यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 3 अक्तूबर 2021

एक Good Leader कैसे बने ? L+T+D Success Formula को Use करके एक Good Leader बन सकते हैं


एक Good Leader कैसे बने ? 




L+T+D Success Formula 

यदि आपने कोई Company नए – नए join की है तो आपने Goal भी जरूर Set किए होंगे या आपके मन में यह सवाल होंगे कि आप किस तरह से इस company या Organization में Success होंगे ? ,

 आप एक Good  Leader किस तरह से बनेंगे ? 

, आपके अंदर Good Leader बनने के लिए क्या-क्या Qualities होना चाहिए ? 

क्योकि कहा जाता है कि अगर शेरों की एक Team को एक भेड़ Lead करता है तो सभी शेर भेड़ बन जाते है और यदि भेड़ो की एक Team को एक शेर Lead करता है तो भेड़ भी शेर बन जाते है।  एक Team का पूरा Performance उसके Good Leader के कारण होता है।


Leadership Quality या कहें किसी भी Field में Success होने के गुण किसी में भी पैदाइसी नहीं होते है यह Quality पैदा की जाती है।

 यहाँ मैं Kailash Chandra Ladha आपके साथ LTD Success Formula Share करने जा रहा हु जिसको Follow करके हम किसी भी Field में Success हो सकते है और यदि हम एक Good Leader बनना चाहते है और अपनी Team में भी  Leaders Create  करना चाहते है तो यह हमें हमारी मंज़िल तक पंहुचा सकता है। तो आएये जानत्ते है कि यह LTD Success Formula क्या है ?

Good Leader बनने के लिए L+T+D Success Formula .


 L   =    Learn (सीखना )
 T   =   Teach (सीखाना)
 D   =   Duplicate (अपने जैसे लोग बनाना )

1. Learn (सीखना ) –
किसी भी Field में Success होने के लिए या एक Good  Leader बनने के लिए यह सबसे पहला कदम होता है उस Work को सीखना या कहें अच्छे से सीखना। जब तक हमें किसी Field  के बारे में अच्छे से जानकारी नहीं रहेगी , तब तक उसमें Success होना असंभव है , इसलिए किसी भी Work या Field  में Success के लिए यह पहला Step है जिसका सही रहना बहुत जरूरी है। जिस तरह यदि हमारे Shirt की पहली बटन हम सही लगा लेते हैं तो बाकी की बटन अपने आप सही जगह पर आ जाती है उसी तरह यदि हमारा पहला Step जो कि सीखने का है यदि सही है तो बाकी Step अपने आप सही हो जाएंगे।


किसी भी चीज को सही से सीखने के लिए हम कुछ बातें Follow  कर सकते हैं –

Basic  सीखें – किसी भी Work में सही से और लंबे समय तक आगे बढ़ने के लिए उसका Basic Knowledge रखना बहुत जरूरी है। जिस तरह एक बिल्डिंग कितनी ऊंची बन सकती है यह  उसकी नींव की गहराई पर निर्भर होता है वैसे ही किसी भी Work में Success उसके Basic Knowledge पर निर्भर रहता है इसलिए Basic पर ज्यादा ध्यान दे।
Practice करें – कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें सिर्फ सीखने से कुछ नहीं होता , उनकी Practice करना पड़ती है। यदि में Cricket की कई सारी किताबें पढ़ लूं , सभी मैच TV पर देख लूं और सोचो कि मुझे Cricket का पूरा Knowledge है और Indian Cricket Team  में मुझे जगह मिल जाए , तो यह संभव नहीं है । इसलिए Basic सीखने के बाद उसपर Practice जरूर करें तभी उस Work में Really Success मिलेगी।  
इस पर काफी अच्छा श्लोक है –
” करत करत अभ्यास के , जड़मति होत सुजान।  रसरी आवत जात पर , सिल पर पड़त  निशान। “ 

Problem को Solve करें – जब हम किसी चीज का Basic सीख जाते हैं और उस पर Practically Practice करते हैं तो हमें कुछ ना कुछ Practically Problems जरूर आती है उन Problem का Solution करना भी उतना ही जरूरी है जितना Basic सीखना। अगर हम इस Problem को Solve नहीं करेंगे तो जब हम किसी को यही बातें सिखाएंगे तो उसे भी यह Problems आनी ही है तब हम उन्हें नहीं बता पाएंगे की इन Problems को कैसे Solve करें और हमारी गाड़ी वहीं रुक जाएगी और हम एक Good Leader नहीं बन पाएंगे इसलिए आने वाले Problems को Solve करें या अपने Senior से Solution सीख ले।

