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शनिवार, 29 मई 2021

हिंदुस्तानी हिन्दू चंद के लालच में अपना सर्वस्व गवाने को तैयार बैठा है: आंखे खोलो कायर तथाकथित सेक्युलरो

हिंदुस्तानी हिन्दू चंद के लालच में अपना सर्वस्व गवाने को तैयार बैठा है: आंखे खोलो कायर तथाकथित सेक्युलरो

जय हिंद वन्दे मातरम

आप एक पोस्ट प्राप्त हुई आपकी सेवा में प्रस्तुत है

*क्या हम लालची है जो अभी तक दूसरों की तरफ से अपनो से लड़ रहे है।*

*3 उदाहरण दें रहा हूँ।*

*(1)*
पिछले दिनों एक पुस्तक पढते समय एक घटना से जानकारी मिली। जब मुगल हिन्दुस्थान में आये थे तब उनके साथ कुछ हजार ही मुगल सैनिक थे। उन्होंने हमारे ही लोगो को यानी हिंदुस्तानियों को लालच देकर अपनी सेना में भर्ती किया। और लाखों की संख्या की सेना बनाई और हिंदुस्तानियों को ही मार काट कर हम पर राज किया।

एक बार इब्राहिम लोदी जिसकी सेना में 90 प्रतिशत हिंदुस्तानी सैनिक थे एक भारतीय राजा से युद्ध करते समय उसने अपनी सेना में कम सैनिक होते हुए भी अपने मुस्लिम सेनापति को युद्ध का आदेश दिया तो सेनापति बोला जहाँपनाह हम युद्ध हार जाएंगे हमारी सारी सेना मर जाएगी तो लोदी सेनापति से बोला कि कोई बात नही युद्ध करो दोनों तरफ मरेंगे तो हिंदुस्तानी ही हम फिर लालच देकर दुबारा अपनी फौज खड़ी कर लेंगे। 
वो लालच क्या था जिसके कारण हम मुगलो का साथ देकर अपने ही लोगो से लड़ते हुए मुगलों के गुलाम हुए। 

*और वो लालच क्या अभी तक हमारी रगों में बह रहा है ?*

*(2)*
जब अंग्रेजो नें हम पर राज करना शुरू किया वे भारत में 3000 थे।
पलासी के युद्ध की घटना का जिक्र पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपने एक उद्बोधन में किया है। 
जिसमे 3000 अंग्रेजो के साथ उनकी 15000 की सेना में 12000 हिंदुस्तानी थे और वे हिंदुस्तानी राजा से लड़ रहे थे जिसकी सेना में 10000 हिंदुस्तानी सैनिक थे और सबसे मजे की बात तो ये की उस युद्ध को 40000 हिंदुस्तानी पहाड़ियों पर बैठ कर देख रहे थे।

अंग्रेजो नें अपनी फौज में लाखों हिंदुस्तानियों को भर्ती किया और हिंदुस्तान में हिंदुस्तानियों के साथ साथ  प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध में, सिंगापुर, फ्रांस, जर्मनी और न जाने कितने देशो से लड़वाया, मरवाया और फिर लालच देकर अपनी सेना में हमे भर्ती किया और फिर मरवाया।

*वो लालच क्या अभी तक हमारी रगों में बह रहा है ?*

*(3)*
आज युद्ध का स्वरूप बदल चुका है और गुलामी का भी
आज युद्ध हथियारों से नही लड़ जा रहा आज युद्ध बुद्धि भ्रष्ट कर लड़ा जा रहा है, सोशल मीडिया को हथियार बनाया जा रहा है और विचारो से गुलाम बनाया जा रहा है। 

आज भी वही लालच देकर हिंदुस्तानियों की बुद्धि भ्रष्ट कर हिंदुस्तानियों के खिलाफ वातावरण बना कर आपस में लड़वाया जा रहा है।

ये लालच का कैसा नशा है। जो हजारों वर्षों से आज तक हमारी रगों में दौड़ रहा है, कही अपने तुच्छ लाभ के लिए, कही किसी को समाप्त करने के विचार के लिए, कही वामपंथी बनकर, कही सोशल एक्टिविस्ट बनकर, कही आंदोलनों के नाम पर, कही सुख सुविधाओं के नाम पर, कही सिविल सोसाइटी के नाम पर, कभी अपनी झूठी प्रसिद्धि के नाम पर और न जाने क्या क्या ?

