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बुधवार, 29 दिसंबर 2021

मनुष्य योनि का भोग

*मनुष्य योनि का भोग*

एक दरिद्र ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजर रहा था, बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया, किन्तु उस नगर मे किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अन्न नहीं दिया।
आखिर दोपहर हो गयी ,तो ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा था, सोच रहा था “कैसा मेरा दुर्भाग्य है इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक नहीं मिला ? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक नहीं मिला ?
इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस ब्राहम्ण पर पड़ी ,उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली, वे बड़े पहुँचे हुए संत थे ,उन्होंने कहाः “हे दरिद्र ब्राह्मण तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?”

यह सुनकर ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन् आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है”

महात्मा बोले, “नहीं ब्राह्मण मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं ,अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब से ही जी रहे हैं। कोई शेर की योनी से आया है तो कोई कुत्ते की योनी से आया है, कोई हिरण की योनी से आया है तो कोई गाय या भैंस की योनी से आया है ,उन की आकृति मानव-शरीर की जरूर है, किन्तु अभी तक उन में मनुष्यत्व निखरा नहीं है ,और जब तक मनुष्यत्व नहीं निखरता, तब तक दूसरे मनुष्य की पीड़ा का पता नहीं चलता। "दूसरे में भी मेरा प्रभु ही है" यह ज्ञान नहीं होता। तुम ने मनुष्यों से नहीं, पशुओं से भिक्षा माँगी है”।

ब्राह्मण का चेहरा दुःख व निराशा से भरा था। सिद्धपुरुष तो दूरदृष्टि के धनी होते हैं उन्होंने कहाः “देख ब्राह्मण, मैं तुझे यह चश्मा देता हूँ इस चश्मे को पहन कर जा और कोई भी मनुष्य दिखे, उस से भिक्षा माँग फिर देख, क्या होता है”

वह दरिद्र ब्राह्मण जहाँ पहले गया था, वहीं पुनः गया और योगसिद्ध कला वाला चश्मा पहनकर गौर से देखाः

‘ओहोऽऽऽऽ….वाकई कोई कुत्ता है कोई बिल्ली है तो कोई बघेरा है। आकृति तो मनुष्य की है ,लेकिन संस्कार पशुओं के हैं, मनुष्य होने पर भी मनुष्यत्व के संस्कार नहीं हैं’। घूमते-घूमते वह ब्राह्मण थोड़ा सा आगे गया तो देखा कि एक मोची जूते सिल रहा है, ब्राह्मण ने उसे गौर से देखा तो उस में मनुष्यत्व का निखार पाया।

ब्राह्मण ने उस के पास जाकर कहाः “भाई तेरा धंधा तो बहुत हल्का है ,औऱ मैं हूँ ब्राह्मण रीति रिवाज एवं कर्मकाण्ड को बड़ी चुस्ती से पालता हूँ ,मुझे बड़ी भूख लगी है ,इसीलिए मैं तुझसे माँगता हूँ ,क्योंकि मुझे तुझमें मनुष्यत्व दिखा है”

उस मोची की आँखों से टप-टप आँसू बरसने लगे वह बोलाः “हे प्रभु, आप भूखे हैं ? हे मेरे भग्वन आप भूखे हैं ? इतनी देर आप कहाँ थे ?”

यह कहकर मोची उठा एवं जूते सिलकर टका, आना-दो आना वगैरह जो इकट्ठे किये थे, उस चिल्लर (रेज़गारी) को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुँचा और बोलाः “हलवाई भाई, मेरे इन भूखे भगवान की सेवा कर लो ये चिल्लर यहाँ रखता हूँ जो कुछ भी सब्जी-पराँठे-पूरी आदि दे सकते हो, वह इन्हें दे दो मैं अभी जाता हूँ”

यह कहकर मोची भागा,और घर जाकर अपने हाथ से बनाई हुई एक जोड़ी जूती ले आया, एवं चौराहे पर उसे बेचने के लिए खड़ा हो गया।


उस राज्य का राजा जूतियों का बड़ा शौकीन था, उस दिन भी उस ने कई तरह की जूतियाँ पहनीं, किंतु किसी की बनावट उसे पसंद नहीं आयी तो किसी का नाप नहीं आया, दो-पाँच बार प्रयत्न करने पर भी राजा को कोई पसंद नहीं आयी तो राजा मंत्री से क्रुद्ध होकर बोलाः

“अगर इस बार ढंग की जूती लाया तो जूती वाले को इनाम दूँगा ,और ठीक नहीं लाया तो मंत्री के बच्चे तेरी खबर ले लूँगा।”

दैव योग से मंत्री की नज़र इस मोची के रूप में खड़े असली मानव पर पड़ गयी जिस में मानवता खिली थी, जिस की आँखों में कुछ प्रेम के भाव थे, चित्त में दया-करूणा थी, ब्राह्मण के संग का थोड़ा रंग लगा था। मंत्री ने मोची से जूती ले ली एवं राजा के पास ले गया। राजा को वह जूती एकदम ‘फिट’ आ गयी, मानो वह जूती राजा के नाप की ही बनी थी। राजा ने कहाः “ऐसी जूती तो मैंने पहली बार ही पहन रहा हूँ ,किस मोची ने बनाई है यह जूती ?”

