यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 25 जून 2021

क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं ?

*क्या भगवान हमारे द्वारा चढ़ाया गया भोग खाते हैं ?*
यदि खाते हैं, तो वह वस्तु समाप्त क्यों नहीं हो जाती ?
और यदि नहीं खाते हैं, तो भोग लगाने का क्या लाभ ?

*एक लड़के ने पाठ के बीच में अपने गुरु से यह प्रश्न किया....*

गुरु ने तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया। 
वे पूर्ववत् पाठ पढ़ाते रहे। 
उस दिन उन्होंने पाठ के अन्त में एक श्लोक पढ़ाया: 

 पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
  पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥

पाठ पूरा होने के बाद गुरु ने शिष्यों से कहा कि वे पुस्तक देखकर श्लोक कंठस्थ कर लें।

एक घंटे बाद गुरु ने प्रश्न करने वाले शिष्य से पूछा कि उसे श्लोक कंठस्थ हुआ कि नहीं ? 
उस शिष्य ने पूरा श्लोक शुद्ध-शुद्ध गुरु को सुना दिया। 

फिर भी गुरु ने सिर 'नहीं' में हिलाया,

 तो शिष्य ने कहा कि" वे चाहें, तो पुस्तक देख लें; श्लोक बिल्कुल शुद्ध है।” 

गुरु ने पुस्तक देखते हुए कहा“ श्लोक तो पुस्तक में ही है, तो तुम्हारे दिमाग में कैसे चला गया? 

शिष्य कुछ भी उत्तर नहीं दे पाया।

तब गुरु ने कहा “ पुस्तक में जो श्लोक है, वह स्थूल रूप में है। 
तुमने जब श्लोक पढ़ा, तो वह सूक्ष्म रूप में तुम्हारे दिमाग में प्रवेश कर गया, 
उसी सूक्ष्म रूप में वह तुम्हारे मस्तिष्क में रहता है। 
और जब तुमने इसको पढ़कर कंठस्थ कर लिया, 
*तब भी पुस्तक के स्थूल रूप के श्लोक में कोई कमी नहीं आई ...*

*इसी प्रकार पूरे विश्व में व्याप्त परमात्मा हमारे द्वारा चढ़ाए गए निवेदन को सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते हैं, और इससे स्थूल रूप के वस्तु में कोई कमी नहीं होती।  उसी को हम प्रसाद के रूप में  ग्रहण करते हैं।*

*शिष्य को उसके प्रश्न का उत्तर मिल गया .....*
*☺️सदा खुश रहे श्री हरि नाम का जाप करते रहे कराते रहे☺️*
*🚩हरे कृष्ण हरे कृष्णा कृष्ण कृष्ण हरे हरे🚩*
*🚩हरे राम हरे रामा राम राम हरे हरे🚩*

गुरुवार, 24 जून 2021

माहेश्वरी समाज मना रहा ऑनलाइन महेश नवमी पखवाड़ा 2021

कोरोना काल में माहेश्वरी समाज मना रहा ऑनलाइन महेश नवमी पखवाड़ा 2021

दिनांक 19 जून 2021 से 04 जुलाई 2021 तक 

जय महेश

कोरोना को देखते हुए जोधपुर से पश्चिमी राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन ने 

सम्पूर्ण भारत के समस्त माहेश्वरी समाज के लिए ज्यादातर सामाजिक कार्यक्रम को ऑनलाइन संपन्न करने में एक अनूठा उदाहरण पेश किया 

जिसमे सभी प्रतियोगिताएं को ऑनलाइन संपन्न करना, ऑनलाइन योग ट्रेनिंग, कई प्रकार की प्रतियोगिताओ को सोशल मीडिया के माध्यम से ऑनलाइन प्रविष्टिया मंगवाकर उनका सोशल मीडिया के माध्यम से समस्त माहेश्वरी समाज के लोगो के सामने प्रस्तुत करने का अनूठा कार्य की पहल की है 

इसके अलावा महेश नवमी पखवाड़ा 2021 में जोधपुर से सम्पूर्ण माहेश्वरी समाज द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम जिसमे ऑनलाइन रंगोली प्रतियोगिता (महेश नवमी पर अपने घर आंगन में), निशुल्क चिकित्सा केम्प, वृक्षारोपण कार्यक्रम (पौधारोपण के साथ सेल्फी), रक्तदान शिविर, कोविड टीकाकरण जागरूकता एवं टीकाकरण शिविर में सहयोग, ऑनलाइन एक शाम भगवान महेश के नाम , ऑनलाइन योग प्रशिक्षण शिविर,  स्वास्थ्य, कोविड, संस्कार एवं व्यापार संबंधित ऑनलाइन वेबिनार कार्यक्रम, गणित/विज्ञान/धार्मिक प्रश्नोत्तरी एवं प्रतियोगिता ऑनलाइन, ऑनलाइन तंबोला निशुल्क , ऑनलाइन शतरंज प्रतियोगिता,  निबंध प्रतियोगिता ऑनलाइन, गीता श्लोक संबंधित कार्यक्रम, भगवान महेश के ऊपर कोई भी गीत-भजन-गाने की प्रतियोगिता आदि का प्रारम्भ दिनांक 19 जून २०२१ से कर ०४ जुलाई २०२१ तक महेश नवमी पखवाड़ा मनाया जा रहा है 

इसी कड़ी में अब तक *जोधपुर जिला माहेश्वरी युवा संगठन* के साथ मिलकर *पश्चिमी राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन* द्वारा भी किया गया जिसमें जोधपुर क़े लगभग सभी *माहेश्वरी परिवारों* तक युवा साथियों द्वारा महेश नवमी के पावन पर्व पर कोरोना महामारी को देखते हुए इसके बचाव हेतु 5000 *मास्क* का वितरण अब तक किया गया है जो आगे भी जारी है 

मास्क वितरण के साथ ही भगवान महेश को भोग लगाकर महेश भोग (महाप्रसाद) का सम्पूर्ण माहेश्वरी समाज में वितरण किया गया जिसमे 

मास्क के साथ मात्र 2 दिनो में जोधपुर के लगभग 170 युवा साथियों के सहयोग से हमारे आराध्य देव भगवान महेश के भोग लगा  *1151 किलो महाप्रसाद( महेश भोग )* का वितरण भी समाज के 4600 परिवारों तक घर घर जाकर पहुँचाने का प्रयास किया गया एवं उन्हें युवा संगठन के कार्यो से अवगत करवाया गया ।चुकी सम्पूर्ण पश्चिमी राजस्थान प्रदेश मे जोधपुर महानगर सबसे बड़ा इलाक़ा है इसलिए *प्रथम चरण* में जोधपुर जिला माहेश्वरी युवा संगठन के सहयोग से प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन द्वारा यहाँ के सभी परिवारों तक पहुँचने के लिए ये कार्य किया गया ताकी हर घर तक युवा संगठन पहुँच सके ओर समाज हित के क़ार्य कर सके । 


अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर अखिल भारतवर्षीय  माहेश्वरी युवा संगठन के आह्वान पर पश्चिमी राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन एवं जोधपुर जिला माहेश्वरी युवा संगठन द्वारा  World Record Holder and International Yoga Trainer   अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अजीतगढ़ की राजी (राजकुमारी )फलोड  के साथ online Webinar का ३ दिवसीय आयोजन किया जिसमे  ऑनलाइन योग प्रशिक्षण कार्यक्रम रखा गया जिसमे माहेश्वरी समाज के कई नामचीन हस्तियों ने भाग लिए

click for video 

जिसमे देश ही नहीं विदेश में रहने वाले माहेश्वरी बंधुओ ने भी ने ऑनलाइन योग ट्रेनिंग ज्वाइन किया, राजकुमारी फलोड जिसे डॉक्टर से वर्ष पहले घुटनो की ऑपरेशन के बाद डांस नहीं करने की सलाह दी लेकिन राजकुमारी ने अपने दृढ निश्चय से नियमित योग करके डॉक्टर्स को भी गलत साबित कर दिया और १ मिनट २६ सेकंड में १८ बार सूर्य नमस्कार करके इंटरनैशनल बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया,

माहेश्वरी समाज का यह महेश नवमी पखवाड़ा १९ जून से  होकर दिनांक ४ जुलाई २०२१ तक चलेगा जिसमे कई कार्यक्रम ऑनलाइन  आयोजित किये जायेंगे 

