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शनिवार, 29 मई 2021

दही से बना घी सर्वोत्तम होता या फिर मलाई से बना घी?

दही से बना घी सर्वोत्तम होता या फिर मलाई से बना घी? 



यदि आप देसी घी के बारे मे जानने के इच्छुक हैं।तो आप की जानकारी के लिए बताना आवश्यक है कि देसी घी की दो प्रकार की किस्म होती है एक घी को कच्चा घी कहा जाता है ज्यादातर बहुदेशी कम्पनियाँ अपने प्लांटस मे कच्चे घी का ही उत्पादन करती हैं इस प्रक्रिया मे दूध से सप्रेटा और सप्रेटे से सीधे घी उत्पादित होता है। बाजार मे 95% कच्चा ही उपलब्ध होता हुआ है

पक्के घी की प्रक्रिया 
घी वही होता था जो पुरानी पद्धति से बनता था। उसका रंग, स्वाद, सुगंध और गुण अलग होते थे। दूध को गर्म करके साधारण तापमान पर वापस आने के बाद उसमें जामन डाल कर जमाया जाता था। जमे हुए दही को बिलोकर उस से घी निकाला जाता था।

रही बात बाजार मे बिकने वाले घी कि तो मिल्क फूड,मदर डेयरी, अमूल, मधूसूदन इत्यादि ब्रांड ये सब कच्चे घी हैं। हाँ एक दो ब्रांड के पक्के घी भी बाजार मे उपलब्ध हैं।


आजकल कच्चे दूध से घी निकाला जाता है। फिर दूध से मावा या दूध पाउडर बनाया जाता है। करोड़ों लिटर दूध इन उत्पादों में खप जाता है। इतना दही उपयोग में नहीं आ सकता इसलिये दही से घी निकालने की परंपरा लुप्त हो गयी है। दही वाला घी खाना हो तो घर में बनायें। कंपनियों से मिलने वाला घी दही वाला नहीं होता।

अमूल, पतंजलि… जैसी सभी कपंनियां का घी बनाने का तरीका अलग होता है और घर पर बनाये देशी घी को बनाने का तरीका अलग होता है। घी का स्वाद, खुशबू, गुण आदि घी को बनाने के तरीके पर निर्भर करते हैं।

पैकेट में मिलने वाला घी, कपंनियां सीधे दूध से फैट निकालकर कर बनाती हैं। घी बनाने के लिये दूध से उसकी सारी चिकनाई निकाल ली जाती है, इस चिकनाई(फैट) को गर्म करके घी बना लिया जाता है। और पीछे दूध भी वैसा का वैसा रह जाता है और इस दूध को पैकेटों में पैक करके बेच दिया जाता है। जबकि घर पर घी बनाने के लिये पहले दूध को अच्छी तरह गर्म किया जाता है और फिर इस दूध में जामन लगाकर दही बनाया जाता है। और इस दही को अच्छी तरह बिलौकर मक्खन निकाला जाता है और अतं में मक्खन को गर्म करके घी बनता है। इसलिये घर बनाया हुआ देशी घी सुंगधित, स्वादिष्ट और गुणों से भरपुर होता है।

घर पर बनाया हुआ देशी घी बहुत ही अच्छा होता है । यह एक दम साफ और शुध्द होता है । घर पर देशी घी बनाने के लिए सबसे पहले दुध की मलाई को इकट्ठा करे। ये ध्यान रखे की इस्टील के बर्तन मे मलाई इकट्ठी ना करे उस मे मलाई का स्वाद बदल जाता है । जब 10–12 दिन की मलाई इकट्ठी हो जाए तो मलाई को निकाल ले और अलग बर्तन मे उस को गुनगुना गर्म कर ले, फिर उस मे 2–3 चम्मच दही डाले और उस को जमा दे। (बिल्कुल वैसा ही मलाई जमानी है जैसे दही जमाते है )

हमारे यहां दूध अच्छी क्वालिटी का मिल जाता है ।हमारे यहां 2 लीटर दूध प्रतिदिन आता है सो सप्ताह में 1.5 लीटर मलाई एकत्रित हो जाती है जिसे हम फ्रिज में ही रखते हैं।फिर बाहर निकाल कर उसमें 2 टी स्पून दही अच्छी तरह से मिक्स कर रात भर ढक कर रूम टेंप्रेचर पर रखते हैं।

अगले दिन सुबह इसे ब्लेंडर से मथते हैं।

जब मख्खन छुटने लगता है तब एक लीटर पानी डालते हैं।

अब मख्खन और छाछ अलग हो जाते हैं। इन्हे अलग अलग बर्तनों में निकाल लेते हैं।यह छाछ बहुत स्वादिष्ट व स्वास्थ्यवर्द्धक होती है। एक गिलास छाछ में चिमटी नमक डालकर ऊपर से भुना हुआ जीरा कूटकर डालें और गटागट पी जाएं पूरा डाइजेस्टिव सिस्टम सर्विसिंग हो जाएगा। आप चाहे तो कढ़ी बना सकते हैं । किसी को दे भी सकते हैं।हमारी सहायिका दीदी ले जाती है।

ताजा मक्खन थोड़ा सा अपने लड्डू गोपाल के लिए । इसे ब्रेड पराठें आदि पर लगाकर खाते हैं।बहुत स्वादिष्ट लगता है।

बाकी गर्म करते हैं।

40 या 50 मिनट तक पैर दुखने वाला बोरिंग काम बहुत जानलेवा होता है। गैस के पास ही खड़ा रहना पड़ता है ।क्योकि बीच बीच में चलाना पड़ता है।

हो गया घी तैयार।अब इसे छान लेते है ।

ये बेरी है इसमें पिसी हुई शक्कर मिक्स कर खा सकते हैं यह थोड़ी खट्टी मीठी लगती है। बच्चों को बहुत पसंद आती है।

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भादवे का घी - मरे हुए को जिंदा करने के अतिरिक्त, यह सब कुछ कर सकता है

कुछ ज़रूरी बातें जिनसे आप पौष्टिक और स्वादिष्ट दही बना सकते हैं:

दही ज़माने का सरल तरीक़ा:

मैंने अपनी माँ को इसी तरीक़े से दही जमाते बचपन से देखा है। एक पतीले में दूध (जितनी दही जमानी हो उस मात्रा में अंदाज़े से दूध लें) लें और उसे उबाल आने तक गरम करें। जब दूध उबलता है तो उसकी सतह पर थोड़ा सूखी सी दिखने वाली परत जम जाती है। जब ऐसा हो तो समझें कि दूध जमाने के लिए तैयार है। चूल्हा बंद कर दें और दूध को ठंडा होने दें। चाहें तो दूध को दही जमाने वाले बर्तन में डाल लें जिससे दूध जल्दी ठंडा हो सके। जब दूध हल्का गुनगुना हो, तब एक चम्मच पहले से बनी दही गुनगुने दूध में डालें। इसे हम जामन कहते हैं।

