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शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

वैश्विक गणेश - चीन में ‘भगवान विनायक’

 वैश्विक गणेश / ५

चीन में ‘भगवान विनायक’



चीन और भारत के संबंध बहुत प्राचीन हैं. कितने प्राचीन हैं...? कुछ ठोस कहना कठीन हैं. पहली शताब्दी के प्रमाण मिले हैं, चीन में हिन्दू मंदिरों के. किन्तु हिन्दू धर्म का प्रादुर्भाव चीन में उससे भी और अधिक पहले से रहा होगा.

आज भी चीन में अनेक हिन्दू मंदिर हैं. और जहां हिन्दू मंदिर हैं, वहां भगवान गणेश का होना अवश्यंभावी हैं. चीन के हिन्दू मंदिरों में भगवान गणेश की अनेक प्राचीन मूर्तियां हैं. यहां गणेश जी को बुध्दी तथा समृध्दी की देवता माना गया हैं.

चीन के फुजीयान प्रांत मे, क्वांझाऊ नाम के शहर मे, लगभग बीस हिन्दू मंदिर हैं. ये सारे डेढ़ हजार वर्ष पुराने हैं. कहा जाता हैं, उन दिनों चीन का भारत के तामिल भाषिक क्षेत्र से बड़ा व्यापार चलता था. तामिलनाडु से अनेक वस्तुएं चीन को जाती थी और चीन से शक्कर वगैरे पदार्थ आयात होते थे. स्वाभाविकतः इस क्वांझाऊ शहर में बड़ी संख्या में तामिल व्यापारी रहते थे. उन्होने ही यह मंदिर बनवाएं, जिन्हे बाद में स्थानिक चीनी लोग भी पूजने लगे. सन ६८५ के आसपास, तेंग राजवंश के काल में यह मंदिर बने हैं. इन मंदिरों पर मेंदारिन (चीनी), संस्कृत और तामिल भाषा के शिलालेख मिले हैं. इन सभी मंदिरों में भगवान गणेश विराजमान हैं. चीन के गंसू प्रांत में तुन-हुआंग (या दून-हुआंग) शहर में स्थित बौध्द मंदिर में भगवान गणेश, कार्तिकेय के साथ हैं.

उत्तर चीन में उत्खनन में जो गणेश प्रतिमा मिली हैं, वह कार्बन डेटिंग के अनुसार सन ५३१ की हैं. ‘ग्वांडडोंग’ यह दक्षिणी चीन का बंदरगाह हैं, तो क्वांझाऊ या चिंचू, यह भी बंदरगाह का शहर हैं. तामिल व्यापारी समुद्री मार्ग से, इन्ही बंदरगाहों के रास्ते से, चीन में आते थे. स्वाभाविकतः, इन बंदरगाहों के पास, आज भी अनेक हिन्दू मंदिरों के अवशेष मिलते हैं. इन शहरों के पुरातत्व संग्रहालयों में भगवान शिव, गणेश, दुर्गा देवी आदि की प्राचीन प्रतिमाएं मिलती हैं.

आसाम के कामरूप से, ब्रह्मदेश होते हुए भी, भारतीय व्यापारी चीन जाते थे, तो कश्मीर के सुंग-लिंग से जाने वाला भी एक रास्ता था, चीन से संपर्क का.

दूसरी शताब्दी से बारहवी शताब्दी तक, डेढ़ सौ से ज्यादा चीनी विद्वानों ने, भारत के संस्कृत ग्रन्थों को चीनी भाषा में अनुवाद करने को ही अपना जीवन ध्येय समझा था. वेदों को चीनी भाषा में ‘मींग – लून (ज्ञान और बुध्दी का विज्ञान) कहा गया हैं. अनेक ‘संहिता’ और शास्त्रों का अनुवाद चीनी भाषा में उपलब्ध हैं. इनमे कुछ ग्रंथ तो ऐसे हैं, जो भारत में मुस्लिम आक्रांताओं ने नष्ट किए थे, किन्तु उनका चीनी अनुवाद उपलब्ध हैं. उदाहरण के लिए, ‘सांख्यकारिका’. यह ग्रंथ मूल संस्कृत में कही भी उपलब्ध नहीं था. किन्तु उसका चीनी अनुवाद – ‘जिन की शी लून’ (Jin Qi Shi Lun) उपलब्ध हैं. अब इस चीनी ग्रंथ का पुनः संस्कृत में अनुवाद किया गया हैं. ऐसे और भी ग्रंथ हैं.

आज भी चीन में, चीनी भाषा बोलने वाले, किन्तु हिन्दू जीवन पध्दती, परंपरा मानने वाले लोग रहते हैं. ये तुलना में कम संख्या में हैं. इसलिए, चीन के पांच प्रमुख उपासना पंथों में उनका समावेश नहीं हैं. किन्तु यह समुदाय आज भी भारतीय त्यौहार उत्साह से मनाता हैं. यहां ‘गणेश उत्सव’, चीनी पध्दति से मनाया जाता हैं.