Notes  बनाये –  किसी भी Work को सीखना एक लंबी Process होती है , हम हर दिन कुछ न कुछ सीखते रहते हैं तो संभव है कि हम कुछ काम की बातें को भूल जाएं इसलिए Basic से लेकर आगे तक हर चीज के Short Notes बना लेना चाहिए ताकि अगर हमारे दिमाग से कोई बात निकल भी जाए तो हम Notes  को देखकर आसानी से याद कर पाए।

2. Teach (सीखाना) –
किसी भी Work में पारंगत यानि पूर्ण या Perfect होने का सबसे बढ़िया तरीका है कि हमने जो भी चीजें सीखी है वह दूसरों को सिखाएं। इससे दो फायदे होंगे एक तो हममें  सिखाने की कला आएगी जो कि एक Leader बनने के लिए बहुत ही जरुरी है और दूसरा हमारे काम को करने के लिए लोग तैयार होंगे। एक कहावत है कि ”अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। ” मतलब एक अकेला आदमी दूर तक नहीं चल सकता या कहें ज्यादा बड़ी Success बिना Team के Achieve नहीं कर सकता।

मेरा एक दोस्त है जिसने करीबन 10 साल पहले Computer Hardware Servicing का काम सीखा था और अकेले ही यह काम करता था। 5 साल तक वह रोज दुकान जाता कंप्यूटर सुधारता , लोगों के घर जाकर भी Service देता , बहुत मेहनत करता लेकिन 2 साल पहले उसने अपने साथ एक लड़के को रखा Free में सब कुछ सिखाया और काम करने के कुछ पैसे भी दिए ,फिर दूसरे को ,फिर तीसरे को , इस तरह उसने और उसके सीखे लड़कों ने 10 लोगों को सिखा दिया। आज वह सिर्फ दुकान में बैठता है पैसों का हिसाब देखता है और उसकी Income पहले से कई गुना ज्यादा है। यही कमाल है Teaching का।

किसी को सिखाने के लिए भी 
L = Learning वाले Steps Follow करें –
–  उसे भी Basic सिखाएं। 
– उसकी भी Practice करवाएं। 
– Problems को उसे खुद Solve करने दें ,जरुरत पड़ने पर उसकी मदद करें। 
– उससे भी उसके लिए Notes बनवाए।

3. Duplicate करें –
आपने रजनीकांत की Movie Robot जरूर देखी होगी ,जिसमें वह Robot को अपने जैसा एक और Robot बनाता है फिर 1 से 2 , 2 से 4, 4 से 8 , 8 से 16 , 16 से 32 64 128 256 512 1024 2048 4096 8092 16384 ऐसे करते हुए की एक बड़ी फौज बना लेता है। Ultimate Success के लिए या एक Good Leader बनने के लिए यही काम सबसे जरूरी है। यह करके आप अपने Work Load को बहुत कम कर सकते हैं।
मान लो आप की Team में 500 लोग हैं जिन्हें आप खुद सिखाते हो , उनकी Problems Solve करते हो। इसमें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी , पर यदि आप अपने जैसे ही 10  Leaders Create कर (बना) दो तो वह 10 Leaders 50–50 लोगों को Handle करेंगे ,सिखाएंगे , उनकी Problems Solve करेंगे। आपको सिर्फ 10 Leaders को सिखाना है ,इससे आपका काम बहुत आसान हो जाएगा और Growth की Speed भी कई गुना बढ़ जाएगी। बस आपको अपने जैसे ही कुछ  Leaders Create करने पड़ेंगे।
इस बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा कि Leaders को उनकी Growth के हिसाब से Results मिले नहीं तो वह आपको छोड़ सकते हैं।

इस LTD Success Formula को Use करके एक Good Leader बन सकते हैं और किसी भी Field में Success हो सकते हैं इस LTD Success Formula से Start हुई Success की गाड़ी अब कभी नहीं रुकेगी। और किसी भी फिल्ड मे 100% सफ़लता मिलेगा !! 