इस प्रकार के सभी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए जोधपुर पश्चिमी राजस्थान  प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन ने सोशल मीडिया पर महेश नवमी महोत्सव 2021 जोधपुर के नाम से एक ग्रुप बनाया है 


महेश नवमी महोत्सव 2021 जोधपुर
https://www.facebook.com/groups/336524407880467/?ref=share
यह ग्रुप सम्पूर्ण विश्व में फैले समस्त माहेश्वरी बंधुओं के लिए है। आप सभी माहेश्वरी बंधुओं का इस ग्रुप में स्वागत है। 

आप सभी से निवेदन है कि संपूर्ण भारत वर्ष एवम् विश्व मे फैले माहेश्वरी बंधुओं को इस ग्रुप में जोड़े। 

महेश नवमी महोत्सव 2021 कि प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए इस ग्रुप का सदस्य होना आवश्यक है। सभी ऑनलाइन  कार्यक्रम में अपनी प्रविष्टि ऑनलाइन पोस्ट करने के लिए ग्रुप का सदस्य होना आवश्यक है
महेश नवमी महोत्सव 2021 जोधपुर
https://www.facebook.com/groups/336524407880467/?ref=share

योग व् अन्य वेबिनार कार्यक्रम के लिए अपने मोबाइल में ज़ूम डाउनलोड करके उसे फेसबुक से लॉगिन करे ताकि आपकी फेसबुक प्रोफाइल स्वतः इसमें नाम एवं फोटो के साथ आ जाएगी उसके बाद ज्वाइन मीटिंग पर क्लिक करके सम्बंधित कार्यक्रम की 9 डिजिट मीटिंग आईडी दर्ज करे एवं मीटिंग आईडी के से दिया गया पासवर्ड दर्ज करे उसके बाद ज्वाइन by कंप्यूटर ऑडियो पर क्लिक करे
wifi और cellular डाटा पर क्लिक करे और ऑनलाइन वेबिनार अटेंड करे 

ज्यादा से ज्यादा लोगो को मीटिंग का लिंक भेजे 

सभी को फेसबुक ग्रुप में ऐड करे ताकि सभी कार्यक्रम की जानकारी मिलती रहे 

https://www.facebook.com/groups/336524407880467/?ref=share


 पश्चिमी राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन

संयोजक - रनिश दरगड़ 9828258376

प्रदेश अध्यक्ष - दिनेश राठी

जिला अध्यक्ष - संतोष गांधी

समन्वयक - जितेंद्र गांधी

प्रदेश सांस्कृतिक मंत्री - प्रेरणा राठी

बुधवार, 23 जून 2021

राजस्थान का इतिहास गर्व से लबरेज और यहाँ का जीवन सबसे शुद्ध हैं..!

राजस्थानी लोगों को छोड़कर शेष दुनिया को लगता है कि राजस्थान में पानी नहीं है और यहाँ खून सस्ता व पानी महँगा हैं...
जबकि यहाँ सबसे शुद्धता वाला पानी जमीन में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।

राजस्थान के लोगों को पूरे विश्व में सबसे बड़े कंजूस कृपण समझा जाता है...
जबकि पूरे भारत के 95% बड़े उद्योगपति राजस्थान के हैं, राममंदिर के लिए सबसे ज्यादा धन राजस्थान से मिला है... 
राममंदिर निर्माण में उपयोग होने वाला पत्थर भी राजस्थान का ही है..!

राजस्थान के लोगों के बारे में दुनिया समझती है ये प्याज और मिर्च के साथ रोटी खाने वाले लोग हैं...
जबकि पूरे विश्व मे सर्वोत्तम और सबसे शुद्ध भोजन परम्परा राजस्थान की हैं... 
पूरे विश्व मे सबसे ज्यादा देशी घी की खपत राजस्थान में होती हैं,
यहाँ का बाजरा विश्व के सबसे पौष्टिक अनाज का खिताब लिये हुए है..!

राजस्थानी लोगों को छोड़कर शेष दुनिया को लगता है कि राजस्थान के लोग छप्पर और झौपड़ियों में रहते हैं इन्हें पक्के मकानों की जानकारी कम हैं...
जबकि यहाँ के किले,इमारतें और उन पर अद्भुत नक्काशी विश्व में दूसरी जगह कहीं नही हैं... 
यहाँ अजेय किले और हवेलियाँ हजारों वर्ष पुरानी हैं...
मकराना का मार्बल,जोधपुर व जैसलमेर का पत्थर अपनी अनूठी खूबसूरती के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं !
राजस्थान में चीन की दीवार जैसी ही दूसरी उससे मजबूत दीवार भी है जिसे दुनिया में पहचान नहीं मिली..!

राजस्थानी लोगों को छोड़कर शेष दुनिया को लगता है कि राजस्थान में कुछ भी नहीं... 
जबकि यहाँ पेट्रोलियम का अथाह भंडार मिला है... गैसों का अथाह भंडार मिला है... 
यहाँ कोयले का अथाह भंडार मिला है..!

अकेले राजस्थान में यहाँ की औरतों के पास का सोना इक्ठ्ठा किया जाए तो शेष भारत की औरतों से ज्यादा सोना होगा।
सबसे ज्यादा सोने की बिक्री भी राजस्थान के जोधपुर में होती हैं !

राजस्थान के जलवायु के बारे में दुनिया समझती है यहाँ बंजर भूमि और रेतीले टीले हैं जहाँ आँधियाँ चलती रहती है...
जबकि राजस्थान में कई झीलें ,झरने और अरावली पर्वतमाला के साथ रणथम्भौर पर्वतीय शिखर हैं जो विश्व के टॉप टूरिज्म पैलेस हैं, 
इसके अलावा राजस्थान में झीलों से निकला नमक शेष भारत में 80% नमक की आपूर्ति करता है जो 100%शुद्ध प्राकृतिक नमक हैं,

इसके अलावा भी बहुत सारी ऐसी बातें हैं जिन्हें दुनिया नहीं जानती और यह सब बॉलीवुड की वजह से राजस्थान का नकारात्मक चरित्र गढ़ा गया जिसे दुनियाभर में सच समझा गया..!

राजस्थान में बहन को प्यार से 'बाईसा' कहा जाता है,
यहाँ चार बाईसा हुई जिन्हें हर राजस्थानी बाईसा कहकर ही सम्बोधित करते हैं...
मीरां बाई, करमा बाई, सुगना बाई, नानी बाई और  मीरां ने ईश्वर को प्रेम भक्ति से ऐसा वशीभूत किया कि ईश्वर को आना पड़ा...!
करमा बाई ने निष्ठा भक्ति से ईश्वर को ऐसा अभिभूत किया कि ईश्वर को करमा के हाथ से खाना पड़ा...।
सुगना बाई ने राजस्थान की पीहर और ससुराल परम्परा का ऐसा अनूठा स्त्रीत्व भक्ति पालन किया कि ईश्वर को उनका उद्गार सुनना पड़ा
और नानी बाई ने ईश्वर की ऐसी विश्वास भक्ति की की ईश्वर को उनके घर आना पड़ा। 
ये सब इसी युग में वर्तमान में हुआ जिनकी भक्ति आस्था और निष्ठा को राजस्थान के हर मंच से गाया जाता है...
नारी भक्ति का ऐसा उदाहरण शेष विश्व में और कहीं नही।

यहाँ राजस्थान की बलुई मिट्टी पूनम की रात में कुंदन की तरह चमककर स्वर्ण का आभास कराती हैं... 
इन्ही पहाड़ो की वजह से इसे 'मरुधरा' कहा जाता है..!
राजस्थान का इतिहास गर्व से लबरेज और यहाँ का जीवन सबसे शुद्ध हैं..!
कण कण वंदनीय और गाँव- गाँव एक इतिहास में दर्ज कहानियों पर खड़ा है..!✍️आनंद के चर्मोत्कर्ष पर *🙏🙏*

कुत्ता 🐶पालने वाले हिन्दू, हिन्दुत्व की निम्न बातों को ध्यान में रखते हुए कुत्तों से दूर रहें

*कुत्ता 🐶पालने वाले हिन्दू,  हिन्दुत्व की निम्न बातों को ध्यान में रखते हुए कुत्तों से दूर रहें* 
*1. जिसके घर में कुत्ता🐕 होता है  उसके यहाँ देवता हविष्य (भोजन) ग्रहण नहीं करते ।*

