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बुधवार, 19 मई 2021

हनुमान जी को बहुत प्रिय है - जनेऊ "हाथ बज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूज जनेऊ साजे"

 ब्राह्मण और  जनेऊ



पिछले दिनों मैं हनुमान जी के मंदिर में गया था जहाँ पर मैंने एक ब्राह्मण को देखा, जो एक जनेऊ हनुमान जी के लिए ले आये थे | संयोग से मैं उनके ठीक पीछे लाइन में खड़ा था, मेंने सुना वो पुजारी से कह रहे थे कि वह स्वयं का काता (बनाया) हुआ जनेऊ हनुमान जी को पहनाना चाहते हैं, पुजारी ने जनेऊ तो ले लिया पर पहनाया नहीं | जब ब्राह्मण ने पुन: आग्रह किया तो पुजारी बोले यह तो हनुमान जी का श्रृंगार है इसके लिए बड़े पुजारी (महन्थ) जी से अनुमति लेनी होगी, आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करें वो आते ही होगें | मैं उन लोगों की बातें गौर से सुन रहा था, जिज्ञासा वश मैं भी महन्थ जी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा।


थोड़ी देर बाद जब महन्थ जी आए तो पुजारी ने उस ब्राह्मण के आग्रह के बारे में बताया तो महन्थ जी ने ब्राह्मण की ओर देख कर कहा कि देखिए हनुमान जी ने जनेऊ तो पहले से ही पहना हुआ है और यह फूलमाला तो है नहीं कि एक साथ कई पहना दी जाए | आप चाहें तो यह जनेऊ हनुमान जी को चढ़ाकर प्रसाद रूप में ले लीजिए |


 इस पर उस ब्राह्मण ने बड़ी ही विनम्रता से कहा कि मैं देख रहा हूँ कि भगवान ने पहले से ही जनेऊ धारण कर रखा है परन्तु कल रात्रि में चन्द्रग्रहण लगा था और वैदिक नियमानुसार प्रत्येक जनेऊ धारण करने वाले को ग्रहणकाल के उपरांत पुराना बदलकर नया जनेऊ धारण कर लेना चाहिए बस यही सोच कर सुबह सुबह मैं हनुमान जी की सेवा में यह ले आया था प्रभु को यह प्रिय भी बहुत है | हनुमान चालीसा में भी लिखा है कि - "हाथ बज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूज जनेऊ साजे"।


 अब महन्थ जी थोड़ी सोचनीय मुद्रा में बोले कि हम लोग बाजार का जनेऊ नहीं लेते हनुमान जी के लिए शुद्ध जनेऊ बनवाते हैं, आपके जनेऊ की क्या शुद्धता है | इस पर वह ब्राह्मण बोले कि प्रथम तो यह कि ये कच्चे सूत से बना है, इसकी लम्बाई 96 चउवा (अंगुल) है, पहले तीन धागे को तकली पर चढ़ाने के बाद तकली की सहायता से नौ धागे तेहरे गये हैं, इस प्रकार 27 धागे का एक त्रिसुत है जो कि पूरा एक ही धागा है कहीं से भी खंडित नहीं है, इसमें प्रवर तथा गोत्रानुसार प्रवर बन्धन है तथा अन्त में ब्रह्मगांठ लगा कर इसे पूर्ण रूप से शुद्ध बनाकर हल्दी से रंगा गया है और यह सब मेंने स्वयं अपने हाथ से गायत्री मंत्र जपते हुए किया है |


ब्राह्मण देव की जनेऊ निर्माण की इस व्याख्या से मैं तो स्तब्ध रह गया मन ही मन उन्हें प्रणाम किया, मेंने देखा कि अब महन्त जी ने उनसे संस्कृत भाषा में कुछ पूछने लगे, उन लोगों का सवाल - जबाब तो मेरे समझ में नहीं आया पर महन्त जी को देख कर लग रहा था कि वे ब्राह्मण के जबाब से पूर्णतया सन्तुष्ट हैं अब वे उन्हें अपने साथ लेकर हनुमान जी के पास पहुँचे जहाँ मन्त्रोच्चारण कर महन्त व अन्य 3 पुजारियों के सहयोग से हनुमान जी को ब्राह्मण देव ने जनेऊ पहनाया तत्पश्चात पुराना जनेऊ उतार कर उन्होंने बहते जल में विसर्जन करने के लिए अपने पास रख लिया |