कैलाश चंद्र लढा
 भीलवाड़ा

बालाजी आयुर्वेदिक स्टोर मधुवन द्वारा स्वदेशी आयुर्वेदिक रोग जांच शिविर संपन्न


 कोरोना से पहले भी भारत मे बीमारी के लिए आयुर्वेद प्रचलित था पर इस महामारी ने दूसरी सभी चिकित्सा पद्धतियों की पोल खोल दी और बीमारियों से निपटने के लिए लोगो को प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की महत्ता समझ मे आई









बीमारी से निपटने के लिए जोधपुर के बालाजी आयुर्वेदिक स्टोर, मधुबन हाउसिंग बोर्ड के संचालक  अभिषेक शर्मा द्वारा दिनांक 03  अक्टुंबर २०२१ को श्री मंछापूर्ण जगदम्बा माताजी के मंदिर, मधुबन हाउसिंग बोर्ड, जोधपुर के परिसर में स्वदेशी भारतीय कंपनी आईएमसी का आयुर्वेदिक रोग जाँच शिविर का आयोजन किया जिसमे आयोजक अभिषेक शर्मा, श्रीमती वंदना शर्मा के नेतृत्व में शिविर का  शुभारम्भ प्रातः १० बजे से किया गया और शिविर में जोधपुर के विभिन्न क्षेत्रों से आये हुए रोगी जिनको गैस, पथरी, स्त्री रोग, पाईल्स, पायरिया, किडनी रोग, मूत्र सम्बंधित बीमारियां, कोलेस्ट्रॉल, शुगर, गठिया, खांसी, जोड़ो का दर्द, श्वांस सम्बन्धी रोग, अस्थमा, दमा, कमजोरी, थकान, ह्रदय रोग, एसिडिटी, एलर्जी, सिरदर्द, पेट दर्द, बुखार, वायरल, आँखों की कमजोरी, जलन, मोटापा, डेंगू बुखार, ब्लड प्रेशर आदि से सम्बंधित जाँच के लिए पाली से स्पेशली पधारे हुए आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. एस. एस. शर्मा (BAMS, NIA ) AMO  और उनकी टीम द्वारा जाँच एवं परामर्श दिया गया,  डॉ. दिनेश जी पाराशर, डॉ. योगेंद्र कुमार दवे आदि ने अपनी अमूल्य सेवाएं प्रदान की 




शिविर के  जोधपुर के कंपनी के स्टार एंबेसेडर विशाल संखवाया ने  बताया की इंटरनेशनल मार्केटिंग कंपनी समय समय पर द्वारा स्वदेशी एवं आयुर्वेदिक शिविर आयोजित किये जाते है  इस शिविर को सफल बनाने एवं रोगियों की जांच में अभिषेक जी शर्मा की टीम के मुख्य कार्यकर्ताओं जिसमे श्रीमती वंदना शर्मा, कैलाशचंद्र लढा (सांवरिया), मनीष जोशी, दलवीर सिसोदिया, लक्ष्मण राम भाटी , विशाल शंखवाया, श्रीमती सुमित्रा शर्मा, श्री श्यामलाल  शर्मा, गौरव लखारा, श्रीमती  विमला शर्मा, श्रीमती लखारा, आदि ने अपना योगदान दिया और १५० से ज्यादा रोगियों ने अपनी जाँच की. अब तक कंपनी द्वारा राजस्थान मे भी कई आयुर्वेदिक शिविरों का आयोजन सफलतापूर्वक किया जा चुका है





वार्ड नंबर 43 के मधुबन हाउसिंग बोर्ड दक्षिण पार्षद श्रीमती बसंती मेवाड़ा और श्री विजय मेवाड़ा ने इस शिविर के सभी आयोजकों का आभार व्यक्त किया  और भविष्य में ऐसे शिविरों में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया

रविवार, 26 सितंबर 2021

भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं


एक ऐसी कहानी जो बार बार पठन पाठन के योग्य है। मन तो, तर्क देगा ही, कि पहले से ही सुना हुआ है, पर यह बार बार पढ़ने लायक है। 
     यह एक कथा,अगर ठीक से,हमारे जीवन में उतर जाय,तो जीवन का रंग ही बदल जाएगा।
        एक बात और,किसी के प्रति,कभी भी,धन्यवाद, अहोभाव से निकले, तो ही, वास्तव में उसका महत्व है। अन्यथा,वह एक शब्द,बनकर रह जाता है।
🌹🌹🌹
अब कहानी----
टालस्टाय ने एक छोटी सी कहानी लिखी है। मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को भेजा पृथ्वी पर। एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियां जुड़वां–एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख गए हैं–तीन छोटी जुड़वां बच्चियां और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?

उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जा कर अपने प्रधान को कहा कि मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वां बच्चियां हैं–छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत स्तन से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है।

मृत्यु के देवता ने कहा, तो तू फिर समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है! तो तूने पहला पाप कर दिया, और इसकी तुझे सजा मिलेगी। और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा। और जब तक तू तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।

इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर–क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हंसता है। जब तुम अपनी मूर्खता पर हंसते हो तब अहंकार टूटता है।

देवदूत को लगा नहीं। वह राजी हो गया दंड भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूं। और हंसने का मौका कैसे आएगा?

