यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

जिहादी मोहम्मद शोएब आफ़ताब ने किया भगवान श्रीराम का अपमान

☝️
*🔴 जिहादी मोहम्मद शोएब आफ़ताब ने किया भगवान श्रीराम का अपमान...!*



सच में हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं एक घंटे की तरह हो गई हैं जिन्हें जो चाहे बजाकर जा सकता है।

जिहादी मोहम्मद शोएब अख्तर ने दिल्ली स्थित AIIMS में खुलेआम फ़नी रामलीला का मंचन करके @unacademy Vlogs पर इस लाइव शो को प्रचारित किया। इस कार्यक्रम में जिहादी शोएब ने भगवान श्री राम सहित माता सीता एवं लक्ष्मण जी का अपमान करके 100 करोड़ हिंदुओं के मुंह पर तमाचा मारा।


वे मज़हब के अपमान के नाम पर कमलेश तिवारी जी जैसे लोगों का क़त्ल करते हैं लेकिन स्वयं हिंदुओं के सर्वपूज्य प्रभु श्रीराम, माता जानकी, लक्ष्मण जी, प्रभु श्री राम के पिता राजा दशरथ एवं माता कैकेयी का सरेआम मज़ाक भी उड़ा सकते हैं।

ऐसा इसलिए क्योंकि वर्तमान में हिंदू एक नपुंसक क़ौम बनकर रह गयी है। बस उसका अपना स्वार्थ निकलता रहे, बाकी अन्य किसी चीज़ से उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। अगर ऐसा न होता तो अभी तक इस जिहादी का सर, इस के धड़ पर सुरक्षित नहीं रहता। 

बाबा महाकाल से प्रार्थना है कि वे  हिन्दुओ को वह शक्ति प्रदान करें जिसके पश्चात इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले हिंदू विरोधी राक्षसों को तत्काल संहार करे 

राम ‘छोकरा’, लक्ष्मण ‘लौंडा’ और ‘सॉरी डार्लिंग’ पर नाचते दशरथ: AIIMS वाले शोएब आफ़ताब का रामायण, Unacademy से जुड़ा है

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें रामायण का मजाक उड़ाया जा रहा है। ये सामने नहीं आया है कि ये वीडियो कब का है, लेकिन कहा जा रहा है कि 2020 में NEET की परीक्षा में पूरे भारत में पहला रैंक लाने वाले शोएब आफताब इसके वीडियो होस्ट हैं। वो ऑनलाइन शैक्षिक प्लेटफॉर्म Unacademy से भी जुड़े हुए हैं। जिस वीडियो को लेकर विवाद है, उसे दिल्ली AIIMS के छात्रों ने शूट किया है।

वायरल वीडियो में तब के दृश्य का मजाक उड़ाया गया है, जब रावण की बहन सूर्पनखा वनवास काट रहे राम और लक्ष्मण के पास पहुँचती है। वीडियो में इस दौरान राम के किरदार को कहते हुए दिखाया गया है, “अगर तुझे इतनी ही ठरक है तो तू मेरे भाई लक्ष्मण के पास चला जा।” नाक काटे जाने के बाद सूर्पनखा इस वीडियो में लक्ष्मण को ‘अबे ओ लौंडे’ कहते हुए दिखाया गया है। लोग इस एक्ट का विरोध कर रहे हैं।


वीडियो में राम ‘बाहुबली’ के डायलॉग से प्रेरित ये डायलॉग बोलते हैं, “लक्षमण, लड़कों को छेड़ने वाली लड़कियों की नाक नहीं काटते, काटते हैं उसकी गर्दन।” इसके बाद प्रतीकात्मक रूप से राम को सूर्पनखा की गर्दन काटते हुए दिखाया गया है और भीड़ ठहाके लगाती है। इसके बाद एक व्यक्ति कहना दिखाई देता है, “नमस्कार, मैं रवीश कुमार। आज अमेजॉन के जंगल में राम नाम के एक लौंडे ने सूर्पनखा का ख़त्म कर दिया।”