तिब्बत

कभी सार्वभौम राष्ट्र रहा तिब्बत, आज चीन का एक प्रदेश मात्र हैं. पहले तिब्बत यह चीन का हिस्सा नहीं था. तिब्बत पहले से ही हिन्दू और बौध्द परंपराओं का देश रहा हैं. इसलिए, तिब्बत में अनेक स्थानों पर गणेश मंदिर, गणेश भगवान के चित्र और उनकी प्रतिमाएं हैं. बौध्द परंपरा के महायान और वज्रायान पंथों में, गणेश जी का विशिष्ट स्थान हैं. वह मात्र विघ्नहर्ता ही नहीं, तो बुध्दी के देवता भी हैं. तिब्बती भाषा में उन्हे गणपति या ‘महा-रक्त’ भी कहा जाता हैं. तिब्बत में ही विनायक गणेश प्रसिध्द हैं. यह आर्य महा गणपति परंपरा के गणेश हैं.  ‘तिब्बत’ इस विषय के अभ्यासक, रॉबर्ट ब्राउन (Robert L. BROWN) ने एक पुस्तक लिखी हैं – ‘Ganesh, studies of an Asian God’. इसमे वे लिखते हैं की तिब्बत की काग्युर परंपरा में ऐसा कहा जाता हैं की महात्मा बुध्द ने अपने प्रिय शिष्य आनंद को ‘गणपति हृदय मंत्र’ (या ‘आर्य गणपति मंत्र’) की दीक्षा दी थी. इसीलिए इन देशों मे, बौध्द मंदिरों या स्तूपों के बाहर भगवान गणेश की मूर्ति रहती हैं.

(तिब्बती भाषा में ‘विनायक स्तुति’, रोमन लिपि में) -
oṃ namo ‘stu te mahāgaṇapataye svāhā |
oṃ gaḥ gaḥ gaḥ gaḥ gaḥ gaḥ gaḥ gaḥ |
oṃ namo gaṇapataye svāhā |
oṃ gaṇādhipataye svāhā |
oṃ gaṇeśvarāya svāhā |
oṃ gaṇapatipūjitāya svāhā |
oṃ kaṭa kaṭa maṭa maṭa dara dara vidara vidara hana hana gṛhṇa gṛhṇa dhāva dhāva bhañja bhañja jambha jambha tambha tambha stambha stambha moha moha deha deha dadāpaya dadāpaya dhanasiddhi me prayaccha |

मंगोलिया

मात्र ३२ लाख जनसंख्या वाले, चीन के इस पड़ोसी देश में ‘गणेश भगवान’ की प्रभावी उपस्थिती हैं. दुर्भाग्य से मंगोलिया को हम जानते हैं, छिगीज खान (जिन्हे हम ‘चंगीज खान’ कहते हैं) के नाम से. किन्तु मंगोलिया, जो किसी जमाने में पूर्णतः हिन्दू संस्कृति मे रचा बसा देश था, आज भी हिन्दू संस्कृति के प्रतीक गर्व से धारण करता हैं. उनके राष्ट्रध्वज को वे सोयंबू (स्वयंभू) कहते हैं. वहां अनेक मंगोल, अपना नाम संस्कृत शब्द से रखते हैं. मंगोलिया के पूर्व राष्ट्राध्यक्षों के नाम हैं – आनंदिन अमर (१९३२ से १९३६) और जम्सरांगिन शंभू (१९५४ से १९७२).  मासों के नाम तथा सप्ताह के दिनों के नाम भी भारत से ही हैं. जैसे रविवार को आदिया (आदित्यवार), सोमवार सोमिया, मंगल के लिये संस्कृत का अंगारक शब्द है. बुद्धवार - बुद्ध, बृहस्पतिवार - व्रिहस्पत, शुक्रवार - सूकर, शनिवार के लिये सांचिर बोलते हैं.

ऐसे मंगोलिया में भगवान गणेश का पूजा जाना स्वाभाविक हैं. यहां अनेक बौध्द मंदिरों में गणेश जी की प्रतिमाएं हैं.

हमारे पूर्वज, अपने विश्व व्यापी प्रवास के दौरान अपने आराध्य देवताओं को भी साथ लेकर जाते थे. स्थानिक लोगों में भारतियोंकी अच्छी स्विकार्यता थी. तो सहज रूप से हमारे आराध्य भी वहां पूजे जाते थे. विशेषतः गणेश जी यह विघ्नहर्ता भगवान माने जाते हैं. इसलिए विश्व के कोने कोने में हमारे गणपति का स्वीकार हुआ.

