यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 25 नवंबर 2021

पौराणिक कथा : क्या सचमुच 84 लाख योनियों में भटकना होता है?



#पौराणिक कथा : क्या सचमुच 84 लाख योनियों में भटकना होता है?
***********************************
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जीवात्मा 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जन्म पाता है। अब सवाल कई उठते हैं। पहला यह कि ये योनियां क्या होती हैं? दूसरा यह कि जैसे कोई बीज आम का है तो वह मरने के बाद भी तो आम का ही बीज बनता है तो फिर मनुष्य को भी मरने के बाद मनुष्य ही बनना चाहिए। पशु को मरने के बाद पशु ही बनना चाहिए। क्या मनुष्यात्माएं पाशविक योनियों में जन्म नहीं लेतीं? या कहीं ऐसा तो नहीं कि 84 लाख की धारणा महज एक मिथक-भर है? तीसरा सवाल यह कि क्या सचमुच ही एक आत्मा या जीवात्मा को 84 लाख योनियों में भटकने के बाद ही मनुष्य जन्म मिलता है? आओ इनके उत्तर जानें...

क्या हैं योनियां 
==========
जैसा कि सभी को पता है कि मादा के जिस अंग से जीवात्मा का जन्म होता है, उसे हम योनि कहते हैं। इस तरह पशु योनि, पक्षी योनि, कीट योनि, सर्प योनि, मनुष्य योनि आदि। उक्त योनियों में कई प्रकार के उप-प्रकार भी होते हैं। योनियां जरूरी नहीं कि 84 लाख ही हों। वक्त से साथ अन्य तरह के जीव-जंतु भी उत्पन्न हुए हैं। आधुनिक विज्ञान के अनुसार अमीबा से लेकर मानव तक की यात्रा में लगभग 1 करोड़ 04 लाख योनियां मानी गई हैं। ब्रिटिश वैज्ञानिक राबर्ट एम मे के अनुसार दुनिया में 87 लाख प्रजातियां हैं। उनका अनुमान है कि कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, पौधा-पादप, जलचर-थलचर सब मिलाकर जीव की 87 लाख प्रजातियां हैं। गिनती का थोड़ा-बहुत अंतर है। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व ऋषि-मुनियों ने बगैर किसी साधन और आधुनिक तकनीक के यह जान लिया था कि योनियां 84 लाख के लगभग हैं।

क्रम विकास का सिद्धांत : 
================
गर्भविज्ञान के अनुसार क्रम विकास को देखने पर मनुष्य जीव सबसे पहले एक बिंदु रूप होता है, जैसे कि समुद्र के एककोशीय जीव। वही एकको‍शीय जीव बाद में बहुकोशीय जीवों में परिवर्तित होकर क्रम विकास के तहत मनुष्य शरीर धारण करते हैं। स्त्री के गर्भावस्था का अध्ययन करने वालों के अनुसार जंतुरूप जीव ही स्वेदज, जरायुज, अंडज और उद्भीज जीवों में परिवर्तित होकर मनुष्य रूप धारण करते हैं। मनुष्य योनि में सामान्यत: जीव 9 माह और 9 दिनों के विकास के बाद जन्म लेने वाला बालक गर्भावस्था में उन सभी शरीर के आकार को धारण करता है, जो इस सृष्टि में पाए जाते हैं।

गर्भ में बालक बिंदु रूप से शुरू होकर अंत में मनुष्य का बालक बन जाता है अर्थात वह 83 प्रकार से खुद को बदलता है। बच्चा जब जन्म लेता है, तो पहले वह पीठ के बल पड़ा रहता है अर्थात किसी पृष्ठवंशीय जंतु की तरह। बाद में वह छाती के बल सोता है, फिर वह अपनी गर्दन वैसे ही ऊपर उठाता है, जैसे कोई सर्प या सरीसृप जीव उठाता है। तब वह धीरे-धीरे रेंगना शुरू करता है, फिर चौपायों की तरह घुटने के बल चलने लगता है। अंत में वह संतुलन बनाते हुए मनुष्य की तरह चलता है। भय, आक्रामकता, चिल्लाना, अपने नाखूनों से खरोंचना, ईर्ष्या, क्रोध, रोना, चीखना आदि क्रियाएं सभी पशुओं की हैं, जो मनुष्य में स्वत: ही विद्यमान रहती हैं। यह सब उसे क्रम विकास में प्राप्त होता है। 
 