मंत्री बोला “हुजूर यह मोची बाहर ही खड़ा है”

मोची को बुलाया गया। उस को देखकर राजा की भी मानवता थोड़ी खिली। राजा ने कहाः

“जूती के तो पाँच रूपये होते हैं किन्तु यह पाँच रूपयों वाली नहीं है,पाँच सौ रूपयों वाली जूती है। जूती बनाने वाले को पाँच सौ और जूती के पाँच सौ, कुल एक हजार रूपये इसको दे दो!”

मोची बोलाः “राजा जी, तनिक ठहरिये, यह जूती मेरी नहीं है, जिसकी है उसे मैं अभी ले आताहूँ”मोची जाकर विनयपूर्वक उस ब्राह्मण को राजा के पास ले आया एवं राजा से बोलाः “राजा जी, यह जूती इन्हीं की है।

”राजा को आश्चर्य हुआ वह बोलाः “यह तो ब्राह्मण है इस की जूती कैसे ?”राजा ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने कहा मैं तो ब्राह्मण हूँ, यात्रा करने निकला हूँ”

राजाः “मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?”

मोची ने कहाः “राजन् मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मण देव की होगी। जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ। न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ?

इसीलिए राजन् ये रूपये मेरे नहीं हुए। मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं। हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया!”

राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः “ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?

”ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली बात बताई, और कहा कि राजन्, आप के राज्य में पशुओं के दर्शन तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का अंश इन मोची भाई में ही नज़र आया।

”राजा ने कौतूहलवश कहाः “लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें।”राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारियों में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ। राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर! उस के आश्चर्य की सीमा न रही, ‘ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ।’ राजा ने कहाः “ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है, वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?”

ब्राह्मणः “वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं।”श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते।

ब्राह्मण ने आगे कहाः "राजन् अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है। व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है।

एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है ,लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है।”अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है ,और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हममें मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ?

गोस्वामी तुलसीदाज जी ने कहा हैः

बिगड़ी जनम अनेक की, सुधरे अब और आजु।
तुलसी होई राम को, रामभजि तजि कुसमाजु।।

कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे। अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा। यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे। पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है। पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप बाहर निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है हरि नाम संकीर्तन यानी (सत्य का संग)व सत्संग से! तो हे आत्म जनों, मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता है। बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह जाता है..!! इसलिए आप जो भी कमा रहे उसमे से कम से कम 2% दान करते रहे जो सेवा आपको सही लगे उस में..!!
   *🙏🏼🙏🏽🙏🏾जय जय श्री राधे*🙏🏿🙏🏻🙏