इसके बाद रावण ये पूछते हुए दिख रहा है कि कौन नया ‘छोकरा’ आ गया है? रावण को इसमें भोजपुरी में कहते हुए दिखाया गया है कि उसकी (राम की) ‘लुगाई (पत्नी)’ को उठा लो। एक अन्य दृश्य में मंथरा को कैकयी से कहते हुए दिखाया गया है, “तेरी तो इज्जत दारू-पानी के चखने से भी कम रह जाएगी।” कैकयी कहती है, “मैंने गलत निर्णय ले लिया। मुझे अपने कॉलेज वाले बंदे के साथ भाग जाना चाहिए था।”



इतना ही नहीं, रामायण के इस कथित एक्ट में राजा दशरथ को ‘सॉरी डार्लिंग’ गाने पर कान पकड़ के नाचते हुए भी दिखाया गया है। कैकयी कहती है, “अगर तुमने मेरे दो वचन नहीं माने तो मेरे कमरे में तुम्हारी नो एंट्री।” साथ ही इसमें राम को अमेज़ॉन जंगल भेजने की बात की जाती है। राजा दशरथ को इस वीडियो में अजोबोग़रीब हरकतें करते हुए दिखाया गया है। नाटक के दौरान लोग लगातार हँस भी रहे होते हैं।

शोएब आफताब यूट्यूब पर ‘AIIMS Insider’ नाम का एक चैनल भी चलाता है। इसके जरिए वो NEET व अन्य मेडिकल परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राओं को सलाह देता है। साथ ही Unacademy के जरिए वो कोचिंग भी पढ़ाता है। यूट्यूब पर उसके 49,000 सब्सक्राइबर्स भी हैं। इस दौरान वो नैनीताल जैसी जगहों की यात्रा कर के वीलॉग भी शूट करता है। साथ ही क्रिकेट मैच के वीडियोज भी डालता है।