 मंदिर तो मैं अक्सर आता हूँ पर आज की इस घटना ने मन पर गहरी छाप छोड़ दी, मेंने सोचा कि मैं भी तो ब्राह्मण हूं और नियमानुसार मुझे भी जनेऊ बदलना चाहिए, उस ब्राह्मण के पीछे-पीछे मैं भी मंदिर से बाहर आया उन्हें रोककर प्रणाम करने के बाद अपना परिचय दिया और कहा कि मुझे भी एक जोड़ी शुद्ध जनेऊ की आवश्यकता है, तो उन्होंने असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि इस तो वह बस हनुमान जी के लिए ही ले आये थे हां यदि आप चाहें तो मेरे घर कभी भी आ जाइएगा घर पर जनेऊ बनाकर मैं रखता हूँ जो लोग जानते हैं वो आकर ले जाते हैं | मेंने उनसे उनके घर का पता लिया और प्रणाम कर वहां से चला आया।


शाम को उनके घर पहुंचा तो देखा कि वह अपने दरवाजे पर तखत पर बैठे एक व्यक्ति से बात कर रहे हैं , गाड़ी से उतरकर मैं उनके पास पहुंचा मुझे देखते ही वो खड़े हो गए, और मुझसे बैठने का आग्रह किया अभिवादन के बाद मैं बैठ गया, बातों बातों में पता चला कि वह अन्य व्यक्ति भी पास का रहने वाला ब्राह्मण है तथा उनसे जनेऊ लेने आया है | ब्राह्मण अपने घर के अन्दर गए इसी बीच उनकी दो बेटियाँ जो क्रमश: 12 वर्ष व 8 वर्ष की रही होंगी एक के हाथ में एक लोटा पानी तथा दूसरी के हाथ में एक कटोरी में गुड़ तथा दो गिलास था, हम लोगों के सामने गुड़ व पानी रखा गया, मेरे पास बैठे व्यक्ति ने दोनों गिलास में पानी डाला फिर गुड़ का एक टुकड़ा उठा कर खाया और पानी पी लिया तथा गुड़ की कटोरी मेरी ओर खिसका दी, पर मेंने पानी नहीं पिया 


इतनी देर में ब्राह्मण अपने घर से बाहर आए और एक जोड़ी जनेऊ उस व्यक्ति को दिए, जो पहले से बैठा था उसने जनेऊ लिया और 21 रुपए ब्राह्मण को देकर चला गया | मैं अभी वहीं रुका रहा इस ब्राह्मण के बारे में और अधिक जानने का कौतुहल मेरे मन में था, उनसे बात-चीत में पता चला कि वह संस्कृत से स्नातक हैं नौकरी मिली नहीं और पूँजी ना होने के कारण कोई व्यवसाय भी नहीं कर पाए, घर में बृद्ध मां पत्नी दो बेटियाँ तथा एक छोटा बेटा है, एक गाय भी है | वे बृद्ध मां और गौ-सेवा करते हैं दूध से थोड़ी सी आय हो जाती है और जनेऊ बनाना उन्होंने अपने पिता व दादा जी से सीखा है यह भी उनके गुजर-बसर में सहायक है | 


इसी बीच उनकी बड़ी बेटी पानी का लोटा वापस ले जाने के लिए आई किन्तु अभी भी मेरी गिलास में पानी भरा था उसने मेरी ओर देखा लगा कि उसकी आँखें मुझसे पूछ रही हों कि मेंने पानी क्यों नहीं पिया, मेंने अपनी नजरें उधर से हटा लीं, वह पानी का लोटा गिलास वहीं छोड़ कर चली गयी शायद उसे उम्मीद थी की मैं बाद में पानी पी लूंगा | 


अब तक मैं इस परिवार के बारे में काफी है तक जान चुका था और मेरे मन में दया के भाव भी आ रहे थे | खैर ब्राह्मण ने मुझे एक जोड़ी जनेऊ दिया, तथा कागज पर एक मंत्र लिख कर दिया और कहा कि जनेऊ पहनते समय इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करूं -- |