अच्छे संस्कार बनाएं और देश समाज धर्म के लिए भी अच्छे कर्म करके आप उपयोगी बनें


        "टाइम पास करने के लिए यदि आप को चर्चा ही करनी हो, तो उसके दो उपाय हैं। या तो ईश्वर के गुणों की चर्चा करें, या फिर दूसरे लोगों के अच्छे कर्मों की चर्चा करें। बहुत अच्छा टाइम पास होगा।"
          बहुत से लोगों के पास बहुत सारा टाइम फालतू है। जब उन्हें कोई काम नहीं होता, पूरी फुर्सत में होते हैं, तो वे सोचते हैं, कि "अपना टाइम पास कैसे करें?" यूं तो टाइमपास करने के बहुत तरीके हैं, जिनका प्रयोग आमतौर पर लोग करते हैं। जैसे "कि व्यायाम करना खेलकूद करना टेलीविजन देखना facebook पर काम करना whatsapp का प्रयोग करना ताश खेलना जुआ खेलना सेवा करना दान देना कहीं रोगियों की मदद करना ईश्वर का ध्यान करना स्वाध्याय करना सत्संग करना इत्यादि।" इनमें से कुछ तरीके अच्छे हैं, और कुछ बुरे। "बुरे तरीके से टाइम पास नहीं करना चाहिए, सदा अच्छे कर्म ही करने चाहिएं, जिससे कि सब का भविष्य अच्छा बने।" लोग इन सब कामों को करते हुए अपना टाइम पास करते हैं। परंतु कभी-कभी उनकी इच्छा गप्पें मार कर टाइम पास करने की होती है। "ऐसी स्थिति में वे लोग बैठकर आपस में  कुछ इधर-उधर की बातें करते हैं। कुछ गपशप करते हैं। कुछ निंदा चुगली करते हैं। कभी कभी कुछ अश्लील बातें भी करते हैं। कुछ लोग बिना प्रसंग की व्यर्थ की बातें भी करते हैं।" यदि आपको टाइम पास करने के लिए बातचीत ही करनी हो, और दूसरे किसी काम में रुचि न हो, तो "इस प्रकार की बातचीत करें, जिससे आपको कुछ लाभ भी हो, शांति मिले, आनंद मिले, उत्साह बढ़े, कुछ अच्छी प्रेरणा मिले और आपका टाइम पास भी हो जाए।"
            मनोविज्ञान का सिद्धांत ऐसा कहता है, कि आप जिस विषय पर चर्चा करेंगे, उसका प्रभाव आपके ऊपर अवश्य पड़ेगा। यदि आप अच्छी चर्चा करेंगे, तो आपका मन प्रसन्न होगा। यदि आप खराब घटनाओं की चर्चा करेंगे, तो आपके मन पर उसका भी प्रभाव पड़ेगा। मन में अशांति और तनाव उत्पन्न होगा।"
          अब यदि आप अपने मन को प्रसन्न भी रखना चाहते हैं, उस चर्चा से अपना संस्कार भी उत्तम बनाना चाहते हैं, उन संस्कारों से भविष्य में अच्छे कर्म भी करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको अच्छी बातें ही करनी पड़ेंगी। उसके दो भाग इस प्रकार से हैं।
            एक तो यह, - कि "आप ईश्वर के विषय में चर्चा करें। जब भी आपको फुर्सत हो, समय खाली हो, टाइमपास करना हो, जब दो चार आदमी मिलकर बैठें, तो ईश्वर की चर्चा करें। ईश्वर के गुणों पर विचार चिंतन और बातचीत करें। इससे आपको बहुत आनंद मिलेगा, शांति मिलेगी, और ईश्वर के गुणों का आपके ऊपर बहुत उत्तम प्रभाव पड़ेगा, जिससे कि आप भविष्य में अच्छे काम करेंगे।"
       इसके अतिरिक्त बात चीत करने के लिए दूसरा विषय यह है, कि - "समाज के लोगों में से जिसने अच्छे कर्म किए हों, अर्थात सेवा परोपकार दान दया नम्रता सभ्यता रोगियों की सहायता करना गरीबों को मदद देना आदि आदि इस प्रकार के अच्छे काम किए हों, तो उन मनुष्यों के कर्मों पर इस प्रकार से चर्चा करें," कि "हमारा कितना सौभाग्य है, कि हमारे देश में इतने अच्छे-अच्छे परोपकारी सज्जन लोग रहते हैं। जैसे कि उस व्यक्ति ने गौशाला चलाई। उसने धर्मार्थ चिकित्सालय चलाया। किसी ने धर्मशाला बनवाई। कोई गरीब लोगों की सहायता कर रहा है। कोई गरीब बच्चों की स्कूल की फीस भर रहा है। कोई व्यक्ति गरीब बच्चों को मुफ्त में ट्यूशन पढ़ा रहा है।"
        जब आप इस प्रकार की बातें करेंगे, तो आपके ऊपर इसका बहुत अच्छा प्रभाव पड़ेगा।   आपको भी उन अच्छे कर्मों से प्रेरणा मिलेगी। आपका मन भी शांति और प्रसन्नता से भर जाएगा। वैसे उत्तम कर्म करने का आपके अंदर भी उत्साह उत्पन्न होगा। तो इस प्रकार से आपको बहुत अधिक लाभ होगा। अतः जब भी चर्चा करें तो ऐसी ही सार्थक चर्चा करें।
           "व्यर्थ की राजनीति की बातें, फिल्मों की बातें, गंदी कथा कहानियां, अश्लील बातें करने से आप का चरित्र बिगड़ेगा। आपका कर्म बिगड़ेगा। आप के संस्कार भी बिगड़ेंगे, जिससे कि आप भविष्य में बुरे कर्म करेंगे। आपके मन में अशांति और तनाव उत्पन्न होगा।" ऐसी ख़राब बातें करने से आपका टाइम तो पास हो जाएगा, परंतु यह कार्य लाभकारी नहीं होगा, बल्कि हानिकारक अधिक होगा। "ख़राब बातें करने से आपका वर्तमान और भविष्य दोनों बिगड़ जाएंगे। इसलिए इस प्रकार की बुरी चर्चाएं करने से बचें। अच्छी चर्चाएं करें। अच्छे संस्कार बनाएं और देश समाज धर्म के लिए भी अच्छे कर्म करके आप उपयोगी बनें। इसी में आप के जीवन की सफलता है।"
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सोचे आनेवाली पीढी।*घर चाहिये या दिखावे की आज़ादी

सभी से अनुरोध है कि एक बार पढ़ियेगा अवश्य । काफी समय के बाद किसी ने बेहद सुंदर आर्टिकल भेजा है ।

🙏🏽 

*नींव ही कमजोर पड़ रही है गृहस्थी की..!!* 


आज हर दिन किसी न किसी का घर खराब हो रहा है ।
*इसके मूल कारण और जड़ पर कोई नहीं जा रहा है, जो कि अति संभव है एवं निम्न हैं----------------।


*1, पीहरवालों की अनावश्यक दखलंदाज़ी।*

*2, संस्कार विहीन शिक्षा*

*3, आपसी तालमेल का अभाव* 

*4, ज़ुबानदराज़ी*

*5, सहनशक्ति की कमी*

*6, आधुनिकता का आडम्बर*

*7, समाज का भय न होना*

*8, घमंड झूठे ज्ञान का*

*9, अपनों से अधिक गैरों की राय*

*10, परिवार से कटना।*

 *11. घण्टों मोबाइल पर चिपके रहना ,और घर गृहस्थी की तरफ ध्यान न देना।* 

*12. अहंकार के वशीभूत होना ।* 

पहले भी तो परिवार होता था,
*और वो भी बड़ा।*
*लेकिन वर्षों आपस में निभती थी!*
*भय था , प्रेम था और रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही भी।*
*पहले माँ बाप ये कहते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य में दक्ष है*, 

