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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

सचमुच बहुत नालायक था वो.....

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   *नालायक बेटा*
  💥💥💥💥💥


सत्तर साल के बिसन जी अपनी पत्नी के साथ मॉर्निंग वाक पे निकले थे की अचानक पीछे से आ रही एक कार
 बिसन जी की पत्नी को टक्कर मार के आगे निकल जाती है. सर पे गहरी चोट लगने की वजह से खून बहुत तेजी से बहने लगता है.

 जैसे तैसे हॉस्पिटल में भर्ती करके बिसन जी अपने बड़े इंजीनियर इंजीनियर बेटे को फोन करके बताते है.

 बेटा तुम्हारे माँ की हालत गंभीर है. कुछ पैसो की जरूरत है.और तुम्हारी माँ को खून भी देना है. 

 बेटा फ़ोन पे कहता है...... 

 पापा, मैं बहुत व्यस्त हूँ आजकल. मै नहीं आ पाउँगा. 

मुझे विदेश मे नौकरी का पैकेज मिला है तो उसी की तैयारी कर रहा हूँ.आपका भी तो यही सपना था ना.....?


 इसलिये हाथ भी तंग चल रहा है. पैसे की व्यवस्था कर लीजिए मैं बाद मे दे दुँगा. 
अपने बड़े इंजिनियर बेटे के जबाब के बाद उन्होनें अपने दुसरे डाॅक्टर बेटे को फोन किया.

 तो उसने भी आने से मना कर दिया. उसे अपनी ससुराल मे शादी मे जाना था.

हाँ इतना जरुर कहा कि पैसों की चिंता मत कीजिए मै भिजवा दूँगा.

यह अलग बात है कि उसने कभी पैसे नहीं भिजवाए......!

उन्होंने बहुत मायुसी से फोन रख दिया.अब उस नालालक को फोन करके क्या फायदा.....!

जब ये दो लायक बेटे कुछ नही कर रहे तो वो नालायक क्या कर  लेगा.....?

ये सोचकर भारी मन से हॉस्पिटल में पत्नी के पास पहूँचे और बैठ गए. दुखी मन को पुरानी बातें याद आने लगी.

नालायक बेटा

दुसरो को सुखी देखकर खुद दुःख ना करे.....!

बिसन जी बैंक में बाबु थे. बिसन जी को तीन बेटे और एक बेटी थी. बडा इंजिनियर और मझला डाक्टर था.

 दोनौ की शादी बडे घराने मे हुई थी. दोनो अपनी पत्नियों के साथ अलग अलग शहरों मे रहते थे.

बेटी की शादी भी उन्होंने खुब धुमधाम से की थी.
सबसे छोटा बेटा पढाई में कमजोर था. उसका मन पढाई में नहीं लगता था.
दसवी क्लास में अचानक से उसने स्कूल जाना बंद कर दिया.और घर पे ही रहने लगा.

बिसन जी बहोत नाराज हुवे तो कहने लगा की मै घर में रहकर आप दोनों की सेवा करूंगा.

 नाराज होकर उन्होंने उसका नाम नालायक रख दिया. 

दोनों बडे भाई  पिता के आज्ञाकारी थे पर वह गलत बात पर उनसे भी बहस कर बैठता था....

 इसलिये बिसन जी उसे पसंद नही करते थे.

जब बिसन जी रिटायर हुए तो जमा पुँजी कुछ भी नही थी.
 सारी बचत दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा और बेटी की शादी मे खर्च हो गई थी.

शहर मे एक घर और गाँव मे थोडी सी जमीन थी. घर का खर्च उनके पेंशन से चल रहा था.

बिसन जी को जब लगा कि छोटा सुधरने वाला नही तो उन्होंने बँटवारा कर दिया.
और उसके हिस्से की जमीन उसे देकर उसे गाँव मे ही रहने भेज दिया.

हालाँकि वह जाना नही चाहता था पर पिता की जिद के आगे झुक गया और गाँव मे ही झोपडी बनाकर रहने लगा.
बिसन जी कभी भी नालायक बेटे का जिक्र भी नहीं करते थे. 

दोनों बेटों की खुप तारीफ करते. गर्व से अपना सिर ऊँचा करते.

बाबूजी बाबूजी सुन कर ध्यान टुटा तो देखा सामने वही नालायक खड़ा था. उन्होंने गुस्से से मुँह फेर लिया

पर उसने पापा के पैर छुए और रोते हुए बोला "बाबूजी आपने इस नालायक को क्यो नही बताया....?

 खबर मिलते ही भागा आया हूँ.

बाबूजी के  के विरोध के वावजुद उसने उनको एक बडे अस्पताल मे भरती कराया. डॉक्टर ने ब्रेन का आपरेशन बताया.
माँ का सारा इलाज किया. दिन रात उनकी सेवा मे लगा रहता कि एक दिन वह गायब हो गया.

वह उसके बारे मे फिर बुरा सोचने लगे थे कि तीसरे दिन वह वापस आ गया.
 महीने भर मे ही माँ एकदम भली चंगी हो गई
वह अस्पताल से छुट्टी लेकर उनलोगों को घर ले आया. बिसन जी के पुछने पर बता दिया कि खैराती अस्पताल था.
 पैसे नही लगे हैं. घर मे शंकर काका [ नौकरा ] थे. नालायक बेटा उन लोगों को छोड कर वापस गाँव चला गया.

धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया. एक दिन यूँ ही उनके मन मे आया कि उस नालायक की खबर ली जाए.

दोनों जब गाँव के खेत पर पहुँचे तो झोपडी मे ताला देख कर चौंके.
उनके खेत मे काम कर रहे आदमी से पुछा तो उसने कहा ....यह खेत अब मेरे हैं.
क्या...? पर यह खेत तो.... उन्हे बहुत आश्चर्य हुआ.
हाँ....! 

उसकी माँ की तबीयत बहुत खराब थी. उसके पास पैसे नही थे तो उसने अपने सारे खेत बेच दिये.
 वह रोजी रोटी की तलाश मे दुसरे शहर चला गया है.

बस यह झोपडी उसके पास रह गई है. यह रही उसकी चाबी. उस आदमी ने कहा.
वह झोपडी मे दाखिल हुये तो बरबस उस नालायक की याद आ गई.

टेबुल पर पडा लिफाफा खोल कर देखा तो उसमे रखा अस्पताल का ग्यारह लाख का बिल उनको मुँह चिढाने लगा.

अचानक उनकी आँखों से आँसू गिरने लगे और वह जोर से चिल्लाये - तु कहाँ चला गया नालायक.....
 अपने पापा को छोड कर. एक बार वापस आ जा फिर मैं तुझे कहीं नही जाने दुँगा.
उनकी पत्नी के आँसू भी बहे जा रहे थे.

और बिसन  जी को इंतजार था अपने नालायक बेटे को अपने गले से लगाने का.....
सचमुच बहुत नालायक था वो.....


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गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

धन्यवाद सोशल मीडिया | 6 वर्षों में मुझे पता चला


"धन्यवाद सोशल मीडिया | 6 वर्षों में मुझे पता चला"

मात्र 6 वर्ष पहले मैं भी एक सामान्य व्यक्ति था, मुझे भी औरो की तरह नेहरू, गांधी, गांधी परिवार तथा हिन्दू मुस्लिम भाई भाई जैसे नारे अच्छे लगते थे।

मगर.....

इन 6 वर्षों में मुझे कुछ ऐसे सत्य पता चले जो हैरान करने वाले थे।

1. सोशल मीडिया से मुझे यह पता चला कि "पत्रकार" निष्पक्ष नही होते। वे भी किसी खास विचारधारा से जुड़े होते हैं।

2. लेखक, साहित्यकार भी निष्पक्ष नही होते। वे भी किसी खास विचारधारा से जुडे होते है।

3. साहित्य अकादमी, बुकर, मैग्ससे पुरस्कार प्राप्त बुद्धिजीवी भी निष्पक्ष नही होते।

4. फिल्मों के नाम पर एक खास विचारधारा को बढ़ावा दिया जाता है। बालीबुड का सच पता चला।

5. हिन्दू धर्म को सनातन धर्म कहते हैं और देश का नाम हिंदुस्तान है, क्योंकि यह हिंदुओं का इकलौता देश है।
 
6. हिन्दू शब्द सिंधु से नही (ईरानियों द्वारा स को ह बोलने से) नही आया बल्कि "हिन्दू" शब्द "ऋग्वेद" में लाखों वर्ष पूर्व से ही वर्णित था।

7. जातिवाद, बाल विवाह, पर्दा प्रथा हजारों वर्ष पूर्व सनातनी नही बल्कि मुगलों के आगमन से उपजी कु-व्यवस्था थी, जिसे अंग्रेजों ने सनातन से जोड़कर हिन्दुओ को बांटा। उसे लिखित इतिहास बनाया।

8. किसी समय भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म पूरे विश्व मे फैला था।

9. वास्कोडिगामा का सच ये था कि वह एक लुटेरा, धोखेबाज था और किसी भारतीय जहाज का पीछा करते हुए भारत पहुंचा।

10. बप्पा रावल का नाम, काम और और अद्भुत पराक्रम सुना। उनसे डरकर 300 वर्ष तक मुस्लिम आक्रांता इधर झांके भी नहीं।

11. बाबर, हुमायूँ, अकबर, औरंगजेब, टीपू सुलतान सहित सभी मुगल शासक क्रूर, हत्यारे, इस्लाम के प्रसारक और हिंदुओं का नरसंहारक थे, यह सच पता चला। 

12. ताज़महल, लालकिला, कुतुब मीनार हिन्दू भवन थे, इनकी सच्चाई कुछ और थी।

13. जिसे लोग व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कहकर मजाक उड़ाते हैं, उसी ने मुझे महात्मा गांधी के "ब्रह्मचर्य के प्रयोग" और हेडगेवार, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल व हिन्दू समाज के साथ कि गई गद्दारी की सच्चाई बताई।

14. गाँधी जी की तुष्टिकरण और भारत विभाजन के बारे मे ज्ञान हुआ।

15. नेहरू की असलियत, उनके इरादे, उनकी हरकतें, पता चली।
 
16. POJKL के बारे मे भी इन 6 वर्षों में जाना कि कैसे पाकिस्तान ने कब्जा किया। और कौन लोग POJKL को भारत का हिस्सा नहीं मानते हैं।