क्यूँ भारतीय गाय विश्व में सर्वश्रेष्ट मानी जाती है

☘️ *_गौ सेवा परमोधर्मः जानिये सनातन में गाय को मां क़हा गया और क्यूँ भारतीय गाय विश्व में सर्वश्रेष्ट मानी जाती है_*

भारतीय गायें विदेशी तथाकथित गायों की तरह बहुत समय तक जंगलों में हिंसक पशु के रूप में घूमते रहने के बाद घरों में आकर नहीं पलीं, वे तो शुरु से ही मनुष्यों द्वारा पाली गयी हैं। भारतीय गायों के लक्षण हैं- उनका गल कम्बल (गले के नीचे झालर सा भाग), पीठ का कूबड़, चौड़ा माथा, सुंदर आँखें तथा बड़े मुड़े हुए सींग। भारतीय गोवंश की कुछ नस्लें हैं, गिर, थारपारकर, साहीवाल, लाल सिंधी आदि।

भारतीय गायों पर करनाल की 'नेशनल ब्यूरो ऑफ जेनेटिक रिसोर्सेस' (एनबीएजीआर) संस्था ने अध्ययन कर पाया कि इनमें उन्नत ए-2 एलील जीन पाया जाता है, जो इन्हें स्वास्थ्यवर्धक दूध उत्पन्न करने में मदद करता है। भारतीय नस्लों में इस जीन की आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) 100 प्रतिशत तक पायी जाती है, जबकि विदेशी नस्लों में यह 60 प्रतिशत से भी कम होती है।

भारतीय गायों में सूर्यकेतु नाड़ी होती है। गायें अपने लम्बे सींगों के द्वारा सूर्य की किरणों को इस सूर्यकेतु नाड़ी तक पहुँचाती हैं। इससे सूर्यकेतु नाड़ी स्वर्णक्षार बनाती है, जिसका बड़ा अंश दूध में और अल्पांश में गोमूत्र में आता है।

भारतीय गाय के दूध में ओमेगा-6 फैटी ऐसिड होता है, जिसकी कैंसर नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। विदेशी नस्ल की गायों के दूध में इसका नामोनिशान तक नहीं है। भारतीय गाय के दूध में अनसैचुरेटेड फैट होता है, इससे धमनियों में वसा नहीं जमती और यह हृदय को भी पुष्ट करता है।

भारतीय गाय चरते समय यदि कोई विषैला पदार्थ खा लेती है तो दूसरे प्राणियों की तरह वह विषैला तत्त्व दूध में मिश्रित नहीं होता। भारतीय गाय संसार का एकमात्र ऐसा  प्राणी है जिसके मल-मूत्र का औषधि तथा यज्ञ पूजा आदि में उपयोग होता है।

परमाणु विकिरण से बचने में गाय का गोबर उपयोगी होता है। भारतीय गाय के गोबर-गोमूत्र में रेडियोधर्मिता को सोखने का गुण होता है।

भारतीय गोवंश का पंचगव्य निकट भविष्य में प्रमुख जैव-औषधि बनने की सीमा पर खड़ा है। अमेरिका ने पेटेंट देकर स्वीकार किया है कि कैंसर नियंत्रण में गोमूत्र सहायक है।

संतों ने तो यहाँ तक बताया  है कि "कोई बीमार आदमी हो और डॉक्टर, वैद्य बोले, 'यह नहीं बचेगा' तो वह आदमी गाय को अपने हाथ से कुछ खिलाया करे और गाय की पीठ पर हाथ घुमाये तो गाय की प्रसन्नता की तरंगें हाथों की उंगलियों के अग्रभाग से उसके शरीर के भीतर प्रवेश करेगी, रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी और वह आदमी तंदुरुस्त हो जायेगा, 6 से 12 महीने लगते हैं लेकिन असाध्य रोग भी गाय की प्रसन्नता से मिट जाते हैं।"

भारतीय गाय की पीठ पर, गलमाला पर प्रतिदिन आधा घंटा हाथ फेरने से रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। गोबर को शरीर पर मलकर स्नान करने से बहुत से चर्मरोग दूर हो जाते हैं। गोमय स्नान को पवित्रता और स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम माना गया है। इस प्रकार भारतीय गाय की अनेक अदभुत विशेषताएँ हैं। धनभागी हैं वे लोग, जिनको भारतीय गाय का दूध, दूध के पदार्थ आदि मिलते हैं और जो उनकी कद्र करते हैं।

भारत में प्राचीन काल से ही गाय की पूजा होती रही है क्योंकि गाय में 33कोटि देवताओं का वास माना गया है इसलिए गाय को माता का दर्जा भी दिया है, कहते है कि बच्चा जन्मे और किसी कारणवश उसकी माता का निधन हो जाये तो बच्चे को गाय का दूध पिलाने पर जिंदा रह सकता है । कहते है कि जननी दूध पिलाती, केवल साल छमाही भर ! गोमाता पय-सुधा पिलाती, रक्षा करती जीवन भर !!