मैंने सोच समझ कर 500 रुपए का नोट ब्राह्मण की ओर बढ़ाया तथा जेब और पर्स में एक का सिक्का तलाशने लगा, मैं जानता था कि 500 रुपए एक जोड़ी जनेऊ के लिए बहुत अधिक है पर मैंने सोचा कि इसी बहाने इनकी थोड़ी मदद हो जाएगी | ब्राह्मण हाथ जोड़ कर मुझसे बोले कि सर 500 सौ का फुटकर तो मेरे पास नहीं है, मेंने कहा अरे फुटकर की आवश्यकता नहीं है आप पूरा ही रख लीजिए तो उन्हें कहा नहीं बस मुझे मेरी मेहनत भर का 21 रूपए दे दीजिए, मुझे उनकी यह बात अच्छी लगी कि गरीब होने के बावजूद वो लालची नहीं हैं, पर मेंने भी पांच सौ ही देने के लिए सोच लिया था इसलिए मैंने कहा कि फुटकर तो मेरे पास भी नहीं है, आप संकोच मत करिए पूरा रख लीजिए आपके काम आएगा | उन्होंने कहा अरे नहीं मैं संकोच नहीं कर रहा आप इसे वापस रखिए जब कभी आपसे दुबारा मुलाकात होगी तब 21रू. दे दीजिएगा | 


इस ब्राह्मण ने तो मेरी आँखें नम कर दीं उन्होंने कहा कि शुद्ध जनेऊ की एक जोड़ी पर 13-14 रुपए की लागत आती है 7-8 रुपए अपनी मेहनत का जोड़कर वह 21 रू. लेते हैं कोई-कोई एक का सिक्का न होने की बात कह कर बीस रुपए ही देता है | मेरे साथ भी यही समस्या थी मेरे पास 21रू. फुटकर नहीं थे, मेंने पांच सौ का नोट वापस रखा और सौ रुपए का एक नोट उन्हें पकड़ाते हुए बड़ी ही विनम्रता से उनसे रख लेने को कहा तो इस बार वह मेरा आग्रह नहीं टाल पाए और 100 रूपए रख लिए और मुझसे एक मिनट रुकने को कहकर घर के अन्दर गए, बाहर आकर और चार जोड़ी जनेऊ मुझे देते हुए बोले मेंने आपकी बात मानकर सौ रू. रख लिए अब मेरी बात मान कर यह चार जोड़ी जनेऊ और रख लीजिए ताकी मेरे मन पर भी कोई भार ना रहे |


मेंने मन ही मन उनके स्वाभिमान को प्रणाम किया साथ ही उनसे पूछा कि इतना जनेऊ लेकर मैं क्या करूंगा तो वो बोले कि मकर संक्रांति, पितृ विसर्जन, चन्द्र और सूर्य ग्रहण, घर पर किसी हवन पूजन संकल्प परिवार में शिशु जन्म के सूतक आदि अवसरों पर जनेऊ बदलने का विधान है, इसके अलावा आप अपने सगे सम्बन्धियों रिस्तेदारों व अपने ब्राह्मण मित्रों को उपहार भी दे सकते हैं जिससे हमारी ब्राह्मण संस्कृति व परम्परा मजबूत हो साथ ही साथ जब आप मंदिर जांए तो विशेष रूप से गणेश जी, शंकर जी व हनूमान जी को जनेऊ जरूर चढ़ाएं...


उनकी बातें सुनकर वह पांच जोड़ी जनेऊ मेंने अपने पास रख लिया और खड़ा हुआ तथा वापसी के लिए बिदा मांगी, तो उन्होंने कहा कि आप हमारे अतिथि हैं पहली बार घर आए हैं हम आपको खाली हाथ कैसे जाने दो सकते हैं इतना कह कर उनहोंने अपनी बिटिया को आवाज लगाई वह बाहर निकाली तो ब्राह्मण देव ने उससे इशारे में कुछ कहा तो वह उनका इशारा समझकर जल्दी से अन्दर गयी और एक बड़ा सा डंडा लेकर बाहर निकली, डंडा देखकर मेरे समझ में नहीं आया कि मेरी कैसी बिदायी होने वाली है | 


अब डंडा उसके हाथ से ब्राह्मण देव ने अपने हाथों में ले लिया और मेरी ओर देख कर मुस्कराए जबाब में मेंने भी मुस्कराने का प्रयास किया | वह डंडा लेकर आगे बढ़े तो मैं थोड़ा पीछे हट गया उनकी बिटिया उनके पीछे पीछे चल रह थी मेंने देखा कि दरवाजे की दूसरी तरफ दो पपीते के पेड़ लगे थे डंडे की सहायता से उन्होंने एक पका हुआ पपीता तोड़ा उनकी बिटिया वह पपीता उठा कर अन्दर ले गयी और पानी से धोकर एक कागज में लपेट कर मेरे पास ले आयी और अपने नन्हें नन्हा हाथों से मेरी ओर बढ़ा दिया उसका निश्छल अपनापन देख मेरी आँखें भर आईं।