हिन्दू धर्मानुसार सृष्टि में जीवन का विकास क्रमिक रूप से हुआ है।
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार..
सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्तया
वृक्षान्‌ सरीसृपपशून्‌ खगदंशमत्स्यान्‌।
तैस्तैर अतुष्टहृदय: पुरुषं विधाय
ब्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देव:॥ (11 -9 -28 श्रीमद्भागवतपुराण)
 
अर्थात विश्व की मूलभूत शक्ति सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त हुई और इस क्रम में वृक्ष, सरीसृप, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े, मत्स्य आदि अनेक रूपों में सृजन हुआ, परंतु उससे उस चेतना की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हुई अत: मनुष्य का निर्माण हुआ, जो उस मूल तत्व ब्रह्म का साक्षात्कार कर सकता था।
 
योग के 84 आसन : योग के 84 आसन भी इसी क्रम विकास से ही प्रेरित हैं। एक बच्चा वह सभी आसन करता रहता है, जो कि योग में बताए जाते हैं। उक्त आसन करने रहने से किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता। वृक्षासन से लेकर वृश्चिक आसन तक कई पशुवत आसन हैं। मत्स्यासन, सर्पासन, बकासन, कुर्मासन, वृश्चिक, वृक्षासन, ताड़ासन आदि अधिकतर पशुवत आसन ही है।
 
जैसे कोई बीज आम का है तो वह मरने के बाद भी तो आम का ही बीज बनता है तो फिर मनुष्य को भी मरने के बाद मनुष्य ही बनना चाहिए। पशु को मरने के बाद पशु ही बनना चाहिए। क्या मनुष्यात्माएं पाशविक योनियों में जन्म नहीं लेतीं? 

प्रश्न : मनुष्य मरने के बाद मनुष्य और पशु मरने के बाद पशु ही बनता है?
उत्तर : क्रम विकास के हिन्दू और वैज्ञानिक सिद्धांत से हमें बहुत-कुछ सीखने को मिलता है, लेकिन हिन्दू धर्मानुसार जीवन एक चक्र है। इस चक्र से निकलने को ही 'मोक्ष' कहते हैं। माना जाता है कि जो ऊपर उठता है, एक दिन उसे नीचे भी गिरना है, लेकिन यह तय करना है उक्त आत्मा की योग्यता और उसके जीवट संघर्ष पर।

यदि यह मान लिया जाए कि कोई पशु आत्मा पशु ही बनती है और मनुष्य आत्मा मनुष्य तो फिर तो कोई पशु आत्मा कभी मनुष्य बन ही नहीं सकती। किसी कीड़े की आत्मा कभी पशु बन ही नहीं सकती। ऐसा मानने से बुद्ध की जातक कथाएं अर्थात उनके पिछले जन्म की कहानियों को फिर झूठ मान लिया जाएगा। इसी तरह ऐसे कई ऋषि-मुनि हुए हैं जिन्होंने अपने कई जन्मों पूर्व हाथी-घोड़े या हंस के होने का वृत्तांत सुनाया। ...तो यदि यह कोई कहता है कि मनुष्यात्माएं मनुष्य और पशु-पक्षी की आत्माएं पशु या पक्षी ही बनती हैं, वे सैद्धांतिक रूप से गलत हैं। हो सकता है कि उन्हें धर्म की ज्यादा जानकारी न हो।
 