गौ-माता भारत देश की रीढ की हड्डी है। जो सभी को स्वस्थ-सुखी जीवन जीने में मदद रूप बनती है । सभी को आजीवन गौ-माता की रक्षा के लिए कटिबद्ध रहना चाहिए ।

गौमाता की इतनी उपयोगीता और उसकी हत्या हो रही है उससे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि सभी को मिलकर गौ-माता को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाकर तन-मन-धन से इसकी रक्षा करनी चाहिए ।


एक ही उद्देश्य है कि सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार फैला कर ये दिखाना कि मोदी ठीक काम नहीं कर रहा

✍️😡✍️😡✍️

 *'बिजनेस टुडे' ने GDP वाले ग्राफ को डिलीट कर दिया है।* 

 *उसके दम पर जो बड़े-बड़े अर्थशास्त्री पैदा हो गए थे,वो अब अनाथ हो चले हैं।*

 *आँखें खुलने पर पता चलता है कि भारत अभी भी दुनिया के सबसे ज्यादा विकास दर वाले देशों में से एक है।*

 *किसी देश के GDP डेटा की इस Quarter से पिछले Quarter की तुलना कर दी गई*
 *और भारत की पिछले साल के इसी Quarter से तुलना कर दी गई,*

 *स्पष्ट है कि गिरावट ज्यादा देखने को मिलेगी।*

*प्रपंचियों ने ग्राफ बनाया,* *मंदबुद्धियों ने ढोल पीटा और सरकार के अन्धविरोधियों ने बिना सोचे-समझे इसे लेकर हंगामा शुरू कर दिया।* 

मैं अर्थशास्त्री तो नहीं लेकिन जो सच में अर्थशास्त्र के ज्ञाता हैं, उनकी ही राय को आपके समक्ष रख रहा हूँ। 

मीडिया ने प्रचारित किया कि ये सबसे बड़ी गिरावट है, अर्थव्यवस्था ICU में है और मोदी सरकार फेल हो गई है। क्या लोगों को इतनी भी समझ नहीं है कि उत्पादन होता है, उसे खरीदने के लिए रुपए खर्च किए जाते हैं और कमाई बढ़ने के साथ ही कोई भी सेक्टर ऊँचाई चढ़ता है। भाई साहब, काम ही कहाँ हो रहा है कि कमाई होगी? स्कूल-कॉलेज बन्द हैं, फैक्ट्रियाँ बन्द हैं और माल के आवागमन की सुविधा बन्द है। कोई बहुत बड़ा गणित तो है नहीं ये समझना।

 *अगर उसी ग्राफ के आधार पर तुलना करें तो सिंगापुर की GDP -42.9% गिरी है,*
 *कनाडा की 38.7%,* *अमेरिका की 33% और जापान की 27.4% गिरी है।*
 पूरा विश्व इससे जूझ रहा है और इसका सरकार के परफॉरमेंस से कोई लेनादेना नहीं है। 

 *इन सबके बावजूद भारत का कृषि सेक्टर आगे बढ़ रहा है, जो अच्छी बात है।*

अब कोई ये पूछ सकता है कि चीन की भारत जितनी क्यों नहीं गिरी? पहली बात, वहाँ लोकतंत्र न होने के कारण सरकार Iron Hand से फैसले लेती है। दूसरा, कोरोना से वहाँ की 05% जनसंख्या ही प्रभावित हुई। अर्थात, पूरे चीन में तो लॉकडाउन हुआ भी नहीं।

 *जबकि भारत में पूरा देश ठप्प है महीनों से। कारण है*
 *कि सरकार ने लोगों की जान को इकॉनमी से ज्यादा प्राथमिकता दी।* *हमारे पास कोई हेल्थकेयर सिस्टम नहीं था। आयुष्मान भारत से लेकर नए अस्पताल बनवाने तक,*
 *सरकार ने कोरोना से लड़ने में सारी ताकत झोंकी।*
 *हमारे सरकारी अस्पतालों में 70 साल में कितने वेंटिल्टर्स थे, सिर्फ 48,000.❓*  
 *मोदी सरकार ने PM Cares से कुछ ही महीनों में 50,000 वेंटिल्टर्स बनवा कर अस्पतालों को दिए। क्या ये नहीं गिना जाएगा❓* 
 *जनवरी 2020 तक कितने PPE किट बनाते थे हम❓ शून्य। जी हाँ, जीरो।* 

 *अब भारत में रोज 4.5 लाख PPE किट्स बनते हैं। हम दुनिया में इसका दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन गए हैं।*

