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शनिवार, 12 दिसंबर 2020

किसान आंदोलन का पूरा सच -क्यों हो रहा है विरोध

किसान आंदोलन का पूरा सच

 क्यों हो रहा है विरोध,  आखिर क्या है समस्या,

आखिर प्रदर्शन कर रहे किसानों की असली मांगें क्या हैं और उनके प्रदर्शन की सच्चाई क्या है और क्या ये वाकई में एक बड़ी समस्या है. 2020 का किसान प्रदर्शन एक मौजूदा विरोध प्रदर्शन है जो कि इस साल संसद में पारित हुए तीन कृषि बिल के विरोध में शुरू हुआ. ये प्रदर्शन 9 अगस्त 2020 से जारी है. अब ये बिल कानून बन चुके हैं और किसानों ने इनके विरोध में दिल्ली के कई इलाकों में प्रदर्शनकारियों ने सड़कें बंद की हुई हैं.

ये हैं वो तीन कानून

-कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) एक्ट 2020
-मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध एक्ट 2020
-आवश्यक वस्तु संशोधन एक्ट

प्रदर्शनकारियों ने कई दिनों से सड़कें ब्लॉक की हुई हैं और वो राष्ट्रीय राजधानी के आस-पास कई जगहों पर प्रदर्शन कर रहे हैं.

आखिर समस्या क्या है?

सबसे पहले, ये बिल संसद में पारित हो चुके हैं और अब ये कानून बन गए हैं. इसके अलावा, प्रदर्शनकारी अब कई दिनों से लाखों यात्रियों और मेहनती नागरिकों को इन रास्तों से गुजरने से रोक रहे हैं. प्रदर्शनकारियों ने टोल और अन्य क्षेत्रों को भी बंद करने की चेतावनी दी है, जिसके चलते हजारों यात्रियों और कड़ी मेहनत करने वाले नागरिकों के आवागमन पर भी असर पड़ेगा.

प्रदर्शन की सच्चाई क्या है?

प्रदर्शनकारी ये मांग कर रहे हैं कि सरकार संसद का एक विशेष सत्र बुलाए और इन तीनों कृषि कानूनों को रद्द करे. हालांकि जब तक ये कानून किसानों के लिए हानिकारक न हो, तब तक ये थोड़ा कठिन होगा. प्रदर्शनकारियों का दावा है कि APMC को खत्म कर दिया जाएगा और इसके नतीजतन MSP भी खत्म हो जाएगी, लेकिन ये कानून मौजूदा APMC और MSP के स्ट्रक्चर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं. क्योंकि ये कानून राज्यों की शक्तियों का अधिग्रहण नहीं करते हैं, इसलिए ये स्ट्रक्चर भी अपनी जगह पर बने रहेंगे.

अब अंतर सिर्फ इतना है कि अगर किसान भ्रष्ट AMPC के भ्रष्ट बिचौलियों को फसल बेचने के लिए मजबूर है, तो अब वो APMC के बाहर जाकर भी अपनी उपज बेचने का विकल्प चुन सकता है. इसी के साथ प्रदर्शनकारी दावा कर रहे हैं कि किसानों को कॉर्पोरेट्स द्वारा परेशान किया जाएगा. किसानों और कॉरपोरेट्स के बीच समझौते के लिए एक और शब्द है- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और एक तथ्य यह भी है कि कई राज्यों में दशकों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग चल रही है. भारत के कई हिस्सों में कॉफी, चाय, गन्ने और कपास के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग काफी समय से हो रही है. पश्चिम बंगाल और पंजाब में पेप्सिको और हरियाणा में SAB मिलर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करने वाले कॉन्ट्रेक्टर्स के बड़े उदाहरण हैं. एक बात जो प्रदर्शनकारियों की असलियत को स्पष्ट करती है, वह यह है कि वे अनुचित मांगें कर रहे हैं.

क्या हैं किसानों की अनुचित मांगें

प्रदर्शनकारियों ने मांग की है कि कृषि उपयोग के लिए डीजल की कीमतों में 50 फीसदी तक की कटौती की जाए और पराली जलाने पर लगाए जाने वाले जुर्माने को हटाए. मालूम हो कि पराली जलाना, हर साल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ने के मुख्य कारणों में से एक है. जो मामले किसानों से संबंधित नहीं हैं, उनसे संबंधित भी कई मांगें किसानों ने रखी हैं. उनमें से एक मांग ये भी है कि कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, कवियों, बुद्धिजीवियों और लेखकों पर दर्ज मामले वापस लिए जाएं और उन्हें रिहा किया जाए.