2. यदि कुत्ता घर में हो और किसी का देहांत हो जाए तो देवताओं तक पहुँचने वाली वस्तुएं देवता स्वीकार नहीं करते, अत: यह मुक्ति में बाधा हो सकता है ।

3. कुत्ते के छू जाने पर द्विजों के यज्ञोपवीत खंडित हो जाते हैं, अत: धर्मानुसार कुत्ता पालने वालों के यहाँ ब्राह्मणों को नहीं जाना चाहिए ।

4. कुत्ते के सूंघने मात्र से प्रायश्चित्त का विधान है, कुत्ता यदि हमें सूंघ ले तो हम अपवित्र हो जाते हैं ।

5. कुत्ता किसी भी वर्ण के यहाँ पालने का विधान नहीं है, कुत्ता प्रतिलोमाज वर्ण संकरों (अत्यंत नीच जाति जो कुत्ते का मांस तक खाती है) के यहाँ ही पलने योग्य है ।

6. और तो और अन्य वर्ण यदि कुत्ता पालते हैं तो वे भी उसी नीचता को प्राप्त हो जाते हैं।

7. कुत्ते की दृष्टि जिस भोजन पर पड़ जाती है वह भोजन खाने योग्य नहीं रह जाता। और यही कारण है कि जहाँ कुत्ता पला हो वहाँ  जाना  नहीं चाहिए ।

उपरोक्त सभी बातें शास्त्रीय हैं, अन्यथा ना लें,ये कपोल कल्पित बातें नहीं है।

*इस विषय पर कुतर्क करने वाला व्यक्ति यह भी स्मरण रखे कि...
         
*कुत्ते के साथ व्यवहार के कारण तो युधिष्ठिर को भी स्वर्ग के बाहर ही रोक दिया गया था।

घर मे कुत्ता पालने का शास्त्रीय शंका समाधान!!!!!!

महाभारत में महाप्रस्थानिक/स्वर्गारोहण पर्व का अंतिम अध्याय,
इंद्र ,धर्मराज और युधिष्ठिर संवाद में इस बात का उल्लेख है।

जब युधिष्ठिर ने पूछा कि मेरे साथ साथ यंहा तक आने वाले इस कुत्ते को मैं अपने साथ स्वर्ग क्यो नही ले जा सकता, तब इंद्र ने कहा।         

इंद्र उवाच!!!!!!!
           ⬇️
हे राजन कुत्ता पालने वाले के लिए स्वर्ग में स्थान नही है ! ऐसे व्यक्तियों का स्वर्ग में प्रवेश वर्जित है। कुत्ते से पालित घर मे किये गए यज्ञ,और पुण्य कर्म के फल को क्रोधवश नामक राक्षस उसका हरण कर लेते है और तो और उस घर के व्यक्ति जो कोई दान, पुण्य, स्वाध्याय, हवन और कुवा बावड़ी इत्यादि बनाने के जो भी पुण्य फल इकट्ठा होता है, वह सब घर में कुत्ते की उपस्थित और उसकी दृष्टि पड़ने मात्र से निष्फल हो जाता है ।

 इसलिए कुत्ते का घर मेपालना निषिद्ध और वर्जित है।

  कुत्ते का संरक्षण होना चाहिए ,उसे भोजन देना चाहिए, घर की रोज की एक रोटी पे कुत्ते का अधिकार है! इस पशु को कभी प्रताड़ित नहीं करना चाहिए और दूर से ही इसकी सेवा करनी चाहिए परंतु घर के बाहर, घर के अंदर नहीं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अवारा कुत्तों को दूध रोटी डालने से राहु,केतु शांत होते हैं व जातक की परेशानी दूर होती है!
 यह शास्त्र मत है।

अतिथि और गाय,घर के अंदर
कुत्ता, कौवा, चींटी घर के बाहर, ही फलदाई होते हैं।

यह लेख शास्त्र और धर्मावलंबियों के लिए है। आधुनिक विचारधारा के लोग इससे सहमत या असहमत होने के लिए बाध्य नहीं है। इसलिए उन लोगो से अनुरोध है कि इस पोस्ट पे फालतू की कमेंट न करने की कृपा करें।
                
गाय, बूढ़े मातापिता,क्रमशः दिल, घर, शहर से निकलते हुए।गौशालाओं व वृध्दाश्रम मे पहुंच गए,और कुत्ते,घर के बाहर से घर, सोफे, बिस्तर से होते हुए दिल मे पहुंच गए,यही सांस्कृतिक पतन हैं।

साभार संकलन -
सनातन सेवा समिति!

तिरुपति बालाजी को गोविंदा क्यों कहते है

तिरुपति बालाजी को गोविंदा क्यों कहते है

यह एक अत्यंत रोचक घटना है
माँ महालक्ष्मी की खोज में भगवान विष्णु जब भूलोक पर आए, तब यह सुंदर घटना घटी। भूलोक में प्रवेश करते ही उन्हें भूख एवं प्यास मानवीय गुण प्राप्त हुए।

भगवान श्रीनिवास ऋषि अगस्त्य के आश्रम में गए और बोले, "मुनिवर मैं एक विशिष्ट मुहिम से भूलोक पर (पृथ्वी) पर आया हूँ और कलयुग का अंत होने तक यहीं रहूंगा। मुझे गाय का दूध अत्यंत पसंद है। और और मुझे अन्न के रूप में उसकी आवश्यकता है। मैं जानता हूँ कि आपके पास एक बड़ी गौशाला है, उसमें अनेक गाएँ हैं, मुझे आप एक गाय दे सकते हैं क्या?"

ऋषि अगस्त्य हँसे और कहने लगे, "स्वामी मुझे पता है कि आप श्रीनिवास के मानव स्वरूप में, श्रीविष्णु हैं। मुझे अत्यंत आनंद है कि इस विश्व के निर्माता और शासक स्वयं मेरे आश्रम में आए हैं। मुझे यह भी पता है की आपने मेरी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए यह मार्ग अपनाया है। फिर भी स्वामी, मेरी एक शर्त है कि मेरी गौशाला की पवित्र गाय केवल ऐसे व्यक्ति को मिलनी चाहिए जो उसकी पत्नी संग यहाँ आए। मुझे आप को उपहार स्वरूप गाय देना अच्छा लगेगा, परंतु जब आप मेरे आश्रम में देवी लक्ष्मी संग आइएगा और गौदान देने के लिए पूछेंगे, तभी मैं ऐसा कर पाऊँगा।"

भगवान श्रीनिवास हँसे और बोले ठीक है मुनिवर, "तुम्हें जो चाहिए वह मैं करूँगा," ऐसा कहकर वे वापस चले गए।

बाद में भगवान श्रीनिवास ने देवी पद्मावती से विवाह किया।

विवाह के कुछ दिन पश्चात भगवान श्रीनिवास पत्नी दिव्य पत्नी पद्मावती के साथ ऋषि अगस्त्य महामुनि के आश्रम में आए पर उस वक्त ऋषि आश्रम में नहीं थे।

भगवान श्रीनिवासन से उनके शिष्यों ने पूछा, "आप कौन हैं और हम आपके लिए क्या कर सकते हैं?"

प्रभु ने उत्तर दिया, "मेरा नाम श्रीनिवासन है और यह मेरी पत्नी पद्मावती है। आपके आचार्य को मैंने मेरी रोज की आवश्यकता के लिए एक गाय दान करने के लिए कहा था परंतु उन्होंने कहा था कि पत्नी के साथ आकर दान मांगेंगे तभी मैं गाय दान दूंगा। यह आपके आचार्य की शर्त थी इसीलिए मैं अब पत्नी संग आया हूँ।"

शिष्यों ने विनम्रता से कहा, "हमारे आचार्य आश्रम में नहीं है इसीलिए कृपया आप गाय लेने के लिए बाद में आइये।"

श्रीनिवासन हंँसे और कहने लगे, "मैं आपकी बात से सहमत हूंँ, परंतु मैं संपूर्ण जगत का सर्वोच्च शासक हूंँ, इसीलिए आप सभी शिष्यगण मुझ पर विश्वास रख सकते हैं और मुझे एक गाय दे सकते हैं, मैं फिर से नहीं आ सकता।"

शिष्यों ने कहा, "निश्चित रूप से आप धरती के शासक हैं बल्कि यह संपूर्ण विश्व भी आपका ही है परंतु हमारे दिव्य आचार्य हमारे लिए सर्वोच्च हैं और उनकी आज्ञा के बिना हम कोई भी काम नहीं कर सकते।"