 जो लोग पहले बोल रहे थे कि लॉकडाउन लगाओ, बाद में बोलने लगे कि हटाओ। लॉकडाउन नहीं होता और रोज हजारों मौतें होतीं, तब यही लोग बोल रहे होते की इकॉनमी ज्यादा जरूरी है या लोगों की जान। भारत मे कोरोना के फिलहाल 8.08 लाख सक्रिय मामले हैं। जिनमें से 44% महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में हैं। तीनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है। उन CMs से सवाल पूछे जाते हैं क्या? लेकिन जिसने काम किया, गाली उसे ही पड़ रही है।

जब GDP रिकॉर्ड हाई थी, तब यही लोग कह रहे थे कि आँकड़ों से गरीब का पेट थोड़े भरता है। जब डेटा सस्ता हुआ तो ये कह रहे थे कि गरीब को डाटा नहीं, आटा चाहिए। अब तो आटा भी मिल रहा है। 5 किलो गेहूँ और चावल के अलावा हर महीने 1 किलो चना भी गरीबों को दिया जा रहा है। छठ तक सब मुफ्त। सरकार ने गरीबों के भोजन पर ₹1.5 लाख करोड़ खर्चे। ये नहीं जोड़ा जाएगा? 
अब गरीबों को खाना मिल रहा तो आँकड़े चाहिए। 20 करोड़ गरीबों के खाते में ₹31,000 करोड़ गए। 9 करोड़ किसानों के खाते में ₹18,000 करोड़ गए। ये भी तो आँकड़े हैं।

असल मे ये सब एक कुचक्र के तहत हो रहा है। पहले ये बोल रहे थे कि कोरोना कोई बड़ी बीमारी है ही नहीं, इसे तो CAA से ध्यान भटकाने के लिए लाया गया है। बाद में इन्होंने मजदूरों को भड़का कर पूरे देश मे Mayhem का माहौल बनाया। फिर छात्रों को भड़काने में लग गए। JEE की एक परीक्षा हो भी गई। कोई परेशानी नहीं आई। कोरोना के कारण सभी छात्र परेशान हैं। जब DU और BHU सहित कई बड़े संस्थान और अन्य प्राइवेट संस्थानों की परीक्षाओं में भीड़ जुट रही है तो सरकार क्यों पीछे हटे? हाँ, सरकार छात्रों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करे, ये माँग जायज है।

 *चीन के मुद्दे पे रोज चिल्लाने वाले अब चुप हैं* *क्योंकि भारत ने कई वो हिस्से भी वापस छीन लिए हैं, जो 1962 में नेहरू ने गँवा दिए थे। अब सब चुप हैं।*

 राफेल पर हंगामा मचाया गया, जो अब शांत हो गया है। हर हंगामे के हश्र यही होना है। जो तुरन्त बहकावे में आ जाते हैं, उन्हें बाद में एहसास होता है कि वो गलत थे। अब नया मुद्दा आया है  सरकारी नौकरी का। आया नहीं है बल्कि लाया गया है। जानबूझ कर इस माहौल में इन मुद्दे को छेड़ा गया है। इसका समर्थन कर रहे बड़े नेता Railways और Safety का स्पेलिंग भी गलत लिख रहे हैं।

भारत का सरकारी Workforce कुछ ज्यादा ही बड़ा है। इसमें अधिकतर अयोग्य लोग बैठे हुए हैं। एक-एक काम के लिए कई लोग हैं। ऐसे में सरकारी नौकरियों को कम कर के लघु व माध्यम उद्योगों को बढ़ावा देना और प्राइवेट सेक्टर को नौकरियों के सृजन के लिए तैयार करना ही सिस्टम बदलने का उद्देश्य है। स्वाभाविक है कि सबको सरकारी नौकरी ही चाहिए। लेकिन, जहाँ एक ही फाइल पढ़ने के लिए 3 कर्मचारी बैठे हैं, वहाँ चौथा भी इसी काम के लिए चल जाए तो इससे सरकारी कामकाज धीमा होगा या तेज़❓
सरकार ने बड़े स्तर पर कइयों को जबरन रिटायर किया। छोटे लेवल पर ये मुश्किल है।

 *इसके बाद चला डिस्लाइक का खेल।* *पीएम मोदी के 'मन की बात' वाले वीडियोज को डिस्लाइक किया जाने लगा।*

 *पोल खुल गई।*
 
 *कुल डिस्लाइक्स में से 98% विदेश से आए थे, तुर्की जैसे कट्टर इस्लामी देशों से।*

 *02% समर्थन पाकर हंगामा करना कोई इनसे सीखे। तुर्की में किसे JEE-NEET की परीक्षा देनी है❓* 

 *इसका एक ही उद्देश्य है कि सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार फैला कर ये दिखाना कि मोदी ठीक काम नहीं कर ✍️😡✍️😡✍️

 *'बिजनेस टुडे' ने GDP वाले ग्राफ को डिलीट कर दिया है।* 

 *उसके दम पर जो बड़े-बड़े अर्थशास्त्री पैदा हो गए थे,वो अब अनाथ हो चले हैं।*

 *आँखें खुलने पर पता चलता है कि भारत अभी भी दुनिया के सबसे ज्यादा विकास दर वाले देशों में से एक है।*