17. अनुच्छेद 370 और उससे बने नासूर का पता चला।

18. कश्मीर में दलितों को आरक्षण नही मिलता, यह भी अब पता चला। कैसे 

19. AMU मे दलितों को आरक्षण नही मिलता, वह संविधान से परे है।

20. जेएनयू की असलियत, वहाँ के खेल और हमारे टैक्स से पलने वाली टुकड़े टुकड़े गैंग का पता चला।

21. वामपंथी-देशद्रोही विचारधारा के बारे मे पता चला।

22. जय भीम समुदाय के बारे मे पता चला। भीमराव के नाम पर उनके मत से सर्वथा भिन्न खेल का पता चला। मीम भीम दलित औऱ हिन्दू दलित अलग होते है पता चला।

23. मदर टेरेसा की असलियत अब जाकर ज्ञात हुई।

24. ईसाई मिशनरी और धर्मांतरण के बारे में पता चला।

25. समुदाय विशेष में तीन तलाक, हलाला, तहरुष, मयस्सर, मुताह जैसी कुरूतियों के नाम भी अब जाकर सुना। इनका मतलब जाना।

26. अब मुझे पता चला कि धिम्मी, काफिर, मुशरिक, शिर्क, जिहाद, क्रुसेड जैसे शब्द हिन्दुओं के लिए क्या संदेश रखते हैं।

27. सच बताऊं, गजवा ऐ हिन्द के बारे मे पता भी नहीं था। कभी नाम भी नहीं सुना था। यह सब इन 6 वर्षों में पता चला। स्टॉकहोम सिंड्रोम और लवजिहाद का पता चला।

28. सेकुलरिज्म की असलियत अब पता चली। मानवाधिकार, बॉलीवुड, बड़ी बिंदी गैंग, लुटियंस जोन इन सबके लिए तो हिन्दू एक चारा था।

29. हिन्दू पर्सनल लॉ और मुस्लिम पर्सनल लॉ अलग हैं, यह भी सोशल मीडिया ने ही बताया। नेहरू ने हिन्दू पर्सनल लॉ को समाप्त कर दिया। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ को रहने दिया।

30. भारतीय इतिहास के नाम पर हमें झूठा इतिहास पढ़ाया गया, जिन मुगलों ने हमे लूटा, हम पर अत्याचार किया उन्हें महान बताया गया।

और भी कई विषय हैं जो इन 6 वर्षो मे हमें ज्ञात हुए है जो देश से छुपाए गये थे। जो आपके ध्यान में आए वो इसमें जोड़ते जाइए।

वन्देमातरम | भारत माता की जय
🚩🇮🇳🇮🇳🇮🇳🚩
साभार: Copied

बुधवार, 30 सितंबर 2020

28 ग्राम शहद से मधुमक्खी को इतनी शक्ति मिल जाती है कि वो पूरी धरती का चक्कर लगा देगी.


मधुमक्खी अपनी जिंदगी में कभी नही सोती. ये इतनी मेहनती होती है कि पूछो मत! बेचारी एक बूंद शहद के लिए दूर-दूर तक उड़ती है. आजकल तो फिर भी कम हो गए लेकिन पहले मधुमक्खियों के छत्ते जगह-जगह पेड़ो पर, दीवारों पर लटके मिल जाते थे. आपके मन में उस समय कुछ सवाल आए होगे, चलिए आज रोचक तथ्यों के माध्यम से Honey Bee से जुड़ी हर जानकारी से आपको रूबरू करवाते है…

- मधुमक्खियों की 20,000 से ज्यादा प्रजातियाँ है लेकिन इनमें से सिर्फ 5 ही शहद बना सकती है.

- एक छत्ते में 20 से 60 हजार मादा मधुमक्खियाँ, कुछ सौ नर मधुमक्खियाँ और 1 रानी मधुमक्खी होती है. इनका छत्ता मोम से बना होता है जो इनके पेट की ग्रंथियों से निकलता है.

- मधुमक्खी धरती पर अकेली ऐसी कीट (insects) है जिसके द्वारा बनाया गया भोजन मनुष्य द्वारा खाया जाता है.

- केवल मादा ( यानि वर्कर मधुमक्खियां ) मधुमक्खी ही शहद बना सकती है और डंक मार सकती है. नर मधुमक्खी (drones) तो केवल रानी के साथ सेक्स करने के लिए पैदा होते है.

- किसी आदमी को मारने के लिए मधुमक्खी के 100 डंक काफी है.

- मधुमक्खी, शहद को पहले ही पचा देती है इसलिए इसे हमारे खून तक पहुंचने में केवल 20 मिनट लगते है.

- मधुमक्खी 24KM/H की रफ्तार से उड़ती है और एक सेकंड में 200 बार पंख हिलाती है. मतलब, हर मिनट 12,000 बार.

- कुत्तों की तरह मधुमक्खियों को भी बम ढूंढना सिखाया जा सकता है. इनमें 170 तरह के सूंघने वाले रिसेप्टर्स होते है जबकि मच्छरों में सिर्फ 79.

- मधुमक्खी फूलों की तलाश में छत्ते से 10 किलोमीटर दूर तक चली जाती है. यह एक बार में 50 से 100 फूलों का रस अपने अंदर इकट्ठा कर सकती है. इनके पास एक एंटिना टाइप छड़ी होती है जिसके जरिए ये फूलों से ‘nectar’ चूस लेती है. इनके पास दो पेट होते है कुछ nectar तो एनर्जी देने के लिए इनके मेन पेट में चला जाता है और बाकी इनके दूसरे पेट में स्टोर हो जाता है. फिर आधे घंटे बाद ये इसका शहद बनाकर मुंह के रास्ते बाहर निकाल देती है. जिसे कुछ लोग उल्टी भी कहते है. (नोट: nectar में 80% पानी होता है मगर शहद में केवल 18-20% पानी होता है.)