पण्डितराज -बनारस की एक सत्य अमर प्रेम कथा

*🔥"पण्डितराज -बनारस की एक सत्य अमर प्रेम कथा"🔥*

*सत्रहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध था, दूर दक्षिण में गोदावरी तट के एक छोटे राज्य की राज्यसभा में एक विद्वान ब्राह्मण सम्मान पाता था, नाम था जगन्नाथ शास्त्री। साहित्य के प्रकांड विद्वान, दर्शन के अद्भुत ज्ञाता। इस छोटे से राज्य के महाराज चन्द्रदेव के लिए जगन्नाथ शास्त्री सबसे बड़े गर्व थे। कारण यह, कि जगन्नाथ शास्त्री कभी किसी से शास्त्रार्थ में पराजित नहीं होते थे। दूर दूर के विद्वान आये और पराजित हो कर जगन्नाथ शास्त्री की विद्वता का ध्वज लिए चले गए।पण्डित जगन्नाथ शास्त्री की चर्चा धीरे-धीरे सम्पूर्ण भारत में होने लगी थी। उस समय दिल्ली पर मुगल शासक शाहजहाँ का शासन था। शाहजहाँ मुगल था, सो भारत की प्रत्येक सुन्दर वस्तु पर अपना अधिकार समझना उसे जन्म से सिखाया गया था। पण्डित जगन्नाथ की चर्चा जब शाहजहाँ के कानों तक पहुँची तो जैसे उसके घमण्ड को चोट लगी। "मुगलों के युग में एक तुच्छ ब्राह्मण अपराजेय हो, यह कैसे सम्भव है?", शाह ने अपने दरबार के सबसे बड़े मौलवियों को बुलवाया और जगन्नाथ शास्त्री तैलंग को शास्त्रार्थ में पराजित करने के आदेश के साथ महाराज चन्द्रदेव के राज्य में भेजा। जगन्नाथ को पराजित कर उसकी शिखा काट कर मेरे कदमों में डालो...." शाहजहाँ का यह आदेश उन चालीस मौलवियों के कानों में स्थायी रूप से बस गया था।सप्ताह भर पश्चात मौलवियों का दल महाराज चन्द्रदेव की राजसभा में पण्डित जगन्नाथ को शास्त्रार्थ की चुनौती दे रहा था। गोदावरी तट का ब्राह्मण और अरबी मौलवियों के साथ शास्त्रार्थ, पण्डित जगन्नाथ नें मुस्कुरा कर सहमति दे दी। मौलवी दल ने अब अपनी शर्त रखी, "पराजित होने पर शिखा देनी होगी..."। पण्डित की मुस्कराहट और बढ़ गयी, "स्वीकार है, पर अब मेरी भी शर्त है। आप सब पराजित हुए तो मैं आपकी दाढ़ी उतरवा लूंगा।"*
*मुगल दरबार में "जहाँ पेंड़ न खूंट वहाँ रेंड़ परधान" की भांति विद्वान कहलाने वाले मौलवी विजय निश्चित समझ रहे थे, सो उन्हें इस शर्त पर कोई आपत्ति नहीं हुई।शास्त्रार्थ क्या था; खेल था। अरबों के पास इतनी आध्यात्मिक पूँजी कहाँ जो वे भारत के समक्ष खड़े भी हो सकें। पण्डित जगन्नाथ विजयी हुए, मौलवी दल अपनी दाढ़ी दे कर दिल्ली वापस चला गया...*
*दो माह बाद महाराज चन्द्रदेव की राजसभा में दिल्ली दरबार का प्रतिनिधिमंडल याचक बन कर खड़ा था, "महाराज से निवेदन है कि हम उनकी राज्य सभा के सबसे अनमोल रत्न पण्डित जगन्नाथ शास्त्री तैलंग को दिल्ली की राजसभा में सम्मानित करना चाहते हैं, यदि वे दिल्ली पर यह कृपा करते हैं तो हम सदैव आभारी रहेंगे"।मुगल सल्तनत ने प्रथम बार किसी से याचना की थी। महाराज चन्द्रदेव अस्वीकार न कर सके। पण्डित जगन्नाथ शास्त्री दिल्ली के हुए, शाहजहाँ नें उन्हें नया नाम दिया "पण्डितराज"।*
*दिल्ली में शाहजहाँ उनकी अद्भुत काव्यकला का दीवाना था, तो युवराज दारा शिकोह उनके दर्शन ज्ञान का भक्त। दारा शिकोह के जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव पण्डितराज का ही रहा, और यही कारण था कि मुगल वंश का होने के बाद भी दारा मनुष्य बन गया।मुगल दरबार में अब पण्डितराज के अलंकृत संस्कृत छंद गूंजने लगे थे। उनकी काव्यशक्ति विरोधियों के मुह से भी वाह-वाह की ध्वनि निकलवा लेती। यूँ ही एक दिन पण्डितराज के एक छंद से प्रभावित हो कर शाहजहाँ ने कहा- अहा! आज तो कुछ मांग ही लीजिये पंडितजी, आज आपको कुछ भी दे सकता हूँ।*
*पण्डितराज ने आँख उठा कर देखा, दरबार के कोने में एक हाथ माथे पर और दूसरा हाथ कमर पर रखे खड़ी एक अद्भुत सुंदरी पण्डितराज को एकटक निहार रही थी। अद्भुत सौंदर्य, जैसे कालिदास की समस्त उपमाएं स्त्री रूप में खड़ी हो गयी हों। पण्डितराज ने एक क्षण को उस रूपसी की आँखों मे देखा, मस्तक पर त्रिपुंड लगाए शिव की तरह विशाल काया वाला पण्डितराज उसकी आँख की पुतलियों में झलक रहा था।* *पण्डित जी ने मौन के स्वरों से ही पूछा- चलोगी? लवंगी की पुतलियों ने उत्तर दिया- अविश्वास न करो पण्डित! प्रेम किया है....पण्डितराज जानते थे यह एक नर्तकी के गर्भ से जन्मी शाहजहाँ की पुत्री 'लवंगी' थी। एक क्षण को पण्डित ने कुछ सोचा, फिर ठसक के साथ मुस्कुरा कर कहा-*
*न याचे गजालीम् न वा वजीराजम्*
*न वित्तेषु चित्तम् मदीयम् कदाचित।*
*इयं सुस्तनी       मस्तकन्यस्तकुम्भा,*
*लवंगी    कुरंगी     दृगंगी   करोतु।।*
*शाहजहाँ मुस्कुरा उठा! कहा- लवंगी तुम्हारी हुई पण्डितराज। यह भारतीय इतिहास की "एकमात्र घटना" है जब किसी मुगल ने किसी हिन्दू को बेटी दी थी। लवंगी अब पण्डित राज की पत्नी थी। युग बीत रहा था। पण्डितराज दारा शिकोह के गुरु और परम् मित्र के रूप में विख्यात थे। समय की अपनी गति है। शाहजहाँ के पराभव, औरंगजेब के उदय और दारा शिकोह की निर्मम हत्या के पश्चात पण्डितराज के लिए दिल्ली में कोई स्थान नहीं रहा। पण्डित राज दिल्ली से बनारस आ गए, साथ थी उनकी प्रेयसी लवंगी।*