दरअसल, उक्त प्रश्न के उत्तर को समझने के लिए हमें कर्म-भाव, सुख-दुख और विचारों पर आधारित गतियों को समझना होगा। सामान्य तौर पर 3 तरह की गतियां होती हैं- 1. उर्ध्व गति, 2. स्थिर गति और 3. अधो गति। प्रत्येक जीव की ये 3 तरह की गतियां होती हैं। यदि कोई मनुष्यात्मा मरकर उर्ध्व गति को प्राप्त होती है तो वह देवलोक को गमन करती है। स्थिर गति का अर्थ है कि वह फिर से मनुष्य बनकर वह सब कार्य फिर से करेगा, जो कि वह कर चुका है। अधोगति का अर्थ है कि अब वह संभवत: मनुष्य योनि से नीचे गिरकर किसी पशु योनि में जाएगा या यदि उसकी गिरावट और भी अधिक है तो वह उससे भी नीचे की योनि में जा सकता है अर्थात नीचे गिरने के बाद कहां जाकर वह अटकेगा, कुछ कह नहीं सकते। 'आसमान से गिरे और लटके खजूर पर आकर' ऐसा भी उसके साथ हो सकता है। ...इसीलिए कहते हैं कि मनुष्य योनि बड़ी दुर्लभ है और इसे जरा संभालकर ही रखें। कम से कम स्थिर गति में रहें।

84 लाख योनियों के प्रकार जानिए...
 
84 लाख योनियां अलग-अलग पुराणों में अलग-अलग बताई गई हैं, लेकिन हैं सभी एक ही। अनेक आचार्यों ने इन 84 लाख योनियों को 2 भागों में बांटा है। पहला योनिज तथा दूसरा आयोनिज अर्थात 2 जीवों के संयोग से उत्पन्न प्राणी योनिज कहे गए और जो अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होते हैं उन्हें आयोनिज कहा गया। इसके अतिरिक्त स्थूल रूप से प्राणियों को 3 भागों में बांटा गया है-
 
1. जलचर : जल में रहने वाले सभी प्राणी।
2. थलचर : पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी।
3. नभचर : आकाश में विहार करने वाले सभी प्राणी।
 
उक्त 3 प्रमुख प्रकारों के अंतर्गत मुख्य प्रकार होते हैं अर्थात 84 लाख योनियों में प्रारंभ में निम्न 4 वर्गों में बांटा जा सकता है।

1. जरायुज : माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं।
2. अंडज : अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अंडज कहलाते हैं।
3. स्वदेज : मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न क्षुद्र जंतु स्वेदज कहलाते हैं।
4. उदि्भज : पृथ्वी से उत्पन्न प्राणी उदि्भज कहलाते हैं।
पदम् पुराण के एक श्लोकानुसार...
जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।। -(78:5 पद्मपुराण)
अर्थात जलचर 9 लाख, स्थावर अर्थात पेड़-पौधे 20 लाख, सरीसृप, कृमि अर्थात कीड़े-मकौड़े 11 लाख, पक्षी/नभचर 10 लाख, स्थलीय/थलचर 30 लाख और शेष 4 लाख मानवीय नस्ल के। कुल 84 लाख।
 
आप इसे इस तरह समझें
* पानी के जीव-जंतु- 9 लाख
* पेड़-पौधे- 20 लाख
* कीड़े-मकौड़े- 11 लाख
* पक्षी- 10 लाख
* पशु- 30 लाख
* देवता-मनुष्य आदि- 4 लाख
कुल योनियां- 84 लाख। 
 
'प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प' ग्रंथ में शरीर रचना के आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण किया गया है जिसके अनुसार 1. एक शफ (एक खुर वाले पशु)- खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण इत्यादि। 2. द्विशफ (दो खुर वाले पशु)- गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि। 3. पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु- सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृंगाल आदि। 

प्रश्न : क्या सचमुच 84 लाख योनियों में भटकना होता है?
उत्तर : ऊपर हमने एक प्रश्न कि मनुष्य मरने के बाद मनुष्य और पशु मरने के बाद पशु ही बनता है? का उत्तर दिया था। उसके उत्तर में ही उपरोक्त प्रश्न का आधा जवाब मिल ही गया होगा। इससे पूर्व क्रम विकास में भी इसका जवाब छिपा है। दरअसल, पहले गतियों को अच्छे से समझें फिर समझ में आएगा कि हमारे कर्म, भाव और विचार को क्यों उत्तम और सकारात्मक रखना चाहिए।

क्रम विकास 2 तरह का होता है- एक चेतना (आत्मा) का विकास, दूसरा भौतिक जीव का विकास। दूसरे को पहले समझें। यह जगत आकार-प्रकार का है। अमीबा से विकसित होकर मनुष्य तक का सफर ही भौतिक जीव विकास है। इस भौतिक शरीर में जो आत्मा निवास करती है। 
 
