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सोमवार, 21 जून 2021

जोधपुर में महेश नवमी महोत्सव 2021 में कई आकर्षक कार्यक्रम ऑनलाइन एवं ऑफलाइन किए गये

जय महेश , 
आप सभी महानुभवों को महेश नवमी की हार्दिक बधाई व अनंत शुभकामनाएं..💐🙏🏻

महेश नवमी के पावन उत्सव पर सम्पूर्ण भारत में युवा साथियों द्वारा कई  आकर्षक कार्यक्रम किए गए 

*महेश नवमी महोत्सव 2021*


:- भगवान महेश की पुजा- अर्चना एवं अभिषेक

:- भगवान महेश को भोग लगाकर महेश भोग (महाप्रसाद) का सम्पूर्ण माहेश्वरी समाज में वितरण 

एवं कोरोना से बचाव के लिए समाज के संपूर्ण परिवारों में मास्क का वितरण  
इसके अलावा महेश नवमी सप्ताह में माहेश्वरी समाज द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम जिसमे  रंगोली प्रतियोगिता (महेश नवमी पर अपने घर आंगन में), पौधारोपण के साथ सेल्फी, रक्तदान शिविर, कोविड टीकाकरण जागरूकता एवं टीकाकरण शिविर में सहयोग, एक शाम भगवान महेश के नाम , योग प्रशिक्षण शिविर,  स्वास्थ्य, कोविड, संस्कार एवं व्यापार संबंधित ऑनलाइन वेबिनार कार्यक्रम, गणित/विज्ञान/धार्मिक प्रश्नोत्तरी एवं प्रतियोगिता ऑनलाइन, ऑनलाइन तंबोला निशुल्क , ऑनलाइन शतरंज प्रतियोगिता,  निबंध प्रतियोगिता ऑनलाइन, गीता श्लोक संबंधित कार्यक्रम, भगवान महेश के ऊपर कोई भी गीत-भजन-गाने की प्रतियोगिता आदि का आयोजन सफलतापूर्वक किया गया 
इसी कड़ी में एक छोटा सा प्रयास *जोधपुर जिला माहेश्वरी युवा संगठन* के साथ मिलकर *पश्चिमी राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन* द्वारा भी किया गया जिसमें जोधपुर क़े लगभग सभी *माहेश्वरी परिवारों* तक युवा साथियों द्वारा महेश नवमी के पावन पर्व पर कोरोना महामारी को देखते हुए इसके बचाव हेतु 5000*मास्क* का वितरण किया गया ! 
मास्क के साथ मात्र 2 दिनो में जोधपुर के लगभग 170 युवा साथियों के सहयोग से हमारे आराध्य देव भगवान महेश के भोग लगा  *1151 किलो महाप्रसाद( महेश भोग )* का वितरण भी समाज के 4600 परिवारों तक घर घर जाकर पहुँचाने का प्रयास किया गया एवं उन्हें युवा संगठन के कार्यो से अवगत करवाया गया । 


चुकी सम्पूर्ण पश्चिमी राजस्थान प्रदेश मे जोधपुर महानगर सबसे बड़ा इलाक़ा है इसलिए *प्रथम चरण* में जोधपुर जिला माहेश्वरी युवा संगठन के सहयोग से प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन द्वारा यहाँ के सभी परिवारों तक पहुँचने के लिए ये कार्य किया गया ताकी हर घर तक युवा संगठन पहुँच सके ओर समाज हित के क़ार्य कर सके । 

अगले चरण में किसी ओर रूप के साथ सम्पूर्ण प्रदेश के माहेश्वरी परिवारों तक पहुँचने के लिए संगठन द्वारा कार्य किया जाएगा । 

उसके लिए सभी युवा साथियों का दिल से धन्यवाद । 
साभार  *दिनेश राठी* अध्यक्ष
एवं समस्त *पश्चिमी राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन*


जानिए कलयुग क्या है?

मित्रो आज हम आपको कलयुग के गुण और अवगुण बतायेंगे, रामचरितमानस के उत्तरकांड में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कलयुग का बहुत सटीक वर्णन किया है, लेकिन इससे पहले जानिए कलयुग क्या है?

कलयुग क्या है ? 

कलयुग का सीधा सा अर्थ है कलह। जहाँ भी कलह है वहां पर कलयुग है। जब भगवान श्री कृष्ण जी अपनी लीला करके अपने लोक में चले गए थे उसी समय से द्वापर युग खत्म हो गया था और कलयुग का आगमन हो गया है।

कलयुग कितने साल का है। हमारे शास्त्रों में बताया गया है की कलयुग 4,32,000 वर्ष तक रहेगा। जिसकी गणना इस प्रकार की गई है।

पुराण के मुताबिक मानव का एक वर्ष देवताओं के एक अहोरात्र यानी दिन-रात के बराबर है। जिसमें उत्तरायण दिन व दक्षिणायन रात मानी जाती है। दरअसल, एक सूर्य संक्रान्ति से दूसरी सूर्य संक्रान्ति की अवधि सौर मास कहलाती है। मानव गणना के ऐसे 12 सौर मासों का 1 सौर वर्ष ही देवताओं का एक अहोरात्र होता है। ऐसे ही 30 अहोरात्र, देवताओं के एक माह और 12 मास एक दिव्य वर्ष कहलाता है।

देवताओं के इन दिव्य वर्षो के आधार पर चार युगों की मानव सौर वर्षों में अवधि इस तरह है,

सतयुग 4800 (दिव्य वर्ष) 17,28,000 (सौर वर्ष)
त्रेतायुग 3600 (दिव्य वर्ष) 12,96,100 (सौर वर्ष)
द्वापरयुग 2400 (दिव्य वर्ष) 8,64,000 (सौर वर्ष)
कलियुग 1200 (दिव्य वर्ष) 4,32,000 (सौर वर्ष)

उस समय घोर कलयुग आएगा जिस समय माँ गंगा और गोवर्धन पर्वत लुप्त हो जायेंगे। क्योंकि इन दोनों को श्राप है। पढ़िए इस कलयुग में क्या-क्या घटित होगा।

 कलयुग के अवगुण और लक्षण,,,,

श्री तुलसीदासकृत रामचरतिमानस में इसका वर्णन आया है। काकभुशुण्डि जी गरुड़ जी को बता रहे हैं कलयुग के लक्षण और प्रभाव-

नर-नारी पापपरायण (पापों में लिप्त) रहेंगें॥ कलियुग के पापों ने सब धर्मों को ग्रस लिया, सद्ग्रंथ लुप्त हो गए, दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर-करके बहुत से पंथ प्रकट कर दिए॥ सभी लोग मोह के वश हो गए, शुभ कर्मों को लोभ ने हड़प लिया।

कलियुग में न वर्णधर्म रहता है, न चारों आश्रम रहते हैं। सब पुरुष-स्त्री वेद के विरोध में लगे रहते हैं। ब्राह्मण वेदों के बेचने वाले और राजा प्रजा को खा डालने वाले होते हैं। वेद की आज्ञा कोई नहीं मानता॥ जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग है। जो डींग मारता है, वही पंडित है। जो मिथ्या आरंभ करता (आडंबर रचता) है और जो दंभ में रत है, उसी को सब कोई संत कहते हैं॥

जो (जिस किसी प्रकार से) दूसरे का धन हरण कर ले, वही बुद्धिमान है। जो दंभ करता है, वही बड़ा आचारी है। जो झूठ बोलता है और हँसी-दिल्लगी करना जानता है, कलियुग में वही गुणवान कहा जाता है॥

जो आचारहीन है और वेदमार्ग को छोड़े हुए है, कलियुग में वही ज्ञानी और वही वैराग्यवान् है। जिसके बड़े-बड़े नख और लंबी-लंबी जटाएँ हैं, वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी है॥