मैं अपनी भीग चुकी आंखों को उससे छिपाता हुआ दूसरी ओर देखने लगा तभी मेरी नजर पानी के उस लोटे और गिलास पर पड़ी जो अब भी वहीं रखा था इस छोटी सी बच्ची का अपनापन देख मुझे अपने पानी न पीने पर ग्लानि होने लगी, मैंने झट से एक टुकड़ा गुड़ उठाकर मुँह में रखा और पूरी गिलास का पानी एक ही साँस में पी गया, बिटिया से पूछा कि क्या एक गिलास पानी और मिलेगा वह नन्ही परी फुदकता हुई लोटा उठाकर ले गयी और पानी भर लाई, फिर उस पानी को मेरी गिलास में डालने लगी और उसके होंठों पर तैर रही मुस्कराहट जैसे मेरा धन्यवाद कर रही हो , मैं अपनी नजरें उससे छुपा रहा था पानी का गिलास उठाया और गर्दन ऊंची कर के वह अमृत पीने लगा पर अपराधबोध से दबा जा रहा था।


अब बिना किसी से कुछ बोले पपीता गाड़ी की दूसरी सीट पर रखा, और घर के लिए चल पड़ा, घर पहुंचने पर हाथ में पपीता देख कर मेरी पत्नी ने पूछा कि यह कहां से ले आए तो बस मैं उससे इतना ही कह पाया कि एक ब्राह्मण के घर गया था तो उन्होंने खाली हाथ आने ही नहीं दिया।।।।

घर में कुछ पैसे आएंगे, तो तुमसे ही सब्जी लिया करूंगी

🍂ll #स्नेह_के_आँसू ll 
गली से गुजरते हुए सब्जी वाले ने तीसरी मंजिल  की घंटी  का बटन दबाया।  ऊपर से बालकनी का दरवाजा खोलकर बाहर आई महिला ने नीचे देखा। 🍂

"बीबी जी !  सब्जी ले लो ।  बताओ क्या- क्या तोलना है।  कई दिनों से आपने सब्जी नहीं खरीदी मुझसे, कोई और देकर जा रहा है?" 
सब्जी वाले ने चिल्लाकर कहा। 

"रुको भैया!  मैं नीचे आती हूँ।"🍂

उसके बाद महिला घर से नीचे उतर कर आई  और सब्जी वाले के पास आकर बोली - 
"भैया ! तुम हमारी घंटी मत बजाया करो। हमें सब्जी की जरूरत नहीं है।"🍂

"कैसी बात कर रही हैं बीबी जी ! सब्जी खाना तो सेहत के लिए बहुत जरूरी होता है। किसी और से लेती हो क्या सब्जी ?" 
सब्जीवाले ने कहा। 🍂

🍂"नहीं भैया!  उनके पास अब कोई काम नहीं है। और किसी  तरह से हम लोग अपने आप को जिंदा रखे हुए हैं।  जब सब  ठीक होने लग जाएगा, घर में कुछ पैसे आएंगे,  तो तुमसे ही सब्जी लिया करूंगी।  मैं किसी और से सब्जी  नहीं खरीदती हूँ। तुम घंटी बजाते हो तो उन्हें बहुत बुरा लगता है,  उन्हें अपनी मजबूरी पर गुस्सा आने लगता है।  इसलिए भैया अब तुम हमारी घंटी मत बजाया करो।" 
महिला कहकर अपने घर में वापिस जाने लगी। 🍂

"ओ बहन जी !  तनिक रुक जाओ। हम इतने बरस से  तुमको सब्जी दे रहे हैं । जब तुम्हारे अच्छे दिन थे,  तब तुमने हमसे खूब सब्जी और फल लिए थे।  अब अगर थोड़ी-सी परेशानी आ गई है, तो क्या हम तुमको ऐसे ही छोड़ देंगे ? सब्जी वाले हैं, कोई नेता जी तो है नहीं  कि वादा करके छोड़ दें।  रुके रहो दो मिनिट।" 

🍂और सब्जी वाले ने  एक थैली के अंदर टमाटर , आलू, प्याज, घीया, कद्दू और करेले डालने के बाद धनिया और मिर्च भी उसमें डाल दिया । महिला हैरान थी। उसने तुरंत कहा – 🍂