प्रत्येक जीव की मरने के बाद कुछ गतियां होती हैं, जो कि उसके घटना, कर्म, भाव और विचार पर आधारित होती हैं। मरने के बाद आत्मा की 3 तरह की गतियां होती हैं- 1. उर्ध्व गति, 2. स्थिर गति और 3. अधो गति। इसे ही अगति और गति में विभाजित किया गया है। वेदों, उपनिषदों और गीता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की 8 तरह की गतियां मानी गई हैं। ये गतियां ही आत्मा की दशा या दिशा तय करती हैं। इन 8 तरह की गतियों को मूलत: 2 भागों में बांटा गया है- 1. अगति, 2. गति। अधो गति में गिरना अर्थात फिर से कोई पशु या पक्षी की योनि में चला जाना, जो कि एक चक्र में फंसने जैसा है।
 
1. अगति : अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है और उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है।
2. गति : गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है।
* अगति के प्रकार : अगति के 4 प्रकार हैं- 1. क्षिणोदर्क, 2. भूमोदर्क, 3. अगति और 4. दुर्गति।
 
1. क्षिणोदर्क : क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्युलोक में आता है और संतों-सा जीवन जीता है।
2. भूमोदर्क : भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है।
3. अगति : अगति में नीच या पशु जीवन में चला जाता है।
4. दुर्गति : गति में वह कीट-कीड़ों जैसा जीवन पाता है।
 
* गति के प्रकार : गति के अंतर्गत 4 लोक दिए गए हैं: 1. ब्रह्मलोक, 2. देवलोक, 3. पितृलोक और 4. नर्कलोक। जीव अपने कर्मों के अनुसार उक्त लोकों में जाता है।
 
पुराणों के अनुसार आत्मा 3 मार्गों के द्वारा उर्ध्व या अधोलोक की यात्रा करती है। ये 3 मार्ग हैं- 1. अर्चि मार्ग, 2. धूम मार्ग और 3. उत्पत्ति-विनाश मार्ग।
 
1. अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक : अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए है।

2. धूममार्ग पितृलोक : धूममार्ग पितृलोक की यात्रा के लिए है। सूर्य की किरणों में एक 'अमा' नाम की किरण होती है जिसके माध्यम से पितृगण पितृ पक्ष में आते-जाते हैं।

3. उत्पत्ति-विनाश मार्ग : उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है। यह यात्रा बुरे सपनों की तरह होती है।
 
जब भी कोई मनुष्य मरता है और आत्मा शरीर को त्यागकर उत्तर कार्यों के बाद यात्रा प्रारंभ करती है तो उसे उपरोक्त 3 मार्ग मिलते हैं। उसके कर्मों के अनुसार उसे कोई एक मार्ग यात्रा के लिए प्राप्त हो जाता है।
 
शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगत: शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुन:।। -गीता
 
भावार्थ : क्योंकि जगत के ये 2 प्रकार के शुक्ल और कृष्ण अर्थात देवयान और पितृयान मार्ग सनातन माने गए हैं। इनमें एक द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 24 के अनुसार अर्चिमार्ग से गया हुआ योगी।) जिससे वापस नहीं लौटना पड़ता, उस परम गति को प्राप्त होता है और दूसरे के द्वारा गया हुआ (अर्थात इसी अध्याय के श्लोक 25 के अनुसार धूममार्ग से गया हुआ सकाम कर्मयोगी) फिर वापस आता है अर्थात‌ जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है।।26।।
 
कठोपनिषद अध्याय 2 वल्ली 2 के 7वें मंत्र में यमराजजी कहते हैं कि अपने-अपने शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार शास्त्र, गुरु, संग, शिक्षा, व्यवसाय आदि के द्वारा सुने हुए भावों के अनुसार मरने के पश्चात कितने ही जीवात्मा दूसरा शरीर धारण करने के लिए वीर्य के साथ माता की योनि में प्रवेश कर जाते हैं। जिनके पुण्य-पाप समान होते हैं, वे मनुष्य का और जिनके पुण्य कम तथा पाप अधिक होते हैं, वे पशु-पक्षी का शरीर धारण कर उत्पन्न होते हैं और कितने ही जिनके पाप अत्यधिक होते हैं, स्थावर भाव को प्राप्त होते हैं अर्थात वृक्ष, लता, तृण आदि जड़ शरीर में उत्पन्न होते हैं। 
 