हमारी संस्कृति, अपने देश के प्रति, राष्ट्रीयता के प्रति हमारा समर्पण क्या है ? क्या हमने कभी विचार किया है ?
परन्तु छोटे से लालच के लिए हम अपने देश से गद्दारी के तैयार हो जाते है। क्यों ?

*हमारा इतिहास तो गौरवशाली है पर वो लालच क्या है और क्यों अभी तक हमारी रगों में बह रहा है ?*

प्रत्येक को विचार की आवश्यकता है।
विचार करें कि क्या हम लालची ही बने रहेंगे या अपने लालच को परे रख कर राष्ट्र प्रथम को प्राथमिकता देंगे।

*समझदारों को इशारा काफी है*।
भारत माता की जय

चना मात्र एक दाल या बेसन ही नही अपितु कई रोगों के उपचार की गुणवान औषधि भी है

चना मात्र एक दाल या बेसन ही नही अपितु कई रोगों के उपचार की गुणवान औषधि भी है

चना नहीं केवल चबेना , है खरा सोना ,जानिए चना के औषधीय गुण

आयुर्वेद में चने की दाल और चने को शरीर के लिए स्वास्थवर्धक बताया गया है। चने के सेवने से कई रोग ठीक हो जाते हैं। क्योंकि इसमें प्रोटीन, नमी, कार्बोहाइड्रेट, आयरन, कैल्शियम और विटामिन्स पाये जाते हैं। स्वास्थ्य के लिए भी यह दूसरी दालों से पौष्टिक आहार है। चना शरीर को बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनाता है। साथ ही यह दिमाग को तेज और चेहरे को सुंदर बनाता है। चने के सबसे अधिक फायदे इन्हे अंकुरित करके खाने से होते है।

1- सुबह खाली पेट चने से मिलते है कई फायदे :

शरीर को सबसे ज्यादा पोषण काले चनों से मिलता है। काले चने अंकुरित होने चाहिए। क्योंकि इन अंकुरित चनों में सारे विटामिन्स और क्लोरोफिल के साथ फास्फोरस आदि मिनरल्स होते हैं जिन्हें खाने से शरीर को कोई बीमारी नहीं लगती है। काले चनों को रातभर भिगोकर रख लें और हर दिन सुबह दो मुट्ठी खाएं। कुछ ही दिनों में र्फक दिखने लगेगा।

2- भीगे चने से लाभ :
रातभर भिगे हुए चनों से पानी को अलग कर उसमें अदरक, जीरा और नमक को मिक्स कर खाने से कब्ज और पेट दर्द से राहत मिलती है।
3- अंकुरित चना :
शरीर की ताकत बढ़ाने के लिए अंकुरित चनों में नींबू, अदरक के टुकड़े, हल्का नमक और काली मिर्च डालकर सुबह नाश्ते में खाएं। आपको पूरे दिन की एनर्जी मिलेगी।

4- चने का सत्तू :
चने का सत्तू भी स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभकारी औषघि है। शरीर की क्षमता और शक्ति को बढ़ाने के लिए गर्मीयों में आप चने के सत्तू में नींबू और नमक मिलकार पी सकते हैं। यह भूख को भी शांत रखता है।

5.पथरी की समस्या में चना :
पथरी की समस्या अब आम हो गई है। दूषित पानी और दूषित खाना खाने से पथरी की समस्या बढ़ रही है। गाल ब्लैडर और किड़नी में पथरी की समस्या सबसे अधिक हो रही है। एैसे में रातभर भिगोए चनों में थोड़ा शहद मिलाकर रोज सेवन करें। नियमित इन चनों का सेवन करने से पथरी आसानी से निकल जाती है। इसके अलावा आप आटे और चने का सत्तू को मिलाकर बनी रोटियां भी खा सकते हो।

6.शरीर की गंदगी साफ करना :
 काला चना शरीर के अंदर की गंदगी को अच्छे से साफ करता है। जिससे डायबिटीज, एनीमिया आदि की परेशानियां दूर होती हैं। और यह बुखार आदि में भी लाभ देता है।