उसे जमीन पर फेंक दिया गया। एक चमार, सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे और बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था, कुछ रुपए इकट्ठे कर के। जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा। यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उस चमार को दया आ गयी। और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए। इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहां रुक सके। तो चमार ने कहा कि अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ। लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो–जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था, वह पैसे तो खर्च हो गए–वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।

उस देवदूत को ले कर चमार घर लौटा। न तो चमार को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है। जैसे ही देवदूत को ले कर चमार घर में पहुंचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।

और देवदूत पहली दफा हंसा। चमार ने उससे कहा, हंसते हो, बात क्या है? उसने कहा, मैं जब तीन बार हंस लूंगा तब बता दूंगा।

देवदूत हंसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि चमार देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हजारों खुशियां आ जाएंगी। लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है! पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के पकड़े नहीं बचे। जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है–मुफ्त! घर में देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हजारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हंसा। उसे लगा, अपनी मूर्खता–क्योंकि यह पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है!

जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने चमार का सब काम सीख लिया। और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि चमार महीनों के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुंच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था। सम्राटों के जूते वहां बनने लगे। धन अपरंपार बरसने लगा।

एक दिन सम्राट का आदमी आया। और उसने कहा कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक इस तरह के बनने हैं। और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं। क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक ले जाते हैं। चमार ने भी देवदूत को कहा कि स्लीपर मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फंसेंगे।

लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए। जब चमार ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठा कर उसको मारने को तैयार हो गया कि तू हमारी फांसी लगवा देगा! और तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर किसलिए?

देवदूत फिर खिलखिला कर हंसा। तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया। उसने कहा, जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना। क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।

भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं। और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है। सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए। तब वह चमार उसके पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा। पर उसने कहा, कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।

लेकिन वह हंसा आज दुबारा। चमार ने फिर पूछा कि हंसी का कारण? उसने कहा कि जब मैं तीन बार हंस लूं…।

दुबारा हंसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं। हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी। हम मांगते हैं जो कभी नहीं घटेगा। क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है। और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं। चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।

तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियां! मुझे क्या पता, भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं नाहक बीच में आया।

और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियां आयीं जवान। उन तीनों की शादी हो रही थी। और उन तीनों ने जूतों के आर्डर दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं। एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी। देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियां हैं, जिनको वह मृत मां के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं। उसने पूछा कि क्या हुआ? यह बूढ़ी औरत कौन है? उस बूढ़ी औरत ने कहा कि ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियां हैं। गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था। उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे। और तीन बच्चे जुड़वां। वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी। लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया।

अगर मां जिंदा रहती तो ये तीनों बच्चियां गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं। मां मर गयी, इसलिए ये बच्चियां तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं। और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं। और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है।

देवदूत तीसरी बार हंसा। और चमार को उसने कहा कि ये तीन कारण हैं। भूल मेरी थी। नियति बड़ी है। और हम उतना ही देख पाते हैं, जितना देख पाते हैं। जो नहीं देख पाते, बहुत विस्तार है उसका। और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज नहीं लगा सकते, जो होने वाला है, जो होगा। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस लिया हूं। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूं।

तुम अगर अपने को बीच में लाना बंद कर दो, तो तुम्हें मार्गों का मार्ग मिल गया। फिर असंख्य मार्गों की चिंता न करनी पड़ेगी। छोड़ दो उस पर। वह जो करवा रहा है, जो उसने अब तक करवाया है, उसके लिए धन्यवाद। जो अभी करवा रहा है, उसके लिए धन्यवाद। जो वह कल करवाएगा, उसके लिए धन्यवाद। तुम बिना लिखा चेक धन्यवाद का उसे दे दो। वह जो भी हो, तुम्हारे धन्यवाद में कोई फर्क न पड़ेगा। अच्छा लगे, बुरा लगे, लोग भला कहें, बुरा कहें, लोगों को दिखायी पड़े दुर्भाग्य या सौभाग्य, यह सब चिंता तुम मत करना।

*हरिद्वार की गूंज*
(राष्ट्रीय समाचार पत्र)

अब साहब, घर खाली खाली, मकान खाली खाली और धीरे धीरे मुहल्ला खाली हो रहा है।


किसी दिन सुबह उठकर एक बार इसका जायज़ा लीजियेगा कि कितने घरों में अगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं ? कितने बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव, पूना, बेंगलुरु, चंडीगढ़,बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, हैदराबाद, बड़ौदा जैसे बड़े शहरों में जाकर बस गये हैं?