  • अब दूध को अच्छी तरह से उछालें ताकि दही उसमें अच्छी तरह से मिल जाए और उसमें बढ़िया सा झाग आ जाए। इससे दही बहुत बढ़िया जमती है। यह ठीक वैसे ही उछालें जैसे जब आप गरम दूध को ठंडा करने के लिए दो गिलास के बीच दूध को उछालते हैं।
  • ध्यान रखें कि दही को एक अलग बर्तन में जमाएँ; दूध जिसमें उबला है, उसमें नहीं।

अब दही वाले बर्तन को एक ऐसी जगह पर रखें, जहाँ कोई उसे हाथ ना लगाए। मैं अक्सर उसे माइक्रोवेव के अंदर रख देती हूँ। गरमियों में बाहर भी रख सकते हैं, क्यूँकि उसे और गरमाहट की ज़रूरत नहीं होती। गरमियों में दही अक्सर 4–5 घंटों में जम जाती है। सर्दियों में 6–7 घंटे लग सकते हैं। सर्दियों में आप दही के बर्तन को एक कपड़े में लपेट कर रख सकती हैं।

कुछ ज़रूरी बातें जिनसे आप पौष्टिक और स्वादिष्ट दही बना सकते हैं:

  • जामन वाला दही खट्टा ना हो। इससे नयी दही भी खट्टी ही होगी।
  • किसी उपलक्ष्य पर इस्तेमाल करने के लिए बढ़िया दही बनाने के लिए आप होल मिल्क का इस्तेमाल करें, टोंड मिल्क का नहीं। अन्यथा रोज़ के सेवन के लिए टोंड मिल्क इस्तेमाल कर सकती हैं, क्यूँकि होल मिल्क से बनी दही उन लोगों के लिए हानिकारक हो सकती है जो वज़न कम करना चाहते हैं या संतुलित रकहन चाहते हैं। बाद यह बहुत मलाईदार और गाढ़ा नहीं होगा।
  • जिस पतीले में दूध उबाला गया, उसमें दही ना जमाएँ।
  • याद रखें, दूध बहुत ज़्यादा गरम ना हो वरना दही खट्टा जम सकता है।
  • दूध बहुत ज़्यादा ठंडा भी ना हो, इससे दही जमने में दिक़्क़त आ सकती है और वह पानी-पानी हो जाएगी।
  • सेहत की आगे बात करें, तो आप दही को एक मिट्टी के बर्तन में जमा सकते हैं। यह बहुत फ़ायदेमंद होती है और अत्यधिक स्वादिष्ट भी। बस दही ज़माने से पहले बर्तन को अच्छी प्रकार से धो लें।
  • दही के सेवन आप पौष्टिक तरीक़ों से कर सकते हैं, जैसे कि, मट्ठा बना कर पीना, दही में अलसी के बीज, धनिया और पुदीना डाल कर खाना इत्यादि। शक्कर मिलाकर खाने से दूर रहें। घर का बना पनीर बना कर खाएँ और पकाएँ। दही का पौष्टिक रायता बना सकते हैं।

बस दही जम जाए तो उसे तुरंत फ़्रिज में रखें और दही से बने विविध प्रकार के व्यंजन का स्वाद लें वरना ज़्यादा देर तक बाहर रखी दही खट्टी हो जाएगी और सेहत के लिए अच्छी नहीं होगी।

दही खाने के फायदे

1. दही के सेवन से हार्ट में होने वाले कोरोनरी आर्टरी रोग से बचाव किया जा सकता है। डॉक्टरों का मानना है कि दही के नियमित सेवन से शरीर में कोलेस्ट्रोल को कम किया जा सकता है।

2. चेहरे पर दही लगाने से त्वचा मुलायम होने के साथ उसमें निखार भी आता है। अगर दही से चेहरे की मसाज की जाए तो यह ब्लीच के जैसा काम करता है। इसका प्रयोग बालों में कंडीशनर के तौर पर भी किया जाता है।

3. गर्मियों में त्वचा पर सनबर्न हो जाने पर दही मलने से राहत मिलती है।

4. दही दूध के मुकाबले सौ गुना बेहतर है, क्योंकि इसमें कैल्शियम के चलते हड्डियां और दांत मजबूत होते हैं। यह ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारी से लड़ने में भी मददगार है।

5. हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों को रोजाना दही का सेवन करना चाहिए।


6. दही में अजवायन डालकर खाने से कब्ज दूर होता है।
7. दही में बेसन मिलाकर लगाने से त्वचा में निखार आता है। मुंहासे दूर होते हैं।

8. दही को आटे के चोकर में मिलाकर लगाने से त्वचा को पोषण मिलता है और त्वचा कातिमय बनती है। - सिर में रूसी होने पर भी दही फायदेमंद होता है। ये रूसी को हटाकर बालों को मुलायम बनाता है।


लिवर,किडनी, हार्ट, दिमाग की सफाई के लिए


 🏵️लिवर की सफाई के लिए🏵️

20 ग्राम काली किशमिस और 1 ग्लास पानी लेकर मिक्सर मे ज्युस बनाकर सुबह खाली पेट 15 दिनों तक सेवन करने से लिवर की सफाई होती है |

किडनी की सफाई के लिए

हरा धनिया 40 ग्राम +1 ग्लास पानी मिक्स करके मिक्सर मे पिस करके सुबह खाली पेट लिजिए यह 10 दिनों तक करने से किडनी की सफ़ाई होती है। और हमारी किडनी स्वस्थ रहती है।


हार्ट की सफाई के लिए

60 ग्राम अलसी को मिक्सर मे पीस लिजिए फिर सुबह शाम खालीपेट 10-10 ग्राम की मात्रा मे सेवन से हमारा हार्ट (हृदय) स्वस्थ रहता है यह उपाय 1 महिने तक करनां है।


दिमाग की सफाई के लिए

बादाम 8 और अखरोट 2 नग लेकर रात को 1 ग्लास पानी मे भिगोकर सुबह खाली पेट सेवन करें। यह पूरे 2 महिनों तक करने से दिमाग को पूरी तरह से जहरमुक्त किया जा सकता है।


फेंफडो की सफाई के लिए

2 चम्मच शहद + 1 चम्मच नींबू का रस + 1 चम्मच अदरक का रस सभी चीजो को मिक्स करके सुबह खाली पेट सेवन करने से बिड़ी, सिगरेट, गुटखा या तंबाकु से जो नुकसान हमारे फेंफडो को हुआ है उन्हे सुधार होगा और हमारे फेंफडे पुरी तरह से स्वस्थ हो जाते है। यह प्रयोग करीब 20 दिनों तक करनां है।


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रसोई गैस सिलेंडर से दुर्घटना होने पर मिलाए है 50 लाख तक जानिए क्या है इस दावे की प्रक्रिया


📌 *_रसोई गैस सिलेंडर से दुर्घटना होने पर मिलाए है 50 लाख तक जानिए क्या है इस दावे की प्रक्रिया_*


आज के समय में गैस सिलेंडर (Gas Cylinder) सभी के घर में होता है. इसका उपयोग बहुत ही सावधानी से किया जाता है क्योंकि एक छोटी सी गलती बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है. ऐसे में जरूरी है कि हमें पता हो कि एलपीजी इस्तेमाल करते हुए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए और किसी प्रकार की दुर्घटना होने पर क्या किया जाना चाहिए. साथ ही पता होना चाहिए कि यदि LPG गैस सिलिंडर फट जाता है या गैस लीक होने की वजह से हादसा हो जाता है तो आपके, एक ग्राहक होने के नाते, क्या अधिकार हैं.