- 1 किलो शहद बनाने के लिए पूरी मधुमक्खियों को लगभग 40 लाख फूलों का रस चूसना पड़ता है और 90,000 मील उड़ना पड़ता है, यह धरती के तीन चक्कर लगाने के बराबर है.

- पूरे साल मधुमक्खियों के छत्ते के आसपास का तापमान 33°C रहता है. सर्दियों में जब तापमान गिरने लगता है तो ये सभी आपस में बहुत नजदीक हो जाती है ताकि गर्मी बनाई जा सके. गर्मियों में ये अपने पंखों से छत्ते को हवा देते है आप कुछ दूरी पर खड़े होकर इनके पंखो की ‘हम्म’ जैसी आवाज सुन सकते है.

- एक मधुमक्खी अपनी पूरी जिंदगी में चम्मच के 12वें हिस्से जितना ही शहद बना पाती है. इनकी जिंदगी 45-120 दिन की होती है.

- नर मधुमक्खी, सेक्स करने के बाद मर जाती है. क्योंकि सेक्स के आखिर में इनके अंडकोष फट जाते है.

- नर मधुमक्खी यानि Drones का कोई पिता नही होता, बल्कि सीधा दादा या माता होती है. क्योंकि ये unfertilized eggs से पैदा होते है. ये वो अंडे होते है जो रानी मधुमक्खी बिना किसी नर की सहायता के स्वयं अकेले पैदा करती है. इसलिए इनका पिता नही होता केवल माता होती है.

- शहद में ‘Fructose’ की मात्रा ज्यादा होने की वजह से यह चीनी से भी 25% ज्यादा मीठा होता है.

- शहद, हजारों साल तक भी खराब नही होता. यह एकमात्र ऐसा फूड है जिसके अंदर जिंदगी जीने के लिए आवश्यक सभी चीजें पाई जाती है: हमें जीने के लिए 84 पोशाक तत्वों की जरूरत होती है , जबकि शहद में 83 तत्व पायें जाते हैं । बस एक तत्व नही मिलता और वो है वसा । Enzymes: इसके बिना हम सांस ली गई ऑक्सीजन का भी प्रयोग नही कर सकते, Vitamins: पोषक तत्व, Minerals: खनिज पदार्थ, Water: पानी etc. यह अकेला ऐसा भोजन भी है जिसके अंदर ‘pinocembrin’ नाम का एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है जो दिमाग की गतिविधियाँ बढ़ाने में सहायक है.

- रानी मधुमक्खी पैदा नही होती बल्कि यह बनाई जाती है. यह 3-4 दिन की होते ही सेक्स करने के लायक हो जाती है. ये नर मधुमक्खी को आकर्षित करने के लिए हवा में ‘pheromone’ नाम का केमिकल छोड़ती है. जिससे नर भागा चला आता है फिर ये दोनों हवा में सेक्स करते है.

- रानी मधुमक्खी की उम्र 3 साल तक हो सकती है. यह छत्ते की अकेली ऐसी मेम्बर है जो अंडे पैदा करती है. यह शर्दियों में बहुत व्यस्त हो जाती है क्योंकि इस समय छत्ते में मधुमक्खियों की जनसंख्या अधिक हो जाती है. ये जिंदगी में एक ही बार सेक्स करती है और अपने अंदर इतने स्पर्म इकट्ठा कर लेती है कि फिर उसी से पूरी जिंदगी अंडे देती है. यह एक दिन में 2000 अंडे दे सकती है. मतलब, हर 45 सेकंड में एक.

- 28 ग्राम शहद से मधुमक्खी को इतनी शक्ति मिल जाती है कि वो पूरी धरती का चक्कर लगा देगी.

- धरती पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं में से, मधुमक्खियों की भाषा सबसे कठिन है. 1973 में ‘Karl von Frisch’ को इनकी भाषा “The Waggle Dance” को समझने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था.

- एक छत्ते में 2 रानी मधुमक्खी नही रह सकती, अगर रहेगी भी तो केवल थोड़े समय के लिए. क्योंकि जब दो Queen Bee आपस में मिलती है तो वे दोस्ती करने की बजाय एक दूसरे पर हमला करना पसंद करती है. और ये तब तक जारी रहता है जब तक एक की मौत न हो जाए.

- रानी मधुमक्खी (Queen Bee) पैदा क्यों नही होती, ये बनाई क्यों जाती है ?

Ans. वर्कर मधुमक्खियाँ मौजूदा क्वीन के अंडे को फर्टीलाइज़ करके मोम की 20 कोशिकाएँ तैयार करती है. फिर युवा नर्स मधुमक्खियाँ, Queen के लार्वा से तैयार एक विशेष भोजन जिसे ‘Royal Jelly’ कहा जाता है, कि मदद से मोम के अंदर कोशिकाएँ निर्मित करती है. ये प्रकिया तब तक जारी रहती है जब तक कोशिकाओं की लंबाई 25mm तक न हो जाए. निर्माण की प्रकिया के 9 दिन बाद ये कोशिकाएँ मोम की परत से पूरी तरह ढक दी जाती है. आगे चलकर इसी से रानी मधुमक्खी तैयार होती है.

