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सोमवार, 19 जुलाई 2021

बेटी को विवाह पूर्व नौकरी करवाना अधिकांश माता पिता के लिये अब बना मुसीबत का सबब


*अब एक नई समाजिक समस्या:-*

*बेटी को विवाह पूर्व नौकरी करवाना अधिकांश माता पिता के लिये अब बना मुसीबत का सबब)*
आज अधिकांश माता पिता अपनी पुत्रियो को विवाह पूर्व नौकरी करवाकर अपने लिये एक समस्या तैयार कर रहे है और उन्हें उनके विवाह मे जो समस्याये आती है उसका हल निकालना उनके लिये अब दुष्कर होने जा रहा है। 
समस्याये को समझिए :
1👉 आत्म निर्भर हो जाने के कारण अधिकांश पुत्रियाँ माँ बाप की नही मानती ।
2👉 नोकरियो मे उनका वेतन अधिक होने से उनसे कम वेतन वाले लड़के उन्हे पसन्द नही आते।
3👉 अन्य शहर मे नोकरी करने के कारण उनके विजातीय लड़को से रिलेशिनशिप की संभावना से इन्कार नही किया जा सकता । एवं लोक़ लाज़ का भय समाप्त हो जाता है।
4👉 एक बार नौकरी करने पर नौकरी छोड़ने को तैयार नही होती जिससे जिस शहर मे नौकरी करती है उस शहर में ही कार्यरत लड़की से अधिक पेकेज वाला आपके शहर का रहने वाला सजातीय वर चाहिये जो कि माता पिता के लिये जटिल कार्य है।
ऐसे वर की तलाश मे उनकी विवाह की उम्र निकल जाती है। ऐसा वर ढूँढ़ना उन के लिये क्या किसी के लिये भी मुश्किल कार्य है।
5👉 बाहर के शहरों में रहने से बच्चीया स्वछ्ंद तरीके से जीना सीख लेती है,फिर उसे पालकों द्वारा उपदेशीत छोटि छोटि बातें भी संकिर्ण लगती है।
6👉 उम्र का तकाजा कहे या शारिरीक बदलाव कि वज़ह से कहें बच्चियों में हार्मोनल परिवर्तन होते हैं जो उसे पुरुषों कि और आकर्षीत करते हैं पर उसके साथ घर का कोई सदस्य ना होने से कोई रोक-टोक नहि रहती जीस से वै गलत मार्ग पर चलने कि संभावना बढ़ जाती है
अत: सभी माता पिता से निवेदन है कि यह निर्णय ना ले कि कन्या को कुछ वर्ष नौकरी करा लेंगे फिर शादी करेंगे अगर बहोत हि विपरीत परिस्थितियों में अगर नोकरी करवानी हि हो तो अपने हि शहर में अपने आखौ के सामने घर में हि रखकर करवा सकते हो तो उसपर विच़ार करे अन्यथा कदापी ना करवाए। वर्ना आप निश्चित रुप से भविष्य में आनेवाली जटिल समस्या का सामना करने को तैयार रहे।
    यह सुझाव आपको उस वक्त याद आयेगा जब आप भी अन्य माहेश्वरी भाई लोगो की तरह अपनी पुत्री के विवाह के लिये जटिल समस्या मे फंसे होंगे।
        इसलिए अपनी बेटियों का विवाह सहि समय (21से 24) पर करें और भविष्य में आनेवाली समस्याओ से बचें ।
(उपरोक्त विच़ार/लेख मे व्यक्त कि गई बातों को अपने हि समाज के विभीन्न भाईयों को आ चुकि ऐसी हि समस्याओ के आधार पर लीखने कि चेष्टा कि गई है).*
👌🏻👌🏻

बच्चे पैदा वो करेंगे और sacrifice हमे करना पड़ रहा है,


जागरुकता आ तो रही है, धीरे धीरे ही सही  ! 