हालंकि इन लोगों की जो लिस्ट है उसमें शामिल लोग मानवाधिकार कार्यकर्ता, कवि, बुद्धिजीवि और लेखकों की श्रेणी से दूर-दूर तक संबंधित नहीं हैं. उदाहरण के लिए लिस्ट में उमर खालिद का भी नाम है, जिस पर दिल्ली हिंसा के दौरान दिल्ली के नागरिकों के खिलाफ नागरिकों को उकसाने का आरोप है. अन्य 20 लोगों को भी दिल्ली दंगों और भीमा कोरेगांव हिंसा में उनकी भूमिकाओं के लिए UAPA एक्ट के तहत जेल में डाला गया है.

इन प्रदर्शनों में खालिस्तान समर्थक झंडे दिखना और अर्बन नक्सल की रिहाई की मांग किया जाना भी परेशान करने वाली बात है. खालिस्तान आंदोलन एक सिख अलगाववादी आंदोलन है जो सिखों के लिए एक अलग देश की मांग कर रहा है. भारत में पूरी तरह से संप्रभु राज्य स्थापित करने के इरादे से चरमपंथियों द्वारा इस आंदोलन का समर्थन दिया जाता है.

प्रदर्शनकारियों की मांगों का एक हिस्सा अर्बन नक्सल की रिहाई की मांग कर रहा है. आपकी राय इन 20 व्यक्तियों के बारे में कुछ भी हो सकती है, लेकिन उनकी रिहाई का भारतीय किसान या उनके कल्याण से क्या संबंध हो सकता है? अब पॉइंट पर वापस आते हैं

किसी मामले पर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करना सही है, लेकिन अब ये प्रदर्शन भारतीय किसानों के भले के लिए नहीं बचा है. अब इसने एक अतिवादी और सांप्रदायिक रुख ले लिया है जो अब कई दिनों से लाखों लोगों के लिए परेशानी का कारण बन गया है. यात्रियों को हर रोज भारी ट्रैफिक का सामना करना पड़ता है और मेहनती नागरिक इन प्रदर्शनों का असली खामियाजा भुगत रहे हैं. मालूम हो कि ये कोरोना महामारी के दौरान हो रहा है. हम यह भी नहीं जानते हैं कि विरोध के कारण एम्बुलेंस को भी देरी हो रही है या नहीं.

आखिर प्रदर्शन का असली कारण क्या है?

क्या कृषि सुधारों के विरोध में भारतीय नागरिकों के कल्याण और सशक्तीकरण के बारे में विरोध के आधार पर मेहनती नागरिकों के लिए इस तरह की असुविधा उचित है? एक तरफ प्रदर्शनकारी प्रदर्शनों और बंद को जारी रखे हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ किसानों को इन कानूनों से फायदा भी होने लगा है. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में चार जिलों की किसान उत्पादक कंपनियों ने APMC के बाहर व्यापार से लगभग 10 करोड़ रुपये कमाए हैं. यह बिल पास होने के लगभग तीन महीने बाद की बात है.

किसानों के विरोध प्रदर्शन को मीडिया में काफी बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन ये विरोध किसी एक मुद्दे को लेकर नहीं है. दिल्ली के दंगों और भीमा कोरेगांव के दौरान जिन लोगों पर हिंसा का आरोप लगाया गया है, उन्हें मुक्त कराने की कोशिश की जा रही है – ये दोनों ही घटनाएं आतंकवाद हैं… यहीं से साबित होता है कि यह प्रदर्शन भारतीय किसानों के लिए नहीं है. ये विरोध भारत के हित में नहीं है और न ही ये हमें किसी भी तरह से प्रगति करने में मदद करता है.

सोर्स TV9 भारतवर्ष


शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

वनस्पतियों की पत्तियों से तैयार किये जाने वाले, पत्तलों और उनसे होने वाले लाभ


*'संकल्प छोटा, परिणाम बड़ा'* 

*संकल्प लें सहभोज मे पत्तलों का प्रयोग कर माँ प्रकृति का सम्मान करेंगे*...।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा, कि हमारे देश में 2000 से अधिक वनस्पतियों की पत्तियों से तैयार किये जाने वाले, पत्तलों और उनसे होने वाले लाभों के विषय में पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान उपलब्ध है, पर मुश्किल से पाँच प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग हम अपनी दिनचर्या मे करते हैं।
आम तौर पर केले की पत्तियो में खाना परोसा जाता है...प्राचीन ग्रंथों में केले की पत्तियों पर परोसे गये भोजन को, स्वास्थ्य के लिये लाभदायक बताया गया है.. आजकल महंगे होटलों और रिसोर्ट मे भी केले की पत्तियों का यह प्रयोग होने लगा है..।