- यदि छत्ते की रानी मधुमक्खी मर जाए तो क्या होगा?

Ans. रानी मधुमक्खी लगातार एक खास़ तरह का केमिकल ‘फेरोमोन्स’ निकालती रहती है जब यह मर जाती है तो काम करने वाली मधुमक्खियों को इसकी महक मिलनी बंद हो जाती है. जिससे उन्हें पता चल छाता है कि रानी या तो मर गई या फिर छत्ता छोड़कर चली गई. रानी मधुमक्खी के मरने से पूरे छत्ते का विनाश हो सकता है क्योंकि यदि ये मर गई तो फिर नए अंडे कौन पैदा करेगा. इसकी मौत के बाद काम करने वाली मधुमक्खियों को सिर्फ 3 दिन के अंदर-अंदर कोशिका निर्माण कर नई Queen Bee बनानी पड़ती है.

-यदि धरती की सारी मधुमक्खी खत्म हो जाए तो क्या होगा ?

Ans. अगर ऐसा हुआ तो मानव जीवन भी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा. क्योंकि धरती पर मौजूद 90% खाद्य वस्तुओं का उत्पादन करने में मधुमक्खियों का बहुत बड़ा हाथ है. बादाम, काजू, संतरा, पपीता, कपास, सेब, कॉफी, खीरे, बैंगन, अंगूर, कीवी, आम, भिंडी, आड़ू, नाश्पाती, मिर्च, स्ट्राबेरी, किन्नू, अखरोट, तरबूज आदि का परागन मधुमक्खी द्वारा होता है. जबकि गेँहू, मक्कें और चावल का परागण हवा द्वारा होता है. इनके मरने से 100 में 70 फसल तो सीधे तौर पर नष्ट हो जाएगी, यहाँ तक कि घास भी नही उगेगा. महान वैज्ञानिक ‘अल्बर्ट आइंस्टीन’ ने भी कहा था कि अगर धरती से मधुमक्खियाँ खत्म हो गई तो मानव प्रजाति ज्यादा से ज्यादा 4 साल ही जीवित रहेगी.


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बुरी_परिस्थितियो_का_समाधान


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                  #बुरी_परिस्थितियो_का_समाधान 

**एक गांव था , जहा ज्यादातर लोग अपने खेतोँ में आलू की खेती करते थे***

 गांव मे सभी किसानो के पास लगभग समान ही जमीन थी और गाँव के पास नदी होने के कारण किसी को पानी की कोई कमी नहीँ होती थी***

 उसी गाँव में एक सुखीराम नाम का किसान भी था जो बाकी किसानो से ज्यादा अमीर और धनवान था***

 जबकि जमीन उसके पास भी उतनी ही थी जितनी की दूसरे लोगोँ के पास और फसल भी लगभग
सभी के बराबर निकलती थी पर वह दूसरोँ से ज्यादा पैसे कमाता था***

 सभी गाँव वाले  इस बात को लेकर चिंतित थे कि सब के पास जमीन लगभग बराबर है , हम सभी आलू की ही फसल लगाते हैँ , सभी को लगभग समान फसल होती है और एक ही मंडी मेँ बेचते है फिर भी सुखीराम के पास ज्यादा पैसे क्यूँ हे ?***

एक दिन सभी गाँव वाले मिल कर निर्णय करते हें कि हम सुखीराम के पास जाकर पूछते है कि वह हमसे ज्यादा अमीर क्यूँ है और केसे बना ?***

सभी लोग सुखीराम के घर जाते है। सुखीराम सभी की उचित आओ-भगत करता है और पूछता है – ” आप सभी का मेरे घर कैसे आना हुआ ?  ”  सभी लोग पूछते है – ” हमारे खेत , जमीन , फसल , मंडी सभी समान है पर फिर भी तुम ज्यादा  अमीर हो इसका कारण हम जानना चाहते है। ”***

सुखीराम दिल का अच्छा आदमी होता है। वह सभी से पूछता है – ” आप लोग आलू पकने के बाद क्या करते हो। ” गांव वाले बोलते  है – ” आलू पकने के बाद सभी आलू एक जगह इकट्ठा करते है और उन्हें ट्रक या ट्राली मेँ डाल कर मंडी ले जाते है***

 ” सुखीराम पूछता है – ” ट्रक मेँ डाल कर कौन से रास्ते से मंडी ले जाते हो।  ” गांव वाले कहते है – ” जो नया डामर का रास्ता बना है उससे ले जाते है***

 ” सुखीराम बोलता है – ” मै पुराने गड्डे वाले रास्ते से ले जाता हूँ। ” गांव वाले समझ नहीँ पाते है***

 सुखीराम समझाता है – ” मै ट्रक मेँ सारे आलू डाल देता हूँ और पुराने गड्ढे वाले रास्ते से ले जाता हूँ। ”  ट्रक जब गड्डो मे हिलता है तो सभी आलू हिलते है , जिससे बडे-बडे आलू अपने आप ऊपर आ जाते है***

 मीडियम आलू बीच मेँ रह जाते है। छोटे-छोटे आलू अपने आप नीचे चले जाते हैँ***

 और जब मैं मंडी पहुँचता हूँ तो बडे-बड़े आलू को अलग रख देता हूँ , मीडियम आलू अलग लगाता हूँ और छोटे-छोटे आलू को अलग लगाता हूँ***