कल आप एक बार उन गली मोहल्लों से पैदल निकलिएगा जहां से आप बचपन में स्कूल जाते समय या दोस्तों के संग मस्ती करते हुए निकलते थे।

तिरछी नज़रों से झांकिए.. हर घर की ओर आपको एक चुपचाप सी सुनसानियत मिलेगी, न कोई आवाज़, न बच्चों का शोर, बस किसी किसी घर के बाहर या खिड़की में आते जाते लोगों को ताकते बूढ़े जरूर मिल जायेंगे।

आखिर इन सूने होते घरों और खाली होते मुहल्लों के कारण क्या  हैं ? भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति चाहता है कि उसके एक बच्चा और ज्यादा से ज्यादा दो बच्चे हों और बेहतर से बेहतर पढ़ें लिखें।

उनको लगता है या फिर दूसरे लोग उसको ऐसा महसूस कराने लगते हैं कि छोटे शहर या कस्बे में पढ़ने से उनके बच्चे का कैरियर खराब हो जायेगा या फिर बच्चा बिगड़ जायेगा। बस यहीं से बच्चे निकल जाते हैं बड़े शहरों के होस्टलों में।

अब भले ही दिल्ली और उस छोटे शहर में उसी क्लास का सिलेबस और किताबें वही हों मगर मानसिक दबाव सा आ जाता है   बड़े शहर में पढ़ने भेजने का

 हालांकि इतना बाहर भेजने पर भी मुश्किल से 1% बच्चे IIT, PMT या CLAT वगैरह में निकाल पाते हैं...। फिर वही मां बाप बाकी बच्चों का पेमेंट सीट पर इंजीनियरिंग, मेडिकल या फिर बिज़नेस मैनेजमेंट में दाखिला कराते हैं।

4 साल बाहर पढ़ते पढ़ते बच्चे बड़े शहरों के माहौल में रच बस जाते हैं। फिर वहीं नौकरी ढूंढ लेते हैं । सहपाठियों से शादी भी कर लेते हैं।आपको तो शादी के लिए हां करना ही है ,अपनी इज्जत बचानी है तो, अन्यथा शादी वह करेंगे ही अपने इच्छित साथी से

अब त्यौहारों पर घर आते हैं माँ बाप के पास सिर्फ रस्म अदायगी हेतु

माँ बाप भी सभी को अपने बच्चों के बारे में गर्व से बताते हैं ।  दो तीन साल तक उनके पैकेज के बारे में बताते हैं। एक साल, दो साल, कुछ साल बीत गये । मां बाप बूढ़े हो रहे हैं । बच्चों ने लोन लेकर बड़े शहरों में फ्लैट ले लिये हैं

अब अपना फ्लैट है तो त्योहारों पर भी जाना बंद

अब तो कोई जरूरी शादी ब्याह में ही आते जाते हैं। अब शादी ब्याह तो बेंकट हाल में होते हैं तो मुहल्ले में और घर जाने की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। होटल में ही रह लेते हैं।

हाँ शादी ब्याह में कोई मुहल्ले वाला पूछ भी ले कि भाई अब कम आते जाते हो तो छोटे शहर,  छोटे माहौल और बच्चों की पढ़ाई का उलाहना देकर बोल देते हैं कि अब यहां रखा ही क्या है?

खैर, बेटे बहुओं के साथ फ्लैट में शहर में रहने लगे हैं । अब फ्लैट में तो इतनी जगह होती नहीं कि बूढ़े खांसते बीमार माँ बाप को साथ में रखा जाये। बेचारे पड़े रहते हैं अपने बनाये या पैतृक मकानों में

कोई बच्चा बागवान पिक्चर की तरह मां बाप को आधा - आधा रखने को भी तैयार नहीं।

अब साहब, घर खाली खाली, मकान खाली खाली और धीरे धीरे मुहल्ला खाली हो रहा है।हर दूसरा घर, हर तीसरा परिवार सभी के बच्चे बाहर निकल गये हैं।
 वही बड़े शहर में मकान ले लिया है, बच्चे पढ़ रहे हैं,अब वो वापस नहीं आयेंगे। छोटे शहर में रखा ही क्या है । इंग्लिश मीडियम स्कूल नहीं है, हॉबी क्लासेज नहीं है, IIT/PMT की कोचिंग नहीं है, मॉल नहीं है, माहौल नहीं है, कुछ नहीं है साहब, आखिर इनके बिना जीवन कैसे चलेगा?

