यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 21 अगस्त 2021

कैसे पता करें कि मोबाइल सर्विलांस पर लगा है?

आज के युग में सर्विलांस की इतनी नई नई तकनीक आ गई है के पता करना मुश्किल हो जाता है लेकिन फिर भी कुछ सामान्य से लक्षण है जो सर्विलांस को बता देते है।

1 मोबाइल की बैटरी : सर्विलांस करने वाली अप्लिकेशन को बहुत मेहनत करनी पड़ती है और इस वजह से वो बैटरी भी बहुत प्रयोग करती है। अगर आपको ऐसा लगे के अचानक आपका मोबाइल जल्दी डिस्चार्ज होने लगा है तो समझ जाइए के कोई अप्लिकेशन अपना काम अंजाम दे रही है।

2 मोबाइल डाटा : जैसा की मोबाइल की बैटरी के साथ होता है वैसा ही डाटा के साथ होता है और सर्विलांस वाली एप्लीकेशन डाटा का प्रयोग बहुत ज्यादा करती है इसलिए अपने मोबाइल में डाटा मीटर इंस्टाल करे जो आपकी खपत के बारे में जानकारी देगा।

3 फोन का अजीब व्यवहार करना : जब भी ऐसी कोई अप्लिकेशन चलेगी तो उसकी वजह से बाकी अपलिकेधन को चलने में समस्या होगी इसलिए फोन अजीब तरह से काम करने लगेगा और हल्का हल्का से लेग मिलेगा जिससे समझ जाना चाहिए के कुछ गडबड है।

क्या ब्लूटूथ इयरफ़ोन हमारी जान ले सकते हैं?

जी हाँ|

ब्लूटूथ हेडफोन के कान में फटने से जयपुर के व्यक्ति की मौत: पुलिस

ब्लूटूथ हेडफ़ोन विस्फोट: जयपुर जिले के निवासी राकेश कुमार नागर "अपने ब्लूटूथ हेडफ़ोन डिवाइस का उपयोग कर रहे थे, जबकि इसे एक विद्युत आउटलेट में प्लग किया गया था,"। अस्पताल में उसकी चोटों से मौत हो गई|

चार्ज होने के दौरान उसके कानों में ब्लूटूथ हेडफोन फटने से एक व्यक्ति की मौत हो गई (प्रतिनिधि)

जयपुर: जयपुर पुलिस ने आज कहा कि एक 28 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई, जब उसका ब्लूटूथ हेडफोन डिवाइस उसके कानों में विस्फोट हो गया, जब वह अपनी पढ़ाई के लिए उनका इस्तेमाल कर रहा था, जयपुर पुलिस ने आज कहा।

पुलिस ने बताया कि घटना जयपुर जिले के चोमू कस्बे के उदयपुरिया गांव में शुक्रवार को हुई जब राकेश कुमार नागर अपने आवास पर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे।

पुलिस ने समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया को बताया, "वह अपने ब्लूटूथ हेडफ़ोन डिवाइस का उपयोग कर रहा था, जबकि इसे बिजली के आउटलेट में प्लग किया गया था।"

अचानक उसके कान में उपकरण फट गया जिससे वह बेहोश हो गया। उन्हें एक निजी अस्पताल ले जाया गया जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई, उन्होंने कहा कि उनके दोनों कानों में गंभीर चोटें आई हैं।

सिद्धिविनायक अस्पताल के डॉक्टर एलएन रुंडला ने कहा कि व्यक्ति को बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया था। अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई, डॉ रुंडला ने पुष्टि की।

शनि की कष्टकारी साढ़े साती का अचूक उपाय

शनि की कष्टकारी साढ़े साती का अचूक उपाय क्या है?