 बडे आलू देखकर खरीददार सेठ मुझे ज्यादा भाव देते हैँ , मीडियम आलू भी सभी एक समान होने के कारण ज्यादा भाव मिल जाता है***

 और  जिनको छोटे आलू चाहिए वह भी ठीक-ठाक भाव मेँ छोटे आलू खरीद लेते है***

  इसलिए मै तुम लोगो से ज्यादा पैसा कमाता  हूँ***

***हमारी इस दुनिया मेँ भी भगवान हमेँ उस सुखीराम जैसे ही एक साथ सभी लोगोँ को इस दुनिया मेँ डाल देता है  और कई बार हमारे सामने खराब से खराब परिस्थितियाँ लाता है। जिसमे हम अंदर से बाहर तक पूरे हिल जाते है***

 जीवन मेँ इन परिस्थितियों में जो अपने आप को मजबुत  करके ऊपर ले जाता है , आज की दुनिया मेँ उसको ज्यादा मान-सम्मान मिलता है***

 और जो इन परिस्थितियोँ के निचे दब जाता है , निराश हो जाता है , टूट जाता है। उसको दुनिया मेँ कोई जगह नहीँ मिल पाती। ऊपर वाला हमारे लिए ऐसी कई परिस्थितियाँ लाता है , जिसमें हम अपने आपको सफलता  की तरफ ले जा सके। हमेँ हमेशा अपने आप को बड़ा आलू मतलब सफल व्यक्ति बनाने की कोशिश करना चाहिए***

 परिस्थितियाँ हमेँ हमेशा मजबुत बनाने के लिए ही हमारे विपरीत होती है***
😊🌻 "🌻 
👌 👌

जैविक खेती के मूल सिद्धांत


माँ बुलाती है 
🌱☘🌱☘🌱☘🌱☘
जैविक खेती के मूल सिद्धांत :-

इसके लिए सबसे पहले सभी को पूर्ण संकल्पित होना चाहिए क्यों कि शुरुआत में जानकारी और अनुभव के अभाव में कुछ परेशानी हो सकती हैं
लेकिन जब अच्छी तरह से जानकर करेंगे तो जैविक खेती जरा भी मुश्किल नहीं है

जैविक कृषि के कुछ मूल सिद्धांत हैं
मिट्टी में जीवाणुओं की मात्रा भूमि की उत्पादकता का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है
ये जीवाणु मिट्टी ,हवा और कृषि अवशेषों में कुदरती रूप से उपलब्ध पोषक तत्वों को पौधों के अनुरूप बनाते हैं
ये जीवाणु जो जैविक कृषि का मूल है तो इनको हमनें कृत्रिम रसायन का प्रयोग करके इनको समाप्त कर दिया है जिसका दुष्प्रभाव हमें भुगतना पड़ रहा है ।हमारे भूमि उत्पादन शक्ति में और
हमारे भोजन मे

रासायनिक खादें भी मिट्टी में जीवाणु के पनपने में रूकावट करती हैं इसलिए सबसे पहला काम है मिट्टी में जीवाणु की संख्या बढाना
जिसके लिए केमिकल कीटनाशक और रसायनों का प्रयोग बिल्कुल  बंद करें
फिर बिक्री और खाने में प्रयोग होने वाले फसल के हिस्से को छोड़कर खेत मे पैदा होने वाली किसी भी सामग्री बायोमास को  खरपतवार को भी खेत से बाहर नहीं जाने देना चाहिए
हम काफी बार कृषि अवशेषों को खेत में ही जलाने का काम करते हैं
जलाना तो बिल्कुल भी नहीं चाहिए
उसका वहीं पर भूमि को ढंकने के लिए और खाद के रूप में प्रयोग करना चाहिए

इस प्रक्रिया को प्राकृतिक आच्छादन या मल्चिंग करना भी कहा गया है
खेत में अगर बायोमास की 3-4 ईंच की परत बन जाए तो बहुत अच्छा है यह परत बहुत से काम करती है
वाष्पीकरण कम करके पानी बचाती है जिससें जल संचय भी होता है
बारिश और तेज हवा आंधी में मिट्टी को बचाती है

खरपतवार को नियंत्रित व रोकथाम करती है

तापमान नियंत्रित करके ज्यादा गर्मी सर्दी में भी मिट्टी के जीवाणुओ के लिए उपयुक्त बनाती है व उनके लिए भोजन का काम करती है
और आखरी में गल सड कर मिट्टी की ऊपजाऊ शक्ति बढाती है

ज़मीन ढकने के लिये बायोमास के छोटे टुकड़े कर के डालना बेहतर रहता है. बायोमास के तौर पर चौड़े पत्ते और मोटी टहनी का प्रयोग नहीं करना चाही ये.