50 लाख रुपये तक का इंश्योरेंस

LPG यानी रसोई गैस कनेक्शन लेने पर पेट्रोलियम कंपनियां ग्राहक को पर्सनल एक्सीडेंट कवर उपलब्ध कराती हैं.

50 लाख रुपये तक का यह इंश्योरेंस एलपीजी सिलेंडर से गैस लीकेज या ब्लास्ट के चलते दुर्भाग्यवश हादसा होने की स्थिति में आर्थिक मदद के तौर पर है. इस बीमा के लिए पेट्रोलियम कंपनियों की बीमा कंपनियों के साथ साझेदारी रहती है.

डीलर डिलिवरी से पहले चेक करे कि सिलिंडर बिल्कुल ठीक है या नहीं. ग्राहक के घर पर एलपीजी सिलिंडर की वजह से हादसे में हुए जान-माल के नुकसान के लिए पर्सनल एक्सीडेंट कवर देय है. हादसे में ग्राहक की प्रॉपर्टी/घर को नुकसान पहुंचता है तो प्रति एक्सीडेंट 2 लाख रुपये तक का इंश्योरेंस क्लेम मिलता है.

जानिए गैस सिलेंडर पर कैसे मिलेगा 50 लाख का क्लेम

दुर्घटना के बाद क्लेम लेने का तरीका सरकारी वेबसाइट मायएलपीजी.इन (http://mylpg.in) पर दिया गया है। वेबसाइट के मुताबिक एलपीजी कनेक्शन लेने पर ग्राहक को उसे मिले सिलेंडर से यदि उसके घर में कोई दुर्घटना होती है तो वह व्यक्ति 50 लाख रुपये तक के बीमा का हकदार हो जाता है।

1. एक दुर्घटना पर अधिकतम 50 लाख रुपये तक का मुआवजा मिल सकता है. दुर्घटना से पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति को अधिकतम 10 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति दी जा सकती है.

2. LPG सिलेंडर के बीमा कवर पाने के लिए ग्राहक को दुर्घटना होने की तुरंत सूचना नजदीकी पुलिस स्टेशन और अपने एलपीजी वितरक को देनी होती है.

3. PSU ऑयल विपणन कंपनियां जैसे इंडियन ऑयल, एचपीसी तथा बीपीसी के वितरकों को व्यक्तियों और संपत्तियों के लिए तीसरी पार्टी बीमा कवर सहित दुर्घटनाओं के लिए बीमा पॉलिसी लेनी होती है.

4. ये किसी व्यक्तिगत ग्राहक के नाम से नहीं होतीं बल्कि हर ग्राहक इस पॉलिसी में कवर होता है. इसके लिए उसे कोई प्रीमियम भी नहीं देना होता.

5. FIR की कॉपी, घायलों के इलाज के पर्चे व मेडिकल बिल तथा मौत होने पर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, मृत्यु प्रमाणपत्र संभाल कर रखें.

गैस सिलेंडर से हादसा होने की स्थिति में सबसे पहले पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी होती है. इसके बाद संबंधित एरिया ऑफिस जांच करता है कि हादसे का कारण क्या है. अगर हादसा एलपीजी एक्सीडेंट है तो एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर एजेंसी/एरिया ऑफिस बीमा कंपनी के स्थानीय ऑफिस को इस बारे में सूचित करेगा. इसके बाद संबंधित बीमा कंपनी को क्लेम फाइल होता है. ग्राहक को बीमा कंपनी में सीधे क्लेम के लिए आवदेन करने या उससे संपर्क करने की जरूरत नहीं होती.

🇮🇳 वन्दे मातरम

कर्ण मुख नासिका सूक्ष्म क्रिया योग : मुंह, दांत, नाक और श्रवण कान को स्वस्थ व बेहतर कार्यकुशलता के लिए

कर्ण मुख नासिका सूक्ष्म क्रिया योग : मुंह, दांत, नाक और श्रवण कान को स्वस्थ व बेहतर कार्यकुशलता के लिए

वर्तमान दौड़ती जिंदगी में स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हो केमिकलयुक्त भोजन व फ़ास्ट फ़ूड, दूषित वातावरण और मोबाइल का अंधाधुन प्रयोग जीवन शैली में अनियमितता और समस्या पैदा कर रहा है।

इसी भागदौड़ के बीच हम कुछ समय कुछ सूक्ष्य क्रियाए जर अपना स्वास्थ्य ठीक कर सकते है कर्ण मुख नासिका सूक्ष्म क्रिया योग उसी दिशा में एक कदम है
जिसमे शामिल है। ये सभी क्रियाए सुखासन में बैठकर की जानी चाहिए।

1 नासिका नाक संबंधित क्रियाए
2 मुख व दांत संबंधित क्रियाए
3 कर्ण कान व श्रवण शक्ति संबंधित क्रियाए

*नासिका व जबडों की संवर्धन क्रियाएँ*

*नासिका व जबडों की संवर्धन क्रियाएँ लाभ –*
इन क्रियाओं से नाक तथा गालों पर जमा व्यर्थ चर्बी घट जायेगी।
 नाक के अंदर बढ़ने वाला दुर्मास कम होगा। 
सांस बेरोक टोक चलेगी। 
खाना खाते समय जबड़ों को श्रम नहीं होगा। 
चेहरे का आकर्षण बढ़ेगा |

*नासिका व जबडों की संवर्धन क्रिया विधि*

*प्रथम क्रिया* दोनों होंठ बंद कर लें । ठुड़ी धीरे धीरे दायीं तथा बायीं ओर नाक सहित मोड़ते रहें।

*द्वितीय क्रिया* दोनों होंठ बंद करें। नाक सहित लुड़ी को ऊपर तथा नीचे करतें रहें।

*तृतीय क्रिया* होंठ बंद करें। नाक सहित मुँह तथा टुड़ी को गोलाकार में एक तरफ 5-6 बार, दूसरी तरफ 5-6 बार घुमाते रहें।