धीरे-धीरे हंसते हुए भगवान कहने लगे, "आपके आचार्य का आदर करता हूँ। कृपया वापस आने पर आचार्य को बताइए कि मैं सपत्नीक आया था।" ऐसा कहकर भगवान श्रीनिवासन तिरुमाला की दिशा में जाने लगे।

कुछ मिनटों में ऋषि अगस्त्य आश्रम में वापस आए, और जब उन्हें इस बात का पता लगा तो वे अत्यंत निराश हुए और इस प्रकार कथन किया, "श्रीमन नारायण स्वयं माँ लक्ष्मी के संग मेरे आश्रम में आए थे। दुर्भाग्यवश मेैं आश्रम में नहीं था, यह तो बड़ा अनर्थ हुआ। फिर भी कोई बात नहीं प्रभु को जो गाय चाहिए थी वह तो देना ही चाहिए।"

ऋषि तुरंत गौशाला में दाखिल हुए और एक पवित्र गाय लेकर भगवान श्रीनिवास और देवी पद्मावती की दिशा में भागते हुए निकले। थोड़ी दूरी पर श्रीनिवास एवं पत्नी पद्मावती उन्हें नजर आए।

उनके पीछे भागते हुए ऋषि तेलुगु भाषा में पुकारने लगे, "स्वामी (देवा) गोवु (गाय) इंदा (ले जाओ), स्वामी, गोवु इंदा... स्वामी, गोवु इंदा... स्वामी, गोवु इंदा... स्वामी, गोवु इंदा... (स्वामी गाय ले जाइए)..।"

कई बार पुकारने के पश्चात भी भगवान ने नहीं देखा, इधर मुनि ने अपनी गति बढ़ाई और स्वामी ने पुकारे हुए शब्दों को सुनना शुरू किया।

भगवान की लीला उन शब्दों का रूपांतर क्या हो गया। स्वामी गोविंदा, स्वामी गोविंदा, स्वामी गोविंदा, गोविंदा गोविंदा गोविंदा!!

ऋषि के बार बार पुकारने के पश्चात भगवान श्रीनिवास वेंकटेश्वर एवं देवी पद्मावती वापिस मुड़े और ऋषि से पवित्र गाय स्वीकार की ।

प्रभु बोले, "मुनिवर तुमने ज्ञात अथवा अज्ञात अवस्था में मेरे सबसे प्रिय नाम गोविंदा को 108 बार बोल दिया है। कलयुग के अंत तक पवित्र सप्त पहाड़ियों पर मूर्ति के रूप में भूलोक पर रहूँगा और मुझे मेरे सभी भक्त "गोविंदा" नाम से पुकारेंगे। भक्त पहाड़ी पर चढ़ते हुए अथवा मंदिर में मेरे सामने मुझे गोविंदा नाम से पुकारेंगे। मुनिराज कृपया ध्यान दीजिए, हर समय मुझे इस नाम से पुकारे जाते वक्त आपको भी स्मरण किया जाएगा क्योंकि इस प्रेम भरे नाम का कारण आप हैं। यदि किसी भी कारणवश कोई भक्त मंदिर में आने में असमर्थ रहेगा और मेरे गोविंदा नाम का स्मरण करेगा। तब उसकी सारी आवश्यकता मैं पूरी करूँगा। सात पहाड़ियों पर चढ़ते हुए जो गोविंदा नाम को पुकारेगा उन सभी श्रद्धालुओं को मैं मोक्ष दूंगा।"

*गोविंदा हरि गोविन्दा वेंकटरमणा गोविंदा, श्रीनिवासा गोविन्दा वेंकटरमणा गोविन्दा!!*

*चलने वाले पैरों में कितना फर्क है‚ एक आगे तो एक पीछे‚*

*पर न तो आगे वाले कोʺअभिमान‘ है और ना पीछे वाले को ʺअपमान‘*।

*क्योंकि उन्हें पता होता है कि पलभर में ये बदलने वाला होता है। इसी को जिन्दगी कहते हैं*।......

सोमवार, 21 जून 2021

जोधपुर में महेश नवमी महोत्सव 2021 में कई आकर्षक कार्यक्रम ऑनलाइन एवं ऑफलाइन किए गये

जय महेश , 
आप सभी महानुभवों को महेश नवमी की हार्दिक बधाई व अनंत शुभकामनाएं..💐🙏🏻

महेश नवमी के पावन उत्सव पर सम्पूर्ण भारत में युवा साथियों द्वारा कई  आकर्षक कार्यक्रम किए गए 

*महेश नवमी महोत्सव 2021*


:- भगवान महेश की पुजा- अर्चना एवं अभिषेक

:- भगवान महेश को भोग लगाकर महेश भोग (महाप्रसाद) का सम्पूर्ण माहेश्वरी समाज में वितरण 

एवं कोरोना से बचाव के लिए समाज के संपूर्ण परिवारों में मास्क का वितरण  
इसके अलावा महेश नवमी सप्ताह में माहेश्वरी समाज द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम जिसमे  रंगोली प्रतियोगिता (महेश नवमी पर अपने घर आंगन में), पौधारोपण के साथ सेल्फी, रक्तदान शिविर, कोविड टीकाकरण जागरूकता एवं टीकाकरण शिविर में सहयोग, एक शाम भगवान महेश के नाम , योग प्रशिक्षण शिविर,  स्वास्थ्य, कोविड, संस्कार एवं व्यापार संबंधित ऑनलाइन वेबिनार कार्यक्रम, गणित/विज्ञान/धार्मिक प्रश्नोत्तरी एवं प्रतियोगिता ऑनलाइन, ऑनलाइन तंबोला निशुल्क , ऑनलाइन शतरंज प्रतियोगिता,  निबंध प्रतियोगिता ऑनलाइन, गीता श्लोक संबंधित कार्यक्रम, भगवान महेश के ऊपर कोई भी गीत-भजन-गाने की प्रतियोगिता आदि का आयोजन सफलतापूर्वक किया गया 
इसी कड़ी में एक छोटा सा प्रयास *जोधपुर जिला माहेश्वरी युवा संगठन* के साथ मिलकर *पश्चिमी राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन* द्वारा भी किया गया जिसमें जोधपुर क़े लगभग सभी *माहेश्वरी परिवारों* तक युवा साथियों द्वारा महेश नवमी के पावन पर्व पर कोरोना महामारी को देखते हुए इसके बचाव हेतु 5000*मास्क* का वितरण किया गया ! 
मास्क के साथ मात्र 2 दिनो में जोधपुर के लगभग 170 युवा साथियों के सहयोग से हमारे आराध्य देव भगवान महेश के भोग लगा  *1151 किलो महाप्रसाद( महेश भोग )* का वितरण भी समाज के 4600 परिवारों तक घर घर जाकर पहुँचाने का प्रयास किया गया एवं उन्हें युवा संगठन के कार्यो से अवगत करवाया गया । 


चुकी सम्पूर्ण पश्चिमी राजस्थान प्रदेश मे जोधपुर महानगर सबसे बड़ा इलाक़ा है इसलिए *प्रथम चरण* में जोधपुर जिला माहेश्वरी युवा संगठन के सहयोग से प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन द्वारा यहाँ के सभी परिवारों तक पहुँचने के लिए ये कार्य किया गया ताकी हर घर तक युवा संगठन पहुँच सके ओर समाज हित के क़ार्य कर सके । 

अगले चरण में किसी ओर रूप के साथ सम्पूर्ण प्रदेश के माहेश्वरी परिवारों तक पहुँचने के लिए संगठन द्वारा कार्य किया जाएगा । 

उसके लिए सभी युवा साथियों का दिल से धन्यवाद । 
साभार  *दिनेश राठी* अध्यक्ष
एवं समस्त *पश्चिमी राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी युवा संगठन*


जानिए कलयुग क्या है?

मित्रो आज हम आपको कलयुग के गुण और अवगुण बतायेंगे, रामचरितमानस के उत्तरकांड में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कलयुग का बहुत सटीक वर्णन किया है, लेकिन इससे पहले जानिए कलयुग क्या है?

कलयुग क्या है ? 