खरपतवार तभी नुकसान करती है जब वह फसल से ऊपर जाने लगे या उसमें फल या बीज बनने लगे सूर्य प्रकाश मे अवरोध पैदा करे 
तभी उसे निकालने की जरूरत है
निकालकर भी उसका खाद या भूमि को ढंकने में प्रयोग होना चाहिए

उसे खेत से बाहर फैंकने की जरूरत नहीं है
वैसे इस तरह की खेती में कुछ वर्ष पश्चात खरपतवार की समस्या नही के बराबर हो जाती है
इसका कारण ये है कि रासायनिक खाद के प्रयोग से खरपतवार को सहज ही उपलब्ध पोषण तत्व एकदम से मिल जाते हैं जिससे वह तेजी से बढता है परंतु कुदरती खेती में खरपतवार को सहज उपलब्ध पोषक तत्व नहीं मिलता इसलिए खरपतवार की समस्या धीरे धीरे कम हो जाती है

आगे यह है कि खेत में जैव-विविधता होनी चाहये, यानी कि केवल एक किस्म की फ़सल न बो कर खेत में एक ही समय पर कई किस्म की फसल बोनी चाहिए

र्जैव-विविधता या मिश्रित खेती मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने और कीटों का नियन्त्रण करने, दोनों मे सहायक सिद्ध होती है. जहाँ तक सम्भव हो सके हर खेत मे फ़ली वाली या दलहनी (दो दाने वाली) एवं कपास, गेहूँ या चावल जैसी एक दाने वाली फ़सलों को समला कर बौंए ...दलहनी या फली वाली फ़सल नाइट्रोजन की पूर्त्ति मे सहायक होती है. एक ही फ़सल यानी कि कपास इत्यादि की भी एक ही किस्म को न बो कर भिन्न-भिन्न किस्मों का प्रयोग करना चाहिए. फ़सल-चक्र मे भी समय-समय पर बदलाव करना चाहीये. एक ही तरह की फ़सल बार बार लेने से मिट्टी से कुछ तत्त्व ख़त्म हो जाते है एव कुछ विशेष कीटों और खरपतवारों को लगातार पनपने का मौका मिलता है. एक-दो फ़सल अपनाने के कारण ही आज किसान भी अपने खेत मे हो सकने वाली चीज़ भी बाज़ार से ख़रीद कर खा रहा है, जिस के चलते किसान परिवार को भी स्वस्थ भोजन नहीं मिलता. ..

कोशिश यह रहे कि भूमि नंगी न रहे. इस के लिये उस में विभिन्न तरह की, लम्बी, छोटी, लेटने वाली और अलग-अलग समय पर बोई और काटे जाने वाली फ़सल ली जाए
खेत मे लगातार फ़सल बने रहने से सूरज की रोशनी, जो धरती पर भोजन और ऊर्जा का असली स्रोत है, और जिसे मुख्य तौर से पौधे ही पकड़ पाते है, का पूरा प्रयोग हो पाता है इस के साथ ही इस से ज़मीन में नमी बनी रहती है और मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है जिस से मिट्टी के र्जीवाणओ को लगातार उपयूक्त वातावरण मिलता है, वरना वे ज़्यादा गरमी/शरदी मे मर जाते है

खेत मे प्रतिएकड़ कम से कम 5-7 भिन्न-भिन्न प्रकार के पेड़ ज़रूर होने चाहिए. खेत के बीच के पेड़ों को 7-8 फ़ट से ऊपर न जाने दे उन की छ्टाई करते रहे उन के नीचे ऐसी फ़सल उगानी चाहिए जो कम धूप मे भी उगती है (ऐसी फ़सलों को बोना र्जैव-विविधता बनाने मे भी सहायक होगा.) खेत के किनारों पर ऊचे पेड़
हो सकते है. खेत मे पेड़ होने से मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता बढ़ती है, मिट्टी का क्षरण नहीं होता. सबसेे बड़ा फ़ायदा

यह हे कि पेड़ की गहरी जड़ धरती

की निचली परतों से आवश्यक तत्त्व लेती है और टूटे हुए पत्तों, फल-फूल क माध्यम से ये तत्त्व मिट्टी में मिल कर अन्य फ़सलों को मिल जाते हैं उन पर बैठने वाले पक्षी कीट-नियन्त्रण मे भी सहायक सिद्ध होते है. इसलिये खेत मे पक्षियों के बैठने के लिये “T"आकार की व्यवस्था करना भी लाभदायक रहता है. जानकार यह बताते हैं कि ज्यादातर पक्षी शाकाहारी नहीं होते. व अन्न तभी खाते है जब उन्हे कीट खाने को न मिले। इसलिए जहाँ कीटनाशकों का प्रयोग होता है, वहाँ कीट न होने से ही पक्षी अन्न खाते है वरना तो ज़्यादातर पक्षी कीट खाना पसन्द करते हैं

अगला तत्व है खेत मे अधिक से अधिक बरसात का पानी इकट्ठा करना. अगर खेत से पानी बह कर बाहर जाता है तो उस के साथ उपर्जाऊ मिट्टी भी बह जाती है. इस लिए पानी बचाने से मिट्टी भी बचती है. दूसरी ओर जैसे-जैसे मिट्टी मे र्जीवाणओ की संख्या बढती है, मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता भी बढ़ती है. यानी मिट्टी बचाने से पानी भी बचता है. इस के अलावा पानी बचाने के लिये बरसात से पहले मेढ़ों/डोलों की सम्भाल होनी चाहिये. खेत मे ढलान वाले कोने मे छोटे तालाबों और गड्ढों का सहारा भी लिया जा सकता है.