*बनारस तो बनारस है, वह अपने ही ताव के साथ जीता है। बनारस किसी को इतनी सहजता से स्वीकार नहीं कर लेता। और यही कारण है कि बनारस आज भी बनारस है, नहीं तो अरब की तलवार जहाँ भी पहुँची वहाँ की सभ्यता-संस्कृति को खा गई। यूनान, मिश्र, फारस, इन्हें सौ वर्ष भी नहीं लगे समाप्त होने में, बनारस हजार वर्षों तक प्रहार सहने के बाद भी  "ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः। शं नो भवत्वर्यमा...." गा रहा है। बनारस ने एक स्वर से पण्डितराज को अस्वीकार कर दिया। कहा- लवंगी आपके विद्वता को खा चुकी, आप सम्मान के योग्य नहीं।*
*तब बनारस के विद्वानों में पण्डित अप्पय दीक्षित और पण्डित भट्टोजि दीक्षित का नाम सबसे प्रमुख था, पण्डितराज का विद्वत समाज से बहिष्कार इन्होंने ही कराया।*
*पर पण्डितराज भी पण्डितराज थे, और लवंगी उनकी प्रेयसी। जब कोई कवि प्रेम करता है तो कमाल करता है। पण्डितराज ने कहा- लवंगी के साथ रह कर ही बनारस की मेधा को अपनी सामर्थ्य दिखाऊंगा।पण्डितराज ने अपनी विद्वता दिखाई भी, पंडित भट्टोजि दीक्षित द्वारा रचित काव्य "प्रौढ़ मनोरमा" का खंडन करते हुए उन्होंने " प्रौढ़ मनोरमा कुचमर्दनम" नामक ग्रन्थ लिखा। बनारस में धूम मच गई, पर पण्डितराज को बनारस ने स्वीकार नहीं किया।*
*पण्डितराज नें पुनः लेखनी चलाई, पण्डित अप्पय दीक्षित द्वारा रचित "चित्रमीमांसा" का खंडन करते हुए " चित्रमीमांसाखंडन" नामक ग्रन्थ रच डाला। बनारस अब भी नहीं पिघला, बनारस के पंडितों ने अब भी स्वीकार नहीं किया पण्डितराज को। पण्डितराज दुखी थे, बनारस का तिरस्कार उन्हें तोड़ रहा था। आषाढ़ की सन्ध्या थी। गंगा तट पर बैठे उदास पण्डितराज ने अनायास ही लवंगी से कहा- गोदावरी चलोगी लवंगी? वह मेरी मिट्टी है, वह हमारा तिरस्कार नहीं करेगी।लवंगी ने कुछ सोच कर कहा- गोदावरी ही क्यों, बनारस क्यों नहीं?  स्वीकार तो बनारस से ही करवाइए पंडित जी।*
*पण्डितराज ने थके स्वर में कहा- अब किससे कहूँ, सब कर के तो हार गया...लवंगी मुस्कुरा उठी, "जिससे कहना चाहिए उससे तो कहा ही नहीं।  गंगा से कहो, वह किसी का तिरस्कार नहीं करती। गंगा ने स्वीकार किया तो समझो शिव ने स्वीकार किया।"*
*पण्डितराज की आँखे चमक उठीं। उन्होंने एकबार पुनः झाँका लवंगी की आँखों में, उसमें अब भी वही बीस वर्ष पुराना उत्तर था-"प्रेम किया है पण्डित! संग कैसे छोड़ दूंगी?"पण्डितराज उसी क्षण चले, और काशी के विद्वत समाज को चुनौती दी-" आओ कल गंगा के तट पर, तल में बह रही गंगा को सबसे ऊँचे स्थान पर बुला कर न दिखाया, तो पण्डित जगन्नाथ शास्त्री तैलंग अपनी शिखा काट कर उसी गंगा में प्रवाहित कर देगा......"*
*पल भर को हिल गया बनारस, पण्डितराज पर अविश्वास करना किसी के लिए सम्भव नहीं था। जिन्होंने पण्डितराज का तिरस्कार किया था, वे भी उनकी सामर्थ्य जानते थे। अगले दिन बनारस का समस्त विद्वत समाज दशाश्वमेघ घाट पर एकत्र था।पण्डितराज घाट की सबसे ऊपर की सीढ़ी पर बैठ गए, और गंगलहरी का पाठ प्रारम्भ किया। लवंगी उनके निकट बैठी थी। गंगा बावन सीढ़ी नीचे बह रही थी। पण्डितराज ज्यों ज्यों श्लोक पढ़ते, गंगा एक एक सीढ़ी ऊपर आती। बनारस की विद्वता आँख फाड़े निहार रही थी।*
*गंगलहरी के इक्यावन श्लोक पूरे हुए, गंगा इक्यावन सीढ़ी चढ़ कर पण्डितराज के निकट आ गयी थी। पण्डितराज ने पुनः देखा लवंगी की आँखों में, अबकी लवंगी बोल पड़ी- क्यों अविश्वास करते हो पण्डित? प्रेम किया है तुमसे...*
*पण्डितराज ने मुस्कुरा कर बावनवाँ श्लोक पढ़ा। गंगा ऊपरी सीढ़ी पर चढ़ी और पण्डितराज-लवंगी को गोद में लिए उतर गई।बनारस स्तब्ध खड़ा था, पर गंगा ने पण्डितराज को स्वीकार कर लिया था।तट पर खड़े पण्डित अप्पाजी दीक्षित ने मुह में ही बुदबुदा कर कहा- क्षमा करना मित्र, तुम्हें हृदय से लगा पाता तो स्वयं को सौभाग्यशाली समझता, पर धर्म के लिए तुम्हारा बलिदान आवश्यक था। बनारस झुकने लगे तो सनातन नहीं बचेगा।*