7. डायबिटीज के रोगियों के लिए :
 चना ताकतवर होता है। यह शरीर में ज्यादा मात्रा में ग्लूकोज को कम करता है जिससे डायबिटीज के मरीजों को फायदा मिलता है। इसलिए अंकुरित चनों को सेवन डायबिटीज के रोगियों को सुबह-सुबह करना चाहिए

8. मूत्र संबंधी रोग :
 मूत्र से संबंधित किसी भी रोग में भुने हुए चनों का सवेन करना चाहिए। इससे बार-बार मूत्र आने की दिक्कत दूर होती है। भुने हुए चनों में गुड मिलाकर खाने से यूरीन की किसी भी तरह समस्या में राहत मिलती है।

9. पौरुष शक्ति के लिये :
अधिक काम और तनाव की वजह से पुरूषों में कमजोरी होने लगती है। एैसे में अंकुरित चना किसी वरदान से कम नहीं है। पुरूषों को अंकुरित चनों को चबा-चबाकर खाने से कई फायदे मिलते हैं। इससे पुरूषों की कमजोरी दूर होती है। भीगे हुए चनों के पानी के साथ शहद मिलाकर पीने से पौरूषत्व बढ़ता है। और नपुंसकता दूर होती है।

10. पीलिया के रोग में :
 पीलिया की बीमारी में चने की 100 ग्राम दाल में दो गिलास पानी डालकर अच्छे से चनों को कुछ घंटों के लिए भिगो लें और दाल से पानी को अलग कर लें अब उस दाल में 100 ग्राम गुड़ मिलाकर 4 से 5 दिन तक रोगी को देते रहें। पीलिया से लाभ जरूरी मिलेगा। पीलिया रोग में रोगी को चने की दाल का सेवन करना चाहिए।

11. कुष्ठ रोग में चना :
 कुष्ठ रोग से ग्रसित इंसान यदि तीन साल तक अंकुरित चने खाएं। तो वह पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

12. गर्भावस्था :
गर्भवती महिला को यदि मितली या उल्टी की समस्या बार-बार होती हो। तो उसे चने का सत्तू पिलाना चाहिए। 

13. अस्थमा रोग में :
अस्थमा से पीडि़त इंसान को चने के आटे का हलवा खाना चाहिए। इस उपाय से अस्थमा रोग ठीक होता है।

14. त्वचा की समस्या में :
चने के आटे का नियमित रूप से सेवन करने से थोड़े ही दिनों में खाज, खुजली और दाद जैसी त्वचा से संबंधित रोग ठीक हो जाते हैं। 

15. पुरानी कफ़ :
लंबे समय से चली आ रही कफ की समस्या में भुने हुए चनों को रात में सोते समय अच्छे से चबाकर खाएं और इसके बाद दूध पी लें। यह कफ और सांस की नली से संबंधित रोगों को ठीक कर देता है।

16. चेहरे की चमक के लिए चना :
चेहरे की रंगत को बढ़ाने के लिए नियमित अंकुरित चनों का सेवन करना चाहिए। साथ ही आप चने का फेस पैक भी घर पर बनाकर इस्तेमाल कर सकेत हो। चने के आटे में हल्दी मिलाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा मुलायम होती है। महिलाओं को हफ्ते में कम से कम एक बार चना और गुड जरूर खाना चाहिए।

17. दाद खाज और खुजली :
 एक महीने तक चने के आटे की रोटी का सेवन करने से त्वचा की बीमारियां जैसे खुजली, दाद और खाज खत्म हो जाती हैं

18. धातु पुष्ट : दस ग्राम शक्कर और दस ग्राम चने की भीगी हुई दाल को मिलाकर कम से कम एक महीने तक खाने से धातु पुष्ट होती है।

 चने को अपने भोजन में सम्मिलित करें। यह किसी औषधि से कम नहीं है। 
 अंकुरित चनों का प्रयोग प्रतिदिन किया जा सकता है। 

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

योगाभ्यास और योग क्रियाओं के नियम और सावधानिया

योगाभ्यास और योग क्रियाओं के नियम
और सावधानिया

शारीरिक स्थिति हमेशा एक ही तरह नहीं रहती। परिवर्तित होती रहती है| बैठना, उठना, लेटना, दौड़ना, झुकना और सिकुडना आदि आसन ही हैं। शरीर की स्थिति पर जब मन एकाग्र होता है, तब वही आसन योगासन कहलाता है।