जो अमंगल वेष और अमंगल भूषण धारण करते हैं और भक्ष्य-भक्ष्य (खाने योग्य और न खाने योग्य) सब कुछ खा लेते हैं वे ही योगी हैं, वे ही सिद्ध हैं और वे ही मनुष्य कलियुग में पूज्य हैं॥

जिनके आचरण दूसरों का अपकार (अहित) करने वाले हैं, उन्हीं का बड़ा गौरव होता है और वे ही सम्मान के योग्य होते हैं। जो मन, वचन और कर्म से लबार (झूठ बकने वाले) हैं, वे ही कलियुग में वक्ता माने जाते हैं॥

सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वश में हैं और बाजीगर के बंदर की तरह (उनके नचाए) नाचते हैं। ब्राह्मणों को शूद्र ज्ञानोपदेश करते हैं और गले में जनेऊ डालकर कुत्सित दान लेते हैं॥

सभी पुरुष काम और लोभ में तत्पर और क्रोधी होते हैं। देवता, ब्राह्मण, वेद और संतों के विरोधी होते हैं। अभागिनी स्त्रियाँ गुणों के धाम सुंदर पति को छोड़कर पर पुरुष का सेवन करती हैं॥

सुहागिनी स्त्रियाँ तो आभूषणों से रहित होती हैं, पर विधवाओं के नित्य नए श्रृंगार होते हैं।

शिष्य और गुरु में बहरे और अंधे का सा हिसाब होता है। एक (शिष्य) गुरु के उपदेश को सुनता नहीं, एक (गुरु) देखता नहीं (उसे ज्ञानदृष्टि) प्राप्त नहीं है)॥

जो गुरु शिष्य का धन हरण करता है, पर शोक नहीं हरण करता, वह घोर नरक में पड़ता है। माता-पिता बालकों को बुलाकर वही धर्म सिखलाते हैं, जिससे पेट भरे॥

स्त्री-पुरुष ब्रह्मज्ञान के सिवा दूसरी बात नहीं करते, पर वे लोभवश कौड़ियों (बहुत थोड़े लाभ) के लिए ब्राह्मण और गुरु की हत्या कर डालते हैं॥

शूद्र ब्राह्मणों से विवाद करते हैं (और कहते हैं) कि हम क्या तुमसे कुछ कम हैं? जो ब्रह्म को जानता है वही श्रेष्ठ ब्राह्मण है। (ऐसा कहकर) वे उन्हें डाँटकर आँखें दिखलाते हैं॥

संत जन बताते हैं की यहाँ शुद्र का मतलब किसी जाति से नहीं बल्कि नीच आचरण करने वाले से है। और ब्राह्मण का अर्थ जो मन कर्म वचन से किसी का बुरा नही करता और जीव मात्र में परमात्मा का दर्शन करके उसकी(परमात्मा) भक्ति करता है।

जो पराई स्त्री में आसक्त, कपट करने में चतुर और मोह, द्रोह और ममता में लिपटे हुए हैं, वे ही मनुष्य अभेदवादी (ब्रह्म और जीव को एक बताने वाले) ज्ञानी हैं। मैंने उस कलियुग का यह चरित्र देखा॥

वे स्वयं तो नष्ट हुए ही रहते हैं, जो कहीं सन्मार्ग का प्रतिपालन करते हैं, उनको भी वे नष्ट कर देते हैं। जो तर्क करके वेद की निंदा करते हैं, वे लोग कल्प-कल्पभर एक-एक नरक में पड़े रहते हैं॥

तेली, कुम्हार, चाण्डाल, भील, कोल और कलवार आदि जो वर्ण में नीचे हैं, स्त्री के मरने पर अथवा घर की संपत्ति नष्ट हो जाने पर सिर मुँड़ाकर संन्यासी हो जाते हैं॥

वे अपने को ब्राह्मणों से पुजवाते हैं और अपने ही हाथों दोनों लोक नष्ट करते हैं। ब्राह्मण अपढ़, लोभी, कामी, आचारहीन, मूर्ख और नीची जाति की व्यभिचारिणी स्त्रियों के स्वामी होते हैं॥

शूद्र नाना प्रकार के जप, तप और व्रत करते हैं तथा ऊँचे आसन (व्यास गद्दी) पर बैठकर पुराण कहते हैं। सब मनुष्य मनमाना आचरण करते हैं। अपार अनीति का वर्णन नहीं किया जा सकता॥

कलियुग में सब लोग वर्णसंकर और मर्यादा से च्युत हो गए। वे पाप करते हैं और (उनके फलस्वरूप) दुःख, भय, रोग, शोक और (प्रिय वस्तु का) वियोग पाते हैं॥

वेद सम्मत तथा वैराग्य और ज्ञान से युक्त जो हरिभक्ति का मार्ग है, मोहवश मनुष्य उस पर नहीं चलते और अनेकों नए-नए पंथों की कल्पना करते हैं॥

संन्यासी बहुत धन लगाकर घर सजाते हैं। उनमें वैराग्य नहीं रहा, उसे विषयों ने हर लिया। तपस्वी धनवान हो गए और गृहस्थ दरिद्र। हे तात! कलियुग की लीला कुछ कही नहीं जाती॥

कुलवती और सती स्त्री को पुरुष घर से निकाल देते हैं और अच्छी चाल को छोड़कर घर में दासी को ला रखते हैं। पुत्र अपने माता-पिता को तभी तक मानते हैं, जब तक स्त्री का मुँह नहीं दिखाई पड़ता॥

जब से ससुराल प्यारी लगने लगी, तब से कुटुम्बी शत्रु रूप हो गए। राजा लोग पाप परायण हो गए, उनमें धर्म नहीं रहा। वे प्रजा को नित्य ही (बिना अपराध) दंड देकर उसकी विडंबना (दुर्दशा) किया करते हैं॥

धनी लोग मलिन (नीच जाति के) होने पर भी कुलीन माने जाते हैं। द्विज का चिह्न जनेऊ मात्र रह गया और नंगे बदन रहना तपस्वी का। जो वेदों और पुराणों को नहीं मानते, कलियुग में वे ही हरिभक्त और सच्चे संत कहलाते हैं॥

कवियों के तो झुंड हो गए, पर दुनिया में उदार (कवियों का आश्रयदाता) सुनाई नहीं पड़ता। गुण में दोष लगाने वाले बहुत हैं, पर गुणी कोई भी नहीं। कलियुग में बार-बार अकाल पड़ते हैं। अन्न के बिना सब लोग दुःखी होकर मरते हैं॥

कलियुग में कपट, हठ (दुराग्रह), दम्भ, द्वेष, पाखंड, मान, मोह और काम आदि (अर्थात् काम, क्रोध और लोभ) और मद ब्रह्माण्डभर में व्याप्त हो गए (छा गए)॥

मनुष्य जप, तप, यज्ञ, व्रत और दान आदि धर्म तामसी भाव से करने लगे। देवता (इंद्र) पृथ्वी पर जल नहीं बरसाते और बोया हुआ अन्न उगता नहीं॥

स्त्रियों के बाल ही भूषण हैं (उनके शरीर पर कोई आभूषण नहीं रह गया) और उनको भूख बहुत लगती है (अर्थात् वे सदा अतृप्त ही रहती हैं)। वे धनहीन और बहुत प्रकार की ममता होने के कारण दुःखी रहती हैं। वे मूर्ख सुख चाहती हैं, पर धर्म में उनका प्रेम नहीं है। बुद्धि थोड़ी है और कठोर है, उनमें कोमलता नहीं है॥

मनुष्य रोगों से पीड़ित हैं, भोग (सुख) कहीं नहीं है। बिना ही कारण अभिमान और विरोध करते हैं। दस-पाँच वर्ष का थोड़ा सा जीवन है, परंतु घमंड ऐसा है मानो कल्पांत (प्रलय) होने पर भी उनका नाश नहीं होगा॥