*चतुर्थ क्रिया* मुँह में हवा भर लें। जिस तरह खाना चबाते हैं, उसी तरह मुँह में भरी हवा को चबाते रहें। साधक शक्ति के अनुसार यह क्रिया करने के बाद हवा मुँह से बाहर छोड़ दें।

*मुख शुद्धि व संवर्धन क्रिया*

*मुख शुद्धि व संवर्धन क्रिया के लाभ* –
इससे मुँह की बदबू दूर हो जायेगी। 
मुँह के अंदर जो फोड़े होते हैं वे कम होंगे। मुँह साफ होगा।

*मुख शुद्धि व संवर्धन क्रिया विधि*
सिर थोड़ा ऊपर उठावें। जीभ को चमचे की तरह मोड़ कर उसे बाहर निकालें, मुँह में हवा भर लें, बाद में मुँह बंद कर लें, गाल फुलावें, आँखें बंद करें सिर नीचे झुकावें। थोड़ी देर तक वैसे ही रहें। । इसके बाद सिर उठाकर नाक से हवा बाहर निकाल दें। चार-पांच बार यह क्रिया करें।

*मुख दंतशक्ति संवर्धन क्रिया*

*मुख दंतशक्ति संवर्धन क्रिया के लाभ*–
इससे सभी दाँतों को शक्ति मिलेगी। 
दाँतों का हिलना, दाँतों का दर्द, पीब या रक्त का निकलना, पयोरिया जैसी व्याधियाँ दूर होंगी। 
गालों पर चर्बी, झुर्रियाँ तथा फुन्सियाँ कम होगी, जिससे उनकी सुंदरता बढ़ेगी।

*मुख दंतशक्ति संवर्धन क्रिया*
मुँह की शुद्धि क्रिया की ही तरह दांतों की शक्ति बढ़ाने की क्रिया भी की जाती है, लेकिन इस क्रिया में सांस लेते समय दोनों अंगूठों से दोनों नथुने बंद कर लें।

इस क्रिया में गाल अधिक से अधिक फुला कर दाँतों के बीच हवा का प्रसार ज्यादा करें। चार-पाँच बार दोहराएं|

*कर्ण व श्रवणशक्ति संवर्धन क्रिया*

*कर्ण संवर्धन क्रिया के लाभ –*
श्रवण शक्ति बढ़ेगी। 
कानों को सुनायी पड़ने वाली अपरिचित ध्वनि कम होगी | 
कानों से बहता रक्त या पस भी कम होगा |

*कर्ण व श्रवणशक्ति संवर्धन क्रिया विधि*
श्रवणशक्ति बढ़ाने के लिए  हाथों के दोनों अंगूठों के सिरों से दोनों कान बंद करें। दोनों तर्जनियो से दोनों ऑखें बंद करें | दोनों मध्यम उंगलियों से दोनों नासिका रंध्र बंद करें। जीभ को चमचे की तरह मोड़ कर बाहर निकालें। उसके द्वारा हवा मुँह में भरें। शक्तिअनुसार हवा मुँह में रोक कर रखें। सिर झुका लें। थोड़ी देर बाद सिर ऊपर उठावें | नाक पर से ऊँगलियाँ हटा कर नाक के द्वारा हवा बाहर छोड़ दें। इस प्रकार चार पाँच बार करें | अंगूठों को कानों में इस तरह रखे रहें कि बाहर की कोई भी ध्वनि सुनायी न पड़े।

इस क्रिया के बाद उँगलियों से कानों की मालिश करते हुए कनपट्टी को नीचे की तरफ धीरे से खींचते रहें। कानों की किनारीयों को रगडें ।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

कार्विका : सनातनी वीरांगना जिसने सिकंदर की अधीनता स्वीकार नही की अपार सेना को भी परास्त कर अपना परिचय दिया

कार्विका : सनातनी वीरांगना जिसने सिकंदर की अधीनता स्वीकार नही की और अपार सेना को भी परास्त कर अपना परिचय दिया

जय सनातन जय हिन्दू
जय हिंद जय श्रीराम


कठगणराज्य की राजकुमारी कार्विका --

राजकुमारी कार्विका सिंधु नदी के उत्तर में कठगणराज्य की राज्य की राजकुमारी थी । राजकुमारी कार्विका बहुत ही कुशल योद्धा थी। रणनीति और दुश्मनों के युद्ध चक्रव्यूह को तोड़ने में पारंगत थी। राजकुमारी कार्विका ने अपने बचपन की सहेलियों के साथ फ़ौज बनाई थी। इनका बचपन के खेल में भी शत्रुओं से देश को मुक्त करवाना और फिर शत्रुओं को दण्ड प्रदान करना यही सब होते थे। राजकुमारी में वीरता और देशभक्ति बचपन से ही थी। जिस उम्र में लड़कियाँ गुड्डे गुड्डी का शादी रचना इत्यादि खेल खेलते थे उस उम्र में कार्विका राजकुमारी को शत्रु सेना का दमन कर के देश को मुक्त करवाना शिकार करना इत्यादि ऐसे खेल खेलना पसंद थे। राजकुमारी धनुर्विद्या के सारे कलाओं में निपुर्ण थी , तलवारबाजी जब करने उतरती थी दोनों हाथो में तलवार लिये लड़ती थी और एक तलवार कमर पे लटकी हुई रहती थी। अपने गुरु से जीत कर राजकुमारी कार्विका ने सबसे सुरवीर शिष्यों में अपना नामदर्ज करवा लिया था। दोनों हाथो में तलवार लिए जब अभ्यास करने उतरती थी साक्षात् माँ काली का स्वरुप लगती थी। भाला फेकने में अचूक निसाँचि थी , राजकुमारी कार्विका गुरुकुल शिक्षा पूर्ण कर के एक निर्भीक और शूरवीरों के शूरवीर बन कर लौटी अपने राज्य में।

 कुछ साल बीतने के साथ साथ यह ख़बर मिला राजदरबार से सिकंदर लूटपाट करते हुए कठगणराज्य की और बढ़ रहा हैं भयंकर तबाही मचाते हुए सिकंदर की सेना नारियों के साथ दुष्कर्म करते हुए हर राज्य को लूटते हुए आगे बढ़ रही थी, इसी खबर के साथ वह अपनी महिला सेना जिसका नाम राजकुमारी कार्विका ने चंडी सेना रखी थी जो कि 8000 से 8500 नारियों की सेना थी। कठगणराज्य की यह इतिहास की पहली सेना रही जिसमे महज 8000 से 8500 विदुषी नारियाँ थी। कठगणराज्य जो की एक छोटी सा राज्य था। इसलिए अत्यधिक सैन्यबल की इस राज्य को कभी आवस्यकता ही नहीं पड़ी थी।