अंतिम इच्छाओं के अनुसार परिवर्तित जीन्स जिस जीव के जीन्स से मिल जाते हैं, उसी ओर ये आकर्षित होकर वही योनि धारण कर लेते हैं। 84 लाख योनियों में भटकने के बाद वह फिर मनुष्य शरीर में आता है।
 
'पूर्व योनि तहस्त्राणि दृष्ट्वा चैव ततो मया।
आहारा विविधा मुक्ता: पीता नानाविधा:। स्तना...।
स्मरति जन्म मरणानि न च कर्म शुभाशुभं विन्दति।।' -गर्भोपनिषद्
 
अर्थात उस समय गर्भस्थ प्राणी सोचता है कि अपने हजारों पहले जन्मों को देखा और उनमें विभिन्न प्रकार के भोजन किए, विभिन्न योनियों के स्तनपान किए तथा अब जब गर्भ से बाहर निकलूंगा, तब ईश्वर का आश्रय लूंगा। इस प्रकार विचार करता हुआ प्राणी बड़े कष्ट से जन्म लेता है, पर माया का स्पर्श होते ही वह गर्भज्ञान भूल जाता है। शुभ-अशुभ कर्म लोप हो जाते हैं। मनुष्य फिर मनमानी करने लगता है और इस सुरदुर्लभ शरीर के सौभाग्य को गंवा देता है।
 
विकासवाद के सिद्धांत के समर्थकों में प्रसिद्ध वैज्ञानिक हीकल्स के सिद्धांत 'आंटोजेनी रिपीट्स फायलोजेनी' के अनुसार चेतना गर्भ में एक बीज कोष में आने से लेकर पूरा बालक बनने तक सृष्टि में या विकासवाद के अंतर्गत जितनी योनियां आती हैं, उन सबकी पुनरावृत्ति होती है। प्रति 3 सेकंड से कुछ कम के बाद भ्रूण की आकृति बदल जाती है। स्त्री के प्रजनन कोष में प्रविष्ट होने के बाद पुरुष का बीज कोष 1 से 2, 2 से 4, 4 से 8, 8 से 16, 16 से 32, 32 से 64 कोषों में विभाजित होकर शरीर बनता है।


मंगलवार, 23 नवंबर 2021

No More Hair Fall पूर्णतया हानिकारक रसायन रहित

#p4_9352174466
No More Hair Fall.... 💥💥
पूर्णतया हानिकारक रसायन रहित , 
      Herbs&Hills 
De FALL PREMIUM HAIR OIL 🔥🔥🔥
    👉   Indai's First Hair Oil Blend with  key Ingredients:
👉#Ginseng 
#Biotin
👉#Blackseed oil
#Red onion  oil
         Fair Price Guaranteed , 100% Satisfaction 
Non Sticky  , Non-Greasy Hair Oil 
No Harmfull Chemical .....👍👍
BEAUTIFUL HAIR WITH BEAUTIFUL CARE
Result Speak Itself 👍👍
Lead By Products ..... D9
p4
 न भूतो न भविष्यति
For daily updates join these groups
*Telegram channel 👇*
https://t.me/p4dukan
whatsapp link
https://wa.me/message/MGAXBXAZ7MHOG1
*Facebook page link 👇*
https://www.facebook.com/p4digitalambulance/
*Instagram Link 👇*
 https://www.instagram.com/invites/contact/?i=jy44w7mufts...
ऑर्डर करने के लिए यहां क्लिक करे
click on link 
https://d-p4shop.dotpe.in
#jodhpur
#p4
#organic
#Sanwariya
#chemicalfree
#organicproducts
#chemicalfreeskincare
#chemicalfreeliving
#chemicalfreeproducts
#darjuv9 #herbshills #haircareproducts #naturalingredients #opportunities