कलिकाल ने मनुष्य को बेहाल (अस्त-व्यस्त) कर डाला। कोई बहिन-बेटी का भी विचार नहीं करता। (लोगों में) न संतोष है, न विवेक है और न शीतलता है। जाति, कुजाति सभी लोग भीख माँगने वाले हो गए॥

ईर्षा (डाह), कडुवे वचन और लालच भरपूर हो रहे हैं, समता चली गई। सब लोग वियोग और विशेष शोक से मरे पड़े हैं। वर्णाश्रम धर्म के आचरण नष्ट हो गए॥

इंद्रियों का दमन, दान, दया और समझदारी किसी में नहीं रही। मूर्खता और दूसरों को ठगना, यह बहुत अधिक बढ़ गया। स्त्री-पुरुष सभी शरीर के ही पालन-पोषण में लगे रहते हैं। जो पराई निंदा करने वाले हैं, जगत् में वे ही फैले हैं॥  

कलिकाल पाप और अवगुणों का घर है, किंतु कलियुग में एक गुण भी बड़ा है कि उसमें बिना ही परिश्रम भवबंधन से छुटकारा मिल जाता है॥ सुनु ब्यालारि काल कलि मल अवगुन आगार। गुनउ बहुत कलिजुग कर बिनु प्रयास निस्तार॥

कलियुग केवल नाम अधारा , सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा : कलयुग में केवल भगवान का नाम ही भवसागर से पार उतरने का साधन है केवल भगवान का नाम सुमिरन से इस भवसागर से पार पाया जा सकता है।

कृतजुग त्रेताँ द्वापर पूजा मख अरु जोग। जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग॥ सत्ययुग, त्रेता और द्वापर में जो गति पूजा, यज्ञ और योग से प्राप्त होती है, वही गति कलियुग में लोग केवल भगवान्‌ के नाम से पा जाते हैं॥

सत्ययुग में सब योगी और विज्ञानी होते हैं। हरि का ध्यान करके सब प्राणी भवसागर से तर जाते हैं। त्रेता में मनुष्य अनेक प्रकार के यज्ञ करते हैं और सब कर्मों को प्रभु को समर्पण करके भवसागर से पार हो जाते हैं॥ द्वापर में श्री रघुनाथजी के चरणों की पूजा करके मनुष्य संसार से तर जाते हैं, दूसरा कोई उपाय नहीं है और कलियुग में तो केवल श्री हरि की गुणगाथाओं का गान करने से ही मनुष्य भवसागर की थाह पा जाते हैं॥ कलिजुग केवल हरि गुन गाहा। गावत नर पावहिं भव थाहा॥

कलियुग में न तो योग और यज्ञ है और न ज्ञान ही है। श्री रामजी का गुणगान ही एकमात्र आधार है। अतएव सारे भरोसे त्यागकर जो श्री रामजी को भजता है और प्रेमसहित उनके गुणसमूहों को गाता है, वही भवसागर से तर जाता है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं।

 कलियुग का एक पवित्र प्रताप (महिमा) है कि मानसिक पुण्य तो होते हैं, पर (मानसिक) पाप नहीं होते॥

कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास। गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास॥

यदि मनुष्य विश्वास करे, तो कलियुग के समान दूसरा युग नहीं है, (क्योंकि) इस युग में श्री रामजी के निर्मल गुणसमूहों को गा-गाकर मनुष्य बिना ही परिश्रम संसार (रूपी समुद्र) से तर जाता है॥

शुद्ध सत्त्वगुण, समता, विज्ञान और मन का प्रसन्न होना, इसे सत्ययुग का प्रभाव जानें॥

सत्त्वगुण अधिक हो, कुछ रजोगुण हो, कर्मों में प्रीति हो, सब प्रकार से सुख हो, यह त्रेता का धर्म है।

रजोगुण बहुत हो, सत्त्वगुण बहुत ही थोड़ा हो, कुछ तमोगुण हो, मन में हर्ष और भय हो, यह द्वापर का धर्म है॥

तमोगुण बहुत हो, रजोगुण थोड़ा हो, चारों ओर वैर-विरोध हो, यह कलियुग का प्रभाव है।

जिसका श्री रघुनाथजी के चरणों में अत्यंत प्रेम है, उसको कालधर्म (युगधर्म) नहीं व्यापते।

एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा॥ 
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि। संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि॥

तुलसीदासजी कहते हैं- इस कलिकाल में योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत और पूजन आदि कोई दूसरा साधन नहीं है। बस, श्री रामजी का ही स्मरण करना, श्री रामजी का ही गुण गाना और निरंतर श्री रामजी के ही गुणसमूहों को सुनना चाहिए॥

नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु। कलियुग में राम का नाम कल्पतरु (मन चाहा पदार्थ देने वाला) और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर) है।

और इसके बाद कह दिया केवल कलियुग की ही बात नहीं है, चारों युगों में, तीनों काल में और तीनों लोकों में नाम को जपकर जीव शोकरहित हुए हैं।

राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥ कलियुग में यह राम नाम मनोवांछित फल देने वाला है, परलोक का परम हितैषी और इस लोक का माता-पिता है (अर्थात परलोक में भगवान का परमधाम देता है और इस लोक में माता-पिता के समान सब प्रकार से पालन और रक्षण करता है।)

कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है, राम नाम ही एक आधार है। नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥

भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव (बैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है।

इसलिए सब चिंता, भय छोड़कर, मन क्रम और वाणी से भगवान का नाम जपिए और सत्कर्म कीजिये।

रविवार, 20 जून 2021

21 जून 2021 सोमवार को निर्जला एकादशी / भीम एकादशी का व्रत (उपवास) रखें

निर्जला एकादशी 


💥21 जून 2021 सोमवार को निर्जला एकादशी / भीम एकादशी का व्रत (उपवास) रखें ।
एकादशी तिथि प्रारंभ - 20 जून , रविवार को शाम 4 बजकर 21 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समापन - 21 जून , सोमवार को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट तक.....व्रत 21 जून सोमवार को करना है।
युधिष्ठिर ने कहा : जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो , कृपया उसका वर्णन कीजिये ।


 भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवतीनन्दन व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं ।
 
तब वेदव्यासजी कहने लगे : दोनों ही पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन न करे । द्वादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र हो फूलों से भगवान केशव की पूजा करे । फिर नित्य कर्म समाप्त होने के पश्चात् पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे । राजन् ! जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए ।
 
यह सुनकर भीमसेन बोले : परम बुद्धिमान पितामह ! मेरी उत्तम बात सुनिये । राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि : ‘भीमसेन ! तुम भी एकादशी को न खाया करो…’ किन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी ।
 
भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा : यदि तुम्हें स्वर्ग लोक की प्राप्ति अभीष्ट है और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशीयों के दिन भोजन न करना ।
 
भीमसेन बोले : महाबुद्धिमान पितामह ! मैं आपके सामने सच्ची बात कहता हूँ । एक बार भोजन करके भी मुझसे व्रत नहीं किया जा सकता, फिर उपवास करके तो मैं रह ही कैसे सकता हूँ ? मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ , तभी यह शांत होती है । इसलिए महामुने ! मैं वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ । जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये । मैं उसका यथोचित रुप से पालन करुँगा ।
 
व्यासजी ने कहा : भीम ! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर , शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो , उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो । केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले , अन्यथा व्रत भंग हो जाता है । एकादशी को सूर्यौदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्यौदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है । तदनन्तर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे । इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे । वर्षभर में जितनी एकादशीयाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है , इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है । शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि: ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है ।
 