*और अब कहते हैं कि मेरी बेटी नाज़ों से पली है । आज तक हमने तिनका भी नहीं उठवाया।*

*तो फिर करेगी क्या शादी के बाद ?*



*शिक्षा के घमँड में बेटी को आदरभाव,अच्छी बातें,घर के कामकाज सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते।*

*माँएं खुद की रसोई से ज्यादा बेटी के घर में क्या बना इसपर ध्यान देती हैं।*

*भले ही खुद के घर में रसोई में सब्जी जल रही है ।*

*मोबाईल तो है ही रात दिन बात करने के लिए।*

परिवार के लिये किसी के पास समय नहीं।

*या तो TV या फिर पड़ोसन से एक दूसरे की बुराई या फिर दूसरे के घरों में तांक-झांक।*

जितने सदस्य उतने मोबाईल।
*बस लगे रहो।*

बुज़ुर्गों को तो बोझ समझते हैं।
*पूरा परिवार साथ बैठकर भोजन तक नहीं कर सकता।*
सब अपने कमरे में।

*वो भी मोबाईल पर।*


बड़े घरों का हाल तो और भी खराब है।
*कुत्ते बिल्ली के लिये समय है।*
*परिवार के लिये नहीं*।



*सबसे ज्यादा बदलाव तो इन दिनों महिलाओं में आया है।*

*दिन भर मनोरँजन,* 

*मोबाईल,*

*स्कूटी..कार पर घूमना फिरना ,*

*समय बचे तो बाज़ार जाकर शॉपिंग करना*

*और ब्यूटी पार्लर।*

जहां घंटों लाईन भले ही लगानी पड़े ।

भोजन बनाने या परिवार के लिये समय नहीं।

*होटल रोज़ नये-नये खुल रहे हैं।*
जिसमें स्वाद के नाम पर कचरा बिक रहा है।

*और साथ ही बिक रही है बीमारी एवं फैल रही है घर में अशांति।*

आधुनिकता तो होटलबाज़ी में है।
*बुज़ुर्ग तो हैं ही घर में बतौर चौकीदार।*


पहले शादी ब्याह में महिलाएं गृहकार्य में हाथ बंटाने जाती थीं।
*और अब नृत्य सीखकर।*
क्यों कि *महिला संगीत* में अपनी नृत्य प्रतिभा जो दिखानी है।


*जिस महिला की घर के काम में तबियत खराब रहती है वो भी घंटों नाच सकती है।


👌🏻*घूँघट और साड़ी हटना तो चलो ठीक है,
*लेकिन बदन दिखाऊ कपड़े ?
*बड़े छोटे की शर्म या डर रहा क्या ?*
वरमाला में पूरी फूहड़ता।
*कोई लड़के को उठा रहा है।*
*कोई लड़की को उठा रहा है* 
*और हम ये तमाशा देख रहे हैं, खुश होकर, मौन रहकर।*



*माँ बाप बच्ची को शिक्षा तो बहुत दे रहे हैं ,
*लेकिन उस शिक्षा के पीछे की सोच ?*
ये सोच नहीं है कि परिवार को शिक्षित करें।
*बल्कि दिमाग में ये है कि कहीं तलाक-वलाक हो जाये तो अपने पाँव पर खड़ी हो जाये*
*ख़ुद कमा खा ले।*
*जब ऐसी अनिष्ट सोच और आशंका पहले ही दिमाग में हो तो रिज़ल्ट तो वही सामने आना ही है।*


 साइँस ये कहता है कि गर्भवती महिला अगर कमरे में सुन्दर शिशु की तस्वीर टांग ले तो शिशु भी सुन्दर और हृष्ट-पुष्ट होगा।
*मतलब हमारी सोच का रिश्ता भविष्य से है।*


बस यही सोच कि - अकेले भी जिंदगी जी लेगी गलत है ।
*संतान सभी को प्रिय है।*
लेकिन ऐसे लाड़ प्यार में हम उसका जीवन खराब कर रहे हैं।


*पहले पुराने समय में , स्त्री तो छोड़ो पुरुष भी थाने, कोर्ट कचहरी जाने से घबराते थे।*
*और शर्म भी करते थे।*
*लेकिन अब तो फैशन हो गया है।*
पढ़े-लिखे युवक-युवतियाँ *तलाकनामा* तो जेब में लेकर घूमते हैं।


*पहले समाज के चार लोगों की राय मानी जाती थी।*
*और अब तो समाज की कौन कहे , माँ बाप तक को जूते की नोंक पर रखते हैं।*


*सबसे खतरनाक है - ज़ुबान और भाषा,जिस पर अब कोई नियंत्रण नहीं रखना चाहता।*
कभी-कभी न चाहते हुए भी चुप रहकर घर को बिगड़ने से बचाया जा सकता है।
*लेकिन चुप रहना कमज़ोरी समझा जाता है।*आखिर शिक्षित जो हैं।
*और हम किसी से कम नहीं वाली सोच जो विरासत में मिली है।*


*आखिर झुक गये तो माँ बाप की इज्जत चली जायेगी।*
*गोली से बड़ा घाव बोली का होता है।*