पर कभी UPSC ,CIVIL SERVICES का रिजल्ट उठा कर देखियेगा, सबसे ज्यादा लोग ऐसे छोटे शहरों से ही मिलेंगे। बस मन का वहम है।

अब ये मॉल, ये बड़े स्कूल, ये बड़े टॉवर वाले मकान सिर्फ इनसे तो ज़िन्दगी नहीं चलती। एक वक्त बुढ़ापा ऐसा आता है जब आपको अपनों की ज़रूरत होती है

ये अपने आपको छोटे शहरों या गांवों में मिल सकते हैं, फ्लैटों की रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन में नहीं

कोलकाता, दिल्ली, मुंबई,पुणे,चंडीगढ़,नौएडा, गुड़गांव, बेंगलुरु में देखा है कि वहां शव यात्रा चार कंधों पर नहीं बल्कि एक खुली गाड़ी में पीछे शीशे की केबिन में जाती है, सीधे शमशान, एक दो रिश्तेदार बस और सब खत्म
भाईसाब ये खाली होते मकान, ये सूने होते मुहल्ले, इन्हें सिर्फ प्रोपेर्टी की नज़र से मत देखिए, बल्कि जीवन की खोती जीवंतता की नज़र से देखिए। आप पड़ोसी विहीन हो रहे हैं। आप वीरान हो रहे हैं। आज गांव सूने हो चुके हैं।शहर कराह रहे हैं।

सूने घर आज भी राह देखते हैं.. बंद दरवाजे बुलाते हैं पर कोई नहीं आता। सबको समझाइए, बसाइए लोगों को छोटे शहरों और जन्मस्थानों के प्रति मोह जगाइए, प्रेम जगाइए। पढ़ने वाले तो सब जगह पढ़ लेते हैं। क्या आप भी उनमेसे एक तो नहीं है......?

🙏🙏🙏

शनिवार, 25 सितंबर 2021

जब तक हम रामचरितमानस, भगवद्गीता को समझेगे नहीं तब तक हम भ्रमित ही रहेंगे।


*शत्रु कौन है?* 
*ठन्डे दिमाग से विचार करें*

19 साल की अमृता (एमी) जिसका अभी अभी कॉलेज में एडमिशन हुआ है, उसने टीवी पर चल रहे वाद विवाद को देखते हुए अपने पापा से पूछा "व्हाट्स रॉन्ग विद दिस ऐड पापा? व्हाय ऑल द हिंदूस आर अगेंस्ट दिस ऐड? आलिया इज़ राइट, डॉटर्स आर नॉट वन्स पर्सनल ऐसेट्स, एनी वन कैन डोनेट देम। डॉटर्स आर लव सो कन्यादान इस रॉन्ग एंड कन्यामान इस राइट।

अपनी जिंदगी के लगभग पैंतालीस बसंत देख चुके बसंतराम जी ने गहरी सांस छोड़ी। टीवी का रिमोट उठाकर उसकी आवाज़ को म्यूट किया और अपनी बेटी की तरफ मुड़े। थोड़ी देर तक उसे अपने मोबाइल फोन में फेसबुक की पोस्ट्स पर आलिया को सपोर्ट करते हुए पोस्ट करते हुए देखते रहे फिर मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ फेरा। एमी ने उनकी तरफ देखा और कहा व्हाट हैपेंड डैड?

बसंतराम जी ने कहा "पिछले हफ्ते जब तेरी मां ने तेरे लिए साड़ी ली थी तो लगा तू कितनी बड़ी हो गई लेकिन आज तेरी बातें सुनकर पता चला तू तो अभी भी वैसी ही छोटी सी है जैसी बचपन में हुआ करती थी। तुझे पता है, तुझे मेले में जाना इतना पसंद था कि कोई अगर झूठ भी ये कह दे कि मैं मेला जा रहा हूं तो तू उसके साथ चल पड़ती थी चाहे तू उसे जानती हो या ना हो। रात में जलते रंग बिरंगे नाइटबल्ब को देखकर भी तू यही कहती थी कि मेला शुरु हो गया है।

एमी ने मुंह बनाते हुए कहा "व्हाट डैड!" बसंतराम जी ने मुस्कुराते हुए कहा "तू अब भी झूठी चकाचौंध देखकर आकर्षित हो जाती है।" एमी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से अपने पिता की ओर देखा तो उन्होंने कहा "तुझे पता है 'अमृता', 'मान' किसे कहते हैं?" एमी ने तुरंत अपने फोन में गूगल खोलते हुए कहा "होल्ड ऑन डैड, आई विल टेल यू।