 325(इ.पूर्व) में सिकन्दर  के अचानक आक्रमण से राज्य को थोडा बहुत नुक्सान हुआ पर राजकुमारी कार्विका पहली योद्धा थी जिन्होंने सिकंदर से युद्ध किया था। सिकन्दर की सेना लगभग 150000 थी और कठगणराज्य की राजकुमारी कार्विका के साथ आठ हज़ार वीरांगनाओं की सेना थी यह एक ऐतिहासिक लड़ाई थी जिसमे कोई पुरुष नहीं था सेना में सिर्फ विदुषी वीरांगनाएँ थी। राजकुमारी और उनकी सेना अदम्य वीरता का परिचय देते हुए सिकंदर की सेना पर टूट पड़ी, युद्धनीति बनाने में जो कुशल होता हैं युद्ध में जीत उसी की होती हैं रण कौशल का परिचय देते हुए राजकुमारी ने सिकंदर से युद्ध की थी।

सिकंदर ने पहले सोचा "सिर्फ नारी की फ़ौज है मुट्ठीभर सैनिक काफी होंगे” पहले 25000 की सेना का दस्ता भेजा गया उनमे से एक भी ज़िन्दा वापस नहीं आ पाया , और राजकुमारी कार्विका की सेना को मानो स्वयं माँ भवानी का वरदान प्राप्त हुआ हो बिना रुके देखते ही देखते सिकंदर की 25000 सेना दस्ता को गाजर मूली की तरह काटती चली गयी। राजकुमारी की सेना में 50 से भी कम वीरांगनाएँ घायल हुई थी पर मृत्यु किसी को छु भी नहीं पायी थी। सिकंदर की सेना में शायद ही कोई ज़िन्दा वापस लौट पाया थे।
दूसरी युद्धनीति के अनुसार अब सिकंदर ने 40000 का दूसरा दस्ता भेजा उत्तर पूरब पश्चिम तीनों और से घेराबन्दी बना दिया परंतु राजकुमारी सिकंदर जैसा कायर नहीं थी खुद सैन्यसंचालन कर रही थी उनके निर्देशानुसार सेना तीन भागो में बंट कर लड़ाई किया राजकुमारी के हाथों बुरी तरह से पस्त हो गयी सिकंदर की सेना।

तीसरी और अंतिम 85000 दस्ताँ का मोर्चा लिए खुद सिकंदर आया सिकंदर के सेना में मार काट मचा दिया नंगी तलवार लिये राजकुमारी कार्विका ने अपनी सेना के साथ सिकंदर को अपनी सेना लेकर सिंध के पार भागने पर मजबूर कर दिया इतनी भयंकर तवाही से पूरी तरह से डर कर सैन्य के साथ पीछे हटने पर सिकंदर मजबूर होगया। इस महाप्रलयंकारी अंतिम युद्ध में कठगणराज्य के 8500 में से 2750 साहसी वीरांगनाओं ने भारत माता को अपना रक्ताभिषेक चढ़ा कर वीरगति को प्राप्त कर लिया जिसमे से नाम कुछ ही मिलते हैं। इतिहास के दस्ताबेजों में गरिण्या, मृदुला, सौरायमिनि, जया यह कुछ नाम मिलते हैं। इस युद्ध में जिन्होंने प्राणों की बलिदानी देकर सिकंदर को सिंध के पार खदेड़ दिया था।  सिकंदर की 150000 की सेना में से 25000 के लगभग सेना शेष बची थी , हार मान कर प्राणों की भीख मांग लिया और कठगणराज्य में दोबारा आक्रमण नहीं करने का लिखित संधी पत्र दिया राजकुमारी कार्विका को ।

संदर्व-:
१) कुछ दस्ताबेज से लिया गया हैं पुराणी लेख नामक दस्ताबेज
२) राय चौधरी- 'पोलिटिकल हिस्ट्री आव एशेंट इंडिया'- पृ. 220)
३) ग्रीस के दस्ताबेज मसेडोनिया का इतिहास ,
Hellenistic Babylon नामक दस्ताबेज में इस युद्ध की जिक्र किया गया हैं।
राजकुमारी कार्विका की समूल इतिहास को नष्ठ कर दिया गया था। इस वीरांगना के  इतिहास को बहुत ढूंढने पर केवल दो ही जगह पर दो ही पन्नों में ही खत्म कर दिया गया था। यह पहली योद्धा थी जिन्होंने सिकंदर को परास्त किया था 325(ई.पूर्व) में। समय के साथ साथ इन इतिहासों को नष्ठ कर दिया गया था और भारत का इतिहास वामपंथी और इक्कसवीं सदी के नवीनतम इतिहासकार जैसे रोमिला थाप्पर और भी बहुत सारे इतिहासकार ने भारतीय वीरांगनाओं के नाम कोई दस्तावेज़ नहीं लिखा था।
यह भी कह सकते हैं भारतीय नारियों को राजनीति से दूर करने के लिए सनातन धर्म में नारियों को हमेशा घूँघट धारी और अबला दिखाया हैं। इतिहासकारों ने भारत को ऋषिमुनि का एवं सनातन धर्म को पुरुषप्रधान एवं नारी विरोधी संकुचित विचारधारा वाला धर्म साबित करने के लिये इन इतिहासो को मिटा दिया था। इन वामपंथी और खान्ग्रेस्सी इतिहासकारो का बस चलता तो रानी लक्ष्मीबाई का भी इतिहास गायब करवा देते पर ऐसा नहीं कर पाये क्यों की 1857 की ऐतिहासिक लड़ाई को हर कोई जानता हैं । 
लव जिहाद तब रुकेगा जब इतिहासकार ग़ुलामी और धर्मनिरपेक्षता का चादर फ़ेंक कर असली इतिहास रखेंगे। जकुमारी कार्विका जैसी वीरांगनाओं ने सिर्फ सनातन धर्म में ही जन्म लिए हैं। ऐसी वीरांगनाओं का जन्म केवल सनातन धर्म में ही संभव हैं। जिस सदी में इन वीरांगनाओं ने  देश पर राज करना शुरू किया था उस समय शायद ही किसी दूसरे मजहब या रिलिजन में नारियों को इतनी स्वतंत्रता होगी । सनातन धर्म का सर है नारी और धड़ पुरुष हैं। जिस प्रकार  सर के बिना धड़  बेकार हैं उसी प्रकार सनातन धर्म नारी के बिना अपूर्ण है।
जितना भी हो पाया इस वीरांगना का खोया हुआ इतिहास आप सबके सामने प्रस्तुत है।
भारत सरकार से अनुरोध है महामान्य प्रधानमंत्री महोदय जी से की सच सामने लाने की अनुमति दें इंडियन कॉउंसिल ऑफ़ हिस्टोरिकल रिसर्च को ।
वन्देमातरम्
जय माँ भवानी।