कलयुग का सीधा सा अर्थ है कलह। जहाँ भी कलह है वहां पर कलयुग है। जब भगवान श्री कृष्ण जी अपनी लीला करके अपने लोक में चले गए थे उसी समय से द्वापर युग खत्म हो गया था और कलयुग का आगमन हो गया है।

कलयुग कितने साल का है। हमारे शास्त्रों में बताया गया है की कलयुग 4,32,000 वर्ष तक रहेगा। जिसकी गणना इस प्रकार की गई है।

पुराण के मुताबिक मानव का एक वर्ष देवताओं के एक अहोरात्र यानी दिन-रात के बराबर है। जिसमें उत्तरायण दिन व दक्षिणायन रात मानी जाती है। दरअसल, एक सूर्य संक्रान्ति से दूसरी सूर्य संक्रान्ति की अवधि सौर मास कहलाती है। मानव गणना के ऐसे 12 सौर मासों का 1 सौर वर्ष ही देवताओं का एक अहोरात्र होता है। ऐसे ही 30 अहोरात्र, देवताओं के एक माह और 12 मास एक दिव्य वर्ष कहलाता है।

देवताओं के इन दिव्य वर्षो के आधार पर चार युगों की मानव सौर वर्षों में अवधि इस तरह है,

सतयुग 4800 (दिव्य वर्ष) 17,28,000 (सौर वर्ष)
त्रेतायुग 3600 (दिव्य वर्ष) 12,96,100 (सौर वर्ष)
द्वापरयुग 2400 (दिव्य वर्ष) 8,64,000 (सौर वर्ष)
कलियुग 1200 (दिव्य वर्ष) 4,32,000 (सौर वर्ष)

उस समय घोर कलयुग आएगा जिस समय माँ गंगा और गोवर्धन पर्वत लुप्त हो जायेंगे। क्योंकि इन दोनों को श्राप है। पढ़िए इस कलयुग में क्या-क्या घटित होगा।

 कलयुग के अवगुण और लक्षण,,,,

श्री तुलसीदासकृत रामचरतिमानस में इसका वर्णन आया है। काकभुशुण्डि जी गरुड़ जी को बता रहे हैं कलयुग के लक्षण और प्रभाव-

नर-नारी पापपरायण (पापों में लिप्त) रहेंगें॥ कलियुग के पापों ने सब धर्मों को ग्रस लिया, सद्ग्रंथ लुप्त हो गए, दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर-करके बहुत से पंथ प्रकट कर दिए॥ सभी लोग मोह के वश हो गए, शुभ कर्मों को लोभ ने हड़प लिया।

कलियुग में न वर्णधर्म रहता है, न चारों आश्रम रहते हैं। सब पुरुष-स्त्री वेद के विरोध में लगे रहते हैं। ब्राह्मण वेदों के बेचने वाले और राजा प्रजा को खा डालने वाले होते हैं। वेद की आज्ञा कोई नहीं मानता॥ जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग है। जो डींग मारता है, वही पंडित है। जो मिथ्या आरंभ करता (आडंबर रचता) है और जो दंभ में रत है, उसी को सब कोई संत कहते हैं॥

जो (जिस किसी प्रकार से) दूसरे का धन हरण कर ले, वही बुद्धिमान है। जो दंभ करता है, वही बड़ा आचारी है। जो झूठ बोलता है और हँसी-दिल्लगी करना जानता है, कलियुग में वही गुणवान कहा जाता है॥

जो आचारहीन है और वेदमार्ग को छोड़े हुए है, कलियुग में वही ज्ञानी और वही वैराग्यवान् है। जिसके बड़े-बड़े नख और लंबी-लंबी जटाएँ हैं, वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी है॥

जो अमंगल वेष और अमंगल भूषण धारण करते हैं और भक्ष्य-भक्ष्य (खाने योग्य और न खाने योग्य) सब कुछ खा लेते हैं वे ही योगी हैं, वे ही सिद्ध हैं और वे ही मनुष्य कलियुग में पूज्य हैं॥

जिनके आचरण दूसरों का अपकार (अहित) करने वाले हैं, उन्हीं का बड़ा गौरव होता है और वे ही सम्मान के योग्य होते हैं। जो मन, वचन और कर्म से लबार (झूठ बकने वाले) हैं, वे ही कलियुग में वक्ता माने जाते हैं॥

सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वश में हैं और बाजीगर के बंदर की तरह (उनके नचाए) नाचते हैं। ब्राह्मणों को शूद्र ज्ञानोपदेश करते हैं और गले में जनेऊ डालकर कुत्सित दान लेते हैं॥

सभी पुरुष काम और लोभ में तत्पर और क्रोधी होते हैं। देवता, ब्राह्मण, वेद और संतों के विरोधी होते हैं। अभागिनी स्त्रियाँ गुणों के धाम सुंदर पति को छोड़कर पर पुरुष का सेवन करती हैं॥

सुहागिनी स्त्रियाँ तो आभूषणों से रहित होती हैं, पर विधवाओं के नित्य नए श्रृंगार होते हैं।

शिष्य और गुरु में बहरे और अंधे का सा हिसाब होता है। एक (शिष्य) गुरु के उपदेश को सुनता नहीं, एक (गुरु) देखता नहीं (उसे ज्ञानदृष्टि) प्राप्त नहीं है)॥

जो गुरु शिष्य का धन हरण करता है, पर शोक नहीं हरण करता, वह घोर नरक में पड़ता है। माता-पिता बालकों को बुलाकर वही धर्म सिखलाते हैं, जिससे पेट भरे॥

स्त्री-पुरुष ब्रह्मज्ञान के सिवा दूसरी बात नहीं करते, पर वे लोभवश कौड़ियों (बहुत थोड़े लाभ) के लिए ब्राह्मण और गुरु की हत्या कर डालते हैं॥

शूद्र ब्राह्मणों से विवाद करते हैं (और कहते हैं) कि हम क्या तुमसे कुछ कम हैं? जो ब्रह्म को जानता है वही श्रेष्ठ ब्राह्मण है। (ऐसा कहकर) वे उन्हें डाँटकर आँखें दिखलाते हैं॥

संत जन बताते हैं की यहाँ शुद्र का मतलब किसी जाति से नहीं बल्कि नीच आचरण करने वाले से है। और ब्राह्मण का अर्थ जो मन कर्म वचन से किसी का बुरा नही करता और जीव मात्र में परमात्मा का दर्शन करके उसकी(परमात्मा) भक्ति करता है।

जो पराई स्त्री में आसक्त, कपट करने में चतुर और मोह, द्रोह और ममता में लिपटे हुए हैं, वे ही मनुष्य अभेदवादी (ब्रह्म और जीव को एक बताने वाले) ज्ञानी हैं। मैंने उस कलियुग का यह चरित्र देखा॥

वे स्वयं तो नष्ट हुए ही रहते हैं, जो कहीं सन्मार्ग का प्रतिपालन करते हैं, उनको भी वे नष्ट कर देते हैं। जो तर्क करके वेद की निंदा करते हैं, वे लोग कल्प-कल्पभर एक-एक नरक में पड़े रहते हैं॥

तेली, कुम्हार, चाण्डाल, भील, कोल और कलवार आदि जो वर्ण में नीचे हैं, स्त्री के मरने पर अथवा घर की संपत्ति नष्ट हो जाने पर सिर मुँड़ाकर संन्यासी हो जाते हैं॥

वे अपने को ब्राह्मणों से पुजवाते हैं और अपने ही हाथों दोनों लोक नष्ट करते हैं। ब्राह्मण अपढ़, लोभी, कामी, आचारहीन, मूर्ख और नीची जाति की व्यभिचारिणी स्त्रियों के स्वामी होते हैं॥

शूद्र नाना प्रकार के जप, तप और व्रत करते हैं तथा ऊँचे आसन (व्यास गद्दी) पर बैठकर पुराण कहते हैं। सब मनुष्य मनमाना आचरण करते हैं। अपार अनीति का वर्णन नहीं किया जा सकता॥

कलियुग में सब लोग वर्णसंकर और मर्यादा से च्युत हो गए। वे पाप करते हैं और (उनके फलस्वरूप) दुःख, भय, रोग, शोक और (प्रिय वस्तु का) वियोग पाते हैं॥

वेद सम्मत तथा वैराग्य और ज्ञान से युक्त जो हरिभक्ति का मार्ग है, मोहवश मनुष्य उस पर नहीं चलते और अनेकों नए-नए पंथों की कल्पना करते हैं॥

संन्यासी बहुत धन लगाकर घर सजाते हैं। उनमें वैराग्य नहीं रहा, उसे विषयों ने हर लिया। तपस्वी धनवान हो गए और गृहस्थ दरिद्र। हे तात! कलियुग की लीला कुछ कही नहीं जाती॥