जब शनि साढ़ेसाती या ढैय्या शारीरिक मानसिक कष्टदायक हो रही हो तो निम्नवत अचूक उपायो से तत्काल राहत मिलेगी जो कि अपनाने मे अत्यन्त सरल है -


● शनि की शाडेसाती के कष्ट शान्ति हेतु अचूक उपाय शनिवार को शनि के होरा मे पंचामृत( दूध, दही , घी , शहद , मीठा ) मे काले तिल मिलाकर भोलेनाथ को अर्पित करे और उनसे कष्ट मुक्ति की प्रार्थना करे निश्चित लाभ मिलेगा ।

● शनिवार को किसी बूढे व्यक्ति को तली हुई ( तैल युक्त) खाद्य पदार्थ भोजन दान करे शनिदेव की अवश्य कृपा प्राप्त होगी ।

● शनिदेव अत्याधिक कष्टदायी हो रहे हो तो सरसो के तेल मे अपना चेहरा देखकर ( छाया दान) किसी जरूरतमंद को दान करने से शनिदेव की विशेष अनुकम्पा प्राप्त होती है सिद्ध प्रयोग है ।

● किसी विकलांग विशेष रूप से ( लंगड़े ) किसी सज्जन को काले रंग के वस्त्र , काला कम्बल, काले रंग के ऊनी कपडे दान शनिवार को करने से शनिदेव अति प्रसन्न होकर दया द्रष्टि प्रदान करते है ।

● शनिवार को किसी गरीब बूढे व्यक्ति को चरण पादुका ( जूता ,चप्पल ) प्रदान करने से शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है ।

● किसी जरूरतमंद को काले उडद , काले तिल, सरसो का तेल, काले फल , काले रंग की वस्तुऐ प्रदान करने से शनि पीड़ा से तत्काल राहत मिलती है ।

शनिदेव के निमित्त दान शनिवार को , शनि के होरा मे , शनि के नक्षत्र मे , मध्यान्ह काल मे करने से शीघ्रता से विशेष प्रभावी लाभ की प्राप्ति होती है ।


इमेज स्रोत गूगल

हनुमानजी को धतूरे की माला क्यों पहनाते हैं?

 हनुमानजी को धतूरे की माला क्यों पहनाते हैं?


जय श्री राम 🙏

हनुमान जी को धतूरा नही चढ़ाते , मदार का पत्ता और फूल अर्पण किया जाता है।

देवता को जो वस्तु भाती है, वही उन्हें पूजा में अर्पण की जाती है । उदाहरण के रूप में गणपति को लाल फूल, शिवजी को बेल, विष्णु को तुलसी इत्यादि । वास्तव में उच्च देवताओं की रुचि-अरुचि नहीं होती । विशिष्ट वस्तु अर्पण करने के पीछे अध्यात्मशास्त्रीय कारण होता है । पूजा का उद्देश्य है, मूर्ति में चैतन्य निर्माण होकर पूजक को उसका लाभ हो । यह चैतन्य निर्माण होने के लिए विशिष्ट देवता को विशिष्ट वस्तु अर्पित की जाती है, जैसे हनुमानजी को तेल, सिंदूर एवं मदार के फूल तथा पत्ते । इन वस्तुओं में हनुमानजी के महालोकतक के देवता के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण, जिन्हें पवित्रक कहते हैं, उन्हें आकृष्ट करने की क्षमता होती है । अन्य वस्तुओं में ये पवित्रक आकृष्ट करने की क्षमता अल्प होती है । इसी कारण हनुमानजी को तेल, सिंदूर एवं मदार के पुष्प-पत्र इत्यादि अर्पण करते हैं ।

इसके संबंधित एक कथा बहुत प्रचलित है। एक दिन मां सीता अपनी मांग में सिंदूर भर रही थीं । यह देखकर हनुमानजी ने उनसे पूछा, ‘सीतामैय्या, आप प्रतिदिन यह सिंदूर क्यों लगाती हैं ? तब सीताजी ने बताया, ‘इससे आपके स्वामी श्रीरामजी की आयु बढती है । इसलिए मैं यह सिंदूर लगाती हूं ।’ यह सुनने के बाद हनुमानजी को लगा कि, केवल मांग में सिंदूर भरने से श्रीरामजी की आयु बढती हैं, तो मैं अपने पूर्ण शरीरपर सिंदूर लगाऊंगा । फिर हनुमानजी ने अपने संपूर्ण शरीरपर सिंदूर लगा लिया । उसी समय से हनुमानजी का रंग सिंदूरी हो गया ।