उसके पिताजी ने फोन की स्क्रीन पर हाथ रखते हुए कहा गूगल पर मतलब ढूंढेगी तो बताएंगे किसी वस्तु का नाप लेकिन इसका एक अर्थ और होता है। मान, मतलब आदर, इज्ज़त, सम्मान। कन्यामान, इस शब्द को तुम आज के बच्चे हैशटैग लगाकर जो प्रसिद्ध कर रहे हो, ये तुम्हारे लिए नया होगा। इसके पीछे के जिस भाव को तुम दर्शाना चाह रहे हो वो तुम लोगों के लिए नए हैं। हम और हमारी पहले की असंख्य पीढियां कन्या के मान और सम्मान के लिए हमेशा से प्रतिबद्ध रही हैं।

उन्होंने बोलना जारी रखा ,इतिहास के पन्ने पलटकर देखो जरा अमृता, कन्या का जो स्थान हमारे सनातन धर्म में है वो शायद ही किसी अन्य धर्म में होगा। हम कन्याओं को पूजते हैं, हमने उन्हें देवी का पद दिया है तो तुम्हें क्या लगता है कि हम उनका मान नहीं करेंगे? हम तो खुद उन्हीं के जने हुए हैं, हमारी क्या औकात की हम उन्हें कुछ दें, हमारा जीवन तो खुद हमें उन्हीं की दी हुई भेंट है और तुम्हें लगता है उन्हीं के दिए हुए जीवन में हम उन्हें मान दिए बिना ही जीवित हैं। 

अमृता ने कहा "बट डैड..." बसंतराम जी ने उसकी बात काटते हुए कहा "ये जो तुम आज मेरे सामने जींस पहनकर बैठी हो, हाथ में महंगा फोन और अनलिमिटेड इंटरनेट का लुत्फ उठा रही हो, अपनी मर्ज़ी के हिसाब से खा पी रही हो, पहन ओढ़ रही हो, घूमने जा रही हो, दोस्त बना रही हो, अपने विचार मेरे सामने, समाज के सामने रख रही हो, अच्छे खासे अमृता नाम को भूलकर एमी नाम रखकर घूम रही हो, ये सब मान ही है जो हम तुम्हें देते हैं क्योंकि तुम हमारी बेटी ही नहीं, एक कन्या भी हो। बचपन में नवरात्रि के दिनों में हमने तुम्हारी पूजा की है, तुम्हें साक्षात देवी मानकर, तुम्हारे पैर छुए हैं, पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ, और आज तुम और तुम्हारे जैसी नई पीढ़ी के बच्चे हमें सिखा रहे हैं कि हमें कन्या का मान करना चाहिए।

अब उनकी आवाज थोड़ी ऊंची हो गई "एक बार उन मजहब वालों के समाज में, उनके देशों में जाकर देखो, वहां कन्याओं की क्या स्थिति है? वहां अपनी मर्जी से घूमना फिरना, पहनना छोड़ो अपनी मर्जी से खा भी नहीं सकती वो कन्याएं जिन्हें वहां के लोग खा तून कहते हैं। इस शब्द का मतलब समझती हो, क्यों उन्हें वहां खा तून कहते हैं? खा तून मतलब खाओ और तुनक जाओ। वहां स्त्रियों को सिर्फ और सिर्फ भोगा जाता है और यहां स्त्रियों को भजा जाता है। और अगर तुम्हें ये सब आज के भारत में दिख रहा है तो ये जहर भी उन्हीं मजहबी लोगों का फैलाया हुआ है। एक बार तुम अगर अपनी आंखों से वो सब देख लोगी ना तो तुम्हें कन्यामान का सही अर्थ पता लग जायेगा और मैं तो हैरान हूं कि अफगानिस्तान की स्थिति देखने के बाद भी तुम कैसे ये कह सकती हो।

बसंतराम जी चुप हो गए। अमृता ने भी कुछ नहीं कहा। थोड़ी देर बाद वो बोले "बेटा कन्यादान का अर्थ ये नहीं कि हम अपनी बेटी किसी और को दे रहे हैं क्योंकि अब हम उसकी परवरिश नहीं कर सकते या उसके खर्चे नहीं उठा सकते। अरे जिस मां बाप ने कन्या को जन्म दिया वो जीवनभर उसका पालन पोषण कर सकते हैं लेकिन कन्यादान करने के पीछे समाज का एक बहुत बड़ा हित छुपा होता है। कन्यादान, अग्नि को साक्षी मानकर, सभी देवी देवताओं का आह्वान कर के, अपनी कन्या को एक योग्य वर के हाथों में सौंपने का प्रण होता है ताकि वो कन्या एक नए परिवार में जाकर एक नई पीढ़ी के निर्माण की सृजना बन सके। एक ऐसे समाज का निर्माण कर सके जहां प्रेम, वात्सल्य और सम्मान हो और वर भी उसका वरण पूरे मनोयोग से करता है और वचन देता है कि जो स्त्री अपनी जननी और जन्मभूमि को त्याग कर, बिना किसी स्वार्थ के, परमार्थ की इच्छा से केवल समाज के हित के लिए उसके पास आ रही है वो उसका आजीवन भरण, पोषण और रक्षा करेगा।