1. पलाश के पत्तल में भोजन करने से जो पुण्य व आरोग्य मिलता है वह स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने से भी नहीं  मिलता है...।
2. केले के पत्तल में भोजन करने से, चांदी के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है..।
3. रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों के लिये, पलाश से तैयार पत्तल को उपयोगी माना जाता है.... पाचन तंत्र सम्बन्धी रोगों के लिये भी, इसका उपयोग होता है....। आम तौर पर लाल फूलों वाले पलाश को हम जानते हैं, पर सफेद फूलों वाला पलाश भी उपलब्ध है.... इस दुर्लभ पलाश से तैयार पत्तल को बवासीर (पाइल्स) के रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है...।

4. जोडों के दर्द के लिये, करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी माना जाता है.... पुरानी पत्तियों को नयी पत्तियों की तुलना मे अधिक उपयोगी माना जाता है...।
5. लकवा (पैरालिसिस) होने पर, अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तलों को उपयोगी माना जाता है..।

इसके अन्य लाभ~
1. सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिटटी में दबा सकते है।
2. न पानी नष्ट होगा।
3. न केमिकल (रासायनिक पदार्थ ) उपयोग करने पड़ेंगे। और न ही  शरीर को आंतरिक हानि पहुंचेगी।
4. अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक ऑक्सीजन भी मिलेगी।
5. प्रदूषण भी घटेगा।
6. सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह गाड़ने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है एवं मिटटी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है।
7. पत्तल बनाए वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा।
8. सबसे मुख्य लाभ, हम नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा
सकते हैं।
 *चलें प्रकृति के साथ, करें संस्कृति का सम्मान।* 🌹🙏
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11 दिसम्बर 2020 को एकादशी है वह त्रिस्पर्शा एकादशी है

*ऊँ जय गोमाता!🕉 जय गोपाल!!*
🕉 बन्धुबर जय सियाराम
11 दिसम्बर 2020  को एकादशी है वह त्रिस्पर्शा एकादशी है मतलब उस दिन एकादशी द्वादशी और त्रयोदशी एक ही दिन हैं अर्थात सबसे बड़ी एकादशी मानी गई है इसका उपवास करने से एक हजार एकादशी उपवास करने का पुण्य फल प्राप्त होता है। मनुष्य 40 वर्ष तक एकादशी का उपवास करते हैं तब उनकी एक हजार एकादशी होती है मतलब कि 40 वर्ष का पुण्य एक ही दिन में प्राप्त होता है तो इसका सभी सनातनी पूर्ण लाभ लें ऐसी सबसे विनम्र प्रार्थना है। जय श्रीसीताराम जी 🙏नमो राघवाय 🙏कल्यानमस्तु ✋

सोमवार, 7 दिसंबर 2020

किसान आंदोलन: राष्ट्र विरोधी शक्तियों का अंतिम प्रहार



किसान आंदोलन: राष्ट्र विरोधी शक्तियों का अंतिम प्रहार
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लगता था कि सितंबर 2020 के बाद भारत को सीमाओं पर और आंतरिक रूप से झझकोरा जाएगा। भारत में लगने वाली यह आंतरिक दवानल, चीन के लिए उस अनुकूल स्थिति का निर्माण करेगी, जिसमे भारत की सीमाओं पर आक्रमण करने का चीन का मार्ग प्रशस्त करेगी। मुझे भारत चीन की सीमाओं की भौगोलिक परिस्थिति व वहां पर शीतकाल की बर्फीली दुर्गमता देखते हुए, दिसम्बर 2020 से पहले या फिर फरवरी 2021 में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण किये जाने की आशंका थी। 

लगता है कि अब जब नवम्बर 2020 बीत चुका है और दिसम्बर 2020 के आते आते  दिल्ली में पंजाब का किसान, किसान बिल 2020 के विरोध में आंदोलन प्रारम्भ कर चुका है, तब भारत के जलने की घड़ी भी पास आती जा रही है। 

जिस प्रकार नवम्बर 2019 में दिल्ली में सीएए के विरोध में शाहीनबाग़ में धरना दिया गया था और फिर वहां से शेष भारत मे सीएए के विरोध की आड़ में मोदी सरकार व राष्ट्र विरोधी उग्रता फैलाई गई थी, ठीक उसी की पुनरावृत्ति, और बड़े स्तर पर होता देख रहा हूँ। 