खूनी या बादी बवासीर के लिए चमत्कारी पक्का ईलाजआराम पहले दिन से शुरू 100%


खूनी या बादी🌵 बवासीर🌵 के लिए
चमत्कारी पक्का ईलाज
आराम पहले दिन से शुरू 100%
#p4_9352174466
पूर्णतया हानिकारक रसायन रहित ,
समस्या का समाधान करें, बिना आदी बनाए ।
Now Available.......
Result Speak Itself 👍👍
Lead By Products ..... D9
p4
न भूतो न भविष्यति
For daily updates join these groups
*Telegram channel 👇*
https://t.me/p4dukan
whatsapp link
https://wa.me/message/MGAXBXAZ7MHOG1
*Facebook page link 👇*
https://www.facebook.com/p4digitalambulance/
*Instagram Link 👇*
https://www.instagram.com/invites/contact/?i=jy44w7mufts...
ऑर्डर करने के लिए यहां क्लिक करे
click on link
https://d-p4shop.dotpe.in
#jodhpur
#p4
#organic
#Sanwariya
#chemicalfree
#organicproducts
#chemicalfreeskincare
#chemicalfreeliving
#chemicalfreeproducts
#darjuv9 #herbshills #haircareproducts #naturalingredients #opportunities

घर में बना सकते हैं च्यवनप्राश

 घर में  बना सकते हैं  च्यवनप्राश

आज की तारीख़ मे वास्तविक शास्त्रोक्त च्यवनप्राश बनाना असंभव है। जो भी कंपनियांं बेच रही हैं, वह वास्तविक च्यवनप्राश है ही नही।

कारण आयुर्वेद मे वर्णित विधी के अनुसार उसमे डाली जाने वाली कम से कम तीन महत्वपूर्ण जडी बूटियों का अब कोई अतापता नही है। कंपनी वाले उनके स्थान पर सफे़द मूसली डाल कर काम चलाते हैं।

दूसरे, आयुर्वेद के अनुसार च्यवनप्राश का मुख्य पदार्थ होना चाहिए ताजा, हरा देशी आंवला। आज की तारीख मे हर कंपनी गांव देहात से दलालों द्वारा एकत्रित किए सूखे आंवले लेती है। उसे पीस कर पाउडर बना कर उससे ही च्यवनप्राश बनाते हैं।

मै विगत 5/6 वर्षों से सुबह शाम च्यवनप्राश का सेवन कर रहा हूं, व लगभग सभी ब्रांडेड व अनब्रांडेड कंपनियों का च्यवनप्राश आजमा चुका हूं।

मुझे केवल पतंजलि (बाबा रामदेव) का ही ठीक लगा, हालांकि वह भी पिसे सूखे आंवले से बनता है।

मै यहां घर पर बनाने योग्य च्यवनप्राश की रेसिपी दे रहा हूं।

आवश्यक सामग्री -

अच्छे पके, हल्के पीले आंवले - 2 / 2.5 किलो

जडी बूटियां आंवलों के साथ पकाने वाली सामग्री
बिदरीकन्द, सफेद चन्दन, वसाका, अकरकरा, शतावरी, ब्राह्मी , बिल्व, छोटी हर्र (हरीतकी), कमल केशर, जटामानसी , गोखरू, बेल , कचूर, नागरमोथा, लोंग, पुश्करमूल, काकडसिंघी, दशमूल, जीवन्ती, पुनर्नवा, अंजीर , असगंध (अश्वगंधा), गिलोय, तुलसी के पत्ते, मीठा नीम, संठ, मुनक्का व मुलेठी सभी 50–50 ग्राम, मोटा कूट लें।

गाय का घी 250 ग्राम, तिल का तेल - 250 ग्राम
मिश्री या चीनी - ढाई से तीन किलो, शहद - 250 ग्राम।

बारीक पीस कर च्यवनप्राश मे मिलाने वाली सामग्री -

पिप्पली - 100 ग्राम, बंशलोचन - 150 ग्राम, दालचीनी - 50 ग्राम, तेजपत्र - 20 ग्राम, नागकेशर - 20 ग्राम, छोटी इलायची - 20 ग्राम, केसर - 2 ग्राम।