एकादशी व्रत करनेवाले पुरुष के पास विशालकाय , विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते । अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाववाले , हाथ में सुदर्शन धारण करने वाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आखिर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं । अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास और श्रीहरि का पूजन करो । स्त्री हो या पुरुष , यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है । जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है , वह पुण्य का भागी होता है । उसे एक एक प्रहर में कोटि कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है । मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान , दान , जप , होम आदि जो कुछ भी करता है , वह सब अक्षय होता है , यह भगवान श्री कृष्ण का कथन है । निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है । जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है , वह पाप का भोजन करता है । इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है ।
 
जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे , वे परम पद को प्राप्त होंगे । जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है , वे ब्रह्महत्यारे , शराबी , चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं ।
 
कुन्तीनन्दन ! ‘ निर्जला एकादशी ’ के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं , उन्हें सुनो: उस दिन जल में शयन करनेवाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करना चाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है । पर्याप्त दक्षिणा और भाँति भाँति के मिष्ठान्नों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए । ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं । जिन्होंने शम , दम , और दान में प्रवृत हो श्री हरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस ‘ निर्जला एकादशी ’ का व्रत किया है , उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है । निर्जला एकादशी के दिन अन्न , वस्त्र , गौ , जल , शैय्या , सुन्दर आसन , कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए । जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है , वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है । जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है । चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है , वही फल इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है । पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि : ‘मैं भगवान केशव की प्रसन्न्ता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा ।’ द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए । गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र से विधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे :
 
🌷 देवदेव ह्रषीकेश संसारार्णवतारक ।
उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥
 
संसारसागर से तारनेवाले हे देवदेव ह्रषीकेश ! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये ।
 
भीमसेन ! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है , उसका निर्जल व्रत करना चाहिए । उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है । तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे । जो इस प्रकार पूर्ण रुप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है ।
 
यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया । तबसे यह लोक मे ‘पाण्डव द्वादशी’ के नाम से विख्यात हुई ।
   
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#_____🕉_जय_श्री_कृष्णा_🕉____
#______🕉_Զเधे_Զเधे_🕉______
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गंगा दशहरा जून 20, 2021 विशेषगंगा पूजन एवं अवतरण की कथा

गंगा दशहरा जून 20, 2021 विशेष
गंगा पूजन एवं अवतरण की कथा 
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दशमी तिथि प्रारंभ👉  19 जून 2021 सायं 6 बजकर 47 मिनट से

दशमी तिथि समाप्त👉 20 जून सायं 04 बजकर 21 मिनट पर। 

वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, बुधवार के दिन, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी इसलिये  इस दिन को हिन्दू धर्म मे माँ गंगा के पृथ्वी पर अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन स्नान, दान, रूपात्मक व्रत होता है।

स्कन्द पुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत्सरमुखी मानी गई है इसमें स्नान और दान तो विशेष रूप से करें। किसी भी नदी पर जाकर अर्ध्य (पू‍जादिक) एवम् तिलोदक (तीर्थ प्राप्ति निमित्तक तर्पण) अवश्य करें। ऐसा करने वाला महापातकों के बराबर के दस पापों से छूट जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष, दशमी को गंगावतरण का दिन मन्दिरों एवं सरोवरों में स्नान कर पवित्रता के साथ मनाया जाता है। 

गंगा स्नान का महत्त्व
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भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि जो मनुष्य गंगा दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार ओम नमो भगवती हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा स्तोत्र को पढ़ता है, चाहे वो दरिद्र हो, असमर्थ हो वह भी गंगा की पूजा कर पूर्ण फल को पाता है। यदि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन मंगलवार हो तथा हस्त नक्षत्र तिथि हो तो यह सब पापों को हरने वाली होती है। वराह पुराण में लिखा है कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी बुधवार में हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थी। वह दस पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं।

दशहरे के कुछ प्रमुख योग 
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यह दिन संवत्सर का मुख माना गया है। इसलिए गंगा स्नान करके दूध, बताशा, जल, रोली, नारियल, धूप, दीप से पूजन करके दान देना चाहिए। इस दिन गंगा, शिव, ब्रह्मा, सूर्य देवता, भागीरथी तथा हिमालय की प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन गंगा आदि का स्नान, अन्न-वस्त्रादि का दान, जप-तप, उपासना और उपवास किया जाता है। जिस भी वस्तु का दान करे उनकी संख्या 10 ही होनी शुभ मानी गयी है। इससे दस प्रकार के पापों से छुटकारा मिलता है। इस दिन नीचे दिये गये दस योग हो तो यह अपूर्व योग है और महाफलदायक होता है। यदि ज्येष्ठ अधिकमास हो तो स्नान, दान, तप, व्रतादि मलमास में करने से ही अधिक फल प्राप्त होता है। इन दस योगों में मनुष्य स्नान करके सब पापों से छूट जाता है।

दस योग
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ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर करण, आनंद योग व्यतिपात, कन्या का चंद्र, वृषभ का सूर्य आदि।

गंगा दशहरा पर दान का महत्त्व एवं पूजा विधि
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इस दिन पवित्र नदी गंगा जी में स्नान किया जाता है। यदि कोई मनुष्य वहाँ तक जाने में असमर्थ है तब अपने घर के पास किसी नदी या तालाब में गंगा मैया का ध्यान करते हुए स्नान कर सकते है। गंगा जी का ध्यान करते हुए षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए. गंगा जी का पूजन करते हुए निम्न मंत्र पढ़ना चाहिए :-

“ऊँ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:”

इस मंत्र के बाद “ऊँ नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा” मंत्र का पाँच पुष्प अर्पित करते हुए गंगा को धरती पर लाने भगीरथी का नाम मंत्र से पूजन करना चाहिए. इसके साथ ही गंगा के उत्पत्ति स्थल को भी स्मरण करना चाहिए. गंगा जी की पूजा में सभी वस्तुएँ दस प्रकार की होनी चाहिए. जैसे दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल होने चाहिए.
यदि कोई व्यक्ति पूजन के बाद दान करना चाहता है तब वह भी दस प्रकार की वस्तुओं का करता है तो अच्छा होता है लेकिन जौ और तिल का दान सोलह मुठ्ठी का होना चाहिए. दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए. जब गंगा नदी में स्नान करें तब दस बार डुबकी लगानी चाहिए।

यह मौसम भरपूर गर्मी का होता है, अत: छतरी, वस्त्र, जूते-चप्पल आदि दान में दिए जाते हैं। पूजन के लिये यदि गंगाजी अथवा अन्य किसी पवित्र नदी पर सपरिवार स्नान हेतु जाया जा सके तब तो सर्वश्रेष्ठ है, यदि संभव न हो तब घर पर ही गंगाजली को सम्मुख रखकर गंगाजी की पूजा-अराधना कर ली जाती है। इस दिन जप-तप, दान, व्रत, उपवास और गंगाजी की पूजा करने पर सभी पाप जड़ से कट जाते हैं- ऐसी मान्यता है। अनेक परिवारों में दरवाज़े पर पाँच पत्थर रखकर पाँच पीर पूजे जाते हैं। इसी प्रकार परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से सवा सेर चूरमा बनाकर साधुओं, फ़कीरों और ब्राह्मणों में बांटने का भी रिवाज है। ब्राह्मणों को बड़ी मात्रा में अनाज को दान के रूप में आज के दिन दिया जाता है। आज ही के दिन आम खाने और आम दान करने को भी विशिष्ट महत्त्व दिया जाता है। दशहरा के दिन दशाश्वमेध संभव ना हो तो किसी भी गंगा घाट में दस बार स्नान करके शिवलिंग का दस संख्या के गंध, पुष्प, दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन करके रात्रि को जागरण करने से अनंत फल प्राप्त होता है। विधि-विधान से गंगाजी का पूजन करके दस सेर तिल, दस सेर जौ और दस सेर गेहूँ दस ब्राह्मणों को दान दें। परदारा और परद्रव्यादि से दूर रहें तथा ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ करके दशमी तक एकोत्तर-वृद्धि से दशहरा स्तोत्र का पाठ करें। इससे सब प्रकार के पापों का समूल नाश हो जाता है और दुर्लभ सम्पत्ति प्राप्त होती है।