जिस प्रकार वामपंथियों और लिबर्ल्स के नेतृत्व में शुरू हुआ सीएए विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कट्टर इस्लामिक शक्तियों के हाथ मे चला गया था, ठीक उसी प्रकार कांग्रेसियों और आपियों द्वारा शुरू किया गया यह किसान आंदोलन भी शीघ्र ही प्रत्यक्ष रूप से खालिस्तानियों और कट्टर इस्लामिको के हाथ चला जायेगा। 

सीएए विरोधी आंदोलन में तो इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बुर्के से बाहर आने में समय लगाया था लेकिन इस किसान बिल 2020 विरोधी आंदोलन ने शुरू में ही अपनी खालिस्तानी पगड़ी दिखा दी है। 

इस बार यह लोग अपने इस इस्लामिक और खालिस्तानी गठजोड़ को किसी आवरण में छिपा भी नही पाए है। पंजाब से आये पगड़ीधारी सिख किसानों के लिए मस्जिदों में चल रहे लंगर, इनकी भूमिका निभाते हुए लोगो के हाथ मे जम्मू कश्मीर से धारा 370 फिर से लागू किये जाने की मांग करते हुए प्लेकार्ड, ओठों से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का गुणगान और इंद्रा गांधी की तरह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को गोली मार देने की उद्घोषणा, इन राष्ट्र विरोधी खालिस्तानियों और कट्टर इस्लामियों के इस भरत मिलाप को प्रत्यक्षता प्रदान कर रही है। इनको कांग्रेस के साथ भारत के विपक्ष का पूरा समर्थन प्राप्त है। 

यह आने वाले समय मेंं और उग्र होता जाएगा और दिल्ली की सीमाओं से बाहर निकल यह सब तरफ फैलेगा। हो सकता है इस किसान बिल विरोधी आंदोलन में अन्य विरोधी अपनी-अपनी मांगों को लेकर जुड़ कर, जनता को एक सामूहिकता का बोध कराए लेकिन इसकी केंद्रीय शक्ति कट्टर इस्लामिक शक्तियों के ही हाथ मे होगी। 

यह किसान आंदोलन, सोनिया कांग्रेस का, भारत को छिन्न-भिन्न करने का अंतिम अवसर भी है। सोनिया गांधी के साथ-साथ सभी विपक्षियों को इस बात का भान है कि चीन और पाकिस्तान से लगी भारत की सीमाएं उद्दवेलित है और मोदी सरकार, चीनी कारोना महामारी से लड़खड़ाई भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्स्थापित करने और आर्थिक मंदी से पीड़ित भारत की जनता को संभालने में लगी, इस बाह्य व आंतरिक चुनौतियों से जूझ रही है। ऐसे में उनका आंकलन यही है कि यह काल नरेंद्र मोदी जी के विपरीत है और उनको, जनता की भावनाओं को भड़का, अराजकता फैला कर, सफलतापूर्वक अस्थिर किया जा सकता है। 

आंकलन है कि यह आंदोलन और उससे जनित अराजकता तब तक नही धमेगी, जबतक भारत पर चीन, अपनी खोई सैन्य प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने के लिए, आक्रमण नही करता है। जिसकी संभावना फरवरी 2021 से पहले नही है। 

यहां यह बहुत संभव है कि चीन की शह पर, पाकिस्तान, जिसकी आर्थिक व राजनैतिक स्थिति दिन-प्रति-दिन बिगड़ती जा रही है और वहां पर विपक्षी दलों व जनता में पाकिस्तानी सेना की राजनैतिक भूमिका को लेकर आक्रोश सार्वजनिक आने लगे है, वह, अपनी असफलताओं पर आवरण डालने के लिए, कश्मीर का बहाना बना कर, भारत को दोनों सीमाओं पर उलझाने के लिए आक्रमण कर सकता है। 

इस पर कोई संदेह नही है कि भारत के साथ-साथ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी अपने राजनैतिक जीवन के सबसे संकटकालीन काल मे प्रवेश कर चुके है। 

इसपर भी कोई संदेह नही है कि मोदी जी, तमाम कष्टों और विभीषका के उपरांत भी, भारत को इस महासंकट से सुरक्षित निकाल लेंगे। शायद प्रारब्ध ने, नरेंद्र मोदी जी की यही भूमिका चुनी है। 

काल ने भारत और उसके सनातन को सुरक्षित बनाये रखने के लिए ही वैराग्य की उत्कंठा लिए साधुमार्ग पर चल रहे वैरागी को, लौटा कर, राजनीति के पथ का पथिक बनाया है। 