विधि -
आवले को धो लीजिये. धुले आंवले को कपड़े की पोटली में बांध लीजिये।
किसी बड़े
स्टील के भगोने में 10-12 लीटर पानी लीजिए, प्रथम सामग्री की जड़ी बूटियां डालिये और बंधे हुये आंवले की पोटली डाल दीजिये। भगोने को तेज आग पर रखिये, उबाल आने के बाद आग धीमी कर दीजिये, आंवले और जड़ी बूटियों को धीमी आग पर एक से डेड़ घंटे तक उबलने दीजिये, जब आंवले बिलकुल नरम हो जायें तब आग बन्द कर दीजिये। आंवले और जड़ी बूटियों को उसी तरह भगोने में उसी पानी में रातभर या 10 -12 घंटे ढककर पड़े रहने दीजिये।

आप बर्तन की उपलब्धता के अनुसार इसे एक, दो या तीन भागों में बांटकर भी उबाल सकते हैं।

अब आंवले की पोटली निकाल कर जड़ी बूटियों से अलग कीजिये, आप देखेंगे कि आंवले काले हो गये हैं, आंवलों ने जड़ी बूटियों का रस अपने अन्दर तक सोख लिया है. सारे आंवले से गुठली निकाल कर अलग कर लीजिये।

जड़ी बूटियां का ठोस भाग छलनी से छान कर अलग कर दीजिये। जड़ी बूटियों का पानी अपने पास छान कर संभाल कर रख लीजिये यह च्यवनप्राश बनाने के काम आयेगा।

जड़ी बूटियों के साथ उबाले हुये आंवलों को, जड़ी बूटियों से निकला थोड़ा थोड़ा पानी मिलाकर मिक्सर से एकदम बारीक पीस लीजिये और बड़ी छ्लनी में डालकर, चमचे से दबा दबा कर छान लीजिये. सारे आंवले इसी तरह पीस कर छान लीजिये। आंवले के सारे रेशे छलनी के ऊपर रह जायेंगे उन्हे फैंक दें।

जड़ी बूटी से छाना हुआ पानी बचा हुआ है तो इसे भी इसी पल्प में मिला सकते हैं। जड़ी बूटियों के रस और आवंले के पल्प के मिश्रण को हम च्यवनप्राश बनाने के काम लेंगे।

लोहे की कढ़ाई जिसमें पल्प आसानी से भूना जा सके। आग पर गरम करने के लिये रखिये। कढ़ाई में तिल का तेल डाल कर गरम कीजिये, गरम तेल में घी डाल कर घी पिघलने तक गरम कीजिये। जब तिल का तेल अच्छी तरह गरम हो जाय तब आंवले का छाना हुआ पल्प डालिये और पलटे से चलाते हुये पकाइये। मिश्रण में उबाल आने के बाद चीनी डालिये और लगातार चमचे से चलाते हुये मिश्रण को एकदमा गाड़ा होने तक पका लीजिये। आप बडी लोहे की कडाही की उपलब्धतानुसार इसे 1 या दो बार में पका सकते हैं। इसे लोहे की कडाही मे ही पकाना है।

जब मिश्रण एकदम गाढा हो जाय तो गैस से उतार इस मिश्रण को 5-6 घंटे तक लोहे की कढ़ाई में ही ढककर रहने दीजिये। पांच या 6 घंटे बाद इस मिश्रण को आप स्टील के बर्तन में निकाल कर रख सकते हैं।

दूसरी लिस्ट की सामग्री में से छोटी इलायची को छील लीजिये। इसके बाद छिली हुई छोटी इलायची के दानो में पिप्पली, बंशलोचन, दालचीनी, तेजपात, नागकेशर को मिक्सी में एकदम बारीक पीस लीजिये। पीसते समय या पीसने के बाद मिक्सी के ढक्कन को थोड़ा देर से खोलें ताकि पिप्पली और बंसलोचन की धस आपको न लगे

अब यह पिसी सामग्री, पिसी चीनी या मिश्री, शहद और केसर को आंवले के मिश्रण में अच्छी तरह से फेंट कर मिला दीजिये. आपका च्यवनप्राश तैयार है।