 *किसी देश के GDP डेटा की इस Quarter से पिछले Quarter की तुलना कर दी गई*
 *और भारत की पिछले साल के इसी Quarter से तुलना कर दी गई,*

 *स्पष्ट है कि गिरावट ज्यादा देखने को मिलेगी।*

*प्रपंचियों ने ग्राफ बनाया,* *मंदबुद्धियों ने ढोल पीटा और सरकार के अन्धविरोधियों ने बिना सोचे-समझे इसे लेकर हंगामा शुरू कर दिया।* 

मैं अर्थशास्त्री तो नहीं लेकिन जो सच में अर्थशास्त्र के ज्ञाता हैं, उनकी ही राय को आपके समक्ष रख रहा हूँ। 

मीडिया ने प्रचारित किया कि ये सबसे बड़ी गिरावट है, अर्थव्यवस्था ICU में है और मोदी सरकार फेल हो गई है। क्या लोगों को इतनी भी समझ नहीं है कि उत्पादन होता है, उसे खरीदने के लिए रुपए खर्च किए जाते हैं और कमाई बढ़ने के साथ ही कोई भी सेक्टर ऊँचाई चढ़ता है। भाई साहब, काम ही कहाँ हो रहा है कि कमाई होगी? स्कूल-कॉलेज बन्द हैं, फैक्ट्रियाँ बन्द हैं और माल के आवागमन की सुविधा बन्द है। कोई बहुत बड़ा गणित तो है नहीं ये समझना।

 *अगर उसी ग्राफ के आधार पर तुलना करें तो सिंगापुर की GDP -42.9% गिरी है,*
 *कनाडा की 38.7%,* *अमेरिका की 33% और जापान की 27.4% गिरी है।*
 पूरा विश्व इससे जूझ रहा है और इसका सरकार के परफॉरमेंस से कोई लेनादेना नहीं है। 

 *इन सबके बावजूद भारत का कृषि सेक्टर आगे बढ़ रहा है, जो अच्छी बात है।*

अब कोई ये पूछ सकता है कि चीन की भारत जितनी क्यों नहीं गिरी? पहली बात, वहाँ लोकतंत्र न होने के कारण सरकार Iron Hand से फैसले लेती है। दूसरा, कोरोना से वहाँ की 05% जनसंख्या ही प्रभावित हुई। अर्थात, पूरे चीन में तो लॉकडाउन हुआ भी नहीं।

 *जबकि भारत में पूरा देश ठप्प है महीनों से। कारण है*
 *कि सरकार ने लोगों की जान को इकॉनमी से ज्यादा प्राथमिकता दी।* *हमारे पास कोई हेल्थकेयर सिस्टम नहीं था। आयुष्मान भारत से लेकर नए अस्पताल बनवाने तक,*
 *सरकार ने कोरोना से लड़ने में सारी ताकत झोंकी।*
 *हमारे सरकारी अस्पतालों में 70 साल में कितने वेंटिल्टर्स थे, सिर्फ 48,000.❓*  
 *मोदी सरकार ने PM Cares से कुछ ही महीनों में 50,000 वेंटिल्टर्स बनवा कर अस्पतालों को दिए। क्या ये नहीं गिना जाएगा❓* 
 *जनवरी 2020 तक कितने PPE किट बनाते थे हम❓ शून्य। जी हाँ, जीरो।* 

 *अब भारत में रोज 4.5 लाख PPE किट्स बनते हैं। हम दुनिया में इसका दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन गए हैं।*

 जो लोग पहले बोल रहे थे कि लॉकडाउन लगाओ, बाद में बोलने लगे कि हटाओ। लॉकडाउन नहीं होता और रोज हजारों मौतें होतीं, तब यही लोग बोल रहे होते की इकॉनमी ज्यादा जरूरी है या लोगों की जान। भारत मे कोरोना के फिलहाल 8.08 लाख सक्रिय मामले हैं। जिनमें से 44% महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में हैं। तीनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है। उन CMs से सवाल पूछे जाते हैं क्या? लेकिन जिसने काम किया, गाली उसे ही पड़ रही है।

जब GDP रिकॉर्ड हाई थी, तब यही लोग कह रहे थे कि आँकड़ों से गरीब का पेट थोड़े भरता है। जब डेटा सस्ता हुआ तो ये कह रहे थे कि गरीब को डाटा नहीं, आटा चाहिए। अब तो आटा भी मिल रहा है। 5 किलो गेहूँ और चावल के अलावा हर महीने 1 किलो चना भी गरीबों को दिया जा रहा है। छठ तक सब मुफ्त। सरकार ने गरीबों के भोजन पर ₹1.5 लाख करोड़ खर्चे। ये नहीं जोड़ा जाएगा? 
अब गरीबों को खाना मिल रहा तो आँकड़े चाहिए। 20 करोड़ गरीबों के खाते में ₹31,000 करोड़ गए। 9 करोड़ किसानों के खाते में ₹18,000 करोड़ गए। ये भी तो आँकड़े हैं।

