा 
करवा परिवार में उत्पन्न हुए प्रशासनिक सेवा के प्रति रुझान का सर्वप्रथम प्रभाव दीपक की बड़ी बहन सोनू महेश्वरी में दिखाई दिया 
समाज व पिता की प्रेरणा  ने सोनू को संघ लोक सेवा आयोग की सिविल परीक्षा की ओर प्रेरित तो कर दिया लेकिन इस बीच उनका विवाह हो गया और पारिवारिक व्यस्तता एवं विवशता में आखिरकार उन्हें सफलता की यात्रा को मझधार में ही विराम देना पड़ा,
 बस उनके मन में दबी इच्छा अपने छोटे भाई दीपक को राह दिखाई वैसे दीपक ने B.Tech. अंतिम वर्ष 2015 में प्रथम बार अपने सहपाठियों को देखकर यह परीक्षा दे दी थी लेकिन गंभीरता से न लेने के कारण इसमें पूरी तरह असफलता हाथ लगी थी


  साँवरिया की और से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाए 

असफलता मे भी सफलता की राह :
उन्हे जो सफलता मिली वह सहज जी नही मिल गई बल्कि अंतिम छठे प्रयास मे जाकर मिली कभी परीक्षा पेटर्न मे बदलाव कभी किसी अन्य कारण से मिली असफलता से हताश होते हुए भी असफलता मिलने पर भी उन्होने हार नही मानी ओर हर असफलता के सीखते हुए ओर प्रेरणा लेते हुए उन्होने वर्ष 2019 की परीक्षा मे उत्तीर्ण होते हुए 48वीं रेंक प्राप्त की 


दीपक का सपना विकसित हो हमारे गाँव 

      माहेश्वरी समाज का नाम रोशन किया
 





























जब भी बरगद और पीपल के पेड़ को देखो तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था

*हमारे धर्म का रहस्य...*

क्या हमारे ऋषि मुनि पागल थे?
जो कौवों के लिए खीर बनाने को कहते थे?
और कहते थे कि कौवों को खिलाएंगे तो हमारे पूर्वजों को मिल Qजाएगा?
नहीं, हमारे ऋषि मुनि क्रांतिकारी विचारों के थे।
*यह है सही कारण।*

तुमने किसी भी दिन पीपल और बरगद के पौधे लगाए हैं?
या किसी को लगाते हुए देखा है?
क्या पीपल या बड़ के बीज मिलते हैं?
इसका जवाब है ना.. नहीं....
बरगद या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु नहीं लगेगी।
कारण प्रकृति/कुदरत ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।
यह दोनों वृक्षों के टेटे कौवे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसीग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं। उसके पश्चात
कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं।
पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो Round-The-Clock ऑक्सीजन O2  छोड़ता है और बरगद के औषधि गुण अपरम्पार है।
देखो अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है इसलिए कौवे को बचाना पड़ेगा।
और यह होगा कैसे?
मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है। 
तो इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है इसलिए ऋषि मुनियों ने
कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार 
की व्यवस्था कर दी।
जिससे कि कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जाये......

इसलिए दिमाग को दौड़ाए बिना श्राघ्द करना प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है।
घ्यान रखना जब भी बरगद और पीपल के पेड़ को देखो तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं।

🙏सनातन धर्म पे उंगली उठाने वालों, पहले सनातन धर्म को जानो फिर उस पर ऊँगली उठाओ। जब आपके विज्ञान का *वि* भी नही था हमारे सनातन धर्म को पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है, कौन सी चीज खाने लायक है कौन सी नहीं...? अथाह ज्ञान का भंडार है हमारा सनातन धर्म और उनके नियम, मैकाले के शिक्षा पद्धति में पढ़ के केवल अपने पूर्वजों, ऋषि मुनियों के नियमों पर ऊँगली उठाने के बजाय , उसकी गहराई को जानिये🙏

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