कल वाराणसी में देवदीपावली के अवसर पर, गंगा तट पर शिव स्त्रोत सुनते व वाराणसी तट का विहंगम दृश्य देखते हुए, मोदी जी के स्वरूप और भाव भंगिमा ने यह अनुभूति प्रदान की है कि यह व्यक्ति, सांसारिक प्रांगण से स्वयं को विच्छिन्न करने की प्रक्रिया में प्रविष्ट कर चुका है।

ऐसी मनोस्थिति में पहुंचा व्यक्ति, मनोभावनाओं के कुरुक्षेत्र को पार कर, संवेदनाओं के स्तर पर तटस्थ होता जाता है। जब ऐसा होता है तो ऐसे व्यक्ति की धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य और पाप-पुण्य के बीच की स्पष्टता समग्र हो जाती है। ऐसा व्यक्ति, शेष विश्व की प्रतिक्रिया, आंकलन और विचारों के मोहजाल को काट निर्मोही हो जाता है।

आगामी आने वाले 6/7 माह का काल, भारत के पथ पर कंटक बनी हर शक्तियों पर इस निर्मोही के प्रतिकार का काल है। यह काल कष्ट जरूर देगा लेकिन इसे हमें प्रसवपीड़ा के भांति स्वीकारना होगा। रामकृपा से 2021 का वर्ष जब अस्तांचल को जा रहा होगा, तब भारत अपने ब्रह्ममूर्त के अंधकार को छोड़, उदय हो रहा होगा। 
#pushkerawasthi

हम अपनी पुरातन संस्कृति के अच्छे स्वरूप और सही अवधारणा के साथ प्रस्तुत करें


सनातन सरोकार ने समाज को तोड़ा नही जोडा है।*
विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े *दलित* को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि *दलित* स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हे पर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगें। इस तरह सबसे पहले *दलित* को जोडा गया । *धोबी* के द्वारा दिये गये जल से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा।
*कुम्हार*  द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोडा।
 *मुसहर जाति* जो वृक्ष के पत्तों से पत्तल/दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोड़ा कि इन्हीं के बनाए गये पत्तल/दोनीयों से देवताओं का पूजन सम्पन्न होंगे।
 *कहार* जो जल भरते थे यह कहते हुए जोड़ा कि इन्हीं के द्वारा दिये गये जल से देवताओं के पुजन होगें।
 *बिश्वकर्मा* जो लकड़ी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोड़ा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन/चौकी पर ही बैठकर वर-वधू देवताओं का पुजन करेंगे।

*धारीकार* जो डाल और मौरी को दुल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता है,को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा बनाये गये उपहारों के बिना देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिल सकता।
 *डोम* जो गंदगी साफ और मैला ढोने का काम किया करते थे उन्हें यह कहकर जोड़ा गया कि *मरणोंपरांत* इनके द्वारा ही प्रथम मुखाग्नि दिया जायेगा....

इस तरह समाज के सभी वर्ग जब आते थे तो घर कि महिलायें मंगल गीत का गायन करते हुये उनका स्वागत करती है।
और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर विदा करते है 

*दोष सनातन में नहीं है बल्कि दोष उन लालची , सत्ता की लूटपाट में अपना हिस्सा सुनिश्चित करने के जाति के नाम पर संगठन बना कर सनातनी हिन्दुओं का ढोंग कर रहे है

यहाँ *नाई* से पूछा जाता था कि क्या सभी वर्गो कि उपस्थिति हो गयी है...?
 *नाई* के हाँ कहने के बाद ही * मंगल-पाठ प्रारम्भ होता हैं।

********मैं सनातन के ज़रिए फिर से जोड़ने की सशक्त क्रिया शुरू कर चुका हूँ 

*देश में फैले हुये *साधुओं* और *सनातन विरोधी* शक्तियों का विरोध करना होगा जो अपनी अज्ञानता को छिपाने के लिये *वेदो* कि निन्दा करते हुए पूर्ण भौतिकता का आनन्द ले रहे हैं।......

*याद रखो जो मंदिर ज्ञान के भण्डार थे उनको दुकान किसने बनाया, चढ़ावे को लेकर अदालतों में हज़ारों मुक़दमे एक दूसरे के ख़िलाफ़ किसने किए हैं!

हम सब का उद्देश्य यही होना चाहिए कि हम अपनी पुरातन संस्कृति के अच्छे स्वरूप और सही अवधारणा के साथ प्रस्तुत करें और हर 
जातिवादी नेता और राष्ट्रवाद की आड़ में जाति की स्वार्थ साधने में लगे हुए हैं!
इनको सरेआम बेनक़ाब करना होगा !


*पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ*

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