*आज समाज ,सरकार व सभी चैनल केवल महिलाओं के हित की बात करते हैं।*


*पुरुष जैसे अत्याचारी और नरभक्षी हों।*
*बेटा भी तो पुरुष ही है।*
*एक अच्छा पति भी तो पुरुष ही है।*
*जो खुद सुबह से शाम तक दौड़ता है, परिवार की खुशहाली के लिये।*
*खुद के पास भले ही पहनने के कपड़े न हों।*
*घरवाली के लिये हार के सपने ज़रूर देखता है।*
बच्चों को महँगी शिक्षा देता है।


*मैं मानता हूँ पहले नारी अबला थी।*
माँ बाप से एक चिठ्ठी को मोहताज़।
*और बड़े परिवार के काम का बोझ।*


अब ऐसा है क्या ?
*सारी आज़ादी।*

मनोरंजन हेतु TV,

*कपड़े धोने के लिए वाशिंग मशीन,* 

*मसाला पीसने के लिए मिक्सी*, 

*रेडिमेड पैक्ड आटा,

*पैसे हैं तो नौकर-चाकर,*

*घूमने को स्कूटी या कार* 

*फिर भी और आज़ादी चाहिये।*

आखिर ये मृगतृष्णा का अंत कब और कैसे होगा ?

*घर में कोई काम ही नहीं बचा।*

दो लोगों का परिवार।

*उस पर भी ताना।।*
कि रात दिन काम कर रही हूं।


*ब्यूटी पार्लर आधे घंटे जाना आधे घंटे आना और एक घंटे सजना नहीं अखरता।*


लेकिन दो रोटी बनाना अखर जाता है।

*कोई कुछ बोला तो क्यों बोला ?*

*बस यही सब वजह है घर बिगड़ने की।*
खुद की जगह घर को सजाने में ध्यान दें , तो ये सब न हो।

*समय होकर भी समय कम है परिवार के लिये।*

ऐसे में परिवार तो टूटेंगे ही।


*पहले की हवेलियां सैकड़ों बरसों से खड़ी हैं।*और पुराने रिश्ते भी।

*आज बिड़ला सीमेन्ट वाले मजबूत घर कुछ दिनों में ही धराशायी।*

और रिश्ते भी महीनों में खत्म।


*इसका कारण है
रिश्तों मे *ग़लत सँस्कार*
*खैर हम तो जी लिये।*


सोचे आनेवाली पीढी।
*घर चाहिये या दिखावे की आज़ादी ?*


दिनभर बाहर घूमने के बाद रात तो घर में ही महफूज़ होती है ।
आप मानो या ना मानो आप की मर्जी मगर यह कड़वा सत्य है ।

प0 रघुवीर शर्मा

जो महिलाएं अपना कार्य नौकरों से करवाती हैं

जो महिलाएं अपना कार्य नौकरों से करवाती हैं जिसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है वह अधिकांश कुछ न कुछ रोगों से घिर जाती हैं उनके लिए ये पोस्ट मुझे बेहतर लगी तो शेयर कर रहा हूं हो सकता है कुछ बुरा भी लगे और कुछ शायद इस तरह से अपने को बदलने की कोशिश भी करें ।
इस पोस्ट को जरूर व पूरा पढ़ें, कटु सत्य है
 बुरा ना माने 🙏

एक दिन मैं घर के बाहर बड़े तन्मयता से  गाड़ीयां धो रही थी। साईकल पर जाता हुआ एक माली रुका और मुझसे पूछा, "कुछ पौधे वगैरह चाहिये?"
मैंने कहा,"चाहियें तो"
उसने कहा,"अपनी मैडम को बुला दो उनसे ही बात करूंगा"
मैंने अंदर जाकर कपड़े बदले और बाहर आकर कहा,"मैं ही मैडम हूँ, पौधे दिखाओ"
वो बेचारा शर्म से पानी पानी हो गया और  माफी मांगने लगा।
कसूर उसका नही था!

अक्सर बड़े घरों व बड़ी गाड़ियों में चलने वालों के घर नौकरों की पलटन होती हैं। ऐसे में कोई सोच भी नही सकता की जिनके घर में कई गाड़ियां खड़ी हों और इतना बड़ा घर हो वो लोग अपना काम खुद भी करते होंगे।

अक्सर जान पहचान वाले लोग कहते हैं कि नौकर क्यों नही लगा लेती?
तो मैं उनसे पूछती हूँ कि क्या उन्हें मैं लूली,लंगड़ी या अपाहिज नज़र आती हूँ?
यदि नही!तो फिर मैं अपना काम खुद क्यों नही कर सकती!

 यदि मुझमे अपने काम खुद करने की सामर्थ्य है तो मैं वही काम नौकर से क्यों कराऊँ?

कभी कभी मैं हैरान होती हूँ कि एक कामकाजी महिला होने के बाद भी मैं अपने सारे घर का काम खुद करना पसंद करती हूँ।

2मंज़िल के घर की सफाई,वृहद बगीचा...
लेकिन घर के झाड़ू पोचे से लेकर गार्डन की सफाई, गाड़ियों को धोना साफ करना,हर तरह का खाना बनाना,साग सब्जी लाना, कपड़े खुद धोना इस्त्री करने से लेकर बर्तन धोने और गमले पेड़ पौधे लगाने का काम भी बड़ी ही सरलता से कर लेती हूँ।

दिन में 100-200 km गाड़ी भी चला लेती हूँ,गोल्फ खेलती हूँ,5km वॉक करती हूँ।समय मिले तो पढ़ती लिखती भी हूँ ...