कुलवती और सती स्त्री को पुरुष घर से निकाल देते हैं और अच्छी चाल को छोड़कर घर में दासी को ला रखते हैं। पुत्र अपने माता-पिता को तभी तक मानते हैं, जब तक स्त्री का मुँह नहीं दिखाई पड़ता॥

जब से ससुराल प्यारी लगने लगी, तब से कुटुम्बी शत्रु रूप हो गए। राजा लोग पाप परायण हो गए, उनमें धर्म नहीं रहा। वे प्रजा को नित्य ही (बिना अपराध) दंड देकर उसकी विडंबना (दुर्दशा) किया करते हैं॥

धनी लोग मलिन (नीच जाति के) होने पर भी कुलीन माने जाते हैं। द्विज का चिह्न जनेऊ मात्र रह गया और नंगे बदन रहना तपस्वी का। जो वेदों और पुराणों को नहीं मानते, कलियुग में वे ही हरिभक्त और सच्चे संत कहलाते हैं॥

कवियों के तो झुंड हो गए, पर दुनिया में उदार (कवियों का आश्रयदाता) सुनाई नहीं पड़ता। गुण में दोष लगाने वाले बहुत हैं, पर गुणी कोई भी नहीं। कलियुग में बार-बार अकाल पड़ते हैं। अन्न के बिना सब लोग दुःखी होकर मरते हैं॥

कलियुग में कपट, हठ (दुराग्रह), दम्भ, द्वेष, पाखंड, मान, मोह और काम आदि (अर्थात् काम, क्रोध और लोभ) और मद ब्रह्माण्डभर में व्याप्त हो गए (छा गए)॥

मनुष्य जप, तप, यज्ञ, व्रत और दान आदि धर्म तामसी भाव से करने लगे। देवता (इंद्र) पृथ्वी पर जल नहीं बरसाते और बोया हुआ अन्न उगता नहीं॥

स्त्रियों के बाल ही भूषण हैं (उनके शरीर पर कोई आभूषण नहीं रह गया) और उनको भूख बहुत लगती है (अर्थात् वे सदा अतृप्त ही रहती हैं)। वे धनहीन और बहुत प्रकार की ममता होने के कारण दुःखी रहती हैं। वे मूर्ख सुख चाहती हैं, पर धर्म में उनका प्रेम नहीं है। बुद्धि थोड़ी है और कठोर है, उनमें कोमलता नहीं है॥

मनुष्य रोगों से पीड़ित हैं, भोग (सुख) कहीं नहीं है। बिना ही कारण अभिमान और विरोध करते हैं। दस-पाँच वर्ष का थोड़ा सा जीवन है, परंतु घमंड ऐसा है मानो कल्पांत (प्रलय) होने पर भी उनका नाश नहीं होगा॥

कलिकाल ने मनुष्य को बेहाल (अस्त-व्यस्त) कर डाला। कोई बहिन-बेटी का भी विचार नहीं करता। (लोगों में) न संतोष है, न विवेक है और न शीतलता है। जाति, कुजाति सभी लोग भीख माँगने वाले हो गए॥

ईर्षा (डाह), कडुवे वचन और लालच भरपूर हो रहे हैं, समता चली गई। सब लोग वियोग और विशेष शोक से मरे पड़े हैं। वर्णाश्रम धर्म के आचरण नष्ट हो गए॥

इंद्रियों का दमन, दान, दया और समझदारी किसी में नहीं रही। मूर्खता और दूसरों को ठगना, यह बहुत अधिक बढ़ गया। स्त्री-पुरुष सभी शरीर के ही पालन-पोषण में लगे रहते हैं। जो पराई निंदा करने वाले हैं, जगत् में वे ही फैले हैं॥  

कलिकाल पाप और अवगुणों का घर है, किंतु कलियुग में एक गुण भी बड़ा है कि उसमें बिना ही परिश्रम भवबंधन से छुटकारा मिल जाता है॥ सुनु ब्यालारि काल कलि मल अवगुन आगार। गुनउ बहुत कलिजुग कर बिनु प्रयास निस्तार॥

कलियुग केवल नाम अधारा , सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा : कलयुग में केवल भगवान का नाम ही भवसागर से पार उतरने का साधन है केवल भगवान का नाम सुमिरन से इस भवसागर से पार पाया जा सकता है।

कृतजुग त्रेताँ द्वापर पूजा मख अरु जोग। जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग॥ सत्ययुग, त्रेता और द्वापर में जो गति पूजा, यज्ञ और योग से प्राप्त होती है, वही गति कलियुग में लोग केवल भगवान्‌ के नाम से पा जाते हैं॥

सत्ययुग में सब योगी और विज्ञानी होते हैं। हरि का ध्यान करके सब प्राणी भवसागर से तर जाते हैं। त्रेता में मनुष्य अनेक प्रकार के यज्ञ करते हैं और सब कर्मों को प्रभु को समर्पण करके भवसागर से पार हो जाते हैं॥ द्वापर में श्री रघुनाथजी के चरणों की पूजा करके मनुष्य संसार से तर जाते हैं, दूसरा कोई उपाय नहीं है और कलियुग में तो केवल श्री हरि की गुणगाथाओं का गान करने से ही मनुष्य भवसागर की थाह पा जाते हैं॥ कलिजुग केवल हरि गुन गाहा। गावत नर पावहिं भव थाहा॥

कलियुग में न तो योग और यज्ञ है और न ज्ञान ही है। श्री रामजी का गुणगान ही एकमात्र आधार है। अतएव सारे भरोसे त्यागकर जो श्री रामजी को भजता है और प्रेमसहित उनके गुणसमूहों को गाता है, वही भवसागर से तर जाता है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं।

 कलियुग का एक पवित्र प्रताप (महिमा) है कि मानसिक पुण्य तो होते हैं, पर (मानसिक) पाप नहीं होते॥

कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास। गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास॥

यदि मनुष्य विश्वास करे, तो कलियुग के समान दूसरा युग नहीं है, (क्योंकि) इस युग में श्री रामजी के निर्मल गुणसमूहों को गा-गाकर मनुष्य बिना ही परिश्रम संसार (रूपी समुद्र) से तर जाता है॥

शुद्ध सत्त्वगुण, समता, विज्ञान और मन का प्रसन्न होना, इसे सत्ययुग का प्रभाव जानें॥

सत्त्वगुण अधिक हो, कुछ रजोगुण हो, कर्मों में प्रीति हो, सब प्रकार से सुख हो, यह त्रेता का धर्म है।

रजोगुण बहुत हो, सत्त्वगुण बहुत ही थोड़ा हो, कुछ तमोगुण हो, मन में हर्ष और भय हो, यह द्वापर का धर्म है॥

तमोगुण बहुत हो, रजोगुण थोड़ा हो, चारों ओर वैर-विरोध हो, यह कलियुग का प्रभाव है।

जिसका श्री रघुनाथजी के चरणों में अत्यंत प्रेम है, उसको कालधर्म (युगधर्म) नहीं व्यापते।

एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा॥ 
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि। संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि॥

तुलसीदासजी कहते हैं- इस कलिकाल में योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत और पूजन आदि कोई दूसरा साधन नहीं है। बस, श्री रामजी का ही स्मरण करना, श्री रामजी का ही गुण गाना और निरंतर श्री रामजी के ही गुणसमूहों को सुनना चाहिए॥

नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु। कलियुग में राम का नाम कल्पतरु (मन चाहा पदार्थ देने वाला) और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर) है।

और इसके बाद कह दिया केवल कलियुग की ही बात नहीं है, चारों युगों में, तीनों काल में और तीनों लोकों में नाम को जपकर जीव शोकरहित हुए हैं।

राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥ कलियुग में यह राम नाम मनोवांछित फल देने वाला है, परलोक का परम हितैषी और इस लोक का माता-पिता है (अर्थात परलोक में भगवान का परमधाम देता है और इस लोक में माता-पिता के समान सब प्रकार से पालन और रक्षण करता है।)

कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है, राम नाम ही एक आधार है। नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥

भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव (बैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है।

इसलिए सब चिंता, भय छोड़कर, मन क्रम और वाणी से भगवान का नाम जपिए और सत्कर्म कीजिये।