गंगा दशहरे का फल
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ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के दस प्रकार के पापों का नाश होता है। इन दस पापों में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक और तीन पाप मानसिक होते हैं। जैसे कि

👉 बिना आज्ञा या जबरन किसी की वस्तु लेना

👉 हिंसा

👉 पराई स्त्री के साथ समागम

👉 कटुवचन का प्रयोग

 👉 असत्य वचन बोलना

👉 किसी की शिकायत करना

👉 असंबद्ध प्रलाप

👉 दूसरें की संपत्ति हड़पना या हड़पने की इच्छा

👉 दूसरें को हानि पहुँचाना या ऐसे इच्छा रखना

👉 व्यर्थ बातो पर परिचर्चा

कहने का तात्पर्य है जिस किसी ने भी उपरोक्त पापकर्म किये हैं और जिसे अपने किये का पश्चाताप है और इससे मुक्ति पाना चाहता है तो उसे सच्चे मन से मां गंगा में डूबकी अवश्य लगानी चाहिये। यदि आप मां गंगा तक नहीं जा सकते हैं तो स्वच्छ जल में थोड़ा गंगा जल मिलाकर मां गंगा का स्मरण कर उससे भी स्नान कर सकते हैं। इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।

माँ गंगा जी की आरती
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ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
चन्द्र-सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता।
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता।
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
आरती मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता।
सेवक वही सहज में, मुक्ति को पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥

गंगा अवतरण की कथा
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ब्रह्मा से अत्रि, अत्रि से चंद्रमा, चंद्रमा से बुध, बुध से पुरुरवा, पुरुरवा से आयु, आयु से नहुष, नहुष से यति, ययाति, संयाति, आयति, वियाति और कृति नामक छः महाबली और विक्रमशाली पुत्र हुए।

अत्रि से उत्पन्न चंद्रवंशियों में पुरुरवा-ऐल के बाद सबसे चर्चित कहानी ययाति और उसने पुत्रों की है, ययाति के 5 पुत्र थे-! पुरु, यदु, तुर्वस, अनु और द्रुह्मु,  उनके इन पांचों पुत्रों और उनके कुल के लोगों ने मिलकर लगभग संपूर्ण एशिया पर राज किया था, ऋग्वेद में इसका उल्लेख मिलता है।
 
ययाति बहुत ही भोग-विलासी राजा था, जब भी उसको यमराज लेने आते तो वह कह देता नहीं अभी तो बहुत काम बचे हैं, अभी तो कुछ देखा ही नहीं। 
 
गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र के मध्य प्रतिष्ठा की लड़ाई चलती रहती थी, इस लड़ाई के चलते ही ५ हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध के पूर्व एक और महासंग्राम हुआ था जिसे 'दशराज युद्ध' के नाम से जाना जाता हैं इस युद्ध की चर्चा ऋग्वेद में मिलती है, यह रामायण काल की बात है।
 
महाभारत युद्ध के पहले भारत के आर्यावर्त क्षेत्र में आर्यों के बीच दशराज युद्ध हुआ था इस युद्ध का वर्णन दुनिया के हर देश और वहां की संस्कृति में आज भी विद्यमान है, ऋग्वेद के ७ वें मंडल में इस युद्ध का वर्णन मिलता है। 

इस युद्ध से यह पता चलता है कि आर्यों के कितने कुल या कबीले थे और उनकी सत्ता धरती पर कहां तक फैली थी, इतिहासकारों के अनुसार यह युद्ध आधुनिक पाकिस्तानी पंजाब में परुष्णि नदी (रावी नदी) के पास हुआ था।
 
ब्रह्मा से भृगु, भृगु से वारिणी भृगु, वारिणी भृगु से बाधृश्य, शुनक, शुक्राचार्य (उशना या काव्या), बाधूल, सांनग और च्यवन का जन्म हुआ, शुनक से शौनक, शुक्राचार्य से त्वष्टा का जन्म हुआ, त्वष्टा से विश्वरूप और विश्‍वकर्मा, विश्वकर्मा से मनु, मय, त्वष्टा, शिल्लपी और देवज्ञ का जन्म हुआ, दशराज्ञ युद्ध के समय भृगु मौजूद थे। 
 
इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर भगीरथ और श्रीराम के पूर्वज हैं। राजा सगर की २ रानियां थीं- केशिनी और सुमति, जब दीर्घकाल तक दोनों पत्नियों को कोई संतान नहीं हुई तो राजा अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे। 

तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को ६० हजार अभिमानी पुत्र प्राप्त तथाहोगेतथा दूसरी से एक 
वंशधर पुत्र होगा, वंशधर अर्थात जिससे आगे वंश चलेगा।
 
बाद में रानी सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया, वह सिर्फ एक बेजान पिंड था, राजा सगर निराश होकर उसे फेंकने लगे, तभी आकाशवाणी हुई- 'सावधान राजा! इस तूंबी में ६० हजार बीज हैं, घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में ६० हजार पुत्र प्राप्त होंगे।'
 
राजा सगर ने इस आकाशवाणी को सुनकर इसे विधाता का विधान मानकर वैसा ही सुरक्षित रख लिया, जैसा कहा गया था, समय आने पर उन मटकों से ६० हजार पुत्र उत्पन्न हुए, जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उन्होंने अपने ६० हजार पुत्रों को उस घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त किया। 

देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया, राजा सगर के ६० हजार पुत्र उस घोड़े को ढूंढते-ढूंढते जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें लगा कि मुनि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराया है। 

यह सोचकर उन्होंने कपिल मुनि का अपमान कर दिया, ध्यानमग्न कपिल मुनि ने जैसे ही अपनी आंखें खोलीं, राजा सगर के ६० हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए, भगीरथ के पूर्वज राजा सगर के ६० हजार पुत्र कपिल मुनि के तेज से भस्म हो जाने के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए थे। 

अपने पूर्वजों की शांति के लिए ही भगीरथ ने घोर तप किया और गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल हुए, पूर्वजों की भस्म के गंगा के पवित्र जल में डूबते ही वे सब शांति को प्राप्त हुए। 

राजा भगीरथ के कठिन प्रयासों और तपस्या से ही गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आई थी, इसे ही 'गंगावतरण' की कथा कहते हैं। सगर और भगीरथ से जुड़ी अनेक और भी कथाएं है।

हम अमृत फेंक कर उनमें कीचड़ भरने का काम क्यों कर रहे हैं...?

🧐🙏🏻
*हमारे पास तो  पहले से ही अमृत से भरे कलश थे...!🧐*

*फिर हम वह अमृत फेंक कर उनमें कीचड़ भरने का काम क्यों कर रहे हैं...?🤔*

*जरा इन पर विचार करें...🧐👇*

० यदि *मातृनवमी* थी,
तो Mother’s day क्यों लाया गया?

० यदि *कौमुदी महोत्सव* था,
तो Valentine day क्यों लाया गया?

० यदि *गुरुपूर्णिमा* थी,
तो Teacher’s day क्यों लाया गया?

० यदि *धन्वन्तरि जयन्ती* थी,
तो Doctor’s day क्यों लाया गया?

० यदि *विश्वकर्मा जयंती* थी,
तो Technology day क्यों लाया गया?

० यदि *सन्तान सप्तमी* थी,
तो Children’s day क्यों लाया गया?