"भैया !  तुम मुझे उधार  सब्जी दे रहे हो,  कम से कम तोल तो लेते,  और मुझे पैसे भी बता दो।  मैं तुम्हारा हिसाब लिख लूंगी।  जब सब ठीक हो जाएगा तो तुम्हें तुम्हारे पैसे वापस कर दूंगी।" महिला ने कहा। 🍂

"वाह..... ये क्या बात हुई भला ? तोला तो इसलिए नहीं है कि कोई मामा अपने भांजी -भाँजे से पैसे नहीं लेता है। और बहिन ! मैं  कोई अहसान भी नहीं कर रहा हूँ ।  ये सब  तो यहीं से कमाया है,  इसमें तुम्हारा हिस्सा भी है। गुड़िया के लिए ये आम रख रहा हूँ, और भाँजे के लिए मौसमी । बच्चों का खूब ख्याल  रखना। ये बीमारी बहुत बुरी है। और आखिरी बात सुन लो .... घंटी तो मैं जब भी आऊँगा, जरूर बजाऊँगा।" 
और सब्जी वाले ने मुस्कुराते हुए दोनों थैलियाँ महिला के हाथ में थमा दीं। 
🍂
अब महिला की आँखें मजबूरी की जगह स्नेह के आंसुओं से भरी हुईं थीं। 

(नि:शब्द  )🍂

मंगलवार, 18 मई 2021

300 से ज्यादा असाध्य रोगों का काल है ज्वारों का रस

300 से ज्यादा असाध्य रोगों का काल है


●जीवन और मरण के बीच जूझते रोगियों को प्रतिदिन चार बड़े गिलास भरकर ज्वारों का रस दिया जाता है।●जीवन की आशा ही जिन रोगियों ने छोड़ दी उन रोगियों को भी तीन दिन या उससे भी कम समय में चमत्कारिक लाभ होता देखा गया है।
●ज्वारे के रस से रोगी को जब इतना लाभ होता है, तब नीरोगी व्यक्ति ले तो कितना अधिक लाभ होगा?
🙏🏼तो अगर आप अपने जीवन को निरोगी बनाना चाहते है तो हमारी पोस्ट ओर जानकारी को ध्यान पूर्वक पढ़े और शरीर आपका है तो आज से ही नीचे लिखे प्रयोग को काम में लाये।

🌾कैंसर में गेहूँ के ज्वारे का उपयोग🌾

●गेहूँ के दाने बोने पर जो एक ही पत्ता उगकर ऊपर आता है उसे ज्वारा कहा जाता है। नवरात्रि आदि उत्सवों में यह घर-घर में छोटे-छोटे मिट्टी के पात्रों में मिट्टी डालकर बोया जाता है। ये गेहूँ के ज्वारे का रस, प्रकृति के गर्भ में छिपी औषधियों के अक्षय भंडार में से मानव को प्राप्त एक अनुपम भेंट है।
●शरीर के आरोग्यार्थ यह रस इतना अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है कि विदेशी जीववैज्ञानिकों ने इसे ‘हरा लहू’ (Green Blood) कहकर सम्मानित किया है। डॉ. एन. विगमोर नामक एक विदेशी महिला ने गेहूँ के कोमल ज्वारों के रस से अनेक असाध्य रोगों को मिटाने के सफल प्रयोग किये हैं।
●उपरोक्त ज्वारों के रस द्वारा उपचार से 300 से अधिक रोग मिटाने के आश्चर्यजनक परिणाम देखने में आये हैं। जीव-वनस्पति शास्त्र में यह प्रयोग बहुत मूल्यवान है।
●गेहूँ के ज्वारों के रस में रोगों के उन्मूलन की एक विचित्र शक्ति विद्यमान है। शरीर के लिए यह एक शक्तिशाली टॉनिक है।
●इसमें प्राकृतिक रूप से कार्बोहाईड्रेट आदि सभी विटामिन, क्षार एवं श्रेष्ठ प्रोटीन उपस्थित हैं। इसके सेवन से असंख्य लोगों को विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिली है।
●कैन्सर, मूत्राशय की पथरी, हृदयरोग, लीवर, डायबिटीज, पायरिया एवं दाँत के अन्य रोग, पीलिया, लकवा, दमा, पेट दुखना, पाचन क्रिया की दुर्बलता, अपच, गैस, विटामिन ए, बी आदि के अभावोत्पन्न रोग, जोड़ों में सूजन, गठिया, संधिशोथ, त्वचासंवेदनशीलता (स्किन एलर्जी) सम्बन्धी बारह वर्ष पुराने रोग, आँखों का दौर्बल्य, केशों का श्वेत होकर झड़ जाना, चोट लगे घाव तथा जली त्वचा सम्बन्धी सभी रोग।हजारों रोगियों एवं निरोगियों ने भी अपनी दैनिक खुराकों में बिना किसी प्रकार के हेर-फेर किये गेहूँ के ज्वारों के रस से बहुत थोड़े समय में चमत्कारिक लाभ प्राप्त किये हैं।
●ये अपना अनुभव बताते हैं कि ज्वारों के रस से आँख, दाँत और केशों को बहुत लाभ पहुँचता है। कब्जी मिट जाती है, अत्यधिक कार्यशक्ति आती है और थकान नहीं होती।