तो फिर हमारी वो गृहणियाँ जो नौकरी भी नही करती,आफिस नही जाती उन्हें अपने ढाई कमरों के घर साफ कराने ,चार बर्तन धोने और 8 रोटी सेकने के लिए नौकर क्यों चाहिये?

जो अंग्रेजों नौकरशाही का कोढ़ हमारे समाज में फैला कर चले गए उनके अपने देशों में घरेलू नौकर रखने का कोई रिवाज़ नही है।वहां वो लोग अपना सारा काम खुद करते हैं। लेकिन हमारे यहाँ अपने घर का काम खुद करने मे शर्म आती है,क्यो?

हमारी गृहणियों को भी जिनके पति सवेरे आफिस चले जाते हैं और शाम को घर लौटते हैं अपने 10 x 10 के कमरे साफ कराने के लिये महरी चाहिए?

मेरे अभिजात्य दोस्त लोगों में जिनकी बीबियाँ हर हफ्ते पार्लर जाती हैं उन्हें वज़न घटाने के लिए सलाद के पत्ते खाना मंज़ूर है!!gym में घण्टो ट्रेड मिल पर हांफना मंज़ूर है, लेकिन अपने घर मे एक गिलास पानी लाने के लिए नौकर चाहिए।

जो नौकरानियां हमारे घरों को साफ करने आती हैं उनके भी परिवार होते हैं बच्चे होते हैं ,ना उनके घरों में कोई खाना बनाने आता है ना ही कोई कपड़े धोने तो फिर जब वो इतने घरों का काम करके अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी निभा लेती हैं तो हम अपने परिवार का पालन पोषण करने में क्यों थक जाते हैं?

दरअसल हमारे यहाँ काम को सिर्फ बोझ समझा जाता है चाहे वो नौकरी में हो निजी जिंदगी में। जिस देश मे कर्मप्रधान गीता की व्यख्या इतने व्यपक स्तर पर होती है वहाँ कर्महीनता से समाज सराबोर है।हम काम मे मज़ा नही ढूंढते, सीखने का आनंद नही जानते,कुशलता का फायदा नही उठाते!

हम अपने घर नौकरों से साफ कराते हैं!

झूठे बर्तन किसी से धुलवाते हैं!

कपड़े धोबी से प्रेस करवाते हैं!

खाना कुक से बनवाते हैं!

बच्चे आया से पलवाते हैँ!

 गाड़ी ड्राइवर से धुलवाते हैं!

बगीचा माली से लगवाते हैं!

तो फिर अपने घर के लिये हम क्या करते हैं? 

कितने शर्म की बात है एक दिन अगर महरी छुट्टी कर जाये तो कोहराम मच जाता है, फ़ोन करके अडोस पड़ोस में पूछा जाता है।

जिस दिन खाना बनाने वाली ना आये तो  होटल से आर्डर होता है या फिर मेग्गी बनता है।

 घरेलू नौकर अगर साल में एक बार छुट्टी मांगता है तो हमे बुखार चढ़ जाता है। होली दिवाली व त्योहारों पर भी हम नौकर को छुट्टी देने से कतराते हैं!

 जो महिलाएं नौकरीपेशा हैं उनका नौकर रखना वाज़िब बनता है किंतु जो महिलाएँ सिर्फ घर रहकर अपना समय TV देखने या FB और whats app करने में बिताती हैं उन्हें भी हर काम के लिए नौकर चाहिये? 

सिर्फ इसलिए क्योंकी वो पैसा देकर काम करा सकती हैं? लेकिन बदले में कितनी बीमारियों को दावत देती हैं शायद ये वो नही जानती। 

आज 35 वर्ष से ऊपर की महिलाओं को ब्लड प्रेशर ,मधुमेह, घुटनों के दर्द,कोलेस्ट्रॉल, थायरॉइड जैसी बीमारियां घेर लेती हैं जिसकी वजह सिर्फ और सिर्फ लाइफस्टाइल है।

यदि 2 घण्टे घर की सफाई की जाये तो 320 कैलोरी खर्च होती हैं, 45 मिनट बगीचे में काम करने से 170 कैलोरी खर्च होती हैं, एक गाड़ी की सफाई करने में 67 कैलोरी खर्च होती है,खिड़की दरवाजो को पोंछने से कंधे,हाथ, पीठ व पेट की मांसपेशियां मजबूत होती हैं,आटा गूंधने से हाथों में आर्थ्राइटिस नही आता। कपड़े निचोड़ने से कलाई व हाथ की मानपेशियाँ मजबूत होती हैं,20 मिनट तक रोटियां बेलने से फ्रोजन शोल्डर होने की संभावना कम हो जाती है, ज़मीन पर बैठकर काम करने से घुटने जल्दी खराब नही होते।

लेकिन हम इन सबकी ज़िम्मेदारी नौकर पर छोड़कर खुद डॉक्टरों से दोस्ती कर लेते हैँ। फिर शुरू होती है खाने मे परहेज़, टहलना,जिम, या फिर सर्जरी!!