मधुमेह : जानिए डायबिटीज के लक्षण, प्रकार, कारण, बचाव के तरीके और उपचार

मधुमेह : जानिए डायबिटीज के लक्षण, प्रकार, कारण, बचाव के तरीके और उपचार

मधुमेह कैसे होता है ??
जब हमारे शरीर के पैंक्रियाज में इंसुलिन का पहुंचना कम हो जाता है तो खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। इस स्थिति को डायबिटीज कहा जाता है। इंसुलिन एक हार्मोन है जोकि पाचक ग्रंथि द्वारा बनता है। इसका कार्य शरीर के अंदर भोजन को एनर्जी में बदलने का होता है। यही वह हार्मोन होता है जो हमारे शरीर में शुगर की मात्रा को कंट्रोल करता है। मधुमेह हो जाने पर शरीर को भोजन से एनर्जी बनाने में कठिनाई होती है। इस स्थिति में ग्लूकोज का बढ़ा हुआ स्तर शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है।

डायबिटिज क्या है ?

डायबिटीज या शुगर या मधुमेह एक ऐसी बीमारी है जो तब होती है जब हमारा रक्त शर्करा बहुत अधिक होती है । रक्त ग्लूकोज हमारे ऊर्जा का मुख्य स्रोत है और हमारे द्वारा खाए गए भोजन से आता है। इंसुलिन, एक हार्मोन है जो अग्न्याशय द्वारा बनाया जाता है, भोजन से ग्लूकोज को हमारी कोशिकाओं में ऊर्जा के लिए उपयोग करने में मदद करता है। कभी-कभी हमारा शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनाता है या अच्छी तरह से इंसुलिन का उपयोग नहीं करता । तब ग्लूकोज हमारे रक्त में रहता है और हमारी कोशिकाओं तक नहीं पहुंचता है। समय के साथ, हमारे रक्त में बहुत अधिक ग्लूकोज इकत्रित होने लगता है, इसे ही मधुमेह कहा जाता है ।

डायबिटीज या शुगर एक गंभीर समस्या है। पिछले कुछ दशकों में डायबिटीज के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गई है। डायबिटीज के बारे में लोगों को जागरूक करने और इससे बचाव के लिए हर साल 14 नवंबर को विश्व डायबिटीज दिवस मनाया जाता है। डायबिटीज की स्थिति में मरीज के खून में शुगर घुलने लगता है, जिसके कारण कई तरह की परेशानियां शुरू हो जाती है। ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ जाने पर हार्ट अटैक, किडनी फेल्योर, फेफड़ों और लिवर की कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। डायबिटीज शरीर के साथ-साथ मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है इसलिए इससे बचाव बहुत जरूरी है। हालाँकि मधुमेह का कोई इलाज नहीं है, फिर भी मधुमेह के प्रबंधन और स्वस्थ रहने के लिए कदम उठा सकते हैं।

डायबिटीज के प्रकार-

मधुमेह सामान्यतः तीन प्रकार की होती है-

टाइप 1 डायबिटीज़-

यह एक असंक्राम‍क या स्वप्रतिरक्षित रोग है। स्वप्रतिरक्षित रोग का प्रभाव जब शरीर के लिए लड़ने वाले संक्रमण, प्रतिरक्षा प्रणाली के खिलाफ होता है तो यह स्‍थिति टाइप1 डायबिटीज़ की होती है। टाइप 1 डायबिटीज़ में प्रतिरक्षा प्रणाली पाचनग्रंथियां में इन्सुलिन पैदा कर बीटा कोशिकाओं पर हमला कर उन्‍हें नष्ट कर देती है। इस स्‍थिति में पाचन ग्रंथिया कम मात्रा में या ना के बराबर इन्सुलिन पैदा करती हैं। टाइप 1 डायबिटीज़ के मरीज़ को जीवन के निर्वाह के लिए प्रतिदिन इन्सुलिन की आवश्यकता होती है।

टाइप 2 डायबिटीज़-

टाइप 2 मधुमेह में शरीर इंसुलिन को अच्छी तरह से नहीं बनाता या उपयोग नहीं करता है। किसी भी उम्र में टाइप 2 मधुमेह विकसित हो सकता हैं, यहां तक कि बचपना में भी। हालांकि, इस प्रकार का मधुमेह ज्यादातर मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध लोगों में होता है। टाइप 2 मधुमेह का सबसे आम प्रकार है।

45 वर्ष या अधिक आयु के लोगों में टाइप 2 मधुमेह विकसित होने की अधिक संभावना होती है ।यदि माता-पिता को मधुमेह होने पर टाइप 2 होनी की संभावाना रहती है । शरीर का अधिक वजन होने पर, शारीरिक निष्क्रियता, और कुछ स्वास्थ्य समस्याएं जैसे उच्च रक्तचाप होने पर टाइप 2 मधुमेह के विकास की संभावना को प्रभावित करते हैं। यदि महिला को गर्भवती होने पर गर्भकालीन मधुमेह हो, तो टाइप 2 डायबिटीज होने की संभावना अधिक होती है।

गर्भावधि मधुमेह-

गर्भवती होने पर गर्भकालीन मधुमेह कुछ महिलाओं में विकसित होता है। ज्यादातर बार, इस प्रकार का मधुमेह बच्चे के जन्म के बाद दूर हो जाता है। हालाँकि, यदि आपको गर्भकालीन मधुमेह होने पर जीवन में टाइप 2 मधुमेह विकसित होने की अधिक संभावना है। कभी-कभी गर्भावस्था के दौरान निदान किया गया मधुमेह वास्तव में टाइप 2 मधुमेह है।

अन्य प्रकार के मधुमेह-

कम सामान्य प्रकारों में मोनोजेनिक मधुमेह शामिल है, जो मधुमेह का एक विरासत में मिला हुआ रूप है, और सिस्टिक फाइब्रोसिस से संबंधित मधुमेह है।

मधुमेह अन्य बीमारियों का जनक-

मधुमेह नियंत्रित नहीं होने पर अन्यों रोगों को पैदा कर सकता है, जिनमें प्रमुख रूप से दिल की बीमारी, आघात, गुर्दे की बीमारी, आँखों की समस्या, दंत रोग, नस की क्षति, पैरों की समस्या आदि ।

हृदय रोग और स्ट्रोक

मधुमेह रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है और हृदय रोग और स्ट्रोक का कारण बन सकता है। आप अपने रक्त शर्करा, रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को प्रबंधित करके हृदय रोग और स्ट्रोक को रोकने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं; और धूम्रपान नहीं करके।