० यदि *नवरात्रि* और *कन्या भोज* था,
तो Daughter’s day क्यों लाया गया?

० *रक्षाबंधन* है तो Sister’s day क्यों ?

० *भाईदूज* है तो Brother’s day क्यों ?

० *आंवला नवमी, तुलसी विवाह* मनाने वाले हिंदुओं को Environment day की क्या आवश्यकता ?

० केवल इतना ही नहीं, *नारद जयन्ती* ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है...

० *पितृपक्ष* ७ पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है...

० *नवरात्रि* को स्त्री के नवरूपों के दिवस के रूप में स्मरण कीजिये...

*सनातन पर्वों को अवश्य मनाईये...*
हमारी सनातन संस्कृति में मनाए जाने वाले विभिन्न पर्व और त्योहार मिशनरीयों के धर्मांतरण की राह में बाधक हैं। बस, इसीलिए हमारी धार्मिक परंपराओं से मिलते जुलते उत्सव कार्यक्रम मिशनरीयों द्वारा लाए जा रहे हैं।
ताकि आपको सनातन सभ्यता से तोड़कर धर्मांतरण की ओर प्रेरित किया जा सके... 

अब पृथ्वी के सनातन भाव को स्वीकार करना ही होगा। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो वे ही हमें वेद, शास्त्र, संस्कृत भी पढ़ाने आ जाएंगे! 

इसका एक ही उपाय है कि, अपनी जड़ों की ओर लौटिए। अपने सनातन मूल की ओर लौटिए। व्रत, पर्व, त्यौहारों को मनाइए। अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत कीजिये। जीवन में भारतीय पंचांग अपनाना चाहिए, जिससे भारत अपने पर्वों, त्यौहारों से लेकर मौसम की भी 
अनेक जानकारियां सहज रूप से जान व समझ लेता है...😊👍🏽

*संस्कृति 🚩रक्षा अभियान....⛳️⛳️*
🙏🏻
शुभ स्वस्थ जीवन🤝🏼 स्वजन💐

हिन्दुओं की आस्था के लिये सरकार द्वारा किये गये/किये जा रहे काम जिसकी जानकारी हर हिन्दुओं के पास होनी चाहिये

हिन्दुओं की आस्था के लिये सरकार द्वारा किये गये/किये जा रहे काम  जिसकी जानकारी हर हिन्दुओं के पास होनी चाहिये -

(आत्मघाती आचरण छोड़िये आगे बहुत कुछ बाकी है)

📌 "राम मंदिर" बनवा रहे हो
📌 "काशी विश्वनाथ कॉरिडोर" बनवा रहे हो
📌 "विंध्याचल कॉरिडोर" बनवा रहे हो
📌 "चार धाम को रेल रोड हवाई कनेक्टिविटी" से जोड़ रहे हो
📌 "धारा 370 और 35ए" हटा रहे हो
📌 "CAA" ला रहे हो
📌 4 वर्षों से यूपी में "रक्षाबंधन के पर्व पर बहनों/महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा" करवा रहे हो
📌 "श्रद्धालुओं पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा" करवा रहे हो
📌 यूपी में "रंगोत्सव, दीपोत्सव, कृष्ण जन्मोत्सव" धूमधाम से मना रहे हो
📌 अयोध्या में लाखों "दीप जलवाकर" विश्व रिकॉर्ड बनवा रहे हो
📌 "दिव्य कुंभ भव्य कुंभ" का सफल आयोजन करवा रहे हो
📌 "अयोध्या, काशी, मथुरा, वृंदावन, चित्रकूट, विंध्याचल" का विकास और सौंदर्यीकरण करवा रहे हो
📌 "रामायण सर्किट, कृष्ण सर्किट" बनवा रहे हो
📌 "कैलाश मानसरोवर भवन" बनवा रहे हो
📌 "लव जिहाद के खिलाफ" कानून बना रहे हो
📌 "जबरन धर्मांतरण के खिलाफ" कानून बना रहे हो
📌 "दंगे के खिलाफ वसूली" का सख्त कानून बना रहे हो
📌 सदियों से बंद "अक्षय वट, सरस्वती कूप" को श्रद्धालुओं के लिए खुलवा रहे हो
📌 "अकबर किले में मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित" करवा रहे हो
📌 "रामेश्वरम को रामसेतु से जोड़ने वाला पंबन ब्रिज" बनवा रहे हो
📌 "रामायण एक्सप्रेस" चलवा रहे हो
📌 अयोध्या में "रामायण म्यूजियम" बनवा रहे हो
📌 अयोध्या में "251 मीटर ऊंची भगवान राम की भव्य प्रतिमा" बनवा रहे हो
📌 "अयोध्या से जनकपुरी (नेपाल) तक बस सेवा" शुरू करवा रहे हो
📌 मथुरा में "कृष्ण लीला म्यूजियम" बनवा रहे हो
📌 "विश्व की सबसे बड़ी श्रीमद् भागवत गीता का अनावरण" कर रहे हो
📌 "बहरीन में 200 साल पुराने कृष्ण मंदिर का पुनरुद्धार" करवा रहे हो
📌 "84 कोस परिक्रमा मार्ग 4 लेन" का बनवा रहे हो
📌 "केदारनाथ धाम का पुनरोद्धार"
📌 "कैलाश मानसरोवर तक रोड" बनवा रहे हो
📌 "कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने के लिए 1 लाख की सब्सिडी" दे रहे हो
📌 काशी में "काशी विश्वनाथ वर्चुअल म्यूजियम" बनवा रहे हो
📌 "माता वैष्णो देवी को रेल, रोड और हवाई कनेक्टिविटी" से जोड़ रहे हो
📌 "भैरो बाबा तक रोप-वे सेवा" शुरू करवा रहे हो
📌 "वाराणसी से कटरा तक वन्दे भारत ट्रेन" चलवा रहे हो
📌 "नमामि गंगे के तहत गंगा सफाई अभियान" चलवा रहे हो
📌 "जेलों में जन्माष्टमी का आयोजन" करवा रहे हो
📌 "अयोध्या में रामलीला का मंचन" करवा रहे हो
📌 "नवरात्रि में कन्या भोज का आयोजन" करवा रहे हो
📌 "फैजाबाद का नाम बदलकर पुनः प्राचीन नाम "अयोध्या जी" कर रहे हो
📌 "इलाहाबाद का नाम बदलकर पुनः प्राचीन नाम प्रयागराज" कर रहे हो
📌 "भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए देशभर में विभिन्न प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार" करवा रहे हो
📌 "आबू धाबी में पहले भव्य हिन्दू मंदिर का निर्माण" करवा रहे हो
📌 "गौवंश के संरक्षण" के लिये योजनाएं चला रहे हो
📌 "विभिन्न वैश्विक मंचो से भारतीय संस्कृति को बढ़ावा" दे रहे हो 
📌 "संस्कृत यूनिवर्सिटी की स्थापना" करवा रहे हो
📌 "योग को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में विश्व में स्थापित" कर रहे हो
📌 "राष्ट्रीय गोकुल मिशन" शुरू कर रहे हो
📌 "राष्ट्रीय कामधेनु आयोग" का गठन कर रहे हो
📌 "कुंभ यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल" करवा रहे हो
📌 "विश्व के नेताओ को गीता, रामायण भेंट" कर रहे हो
📌 "बेसहारा गोवंशों के लिए कार्पस फंड की व्यवस्था" कर रहे हो 
📌 यूपी में "प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले सभी छात्र छात्राओं को निःशुल्क कोचिंग" सुविधा उपलब्ध करवा रहे हो
📌 "4 करोड़ से अधिक अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए 59,000 करोड़ रुपए से अधिक की पोस्ट मैक्ट्रिक छात्रवृत्ति योजना" शुरू कर रहे हो