अचानक से मुझे सुनाई दिया - *"भैया सीट से हट जाओ मेरे पास बच्चे है!" उस शेरनी ने 24 25 साल के लड़के से कहा,*
तो लड़के ने बड़ी शालीनता से कहा कि *आप महिला सीट पर जाओ तो वो बोली कि वहा सब लेडीज बैठी है,*
तो लड़के ने अपने कान के हेडफोन हटाते हुए कहा तो मैं क्या करू ?? मुझे भजनपुरा जाना है, जो अभी काफी दूर है ,
*तो वो अपने बच्चो की धौस दिखाने लगी कि मेरे पास छोटे छोटे बच्चे है, आपको शर्म नही आती ? सीट नही छोड़ सकते ?*
अब पूर्वा भी तमाशा देखने लगी, 
मामला गर्म होने की बजाय मसालेदार हो रहा था,

लड़के ने एक बड़ी अच्छी बात कही,
*आप लोगो का यही ड्रामा है! हर साल एक बालक जनना, और उसी के ऊपर कूदना।  हमसे पूछकर कर पैदा किये थे बच्चे ? अब बच्चे पैदा तुम करो, सीट हम छोड़े ? इतनी ही बच्चो की फिक्र थी तो कैब करती , या खाली बस में घुसती।  अब तुम्हे फ्री सफर भी चाहिए और सीट भी चाहिये। जाइए, मैं नही दे रहा सीट!*
अब  बस का कंडक्टर भी बोला कि दे दे भाई सीट,
लड़का बोला कि मैं किसी महिला रिज़र्व सीट पर नही हु, तू अपने टिकट काट। 
कंडक्टर भी शायद अरबी भेड़ था, या न भी हो, पर वो तुंरत चुप होकर बस के बाहर देखने लगा। 
इतने में मुझे ये तो यकीन हो गया लड़का उसको बातों में धुनने को तैयार है,

*वो उसके पास ही खड़ी रही और लड़का भी बुदबुदाता रहा कि काफ़िर सीट देंगे ?  फिर तुम्हे अपना घर ? और फिर कश्मीर वाले हालात ?*
*शेरनी को आगे एक इन्सानियत के कर्मचारी ने अपनी सीट ऑफर कर दी, और वो बैठ गयी और अब वो अपने शावकों के लिए सीट मांगने लगी।*

लड़के ने जोर से उस सेक्युलर को ताना मारा कि *भाई साहब घर भी दे दो अपना, तभी ये बच्चे अच्छा जीवन जियेंगे।*

कंडक्टर चिल्लाने लगा की भाई जिसे अप्सरा बॉर्डर उतरना हो उतर जाओ,
बात रुक गयी और लड़का शांत हो गया और वो शेरनी सीमापुरी उतर गई। 
मात्र 15 मिनट के सफर में ये सब नाटक हुआ,

ये घटना है , दिल्ली के बस की। बस रूट no 33 नोएडा सेक्टर 37 से भजनपुरा की तरफ जाती है।  रोज की तरह लोग इसमे घुसते है, और अपने आफिस और दूसरे काम के लिए निकलते है।  मैं महिला सीट पर बैठी कर ये नाटक देख रही थी। ( दिल्ली एनसीआर की बसों में एक लाइन महिलाओ के लिए आरक्षित है )

मन्द मन्द मुसकराई और सोचने लगी कि *जागना जरूरी है, क्योंकि बच्चे पैदा वो करेंगे और sacrifice हमे करना पड़ रहा है, सालो से यही चल रहा है,*



ये ज्यादा दिन नही चलना अब , अब लोगो मे जागरूकता आ रही है
साभार

रविवार, 18 जुलाई 2021

गले के रोग और उपचार - *हकलाना, तुतलाना*


*🍁 गले के रोग और उपचार*

🔸 *हकलाना, तुतलाना*

🔸बच्चों का हकलाना आँवला चबाने से ठीक हो जाता है। जीभ पतली होकर आवाज साफ आने लगती है। 

🔸एक चम्मच पिसा हुआ आँवला घी में मिलाकर नित्य चाटते रहें। तुतलाना ठीक हो जाएगा। 

🔸नित्य 2 बादाम भिगोकर, छीलकर, पीसकर, आधी छटाँक (31 ग्राम) मक्खन में कुछ दिन तक खाने से लाभ होता है। 