निम्न रक्त शर्करा (हाइपोग्लाइसीमिया)-

हाइपोग्लाइसीमिया तब होता है जब आपका रक्त शर्करा बहुत कम हो जाता है। कुछ मधुमेह की दवाएं कम रक्त शर्करा को अधिक संभावना बनाती हैं। आप अपनी भोजन योजना का पालन करके और अपनी शारीरिक गतिविधि, भोजन और दवाओं को संतुलित करके हाइपोग्लाइसीमिया को रोक सकते हैं। नियमित रूप से आपके रक्त शर्करा का परीक्षण करने से भी हाइपोग्लाइसीमिया को रोकने में मदद मिल सकती है।

तंत्रिका क्षति (मधुमेह न्यूरोपैथी)-

मधुमेह न्यूरोपैथी तंत्रिका क्षति है जो मधुमेह से उत्पन्न हो सकती है। विभिन्न प्रकार के तंत्रिका क्षति आपके शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करते हैं। आपके मधुमेह का प्रबंधन तंत्रिका क्षति को रोकने में मदद कर सकता है जो आपके पैरों और अंगों और आपके दिल जैसे अंगों को प्रभावित करता है।

गुर्दे की बीमारी-

मधुमेह गुर्दे की बीमारी, जिसे मधुमेह अपवृक्कता भी कहा जाता है, मधुमेह के कारण गुर्दे की बीमारी है। आप अपने मधुमेह के प्रबंधन और अपने रक्तचाप के लक्ष्यों को पूरा करके अपने गुर्दे की रक्षा करने में मदद कर सकते हैं।

पैर की समस्या-

मधुमेह तंत्रिका क्षति और खराब रक्त प्रवाह का कारण बन सकता है, जिससे पैर की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। सामान्य पैर की समस्याएं, जैसे कि एक कॉलस, दर्द या एक संक्रमण हो सकता है जिससे चलना मुश्किल हो जाता है।

नेत्र रोग-

मधुमेह आपकी आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है और कम दृष्टि और अंधापन को जन्म दे सकता है। आंखों की बीमारी को रोकने का सबसे अच्छा तरीका आपके रक्त शर्करा, रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल का प्रबंधन करना है; और धूम्रपान नहीं करने के लिए। इसके अलावा, साल में कम से कम एक बार आंखों की जांच करवाएं।

दंत समस्याएं-

मधुमेह से आपके मुंह में समस्याएं हो सकती हैं, जैसे संक्रमण, मसूड़ों की बीमारी या शुष्क मुंह। अपने मुंह को स्वस्थ रखने में मदद करने के लिए, अपने रक्त शर्करा का प्रबंधन करें, अपने दांतों को दिन में दो बार ब्रश करें, अपने दंत चिकित्सक को वर्ष में कम से कम एक बार देखें, और धूम्रपान न करें।

यौन और मूत्राशय की समस्याएं-

मधुमेह वाले लोगों में यौन और मूत्राशय की समस्याएं अधिक होती हैं। इरेक्टाइल डिसफंक्शन, सेक्स में रुचि की कमी, मूत्राशय के रिसाव, और बनाए रखा मूत्र जैसी समस्याएं हो सकती हैं यदि मधुमेह आपके रक्त वाहिकाओं और नसों को नुकसान पहुंचाता है।


मधुमेह के लक्षण

कुछ ऐसे ही लक्षणों के बारे में जानकारी दे रहें हैं जो शुगर की समस्या शुरू होते ही दिखाई पड़ने लगते हैं।

1 - ज़ख़्मों का जल्दी न भरना -

डायबिटिज़ के चलते एक समय के बाद रक्त का संचार (ब्लड सर्कुलेशन) भी प्रभावित होता है, जिसकी वजह से शरीर का घाव जल्दी नहीं भर पाता. इसलिए अगर छोटी से छोटी चोट, घाव, छालों को भरने में समय लगता है, तो यह इस बात की चेतावनी है कि अब आपको अपने डायबिटीज़ को कंट्रोल करना चाहिए।

2 - नज़रें धुंधली होना -

मधुमेह से ग्रसित लोगों में आजकल डायबिटिक रेटिनोपैथी की शिकायत ज़्यादा देखी जा रही है. जिसमें नज़रें धुंधली होने लगती है और हम इसे अनदेखा करते हैं। रक्त में संचार (ब्लड सर्कुलेशन) की समस्या डायबिटिक लोगों में काफ़ी गंभीर हो सकती है।

3 - पैरों में झुनझुनी महसूस करना -

उँगलियों और टखनों में झुनझुनी होना, इस बीमारी के शुरूआती लक्षणों में से एक है. अगर आपको मधुमेह है और आप झुनझुनी के बाद सुन्नपन और जलन महसूस करते हैं, तो फ़ौरन स्क्रीनिंग टेस्ट करवाएं।

4 - बार- बार और तेज़ भूख लगना -

इंसुलिन की कमी की वजह से शरीर की कोशिकाएं ग्लूकोज को सोख नहीं पाती और शरीर में ऊर्जा की कमी होने लगती है जिस कारण मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को सामान्य लोगों की अपेक्षा अधिक भूख लगती है।

5 - अत्यधिक थकान तथा कमजोरी का होना -

इंसुलिन मानव शरीर की शर्करा को ऊर्जा में बदलने का कार्य करता है लेकिन जैसे ही इन्सुलिन का निर्माण होना कम हो जाता है या बंद हो जाता है तो मानव शरीर में थकान या कमजोरी होने लगती है। अतः अत्यधिक थकान या कमजोरी होना भी शुगर की समस्या के शुरूआती लक्षणों में से है।


मधुमेह के सामान्य परीक्षण एवं सामान्य स्तर-

उपवास रक्त शर्करा परीक्षण- रात भर के उपवास के बाद रक्त का नमूना लिया जाएगा। 100 मिलीग्राम / डीएल (5.6 मिमीओल / एल) से कम उपवास रक्त शर्करा का स्तर सामान्य है। 100 से 125 मिलीग्राम / डीएल (5.6 से 6.9 मिमील / एल) से उपवास रक्त शर्करा के स्तर को प्रीबायोटिक माना जाता है। यदि यह 126 मिलीग्राम / डीएल (7 मिमील / एल) या दो अलग-अलग परीक्षणों पर अधिक है, तो आपको मधुमेह है।