*"सबका विश्वास जीतने कि कोशिश कर  रहे हो"*

पर बकलोली करने वाला कृतघ्न  हिन्दू समाज हमेशा सवाल पुछती रहती है मोदी -  योगी सरकार ने पिछले 7 वर्षों में क्या कुछ किया है।

           _*???*_

हिन्दुओं को बरगलानें वाले पत्तलचट पत्रकार,  बिके हुये बुद्धिजीवी और धर्म के ठेकेदार यह सब देख सुनकर पगला गये हैं, लिख रहे हैं मोदी सरकार ने 7 सालों हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं किया है।

*आप इस सन्देश को देशभर में फैलाईये और हिंदुत्व के सच्चे सारथी बनिये।*

*🔱 हर हर महादेव 🔱*

आप सब इस सन्देश को अपने सभी मित्रों ,परिवार वालों या जो कोई भी हमारी विचारधारा से जुड़ना चाहता है उसके पास पहुंचाने का कष्ट करें।

_*💯% हिन्दूओं का 💯% असमंजस और शंका दूर करें।*_

_*(ये तो आगाज है भाईयो , आगे साथ देंगे तभी अंजाम तक पहूंच पायेंगे - धेर्य रखें और विश्वास करें।)*_

🕉️🚩🇮🇳🔱🏹🐚🕉️
    🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
     🔱 हर हर महादेव 🔱

लहर में कोविड से मृत्यु पर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा ढेर सारे राहत पैकेज की घोषणाएं की गई हैं

*कोरोना महामारी में दूसरी लहर में कोविड से मृत्यु पर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा ढेर सारे राहत पैकेज की घोषणाएं की गई हैं,*

 इसके अतिरिक्त भी परिवारजन निम्न राहत प्राप्त करने के अधिकारी हैं, यह प्रावधान आमजन के हित हेतु सूचना प्रेषित है... आप सभी अपने  नाम सहित भी फारवर्ड/शेयर कर सकते हैं- 
01. पीएम केयर्स फंड से माता-पिता या अभिभावक की मृत्यु पर 18 वर्ष की उम्र में मासिक सहायता राशि, -23 वर्ष की उम्र में पीएम केयर्स फंड से 10 लाख रुपए दिए जाने का प्रावधान किया गया है,
-फ्री शिक्षा, उच्च शिक्षा के लोन, जिसका ब्याज पीएम केयर फण्ड से चुकाया जाएगा, 
-साथ ही 18 वर्ष की उम्र तक आयुष्मान भारत से 05 लाख का हेल्थ इंश्योरेंस किया जाएगा। जिसका प्रीमियम पीएम केयर्स फंड से दिया जाएगा।
02. राज्य में अनाथ बच्चों के लिए पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन के अलावा मुख्यमंत्री बाल कल्याण योजना भी है
जिसमें तत्काल ₹ 01 लाख का प्रावधान,
18 वर्ष की आयु तक प्रतिमाह ₹2500,
18 वर्ष पूर्ण होने पर ₹ 05 लाख तक की सहायता देय है।
-12वीं तक निशुल्क आवासीय शिक्षा या हॉस्टल में रहकर शिक्षा। -कॉलेज के छात्रों को समाज कल्याण के हॉस्टल में रहने की सुविधा और अंबेडकर डीबीटी वाउचर योजना का लाभ दिया जाएगा. -युवाओं को मुख्यमंत्री युवा संबल योजना में बेरोजगारी भत्ता दिए जाने के लिए प्रावधान किए गए हैं।
03. राज्य में विधवा पत्नी हेतु पति की कोविड से मृत्यु पर ₹ 01 लाख एकमुश्त, 
-1500/रुपए प्रति माह विधवा पेंशन का प्रावधान किया गया है इसमें सालाना आय की बाध्यता नहीं है और सभी आयु वर्ग हेतु प्रावधान है,
-विधवा स्त्री के बच्चों को ₹1000 प्रति माह एवं स्कूल ड्रेस और पुस्तकों के लिए एकमुश्त ₹2000 की राशि का प्रावधान किया है.
04. पति/पत्नी राजकीय सेवा में  कार्यरत हो तो कोविड ड्यूटी में लगे हुए हो तो,मृत्य पर 50 लाख रुपये की राशि सरकार द्वारा देय है।
05. प्राइवेट नौकरी में थे और उनका PF/ बीमा के पैसे कटते थे, तो क्लेम का प्रावधान है।
06. ESIC यानी कर्मचारी राज्य बीमा योजना के तहत बीमा राशि बढ़ाकर ₹ 07 लाख कर दी गई है, और इस में पारिवारिक पेंशन मिलने का प्रावधान किया गया है, जो औसत दैनिक वेतन के 90% के बराबर तक होगी और यह लाभ 24-3-2020 से 24-3 -2022 तक लिया जा सकेगा.
07. जनधन योजना के खाता धारक को ₹2 लाख दुर्घटना या सामान्य मौत पर, दिए जाने का प्रावधान है।
08. माता पिता की मृत्यु पर समाज कल्याण विभाग की पालनहार योजना से भी लाभ लिया जा सकता है,इसमें केवल पिता या माता की मृत्यु पर भी यह लाभ मिल सकता है, विधवा के बच्चों को ₹1000 प्रतिमाह प्रति बच्चा,दिए जाने का प्रावधान है, इस हेतु अध्ययन प्रमाण पत्र या आंगनबाड़ी का प्रमाण पत्र लगाना पड़ेगा, साथ ही मां का विधवा पेंशन का पीपीओ भी लगेगा, और जन आधार कार्ड भी लगाना होगा।यह लकभ 18 वर्ष की आयु तक  मिलेगा, इसके बाद मुख्यमंत्री हुनर विकास या उच्च शिक्षा योजना के तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए फीस सरकार के द्वारा स्पॉन्सर की जाएगी।
09. माता पिता की मृत्यु मार्च 2020 के बाद किसी भी कारण से हो जाने पर, बाल स्वराज स्वराज योजना भी है इसके लिए फोन न. 1098 पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। और केंद्र की स्कीम के अलावा भी इस योजना से लाभ मिलेगा।
10. 01-04-2020 से 31 मार्च 2021 और उसके बाद वित्तीय वर्ष में यदि ₹12 या ₹330 प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और PMSBY के तहत बैंक खाताधारक की पासबुक में हुई 12 रुपये और 330 रुपये की कटौती की इंट्री ही इसी बीमा के क्लेम के लिए काफी है। इनमें एक एक्सीडेंटल बीमा की 12 रुपये और दूसरे सामान्य बीमा की 330 रुपये की रकम खाते से कटी होती है। इस पर 2 लाख रुपये क्लैम के दिये जाने के 2015 से ही प्रावधान हैं।
11. एटीएम कार्ड धारक द्वारा यदि 90 दिन में एक बार भी ट्रांजैक्शन किया गया है, तो असामयिक मृत्यु की स्तिथि में 50,000 रु से  10 लाख रुपए तक के बीमा क्लैम के प्रावधान हैं। जो बैंक द्वारा देय हैं। चाहे एटीएम सरकारी बैंक का हो या प्राइवेट बैंक का।
12. यदि मृतक द्वारा किसी भी प्रकार का टर्म इंश्योरेंस, बीमा कवर, एलआईसी की पॉलिसी आदि ली गई है तो वह भी लाभ उसके नॉमिनी को मिलेंगे।
13. राजकीय कर्मचारी को सेवाकाल के दौरान किए गए बीमे की राशि और अन्य लाभ देय होंगे साथ ही पारिवारिक पेंशन भी दी जाएगी।
14. यदि मृतक सरकार द्वारा अधिस्वीकृत पत्रकार था, तो राज्य सरकार द्वारा उसके परिवार को ₹50 लाख की राशि का प्रावधान है।
15 इसी प्रकार यदि किसी अधिवक्ता की मृत्यु होती है तो भी कई बार एसोसिएशन द्वारा उसके परिवार को मुआवजा का  प्रावधान है।
आवश्यक दस्तावेज- मृत्य प्रमाण पत्र, कोविड रिपोर्ट, HRCT रिपोर्ट, रोग प्रमाण पत्र, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि, नौकरी के प्रमाण पत्र,आधार कार्ड, जनाधार कार्ड, फ़ोटो, बीमा पालिसी की प्रति आदि, आयु प्रमाण पत्र, एड्रेस प्रूफ आदि।
 यदि कोई भी संशोधन या और कोई योजना संज्ञान में आये तो कृपया ऐड कर दें और फारवर्ड करें।