कितना आसान है इन सबसे पीछा छुड़ाना कि हम अपने घर के काम करें और स्वस्थ रहे।मैंने आजतक नही सुना की घर का काम करने से कोई मर गया हो!

लेकिन हम मध्यम व उच्च वर्ग घर के काम को करना शर्म समझते हैं। नौकर ज़रूरत के लिए कम स्टेटस के लिए ज्यादा रखा जाता है। काम ना करके अनजाने में ही हम अपने शरीर के दुश्मन हो जाते हैँ।

पश्चिमी देशों में अमीर से अमीर लोग भी अपना सारा काम खुद करते हैं और इसमें उन्हें कोई शर्म नही लगती। लेकिन हम मर जायेंगे पर काम नही करेंगे।

किसी भी तरह की निर्भरता कष्ट का कारण होती है फिर वो चाहे शारीरिक हो ,भौतिक हो या मानसिक। अपने काम दूसरों से करवा करवा कर हम स्वयं को मानसिक व शारीरिक रूप से पंगु बना लेते हैं और नौकर ना होने के स्थिति में असहाय महसूस करते हैं।ये एक दुखद स्थिति है। 

यदि हम काम को बोझ ना समझ के उसका आंनद ले तो वो बोझ नही बल्कि एक दिलचस्प एक्टिविटी लगेगा। Gym से ज्यादा बोरिंग कोई जगह नही उसी की जगह जब आप अपने घर को रगड़ कर साफ करते हैं तो शरीर से *एंडोर्फिन हारमोन* निकलता है जो आपको अपनी मेहनत का फल देखकर खुशी की अनुभूति देता है।

अच्छा खाना बनाकर दूसरों को खिलाने से *सेरोटॉनिन हार्मोन* निकलता है जो तनाव दूर करता है।

जब काम करने के इतने फायदे हैं तो फिर ये मौके क्यो छोड़े जायें!

हम अपना काम स्वयं करके ना सिर्फ शरीर बचाते है बल्कि पैसे भी बचाते हैं और निर्भरता से बचते हैं।..
🙏

कोविड़ के नए वैरिएंट के संक्रमण की रोकथाम हेतु प्रमुख शासन सचिव द्वारा निम्नानुसार दिशा-निर्देश जारी

*कोविड़ के नए वैरिएंट के संक्रमण की रोकथाम एवं बचाव हेतु आगामी दिवसों में आने वाले नववर्ष के जश्न में भीड़-भाड़ होने की संभावना के मद्देनजर प्रमुख शासन सचिव गृह (ग्रुप-7) विभाग, जयपुर द्वारा निम्नानुसार दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं:~*

*वैक्सीनेशन की अनिवार्यता*

👉🏼विशेषज्ञों की राय अनुसार जिन्होंने कोविड वैक्सीन की दोनों खुराक (1st & 2nd dose) ले ली हैं, उनमें कोरोना के नये वैरिएंट (ओमिक्रॉन) से संक्रमण का खतरा कम है। और संक्रमित होने पर इसका असर कम देखा गया है।

👉🏼समस्त विश्वविद्यालय / महाविद्यालय / विद्यालय / कोचिंग संस्थान के शैक्षणिक व अशैक्षणिक स्टाफ, 18 वर्ष से अधिक आयु के छात्र-छात्राऐं एवं संस्थान आवागमन हेतु संचालित बस, ऑटो एवं कैब के चालक को वैक्सीन की दोनों खुराक (1" & 2nd dose) लेनी होगी।

👉🏼समस्त राजकीय कार्मिकों से अपेक्षा है कि वे कोविड-19 की दोनों डोज (1st & 2nd dose) लगवा लें। 3. प्रदेश के समस्त सिनेमा हॉल्स / थियेटर / मल्टीप्लेक्स 18 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों, जिन्होंने कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक (1st & 2nd dose) लगवा ली हो, के लिए रात्रि 10:00 बजे तक खोलने की अनुमति होगी।

 👉🏼समस्त प्रकार के ऑडिटोरियम एवं प्रदर्शनी हेतु उपलब्ध स्थान रात्रि 10:00 बजे तक उन व्यक्तियों हेतु अनुमत होगा जिन्होंने कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक (1st & 2nd dose) लगवा ली हो।

 👉🏼समस्त मॉल्स / दुकानें एवं अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को रात्रि 10:00 बजे तक खोलने की अनुमति होगी एवं समस्त कार्मिकों से अपेक्षा है कि वे कोविड की दोनों डोज (1" & 2nd dose) लगवा लें। इसके साथ स्क्रीनिंग की सुविधा, मास्क का उपयोग एवं अन्य कोविड उपयुक्त व्यवहार की अनुपालना करना अनिवार्य होगा।

👉🏼सम्बन्धित संस्था प्रधान / अन्य संस्थानों के संचालकों / मार्केट एसोसिएशन / समस्त विभागाध्यक्ष / कार्यालय प्रमुख अपने स्वयं / स्टाफ / कार्मिकों के वैक्सीन की दोनों डोज (1st & 2nd dose) दिनांक 31 जनवरी, 2022 तक लगवाना सुनिश्चित करावें एवं कार्यालय के सदृश्य स्थान पर यह घोषणा भी लगाये कि स्वयं एवं स्टाफ द्वारा दोनों वैक्सीन डोज लगाई जा चुकी है।