*🌾गेहूँ के ज्वारे उगाने की विधि :🌾*

■आप मिट्टी के नये खप्पर, कुंडे या सकोरे लें। उनमें खाद मिली मिट्टी लें। रासायनिक खाद का उपयोग बिलकुल न करें। पहले दिन एक कुंडे की सारी मिट्टी ढँक जाये इतने गेहूँ बोयें। पानी डालकर कुंडों को छाया में रखें। सूर्य की धूप कुंडों को अधिक या सीधी न लग पाये इसका ध्यान रखें।
■इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा कुंडा या मिट्टी का खप्पर बोयें और प्रतिदिन एक बढ़ाते हुए नौवें दिन नौवां कुंडा बोयें। सभी कुंडों को प्रतिदिन पानी दें। नौवें दिन पहले कुंडे में उगे गेहूँ काटकर उपयोग में लें। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ उगा दें। इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा, तीसरे दिन तीसरा करते चक्र चलाते जायें। इस प्रक्रिया में भूलकर भी 🤜🏼प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें❌।
■प्रत्येक कुटुम्ब अपने लिए सदैव के उपयोगार्थ 10, 20, 30 अथवा इससे भी अधिक कुंडे रख सकता है। प्रतिदिन व्यक्ति के उपयोग अनुसार एक, दो या अधिक कुंडे में गेहूँ बोते रहें। मध्याह्न के सूर्य की सख्त धूप न लगे परन्तु प्रातः अथवा सायंकाल का मंद ताप लगे ऐसे स्थान में कुंडों को रखें।
■सामान्यतया आठ-दस दिन नें गेहूँ के ज्वारे पाँच से सात इंच तक ऊँचे हो जायेंगे। ऐसे ज्वारों में अधिक से अधिक गुण होते हैं। ❌ज्यो-ज्यों ज्वारे सात इंच से अधिक बड़े होते जायेंगे त्यों-त्यों उनके गुण कम होते जायेंगे।❌ अतः उनका पूरा-पूरा लाभ लेने के लिए ✅सात इंच तक बड़े होते ही उनका उपयोग कर लेना चाहिए।✅
■ज्वारों की मिट्टी के धरातल से कैंची द्वारा काट लें अथवा उन्हें समूल खींचकर उपयोग में ले सकते हैं। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ बो दीजिये। इस प्रकार प्रत्येक दिन गेहूँ बोना चालू रखें।