२. हनुमानजी की पूजा में प्रयुक्त मदार के पत्ते का सूक्ष्म-चित्र


ब्रह्मांड-मंडल से चैतन्य का प्रवाह पत्ते की ओर आकृष्ट होता है । इस के कारण मदार के पत्ते में चैतन्य का वलय निर्माण होता है । इस चैतन्य के वलयद्वारा पत्ते में चैतन्य के प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं । मदार के पत्ते में हनुमानतत्त्व आकृष्ट करने की क्षमता अधिक होती है, इसलिए हनुमानतत्त्व-स्वरूप शक्ति का प्रवाह ब्रह्मांड-मंडल से मदार के पत्ते में आकृष्ट होता है । इसके कारण पत्ते में हनुमानतत्त्व-स्वरूप शक्ति का वलय निर्माण होता है । इस वलय से कार्यरत शक्ति के वलय निर्माण होते हैं । शक्ति के वलय से पत्ते के हरितद्रव्य अर्थात chlorophyll में शक्ति के कण संग्रहित होते हैं । पत्ते के डंठल के निकट भाग में डंठल से प्रवाहित शक्ति का वलय निर्माण होता है । पत्ते की शिराओं में शक्ति तरंगें प्रवाहित होती हैं । मदार के पत्ते में तारक शक्ति के वलय कार्यरत रूप में घूमते रहते हैं । मदार के पत्ते के चारों ओर हनुमानतत्त्व का कवच निर्माण होता है । इस सूक्ष्म-चित्रद्वारा आपको यह स्पष्ट हुआ होगा कि, मदार के पत्ते की ओर हनुमानजी की तत्त्वतरंगें किस प्रकार आकृष्ट होती हैं, एवं किस प्रकार मदारपत्र के माध्यम से उनका प्रक्षेपण होता है । मदार के पत्तोंद्वारा आकृष्ट चैतन्य, शक्ति आदी का प्रक्षेपण सूक्ष्म स्तरपर अर्थात आध्यात्मिक स्तर की प्रक्रिया है । इसका परिणाम विविध प्रकार से होता है । इनमें से एक है, वातावरण में विद्यमान रज-तम प्रधान तत्त्वों का प्रभाव अल्प होना । मदार के पत्तोंद्वारा प्रक्षेपित पवित्रकों के कारण वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों को कष्ट होता है । उनकी तमप्रधान काली शक्ति कम होती है, या नष्ट होती है । संक्षेप में कहा जाए, तो मदार के पत्ते हनुमानजी की तत्त्वतरंगों को प्रक्षेपित कर वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों के साथ एक प्रकार से युद्ध ही करते हैं । जब अनिष्ट शक्तियों से पीडित व्यक्ति का मदार के पत्तों से संपर्क होता है, तो उसे कष्ट होने लगता है ।

३. अनिष्ट शक्तियों से पीडित साधिका पर मदार के पत्ते का परिणाम

पत्ते में हनुमानतत्त्व से आकृष्ट चैतन्य का वलय निर्माण होता है । इस वलय से व्यक्ति की ओर चैतन्य का प्रवाह प्रक्षेपित होता है एवं उसके देह में चैतन्य का वलय निर्माण होता है । पत्ते में हनुमानतत्त्व से आकृष्ट शक्ति का वलय निर्माण होता है । वातावरण में इस शक्ति के वलयों का प्रक्षेपण होता है । शक्ति के वलय से शक्ति का प्रवाह पीडित व्यक्ति की दिशा में प्रक्षेपित होता है । बडी अनिष्टशक्ती नेत्रों के माध्यम से काली शक्ति प्रक्षेपित करता है एवं वह पत्ते से प्रक्षेपित हनुमानतत्त्व की शक्ति के प्रवाह से लडता रहता है । हनुमानतत्त्व की शक्ति के प्रवाह से व्यक्ति के देह में इसके अनेक प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं । इस मारक शक्ति का वलय व्यक्ति के देह में कार्यरत रूप में घूमता रहता है एवं उनका अनिष्टशक्तीद्वारा सप्तचक्रों पर निर्माण किए गए काले शक्ति के स्थान से युद्ध होता है । सप्तचक्रों पर हनुमानतत्त्व की शक्ति के वलय निर्माण होते हैं । अनिष्ट शक्तियों की पीडा के कारण व्यक्ति के देह के चारों ओर काली शक्ति का घना आवरण रहता है । काले आवरण में शक्ति के कण संचारित होते हैं एवं शक्ति के कणों का काले आवरण के साथ युद्ध होता है । व्यक्ति के देहपर बने काला आवरणका विघटन होता है ।