प्राचीन काल में मानव जीवन प्रकृति पर निर्भर रहता था। प्रकृति के अनुसार, ऋषि, मुनि तथा योगी आदि ने कई योगासनों का आरंभ किया। जब उन्हें उन पर विश्वास हो गया तब उन्हें विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। कहा जाता है कि प्राचीन काल में 8400000 (चौरासी लाख) योगासन प्रचलित थे। इसके बाद वे 84000 (चौरासी हज़ार) हो गये। अब और भी कम हो गये हैं। स्वास्थ्य की जानकारी विशेषज्ञों से हासिल करनी चाहिए। आसनों को हर दिन करना चाहिए। योगासनों के साथ सूर्य नमस्कार संबंधी आसन भी रोज करते रहे तो लाभ होगा | योगाभ्यास करनेवाले साधकों का यह कर्तव्य है कि वे उनसे संबंधित नियम जान लें और उन्हें आचरण में ले आयें।

*नियम*
1) प्रात:काल जल्दी जाग कर दो-तीन गिलास पानी पीना चाहिए। मल मूत्र का विसर्जन कर, दाँत और मुँह साफ कर, ठंडे जल से स्नान कर योगासन करना चाहिए। स्वास्थ्य ठीक न रहे, जाड़ा ज्यादा हो तो कुनकुने जल से स्नान कर सकते हैं। सबेरे अगर मौका न मिले तो दुपहर या शाम को योगासन कर सकते हैं।

2) स्नान के बिना भी योगासन कर सकते हैं। पर आसनों के बाद थोड़ी देर रुक कर स्नान करना चाहिए।

3) खाली पेट सबेरे आसन करना चाहिए। यदि आहार लें तो 4.30 घंटे के बाद आसन करना चाहिए | अगर हलका जलपान करें तो 2.30 घंटे रुक कर उसके बाद आसन करें |

4) खुली हवा में समतल एवं प्रकाशवान जगह पर आसन करना चाहिए। तेज हवा के झोंकों के बीच आसन न करें |

5) कपडे कम और ढीले पहनना चाहिए। स्त्रियों को विशेष कर कुर्ता एवं पाजामा पहनना अच्छा होगा |

6) आसन करते समय बोलना नहीं चाहिए। नाक से सांस लेनी और छोडनी चाहिए। मुँह बंद रहना चाहिए।

7) खाली भूमि पर आसन नहीं करना चाहिए। कालीन, दुपट्टा, स्वच्छ कपड़ा या कंबल बिछा कर उस पर आसन करें |

8) गर्भिणी स्त्रियों को तीसरे मास तक आसन नहीं करना चाहिए। 4 से 7वें मास तक योग विशेषज्ञों की सलाह लेकर हलके आसन तथा ध्यान वे कर सकती हैं। ऋतुमती होने पर आसन नहीं करना चाहिए| आपरेशन कराने पर तथा छाती दर्द आदि के होने पर स्त्री पुरुषों को सचेत रह कर योग विशेषज्ञों की सलाह लेकर ही आसन करना चाहिए|

9) योगासन करते समय जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। जरूरी है शरीर के अवयवों पर ज्यादा दबाव न पड़े, उन्हें श्रम न हो |

10) योगासन करने के पूर्व और बाद दोनों हथेलियों को मुंह और शरीर पर फेरना चाहिए। अन्य आसन करने के बाद शवासन या शांत्यासन कर थोड़ी देर आराम करना चाहिए |

11) हर दिन नियम बद्धता से आसन करते रहना चाहिए। बीच में छोड़ना नहीं चाहिए।

12) आसन करते समय मन को उसी पर केन्द्रित करें | मस्तिष्क को नियंत्रण में रखना चाहिए।

13) प्रशांत मन से आसन करना चाहिए| निराशा, कमजोरी, डर, दुःख तथा वेदना से भरे हृदय से आसन नहीं करना चाहिए | उस समय शवासन या शांत्यासन कर आराम लें ।

14) आरंभ में हर आसन कुछ क्षण ही करना चाहिए। अभ्यास करते-करते समय में वृद्धि करनी चाहिए।