🔸सोते समय छुहारा दूध में उबाल कर लें। इसे लेने के दो घंटे बाद तक पानी न पियें। इससे तीखी, मोटी आवाज साफ हो जाएगी।

*🔸टांसिल होने पर*

🔸अन्नानास का जूस गर्म करके पियें। टांसिल के रोगी को अन्नानास के टुकड़े पर नींबू का रस निचोड़ कर खिलाना चाहिए, टॉसिल का रोग नष्ट हो जायेगा और पानी से कुल्ला करें, लाभ होगा। थोड़ी वेदना होगी, डरें नहीं। 

🔸जिन लोगों को छाले होते रहते हैं वे खाने के बाद थोड़ी सौंफ लिया करें। छालें नहीं होंगे। 

🔸देशी घी में खाने का कपूर मिलाकर नित्य चार बार लगायें और लार गिराऐं। फिर कुल्ला कर लें। पान में चना के बराबर कपूर का टुकड़ा रखकर चबाएं और पीक थूकते जाएं। ध्यान रहे पीक पेट में न जाए। मसूड़े फूलना, दर्द होना, टीस उठना आदि होने पर भुना हुआ जीरा और सेंधा नमक समान भाग पीसकर, छानकर मसूड़े पर रगड़ें और लार टपका दें। लाभ होगा।

*🔸गला बैठना, स्वर भंग*

🔸गरम पानी में थोड़ा सा नमक मिलाकर कुल्ले करना चाहिए, यह सुबह तथा रात को सोते समय करना चाहिए। मुलहठी को मुँह में रखकर चूसना चाहिए, मुलहठी का सत्व थोड़ा -थोड़ा मुँह में रखकर चूसने से भी लाभ होता है। 

🔸गला बैठ जाए, गले में ललाई या सूजन हो जाए तो ताजा पानी या गर्म पानी में नींबू निचोड़कर नमक डालकर तीन—चार गरारे करने से लाभ होता है। 

🔸अजवाइन और शक्कर उबालकर दो बार पीने से गला खुल जाता है। पानी में मुलहठी डालकर रात को सोते समय खायें और सो जाएं। प्रात: आवाज साफ हो जाएगी। कंठ सूखने पर छुआरे की गुठली मुँह में रखने से लाभ होता है। 

🔸आलूबुखारा दिन में चार बार चूसने व खाने से गले की खुश्की मिट जाती है। हर तीन-तीन घण्टे में दो चम्मच सूखा साबुत धनिया चबा चबाकर रस चूसते रहें। हर प्रकार के गले दर्द के लिए लाभदायक है। 

🔸मूली का रस और पानी समान मात्रा में मिलाकर नमक मिलाकर गरारे करने से गले के घाव ठीक हो जाते हैं। 

🔸दालचीनी बारीक पीसकर अँगूठे से प्रात: काग पर लगायें और लार टपका दें। इससे काग वृद्धि ठीक हो जाएगी।

*🔸डकार*

🔸डकार अधिक आती हो तो बाजरे के दाने के बराबर हींग, गुड़ या केले में रखकर खायें। 

🔸सेंक कर पीसा हुआ जीरा एक चम्मच, एक चम्मच चासनी में मिलाकर खाना खाने के बाद चाटें। डकार में लाभ होगा।

www.sanwariyaa.blogspot.com

शनिवार, 17 जुलाई 2021

"हे, विश्व के भ्रमित मर्दो! औरत दिल से कमजोर नहीं होती, वो तो बस 'माँ' होती है।"