🌾ज्वारों का रस बनाने की विधि :🌾

◆जब समय अनुकूल हो तभी ज्वारे काटें। काटते ही तुरन्त धो डालें। धोते ही उन्हें कूटें। कूटते ही उन्हें कपड़े से छान लें। इसी प्रकार उसी ज्वारे को तीन बार कूट-कूट कर रस निकालने से अधिकाधिक रस प्राप्त होगा।
◆चटनी बनाने अथवा रस निकालने की मशीनों आदि से भी रस निकाला जा सकता है। रस को निकालने के बाद विलम्ब किये बिना तुरन्त ही उसे धीरे-धीरें पियें।
◆किसी 🙏🏼✅🙏🏼सशक्त अनिवार्य कारण के अतिररिक्त एक क्षण भी उसको पड़ा न रहने दें, कारण कि उसका गुण प्रतिक्षण घटने लगता है और तीन घंटे में तो उसमें से पोषक तत्व ही नष्ट हो जाता है। प्रातःकाल खाली पेट यह रस पीने से अधिक लाभ होता है।🙏🏼✅🙏🏼
◆दिन में किसी भी समय ज्वारों का रस पिया जा सकता है। परन्तु रस लेने के *आधा घंटा पहले और लेने के आधे घंटे* बाद तक कुछ भी खाना-पीना न चाहिए।
◆❌आरंभ में कइयों को यह रस पीने के बाद उबकाई आती है, उलटी हो जाती है अथवा सर्दी हो जाती है। परंतु इससे घबराना न चाहिए।❌
◆शरीर में कितने ही विष एकत्रित हो चुके हैं यह प्रतिक्रिया इसकी निशानी है। सर्दी, दस्त अथवा उलटी होने से शरीर में एकत्रित हुए वे विष निकल जायेंगे।ज्वारों का रस निकालते समय मधु, अदरक, नागरबेल के पान (खाने के पान) भी डाले जा सकते हैं।
◆इससे स्वाद और गुण का वर्धन होगा और उबकाई नहीं आयेगी। विशेषतया यह बात ध्यान में रख लें कि ज्वारों के रस में नमक अथवा नींबू का रस तो कदापि न डालें।
◆रस निकालने की सुविधा न हो तो ज्वारे चबाकर भी खाये जा सकते हैं। इससे दाँत मसूढ़े मजबूत होंगे। मुख से यदि दुर्गन्ध आती हो तो दिन में तीन बार थोड़े-थोड़े ज्वारे चबाने से दूर हो जाती है। दिन में दो या तीन बार ज्वारों का रस लीजिये।

*🌾सस्ता और सर्वोत्तम ज्वारों का रस 🌾*
■ज्वारों का रस दूध, दही और मांस से अनेक गुना अधिक गुणकारी है। दूध और मांस में भी जो नहीं है उससे अधिक इस ज्वारे के रस में है।
■इसके बावजूद दूध, दही और मांस से बहुत सस्ता है। घर में उगाने पर सदैव सुलभ है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी इस रस का उपयोग करके अपना खोया स्वास्थ्य फिर से प्राप्त कर सकता है।गरीबों के लिए यह ईश्वरीय आशीर्वाद है।
◆नवजात शिशु से लेकर घर के छोटे-बड़े, अबालवृद्ध सभी ज्वारे के रस का सेवन कर सकते हैं।
◆ नवजात शिशु को प्रतिदिन पाँच बूँद दी जा सकती है।
◆ज्वारे के रस में लगभग समस्त क्षार और विटामिन उपलब्ध हैं। इसी कारण से शरीर मे जो कुछ भी अभाव हो उसकी पूर्ति ज्वारे के रस द्वारा आश्चर्यजनक रूप से हो जाती है।
■इसके द्वारा प्रत्येक ऋतु में नियमित रूप से प्राणवायु, खनिज, विटामिन, क्षार और शरीरविज्ञान में बताये गये कोषों को जीवित रखने से लिए आवश्यक सभी तत्त्व प्राप्त किये जा सकते हैं।
◆डॉक्टर की सहायता के बिना गेहूँ के ज्वारों का प्रयोग आरंभ करो और खोखले हो चुके शरीर को मात्र तीन सप्ताह में ही ताजा, स्फूर्तिशील एवं तरावटदार बना दो।
◆ज्वारों के रस के सेवन के प्रयोग किये गये हैं। कैंसर जैसे असाध्य रोग मिटे हैं। शरीर ताम्रवर्णी और पुष्ट होते पाये गये हैं।

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शनिवार, 15 मई 2021

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हम जानते हैं की लोग कोरोना वायरस के वजह से डरे हुए हैं इसलिए हम उसको भी कवर करते हैं |

Domiciliary Hospitalization :

यानि home care कई बार ऐसा होता है आपको घर से इलाज करवाना पड़ता है और उस मैं डॉक्टर घर पर ही visit करता है



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Jai shree krishna

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कैलाश चन्द्र लढा(Jodhpur)

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बुधवार, 12 मई 2021

डर के माहौल व oxygen बिजनेस ने लोगों को इतना मानसिक कमजोर कर दिया है कि oxygen का लेवल 93 से नीचे आते ही सब सिलेंडर तलाशने लग जाते हैं।

गांवों में बहुत सारे हुक्के , बीडी पीने वाले बुड्ढे मिल जायेंगे, जिनको सांस की दिक्कत होती है,