15) आसन करने के बाद आराम ले कर भोजन कर सकते हैं।

16) स्कूलों के बच्चों पर दबाव डाल कर या उनके स्कूल पहुँचते ही आसन नहीं कराना चाहिए। भोजन कर वे स्कूल आते हैं। इसलिए स्कूलों के खुलने के 2 घंटे बाद बच्चों से आसन करा सकते हैं|

17) 60 या 70 वर्ष की अवस्था के वृद्धों को हलके आसन करना चाहिए।

18) टहलने के बाद आराम लेना चाहिए। इसके बाद आसन करें। आसन करने के बाद शवासन के द्वारा आराम लेकर टहल सकते हैं|

19) पहले सूक्ष्म योग तथा सूर्य नमस्कार संबंधी आसन करना चाहिए| इसके बाद थोड़ी देर आराम कर योगासन करें |

20) आसन करते समय सांस फूले या दिल की धडकन अधिक हो तो आसन स्थगित कर शवासन कर आराम लेना चाहिए।

21) योगासन और प्राणायाम करने के बाद शवासन अवश्य करना चाहिए।

22) आसन के पूर्व तथा अभ्यास के बाद मूत्र विसर्जन करना चाहिए। बीच में आवश्यकता पड़े तो भी मूत्र विसर्जन अवश्य करें। जबरदस्ती पेशाब को रोकना नही चाहिए|

23) अभ्यास के दौरान प्यास लगे तो थोड़ा पानी पी सकते हैं।

24) मल विसर्जन में अवरोध हो तो दो तीन गिलास जल पी कर दो तीन बार शंखप्रक्षालन आसन करें | इससे मल विसर्जन संबंधी तकलीफ दूर होगी।

25) आसन करते समय पेट और छाती पर दबाव पड़े तो सांस को बाहर छोड़ देना चाहिए। दबाव के कम होते समय सांस लेनी चाहिए। यह श्वास-प्रश्वास से संबंधित सामान्य विधि है।

26) योगासनों, प्राणायाम तथा ध्यान के अभ्यास के लिए क्रम आवश्यक है| साधक अपनी सुविधा के अनुसार इसमें परिवर्तन कर सकते हैं।

27) ऊपर बताये गये अधिकांश सभी नियमों का पालन योगासनों के अलावा प्राणायाम और ध्यान के लिए भी उचित हैं |

28) योग संबंधी अभ्यास और अपने अनुभवों को मित्रों को बता कर उन्हे भी योग के लिए प्रेरित अवश्य करे 

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

हृदय, वक्षस्थल और फुफ्फुस शक्ति संवर्धन क्रिया योग: हृदय और फेफड़ो की सामर्थ्यता बढ़ाने वाला क्रिया योग

हृदय, वक्षस्थल और फुफ्फुस शक्ति संवर्धन क्रिया योग: हृदय और फेफड़ो की सामर्थ्यता बढ़ाने वाला क्रिया योग

आज के इस युग मे श्वास भी शुद्ध नही तो खानपान भी शुद्ध नही। इम्युनिटी कमजोर हो रही है हृदय रोगों बढ़ रहे है। ऐसी दशा में आप निम्न छोटी छोटी क्रियाओं के द्वारा अपने फेफड़े मजबूत कर श्वसन क्रिया को सुचारू और आकस्मिक परिस्तिथियों के अनुकूल बना सकते है।

ये क्रियाए ना केवल आपकी इम्युनिटी बढ़ाएगी वरन हृदय को भी स्वस्थ रखने में सहायक होगी

*हृदय, वक्षस्थल और फुफ्फुस शक्ति संवर्धन क्रिया के लाभ*

आजकल हार्ट अटैक आदि व्याधियों की संख्या बढ़ रही है। लाखों रुपये आपरेशन आदि के लिए खर्च हो रहे हैं। इन सुलभ क्रियाओं से छाती संबंधी व्याधियाँ दूर होंगी

इन क्रियाओं से सीना चौड़ा होता है।

प्राणवायु अधिक मिलने के कारण छाती, हृदय तथा फेफड़ों की शक्ति बढ़ती है।

थकावट दूर होती है। 

काम करने का उत्साह बढ़ता है। 

फेफड़े संबंधी टी.बी.आदि, व्याधियाँ भी रोकी जा सकेगी | 

*हृदय, वक्षस्थल और फुफ्फुस शक्ति संवर्धन क्रिया योग की विधि*

सभी क्रियाएं सुखासन में बैठकर की जानी चाहिए तथापि उम्र, समय, अवधि, वातावरण या अन्य किसी प्रकार का कोई विशेष बंधन नही है