इसे एयरटाइट कंटेनरों मे निकालकर स्टोर कर लें।

प्लेटलेट ( Platelet) को बढ़ाने के घरेलू उपाय


डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों में प्लेटलेट्स की संख्या बड़ी तेजी से घटती है। ऐसे में अगर इनके कम होने को नियंत्रित न किया जाए तो स्थित गंभीर हो सकती है। प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाने में कुछ आहार हमारी मदद कर सकते हैं,जो कि प्राकृतिक रूप से प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाने में मददगार होते हैं।

उनमें से कुछ प्रमुख आहार है:—

गिलोय –

गिलोय का जूस प्‍लेटलेट्स को बढ़ाने मेंसर्वोत्तम है। इससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। दो चुटकी गिलोय के सत्व को एक चम्मच शहद के साथ दिन में दो बार लें या फिर गिलोय की डंडी को रात भर पानी में भिगो कर सुबह उसका छना हुआ पानी पी लें। ब्‍लड में प्‍लेटलेट्स बढ़ने लगेंगे।

चुकंदर –

चुकंदर प्राकृतिक एंटीऑक्‍सीडेंट और हेमोस्टैटिक गुणों से भरपूर होता है। अगर दो से तीन चम्मच चुकंदर के रस को एक गिलास गाजर के रस में मिलाकर पिया जाये तो ब्लड प्लेटलेट्स तेजी से बढ़ते हैं। साथ ही साथ इसमें मौजूद एंटी-ऑक्‍सीडेंट्स शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को भी बढ़ाते हैं।

पपीता –

पपीते के फल और पत्तियां दोनों ही प्‍लेटलेट्स बढ़ाने में मददगार हैं। डेंगू बुखार में गिरने वाले प्‍लेटलेट्स को पपीता के पत्ते के रस के सेवन से तेजी से बढ़ाया जा सकता है। पपीते की पत्तियों को चाय की तरह भी पानी में उबालकर पी सकते हैं।

पालक –

दो कप पानी में 4 से 5 ताजा पालक के पत्तों को डालकर कुछ मिनट के लिए उबाल लें। इसे ठंडा होने के लिए रख दें। फिर इसमें आधा गिलास टमाटर मिला दें। इसे मिश्रण को दिन में तीन बार पिएं। इसके अलावा पालक का सेवन सूप, सलाद, स्‍मूदी या सब्‍जी के रूप में भी कर सकते हैं।

नारियल पानी –

नारियल पानी में इलेक्ट्रोलाइट्स अच्छी मात्रा में होते हैं। इसके अलावा यह मिनिरल्स का भी अच्छा स्रोत है जो शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स की कमी को पूरा करने में मदद करते हैं।

पपीते के पत्ते-

पपीते के पत्तों को पानी में उबालकर उसे ग्रीन टी के रूप में पीने से काफी लाभ होता है। साल 2009 में मलेशिया के शोधकर्ताओं ने ये दावा किया था कि प्लेटलेट्स बढ़ाने में पपीता ही नहीं, उसकी पत्तियां भी मददगार साबित होती हैं। ‘खासतौर पर डेंगू बुखार के कारण कम हुए प्लेटलेट्स को संतुलित करने में पपीता फायदेमंद होता है।

आंवला-

ये एक आयुर्वेदिक उपचार है। आंवले में मौजूद विटामिन-सी शरीर में प्लेटलेट्स का उत्पादन बढ़ाता है, इससे शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है। इसका नियमित सेवन करना बेहद जरूरी है। इसके लिए हर दिन सुबह खाली पेट 3 से 4 आंवला खाएं। आप इसका सेवन चुकंदर के जूस में डालकर भी कर सकती हैं।

इसके अलावा ये चीजें भी हो सकती हैं मददगार :—

  1. प्लेटलेट्स बढ़ाने के लिए कीवी का सेवन करें।
  2. गाजर का नियमित सेवन करें।
  3. नारियल पानी का सेवन करें। इसमें मौजूद इलेक्ट्रोलाइट्स और मिनरल्स प्लेटलेट्स बढ़ाने में बेहद मददगार साबित होते हैं।
  4. बकरी का दूध भी प्लेटलेट्स बढ़ाने में बहुत लाभकारी होता है।

function disabled

Old Post from Sanwariya