वो विधवा थी पर श्रृंगार ऐसा कर के रखती थी कि पूछो मत। सिंदूर बिंदी के सिवाय सब कुछ लगाती थी। पूरी कॉलोनी में उनके चर्चे थे। उनका एक बेटा भी था जो अभी नौंवी कक्षा में था। पति रेलवे में थे उनके गुजर जाने के बाद रेलवे ने उन्हें एक छोटी से नौकरी दे दी थी। 
उनके जलवे अलग ही थे। 1980 के दशक में बॉय कटिंग रखती थी। सभी कालोनी की आंटियां उन्हें 'परकटी' कहती थी। 'गोपाल' भी उस समय नया नया जवान हुआ था। अभी 16 साल का ही था। लेकिन घर बसाने के सपने देखने शुरू कर दिए थे। गोपाल का आधा दिन आईने के सामने गुजरता था और बाकि आधा परकटी आंटी की गली के चक्कर काटने में। गोपाल का नवव्यस्क मस्तिष्क इस मामले में काम नहीं करता था कि समाज क्या कहेगा? यदि उसके दिल की बात किसी को मालूम हो गई तो? उसे किसी की परवाह नहीं थी। परकटी आंटी को दिन में एक बार देखना उसका जूनून था। 

उस दिन बारिश अच्छी हुई थी। गोपाल स्कूल से लौट रहा था। साइकिल पर ख्वाबो में गुम उसे पता ही नहीं लगा कि अगले मोड़ पर कीचड़ की वजह से कितनी फिसलन थी। अगले ही क्षण जैसे ही वह अगले मोड़ पर मुड़ा साइकिल फिसल गई और गोपाल नीचे। उसी वक्त सामने से आ रहे स्कूटर ने भी टक्कर मार दी। गोपाल का सर मानो खुल गया हो। खून का फव्वारा फूटा। गोपाल दर्द से ज्यादा इस घटना के झटके से स्तब्ध था। वह गुम सा हो गया। भीड़ में से कोई उसकी सहायता को आगे नहीं आ रहा था। खून लगातार बह रहा था। 

तभी एक जानी पहचानी आवाज गोपाल नाम पुकारती है। गोपाल की धुंधली हुई दृष्टि देखती है कि परकटी आंटी भीड़ को चीर पागलों की तरह दौड़ती हुई आ रही थी। परकटी आंटी ने गोपाल का सिर गोद में लेते ही उसका माथा जहाँ से खून बह रहा था उसे अपनी हथेली से दबा लिया। आंटी की रंगीन ड्रेस खून से लथपथ हो गई थी। आंटी चिल्ला रही थी "अरे कोई तो सहायता करो, यह मेरा बेटा है, कोई हॉस्पिटल ले चलो हमें।" गोपाल का अभी तक भी याद है। एक तिपहिया वाहन रुकता है। लोग उसमे उन दोनों को बैठाते हैं। आंटी ने अब भी उसका माथा पकड़ा हुआ था। उसे सीने से लगाया हुआ था। 

गोपाल को टांके लगा कर घर भेज दिया जाता है। परकटी आंटी ही उसे रिक्शा में घर लेकर जाती हैं। गोपाल अब ठीक है। लेकिन एक पहेली उसे समझ नहीं आई कि उसकी वासना कहाँ लुप्त हो गई थी। जब परकटी आंटी ने उसे सीने से लगाया तो उसे ऐसा क्यों लगा कि उसकी माँ ने उसे गोद में ले लिया हो। वात्सल्य की भावना कहाँ से आई। उसका दृष्टिकोण कैसे एक क्षण में बदल गया। क्यों वह अब मातृत्व के शुद्ध भाव से परकटी आंटी को देखता

आज गोपाल एक रिटायर्ड अफसर है। समय बिताने के लिए कम्युनिटी पार्क में जाता है। वहां बैठा वो आज सुन्दर औरतों को पार्क में व्यायाम करते देख कर मुस्कुराता है। क्योंकि उसने एक बड़ी पहेली बचपन में हल कर ली थी। वो आज जानता है, मानता है, और कई लेख भी लिख चूका है कि महिलाओं का मूल भाव मातृत्व का है। वो चाहें कितनी भी अप्सरा सी दिखें दिल से हर महिला एक 'माँ' है। वह 'माँ' सिर्फ अपने बच्चे के लिए ही नहीं है। वो हर एक लाचार में अपनी औलाद को देखती है। दुनिया के हर छोटे मोटे दुःख को एक महिला दस गुणा महसूस करती है क्योंकि वह स्वतः ही कल्पना कर बैठती है कि अगर यह मेरे बेटे या बेटी के साथ हो जाता तो? इस कल्पना मात्र से ही उसकी रूह सिहर उठती है। वो रो पड़ती है। और दुनिया को लगता है कि महिला कमजोर है। गोपाल मुस्कुराता है, मन ही मन कहता है कि "हे, विश्व के भ्रमित मर्दो! औरत दिल से कमजोर नहीं होती, वो तो बस 'माँ' होती है।" 
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शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