पेड़ कोई भी जो अपने आसपास एरिया के देशी प्रजाति के हो जो बहुपयोगी हो जैसे नीम आदि
हरियाणा में हो सकने वाले कुछ पेड़ हैं: , आाँवला, जामुन, चीकू, पपीता (देसी  किस्म लें), अनार, बेर, अमरूद, कीनू, शहतूत, हरड़, बहेड़ा, नींबू , देशी कीकर, करोंदा, सहजन (6 महीन मे फल देने वाली किस्म चुने) अनेक तरह के पेड़ यहा हो सकत ह. रोह्तक की एक सरकारी नर्सरी मे 100 से अधिक तरह के पेड़ लगे हुए है अपने पड़ोस की नर्सरी से आप के इलाके मे लग शकने वाले पौधों के बारे मे पता कर शकते हैं
पेड जो अपने एरिया में होते हैं अपने देश के और फलदार होते है कोई बूरे नहीं होते सभी अच्छे होते हैं

किसी भी फ़सल को, धान और गन्ने र्जैसी फ़सल को भी, पानी की नहीं बल्कि नमी की ज़रूरत होती है. बैड बना कर बीज बोने से और नालियों से पानी देने से, या बिना बैड के भी बदल-बदल कर एक नाली छोड़ कर पानी देने से पानी की खपत काफ़ी घट जाती है और जड़ें ज्यादा फैलती हैं. कम पानी वाली जगह या खारा पानी वाली जगह पर यह काफ़ी फ़ायदेमन्द रहता है. बैड ऐसा हो (3-4 फूट का) कि सब जगह नमी भी पहूच जाये और बाहर बैठ कर पूरे बैड से थोड़ा  खरपतवार भी निकाला जा शके

अगर बी्जों पर कम्पनियों या बाज़ार का कब्ज़ा रहा तो किसान स्वतंत्र हो ही नहीं सकता. इस लिये अपना बीज बनाना क़ुदरती कृषी का आधार है. अपने बाप-दादा के ज़माने के अच्छे बीजों को ढूढ़ कर इकट्ठा करे और उन्है बढ़ाए, सुधारे और बांटे. स्थानीय परन्तु सधरे हुऐ बीजों और पशुओ की देसी लेकिन अच्छी नस्ल का प्रयोग किया जाना चाहिये.बीजोंं के अकुरण की जांच और बोने से पहले उन का उपचार भी ज़रूरी है. बीज बोने के समय का भी कीट नियंत्रण और पैदावार में योगदान पाया जाता है बेमौसमी फसलें लेना भी ठीक नहीं है
बीजों के बीच की परस्पर दूरी जैविक खेती मे प्रचलित खेती के मुकाबले लगभग सवा से डेढ़ गुणा ज्यादा होती है. धान 1 फ़ुट और ईंख 8-9 फ़ुट (चारों तरफ़) की दुरी पर भी बोया जा रहा है. इस से जड़ों को फेलने का पूरा मौका मिलता है बीज कम लगता है परन्तु उत्पादन ज़्यादा होता है.

आमतौर पर सैद्धांतिक रुप से जैविक कृषि में मिट्टी स्वस्थ होने के कारण और जैव विविधता के कारण कीड़ा और बीमारी कम लगते हैं
और लगते भी हैं तो कम घातक होते हैं आवश्यकता पड़ने पर बीमारी या कीटों की रोकथाम के लिए जैविक कीटनाशक किसान द्वारा घर पर आसानी से बिना खास खर्चे के बनाया जा शकता है
यह भी बात ध्यान रखे कि कोई कीट हमारी फसलो को नुकसान नहीं करते बल्कि अधिकतर हमारे मित्र कीट ही होते हैं
जो शत्रु कीटो को स्वतः समाप्त कर देते हैं इसलिए हमे ऐसे जैव तालमेल की तरफ बढना है प्रकृति को समझना है

किसानों को आत्मनिर्भर बनना पडेगा क्यों कि कुछ कंपनियों और विदेशी दुष्चक्रों की नजर हमारी खेती पर हो चुकी है इसलिए इनसे कुछ न खरीदकर स्वयं खाद बनाना
कीटनाशक बनाना
बीजो से बीज बनाना
आदि का प्रशिक्षण लेकर करना चाहिए

इसके लिए पशुपालन खासकर देशी गौपालन अभिन्न अंग है
केवल 1-2 फसलों पर आधारित खेती प्राकृतिक खेती हो नहीं शकती इसमें तो पशुपालन और पेड मिश्रित बहु फसली खेती ही हो सकती हैं

अंतिम में ये वैकल्पिक खेती ज्यादा मुनाफा के चक्कर में नहीं करनी चाहिए बल्कि कुदरती और अन्य जीवो और इंसानों के साथ मिल जुलकर करनी चाहिए जिससे यह टिकाऊ हो
और अपने पूर्वजों कै ज्ञान की तरफ लौट शके
     वो ज्ञान मे भी हमारे पिताजी थे  और  जीवन मे भी... उनकी जीवनशैली केवल हमारे घर की नही .. पूरी मानव जात का आधार थी... वो कभी यूरिया की लाईन मे नही खड़े रहे... एक गाय माता और प्रकृति माता दोनो को छोड़ उन्हे किसी की जरूरत नही थी  हमारे पुरखो को केवल फ्रेम मे मत रखे.. जीवन मे अपने आचरण मे साथ रखे 
जिन्हे  सब्सीडी
का अर्थ ही नही पता था 
हम कहा से चले थे.. कहा आ गए..? चलो वापिस अपने ही घर... 👣   मा बुलाती है

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