४. हनुमानजीको चढाए जानेवाले मदारके फूल

हनुमानजी की पूजा में मदार के फूलों का प्रयोग किया जाता है । फूल चढाते समय फूलों के डंठल हनुमानजी की प्रतिमा के ओर होते हैं । कहते हैं, हनुमानजी को मदारके फूल अच्छे लगते हैं; परंतु यह मानसिक स्तर का विश्लेषण हुआ । इसका अध्यात्मशास्त्रीय कारण यह है कि, मदार के फूलों में हनुमानजी की तत्त्वतरंगें अधिक मात्रा में आकृष्ट होती हैं तथा फूलों से पवित्रकों के रूप में प्रक्षेपित भी होती हैं ।

चित्र गूगल से प्राप्त।

विश्वास और श्रद्धा में अंतर





।।भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।।

कुछ ऐसे ही रामचरितमानस के आरंभ में कहा गया है। इसी में आगे कहागया है कि इस श्रद्धा विश्वास के बिना अपने ही अंतर्मन में छिपे परम तत्व का बोध नहीं किया जा सकता।

★★★★★★★★★★★

प्रस्तुत आलेख में आपको इस विमर्श के साथ विज्ञान जगत में भी ले जाना चाहता हूँ जो आपको किंचित नवीन लगेगा और रोचक भी।
श्रद्धा उसी पर जिस पर विश्वास।
विश्वास उसी पर जिस पर श्रद्धा।
दोनो में अनोखा सम्बन्ध है।एक के बिना दूजा सम्भव नहीं


★विश्वास के पीछे गहरा मनोबल हो तो हिमालय भी जीता जा सकता है, तपस्वी परम तत्व से इसी विश्वास के बल पर साक्षात्कार करता है।

असंभव को सम्भव बनाता है विश्वास । इसी विश्वास से कई मनोभाव सृजित होते हैं, मनोबल,आत्मबल, सकारात्मक सोच ,श्रद्धा आदि।

पर इस विश्वास में तीव्रता, गहराई, संकल्प की ढृढ़ता- आस्था होना चाहिए। यदि केवल सुनी सुनाई बात पर भरोसा कर लिया और बस ऐसे ही मानलिया तो वह अंध विश्वास बन जाता है ; ऐसे ही श्रद्धा भीअन्ध श्रद्धा बन जाती है।
◆श्रद्धा के लिए पहले चाहिए होता है विश्वास। यह सकते हैं कि विश्वास से संपुष्ट सम्मान भाव ही श्रद्धा कहा जाता है।यद्यपि मनीषियों ने श्रद्धा विश्वास को अनेकानेक ढंग से व्यक्त किया है ।

◆◆टिप्पणी:वैसे तो श्रध्दा और विश्वास में अंतर से जुड़ा प्रश्न-उत्तर यहीं पूरा होगया है।पर इसे और प्रासंगिक व सामयिक बनाने के लिए थोड़ी चर्चा और कर ली जाए ।

★ तो आइए अब बात करें विज्ञान की—

विज्ञान में विश्वास की क्या स्थिति है?

विज्ञान में भी विश्वास होता है और अंध विश्वास भी।बस एक अच्छी बात विज्ञान में है कि यह अपने अन्ध हो चले विश्वास के परीक्षण के प्रति खुले विचार का होता है।

● तथ्य तो यह है कि विज्ञान हो या समाज की सभी मान्यताएं आरम्भ में विश्वास होती हैं । इस पर जरा गंभीरता से ध्यान दीजिएगा।

●जिन मान्यताओं का सत्यापन परीक्षण न हो अथवा ●जो मान्यताएं व जो विश्वास, वर्तमान वास्तविकता के विपरीत दिख रही हों पर फिर भी उन्हें जबरदस्ती केवल परम्परा के नाम पर माना जा रहा हो वे अन्धविश्वास बन जातीं हैं-

◆ऐसा अन्ध विश्वास धर्म, नीति, राजनीति व समाज में तो होता ही है ऐसा अंध विश्वास विज्ञान में भी होता है । आइए देखते हैं—

★★विज्ञान की कुछ मान्यताएं जो विश्वास से अन्ध विश्वास बनीं पर एक अच्छी बात यह हुई कि इन्हें जाँच पड़ताल के बाद अमान्य कर दिया गया। पर फिर भी कुछ अंध मान्यताएं अभी भी बनी हुई हैं