सभी क्रियाएँ करते समय छाती फुलाते हुए 3 या 4 लीटर हवा अंदर लें। यथास्थिति में आते हुए उस हवा को बाहर पूरा छोड़ दें। हर एक क्रिया 5 से 10 बार करें। क्रियाएँ निम्न प्रकार हैं |

*प्रथम क्रिया*
अंगूठों को हथेलियों में बंद कर मुट्ठी कस लें। दोनों मुट्टियाँ नाभि के पास रखें। साँस लेते हुए दोनों मुड़ियों को बाजू से सिर के साथ ऊपर उठावें। साँस छोड़ते हुए मुट्टियाँ नाभि के पास ले आवें।

*द्वितीय क्रिया*
दोनों हाथ सामने की ओर पसारें। धीरे से साँस लेते हुए हाथ ऊपर उठावें। नमस्कार करते हुए सिर उठा कर हाथों को देखें | सांस छोड़ते हुए हाथों तथा सिर को यथास्थिति में ले आवें।

*तृतीय क्रिया*
दोनों हाथ आगे पसारें। दोनों हथेलियाँ मिलावें। साँस लेते हुए हाथ बगल में पसार कर सिर उठाते हुए ऊपर देखें| सांस छोड़ते हुए यथास्थिति में आ जावें।

*चतुर्थ क्रिया*
दोनों हथेलियों को उलटा कर उन्हें मिलावें, ऊपरी क्रिया की तरह करें।

*पंचम क्रिया*
दोनों हाथ बगल में पसारें। सांस लेते हुए दोनों हाथ और सिर ऊपर उठाकर वे नमस्कार करें। सांस छोड़ते हुए पूर्वस्थिति में आवें।

*षष्टम क्रिया*
दोनों हाथ आगे पसार कर ऊपर से गोलाकार में उन्हें घुमावें | हाथ ऊपर उठाते समय सांस लें। ऊपर से हाथों को नीचे लाते हुए सांस छोड़ें। 8 से 10 बार ऐसा घुमावें। फिर इसी प्रकार रिवर्स करें |

*सप्तम क्रिया*
दोनों हाथ बगल में पसार कर सांस छोड़ते हुए दोनों हथेलियों से दोनों ओर से पीठ का स्पर्श करते रहें। एक कुहनी दूसरी कुहनी पर आवें। सांस लेते हुए जल्दी-जल्दी हाथ पसारते रहें। एक बार दायाँ हाथ ऊपर आवे और एक बार बायाँ हाथ ऊपर आवे |

*अष्ठम क्रिया*
दोनों हाथ बगल में से ऊपर उठाकर सिर के ऊपर से दायों हथेली से बायीं कुहनी का, बायीं हथेली से दायीं कुहनी का स्पर्श करते रहें। सांस लेते हुए हाथ ऊपर उठावें। सांस छोड़ते हुए हाथ नीचे उतारें।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

सनातन धर्म के कथन और हिन्दुओ का भ्रम :जानिए हिंदुओं के मुख्य भ्रम और उनके निवारण

सनातन धर्म के कथन और हिन्दुओ का भ्रम :जानिए हिंदुओं के मुख्य भ्रम और उनके निवारण:-

वन्दे मातरम

भ्रम :- सारी मानवता एक है हम वसुदेव कुटुम्बकम को मानते हैं और सबका सम्मान करते हैं ।

निवारण :- सारी मानवता एक अवश्य है परन्तु बीच में जो अराजक तत्व पैदा होते हैं उनका समूल नाश भी समय समय पर आवश्यक है और सम्मान केवल उनका करना चाहिए जो सम्मान के योग्य हों । 

भ्रम :- हमारी संस्कृति हमें किसी से लड़ना नहीं सिखाती ।

निवारण :- तो क्या हमारी संस्कृति हमें कायरता और नपुंसकता सिखाती है ? उचित स्थान पर युद्ध करना हमारी संस्कृति का एक भाग है । 