कन्यादान की ये व्याख्या सुनकर अमृता तो हैरान ही हो गई। उसने कहा "सॉरी डैड, मुझे तो ये सब पता ही नहीं था। अच्छा आप ये सब दुबारा एक्सप्लेन करोगे क्या, वो मेरा फ्रेंड है ना आरिफ़, उसे बताना है कि कन्यादान की ये वैल्यू होती है। वो अक्सर कहता है कि तुम हिंदुओं के रीति रिवाज बहुत...

 अरे वो होता कौन है हमारे रीति रिवाजों पर उंगली उठाने वाला???" अमृता की बात पूरी सुने बिना ही बसंतराम जी गरज पड़े "किसने हक दिया उसे कि वो हमसे प्रश्न करे हमारे रीति रिवाजों को लेकर वो भी तब जब वो उत्तर सुनने के लायक भी नहीं!!! किसने अधिकार दिया उसे कि वो हमारे धर्म, हमारे धार्मिक स्थान, हमारे संस्कार, हमारे रीति रिवाजों के बारे में टिप्पणी करे? आखिर किसने??

अमृता के मुंह से टूटे फूटे से बोल निकले "वो मैं... बस....

"अमृता" बसंतराम जी बोले "जब वो आरिफ तुमसे तुम्हारे सनातन धर्म के बारे में सवाल करता है तो तुम चुप हो जाती हो, जब वो हमारे धार्मिक स्थानों के बारे में उल्टा सीधा कहता है तो तुम उसे जवाब नहीं देती, जब वो हमारे रीति रिवाजों पर उंगली उठाता है तुम उसी का साथ देती हो। कभी तुमने उस से पलटकर उसके मजहब के बारे में सवाल किया है? कभी उस से पूछा है कि हलाला क्यों किया जाता है? कभी जानने की कोशिश की है कि वो तीन तलाक के फैसले का इतना विरोध क्यों कर रहे थे? अरे ये ऐसे लोग हैं अमृता कि अगर इनका अपना स्वार्थ ना हो ना तो ये स्त्रियों को पानी तक न पीने दें। ऐसे लोगों को क्या हक है कि हमारे धर्म, हमारे रीति रिवाजों, हमारे कन्यादान जैसे तप पर सवाल उठाएं।

"अमृता, मैंने तुम्हें बचपन से सिखाया है कि जब तक कोई काम तुम खुद अच्छे से करना ना सीख लो तब तक दूसरों को उसके बारे में ज्ञान न दो। जिस नैतिकता का पाठ ये लोग हमें पढ़ाने की कोशिश करते हैं, इनका खुद उस से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं इसलिए ऐसे लोगों के फालतू सवालों का या तो मुंह तोड़ जवाब दो या इनका मुंह ही तोड़ दो लेकिन अपने सनातन पर कभी किसी को उंगली मत उठाने दो। यही हमारा सच्चा धर्म है।

अमृता पिताजी की बातों से काफी प्रभावित हुई। उसने उन्हें वचन दिया कि आज के बाद वो खुद भी अपने धर्म के बारे में जानेगी और दूसरों को भी उसके बारे में बताएगी। तभी मां ने आवाज लगाई "आ जाओ, खाना खा लो सब।" बसंतराम जी ने कहा "चलें एमी?" अमृता ने मुस्कुराते हुए कहा एमी नहीं, अमृता।

...यूट्यूब पे शत्रु बोध का ज्ञान पेलने वालों विचार करो शत्रु कौन है? बाहरी शत्रु से हम लड़ सकते है पर जो अंदर से सनातन को खोख्ला कर रहे है उनसे कौन लड़ेगा ?

*कड़वा  सच।*

_शत्रु बोध नहीं हमारा ज्ञान बोध ही हमारी सनातन संस्कृति की रक्षा करेगा।_

*_और जब तक हम रामचरितमानस, भगवद्गीता को समझेगे नहीं तब तक हम भ्रमित ही रहेंगे।_*

function disabled

Old Post from Sanwariya