रात 12 बजे मनाते हैं जन्मदिन तो हो जाएं सावधान

*रात 12 बजे मनाते हैं जन्मदिन*  तो हो जाएं सावधान







   एक अजीब सी प्रथा इन दिनों चल पड़ी है वो है ..रात 12 बजे शुभकामनाएं देने और जन्मदिन मनाने की। लेकिन क्या आपको पता है *भारतीय शास्त्र इसे गलत मानता है* .. आज हम आपको यही  बताने जा रहे हैं कि वास्तव में ऐसा करने से कितना *बड़ा अनिष्ट* हो सकता है..

आजकल किसी का बर्थडे हो, शादी की सालगिरह हो या फिर कोई और अवसर क्यों ना हो, रात के *बारह बजे केक काटना* लेटेस्ट फैशन बन गया है। लोग इस बात को लेकर उत्साहित रहते हैं कि रात को बारह बजे केक काटना है 

अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लोग अपना *जन्मदिन 12 बजे यानि निशीथ काल ( प्रेत काल) में मनाते हैं*। । निशीथ काल रात्रि को वह समय है जो *समान्यत: रात 12 बजे से रात 3 बजे की बीच होता है*। आमजन इसे *मध्यरात्रि* या अर्ध रात्रि काल कहते हैं। शास्त्रनुसार *यह समय अदृश्य शक्तियों, भूत व पिशाच का काल* होता है। इस समय में यह शक्ति अत्यधिक रूप से प्रबल हो जाती हैं।

हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं, किंतु बहुधा हम पर *प्रतिकूल* प्रभाव डालती हैं जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं। जन्मदिन की पार्टी में अक्सर ऐसा होता है।  ऐसे प्रेतकाल में केक काटकर, मदिरा व मांस का सेवन करने से अदृश्य शक्तियां व्यक्ति की आयु व भाग्य में कमी करती हैं और दुर्भाग्य उसके द्वार पर दस्तक देता है। *साल के कुछ दिनों को छोड़कर जैसे दीपावली, 4 नवरात्रि, जन्माष्टमी व शिवरात्रि पर निशीथ काल महानिशीथ काल बन कर शुभ प्रभाव देता है* जबकि अन्य समय में दूषित प्रभाव देता है।

*शास्त्रों के अनुसार रात के समय दी गई शुभकामनाएं प्रतिकूल फल देती हैं।*
*और सनातन धर्म के शास्त्र अनुसार अग्नि को बुझा कर उत्सव मनाना अंधेरे के देवता असुर का आवाहण करने के बराबर माना गया है।*
जब भी जन्म दिन या सादी की सालगिरह मनाओ तब एक दीप जलाओ ओर 🏡 घर को पवित्र ओर प्रकाश मय बनाऐ नही की अंधकार मय बनाओ 

*हिन्दू शास्त्रों के अनुसार दिन की शुरुआत सूर्योदय के साथ ही होती है और यही समय ऋषि-मुनियों के तप का भी होता है।* इसलिए इस काल में वातावरण शुद्ध और नकारात्मकता विहीन होता है। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार *सूर्योदय होने के बाद ही व्यक्ति को जन्म दिन की शुभकामनाएं देना चाहिए* क्योंकि *रात के समय* वातावरण में रज और तम  कणों की मात्रा अत्याधिक होती है और उस समय दी गई बधाई या *शुभकामनाएं फलदायी ना होकर अनिष्टकारी बन जाती हैं।*

🙏 *कृपा कर ये लेख ज्यादा से ज्यादा अपने नज़दीकियों को भेजे*🙏

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