१◆ऐटम:डाल्टन ने पदार्थ की सूक्षतम इकाई को एटम कहा जिसका प्राचीन ग्रीक अर्थ था कि अविभाज्य इकाई। अर्थात एटम या परमअणु या परमाणु के बाद अब सब जानते हैं परमाणु के भीतर अब असंख्य फंडामेंटल पार्टिकल खोजे जा रहे हैं और नई फिजिक्स का जन्म हो गया है।

२◆ ईथर :यह मान्यता थी कि एक ऐसा सर्व व्यापी अदृश्य तत्व है जो सर्वत्र व्याप्त है और यह भी कि प्रकाश इसी अदृश्य तत्व के माध्यम से गतिमान होता है । बाद में ईथर विज्ञान का अन्ध विश्वास साबित हुआ।इसे अमान्य कर दिया गया।


३◆ अदृश्य X ग्रह: खगोल में नेपच्यून ग्रह की गति स्थित में विचलन को उचित ठहराने के लिए एक अदृश्य ग्रह एक्स की कल्पना की गई जिसे कई बार वाकई में "खोज "लिया गया पर बाद में इसे अस्वीकार कर दिया गया।

४◆बिग बैंग सिद्धान्त: लगभग एक सदी से यह सिद्धांत पूरे जोर पर है कि इस सृष्टि की शुरूआत महाविस्फोट से, बिग बैंग big bang से हुई। पर मूलतः यह है क्या? पादरी लैमैत्रे के primordial element अज्ञात तत्व से यह सिद्धांत शुरू हुआ। यह अब गणितीय मॉडल भी बनगया है। यह सृष्टि के आरम्भ की भौतिक घटना तो है पर इसका भौतिक रूप से सत्यापन परीक्षण असम्भव है।इसलिए इसके कई गणितीय मॉडल्स हैं।

कुछ प्रमाण कॉस्मिक बैक ग्राउंड रेडिएशन के अभी इसके पक्ष में मिले जो अभी तो मान्य हैं ।पर इन्हें कुछ ऐसे ही समझिए जैसे कि अतीत में कुछ प्रमाण प्लेनेट x के पक्ष में मिलते रहते थे पर आखिर में प्लेनेट x ही काल्पनिक निकला !

★ फिलहाल बिग बैंग थ्योरी के पक्ष में जितने तर्क हैं उतने ही इसके विपक्ष में भी हैं। अर्थात विश्वास और अविश्वास दोनों ही साथ साथ चल रहे हैं !!

चूंकि इस पर और विस्तार में जाने से श्रद्धा विश्वास पर चर्चा के स्थान पर विषय परिवर्तन ही हो जाएगा, इसलिए यहाँ इस बिग बैंग थ्योरी पर केवल विज्ञान के एकशीर्ष पुरुष के ही विचार लिखे जा रहे हैं


◆स्टीफेन हाकिंग ने ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम में माना है कि इस बिग बैंग को मानने में कठिनाई ये है कि विज्ञान के आधुनिक सभी सिद्धान्त इस बिग बैंग के आरंभ की गणना करने पर ध्वस्त हो जाते हैं इसलिए बिगबैंग को कभी नहीं जाना जा सकता।विज्ञान के वर्तमान नियम सृष्टि के बहुत बाद में बने इनसे सृष्टि के आरंभ को नहीं जान सकते।

तो तो इस वक्तव्य को पढ़ने से यह बात तो स्पष्ट हो गई कि विज्ञान का बहु चर्चित सिद्धान्त यह "बिग बैंग" अभी विश्वास ही तो है क्योंकि यह पूरी तरह प्रमाणित नहीं है । इसलिए इसे न मानने वाले भौतिकविदों की नजर में यह फिलहाल अंधविश्वास जैसा ही तो है।

★और भी देखिए न्यूटन ने अपने लैटिन भाषा में लिखे Principia ग्रन्थ में विश्व को absolute निरपेक्ष विश्व माना है इसमें समय नहीं जुड़ा है।जबकि आइंस्टीन का विश्व सापेक्ष विश्व है यह relative universe, समय से जुड़ा चार आयामों का space time continuum का विश्व है ।