*👉कृपया जनहित में इस मैसेज को अधिकतम फॉरवर्ड करने की कृपा करें ताकि अधिकतम लोगों को लाभ मिल सके, यह भी एक प्रकार की  समाजसेवा होगी ।*
निवेदक-
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प्याज शरीर के लिए अमृत भी है तो विष भी

🌈 *_प्याज शरीर के लिए अमृत भी है तो विष भी, जानिए प्याज की स्वाभाविक विशेषताएं

प्याज धरती का एक कंद है जो अपनी तामसी गुणों के कारण एक विशेष गंध फैलाता है। प्याज लू, तापाघात सहित अनेकों बीमारियों की रामबाण औषधि भी है । पर प्याज के सेवन के पूर्व जान ले की आप द्वारा सेवन किया जा रहा प्याज वाकई आपके शरीर में लाभ पहुंचा रहा है या हानि।

*ताज़ा कटा प्याज ही खाए*
प्याज हमेशा तुरंत काट कर खाएं.
मानो या ना मानो यह पूर्णतया सत्य है.देर से कटी प्याज का कभी उपयोग ना करें. कटी रखी प्याज दस मिनिट में अपने आस पास के सारे कीटाणु अवशोसित कर लेती है.

यह वेज्ञानिक तौर पर सिद्ध हो चुका है.

जब भी किसी मौसमी बीमारी का प्रकोप फैले घर में सुबह शाम हर कमरें में प्याज काट कर रख दें बाद में उसे फैंक दें सुरक्षित बने रहेंगें.

*प्याज के संबध में महत्वपूर्ण जानकारी.*

सन 1919 में फ्लू से चार करोड़ लोग मारे जा चुके थे, तब एक डॉक्टर कई किसानों से उनके घर इस प्रत्याशा में मिला कि वो कैसे इन किसानों को इस महामारी से लड़ने में सहायता कर सकता है. बहुत सारे किसान इस फ्लू से ग्रसित थे और उनमें से बहुत से मारे जा चुके थे.

डॉक्टर जब इनमें से एक किसान के संपर्क में आया तो उसे ये जान कर बहुत आश्चर्य हुआ, कि सारे गाँव के फ्लू से ग्रसित होने के बावजूद ये किसान परिवार बिलकुल स्वस्थ्य था.तब डॉक्टर को ये जानने की इच्छा जागी कि ऐसा इस किसान के परिवार ने सारे गाँव से हटकर क्या किया कि वो *इस भंयकर महामारी में भी स्वस्थ्य थे.* तब किसान की पत्नी ने उन्हें बताया कि उसने अपने मकान के दोनों कमरों में एक प्लेट में  छिली हुई प्याज रख दी थी तब डॉक्टर ने प्लेट में रखी इन प्याज को माइक्रोस्कोप से देखा तो उसे इस प्याज में उस घातक फ्लू के बैक्टेरिया मिले जो संभवतया इन प्याज द्वारा अवशोषित कर लिए गए थे और शायद यही कारण था कि इतनी बड़ी महामारी में ये परिवार बिलकुल स्वस्थ्य था, क्योंकि *फ्लू के वायरस इन प्याज द्वारा सोख लिए गए थे.*

जब मैंने अपने एक मित्र जो अमेरिका में रहते थे और मुझे हमेशा स्वास्थ्य संबधी मुद्दों पर  बेहद ज्ञानवर्धक जानकारी भेजते रहते हैं, तब उन्होंने प्याज के संबध में बेहद महत्वपूर्ण जानकारी/ अनुभव मुझे भेजा.उनकी इस बेहद रोचक कहानी के लिए धन्यवाद.

*जब मैं न्यूमोनिया से ग्रसित था और कहने की आवश्यकता नहीं थी कि मैं बहुत कमज़ोर महसूस कर रहा था तब मैंने एक लेख पढ़ा था जिसमें ये बताया गया था कि प्याज को बीच से काटकर रात में न्यूमोनिया से ग्रस्त मरीज़ के कमरे में एक जार में रख दिया गया था और सुबह यह देख कर बेहद आश्चर्य हुआ कि प्याज सुबह कीटाणुओं की वज़ह से  बिलकुल काली हो गई थी*

*तब मैंने भी अपने कमरे में वैसे ही किया और देखा अगले दिन प्याज बिलकुल काली होकर खराब हो चुकी थी और मैं काफी स्वस्थ्य महसूस कर रहा था.*

कई बार हम पेट की बीमारी से दो चार होते है तब हम इस बात से अनजान रहते है कि इस बीमारी के लिए किसे दोषी ठहराया जाए. तब नि :संदेह प्याज को इस बीमारी के लिए दोषी ठहराया जा सकता है.

*प्याज बैक्टेरिया को अवशोषित कर लेती है यही कारण है कि अपने इस गुण के कारण प्याज हमें ठण्ड और फ्लू से बचाती है.*

*अत: वे प्याज बिलकुल नहीं खाना चाहिए जो बहुत देर पहले काटी गई हो और प्लेट में रखी गई हों. ये जान लें कि ... काट कर रखी गई प्याज बहुत विषाक्त होती हैं.*

जब कभी भी फ़ूड पॉइसनिंग के केस अस्पताल में आते हैं तो सबसे पहले इस बात की जानकारी ली जाती कि मरीज़ ने अंतिम बार प्याज कब खाई थी. और वे प्याज कहाँ से आई थीं ।(खासकर सलाद में )

*प्याज बैक्टेरिया के लिए चुंबक की तरह काम करती हैं खासकर कच्ची प्याज*

*आप कभी भी थोड़ी सी भी कटी हुई प्याज को देर तक रखने की गलती न करे ये बेहद खतरनाक हैं. यहाँ तक कि किसी बंद थैली में इसे रेफ्रिजरेटर में रखना भी सुरक्षित नहीं है.*

प्याज ज़रा सी काट देने पर ये बैक्टेरिया से ग्रसित हो सकती है और आपके लिए खतरनाक हो सकती है. यदि आप कटी हुई प्याज को सब्ज़ी बनाने के लिए उपयोग कर रहें हो, तब तो ये ठीक है, लेकिन यदि आप कटी हुई प्याज अपनी ब्रेड पर रख कर खा रहें है तो ये बेहद खतरनाक है. ऐसी स्थिति में आप मुसीबत को न्योता दे रहें हैं. याद रखे कटी हुई प्याज और कटे हुए आलू की नमी बैक्टेरिया को तेज़ी से पनपने में बेहद सहायक होता है.

कुत्तों को कभी भी प्याज नहीं खिलाना चाहिए, क्योंकि प्याज को उनका पेट का मेटाबोलिज़ कभी भी नहीं पचाता.

*कृपया ध्यान रखे कि ...*
प्याज को काट कर अगले दिन सब्ज़ी बनाने के लिए नहीं रखना चाहिए क्योंकि ये बहुत खतरनाक है यहाँ तक कि कटी हुई प्याज एक रात में बहुत विषाक्त हो जाती है क्योंकि ये टॉक्सिक बैक्टेरिया बनाती है जो पेट खराब करने के लिए पर्याप्त रहता है.

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