*युगों बीत गए। बनारस है, सनातन है,  गंगा है, तो उसकी लहरों में पण्डितराज भी हैं।*

*🚩पंकज पाराशर🚩*

कमरे के दरवाजे पर पहुंचे तो याद आया कि कमरे की चाबी Reception पर ही भूल गए...

तीन नौजवान एक बड़े होटल में ठहरे,75th floor
पर कमरा मिला...

एक रात लेट हो गए...रात के 12 बजे लिफ्ट किसी कारण से बन्द थी..

तीनो सीढिया चढने लगे...बोरियत दूर करने के लिये एक ने चुटकुला सुनाया और पच्चीसवी मंजिल तक आ गए ।

दूसरे ने गाना सुनाया और पचासवी मंजिल तक आ गए ।

और तीसरे ने सेहत पर किस्सा सुनाया और 75 floor पर आ गए

कमरे के दरवाजे पर पहुंचे तो याद आया कि कमरे की चाबी Reception पर ही भूल गए...
तीनो बेदम होकर गिर पडे..।।

इसी तरह इंसान भी अपनी जिदंगी के 25 साल खेल-कूद, हंसी मजाक में व्यर्थ करता है...

अगले 25 साल नौकरी, शादी, बच्चे और उनकी शादी मे गुजार देता हैं....

और आगे 25 साल जिंदा रहे तो बीमारी, डॉक्टर, अस्पताल मे गुजर जाते हैं...

मरने के बाद पता चलता है कि परमात्मा के द्वार की चाबी तो लाए ही नही...दुनिया मे ही रह गई...

प्रभु का स्मरण ही परमात्मा के द्वार की चाबी है...

तो आइए अपने कर्तव्य करते हुए हर समय प्रभु का सुमिरन करे...और अच्छे कर्म करे ताकि भगवान के द्वार पर जाकर पछताना ना पड़े ।

राधे राधे❤️🙏

गौमाता राष्ट्रमाता महा जनांदोलन - गौहत्या मुक्त भारत बनाने का ब्रह्मसूत्र -7 नवंबर 2021, चलो दिल्ली

*🚩गौमाता राष्ट्रमाता महा जनांदोलन - गौहत्या मुक्त भारत बनाने का ब्रह्मसूत्र🚩* - 7 नवंबर 2021, चलो दिल्ली ✊