★इस प्रकार न्यूटन की नजर में जो विश्व है वैसा आइंस्टीन की नजर में नहीं है।

★अब विश्व तो एक है पर दो वैज्ञानिक इसे दो भिन्न नजर से देखते हैं दोनों के सिद्धांतो में अंतर तो है।
★★★यहाँ पर विज्ञान में विश्वास और अंध विश्वास की बात आ जाती है—
★न्यूटन ने absute space निरपेक्ष विश्व के संदर्भ में अपने गति सिद्धान्त रखे थे,पर आज आइंस्टीन के सापेक्ष विश्व को reativistic universe को ही मान्यता है तो क्या न्यूटन की थ्योरी अन्ध विश्वास है? नहीं ।क्योंकि मनुष्य सदैव एक विश्वास से दूसरे विश्वास की ओर चलता आया है। इस क्रम में पिछला विश्वास अन्ध विश्वास कहा जाने लगता है।जब कि ऐसा नहीं कहना चाहिए। प्रत्येक विश्वास को या कि अंधविश्वास को, उस के एक विशेष समय संदर्भ में time frame में ही देखना चाहिए ।और इसी प्रकार श्रद्धा को भी।

★ अब धर्म व अध्यात्म से अलग विज्ञान व अन्य चिन्तन क्षेत्रों में श्रद्धा की स्थिति देखते हैं:

★श्रद्धा भी केवल मन्दिर में हाथ जोड़ना मात्र नहीं। श्रद्धा के अनेकरूप हैं।

श्रद्धा, जिज्ञासा की अटूट धारा भी है, श्रद्धा, चिन्तन की ऊर्जा भी है जो जिस क्षेत्र की तरफ मोड़ दीजिए,अद्भुत कार्य कर दिखती है।

इसीलिए तो कहा गया है,— श्रद्धावान लभते ज्ञानम।

यदि प्रकृति के प्रति श्रद्धावान हो कर ही चिन्तन किया जाए तो प्रकृति परक यह श्रद्धा- देखिए किस को क्या देती है:

१◆वैज्ञानिक को— प्रकृति के नियम बनाने की क्षमता देती है। आइंस्टीन के सम्बंध में यही विज्ञान इतिहास लेखकों ने माना है कि उन्होंने ईश्वर को विज्ञान के नियमों में देखा है, परंपरागत रूप से किसी सर्व शक्तिशाली व्यक्तित्व के रूप में नहीं देखा है।

२◆भक्त को—मातृ रूप में सृष्टि का स्रोत्र मानने की भावना देती है।

३◆दार्शनिक को—प्रकृति वादी वैज्ञानिक अवधारणाएं , प्रकृति पुरुष मूलक सांख्य द्वैत इत्यादि विविध दर्शन की अनुभूति मूलक तर्क शक्ति देती है।

४◆कवि को— चित्रकार को —अनोखा सौंदर्य बोध sense of aesthetics देती है यही प्रकृति।


कृपया ध्यान दें कि आजकल विज्ञान के नाम से समस्त मानवीय मूल्यों पर अंधविश्वास का लेबिल लगाने की बात कुछ विद्वान झट पट कह देते हैं, दरअसल उन्हें अपने स्कूली या विश्व विद्यालयीन पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं रहते हुए कम से कम अबतो विज्ञान के इतिहास और विज्ञान के दर्शन को भी पढ़ना समझना चाहिए। ताकि वह चिन्तन की धारा में सदैव विद्यमान श्रद्धा और विश्वास की भूमिका को उंसके स्वरूप को ठीक से समझ सकें।

निष्कर्ष: श्रद्धा और विश्वास में बाहरी तौर पर अंतर होते हुए भी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं; धर्म व नीति के अलावा विज्ञान में भी विश्वास अन्ध विश्वास होते हैं विज्ञान में भी श्रद्धा वान को उसी तरह ज्ञान प्राप्त होता जिस तरह कि धर्म अध्यात्म व दर्शन के क्षेत्र में प्राप्त होता है।

तो अब इस विषय को विराम देते हैं।

मेरी समझ में तो ऐसा ही आया। मुझसे बेहतर समझ वालों के बेहतर उत्तर हो सकते हैं।सभी तर्कशील विचारों का स्वागत है।

आभार चित्र के लिए :अर्धनारीश्वर शिव पार्वती रूप के संयुक्त रूप में हिन्दू कॉस्मॉस गूगल से साभार सधन्यवाद।

function disabled

Old Post from Sanwariya