असल मे ये सब एक कुचक्र के तहत हो रहा है। पहले ये बोल रहे थे कि कोरोना कोई बड़ी बीमारी है ही नहीं, इसे तो CAA से ध्यान भटकाने के लिए लाया गया है। बाद में इन्होंने मजदूरों को भड़का कर पूरे देश मे Mayhem का माहौल बनाया। फिर छात्रों को भड़काने में लग गए। JEE की एक परीक्षा हो भी गई। कोई परेशानी नहीं आई। कोरोना के कारण सभी छात्र परेशान हैं। जब DU और BHU सहित कई बड़े संस्थान और अन्य प्राइवेट संस्थानों की परीक्षाओं में भीड़ जुट रही है तो सरकार क्यों पीछे हटे? हाँ, सरकार छात्रों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करे, ये माँग जायज है।

 *चीन के मुद्दे पे रोज चिल्लाने वाले अब चुप हैं* *क्योंकि भारत ने कई वो हिस्से भी वापस छीन लिए हैं, जो 1962 में नेहरू ने गँवा दिए थे। अब सब चुप हैं।*

 राफेल पर हंगामा मचाया गया, जो अब शांत हो गया है। हर हंगामे के हश्र यही होना है। जो तुरन्त बहकावे में आ जाते हैं, उन्हें बाद में एहसास होता है कि वो गलत थे। अब नया मुद्दा आया है  सरकारी नौकरी का। आया नहीं है बल्कि लाया गया है। जानबूझ कर इस माहौल में इन मुद्दे को छेड़ा गया है। इसका समर्थन कर रहे बड़े नेता Railways और Safety का स्पेलिंग भी गलत लिख रहे हैं।

भारत का सरकारी Workforce कुछ ज्यादा ही बड़ा है। इसमें अधिकतर अयोग्य लोग बैठे हुए हैं। एक-एक काम के लिए कई लोग हैं। ऐसे में सरकारी नौकरियों को कम कर के लघु व माध्यम उद्योगों को बढ़ावा देना और प्राइवेट सेक्टर को नौकरियों के सृजन के लिए तैयार करना ही सिस्टम बदलने का उद्देश्य है। स्वाभाविक है कि सबको सरकारी नौकरी ही चाहिए। लेकिन, जहाँ एक ही फाइल पढ़ने के लिए 3 कर्मचारी बैठे हैं, वहाँ चौथा भी इसी काम के लिए चल जाए तो इससे सरकारी कामकाज धीमा होगा या तेज़❓
सरकार ने बड़े स्तर पर कइयों को जबरन रिटायर किया। छोटे लेवल पर ये मुश्किल है।

 *इसके बाद चला डिस्लाइक का खेल।* *पीएम मोदी के 'मन की बात' वाले वीडियोज को डिस्लाइक किया जाने लगा।*

 *पोल खुल गई।*
 
 *कुल डिस्लाइक्स में से 98% विदेश से आए थे, तुर्की जैसे कट्टर इस्लामी देशों से।*

 *02% समर्थन पाकर हंगामा करना कोई इनसे सीखे। तुर्की में किसे JEE-NEET की परीक्षा देनी है❓* 

 *इसका एक ही उद्देश्य है कि सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार फैला कर ये दिखाना कि मोदी ठीक काम नहीं कर रहा।*

 *वैसे समझने वाले सब समझते हैं अब।*

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 *वैसे समझने वाले सब समझते हैं अब।*

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सिक्किम में ऑर्गेनिक खेती से चार साल में दोगुना हुआ पर्यटन


सिक्किम में ऑर्गेनिक खेती से चार साल में दोगुना हुआ पर्यटन

चार जिलों और सवा छह लाख आबादी वाला सिक्किम इन दिनों ऑर्गेनिक खेती की वजह से चर्चा में है। वर्ष 2014 तक सालाना छह लाख पर्यटक ही सिक्किम आ रहे थे। लेकिन ऑर्गेनिक स्टेट घोषित होने के बाद इसमें तेजी से इजाफा हुआ। 2014-15 में साढ़े छह लाख पर्यटक आए। 2016 में 8.6 लाख और 2017 में 14 लाख पार हो गए। कृषि, उद्यानिकी और कैश क्रॉप डेवलपमेंट विभाग के सचिव खोरलो भूटिया कहते हैं- ऑर्गेनिक के कारण ही यह चमत्कार हुआ है। चार सालों में पर्यटकों की तादाद दोगुनी हो गई है। इस साल हम 20 लाख की उम्मीद कर रहे हैं। दो साल में नेपाल, भूटान समेत देश के सभी राज्यों से करीब 1100 प्रतिनिधिमंडल आकर देख चुके हैं कि यहां चल क्या रहा है? चार साल से रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर सख्ती से बंदिश है। दो साल पहले बाकायदा ऑर्गेनिक स्टेट घोषित के बाद लगातार कुछ न कुछ नया हो रहा है। राजधानी गंगटोक में बहुमंजिला किसान बाजार बन रहा है, जहां जैविक सब्जियों को लेकर किसान सीधे उपभोक्ताओं के बीच आ रहे हैं।  