मौखिक ग्लूकोज सहिष्णुता परीक्षण। इस परीक्षण के लिए, आप रात भर उपवास करते हैं, और उपवास रक्त शर्करा के स्तर को मापा जाता है। फिर आप एक शर्करा तरल पीते हैं, और अगले दो घंटों के लिए रक्त शर्करा के स्तर की समय-समय पर जांच की जाती है। सामान्य या गैर-मधुमेह वाले व्यक्तियों में खाली पेट 72 से 99 मिलीग्राम/डीएल की रेंज में ब्लड शुगर होना चाहिए और खाने के दो घंटे बाद 140 मिलीग्राम/डीएल से कम होना चाहिए। वहीं, मधुमेह के मरीज़ का ब्लड शुगर लेवल खाली पेट 126 मिलीग्राम/डीएल या अधिक होता है, जबकि खाने के दो घंटे बाद 180 मिलीग्राम / डीएल या उससे ज़्यादा होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रिडाइिअटिज पेंसेट का शुगर लेबल खाली पेट 126 मिलीग्राम/डीएल से कम और भोजन केदो घंटे बाद 180 मिलीग्राम / डीएल से कम हो तो उसका शुगर नियंत्रण में है उसे घबराने की जरूरत नहीं है ।

*मधुमेह से बचाव के यह कुछ उपाय आपके काम आएंगे*
अपने ग्लूकोज स्तर को जांचें आपकी उम्र के अनुसार शरीर मे 100 जोड़ कर ग्लूकोज की मात्रा होनी चाहिए जो एक स्टैण्डर्ड है अर्थात भोजन से पहले यह 120 और भोजन के बाद 150 से ज्यादा है तो सतर्क हो जाएं। हर तीन महीने पर HbA1c टेस्ट कराते रहें ताकि आपके शरीर में शुगर के वास्तविक स्तर का पता चलता रहे। उसी के अनुरूप आप डॉक्टर से परामर्श कर दवाइयां लें।

*मधुमेह उपचार के तरीके*

मधुमेह का उपचार-ऐसे तो चिकित्सा के सभी पद्धतियों में मधुमेह का उपचार होने के साथ-साथ लाखों घरेलू नूसखें हैं किन्तु कोई भी उपचार इसे जड़ से खत्म नहीं कर सकता अतः मधुमेह से बचाव अथवा इसे नियंत्रित करने की उपाय ही इसका सर्वोत्तम उपचार है ।

शुगर से बचाव या नियत्रंण के उपाय- शुगर एक लाइलाज बीमारी है । इसे जड़ से खत्म नही किया जा सकता किन्तु इससे बचा जा सकता है । यदि हो वो भी जाये तो घबराने की बजाये इसे नियत्रिंत करने के उपाय कियो जाने चाहिये ।

वजन को नियंत्रण में रखें - हमेशा अपने वज़न का ध्यान रखें। मोटापा अपने साथ कई बीमारियों को लेकर आता है और डायबिटीज़ भी उन्हीं में से एक है। अगर आपका वज़न ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ा हुआ या कम है, तो उस पर तुरंत ध्यान दें और वक़्त रहते इसे नियंत्रित करें।

तनाव से दूर रहें - मधुमेह होने के पीछे तनाव भी ज़िम्मेदार होता है। इसलिए, यह ज़रूरी है कि अपने मन को शांत रखें और उसके लिए आप योगासन व ध्यान यानी मेडिटेशन का सहारा लें।
नींद पूरी करें - पर्याप्त मात्रा में नींद नहीं लेने से या नींद पूरी नहीं होने से भी कई बीमारियां होती हैं। डायबिटीज़ भी उन्हीं में से एक है। इसलिए समय पर सोएं और समय पर उठें।
धूम्रपान से दूर रहें - धूम्रपान से न सिर्फ लंग्स पर असर होता है, बल्कि अगर कोई मधुमेह रोगी धूम्रपान करता है, तो उसे ह््दय संबंधी रोग होने का ख़तरा बढ़ जाता है।

व्यायाम करें - शारीरिक क्रिया स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है, क्योंकि अगर कोई शारीरिक श्रम नहीं होगा, तो वज़न बढ़ने का ख़तरा बढ़ जाता है और फ़िर मधुमेह हो सकता है। इसलिए, जितना हो सके व्यायाम करें। अगर व्यायाम करने का मन न भी करें तो सुबह-शाम टहलने जरूर जाएं, योगासन करें या सीढ़ियां चढ़ें।

सही आहार - शुगर के मरीज़ों को अपने खान-पान का ख़ास ध्यान रखना चाहिए। शुगर में परहेज करने के लिए जितना हो सके बाहरी और तैलीय खाद्य पदार्थों से दूर रहें, क्योंकि इससे वज़न बढ़ने का ख़तरा रहता है और फिर मधुमेह। सही आहार अपनाएं, प्रोटीन व विटामिन युक्त खाद्य पदार्थों को अपने डाइट में शामिल करें।
सही मात्रा में पानी पिएं - आपने एक कहावत तो सुनीं ही होगी कि ‘जल ही जीवन है’। हमारे शरीर को पानी की सख्त ज़रूरत होती है, क्योंकि एक व्यस्क के शरीर में 60 प्रतिशत पानी होता है। सबसे ज़्यादा पानी एक शिशु और बच्चे में होता है। पानी से कई बीमारियां ठीक होती हैं। मधुमेह के रोगियों के लिए भी पानी बहुत आवश्यक है। इसलिए, जितना हो सके पानी पिएं।

धूम्रपान और शराब का सेवन कम कर दें या संभव हो तो बिलकुल छोड़ दें।

नियमित रूप से जांच - अपने ब्लड शुगर लेवल को जानने के लिए नियमित रूप से अपना डायबिटीज़ टेस्ट कराते रहें और उसका एक चार्ट बना लें, ताकि आपको अपने डायबिटीज़ के घटने-बढ़ने के बारे में पता रहे।

नियमित जांच से प्राप्त आंकड़ों पर कड़ी नजर रखें और हर स्थिंति में शुगर लेबल को खाली पेट 126 मिलीग्राम/डीएल

से कम और भोजन के दो घंटे बाद 180 मिलीग्राम / डीएल से कम करने का प्रयास करें । यही सर्वोत्म उपचार होगा ।

- मधुमेह रोगियों को अपने भोजन में करेला, मेथी, सहजन, पालक, तुरई, शलगम, बैंगन, परवल, लौकी, मूली, फूलगोभी, ब्रौकोली, टमाटर, बंद गोभी और पत्तेदार सब्जियों को शामिल करना चाहिए।

- फलों में जामुन, नींबू, आंवला, टमाटर, पपीता, खरबूजा, कच्चा अमरूद, संतरा, मौसमी, जायफल, नाशपाती को शामिल करें। आम, केला, सेब, खजूर तथा अंगूर नहीं खाना चाहिए क्योंकि इनमें शुगर ज्यादा होता है।

- मेथी दाना रात को भिगो दें और सुबह प्रतिदिन खाली पेट उसे खाना चाहिए।

- खाने में बादाम, लहसुन, प्याज, अंकुरित दालें, अंकुरित छिलके वाला चना, सत्तू और बाजरा आदि शामिल करें तथा आलू, चावल और मक्खन का बहुत कम उपयोग करें।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

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