रविवार, 20 जून 2021

21 जून 2021 सोमवार को निर्जला एकादशी / भीम एकादशी का व्रत (उपवास) रखें

निर्जला एकादशी 


💥21 जून 2021 सोमवार को निर्जला एकादशी / भीम एकादशी का व्रत (उपवास) रखें ।
एकादशी तिथि प्रारंभ - 20 जून , रविवार को शाम 4 बजकर 21 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समापन - 21 जून , सोमवार को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट तक.....व्रत 21 जून सोमवार को करना है।
युधिष्ठिर ने कहा : जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो , कृपया उसका वर्णन कीजिये ।


 भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवतीनन्दन व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं ।
 
तब वेदव्यासजी कहने लगे : दोनों ही पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन न करे । द्वादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र हो फूलों से भगवान केशव की पूजा करे । फिर नित्य कर्म समाप्त होने के पश्चात् पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे । राजन् ! जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए ।
 
यह सुनकर भीमसेन बोले : परम बुद्धिमान पितामह ! मेरी उत्तम बात सुनिये । राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि : ‘भीमसेन ! तुम भी एकादशी को न खाया करो…’ किन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी ।
 
भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा : यदि तुम्हें स्वर्ग लोक की प्राप्ति अभीष्ट है और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशीयों के दिन भोजन न करना ।
 
भीमसेन बोले : महाबुद्धिमान पितामह ! मैं आपके सामने सच्ची बात कहता हूँ । एक बार भोजन करके भी मुझसे व्रत नहीं किया जा सकता, फिर उपवास करके तो मैं रह ही कैसे सकता हूँ ? मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ , तभी यह शांत होती है । इसलिए महामुने ! मैं वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ । जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये । मैं उसका यथोचित रुप से पालन करुँगा ।
 
व्यासजी ने कहा : भीम ! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर , शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो , उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो । केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले , अन्यथा व्रत भंग हो जाता है । एकादशी को सूर्यौदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्यौदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है । तदनन्तर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे । इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे । वर्षभर में जितनी एकादशीयाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है , इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है । शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि: ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है ।
 
एकादशी व्रत करनेवाले पुरुष के पास विशालकाय , विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते । अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाववाले , हाथ में सुदर्शन धारण करने वाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आखिर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं । अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास और श्रीहरि का पूजन करो । स्त्री हो या पुरुष , यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है । जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है , वह पुण्य का भागी होता है । उसे एक एक प्रहर में कोटि कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है । मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान , दान , जप , होम आदि जो कुछ भी करता है , वह सब अक्षय होता है , यह भगवान श्री कृष्ण का कथन है । निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है । जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है , वह पाप का भोजन करता है । इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है ।
 
जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे , वे परम पद को प्राप्त होंगे । जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है , वे ब्रह्महत्यारे , शराबी , चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं ।
 
कुन्तीनन्दन ! ‘ निर्जला एकादशी ’ के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं , उन्हें सुनो: उस दिन जल में शयन करनेवाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करना चाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है । पर्याप्त दक्षिणा और भाँति भाँति के मिष्ठान्नों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए । ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं । जिन्होंने शम , दम , और दान में प्रवृत हो श्री हरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस ‘ निर्जला एकादशी ’ का व्रत किया है , उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है । निर्जला एकादशी के दिन अन्न , वस्त्र , गौ , जल , शैय्या , सुन्दर आसन , कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए । जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है , वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है । जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है । चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है , वही फल इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है । पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि : ‘मैं भगवान केशव की प्रसन्न्ता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा ।’ द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए । गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र से विधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे :
 
🌷 देवदेव ह्रषीकेश संसारार्णवतारक ।
उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥
 
संसारसागर से तारनेवाले हे देवदेव ह्रषीकेश ! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये ।
 
भीमसेन ! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है , उसका निर्जल व्रत करना चाहिए । उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है । तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे । जो इस प्रकार पूर्ण रुप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है ।
 
यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया । तबसे यह लोक मे ‘पाण्डव द्वादशी’ के नाम से विख्यात हुई ।
   
●▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬● 
#_____🕉_जय_श्री_कृष्णा_🕉____
#______🕉_Զเधे_Զเधे_🕉______
●▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬●

गंगा दशहरा जून 20, 2021 विशेषगंगा पूजन एवं अवतरण की कथा

गंगा दशहरा जून 20, 2021 विशेष
गंगा पूजन एवं अवतरण की कथा 
〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️


दशमी तिथि प्रारंभ👉  19 जून 2021 सायं 6 बजकर 47 मिनट से

दशमी तिथि समाप्त👉 20 जून सायं 04 बजकर 21 मिनट पर। 

वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, बुधवार के दिन, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी इसलिये  इस दिन को हिन्दू धर्म मे माँ गंगा के पृथ्वी पर अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन स्नान, दान, रूपात्मक व्रत होता है।

स्कन्द पुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत्सरमुखी मानी गई है इसमें स्नान और दान तो विशेष रूप से करें। किसी भी नदी पर जाकर अर्ध्य (पू‍जादिक) एवम् तिलोदक (तीर्थ प्राप्ति निमित्तक तर्पण) अवश्य करें। ऐसा करने वाला महापातकों के बराबर के दस पापों से छूट जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष, दशमी को गंगावतरण का दिन मन्दिरों एवं सरोवरों में स्नान कर पवित्रता के साथ मनाया जाता है। 

गंगा स्नान का महत्त्व
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि जो मनुष्य गंगा दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार ओम नमो भगवती हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा स्तोत्र को पढ़ता है, चाहे वो दरिद्र हो, असमर्थ हो वह भी गंगा की पूजा कर पूर्ण फल को पाता है। यदि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन मंगलवार हो तथा हस्त नक्षत्र तिथि हो तो यह सब पापों को हरने वाली होती है। वराह पुराण में लिखा है कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी बुधवार में हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थी। वह दस पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं।

दशहरे के कुछ प्रमुख योग 
〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️
यह दिन संवत्सर का मुख माना गया है। इसलिए गंगा स्नान करके दूध, बताशा, जल, रोली, नारियल, धूप, दीप से पूजन करके दान देना चाहिए। इस दिन गंगा, शिव, ब्रह्मा, सूर्य देवता, भागीरथी तथा हिमालय की प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन गंगा आदि का स्नान, अन्न-वस्त्रादि का दान, जप-तप, उपासना और उपवास किया जाता है। जिस भी वस्तु का दान करे उनकी संख्या 10 ही होनी शुभ मानी गयी है। इससे दस प्रकार के पापों से छुटकारा मिलता है। इस दिन नीचे दिये गये दस योग हो तो यह अपूर्व योग है और महाफलदायक होता है। यदि ज्येष्ठ अधिकमास हो तो स्नान, दान, तप, व्रतादि मलमास में करने से ही अधिक फल प्राप्त होता है। इन दस योगों में मनुष्य स्नान करके सब पापों से छूट जाता है।

दस योग
〰️〰️〰️
ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर करण, आनंद योग व्यतिपात, कन्या का चंद्र, वृषभ का सूर्य आदि।

गंगा दशहरा पर दान का महत्त्व एवं पूजा विधि
〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️
इस दिन पवित्र नदी गंगा जी में स्नान किया जाता है। यदि कोई मनुष्य वहाँ तक जाने में असमर्थ है तब अपने घर के पास किसी नदी या तालाब में गंगा मैया का ध्यान करते हुए स्नान कर सकते है। गंगा जी का ध्यान करते हुए षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए. गंगा जी का पूजन करते हुए निम्न मंत्र पढ़ना चाहिए :-

“ऊँ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:”

इस मंत्र के बाद “ऊँ नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा” मंत्र का पाँच पुष्प अर्पित करते हुए गंगा को धरती पर लाने भगीरथी का नाम मंत्र से पूजन करना चाहिए. इसके साथ ही गंगा के उत्पत्ति स्थल को भी स्मरण करना चाहिए. गंगा जी की पूजा में सभी वस्तुएँ दस प्रकार की होनी चाहिए. जैसे दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल होने चाहिए.
यदि कोई व्यक्ति पूजन के बाद दान करना चाहता है तब वह भी दस प्रकार की वस्तुओं का करता है तो अच्छा होता है लेकिन जौ और तिल का दान सोलह मुठ्ठी का होना चाहिए. दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए. जब गंगा नदी में स्नान करें तब दस बार डुबकी लगानी चाहिए।