7 नवंबर 1966 का वो दिन जब धर्मसम्राट पूज्य करपात्री जी महाराज के नेतृत्व में हुये गौरक्षा आंदोलन में हजारो गौभक्त साधु-संत गौमाता की प्रतिष्ठा हेतु गौरक्षा पर बलिदान हुये थे उसके 55 वर्ष बाद उन महान आत्माओ को सच्ची श्रद्धांजलि देने हेतु #गौमाता_राष्ट्रमाता घोषित कर गोवंश हत्या मुक्त भारत के ब्रह्मसंकल्प को पूर्ण करने देश के सच्चे धर्मनिष्ठ सनातनियो, गौभक्तो एवं राष्ट्रभक्तो को आमंत्रित करते है... 🔥🔥


पूज्य धर्मसम्राट करपात्री जी ने जो स्वप्न, संकल्प, और पुरुषार्थ गौमाता की प्रतिष्ठा के लिये किया था उसी कार्य को करने देश के पूज्य शंकराचार्यों, अखाड़ो, महात्माओ, पीठो, आचार्यो, कथावाचकों , धर्मधुरंधरो को हृदय की गहराइयों से तथा दंडवत पूर्ण, मुक्त विनयपूर्ण आमंत्रण एवं प्रार्थन- निवेदन करते हैं। विश्व मे गौकथा से लेकर गौक्रांति को सुनामी बनाने वाले गौ गंगा कृपाकांक्षी पूज्य गोपाल मणि जी महाराज जी की अपील पर देशभर से करोड़ो सनातनियो को जाग्रत किया गया है तथा विगत 13 वर्षों से गौमाता को राष्ट्रमाता बनाने हेतु महायुद्ध कर रहे हैं। 
आइये हम सब मिलकर इस पुनीत कार्य मे लगे तथा विश्वमाता गाय को पहले अपने देश मे माता का संवैधानिक सम्मान दिलायें क्योंकि यदि गाय पशु है तो कौन उसे बचा पा रहा है किन्तु यदि गाय राष्ट्रमाता हो तो कौन माई का लाल उसे काट सकता है...जब बात धर्म की हो तो पार्टियों और अपने स्वार्थों को छोड़ हमे बस धर्म की ओर, गौमाता की ओर खड़ा होना चाहिये क्योंकि देश मे प्रति दिवस हजारो गोवंश जब कटता है तो भगवान राम मंदिर में प्रतिमा के रूप में तो रहेंगे किन्तु उनमे प्राण नही आ सकेंगे...जय श्री राम और हरे कृष्ण करने से पूर्व एक बार विशुद्ध रूप से गौमाता की दुर्गति और उनकी पीड़ा को समाप्त करने गौमाता को राष्ट्रमाता का संवैधानिक सम्मान दिलाकर अपना कर्तव्य निभायें क्योंकि मरने के बाद गौमाता ही वैतरणी पार कराती है , धर्म ही साथ जाता है वहां को नेता और पार्टी काम नही आती.. अब प्रतीक्षा और नही की जा सकती क्योंकि सनातन धर्म का मूल गौमाता है, जड़ गौमाता है बांकी मंदिर, मठ आदि तो इसकी शाखाएं हैं। 
इस पम्पलेट को हर सनातनी/आर्य भारतीय तक पहुंचाये , शेयर करें क्योंकि जो गौ-धर्म की बात को सब तक नही पहुँचता वो धर्मद्रोह करता है, गौद्रोह करता है। 🙏🚩🙏🚩

✊ एक देश एक संकल्प - #गौमाता_राष्ट्रमाता ✊
 ✍️ - 
( गौ प्रचारक)
#7_नवंबर_चलो_दिल्ली #गौरक्षा #राष्ट्रमाता #माता #delhi #hinduism #HinduRashtra #hindu

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

सिर्फ़ AC कार का उपयोग करनें वाले मित्र ही पढें

सिर्फ़ AC कार का उपयोग करनें वाले मित्र ही पढें
------- *पुनः प्रसारण*----------------------------------

*कृपया ध्यानपूर्वक पढ़ें और सभी से इस जानकारी को साझा करें।*

यह सन्देश सभी व्यक्ति, जो 'एसी कार' का उपयोग करते हैं के लिये अति आवश्यक और महत्वपूर्ण है।क्योंकि, यह उनके स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध रखता है।

*"कार की उपयोग पुस्तिका"* कार  स्टार्ट करने और 'एसी' चलाने से पहले समस्त शीशों को खोलने का निर्देश देती है जिससे गर्म हवा बाहर निकल जाये। क्यों ?