उनका oxygen लेवल दिन में कई बार 93 से बहुत नीचे भी जाता है, लेकिन फिर भी वे उसको आराम से बर्दाश्त कर जाते हैं।

क्यों? क्योंकि उन्हें उस समय 
Oximeter लगाकर oxygen लेवल नाप कर डराने वाला कोई नहीं होता है। उनके हिसाब से थोडी देर पंखे के सामने उलटा-सीधा होकर लेटना-बैठना ही इसका इलाज है। 
उनको नहीं पता कि oxygen cylinder क्या होता है। उनको बस यह पता है कि थोडी देर शरीर दुखेगा और उसके बाद अपने आप एडजस्ट कर लेगा। उनको पता है कि इसका इलाज उनके अंदर ही है।

जबकि वर्तमान डर के माहौल व oxygen बिजनेस ने लोगों को इतना मानसिक कमजोर कर दिया है कि oxygen का लेवल 93 से नीचे आते ही सब सिलेंडर तलाशने लग जाते हैं।

हमारा शरीर सांस लेते समय जो हवा अंदर लेता है, उसमें oxygen का प्रतिशत लगभग 21 होता है। अब उसके स्थान पर अचानक से 60% , 90% ,100% concentrated Oxygen दोगे तो क्या शरीर मजबूत हो जायेगा ?

हमारा शरीर जिस माहौल के लिए सालों से तैयार है, के स्थान‌ पर अचानक से ऐसे कृत्रिम माहौल में शरीर को घुसेड़ देंगे तो फिर शरीर भी बदलने लगेगा। फेंफड़ों में , व शरीर के अन्य हिस्सों में भी परिवर्तन होने लगेगा।

हमारे शरीर में जादुई गुण होते हैं, कि वह हर माहौल के हिसाब से बदलने की प्राकृतिक ताकत रखता है। जब उस प्राकृतिक गुण को मशीनों से रिप्लेस करने की कोशिश करेंगे तो फिर नुकसान तो होंगे ही ।

डर का माहौल ऐसा बनाया हुआ है, कि लोग अपनी कारों में सिलेंडर लगवा कर लेटे हुए हैं, ओक्सीजन लेवल कितना क्या रखना है, कैसे मोनिटर करना है, कुछ अता-पता नहीं।

Industrial Oxygen बनाते- बनाते  medical oxygen बनाने लग गये ... प्रोडक्शन को कोन रेगुलेट कर रहा है,अंदर क्या किस अनुपात में भर रखा है, पता नहीं।

डरे हुए लोग अपने परिवारजनों को ना खो देने के डर से जिधर-जहां ,जो मिल रहा हैं, आंख मूंद के ले रहे हैं। 

लोग अनजाने में, मरने‌ के डर से, मरने के लिए ही अपनी सालों ‌की कमाई को रातों रात लूटा रहे हैं।

वर्तमान समय में फ्लू के थोडे से लक्षण दिखने पर ही अंट-शंट दवाइयां, सिलेंडर के चक्कर में पडे बिना‌, अपने आप पर भरोसा रखिये। हाई विटामिन सी डाईट पर शिफ्ट हो जाइये। डर फैलाने वालों से दूर रहिए। बुखार हो तो दवाईयों से कम करने की कोशिश मत किजिए। बुखार खराब चीज़ नहीं है, वह शरीर के ठीक होने से पहले के युद्ध का परिणाम है।

बहुत ज्यादा ही टेम्परेचर होने पर गीली पट्टी वगैरह से टैम्प्रेचर कम कर लीजिए। सांस की दिक्कत होने पर prone ventilation या देशी तरीकों से शरीर को मजबूत कीजिए, ना कि सिलेंडरों पर शरीर को निर्भर बनाइये।

डरना-घबराना नहीं है, खुद पर भरोसा रखिये अपने साथी को मानसिक रूप से तगडा रहने में मदद कीजिए।

अपने साथी या परिवारजन को सिलेंडर लगवा कर बैंगन की तरह पडे रहने के लिए मत छोड़ दीजिए ।

बातें किजिए, हंसी-मजाक, ठहाके लगाने में मदद किजिए। मानसिक अकेलेपन की गिरफ्त में मत जाने दिजिए। डर मत फैलाइए। खुद मत डरिये। कम लोगो के सम्पर्क में आइए। हो सके उतना भय के माहौल से दूर रहिए। भय का कोई इलाज नही है सिवाय मौत के।
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