इमारत अभी बन रही है, लेकिन बाजार शुरू हो चुका है। कुल 77 हजार हेक्टेयर जमीन में से इलायची, अदरक, हल्दी और बक व्हीट जैसी खास फसलों के लिए 14 हजार हेक्टेयर जमीन रिजर्व की गई है। इंडियन फामर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव (इफको) सिक्किम सरकार के साथ मिलकर जैविक फसलों के लिए 50 करोड़ रुपए लागत की प्रोसेसिंग यूनिट लगा रही है। एक साल के भीतर इनकी योजना इन्हीं चार प्रमुख फसलों को ऑर्गेनिक सिक्किम के ब्रांड से देश के हर मॉल तक ले जाने की है। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रांड सिक्किम दाखिल होगा।

जैविक जुनून की तीन प्रतिनिधि कहानियां-

1. थ्रीडी एनिमेशन का काम छोड़कर बेंगलुरू से आए

37 साल के शिशिर खड़का रानीपुल के रहने वाले हैं। बंंेगलुरू में तीन साल तक थ्रीडी एनिमेशन की पढ़ाई की। दो साल वहीं नौकरी की। जैविक का माहौल बना तो तीन साल पहले लौटकर आ गए। किसानों से खरीदकर इलायची, हल्दी, अदरक, बक व्हीट और कुट्‌टू के पावडर, चिप्स और नूडल्स का सुंदर सिक्किम नाम से अपना ही ब्रांड बना लिया।

 तीन साल में ही टर्न ओवर 80 लाख रुपए। 

रानीपुल में फैक्ट्री बन रही है। अब सिलीगुड़ी और कोलकाता ले जाने की तैयारी है। शिशिर कहते हैं- पैसा अपनी जगह है। बड़ी बात है कि सिक्किम के सीएम समेत इस फील्ड के कई बड़े लोग मुझे पहचानते हैं। बेंगलुरू की नौकरी में क्या यह मुमकिन था?

2. ढाई एकड़ से छह लाख रुपए सालाना कमाई…

खामदोंग गांव के 44 वर्षीय डीपी सुबेदी के पास ढाई एकड़ जमीन हैं। उनके पिता इसी जमीन पर सिर्फ भरण-पोषण लायक ही उपज ले पाते थे। सिर्फ लाख-डेढ़ लाख के अदरक और संतरे ही बाहर बिकते थे। वर्ष 2006 में सुबेदी ने काम संभाला। उन्हाेंने हर एक इंच जमीन का इस्तेमाल किया। आज वे चेरी पेपर, पपीता, अदरक, हल्दी, मिर्ची और सब्जियां उगा रहे हैं।

शहद के लिए मधुमक्खी पालन और दूध के लिए तीन गायें भीं। सालाना छह लाख की उपज बेच रहे हैं। अकेली मिर्ची ही दो लाख की। तीन गायों के गोबर और गोमूत्र से खाद खुद बनाते हैं। वे कहते हैं-ढाई एकड़ को जैविक बनाने के लिए तीन गायें काफी हैं। हम खाद नहीं खरीदते।

3. तीन साल तक उत्पादन घटा, अब बढ़ने लगा

रूमटेक गांव में 29 एकड़ के िकसान करमा डिचेन बताते हैं कि शुरू के तीन साल थोड़े कठिन थे। किसान गुस्से में थे। सरकार से नाराज भी। पहले एक हेक्टेयर में उत्पादन 20-22 क्विंटल था। लेकिन बाद में मजबूरी में जैविक हुए तो घटकर 15-16 क्विंटल पर आ गया। उन्हीं तीन सालों में जैविक खाद बनाने के ट्रेनिंग प्रोग्राम लगातार चले। शुरुआती नुकसान की भरपाई एमएसपी के जरिए सरकार ने की। खाद के लिए किसानों ने डेयरी साथ में जोड़ीं। जिनके पास गायें नहीं हैं, उन्हें सरकार जैविक खाद दे रही है। अब हम अपना उत्पादन 24-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ले आए हैं। उपज की कीमतें बेहतर मिल रही हैं। कोई खेती से दुःखी नही रहा
अब सब के चहेरे खिले खिले है... चारो तरफ तंदुरस्त फसले और कम खर्च मे विपुल आय.. 😀


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