इसमें कोई भी आश्चर्य की बात नहीं है कि आज कैंसर के कारण पहले की अपेक्षा बहुत मौतें हो रही हैं। अत्यन्त आश्चर्य होता है कि कैंसर की उत्पत्ति किन पदार्थों से हो रही है। एक ऐसा उदाहरण है जो कैंसर की उत्पत्ति के कारणों को बहुत हद तक स्पष्ट करता है।

प्रतिदिन अधिकांश व्यक्ति सर्वप्रथम  'सुबह के समय' और 'अंतिम बार रात' को अपनी कारों का उपयोग करते हैं।

कृपया कार में बैठते ही 'ए सी' को न चलायें। कार में प्रवेश करते ही, *"सबसे पहले शीशों को खोलें"* और कुछ मिनटों के बाद ही 'ए सी' चालू करें।

इसका "कारण", अनुसंधानों से यह पता चला है कि कार का डैश बोर्ड, सीट,'ए सी' की डक्ट्स, वस्तुतः गाड़ी की प्रत्येक पलास्टिक की बनी वस्तुएँ 'विषैली गैस' *"बैन्जीन"* छोड़ती हैं जो कि 'कैंसर' उत्पत्ति का एक बहुत बड़ा तत्व है।

जब भी आप कार खोलें तो कार को स्टार्ट करने से पहले कुछ क्षण के लिये गर्म पलास्टिक की गंध को स्वयम् अनुभव करेंगे।

बैन्जीन, कैंसर कारक होने के साथ - साथ हड्डियों पर विषैला प्रभाव, एनीमिया और स्वास्थय रक्षक सफ़ेद रक्त कणों (यह रोग कारक विषाणुओं को नष्ट करते हैं) में कमी लाती है।अधिक समय के सम्पर्क से ल्युकेमिया और कुछ अन्य प्रकार के कैंसर बढ़ने का पूर्ण ख़तरा है। इसके कारण गर्भवती महिलाओं में गर्भपात हो सकता है।

बन्द स्थान में बैन्ज़ीन का "स्वीकृत" स्तर 50 मिलीग्राम प्रति वर्ग फ़ीट है।

एक कार जोकि एक बन्द जगह पार्क की गई हो और जिसके शीशे बन्द हों में 400-800 मिलीग्राम बैन्ज़ीन का स्तर होगा - *स्वीकृत मात्रा से 8 गुणा अधिक*।

यदि इसको बाहर खुले में पार्क किया गया हो जहाँ पर तापमान 30 अंश सेन्टीग्रेड से अधिक हो तो, बैन्ज़ीन का स्तर 2000-4000 मिलीग्राम होगा, अर्थात *स्वीकृत स्तर से कम से कम 40 गुणा अधिक*।

जो व्यक्ति शीशे बन्द हुई कार में बैठ जाते हैं वस्तुतः वह अत्याधिक मात्रा में विद्यमान विषैली बैन्ज़ीन को साँस के द्वारा अपने शरीर में लेंगे।

बैन्ज़ीन एक विषैला तत्व है जोकि गुर्दे और लीवर पर दुष्प्रभाव डालता है।सबसे ख़तरनाक बात है कि हमारा शरीर इस विषैले तत्व को बाहर करने में नितान्त असमर्थ है।

*अतः कार में बैठने से पहले कुछ समय के लिये इसके दरवाज़े व खिड़कियाँ खोल दें* जिससे  बैठने से पहले ही अन्दर की हवा बाहर निकल जाये (अर्थात हानिकारक विषैली गैसीय तत्व बाहर निकल जाये)
*विभिन्न प्रकार के कैंसर का शुरुआत में पता चलनें पर काबू पाया जा सकता है*

*डॉ.के.पी.सिंह"Goldmedalist"*
      *【कैंसर रोग विशेषज्ञ】*
       *कॉल :9213981415*
*शिक्षा:* जब कोई व्यक्ति महत्वपूर्ण  तथ्य जिससे आपको लाभ हो बताता है, तो आपका भी यह नैतिक फ़र्ज़ है कि आप भी इस अमूल्य जानकारी को औरों तक पहुंचाए
      *निवेदन एवम आग्रह*
☝🏼 *(Most useful message..)*
 *कृपया सभी ग्रुप्स में शेयर  करें >*

function disabled

Old Post from Sanwariya