👉🏼दिनांक 31 जनवरी, 2022 पश्चात् इन स्थानों पर डबल डोज (1st & 2nd dose) वैक्सीनेटेड लोगों को अनुमत किया जायेगा तथा उल्लंघन पाये जाने पर संबंधित संस्था प्रधान / अन्य संस्थानों के संचालकों / मार्केट एसोसिएशन / समस्त
विभागाध्यक्ष / कार्यालय प्रमुख के विरुद्ध प्रशासन द्वारा नियमानुसार कार्यवाही सुनिश्चित की जायेगी।

*समारोह आयोजन के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश*

👉🏼सभी प्रकार के भीड़-भाड़ वाले सार्वजनिक, सामाजिक, राजनैतिक, खेल-कूद सम्बन्धी मनोरंजन, शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक समारोह / त्योहारों / शादी समारोह में अधिकतम 200 व्यक्तियों के सम्मिलित होने की अनुमति होगी। उक्त कार्यक्रमों में सम्मिलित होने वाले व्यक्तियों की संख्या 200 से अधिक होने पर इसकी पूर्व अनुमति जिला कलक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट से प्राप्त करना अनिवार्य होगा।

*अन्य दिशा-निर्देश*

👉🏼प्रदेश में नए कोविड वैरिएंट के संक्रमण को रोकने हेतु जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की कोविड टीम द्वारा विदेश से आने वाले यात्रियों की सूचना ऑनलाईन पोर्टल [SSO loginCOVID 19 STATISTICS-District Quarantine Statistice (Form-4)) के माध्यम से इन्द्राज करने के साथ ही उक्त सूचना संबंधित जिला कलक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट को प्रेषित करनी होगी, ताकि जिला कलक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट द्वारा क्वारंटीन नियमों/ कोविड उपयुक्त व्यवहार की पालना की निगरानी सुनिश्चित की जा सके।

👉🏼सिटी / मिनी बसों का संचालन प्रातः 05:00 बजे से रात्रि 11:00 बजे तक अनुमत होगा। किसी भी यात्री को खड़े होकर यात्रा करने की अनुमति नहीं होगी (no standing)

👉🏼रेस्टोरेन्ट्स द्वारा होम डिलीवरी की सुविधा प्रतिदिन 24 घण्टे अनुमत होगी। Take away एवं रेस्टोरेन्ट में बैठाकर खिलाने की सुविधा, बैठक क्षमतानुसार प्रतिदिन रात्रि 10:00 बजे तक कोविड उपयुक्त व्यवहार की पालना सुनिश्चित करते हुए अनुमत होगा।

👉🏼कोविड के मामलों के प्रसार को रोकने हेतु सघन रोकथाम और समूहों / क्षेत्रों में सक्रिय निगरानी की जानी चाहिए।

👉🏼राज्यों से सटे जिलों द्वारा स्थापित सीमा चौकियों पर सख्त निगरानी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी परिपत्र / दिशा-निर्देशों के अनुसार जारी रहेगी।

👉🏼आमजन द्वारा कोविड उपयुक्त व्यवहार एवं टीकाकरण (1st & 2nd dose) के साथ-साथ मास्क का अनिवार्य उपयोग, सेनेटाईजेशन, दो गज की दूरी एवं बंद स्थानों पर उचित वेंटिलेशन का ध्यान रखना अतिआवश्यक है।
👉🏼दिनांक 03 जनवरी, 2022 से प्रदेश के समस्त सिनेमा हॉल / थियेटर / मल्टीप्लेक्स / ऑडिटोरियम एवं प्रदर्शनी हेतु उपलब्ध स्थान 50 प्रतिशत क्षमता के साथ कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक (1st & 2nd dose) लिये हुए व्यक्तियों के लिए अनुमत होगें।

👉🏼संपूर्ण प्रदेश में प्रतिदिन रात्रि 11:00 बजे से प्रातः 05:00 बजे तक रात्रिकालीन कर्फ्यू यथावत् जारी रहेगा।

👉🏼नववर्ष के उपलक्ष में दिनांक 31 दिसम्बर, 2021 को रेस्टोरेन्ट्स का संचालन अतिरिक्त 02.30 घण्टे (रात्रि 10:00 बजे से 12:30 बजे तक) किया जा सकेगा एवं रात्रिकालीन कर्फ्यू में 2 घण्टे (रात्रि 11:00 बजे से 01:00 बजे तक) की छूट रहेगी।

*👉🏼यह आदेश तत्काल रूप से प्रभावी होगा।*

उक्त दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किये जाने पर समस्त जिला कलक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट अपने स्थानीय क्षेत्राधिकार में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51 से 60 एवं राजस्थान महामारी अधिनियम, 2020 के अनुसार कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे। 

इसलिए सभी से आग्रह है कि-
*कोविड अनुरूप व्यवहारों व दिशा निर्देशों की पूर्णतया पालना करें ।*

*पात्र लाभार्थी वैक्सीन की अपेक्षित डोज़ लगवाकर कोविड सुरक्षा चक्र पूर्ण करें ।*

*किसी तरह का लक्षण प्रतीत होने पर तुरन्त RTPCR टेस्ट करवाएं ।*


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