यह मौसम भरपूर गर्मी का होता है, अत: छतरी, वस्त्र, जूते-चप्पल आदि दान में दिए जाते हैं। पूजन के लिये यदि गंगाजी अथवा अन्य किसी पवित्र नदी पर सपरिवार स्नान हेतु जाया जा सके तब तो सर्वश्रेष्ठ है, यदि संभव न हो तब घर पर ही गंगाजली को सम्मुख रखकर गंगाजी की पूजा-अराधना कर ली जाती है। इस दिन जप-तप, दान, व्रत, उपवास और गंगाजी की पूजा करने पर सभी पाप जड़ से कट जाते हैं- ऐसी मान्यता है। अनेक परिवारों में दरवाज़े पर पाँच पत्थर रखकर पाँच पीर पूजे जाते हैं। इसी प्रकार परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से सवा सेर चूरमा बनाकर साधुओं, फ़कीरों और ब्राह्मणों में बांटने का भी रिवाज है। ब्राह्मणों को बड़ी मात्रा में अनाज को दान के रूप में आज के दिन दिया जाता है। आज ही के दिन आम खाने और आम दान करने को भी विशिष्ट महत्त्व दिया जाता है। दशहरा के दिन दशाश्वमेध संभव ना हो तो किसी भी गंगा घाट में दस बार स्नान करके शिवलिंग का दस संख्या के गंध, पुष्प, दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन करके रात्रि को जागरण करने से अनंत फल प्राप्त होता है। विधि-विधान से गंगाजी का पूजन करके दस सेर तिल, दस सेर जौ और दस सेर गेहूँ दस ब्राह्मणों को दान दें। परदारा और परद्रव्यादि से दूर रहें तथा ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ करके दशमी तक एकोत्तर-वृद्धि से दशहरा स्तोत्र का पाठ करें। इससे सब प्रकार के पापों का समूल नाश हो जाता है और दुर्लभ सम्पत्ति प्राप्त होती है।

गंगा दशहरे का फल
〰️〰️🌸🌸〰️〰️
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के दस प्रकार के पापों का नाश होता है। इन दस पापों में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक और तीन पाप मानसिक होते हैं। जैसे कि

👉 बिना आज्ञा या जबरन किसी की वस्तु लेना

👉 हिंसा

👉 पराई स्त्री के साथ समागम

👉 कटुवचन का प्रयोग

 👉 असत्य वचन बोलना

👉 किसी की शिकायत करना

👉 असंबद्ध प्रलाप

👉 दूसरें की संपत्ति हड़पना या हड़पने की इच्छा

👉 दूसरें को हानि पहुँचाना या ऐसे इच्छा रखना

👉 व्यर्थ बातो पर परिचर्चा

कहने का तात्पर्य है जिस किसी ने भी उपरोक्त पापकर्म किये हैं और जिसे अपने किये का पश्चाताप है और इससे मुक्ति पाना चाहता है तो उसे सच्चे मन से मां गंगा में डूबकी अवश्य लगानी चाहिये। यदि आप मां गंगा तक नहीं जा सकते हैं तो स्वच्छ जल में थोड़ा गंगा जल मिलाकर मां गंगा का स्मरण कर उससे भी स्नान कर सकते हैं। इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।

माँ गंगा जी की आरती
〰️〰️🌸〰️🌸〰️〰️
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
चन्द्र-सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता।
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता।
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥
आरती मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता।
सेवक वही सहज में, मुक्ति को पाता॥
ॐ जय गंगे माता॥

गंगा अवतरण की कथा
〰️〰️🌸〰️🌸〰️〰️
ब्रह्मा से अत्रि, अत्रि से चंद्रमा, चंद्रमा से बुध, बुध से पुरुरवा, पुरुरवा से आयु, आयु से नहुष, नहुष से यति, ययाति, संयाति, आयति, वियाति और कृति नामक छः महाबली और विक्रमशाली पुत्र हुए।

अत्रि से उत्पन्न चंद्रवंशियों में पुरुरवा-ऐल के बाद सबसे चर्चित कहानी ययाति और उसने पुत्रों की है, ययाति के 5 पुत्र थे-! पुरु, यदु, तुर्वस, अनु और द्रुह्मु,  उनके इन पांचों पुत्रों और उनके कुल के लोगों ने मिलकर लगभग संपूर्ण एशिया पर राज किया था, ऋग्वेद में इसका उल्लेख मिलता है।
 
ययाति बहुत ही भोग-विलासी राजा था, जब भी उसको यमराज लेने आते तो वह कह देता नहीं अभी तो बहुत काम बचे हैं, अभी तो कुछ देखा ही नहीं। 
 
गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र के मध्य प्रतिष्ठा की लड़ाई चलती रहती थी, इस लड़ाई के चलते ही ५ हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत युद्ध के पूर्व एक और महासंग्राम हुआ था जिसे 'दशराज युद्ध' के नाम से जाना जाता हैं इस युद्ध की चर्चा ऋग्वेद में मिलती है, यह रामायण काल की बात है।
 
महाभारत युद्ध के पहले भारत के आर्यावर्त क्षेत्र में आर्यों के बीच दशराज युद्ध हुआ था इस युद्ध का वर्णन दुनिया के हर देश और वहां की संस्कृति में आज भी विद्यमान है, ऋग्वेद के ७ वें मंडल में इस युद्ध का वर्णन मिलता है। 

इस युद्ध से यह पता चलता है कि आर्यों के कितने कुल या कबीले थे और उनकी सत्ता धरती पर कहां तक फैली थी, इतिहासकारों के अनुसार यह युद्ध आधुनिक पाकिस्तानी पंजाब में परुष्णि नदी (रावी नदी) के पास हुआ था।
 
ब्रह्मा से भृगु, भृगु से वारिणी भृगु, वारिणी भृगु से बाधृश्य, शुनक, शुक्राचार्य (उशना या काव्या), बाधूल, सांनग और च्यवन का जन्म हुआ, शुनक से शौनक, शुक्राचार्य से त्वष्टा का जन्म हुआ, त्वष्टा से विश्वरूप और विश्‍वकर्मा, विश्वकर्मा से मनु, मय, त्वष्टा, शिल्लपी और देवज्ञ का जन्म हुआ, दशराज्ञ युद्ध के समय भृगु मौजूद थे। 
 
इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर भगीरथ और श्रीराम के पूर्वज हैं। राजा सगर की २ रानियां थीं- केशिनी और सुमति, जब दीर्घकाल तक दोनों पत्नियों को कोई संतान नहीं हुई तो राजा अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे। 

तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को ६० हजार अभिमानी पुत्र प्राप्त तथाहोगेतथा दूसरी से एक 
वंशधर पुत्र होगा, वंशधर अर्थात जिससे आगे वंश चलेगा।
 
बाद में रानी सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया, वह सिर्फ एक बेजान पिंड था, राजा सगर निराश होकर उसे फेंकने लगे, तभी आकाशवाणी हुई- 'सावधान राजा! इस तूंबी में ६० हजार बीज हैं, घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में ६० हजार पुत्र प्राप्त होंगे।'
 
राजा सगर ने इस आकाशवाणी को सुनकर इसे विधाता का विधान मानकर वैसा ही सुरक्षित रख लिया, जैसा कहा गया था, समय आने पर उन मटकों से ६० हजार पुत्र उत्पन्न हुए, जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उन्होंने अपने ६० हजार पुत्रों को उस घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त किया। 

देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया, राजा सगर के ६० हजार पुत्र उस घोड़े को ढूंढते-ढूंढते जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें लगा कि मुनि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराया है। 

यह सोचकर उन्होंने कपिल मुनि का अपमान कर दिया, ध्यानमग्न कपिल मुनि ने जैसे ही अपनी आंखें खोलीं, राजा सगर के ६० हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए, भगीरथ के पूर्वज राजा सगर के ६० हजार पुत्र कपिल मुनि के तेज से भस्म हो जाने के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए थे। 

अपने पूर्वजों की शांति के लिए ही भगीरथ ने घोर तप किया और गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल हुए, पूर्वजों की भस्म के गंगा के पवित्र जल में डूबते ही वे सब शांति को प्राप्त हुए। 

राजा भगीरथ के कठिन प्रयासों और तपस्या से ही गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आई थी, इसे ही 'गंगावतरण' की कथा कहते हैं। सगर और भगीरथ से जुड़ी अनेक और भी कथाएं है।

function disabled

Old Post from Sanwariya