भ्रम :- हमने कभी किसी दूसरे देश पर आक्रमण करके उसपर अधिकार नहीं किया ।
निवारण :- तो क्या विश्व का चक्रवर्ती शासन आपको विदेशियों ने गिफ्ट में दे दिया था ? अवैदिक मतों का नाश कर वैदिक धर्म का ध्वज लहराने के लिए समय समय पर राज्य की सीमाओं का विस्तार करके चक्रवर्ती शासन करने के लिए वेद का आदेश है और हमारे महापुरुषों ने इसे किया भी है ।

भ्रम :- हमें सब धर्मों का सम्मान करना चाहिए किसी दूसरे के धर्म का अपमान नहीं करना चाहिए । हमें हमारे शास्त्र ऐसा करना नहीं सिखाते ।

निवारण :- तो क्या हमारे शास्त्र ये सिखाते हैं कि अपने धर्म की निंदा सुनकर हिजड़ों की तरह शांति का जाप करते रहो और मुस्कुराते रहो ? हमारे न्याय आदि सारे दर्शन ये बलपूर्वक कहते हैं कि तर्क और युक्तियों से असत्य बातों का खंडन करो और सत्य
 सिद्धान्तों की स्थापना करो । और धर्म केवल वैदिक ही होता है दूसरा कोई धर्म है ही नहीं ।बाक़ी सब संमप्रदाय / मत हैं। धर्म का अर्थ कर्तव्य है। 

भ्रम :- हमने अपने देश में सभी संस्कृतियों को आश्रय दिया क्योंकि हम अतिथि देवो भव वाली संस्कृति पर विश्वास करते हैं ।

निवारण :- आपने किसी को आश्रय नहीं दिया बल्कि वे बलपूर्वक आपको रौंदते हुए आपकी जमीनें हथ्याकर आपकी छाती पर चढ़ बैठे हैं जिनको आप अपने देश से निकाल नहीं पाए । और क्या अतिथि देवो भव का ये अर्थ होता है कि आपके घर में कोई अतिथि आए और वो आपके घर की सम्पदा को लूटना शुरू कर दे और आपकी स्त्रियों को दूषित करना शुरू कर दे और उसके बाद आप उसको अपने घर में रहने की अनुमति दे दें ? ये बेशर्मी भरे सिद्धान्त कहाँ से सीखे आपने ? इसलिए आपको आक्रांता और अतिथि में अंतर ही नहीं पता । 

भ्रम :- हमें हमारे धर्म पूर्ण धैर्य की शिक्षा देता है, इसलिए अपने शत्रु को भी क्षमा करने वाला देवता होता है ।

निवारण :- तो अपने देवता बनकर करना क्या है ? वैसे भी कायरता और धैर्य में अंतर है, धैर्य हर स्थान पर नहीं कभी कभी शोभा देता है, और शत्रुओं का आक्रमण होता रहे और आप धैर्य को पकड़कर चाटते रहो और कुछ करो ही नहीं तो ये कायरता और नपुंसकता है । शत्रु को क्षमा नहीं बल्कि उसका पूरा ही विनाश करना चाहिए और अपनी प्रजा की रक्षा करनी चाहिए । जब तक एक भी आपका शत्रु जीवित है तबतक सुख से नहीं बैठना चाहिए । 

भ्रम :- हम राम और कृष्ण की संस्कृत को मानने वाले लोग हैं ।

निवारण :- केवल मानने मात्र से ही काम चल सकता तो आज राम मंदिर के लिए सैकड़ों वर्ष संघर्ष न करना पड़ता और कृष्ण जन्मभूमि आदि को मस्जिद मुक्त करने का प्रश्न ही नहीं होता । परन्तु राम और कृष्ण की संस्कृति का पालन करने वाले होते तो भारत में एक भी विदेशी विधर्मी आदि न होता । कितने राम के भक्त हैं जो धनुष चलाना जानते हैं ? कितने कृष्ण भक्त हैं जो सुदर्शन चक्र चलाना जानते हैं ? कितने हनुमान भक्त हैं जो गदा चलना जानते हैं ? कितने परशुराम भक्त फरसा चलाना जानते हैं ? तो केवल मानने से ही नहीं पालन करने से बात बनेगी । 

ऐसे और भी भ्रम हैं जिनका निवारण होते रहना चाहिए ।

जय हिंद जय भारत
जय हिन्दू जय श्री राम

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